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शनिवार, अगस्त 31, 2013

हम भी पिटे थे जब रुपया गिरा था जेब से

वन इंडिया से साभार 
हम भी पिटे थे जब रुपया गिरा था जेब से
हमाए बाबूजी भी बड़े तेज़ तर्रार थे हम जैसे 50 साल के पार वालों के बाबूजीयों की  
हिटलरी सर्वव्यापी है. हुआ यूं कि हमारी लापरवाही की वज़ह से हम हमारी जेब का एक रुपया ट्प्प से गिरा घर आए हिसाब पूछा एक रुपिया कम मिला ... साहू जी ( किरानेवाले) कने गये 
हमने पूछा भैया हमारा रुपिया गिर गया इधर ! उनने भी खोजा न मिला ....वापस घर पहुंचे . 
     घर पहुंचते ही एक रुपिए के पीछे बाबूजी के चौड़े हाथ वाले दो झापड़ ने हमको रुपैये की कीमत समझा दी...
वैसे हमाये वित्त मंत्री जी भी पचास के पार के हैं.. उनके बाबूजी हमारे बाबूजी टाइप के न थे . .. हो सकता है हों पर हमारी तरह तमाचा न मिला हो जो भी हो भारत का रुपिया गिरा है तो उसका दोषी भारत के वित्तमंत्री तो हैं ही हम आप कम नहीं हैं.   यानी हमारी विदेशी आस्थाओं में इज़ाफ़ा हो रहा है.विदेशी  सोना खरीदो सेलफ़ोन खरीदो, पक्का है विदेशी मुद्रा में भुगतान करना होगा. हमारा खज़ाना खाली होना तय है. 
आभार sealifegifts
   मैं पूछता हूं  आर्थिक समझ कितने भारतियों को है..? शायद कुछ ही लोग हैं पर रुपया गिरा तो किसे गाली देना है ये सबको मालूम है. लोकप्रिय योजनाएं, विदेशी निवेशकों के प्रति हमारी सोच उत्पादन की बज़ाय अपने अनाधिकृत अधिकारों के प्रति हमारा रुझान अर्थ व्यवस्था के खिलाफ़ हैं. आयात नीति भी कहीं न कहीं हमारे प्रतिकूल है.. सब कुछ प्रतिकूल रहे तो भी आम आदमी चाहे तो क्षणिक वैभव प्रदर्शन को प्रदर्शित करने वाली विदेशी वस्तुओं के प्रति उदासीन हो जाए तो हम अपनी अर्थ-व्यवस्था स्वयमेव सुधार लेंगे. 
        अब राज्यों  को भी विदेशी निवेशकों में विश्वास जमाने की ज़रूरत है. सोशल साइटस पर डालर के मुक़ाबले  रुपए गिरने पर किसम किसम के संवाद जारी हैं. मुझे तो लगता है हम सब उन जाल में फ़ंसे तोतों की तरह  हैं जो जो ये रट चुके थे "शिकारी आता है दाने का लोभ दिखाता है लोभ में मत पड़ो ..!" 
 हम उन कबूतरों की तरह क्यों नहीं एक साथ उड़ते कि अगर जाल में फ़ंसे भी तो जाल सहित उड़ जाएं.. 

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