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23.6.11

वे आँखें------मेरे गीत...अर्चना चावजी

एक रचना सतीश सक्सेना जी के ब्लॉग से 

यह दर्द उठा क्यों दिल से है 
यह याद कहाँ की आई है  !
लगता है कोई चुपके से 
दस्तक दे रहा चेतना की 

वे भूले दिन बिसरी यादें 
क्यों मुझे चुभें शूलों जैसी 
लगता कोई अपराध मुझे 
है, याद दिलाये करमों की 
उनके ब्लाग मेरे गीत पर  पोस्ट पढ़ने के लिये  "यहां " क्लिक कीजिये 




सतीष सक्सेना 


21.4.11

शरद कोकास एक जिद्दी व्यक्ति

साभार : शब्दों का सफ़र से

"शरद कोकास" ----एक सराहनीय और मिलाजुला प्रयास.......शरद कोकास एक जिद्दी व्यक्ति का नाम है.जी हाँ वह शरद कोकास एक जिद्दी जो की  कविता कोष में इस तरह से शामिल है
 

18.4.11

दादी की पोथी ..

आज पुरानी पुस्तकों के बीच दादी की पोथी हाथ लगी....मूल्य लिखा है ५/- और नाम है
"रामायन मनका-१०८"...
बस और कुछ नहीं .....सोचा आज हनुमान जयंती है, तो इसे ही सब तक पहुँचाया जाए... 


और महावीर के चरणों में समर्पित ये
हन हनुमतये नम:
___________
हन हनुमंत दुष्ट दलन को
लाज़ रखो निर्बल जन मन को !
कुंठित दुष्ट क्रूर अग्यानी-
सुन कापैं तुम्हरी जस बानी..!
जो नारकी दिये दु:ख मोही-
राम की सौं मत तज़ियो सो ही .
मो सम भाग हीन तुम नाथा-
तुम संग जीत गयहुं जुग सा..!!

अब सुनिए--
रामायन मनका-१०८

5.4.11

एक आम आदमी के ब्लॉग से...एक पोस्ट

नही जानती उनका नाम क्या है पर है बस एक आम आदमी-- जो लिखना चाहता है... और जिसके अन्दर डर है तो दर्द भी, प्रेम है तो नफ़रत भी, ,और गुस्सा भी, सुनिए उनकी एक पोस्ट..

एक शानदार और ईमानदार रचना---डॉ.अमर कुमार
बात में दम है - मगर समझना तो आखिर हमें ही है न!---स्मार्ट इंडियन

 


2.4.11

चैतन्य की शिकायत--- है कोई हल किसी के पास???



 आज मिलिये चैतन्य से...सुनिए चैतन्य की शिकायत...निकालिए कोई हल....



ये रही डा० मोनिका शर्मा की पोस्ट
डा०मोनिका शर्मा
कहाँ मैं खेलूं चहकूं गाऊं
आप बङों को क्या समझाऊं
बोलूं तो कहते चुप रहो
चुप हूं तो कहते कुछ कहो
कोई राह सुझाओ तो.... मैं क्या करूं, मैं क्या करूं.........?(पूरा पढ़िये)

___________________
परवाज़.....शब्दो... के पंख

25.3.11

रंग पंचमी तक होली होली ही होती है

आज़ क्रिकेट के रंग में  विश्व यहां तक की गूगल बज़ तक सराबोर था.
आस्ट्रेलिया को हराना विश्व कप का रास्ता साफ़ करने के बराबर है.
इसी हंगामा खेज मौके पर ब्लागवुड के समाचार सुनिये

                             मिडियम वेब चार दो शुन्य मेगाहार्टज पर ये ब्लॉगवुड का रेडियो केन्द्र है , सभी श्रोताओं को रंग पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।अब आप ललित शर्मन: से ब्लॉग वुड के बचे-खुचे मुख्य समाचार सुनिए।
टेक्स्ट में बांचिये इधर 




23.3.11

भगतसिंह का अन्तिम खत ......

शहीद भगतसिंह का अन्तिम खत ...दीपक "मशाल" की आवाज में





और ये रहा तीनों वीरों का लिखा संयुक्त पत्र 
महोदय,
उचित सम्मान के साथ हम नीचे लिखी बाते .आपकी सेवा में रख रहे हैं -
भारत की ब्रीटिश सरकार के सर्वोच्च अधिकारी वाइसराय ने एक विशेष अध्यादेश जारी करके लाहौर षड़यंत्र अभियोग की सुनवाई के लिए एक विशेष न्यायधिकर्ण (ट्रिबुनल ) स्थापित किया था ,जिसने 7 अक्टुबर ,1930 को हमें फांसी का दंड सुनाया | ह
मारे विरुद्ध सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया हैं कि हमने सम्राट जार्ज पंचम के विरुद्ध युद्ध किया हैं |
न्यायालय के इस निर्णय से दो बाते स्पष्ट हो ज़ाती हैं -पहली यह कि अंग्रेजी जाति और भारतीय जनता के मध्य एक युद्ध चल रहा हैं |दूसरी यह हैं कि हमने निशचित रूप में इस युद्ध में भाग लिया है |अत: हम युद्ध बंदी हैं | यद्यपि इनकी व्याख्या में बहुत सीमा तक अतिशयोक्ति से काम लिया गया हैं , तथापि हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि ऐसा करके हमें सम्मानित किया गया हैं |पहली बात के सम्बन्ध में हमें तनिक विस्तार से प्रकाश डालना चाहते हैं |
हम नही समझते कि प्रत्यक्ष रूप से ऐसी कोई लड़ाई छिड़ी हुई हैं | हम नहीं जानते कि युद्ध छिड़ने से न्यायालय का आशय क्या हैं ? परन्तु हम इस व्याख्या को स्वीकार करते हैं और साथ ही इसे इसके ठीक सन्दर्भ को समझाना चाहते हैं | ………………….
पूरा पत्र "दखल की दुनियां" पर देखिये  

13.3.11

परोपदेशकुशलाः दृश्यन्ते बहवो जनाः ....

पद्मसिंह जी 



एक साधु नदी मे स्नान कर रहा था, उसने देखा एक बिच्छू पानी मे डूब रहा था और जीवन के लिए संघर्ष कर रहा था। साधु ने उसे अपनी हथेली पर उठा कर बाहर निकालना चाहा...लेकिन बिच्छू ने साधु के हाथ मे डंक मारा, जिससे साधु का हाथ हिल गया और बिच्छू फिर पानी मे गिर गया... साधु बार बार उसे बचाने का प्रयत्न करता रहा और जैसे ही साधु हथेली पर बिच्छू को उठाता बिच्छू डंक मारता...लेकिन अंततः साधु ने बिच्छू को बचा लिया.... घाट पर खड़े लोग इस घटना को देख रहे थे... किसी ने पूछा... बिच्छू आपको बार बार डंक मार रहा था फिर भी आप उसे बचाने के लिए तत्पर थे... ऐसा क्यों...
साधु मुस्कराया और बोला... बिच्छू अपना धर्म निभा रहा था... और मै अपना... वो अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता तो एक साधु अपना स्वभाव क्यों छोड़े... फर्क इतना है कि उसे नहीं पता कि उसे क्या करना चाहिए... जब कि मुझे पता है मुझे क्या करना चाहिए...
अरे माफ़ कीजिये इसे अब सुनना है आपको 

 


इसे पढ़िए ----पद्मसिंह जी के ब्लॉग ढीबरी पर यहाँ
पद्म सिंह जी एक प्रतिभावान ब्लागर ही नहीं वरन एक नेक-हृदय इंसान भी हैं.  उनका सभी ब्लागर्स के बीच अलग ही स्थान भी है. शुभकामनाओं सहित 

17.2.11

एक मै और एक तू......हम बने तुम बने एक दूजे के लिए

हिंद-युग्म साधकों की साधना अंतरज़ाल के लिये एक अनूठा उपहार है. और जब मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिलता तो मैं सब कुछ छोड़कर पूरी लगन से काम करतीं हूं. मुझे ही नही सभी को हिंद-युग्म की प्रतीक्षा होती है. मिसफ़िट पर सादर प्रस्तुत है हिन्द-युग्म से साभार
 आवाज हिन्दयुग्म से ओल्ड इज़ गोल्ड श्रंखला---भाग 8 और 9-----
एक मै और एक तू---




 हम बने तुम बने एक दूजे के लिए------
 

11.2.11

एक "हाड़ौती" गीत -दुर्गादान जी का...अनवरत से

अनवरत

उक्त ब्लॉग से की उक्त पोस्ट से ---गाया गीत आदरणीय दुर्गादान जी से क्षमायाचना सहित प्रस्तुत कर रही हूँ ."हाड़ौती" भाषा का ज्ञान न होने से गलतियाँ  हुई है,जिससे द्विवेदी जी ने अवगत कराया है ....पर अनुमति देने के लिए आभारी भी हूँ आदरणीय द्वय की.....
शीघ्र ही आदरणीय़ दुर्गादान जी की आवाज में भी सुना जा  सकेगा...द्विवेदी जी प्रयासरत हैं...तब तक के लिए इसे ही सुने -----



सच्चा शरणम --------    चलते रहने वाले हिमान्शु जी का ब्लॉग
उक्त ब्लॉग पर आप सुन सकते है "सखिया आवा उड़ि चली"








4.2.11

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों

साभार CM Q
गोपाल दास नीरज जी का गीत
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों
- गोपालदास "नीरज" (Gopaldas Neeraj)

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है |
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है |

माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है |

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चाँदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों, चाल बदलकर जाने वालों
चँद खिलौनों के खोने से, बचपन नहीं मरा करता है |

लाखों बार गगरियाँ फ़ूटी,
शिकन न आयी पर पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों,
लाख करे पतझड़ कोशिश पर, उपवन नहीं मरा करता है।

लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी ना लेकिन गंध फ़ूल की
तूफ़ानों ने तक छेड़ा पर,
खिड़की बंद ना हुई धूल की
नफ़रत गले लगाने वालों, सब पर धूल उड़ाने वालों
कुछ मुखड़ों के की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है।

 




इस गीत को स्वरों में पिरोया है मिसफ़िट:सीधीबात की सहसंचालिका  पाडकास्टर अर्चना चावजी ने 



25.12.10

आवाज पर ओल्ड इज़ गोल्ड श्रृंखला से चार प्रतिनिधि गीत

सजीव सारथी जी 
हिंदयुग्म के आवाज़ अनुभाग से ओल्ड-इज़-गोल्ड के इन सदाबहार गीतों को प्रस्तुत करते हुये मैं अर्चना चावजी क्रिसमस एवम नववर्ष की अग्रिम बधाईयों के साथ प्रस्तुत हूं. साथियो , यदि कहा जावे कि हिंद-युग्म एक वेब पर हमारी आवश्यकता है  उसके सामग्री चयन,विषय-वस्तु की वज़ह से तो कोई अतिश्योक्ति नही    मेरी कम्पेयरिंग में आशा आप को यह पसंद आए...संजीव सारथी और अनुराग शर्मा एवम सम्पूरं हिंद युग्म परिवार को अर्चना-चावजी एवम सहप्रस्तोता गिरीश बिल्लोरे मुकुल का "मिसफ़िट:सीधीबात" की ओर से हार्दिक आभार निवेदित है     

मैं बन की चिड़िया बन के.....ये गीत है उन दिनों का जब भारतीय रुपहले पर्दे पर प्रेम ने पहली करवट ली थी


हाथ सीने पे जो रख दो तो क़रार आ जाये....और धीरे धीरे प्रेम में गुजारिशों का दौर शुरू हुआ


भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना, जमाना खराब है दगा नहीं देना....कुछ यही कहना है हमें भी


दीवाना हुआ बादल, सावन की घटा छायी...जब स्वीट सिक्सटीस् में परवान चढा प्रेम  

13.12.10

उन्मुक्त जी एवम दराल जी की दो श्रवणीय पोष्ट अर्चना चावजी द्वारा

इसी बात को चार साल पहले से उन्मुक्त जी समझा रहे हैं और अब तक ब्लॉगजगत में इसकी आवश्यकता है ...
पढिये उन्मुक्त जी की पोस्ट जिसे उन्होंने २९ सितम्बर २००६ को प्रकाशित किया था...

 



 डॉ. टी.एस. दराल जी के ब्लॉग अंतर्मन्थन पर प्रकाशित संदेश---
एक संदेश--जनहित में जारी
 



9.12.10

फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में वो किताबों में सुलगते हैं सवालों की तरह



से
Glass Bear In Box - Gift Of LoveLive, Love, Laugh Silver & Crystal Expressively Yours Braceletअर्चना चावजी की  आवाज़ में सुनिए...ग़ज़ल

चांदनी रात में कुछ भीगे ख्यालों की तरह
   मैंने चाहा है तुम्हें दिन के उजालों की तरह   साथ तेरे जो गुज़ारे थे कभी कुछ लम्हें
मेरी यादों में चमकते हैं मशालों की तरह
इक तेरा साथ क्या छूटा हयातभर के लिए
मैं भटकती रही बेचैन गज़ालों की तरह
फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में
वो किताबों में सुलगते हैं सवालों की तरह
तेरे आने की ख़बर लाई हवा जब भी कभी
धूप छाई मेरे आंगन में दुशालों की तरह
कोई सहरा भी नहीं, कोई समंदर भी नहीं
अश्क आंखों में हैं वीरान शिवालों की तरह
पलटे औराक़ कभी हमने गुज़श्ता पल के
दूर होते गए ख़्वाबों से मिसालों की तरह
                                                                         -फ़िरदौस ख़ान
 

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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...