28.9.22

सांप्रदायिकता बुरी चीज नहीं है

    विचार या विचार समूह संप्रदायिकता का  स्वरूप है । दूसरे शब्दों में सांप्रदायिकता विचार अथवा विचार समूह का पर्यायवाची है। सांप्रदायिकता के विस्तार की प्रवृत्ति किसी भी देश के लिए खतरे की घंटी है। सामाजिक परिस्थितियों एवं सांस्कृतिक निरंतरताएं तथा सभ्यता के विकास  अनुक्रम को नुकसान पहुंचाने वाला सांप्रदायिकता का विस्तार मूल दार्शनिक और अध्यात्मिक सिद्धांतों का अवसान करता है।
   संप्रदायिकता अस्पृश्य नहीं है, परंतु इसका विस्तार करने का प्रयास अवश्य अस्पृश्य और अग्राह्य है। कोई भी संप्रदाय सम्मान  विचारधाराओं का ऐसा  स्वरूप होता है.जिसमें आध्यात्मिक तत्वों का मिश्रण होता है। बात बहुत कठिन नहीं है इसे आसानी से समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए आपके मन में ऐसी प्रक्रिया आकार लेती है जिससे  आप एक ऐसे विश्व की कल्पना कर रहे हैं जो सद्भावना और सहिष्णुता को कायम करने के प्रयास करता है और सफल भी रहता है। इसके लिए आप अपने विचार का संप्रेषण किसी दूसरे को करेंगे कोई दूसरा तीसरे को करेगा कोई तीसरा चौथे को करेगा और इसका विस्तार चैन सिस्टम से बहुत अधिक हो जाता है। आपका विचार बुद्ध की तरह विस्तारित होने लगता है और आप एक  स्प्रिचुअल व्यक्ति के रूप में स्थापित हैं..!
  यह स्थिति आपके जीवन काल में व्यवस्थित रूप से चलती है परंतु दीर्घकाल में आपके अनुयाई आपके विचार को इधर-उधर थोपते नजर आते हैं। कई कई बार आपके अनुयाई शस्त्र के बल पर तो कई बार लोग लालच देकर अपने संप्रदाय को विस्तार देना चाहते हैं। मेरी नजदीक घटित एक घटना के उदाहरण से  आपको समझाना चाहता हूं ।
   एक परिवार में मां को कैंसर हो गया था । उस कैंसर की पतासाजी चिकित्सकों ने की और परिवार को बताया कि यह महिला कुछ दिनों के लिए इस दुनिया में रह सकती है इसका जाना प्रभावित है यह अधिक दिनों तक आपके साथ रह नहीं सकती । एक संप्रदाय के एक अनुयाई ने जो अब संप्रदाय को विस्तारित करने प्रचारक बन चुका था, उस परिवार से संपर्क करता है और उसे कुछ धनराशि तथा कुछ अभिमंत्रित पानी इत्यादि के सेवन की सलाह देता है। इसके पहले वह व्यक्ति के परिवार की मूल साधना के संसाधनों को एक कपड़े में बांधकर  ताक पर रख देने का आदेश देता है। कैंसर लाइलाज रोग है। आप सब जानते हैं कि कैंसर में जीवन की प्रत्याशा बहुत कम ही होती है जिसे न के बराबर कहा जा सकता है। वास्तव में उस महिला को कैंसर न था कुछ दिनों में महिला स्वस्थ हो गई। परंतु पूरा का पूरा परिवार दूसरे संप्रदाय के मूल्यों और सिद्धांतों को मानने लगा। किस विचार को मानना है या उसे त्यागना है इसका अधिकार मनुष्य का है इसमें कोई शक नहीं परंतु यहां में उस व्यक्ति को कटघरे में खड़ा करना चाहता हूं जिसने झूठ बोलकर भावात्मकता को आधार बनाकर अपने संप्रदाय का विस्तार किया।
  एक और उदाहरण बहुत नजदीक से मुझे देखने को मिला। मेरे अधीनस्थ कर्मचारी की संतान का मानसिक संतुलन अक्सर बिगड़ जाया करता है। ऐसी स्थिति में जहां से राहत की सूचना मिलती है वहां पर  किसी का भी जाना स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस क्रम में अधीनस्थ कर्मी ने बताया कि-" अमुक व्यक्ति का परिवार उसकी संतान की इस बीमारी का अंत कर सकता है।"
   मैं जानता था कि यह केवल एक छलावा और झूठा आश्वासन है। फिर भी किसी भी दुखी व्यक्ति को मना करके उसकी आत्मा को आहत ना करने के उद्देश्य से मैंने उससे उस प्रक्रिया को देखने का यह उस प्रक्रिया में शामिल होने का यह कहते हुए नैतिक रुप से समर्थन किया कि-" इस बात का ध्यान रखना कि तुम अपनी संस्कृति और पैतृक आचरण वंशानुगत परंपराओं का पालन करते रहना।""
       कर्मचारी ने कहा ऐसा नहीं होगा वह लोग बहुत विश्वसनीय हैं वह ऐसा ऑफर भी नहीं देंगे।"
     अधीनस्थ कर्मचारी के विश्वास का सम्मान करते हुए उसे अवकाश दिया । इस व्यक्ति ने स्वास्थ्य सुधार के लिए कुछ सत्रों का आयोजन किया। कर्मचारी की सुल्तान का स्वास्थ उस कालखंड में ठीक रहा। ऐसा अक्सर होता भी रहा है। परंतु कर्मचारी को ऐसा प्रतीत हुआ कि इलाज के लिए आयोजित सत्रों से ही लाभ मिल रहा है। मुझे वह अधीनस्थ कर सूचित किया करता था कि हां मेरी संतान अब पहले से बेहतर है।
  इस बात की जानकारी उसने सत्र के आयोजकों को भी दी। बस फिर क्या था आयोजक उसके पैतृक गांव तक पहुंच गए। और परिवार को इस बात के लिए तैयार करने लगे कि वे अपनी आस्था का केंद्र बदल दें। घर की धार्मिक पुस्तकों को लपेटकर ऐसे स्थान पर रख दें जहां सामान्य रूप से जाना आना नहीं होता है। उस समय एक कर्मचारी और उसका परिवार चकित रह गया। और उसने स्पष्ट रूप से मना भी कर दिया।
   अबकी बार वह जब सप्ताहांत के अवकाश से लौटकर आया तो उसने मुझे घटना का विस्तार से विवरण दिया। उसने यह भी स्वीकारा कि-" सर आपका संदेह सत्य था।
   मैंने कहा कि यदि इन सारी प्रक्रियाओं से दुनिया को स्वस्थ किया जा सकता था तो कोविड-19 के लिए इससे मुफीद और क्या होता।।
    जो जो संप्रदाय अपनी मान्यताओं को प्रतिस्थापित करने के लिए इस तरह के प्रयास करते हैं उन संप्रदायों का स्थायित्व कब तक बना रहेगा मुझे संदेह है। आपको भी संदेह करना चाहिए।
   हाल ही में एक जिले में कुछ लोग एक खास वर्ग की आबादी को इकट्ठा करके उन्हें ज्ञान ध्यान की बातें बता रहे थे । सब कुछ ठीक चलता रहा अधिकारों पर बात हुई कर्तव्यों पर बात हुई सामाजिक विसंगतियों पर बात हुई सभी बातों को गंभीरता से सुना गया। उस समुदाय ने वक्ताओं के उस अनुरोध का तीखा विरोध तक किया जबकि समुदाय को मौजूदा आस्था से विमुक्ति का आग्रह वक्ताओं ने किया ।
    महात्मा गौतम बुद्ध के सिद्धांत और उनके समकालीन तथा बाद के अनुयाई आध्यात्मिकता का प्रचार करते रहे इससे बौद्ध मत के विस्तार समकालीन अखंड भारत बौद्ध मत सीरिया तक पहुंच गया था। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं यह इतिहास में दर्ज है। इसके पूर्व सनातन व्यवस्था अपनी खूबी के कारण ही विश्व में विस्तारित रही है ऐसा मेरा मानना है।
   उपरोक्त कथनों का आशय यह है कि
[  ] जो विचार या विचार समूह जिस भूखंड में विस्तारित होता है या हो रहा हो उसे उस भूखंड की कालगत परिस्थितियों के साथ अनुकूलन करना होगा। तभी वह विचार या विचारों का समूह स्थायित्व प्राप्त कर सकता है।
[  ] कोई भी विचार या विचार समूह तलवार के जोर पर अगर स्थापित भी कर दिया जाए तो दीर्घकाल में  उसका समापन सुनिश्चित है।
[  ] देश काल परिस्थिति के  साथ साथ जो  विचार या विचार समूह में परिवर्तनशीलता का गुण नहीं होता वह विचार अथवा विचार समूह भी अधिकतम कुछ शताब्दियों तक ही जीवित रह सकता है।
          भारत में शैव, वैष्णव,शाक्त, वैदिक,स्मार्त, बौद्ध, जैन, के अलावा कई और भी ज्ञात अज्ञात विचार स्थाई हैं। पारस्परिक आपसी वैमनस्यता देखने को कभी नहीं मिलती। चार्वाक तथा रक्ष संस्कृति की विचारधारा को छोड़कर सभी उपरोक्त वर्णित विचार सांस्कृतिक परंपराओं की निरंतरता के साथ जीवंत है इनमें आपसी  विद्वेष देखा नहीं गया ।
  द्वैत अद्वैत, द्वैताद्वैत, के सिद्धांत भी चिर स्थाई से हो गए हैं। कबीर अकाट्य है तो रहीम और मिर्जा गालिब का अध्यात्मिक दर्शन आज भी विद्यमान है।
   यवन भी चाहते थे कि वे बलपूर्वक अपनी सांस्कृतिक निरंतरता को भारत में स्थापित कर देंगे। परंतु ऐसा हो ना सका। ऐसा होना संभव भी न था होता भी कैसे भारत एक भौगोलिक संरचना नहीं है इसकी अपनी सांस्कृतिक निरंतरता है सामाजिक व्यवस्था है।
    यहां बिना नाम लिए संकेतों में स्पष्ट करना आवश्यक है कि-" जिस विचार में लचीलापन ना हो परिवर्तनशीलता का गुण ना हो वह न तो बलपूर्वक विस्तार पाता है और ना ही छल या कपट पूर्वक। लोभ लालच देकर तो उसके स्थायित्व को बनाए रखना बहुत मुश्किल होगा।"
   तय आपको करना है कि आप अपने विचार को विस्तारित करने अथवा विचार समूह को विस्तारित करने के लिए कौन सा तरीका अपनाते हैं वैसे तो यह सब जरूरी भी नहीं है क्योंकि सर्वोपरि है एकात्मता का महत्वपूर्ण सूत्र। जो सर्वे जना सुखिनो भवंतु अथवा विश्व बंधुत्व का नवनीत है। अंत में सिर्फ इतना जानना जरूरी है कि-" संप्रदायिकता बुरी चीज नहीं है बल्कि सांप्रदायिक होना और उसे
बल अथवा छल कपट से विस्तार करने की कोशिश गलत है अग्राह्य है ।

27.9.22

बाप की साली :मौसी क्यों नहीं..?

 
         गिरीश बिल्लोरे मुकुल 

   मैं उस महान लेखक का नाम भूल गया हूं परंतु उनकी लिखी गई कहानी का कथानक याद है। 
सामान्य रूप से हम अपने कहे हुए  शब्दों असर को गहराई से नहीं जानते, और तो और हम अपने किए गए कृत्य का प्रभाव क्या पड़ेगा इसका अनुमान नहीं लगा पाते। 
हरिहरन की गायक गजल मुझे बहुत पसंद आती है शायद आपने भी सुनी होगी-
" जब कभी बोलना 
मुख्तसर बोलना
वक़्त पर बोलना
मुद्दतों सोचना....
  इसमें कोई शक नहीं बोलने से पहले और कुछ करने से समझ लेना चाहिए कि-" हमारे मुंह से निकले शब्द कितने सकारात्मक असर छोड़ते हैं अथवा उनका कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ता है ?
हां तुम्हें बता रहा था कि, बात बहुत पुरानी है उस वक्त शायद हम कॉलेज में पढ़ा करते थे। कॉलेज के कैंपस से जुड़ी एक कहानी कैरेक्टर हॉस्टल में खाना बनाने या साफ सफाई करने का काम किया करती थी। पूरे स्टूडेंट्स उसे बाप की साली कहकर परेशान किया करते थे । ऐसा नहीं था कि इस कहानी की पात्र जिसे लोग बाप की साली कहते थे उसे छात्र पसंद नहीं करते थे परंतु ऐसा अलंकरण  महिला पात्र को बहुत दु:खी कर देता था, वह चिढ़ जाया करती थी । यह प्राकृतिक है कि जो व्यक्ति किसी शब्द या कार्य विशेष चिड़ता हो  है उसके सामने वही कार्य शब्द के दोहराव की आदत लोगों में होती है। युवा कुछ ज्यादा ही इस तरह की हरकतें किया करते हैं।
   ऐसा ही होता था उस महिला को हॉस्टल में रहने वाली सभी युवा बाप की साली कहकर परेशान किया करते थे। गांव से एक विद्यार्थी जब शहर आया और हॉस्टल में उसने उस महिला को मौसी शब्द से अलंकृत किया तो माहौल का बदल जाना स्वभाविक था ।
   हमें किसी से भी संवाद करने के पहले इसी तरह के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। संवादों में अत्यधिक क्रूरता उपेक्षा अथवा अपमानजनक संवाद करना निसंदेह प्रत्युत्तर का कारण होता है। आप नहीं समझ पाएंगे कि प्रत्युत्तर कैसा होगा?
  मुंह से निकला हुआ शब्द तरकस से निकला हुआ तीर और अबके संदर्भों में कहा जाए तो- "दागी हुई मिसाइल कभी वापस नहीं आती..!"
  हम अक्सर अधिकारियों को देखते हैं वह क्या बोल जाते हैं उन्हें खुद ही नहीं मालूम यह अलग बात है कि दिल से कई सारे ऑफिसर खराब नहीं होते परंतु ऑफिसर होने का लबादा उनके मस्तिष्क तक प्रभावित कर देता है। और फिर जब भी बोलते हैं तो उन्हें यह होश नहीं रहता कि - "वे ही ऑलमाइटी याने सर्वशक्तिमान नहीं है..!"
  मशहूर शायर चुके ने कहा है-
"नुक़रई खनक के सिवा क्या मिला शकेब..
कम कम वह बोलते हैं जो गहरे हैं पेट के"
   आप भी फौरन प्रतिक्रिया देने वालों की मनोदशा और उनकी मानसिक स्तर को आसानी से समझ सकते हैं। अक्सर जो लोग किसी भी मुद्दे पर त्वरित टिप्पणी कर देते हैं वह टिप्पणी सटीक  होगी यह कहना मुश्किल है । 
   कुछ कहने अथवा करने के पहले उसके प्रभाव का आंकलन करना बहुत जरूरी है। और जब भी आप संवादी हो तो वक्तव्य नपे तुले और सटीक होनी चाहिए। अपमानजनक शैली में बात करना किसी की योग्यता का नहीं वरन अयोग्यता का उदाहरण होता है।
   अक्सर लंबी लंबी बातों में भूत परोसना एक अंतराल में मस्तिष्क के रडार पर आपको संदिग्ध यूएफओ की तरह पोट्रेट कर देता है।
  मुझे विश्वास है कि इस बिंदु पर भी हम चिंतन करेंगे और चिंता भी।

पिता के पुत्र होने का एहसास छोड़िए

 
यह वाक्य मेरे लिए सदा से ही घृणास्पद रहा है। इस वाक्य के मेरे कानों में पड़ते ही मेरा मस्तिष्क क्रोध से भर गया था, और आज तक शिलालेख की तरह अंकित भी है। खैर यह मेरा अपना चिंतन है कदाचित कुछ लोगों का भी हो लेकिन जो पुत्र के पिता होते हैं वे केवल अहंकार के पिटारे से अधिक मुझे कुछ नजर नहीं आते।
   पुत्र संतान का गौरव अर्जित कराना तो सदियों से जारी है। भारत जैसे सनातनी देश में भारतीयों को यह जानकारी नहीं है कि भारत में शक्ति पूजा होती है। बेटियों के बिना कुछ भी नहीं बेटी दिवस पर विमर्श के लिए यह विषय जानबूझकर मैंने उन अल्प बुद्धि अभिभावकों के लिए चुना है जो केवल बेटों को अपना श्रेष्ठ संसाधन मानते हैं। जबकि मेरा दृष्टिकोण इससे इतर है। यह इसलिए नहीं कि -" ईश्वरीय संयोग से मैं बेटियों का पिता हूं बल्कि इसलिए कि मैंने हर मोर्चे पर बेटियों को सफल होते देखा है।"
   अक्सर घर के बड़े बूढ़े बुजुर्ग लोग किसी की संतान बेटी होने पर शोक ग्रस्त हो जाते हैं। इन बुजुर्गों ने ना तो वेदों का अध्ययन किया होता है और ना ही वे यह जानते कि वेदों के निर्माण में ऋषिकाओं का विशेष योगदान रहा है। ज्यादा दूर नहीं ऋग्वेद के कुछ अंश को पढ़ ले तो सब कुछ साफ हो जाएगा।
मुझे-"पुत्र के पिता बोध की जरूरत नहीं है। अगर मुझे संतान से प्रेम है तो यह सब तथ्य द्वितीयक हो जाते हैं।"
   आज मैं इस बात का रहस्योद्घाटन करना चाहता हूं कि पुत्र संतान का जनक या जननी होना गौरव और गरिमा की बात नहीं है बल्कि एक अच्छी संतान का जनक या जननी होना गौरव की बात है।
   भारतीय समाज को समझना चाहिए कि उसकी विरासत में बहुत कुछ ऐसा है जो यह सिद्ध करता है कि बेटियां भी बेटों के समकक्ष हैं। यह ऐतिहासिक और हमारी सांस्कृतिक निरंतरता के अन्वेषण से स्पष्ट हो जाता है। मुझे घटना याद आ रही है कि एक पुत्र संतान का पिता अपने पुत्र के विवाह के समय पुत्र के पिता और माता का दायित्व अपने भाई पर छोड़ना चाहता था। उसका यह कहना था कि मैंने यह दायित्व तुम्हें  इसलिए देना चाहता हूं क्या कि तुम्हें क्योंकि मैं  तुम्हें भी पुत्र बोध हो सके।
   छोटे भाई का इंकार कर देना साहस का कार्य था। उसने यह कहकर इंकार कर दिया कि जब ईश्वर ही नहीं चाहते कि मुझे ऐसा कोई बोध हो तो फिर आप ऐसा प्रयास क्यों कर रहे हैं? और फिर मैं तो पुत्री संतान को भी पुत्र संतान के समतुल्य समझता हूं।
   समाज का नकारात्मक चिंतन आप सकारात्मक दिशा की ओर जाता नजर आ रहा है। बिटिया दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं देकर आपसे आग्रह करूंगा कि कृपया बेटियों को लेकर किसी भी तरह की मानसिक ग्रंथि ना पाले। कृपया उसे एक संतान के रूप में देखें आपको कोई अधिकार नहीं है कि आप अपनी संतानों का विभाजन पुत्र  या पुत्री के रूप में करें।
  मुझे अच्छी तरह से याद है कि मेरे भांजे के विवाह के समय उसके  ससुर बेहद भावुक होकर मुझसे मिले और उन्होंने कहा हम आपके कृतज्ञ हैं और हमसे कोई कमी रह गई हो तो क्षमा कीजिए।
  मैंने पूछा- "आज आपने कन्यादान किया है न..?"
उनका उत्तर था- हां.. !
मेंरा प्रतिप्रश्न-" अर्थात दाता तो आप हो न ? तो फिर आपका हाथ हमारे हाथों के ऊपर है हम याचक हैं। याचक का स्तर हमेशा ही दाता से नीचे होता है मैं आपको प्रणाम करना चाहता हूं आपको प्रणाम है।
    भाव से परिपूर्ण पुत्री संतान के उस पिता को इस संवाद से जो प्रसन्नता हुई होगी उसका आंकलन करना बहुत मुश्किल है। पर मुझे विश्वास है कि-" इस तो कैसे संवाद से आप सबके मस्तिष्क में संतान के प्रति विभेद के दृष्टिकोण का अंत अवश्य हो जाएगा।"
  सुधि पाठक आप सबको नमन करते हुए  आत्मिक अनुरोध करना चाहता हूं-" आप पुत्र संतान , उत्कंठा में भ्रूण हत्याएं रोक दीजिए और अपनी पुत्री संतान को भी पुत्र संतान के समतुल्य ही मानिए। वंश केवल पुत्रों से नहीं चलता है, यह समाज का गलत दृष्टिकोण है। वंश पुत्रियां भी आगे नहीं जाती है यह वैज्ञानिक सत्य है। आप की संतान में आपका डीएनए है और वह डीएनए अनंत काल तक जीवित रहता है उसका स्थानांतरण होता रहता है। तो आप किस आधार पर कहते हैं कि वंश पुत्र ही चलाते हैं यह एक उत्तराधिकारी व्यवस्था हो सकती है लेकिन वैज्ञानिक और अध्यात्मिक व्यवस्था यह नहीं है जिसे आपने अपने मस्तिष्क को कूड़ेदान बनाकर संभाल कर रखा है।
 


 

25.9.22

Fall in LIC share prices, loss of middle class

*Institutional investment is needed on the falling stock of LIC, otherwise the loss is only the loss of the middle class shareholders.*
The BPO of Life Insurance Corporation of India was issued at Rs 949. But this stock has fallen to ₹ 648 with a terrible fall of 32%.
This is the result of the biggest weakness of Life Insurance Corporation of India's management.
Traders who intervene in the stock market consider this fall as a permanent decline.
The middle class took the shares of Life Insurance Corporation of India all over India.The middle class had reposed their trust in LIC given the tagline of their hard earned money with life and after life.
There is no doubt that this organization i.e. Life Insurance Corporation of India has expertise in the matter of sales, but this skill is not working in the stock market.Life Insurance Corporation of India appears to be the weakest in finance management.
Senior officers of Life Insurance Corporation, who directly intervene in the management, are busy explaining to their subordinate officers that - "It is a conspiracy by the elements of business competition, due to which the shares fell."
Blaming others for the fall in LIC's stock is a classic example of business weakness. The most unfortunate thing is that the fall in the stock prices of Life Insurance Corporation of India is a sad situation for thousands of middle class families.In fact the middle class people had unwavering trust in their LIC agent in this promotion.LIC agents also do not have much knowledge regarding stock marketing. 
Gautam Adani holds 10% of LIC's stock.Adani also has companies that are involved in other businesses.Despite this Adani Group of Companies has also received loan from State Bank of India.This is definitely a matter of concern.
Overall, this attempt to mobilize capital from the market is giving very negative results due to weak managerial ability. 
We can only pray that God can compensate the financial loss of the middle class people.

मिलिट्री तख्तापलट खबर और ग्लोबल टाइम्स खामोश..?


शुक्रवार और शनिवार दरमियानी रात से चीन में तख्तापलट की खबरों का बाजार गर्म हो गया। शनिवार अर्थात 24 सितंबर 2022 सुब्रमण्यम स्वामी जी ने ट्वीट करके चीन के हालातों पर सवाल खड़े कर दिए।
  विश्व का समाचार बाजार इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से बेहद प्रभावशाली बन गया है। आज ट्विटर पर नंबर एक पर शी जिनपिंग और नंबर दो पर बीजिंग शब्द सर्वाधिक बार प्रयोग में लाया जा रहा था।
  भारतीय खबर रटाऊ मीडिया को बैठे-बिठाए मसाला मिल गया परंतु तथ्यात्मक जानकारी मीडिया हाउसेस में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अनुपलब्ध रही है।
आइए हम बताते हैं कि किन कारणों से यह खबर इन दिनों विश्व के समानांतर, मीडिया न्यू मीडिया अथवा सोशल मीडिया पर वायरल है कि चीन में मिलिट्री तख्तापलट हो चुका है?
[  ] जब भी चीन के मामले में कोई खबर सुर्खियों में आती है तब ग्लोबल टाइम्स उसे तुरंत रिस्पॉन्ड करता है। परंतु इस खबर के संदर्भ में ग्लोबल टाइम्स की चुप्पी का अर्थ मौन स्वीकृति लक्षण तो नहीं?
[  ] शंघाई  को-ऑपरेशन संगठन की बैठक में अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आज सहज रूप में देखा तथा उसका उल्लेख भी किया।
[  ] एक पत्रकार जेनिफर जैंग ने ऐसा वीडियो रिलीज किया जिसमें 80 किलोमीटर तक मिलिट्री के ट्रक बीजिंग की ओर जाते हुए नजर आए। इस वीडियो को पाकिस्तानी यूट्यूबर आरजू अकादमी ने प्रमुखता के साथ अपने दैनिक शो में प्रेजेंट किया है। यद्यपि वे अपने शो में इस मिलिट्री कू की पुष्टि नहीं कर रही थीं।
[  ] इस तख्तापलट का श्रेय जाता है चीन के पूर्व राष्ट्रपति एवं पूर्व प्रधानमंत्री को जिनका नाम क्रमशः हू जिंग ताओ एवम वें ज़िया हो है । खबरें यह भी हैं कि इन दोनों में समरकंद में हुई s.c.o. सम्मिट में ही सी जिनपिंग को सुरक्षा एजेंसियों से गिरफ्तार करवा लिया था।
[  ] समाचार यह भी गर्म है कि-" चीन की एक सेना अधिकारी ली क्यांग मिंग चीन के अगले राष्ट्रपति होंगे।
[  ] अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इस समाचार की भी पुष्टि की है कि समिति के उपरांत होने वाले डिनर के पहले ही चाइना के राष्ट्रपति चीन के लिए रवाना हो चुके थे वह भी डिनर में शामिल हुए बिना।
[  ] सूचना माध्यम यह भी बताते हैं कि-" शी जिनपिंग को हाउस अरेस्ट कर दिया गया है।"
[  ] विश्व मीडिया का ध्यान चीन से विश्व में जाने वाली 60% फ्लाइट के उड़ान ना भर सकने को भी इस मिलिट्री तख्तापलट का संकेत माना है। कहा जाता है कि किंतु विश्व भर में 9584 एयरक्राफ्ट विदेशों के लिए उड़ ना सके।
[  ] रूस ने इनको पावर आफ साइबेरिया नाम से जानी जाने वाली पाइप लाइन के जरिए तेल देने पर अस्थाई तौर से रोक लगा दी है।
  उपरोक्त परिस्थितियों से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि-" चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब सत्ता विहीन हो चुके हैं। चीन की संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को केवल दो बार राष्ट्रपति बनने की व्यवस्था है परंतु शी जिनपिंग का यह प्रयास रहा कि वे आजीवन चीन के राष्ट्रपति रहेंगे। यह तथ्य पूरा विश्व जानता है और चीन के महत्वाकांक्षी लोगों के मन में शी जिनपिंग का यह सपना बरसों से खटक रहा है। इस कारण भी तख्तापलट की इन खबरों से इंकार नहीं किया जा सकता ?
*यदि यह मिलिट्री कू हुआ है तो उसका कारण क्या है?*
   मीडिया रिपोर्ट पर गंभीरता से विचार किया जाए तो आप पाएंगे ताइवान मुद्दे पर चीन के राष्ट्रपति की चुप्पी को लेकर चीन की आर्मी पी एल ए अर्थात पीपल्स लिबरेशन आर्मी राष्ट्रपति के खिलाफ है। दूसरी ओर चीन में आर्थिक संकट तथा आंतरिक आर्थिक अस्थिरता का दोषी भी शी जिनपिंग को माना जा रहा है। साथ ही चीन के नागरिक अब अधिक मुखर हो गए हैं वह शी जिनपिंग के कोविड कालीन प्रबंधन से बेहद नाराज दिखाई दे रहे हैं।
इसके अतिरिक्त चीन का अंतर्राष्ट्रीय रसूख भी इन दिनों तेजी से अपेक्षा कृत कमजोर हुआ है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो विश्वव्यापी इस अफवाह को पूरी तरह से अफवाह नहीं कहा जा सकता? और इसे हूबहू स्वीकारना भी ठीक नहीं है जब तक की कोई आधिकारिक घोषणा ना हो।
  *शी जिनपिंग के कार्यकाल में शाइनो-इंडिया रिलेशनशिप*
    भारत की ओर से चीन के साथ मैत्री संबंध के प्रयास हमेशा ही सकारात्मक रहे हैं परंतु चीन पर डोकलाम घटना के बाद चीन से रिश्ते नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए थे। अंततः चीन को अपनी रणनीति से भारत के समक्ष झुकना पड़ा। पाकिस्तान के साथ चीन के रिश्ते व्यवसायिक रूप से मजबूत रहे हैं परंतु चीन की श्रीलंका और पाकिस्तान सहित अफ्रीकन देशों के साथ आर्थिक धोखेबाजी से पूरा विश्व चीन के विरोध में है। भारत का स्टैंड जियोपोलिटिक्स में मजबूत होता नजर आता है तो उसका कारण है-"चीन के विश्व के महत्वपूर्ण देशों से रिश्तो में खटास..!" विश्व के महत्वपूर्ण राष्ट्रों में भारत भी शामिल है आप सहज अंदाज लगा सकते हैं कि चीन के साथ हमारा संबंध सामान्य से कमजोर ही रहा है।
   यदि यह खबर सत्य है तो ऊपर दिए गए समस्त कारणों के आधार पर ही सत्य होगी परंतु हमें इस बात पर विश्वास करना चाहिए कि भारत के प्रति कीमती विदेश नीति सकारात्मक और भावात्मक नहीं है।

24.9.22

चावल निर्यात पर प्रतिबंध से डब्ल्यूटीओ में हड़कंप

*चावल निर्यात पर प्रतिबंध से विश्व व्यापार संगठन में मची अफरा-तफरी*
   विगत तिमाही में भारत सरकार ने आयात निर्यात को विनियमित करते हुए भारतीय बाजार की स्थिति के मद्देनजर ब्रोकन चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। आप जानते ही हैं कि विश्व बाजार में खाद्य आपूर्ति के मामले में भारत का योगदान पहले पांच नंबरों में आता है। चावल की वैश्विक खपत को देखते हुए आप को आश्चर्य होगा कि भारत से विगत 2021 में चावल का निर्यात 150 देशों में 9.6 बिलियन डॉलर्स  का रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में प्राकृतिक कारणों से घरेलू उत्पादन में चावल का उत्पादन 13% कम रहा है। इससे भारत का आंतरिक बाजार प्रभावित हुआ है। भारत में चावल निर्यात में पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया है बल्कि केवल ब्रोकन चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है और सामान्य चावल पर 20% की एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाई गई है। इतना करने मात्र से विश्व व्यापार संगठन में लगभग 150 देशों के प्रतिनिधियों ने यह कहकर हंगामा खड़ा कर दिया कि भारत के इस कदम से विश्व की खाद्य आपूर्ति व्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है। इस मुद्दे को लीड करने में अमेरिका और सेनेगल सबसे आगे है। अमेरिका का यह भी कहना है कि -" ऐसे प्रतिबंधों से यह अर्थ निकाला जाता है कि भारत अत्यधिक प्रॉफिट कमाना चाहता है।"
   परंतु विश्व में फूड सिक्योरिटी , आपूर्ति और सप्लाई चैन के मामले में भारत का सदा ही पॉजिटिव नजरिया रहा है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि केवल निर्यात को सर्वोपरि रखा जावे निर्यात को सर्वोपरि रखने से हमारी आर्थिक व्यवस्था भी प्रभावित होती है फिर भी आंतरिक समस्याओं को देखते हुए हमें आवश्यक है कि हम कुछ ऐसे निर्णय लें जो भले ही नुकसानदेह हो परंतु जनता के लिए लाभकारी हो। भारत में 125 करोड़ से अधिक आबादी के लिए ब्रोकन राइस की उपलब्धता हमेशा आवश्यक और प्राथमिकता वाली होती है। यदि हम ऐसे अत्यंत उपयोगी खाद्य सामग्री को विश्व में बाटेंगे तो भारत में ब्रोकन राइस की कीमत आसमान को छू लेगी और आम आदमी तक इसकी उपलब्धता में नकारात्मक रूप से प्रभाव पड़ेगा। डब्ल्यूटीओ में इस मुद्दे को उठाकर विश्व के 150 देशों ने भारत को भेजने की कोशिश की परंतु भारतीय प्रतिनिधि ने स्पष्ट रूप से सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए स्पष्ट कर दिया कि-" भारत का संकल्प है की सप्लाई चेन को मेंटेन रखें लेकिन आंतरिक आवश्यकताओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता। जैसा कि आप सब जानते हैं कि इस वर्ष प्राकृतिक कारणों से भी भारत में खाद्यान्न का उत्पादन अपेक्षाकृत कम हुआ है अतः ऐसे कदम उठाना राष्ट्रहित में आवश्यक है और कोई भी सरकार अपने लोगों को भूखा रखकर निर्यात को सर्वोपरि कैसे रख सकती है?
   विश्व व्यापार संगठन की एक और अहम समस्या है कि विश्व व्यापार संगठन तेल उत्पादक देशों द्वारा निर्मित तेल के कृत्रिम अभाव कम उत्पादन पर हमेशा चुप रहा है। और आप देखते हैं कि विश्व बाजार में आए दिन क्रूड ऑयल कि वैश्विक आपूर्ति में मूल्यों में वृद्धि होती रहती है। और क्रूड आयल एक अत्यधिक लाभ कमाने का उत्पादक देशों के लिए महत्वपूर्ण साधन बन गया है। इससे दक्षिण एशियाई देशों ही नहीं बल्कि विश्व के उन तमाम देशों अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ता है जो तेल उत्पादक देशों से तेल का आयात करते हैं । इसके पूर्व भी आपने देखा होगा कि कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत में सब्सिडी को टारगेट करते हुए भारत के विरुद्ध आवेदन विश्व व्यापार संगठन के मुख्यालय में जमा किए। इसके अलावा कई देश विशेष तौर पर यूरोपियन देश भारत के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन में नकारात्मक वातावरण निर्मित करने की कोशिश करते रहे हैं।
   भारत की आयात निर्यात पॉलिसी सदा से ही सकारात्मक रही है। जबकि कोविड-19 के दौरान कच्चे केमिकल की आपूर्ति के संदर्भ में  अमेरिका द्वारा प्रतिबंध की कोशिश की थी। कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए भारत को जिस केमिकल की जरूरत थी उस पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा  दिया था। परंतु अंतरराष्ट्रीय दबाव एवं भारत की क्षमता को देखते हुए अमेरिका के तत्सम में नवनिर्वाचित हुए राष्ट्रपति जो बाइडन को अपनी निर्णय पर पुनर्विचार करना पड़ा। वर्तमान में भारत की स्थिति रशियन तेल आपूर्ति व्यवस्था के कारण सामान्यतः ठीक है। विश्व खाद्य आपूर्ति अर्थात आयात निर्यात को डब्ल्यूटीओ ने सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा तो है परंतु यूरोपियन देश भारत में उत्पादित खाद्यान्नों पर सब्सिडी देने तक पर सवाल उठाते हैं। भारत की फेडरल और राज्य सरकारों द्वारा कृषि उत्पादन को उत्कृष्ट बनाने की जद्दोजहद करते हुए राजकोष से सब्सिडी प्रदान करती है। इस कारण भारत में कृषि उत्पाद की गुणवत्ता तथा मात्रा में वृद्धि देखी जा रही है। और यही विकास यूरोपियन देशों के पेट का दर्द बना हुआ है।
   तेल संकट से जूझ रहा यूरोप इन दिनों भारत के आंतरिक कारणों से चावल पर लगाए गए प्रतिबंध से भयभीत भी नजर आ रहा है।
   डब्ल्यूटीओ को यह बात समझनी चाहिए कि अगर तेल की कीमतों पर नियंत्रण रहा तो विश्व के अविकसित विकासशील देशों की आर्थिक व्यवस्था धीरे धीरे सुदृढ़ होगी परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इस मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन एक पक्षीय दृष्टिकोण अपनाता है। तेल की कीमतों पर सदा चुपचाप रहना  और भारत द्वारा उत्पादित खाद्य सामग्रियों के संदर्भ में अत्यधिक मुखर देशों की बात सुनना डब्ल्यूटीओ की सबसे बड़ी भूल है।
   

22.9.22

दिलदार सरदार दमदार सरदार बीएस पाबला

अद्भुत व्यक्तित्व था बीएस पाबला जी का उनसे मुलाकात की वजह हिंदी ब्लॉगिंग में प्रभावी लेखन एवं ब्लॉगिंग के तकनीकी ज्ञान रही है। पाबला जी से मुलाकात दिल्ली में हुए अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर्स मीट में हुई थी। दिल्ली में मिले देश चिट्ठाकार  ऐसे मिले जैसे आपस में बड़ा घरेलू सा रिश्ता हो। मध्य प्रदेश के सहोदर राज्य छत्तीसगढ़ के रायपुर के सभी ब्लॉगर भाई श्री ललित शर्मा जी सहित ब्लॉगर्स से आवाज सुनने का रिश्ता तो था ही पर प्रत्यक्ष मिलते ही सच में ऐसा लगा जैसे हम सच एक ही मोहल्ले में रहने वाली लोग हैं। जबलपुर मूल के समीर लाल कनाडा से बैठे-बठे बहुत तेरी लोगों को ब्लॉगिंग सिखाते तो पाबला जी ब्लॉगिंग में आने वाली तकनीकी समस्याओं का  दुख दर्द मिटाने में पीछे नहीं रहते। अक्सर हम सब समस्याओं का निदान पावभाजी से ही पाते थे। उनका सहयोगी भाव अद्भुत था। 1 दिन में सुबह-सुबह चकित रह गया जब बाबूलाल जी का कॉल आया। 29 नवंबर 2008 अथवा 2009 की बात है यह मेरे लिए बड़ा महत्वपूर्ण दिन है इस  दिन मेरा जन्मदिन होता है पाबला जी ने शुभकामनाएं दी। उन्होंने बड़ी मेहनत से सारे हिंदी चिट्ठाकारों के जन्म पर्वों का लेखा जोखा बना रखा था और ऑफिस जाने के पहले उन सभी को फोन लगाकर बधाई अवश्य देते। एक बार मेरा ब्लॉग ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा था। पाबला जी ने अपने तकनीकी ज्ञान से ब्लॉग का ढांचा ही सुधार दिया। और मुझे निर्देश दिया कि आप तुरंत पासवर्ड बदल लीजिए। मैंने बड़े उदासीन भाव से कहा -" पाबला जी पासवर्ड आपके पास है न..?"
पाबला जी ने कहा-" मैं शाम को देखूंगा कि आपने पासवर्ड बदला कि नहीं अभी तो मुझे दफ्तर जाना है। पासवर्ड किसी को भी शेयर नहीं करना चाहिए।"
  पुत्र के असमय निधन से वे दुखी जरूर थे परंतु जीवन को भरपूर शिद्दत से जीते रहे अपने आंसू आंखों में कहां छुपा लिया करते थे इस बारे में वे ही जानते हैं या वाहेगुरु ?
 उनके अकेलेपन को मिटाने का काम उनका डॉगी था जिसे भी प्यार से मैक सिंह बुलाते थे।
   दिलदार सरदार दमदार सरदार बीएस पाबला 21 सितंबर 2021 को हम सब को छोड़ कर अनंत यात्रा में पर निकल पड़े। बी एस पाबला जी को विनम्र श्रद्धांजलि शत शत नमन उनकी अनुपस्थिति हमेशा हमें खलती है।

19.9.22

रंगमंच की गिरती साख कौन जिम्मेदार

    फोटो गूगल से आभार सहित
     रंगमंच की गिरती साख कौन जिम्मेदार
                          गिरीश बिल्लोरे मुकुल
     Show must go on रंगमंच को पूरी तरह से परिभाषित करने वाला वाक्य है। रंगमंच का अस्तित्व ही प्रदर्शनों पर निर्भर करता है। यह सब जारी है और रहेगा, परंतु चिंतन इस बात पर होते रहना चाहिए कि-" रंगमंच के स्तर में गिरावट न हो सके..!'
आइए हम इसी मुद्दे पर विमर्श करते हैं। यहां रंगमंच को कुछ ढांचे के रूप में नहीं समझा जाए जो केवल नाटकों के प्रदर्शन के लिए होता है बल्कि रंगमंच संपूर्ण प्रदर्शनकारी कलाओं के लिए महत्वपूर्ण एवं आधारभूत आवश्यकता है। इन दिनों मंच के स्वरूप स्वरूप को तकनीकी तौर पर विस्तार और सुदृढ़ता मिल रहा है। इससे उलट प्रस्तुति कंटेंट के संदर्भ में विचार करें तो  ऐसा लगता है कि-" रंगमंच कमजोर हो गए हैं!"
    महानगरों मध्यम दर्जे के शहरों में कला का प्रदर्शन तादाद अथवा संख्यात्मक दृष्टि से बड़ा है परंतु इसके गुणात्मक पहलू को अगर देखा जाए तो गुणवत्ता में गहरा प्रभाव पड़ा है। सबसे पहले  आपको स्पष्ट करना जरूरी है कि हम यहां रंगमंच पर अभी नाट्य प्रस्तुतियों की चर्चा नहीं कर रहे हैं बल्कि मंच पर प्रस्तुत किए जाने वाली अन्य सभी विधाओं की बात की जावेगी जिनमें नाटक, कवि सम्मेलन, कवयत्री सम्मेलन मुशायरे, संभाषण, हास्य, मिमिक्री, संगीत, आदि सभी विधाओं पर विमर्श करना चाहते हैं।
    विगत 10 वर्षों से जो देखा जा रहा है उसने हमने पाया है कि कवि सम्मेलन पूरी तरह से पॉलीटिकल हास्य व्यंग और  फूहड़ श्रंगार पर केंद्रित है।  जबकि संगीत रचनाओं में केवल फिल्मी और कराओके गायन को संगीत की अप्रतिम साधना माना जा रहा है। मिमिक्री और हास्य की श्रेणी में रखे जाने वाले कार्यक्रमों में अश्लीलता और स्तर हीन चुटकुले बाजी के अलावा अच्छे कंटेंट देखने को नहीं मिल रहे हैं। कवि सम्मेलनों की दशा तो बेहद शर्मनाक हो चुकी है। 15 से 20 मिनट तक एक कवि आपसी छींटाकशी का या तो केंद्र रहता है  छींटाकशी करने का प्रयास करता है। शेष 15 से 20 मिनट तक घटिया चुटकुले वह भी ऐसे चुटकुले जो जो हुई या तो तू ही अच्छी होंगी अथवा पॉलिटिकल अथवा द्विअर्थी संवादों पर केंद्रित होते हैं। इसे कवियों की भाषा में टोटके कहा जाता है। मैं तो यही कहूंगा कि 
*मंच कवि खद्योत सम: जँह-तँह करत प्रकाश*
   देश विदेश में अपने नाम का परचम लहराने वाले मंचीय कवि कुमार विश्वास कितने भी महान कवि हो जाएं परंतु वे ओम प्रकाश आदित्य जैसे कवियों को स्पर्श तक  नहीं कर पाए हैं। यह ऑब्जरवेशन है यहां में मनोज मुंतशिर थे अवश्य प्रभावित हूं। कविता के साथ केवल कविता और काव्यात्मकता होती है। टोटकों को जगह देने के लिए कविताएं करने वाले लोग मेरी दृष्टि में कम से कम कभी तो नहीं है हां मनोरंजन का पैकेज अवश्य हो सकते हैं।
   संगीत के आयोजनों में केवल फिल्मी गीतों का लुभावना गुलदस्ता भेंट करने वाली संस्थाएं मेरी दृष्टि में संगीत की सेवा नहीं बल्कि बॉलीवुड गीतों का गुलदस्ता पेश करती नजर आती हैं। यह कार्य तो आर्केस्ट्रा पार्टी का है । नादिरा बब्बर का  नाटक मेरे ह्रदय पर गहरी छाप छोड़ गया। इस प्रकार के नाटकों का प्रदर्शन अब मंच पर क्यों नहीं होता? अधिकांश नाट्य समूह खास विचारधारा से संबद्ध होते हैं। यहां मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि अधिकतर नाटक नकारात्मक आयातित विचारधारा से प्रेरित होते हैं। वही लोग अपने नैरेटिव स्थापित करने के लिए नाट्य सेवा करते हैं। थिएटर किसी एक विचारधारा की बपौती कदापि नहीं है। भरतमुनि का नाट्यशास्त्र स्वयं प्रजापिता ब्रह्मा के ऑब्जरवेशन में लिखा गया है। लेकिन दुर्भाग्य है कि-" थोड़ा सा भी चर्चित होने के पश्चात कुकुरमुत्ता की तरह नाट्य संस्थाएं मध्यम स्तर के शहरों एवं महानगरों में पनपने लगीं हैं।
   विचार संप्रेषण के लिए यह प्रभावी माध्यम भी अब मंच से धारा सही होता नजर आ रहा है।
    प्रदर्शनकारी कलाओं में दर्शकों जुटाने की तकनीकी का सहारा लिया जा रहा है। अब तो केवल मनोरंजन के लिए थिएटर शेष रह गए हैं।
   नृत्य प्रस्तुतियों को देखिए विगत कई वर्षों से मौलिक नृत्य चाहे वह लोकनृत्य हो  क्लासिकल अथवा  सेमीक्लासिकल आप वर्ष भर का किसी भी शहर कार्यकाल उठा कर देख ले आपको नहीं मिलेगा।
   मेरे शहर के, हास्य कलाकार के के नायकर, कुलकर्णी भाई, माईम आर्टिस्ट के ध्रुव गुप्ता जैसे हास्य कलाकारों के सामने कपिल शर्मा जैसा स्टैंडिंग कॉमेडियन इतना प्रभाव कारी सिद्ध नहीं हो रहा है जितना कि संस्कारधानी के उपरोक्त कलाकार प्रभाव छोड़ते थे ।
  क्या कारण है कि मंच का स्तर गिर रहा है?
    इस बार की पतासाजी करने पर आप स्वयं पाएंगे कि - प्रस्तुति के कंटेंट में नकारात्मक प्रवृत्ति देखी जा रही है। अपने ही शहर के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं जैसे कि अब न तो लुकमान जैसे महान गुरु हैं, न ही शेषाद्री या सुशांत जैसे धैर्यवान शिष्य। न ही भवानी दादा जैसे कवियों गीत कारों की रचनाएं जब कुबेर की ढोलक की ताल के साथ मिलकर लुकमान के स्वरों के रथ पर आरूढ़ होकर श्रोताओं की मन मानस पर सरपट होती थी तो भाव से भरा दर्शक श्रोता वाह वाह ही नहीं करता था बल्कि से विजनवास बहुत से लोगों की आंखों आंसुओं के झरने, झरते हुए हमने देखे हैं यह था असर।
     रात को 2:00 बजे कवि गोष्ठियों से लौटकर घर में डांट खाते थे पर हमें संतोष था कि हमने आज महान रचनाकारों से उच्च स्तरीय कविताएं सुनी हैं। हम अक्सर काव्य गोष्ठियों में अपनी कविताई का प्रशिक्षण लेते थे। हमारी शहर में भानु कवि से लेकर रास बिहारी पांडे तक वक्तव्य के मामले में मूर्धन्य वक्ता स्वर्गीय एडवोकेट राजेंद्र तिवारी जिनका अंग्रेजी हिंदी संस्कृत बुंदेली हर भाषा पर कमांड था को सुनकर हम बड़े हुए हैं पर अब मंच पर संभाषण की कला सिखाने वाले लोग नहीं है अगर है भी तो उन्हें दरकिनार रखा जाता है। मंच को चमकीला बनाने और अखबार में छा जाने की आकांक्षा ने मंच पर घातक प्रहार किया है। यह हमारी सांस्कृतिक निरंतरता को बाधित करने का एक सुगठित प्रयास है।
   सामवेद हमारी कलात्मकता का सर्व मान्य प्रतिमान है। मैं नहीं कह रहा हूं कि आप सब इस पर सहमति प्रदान करें परंतु मंच के वैभव को उठाने में उसे परिष्कृत करने में हमारा बड़ा दायित्व बनता है।
  आप सोच रहे होंगे कि- " नहीं हम दोषी नहीं है कलाकार दोषी हैं।"
  तो मैं कहता हूं कि मंच को ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले कलाकार और दर्शक श्रोता दोनों ही हैं, और उसे अर्थात मंच को नुकसान पहुंचाने वाले भी हम ही तो हैं।
    बुंदेली छत्तीसगढ़ी मराठी गुजराती हिंदी पट्टी की अन्य बोलियों के मंचों पर मौलिक कलाओं का प्रदर्शन नहीं हो रहा है। विरले ही बृंदवन समूह, अथवा थिएटर समूह होंगे जो कि ऐसा कुछ कर रहे हैं, न तो अब तीजनबाई है न ही सुमिरन धुर्वे की कदर करने वाला कोई । मालवा निमाड़ भुवाना महाकौशल बुंदेलखंड छत्तीसगढ़ बघेलखंड भोजपुरी जो सांस्कृतिक परंपराओं से प्रेरित गीत संगीत से भरा पड़ा है। परंतु हम केवल अश्लीलता युक्त कंटेंट को आगे बढ़ा रहे हैं। हरियाणा और भोजपुरी गीतों के साथ अभद्र एवं अश्लील नृत्य करते-करते कलाकार महान सेलिब्रिटी बन गए हैं। आप खुद ही तय कर लीजिए कि मंच का पतन हुआ है या मंच की प्रगति हुई है।
  इस क्रम में  वर्तमान में संस्कारधानी का सौभाग्य है कि यहां एक महिलाओं का बैंड है जिसे जानकी बैंड के नाम से जानते हैं इस बैंड की विशेषता यह है कि इसमें  मौलिक स्वरूप में लोक परंपराओं पर केंद्रित गीत संगीत, सेमी क्लासिकल संगीत की प्रस्तुतियां की जाती है। यह बैंड बेहद अल्प समय में संपूर्ण भारत में स्थान बना चुका है।
   थिएटर में संगीत का प्रयोग होना अन की प्रक्रिया है । संपूर्ण नौ रसों का आस्वादन दर्शकों को कभी एक साथ नहीं मिल पाता मंच की अपनी समस्याएं हैं परंतु टेलीविजन से हटकर हमें चंद्रप्रकाश जैसे महान नाट्यशास्त्र के सुविज्ञ का अनुसरण करना चाहिए। काका हाथरसी शैल चतुर्वेदी जैसे कवियों का स्मरण कर लेने मात्र से आज के हास्य कवियों को अपना स्तर समझ में आ जाएगा। माणिक वर्मा केपी सक्सेना को भुला देना मेरी अल्पज्ञता होगी। सुधि पाठको मैं अपने आर्टिकल्स में आप से संवाद करना चाहता हूं और करता भी हूं। मेरे आर्टिकल का यह आशय कदापि नहीं कि हम किसी पर दबाव पैदा कर रहे हैं, या किसी को हम अपमानित करना चाहते हूँ, मैं तो अपने शहर की मित्र संघ मिलन साहित्य परिषद जैसी संस्थाओं का पुनः आह्वान करता हूं कि वे आगे आएं और आने वाली पीढ़ी को बताएं कि हमने तब क्या किया था जब हम मंच पर टॉर्च या गैस बत्ती जला कर कार्यक्रमों की प्रस्तुति करते थे। अपने 32 साल के सांस्कृतिक जीवन में केवल हमने मंच की ऊंचाइयां देखी है तो अब गिरावट भी देख रहे हैं।
   अंततः स्पष्ट करना चाहूंगा कि-" अगर कलाकार हो तो ईमानदारी से कला का प्रदर्शन करो लेकिन उसके पहले अपनी कला की मौलिकता में तनिक भी मिलावट ना आने दो।
    हमें अपने-अपने शहरों से महान कलाकार प्रोत्साहित करने हैं न कि ऐसी कलाकार जो कॉपी पेस्ट करने के आदि हों।
  *बच्चों को भी यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि- "वे बड़े महान कलाकार हैं।, आजकल के अभिभावक अपने बच्चों को कलाकार से ज्यादा सेलिब्रिटी के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। परंतु मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि सब्जी बेचने वाले घरों घर काम करने वाले परिवारों से आए बच्चों में भी प्रतिभागी बिल्कुल कमी नहीं है। मैं अपने सहयोगियों के प्रति कृतज्ञ रहता हूं जो बच्चों में उनकी प्रतिभा को तलाशते हैं और फिर तराश देते हैं।"*
   

18.9.22

हिंसा, अहिंसा और हमारा जीवन


भारतीय जीवन दर्शन हिंसा का हिमायती नहीं है। वह तो इतना भी हिंसक नहीं है कि किसी के हृदय को ठेस भी लगे ।
     हमारी  सनातनी परंपराएं हिंसा का समर्थन न करती हैं न करेंगी। अहिंसा जीवन दर्शन का मूल तत्व है। शारीरिक मानसिक और वाचिक हिंसा को विश्व का कोई भी शब्द समाज अंगीकार नहीं करता है।
   यहां हम जीवन दर्शन की चर्चा कर रहे हैं।
लेकिन क्या हमेशा केवल आपको ही अहिंसक रहना है?
ऐसी स्थिति में मेरी सलाह है - "नहीं आदर्श स्थिति में आप अहिंसक रहिए असामान्य स्थिति में जीवन को सुरक्षित और रक्षित करने के लिए अहिंसा की सीमाएं पार करनी ही होगी ।"
      क्या तुम हमेशा अहिंसा का लबादा ओढ़े रहोगे ? यदि तुम्हारे समक्ष हिंसा का वातावरण निर्मित हो गया हो तो?
   यह प्रश्न सामान्य रूप से पूछा जाता है। कदापि नहीं ऐसा होना भी नहीं चाहिए ऐसा होता भी नहीं है। जब कभी भी हम हिंसा पर विमर्श करते हैं तो इसका आशय यह कतई नहीं है कि हमें अहिंसक ही बने रहना है। ईश्वर ने आपको किसी कार्य विशेष के लिए पृथ्वी पर भेजा है। कार्य क्या है इसका आपको तनिक भी आभास नहीं होता परंतु कार्य करना आपका दायित्व होता है और ईश्वर आपसे यह कार्य करा लेता है। कृष्ण ने 5 गांव ही तो मांगे थे पूरा साम्राज्य तो दुर्योधन के पास था। दुर्योधन सृष्टि का सबसे अन्यायी  राजकुमार क्यों बन गया? वस्तुतः दुर्योधन के मस्तिष्क में बचपन से ही कुंठा और हिंसा का बीजारोपण हो चुका था। वह बचपन से ही पांडवों से युद्ध कर रहा था । कृष्ण ने बहुत प्रयास किए।
समकालीन परिस्थितियों में यद्यपि आजकल कृष्ण के पूजक बहुत हैं, पर कृष्ण के अनुसरण कर्ताओं की संख्या समाप्त सी हो गई है। कृष्ण का अनुसरण करने का अर्थ है कि आप हम न्याय प्रिय बने। पूरा कृष्ण बनने को कोई कह भी नहीं रहा है। आजकल तो माता पिता भाई बहन और तथाकथित रिश्तेदार अगर न्याय की बात होती है तो सबसे पहले सबल पक्ष के साथ खड़े नजर आते हैं। इनमें कृष्ण कहां है? निर्बल के बल राम तो बहुत दूर की बात हुई..! उसके बाद का हमारे  महायोगी कृष्ण का कैरेक्टर किसी में नजर नहीं आता।
  अब न तो अर्जुन को संबल देने वाला कृष्ण है और न ही दुर्योधन को समझाने वाला कृष्ण बचा है। कितना भी खोजो नहीं मिलेगा। कृष्ण कभी युद्ध नहीं करते कृष्ण का दायित्व समन्वय स्थापित सुनिश्चित करना  है।
      दुर्भाग्य है कि गीता कंठस्थ होने के बावजूद अपने आपको कंफर्ट ज़ोन में रखने की जद्दोजहद में न्याय का पक्षधर नजर नहीं आता यानी अब कृष्ण नजर नहीं आता। 5000 साल ही तो बीते हैं कृष्ण के युग कलयुग की यात्रा तक। मां कहती थी कि लोग अपने कीर्ति की दुंदुभी बजाने के लिए सर्वाधिक सक्रिय होते हैं। दो तीन दशक पहले कहीं गई यह बात आज भी समीचीन है। चलो मूल प्रश्न पर आते हैं हिंसा अहिंसा और जीवन जी हां हिंसा का अतिरेक अहिंसा की रक्षा कवच रोका नहीं जा सकता।
   तुम अपने कृष्ण स्वयं बन जाओ। बार-बार अहिंसक को यथासंभव समझाओ पर ना समझे तो हिंसक हो जाओ। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि रक्त पात करो..! सड़कों पर खून खून की धाराएं बहा दो! ऐसा मत करो परंतु प्रतिकार अवश्य करो स्पष्ट वादी हो कर अपनी बात रखो। अगर यह ना करोगे तो कायर कहलाओगे। कायरता मोक्ष का रास्ता नहीं है।
  मेरे इस आर्टिकल को युद्ध की प्रेरणा मत समझना बल्कि इसे एक कृष्ण की तलाश का प्रयास समझना, आपको कृष्ण मिलेगा बस तलाशने की जरूरत है। इसका अर्थ यह भी है कि-"आप कृष्ण कि केवल पूजा मात्र न करें, बल्कि कृष्ण का अनुसरण करें और न्याय न्यायिक समीक्षा करें पीड़ित पक्ष को मदद करें । मुंह तक रजाई ओढ़ कर सोना कायरता की निशानी है।
   

15.9.22

मातृत्व एवम न्यायपूर्ण_कुलपालन के पथ से स्वर्ग का रास्ता..!


                💐💐💐
तुम्हारे ईश्वर तुम ईश्वर के साथ ही हैं तुम ईश्वर के साथ कब कब हो बताओ...!
वन वन भटकते रहे कुछ योगियों ने अहर्निश प्रभू से साक्षात्कार की उम्मीद की थी । 20 बरस बीतते बीतते वे धीरे धीरे परिपक्व उम्र के हो गए ! 
कुछ तो मृत्यु की बाट जोह रहे थे । पर प्रभू नज़र न आए । नज़र आते कैसे उनके मन में सर्वज्ञ होने का जो भरम था । श्रेष्ठतम होने का कल्ट (लबादा) ओढ़कर घूम रहे थे । कोई योग में निष्णात था तो कोई अदृश्य होने की शक्ति से संपृक्त था । किसी को वेदोपनिषद का भयंकर ज्ञान था तो कोई बैठे बैठे धरा से सौर मंडल की यात्रा पर सहज ही निकल जाता था । 
  परमज्ञानीयों में से एक ज्ञानी अंतिम सांस गिन रहा था । तभी आकाश से एक  यान आया ।और योगियों के जत्थे के पास की आदिम जाति की बस्ती की एक झोपड़ी के सामने उतरा। 
 यान को देख सारे योगी सोचने लगे लगता है कि यान के चालक को भरम हुआ है। इंद्र के इस यान को कोई मूर्ख देवता चला रहा है शायद सब दौड़ चले  यान के पास खड़े होकर बोले - है देव्, योगिराज तो कुटिया में अंतिम सांसे गिन रहे हैं । आप वहीं चलिए । 
देव् ने कहा- हे ऋषियों, मैं दीनू और उसकी अर्धांगिनी को लेने आया हूँ। 
महायोगी के लिए यम ने कोई और व्यवस्था की होगी । 
ऋषियों के चेहरे उतरते देख देव् ने कहा - इस दम्पत्ति में  पत्नि ने ता उम्र मातृत्व धर्म का पालन किया है । स्वयम विष्णु ने इसे देवत्व सम्मान के साथ आहूत किया । 
और दीनू..?
देव्- उसने सदा ही निज धर्म का पालन किया । मिल बांट कर कुटुंब के हर व्यक्ति को समान रूप से धन धान्य ही नहीं प्रेम का वितरण भी किया । 
अतः मैं देवराज इंद्र की यम से हुई चर्चानुसार आया हूँ ।
पूरी दुनिया भर का ज्ञात अज्ञात अध्यात्म एक पल में समझ में आ गया ऋषियों को । 
 ( न स्वर्ग है नर्क है यहां केवल सांकेतिक रूप से उल्लेखित है ।  मातृत्व और कौटुंबिक न्याय का महत्व समझाने के लिए कथा की रचना की गई है )

12.9.22

द्वि पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती ब्रह्मलीन



 राष्ट्रीय संत स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्मसम्राट ज्योतिषपीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती का 99 वर्ष की आयु पूर्ण 100 वें वर्ष में प्रवेश करने के पश्चात् दिनांक 11 सितंबर 2022 को उनका तपस्या स्थली परमहंसी गंगा आश्रम में देवलोकगमन् हो गया। शंकराचार्य जी का जन्म 24 सितम्बर 1924 को सिवनी जिले के ग्राम दिघोरी में हुआ था। सनातन हिन्दू परम्परा के कुलीन ब्राह्मण परिवार में  पिता श्रीधनपति उपाध्याय एवं माता गिरिजा देवी के यहां जन्मे स्वामी जी का नाम माता पिता ने पोथीराम रखा था। पोथी अर्थात् शास्त्र मानो शास्त्रावतार हों। ऐसे संस्कारशील परिवार में महाराजश्री के संस्कारों को जागृत होते देर न लगी और वे 9 वर्ष के कोमलवय में गृह त्याग कर भारत के प्रत्येक प्रसिद्ध तीर्थस्थान और संतों के दर्शन करते हुए आप काशी पहुंचे। वहां आपने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्रीजी महाराज एवं स्वामी महेश्वरानन्द जी जैसे विद्वानों से वेद-वेदान्त, शास्त्र-पुराणेतिहास सहित स्मृति एवं न्याय ग्रन्थों का विधिवत् अनुशीलन किया।
यह वह काल था, जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। महाराजश्री भी इस पक्ष के थे, इसलिए जब सन् 1942 में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का घोष मुखरित हुआ, तो महाराज श्री भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और मात्र 19 वर्ष की अवस्था में ‘क्रान्तिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। पूज्य श्रीचरणों को इसी सिलसिले में वाराणसी  और मध्यप्रदेश के जेलों में क्रमश: 9 और 6 महीने की सजाएं भोगनी पड़ीं। महापुरुषों के संकल्प की शक्ति से 1947 में देश आजाद हुआ। अब पूज्य श्री में तत्वज्ञान की उत्कण्ठा जगी।
भारतीय इतिहास में एकता के प्रतीक सन्त श्रीमदादिशङ्कराचार्य द्वारा स्थापित अद्वैत मत को सर्वश्रेष्ठ जानकर, आज के विखण्डित समाज में पुन: शङ्कराचार्य के विचारों के प्रसार को आवश्यक ज्ञान और तत्त्वचिन्तन के अपने संकल्प की पूर्ति हेतु सन् 1950 में ज्योतिष्पीठ के तत्कालीन शङ्कराचार्य स्वामी श्री ब्रह्मानन्द सरस्वती जी महाराज से विधिवत  दण्ड संन्यास की दीक्षा लेकर स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से प्रसिद्ध हुए। जिस भारत  की स्वतन्तत्रता के लिए आपने संग्राम किया था, उसी भारत को आजादी के बाद भी अखण्ड, शान्त और सुखी न देखकर भारत के नागरिकों को दैहिक एवं भौतिक तापों से मुक्ति दिलाने हेतु, हिन्दु कोड बिल के विरुद्ध स्वामी करपात्रीजी महाराज द्वारा  स्थापित  ‘रामराज्य परिषद्’ के अध्यक्ष पद से सम्पूर्ण भारत में रामराज्य लाने का प्रयत्न किया और हिन्दुओं को उनके राजनैतिक अस्तित्त्व का बोध कराया।
ज्योतिष्पीठ के शङ्कराचार्य स्वामी कृष्णबोधाश्रम जी महाराज के ब्रह्मलीन हो जाने पर सन् 1973 में द्वारकापीठ के तत्कालीन शङ्कराचार्य एवं स्वामी करपात्री जी महाराज सहित देश के तमाम संतों, विद्वानों द्वारा आप ज्योतिष्पीठ पर अभिषिक्त किये गये और ज्योतिष्पीठाधीश्वर शङ्कराचार्य के रूप में हिन्दुधर्म को अमूल्य संरक्षण देने लगे।
आपका संकल्प रहा है कि - विश्व का कल्याण। इसी शुभ भावना का मूर्तरूप देने के लिए आपने झारखण्ड प्रान्त के सिंहभूमि जिले में ‘विश्वकल्याण आश्रम’ की स्थापना की। जहां जंगल में रहने वाले आदिवासियों  को भोजन, औषधि एवं रोजगार देकर उनके जीवन को  उन्नत बनाने का आपने प्रयास किया। करोड़ों रुपयों की लागत से विशाल एवं आधुनिक अस्पताल वहां निर्मित हो चुका है, जिससे क्षेत्र के तमाम गरीब आदिवासी लाभान्वित हो रहे हैं।
पूज्यमहाराजश्री ने समस्त भारत की अध्यात्मिक उन्नति को ध्यान में रखकर आध्यात्मिक-उत्थान-मण्डल नामक संस्था स्थापित की थी। जिसका मुख्यालय भारत के मध्यभाग में स्थित मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में रखा। वहां पूज्य महाराज श्री ने राजराजेश्वरी त्रिपुर-सुन्दरी भगवती का विशाल मन्दिर बनाया है। सम्प्रति सारे देश में आध्यात्मिक उत्थान मण्डल की 1200 से अधिक शाखाएं लोगों में आध्यात्मिक चेतना के जागरण एवं ज्ञान तथा भक्ति के प्रचार के लिये समर्पित हैं। द्वारकाशारदापीठ के जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री अभिनव सच्चिदानन्द तीर्थजी महाराज के ब्रह्मलीन होने पर उनके इच्छापत्र के अनुसार 27 मई 1982 को आप द्वारकापीठ की गद्दी पर अभिषिक्त हुए और इस प्रकार आप आदि शङ्कराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से दो पीठों पर विराजने वाले पहले शङ्कराचार्य के रूप में प्रसिद्ध हुए।
एतदितिरिक्त देशभर में आपके द्वारा अनेक संस्कृत विद्यालय, बाल विद्यालय, नेत्रालय, आयुर्वेद, औषधालय, अनुसंधानशाला, आश्रम, आदिवासीशाला, कॉलेज, संस्कृत एकेडमी, गौशाला और अन्न क्षेत्र जैसी प्रवृत्तियां संपादित हो रही हैं तथा आप स्वयं भी अनवरत भ्रमण करते हुए संस्थाओं का संचालन व धर्मप्रसार करते रहे।  भगवान् आदिशङ्कराचार्य द्वारा स्थापित पीठों में से दो पीठों (द्वारका एवं ज्योतिष्पीठ) को सुशोभित करने वाले जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज करोड़ों सनातन  हिन्दु धर्मवलम्बियों के प्रेरणापुंज और उनकी आस्था के  ज्योति स्तम्भ रहे हैं, लेकिन इससे भी परे वे एक उदार मानवतावादी सन्त भी थे। परमवीतराग, नि:स्पृह और राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत एक परमहंस साधु, जिनके मन में दलितों-शोषितों के प्रति असीम करूणा भी रही है।
         ॐ राम कृष्ण हरि:
स्वर समर्पण  बेटी उन्नति तिवारी
शब्द समर्पण श्री सच्चिदानंद शेकटकर
विनम्र श्रद्धांजलि संभागीय बाल भवन जबलपुर

9.9.22

अमर शहीद : शंकर शाह-रघुनाथ शाह - डाॅ. किशन कछवाहा

   
उर्दू भाषा में लिखे फैसले का हिन्दी में रूपान्तरण कचहरी अदालत फौजदार जबलपुर।

(मुकदमा-ए-बगावत सिलसिले शंकर शाह व रघुनाथ शाह व दीगर मुद्दई आलम मकसद हकीकत हाल 11 जुलाई 1857 पहली तहसीलदार, जबलपुर...........
बगावत व कत्ल करने, विलायतियों को लूटने व खजाना शहर.........
राजा शंकर शाह व रघुनाथ शाह को सजा-ए-मौत तकसीम की जाती है कि जिन्दा तोप से उड़ा दिया जाये।)

‘‘अपनी आराध्य गढ़ा- पुरवा स्थित कमलासनी माला देवी को अनुनय-विनय के साथ लिखा हुआ पत्र, जो ब्रिटिश शासन के स्थानीय कलेक्टर क्लार्क के हाथ लग गया था, मात्र इसी पत्र के आधार पर पिता-पुत्र शंकर शाह-रघुनाथ शाह को विद्रोह करने के अपराध में तोप के मुँह से बाँध कर उड़ा देने का दण्ड सुना दिया गया था। आराध्या श्री मालादेवी की प्रतिमा में माँ लक्ष्मी कमलासन पर विराजमान हैं। नीचे सिंह बैठा हुआ है, जिस पर देवी जी अपना एक पैर रखे हुये हैं। वहीं दूसरी ओर एक अन्य आकृति विद्यमान है।’’

गौंड राजाओं मदन शाह से लेकर शंकर शाह व रघुनाथ शाह की आराध्य श्री मालादेवी रहीं हैं। अपनी आराध्या देवी की वंदना करते हुये उन्होंने अंग्रेजों का दलन करने की प्रार्थना की थी। ब्रिटिश हुक्मरानों को बखरी में की गयी सघन जांच पड़ताल के बाद एक कागज के टुकड़े पर रघुनाथ शाह द्वारा लिखित कविता की कुछ पंक्तियाँ ही हासिल हो पायी थी जिसे आधार बनाकर विद्रोह करने का इतना बड़ा अत्याचारी कदम ब्रिटिश शासन द्वारा उठाया गया।  उक्त कागज में लिखी कविता की पंक्तियाँ इस प्रकार थी-

‘‘मूँद मुख इंडिन को चुगलों को चबाई खाई,
खूँद दौड़ दुष्टन को शत्रु-संघारिता।
संकर की रक्षा कर, दास प्रतिपाल कर,
दीन की सुन आय मात कालिका।
खायई ले मलेच्छन को झेल नहीं करो अब,
भच्छन कर तत्छन धौर मात कालिका।।’’
इस कविता की इन पंक्तियों का अंग्रेज अधिकारी ने अंग्रेजी में भाषान्तरण कराकर रिपोर्ट में संलग्न किया था। 14 सितम्बर 1857 को पुरवा स्थित आवासीय परिसर को घेरकर शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह सहित 13 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।
    गढ़ा-मण्डला के राजवंश ने अपूर्व गरिमा के साथ ईसवी सन् 158 से 1789 तक अर्थात् 1631 वर्ष राज्य किया। इस राजवंश की रानी दुर्गावती भारत ही नहीं संसार की महान तथा प्रमुखतम महिला थीं जिसने अपने समय के राष्ट्र जीवन के यशस्वी कार्यकाल में विकास के साथ ही मुगल आक्रांताओं के आक्रमणों का समुचित जबाव दिया तथा राष्ट्रीय स्वामिमान के लिये सर्वस्व अर्पण करते हुये वीरगति प्राप्त की। 

उसी परम्परा का निर्वाह करते हुये, पराक्रमी दृढ़ निश्चयी इन पिता-पुत्र ने अपने परिवार की परम्परा और गौरव को आँच नहीं आने दी। उन्होंने भारत से अंग्रेजों को निष्कासित करने की हृदय से कामना की थी। भारी भरकम रक्षा व्यवस्था के बीच वयोवृद्ध शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह जिसकी आयु उस 60 और लगभग 40 के आसपास रही होगी, जिसका चेहरा शांत और गम्भीर बना हुआ था, हाथ पैर बाँध दिये गये, तोप के मुँह के पास खड़े थे, तोपें चला दी गयीं।  कहा तो यहाँ तक जाता है कि पहले-दूसरे प्रयास में तोपें चल ही नहीं सकी। अंततः तीसरे प्रयास में तोपें चली। घटना के बाद एक अंग्रेज अधिकारी, जो घटना के समय उपस्थित था, ने बतलाया कि वह भयानक दृश्य था। शरीर को क्षति तो पहुँची थी लेकिन सिर चेहरों पर क्षति के कोई चिन्ह नहीं थे। वह 18 सितम्बर 1857 का कालादिन  था। यह दुष्कृत्य ब्रिटिश शासन के द्वारा घबड़ाहट में किया गया था। 

रानी दुर्गावती का गौंडवाना साम्राज्य चार लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र तक फैला हुआ था। यह साम्राज्य 52 गढ़ों में विमवत था। जबलपुर में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान अफसर रहे कर्नल स्लीमन के अनुसार गौंडवाना साम्राज्य 300 ग 225 = 67,500 वर्गमील में था। प्रजा सुखी थी और राज्य संचालन की सुचारू व्यवस्था थी। उनके द्वारा निर्मित कतिपय शेष बचे तालाब आज भी राज्य की सम्पन्नता के प्रतीक बने हुये हैं। 

24 जून 1564 में जबलपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित बारहा ग्राम, नर्रईनाला के समीप वीरांगना दुर्गावती ने अंग्रेजों से लड़ते हुये अपनी आहुति दे दी थी। 

सम्पूर्ण महाकोशल क्षेत्र में सन् 1855 से ही अंग्रेजों द्वारा किये गये कतिपय भूमि सम्बंधी कानूनों में किये गये परिवर्तनों एवं तत्कालीन शासकीय कर्मचारी एवं अधिकारियों द्वारा किये जा रहे दुव्र्यवहार, अत्याचारों एवं दमनात्मक कार्यवाहियों के परिणाम स्वरूप जनता में भारी असन्तोष व्याप्त हो रहा था, जिसकं कारण अंग्रेजी सरकार और उनके कर्मचारियों के खिलाफ उपद्रव भी हो चुके थे।

भिन्न-भिन्न कारणों से भीतर ही भीतर सुलगती असन्तोष की लहर सन् 1857 के देश व्यापी आन्दोलन का सहयोगी कारण बनी। जबलपुर के आसपास के क्षेत्रों में छोटी-छोटी चपातियों का चमत्कार यत्र-तत्र फैल चुका था।

16 जून को जबलपुर छावनी की एक छोटी सी घटना  भविष्य का संकेत दे चुकी थी। एक साधारण सैनिक ने गारद का निरीक्षण कर रहे एडजूटेंट गिलर नामक सैनिक अधिकारी पर बन्दूक से हमला कर दिया। इस घटना से अंग्रेज अधिकारी सशंकित रहने लगे थे। ब्रिटिश सैनिक अधिकारियों के आदेशों की खुले आम अवहेलना होने लगी थी। इसी घटना के बाद एक(1) जुलाई को सागर में विद्रोह हो गया। दो दिन  बाद जबलपुर की 52वीं बटालियन की तीन कम्पनियों अपनी नाराजगी प्रकट कर दी। निरंतर जनजीवन में भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ रोष बढ़ता ही जा रहा था। एक गुप्त योजना के माध्यम से आसपास के ठाकुरों, जमींदारों, ताल्लुकेदारों और साहसी नवजवानों की टोलियों ने भी हमले की योजना बना रखी है।

विश्व का सबसे छोटा किला, जिसे गौंडवाना साम्राज्य के दौरान रानी दुर्गावती ने निर्माण कराया गया था, प्रेरणा प्राप्त करने युवकों की टोली यहाँ प्रतिदिन आने लगी थी, यहीं कतिपय निर्णय भी लिये जाने लगे थे।  

पिता-पुत्र को तोप से बाँधकर उड़ा देने की घटना के बाद से ब्रिटिश शासन के अधिकारी भी माहौल को देखकर आशंकित रहने लगे थे। यद्यपि अबतक इन वीर साहसी बलिदानियों की सम्पत्ति राजसात की जा चुकी थी,जिसके कारण इस परिवार को बड़ी कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ा था। 52 तालाबों के लिए प्रसिद्ध जबलपुर शहर गौंड राजाओं की प्रजावत्सलता से प्रभावित तो था ही, इस कारण ब्रिटिश शासन के येन-केन प्रकारेण समाप्ति के प्रयासों के लिये होड़ भी लगी हुयी थी।

7.9.22

अदम्य साहस और संघर्ष की प्रतिमूर्ति : वीरांगना नीरजा भनोट

"अदम्य साहस और संघर्ष की प्रतिमूर्ति : वीरांगना नीरजा भनोट" (आज जयंती पर सादर समर्पित)
 वीरांगना नीरजा भनोट प्रथम भारतीय सबसे कम उम्र की महिला थीं जिन्हें मरणोपरांत - भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान अशोक चक्र (शांति काल में - सैनिक एवं असैनिक क्षेत्र) - प्रदान किया गया था। अदम्य साहस और संघर्ष का दूसरा नाम नीरजा भनोट (Neerja Bhanot)है। जयंती पर शत् शत् नमन है। नीरजा भनोट ने 1986 में ‘पैन एम 73’ फ्लाइट में 360 लोगों की जान बचाई थी। नीरजा भनोट (Neerja Bhanot) का जन्म 7 सितंबर 1963 को पत्रकार पिता हरीश भनोट (Harish Bhanot) और माता रमा भनोट (Rama Bhanot) के घर हुआ था। इनके माता पिता नीरजा को प्यार से लाडाे कह‍कर पुकारते थे। नीरजा की शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी लेकिन दहेज के कारण परेशान किये जाने की वजह से नीरजा ने अपने पति का घर छोड का मुम्बई वापस आ गईं। मुंबई आने के बाद उसने पैन एम एयरलाइन्स(Pan Am Airlines) ज्वाइन कर लिया। इस दौरान नीरजा ने एंटी-हाइजैकिंग(Anti-Hijacking) कोर्स भी किया। एयर-होस्टेस(Air-hostess) बनने से पहले उन्होंने  बिनाका टूथपेस्ट, गोदरेज बेस्ट डिटरजेंट, वैपरेक्स और विको टरमरिक क्रीम जैसे उत्पादों के लिए मॉडलिंग की थी नीरजा सबसे युवा और प्रथम महिला थीं, जिन्हें अशोक चक्र मिला (मृत्यु उपरांत) अशोक चक्र भारत का सर्वोच्च वीरता का पदक हैअशोक चक्र (Ashok Chakra) के साथ-साथ नीरजा को अमेरिका द्वारा फ्लाइट सेफ्टी फाउंडेशन हिरोइजम अवॉर्ड (Flight Safety Foundation Award ) और पाकिस्तान द्वारा तमगा-ए-इंसानियत (tamgha-e-insaniyat), इसके अलावा जस्टिस फॉर क्राइम्स अवॉर्ड (Justice For Crimes Award ), यूनाइटेड स्टेट्स अटॉर्नीज ऑफिस फॉर द डिस्ट्रिक्ट ऑव कोलंबिया, स्पेशल करेज अवॉर्ड, यूएस गवर्नमेंट और इंडियन सिविल एवियेशन मिनिस्ट्रीज अवॉर्ड (Indian civil aviation ministry Award) जैसे सम्मानों से भी नवाजा गया5 सितंबर 1986 को नीरजा मुंबई से न्यूयॉर्क (New York) जाने वाले विमान में सवार हुईं। विमान में नीरजा सीनियर पर्सन के तौर पर तैनात थीं ।इस विमान को 4 आतंकियों ने कराची(Karachi) में हाईजैक कर लिया था। जिस समय विमान हाईजैक हुआ था उस समय विमान में 380 लोग सवार थे। विमान में आतंकवादी के होते हुए भी नीरजा ने अदम्य साहस दिखाया और विमान के आपातकालीन दरवाजे को खोलकर विमान में सवार 360 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला। नीरजा जब विमान से बच्चों को बाहर निकाल रहीं थी उसी वक्त एक आतंकवादी ने उन पर बंदूक तान दी, और मुकाबला करते हुए वीरांगना नीरजा का वहीं बलिदान  हुआ। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीरजा का हीरोइन ऑव हाईजैक के तौर पर प्रसिद्ध हैं। वर्ष 2004 में भारत सरकार(Indian government) ने एक डाक टिकट भी जारी किया था।वीरांगना नीरजा भनोट न केवल भारत वरन् विश्व की श्रेष्ठतम वीरांगनाओं में अपना पृथक स्थान रखती हैं।
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डॉ. आनंद सिंह राणा, श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत

5.9.22

मेरे निर्माता मेरे गुरु शत शत नमन

आज शिक्षक दिवस है शिक्षकों का केवल एक दिन है। शिक्षक शिक्षक नहीं मल्टीपरपज कर्मी हो चुके हैं। शिक्षा व्यवस्था  धीरे धीरे परिवर्तित हो रही है यह संतोष की वजह है। माता-पिता के बाद हमारी जिंदगी को सजाने संवारने वाला शिक्षक ही तो है। मैं अपनी प्रत्येक शिक्षक का आभार व्यक्त करता हूं उनके प्रति कृतज्ञ ना होना मेरा दुर्भाग्य होगा। जो भी अब तक हासिल किया है उसका आधार केवल गुरु अच्छा शिक्षक ही तो हैं..!
  आइए कुछ वर्षों पूर्व शायद 10 से 15 वर्ष पूर्व का एक विवरण आपके समक्ष रखता हूं..
     गुरुवर तुम्हें प्रणाम
    बात उन दिनों की है जब सरकारी तौर पर मेरी ड्यूटी स्कूल के निरीक्षण के लिए लगाई गई। मेरे साथ एक  राजस्व निरीक्षक थे। इन दिनों मिड डे मील पर सुप्रीम कोर्ट बहुत सख्त था और सरकार से कार्यक्रम के प्रॉपर क्रियान्वयन के लिए बेहद कड़े निर्देश थे जैसा कि हमें बताया गया। सुदूर गांव में स्कूल बच्चे दोपहर का भोजन स्कूल में ही करते थे। अभी भी वही प्रक्रिया जारी है परंतु शुरुआती दौर में मिड डे मील लागू करने में बहुत सारी कठिनाइयां प्रशासन को भी फेस करनी पड़ती थी।
    जबलपुर से ग्रामीण क्षेत्र पहुंचते-पहुंचते राजस्व निरीक्षक ने मुझे कई मुद्दों से परिचित कराते हुए ब्रेनवाश कर दिया कि- शिक्षक गांव में नहीं जाता जबलपुर में बैठकर आपसी सांठगांठ से काम चलाता है। आप गलत रिपोर्ट बनाइए। स्कूल मास्टर को दंडित करवाना होगा । 
     कुछ हद तक बात तो सही थी लेकिन पूरा सच यही था मुझे यकीन नहीं हुआ। अधिकांश गांव में स्कूल चलते हुए मिले गुरुजन बच्चों को शिक्षा और खानपान की व्यवस्था में मशरूफ मिले। संयोगवश समूचे क्षेत्र के स्कूल थोड़ी बहुत सैनिटेशन संबंधी समस्या के बावजूद सामान्य चल रहे थे।
   दूरस्थ गांव में स्कूल में 2 शिक्षक थे और लगभग 100 के आसपास बच्चे। एक टीचर से जब पूछा कि दूसरे गुरु जी कहां हैं तब उन्होंने बताया कि वह किचन में व्यवस्था कर रहे हैं बहुत लेट हो रहा है इन बच्चों को मिड डे मील।
    मुझे लगा कि रसोईया खुद बहुत ढीली होगी काम धाम ढंग से नहीं करती है इसलिए टीचर जी वही होंगे। और सीधे घर जाते हुए हमारी टीम किचन सेट में पहुंच गई। एक मुझसे अधिक उम्र के व्यक्ति सिर झुका कर चावल चेक कर रहे थे। और फिर रुक कर दाल का हाल-चाल लेने लगे। तभी आर आई ने सरकारी भाषा में डपट लगाई- मास्साब जिले से साहब आए समझ में नहीं आता..?
  इतनी पंक्तियां हमें भी उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त थी लगातार नकारात्मक बात सुनते सुनते मस्तिष्क भी वैसा ही हो चला था। यकायक शिक्षक ने अपना सिर ऊपर किया और कांपते हाथों को जोड़कर मुझे प्रणाम करने लगे ।
   मेरी आंखें डबडबा और अवसाद अपराध बोध से ग्रसित मैंने गुरुदेव के झुककर चरण स्पर्श किए।
    चर्चा में मुझे ज्ञात हुआ कि गुरुदेव के पिता माता का स्वर्गवास हो गया है बच्चों की जिम्मेदारी गुरु मां अर्थात उनकी पत्नी संभालती हैं। वे सप्ताह में एक या 2 दिन या सरकारी अवकाश पर ही शहर जा पाते हैं। सेवानिवृत्ति के लिए तब गुरुदेव के 2 साल और शेष थे। मिड डे मील स्कीम लॉन्च होने पर उस गांव में रसोइए का मामला दांवपेच में उलझा था। कभी छोटे गुरु जी तो कभी बड़े गुरु जी खाना पका कर बच्चों को खिलाते थे। यह बहुत बड़ी समस्या नहीं थी परंतु गांव में उत्कृष्ट समन्वय ना होने के कारण गुरुजनों को ऐसी समस्या फेस करनी पड़ रही थी। जब मैंने उनसे विद्यालय के विगत 3 वर्षों के रिजल्ट के बारे में जानकारी हासिल की जिसे प्राप्त फॉर्मेट के कॉलम में भरना था मुझे आश्चर्य का ठिकाना ना रहा । उस स्कूल का आंतरिक रिजल्ट तो उच्च स्तरीय था, साथ ही साथ बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम अप्रत्याशित रूप से उत्तम थे प्रत्येक बोर्ड परीक्षा में 8 से 10 बच्चे प्रथम श्रेणी शेष द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे।
   मुझे भी अथाह प्रेम से और कर्तव्य निष्ठा के साथ उन्होंने पढ़ाया था। स्कूल के दिनों में जब तक वह यह सुनिश्चित नहीं कर लेते थे कि सारे बच्चों को ज्ञान की प्राप्ति हो गई वह अपने काम को अधूरा समझते थे। पूरी कमिटमेंट के साथ शिक्षा देने वाले ऐसे कर्मठ शिक्षक समाज में भरे पड़े हुए। शिक्षक दिवस पर ऐसे कर्मठ एवं त्यागी गुरुजनों को शत-शत प्रणाम। ऐसे दृश्य हमेशा आपको नजर आएंगे आप शिक्षक को सम्मान दीजिए मैं अगर किसी पद पर हूं तो मां बाप के बाद मेरे निर्माता मेरे गुरु जन ही तो है न ।

3.9.22

चिंतन : अपने मन से झूठे मत बनो स्वामी शुद्धानंदनाथ

चिंतन : अपने मन से झूठे मत बनो
           स्वामी शुद्धानंदनाथ
*पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन स्वामी शुद्धानंद नाथ का जीवन सूत्र 27 सितम्बर 1960 श्रीधाम आश्रम सतना*
अपने मन से झूठे मत बनो। कितना भी बड़ा दुष्कर्म मन से या तन से हुआ हो उसे मंजूर करो , उसे दूसरा रंग मत दो, उसका दोष दूसरों पर ना करो । जो भी होता है वह अपनी ही भूल के कारण होता है। इसलिए अपने मन से और मन में भूल को मत छुपाओ, भूल की छानबीन करो। अपनी मम्मत्व भावना अपने को  निष्पक्ष विचार करने से रोकती है । इसलिए हम तो भाव को त्याग करके विचार करने का प्रयत्न करो।
   जीवन के सरल से सरल पद पर रहना ही अध्यात्म कहा जाता है। जीवन में प्राप्त और अब प्राप्त वस्तुओं की प्रीति और वियोग में ही चित्त का विकास होता है। विकास की प्रक्रिया ही अध्यात्मिक साधना का अंतरंग है। इस प्रक्रिया से सिद्धि हेतु वातावरण का निर्माण अनुकूलता की रचना तथा प्रतिकूलता के साथ युद्ध करने का सामर्थ्य उत्पन्न करना होता है।
   इस सामर्थ्य के के लिए बहुत सी बहिरंग साधनाएं करनी पड़ती हैं । धारणा के योग्य मनस्वी गुरु जन इस प्रकार का आदेश देते हैं। आज से आपके जीवन में एक नया जागरण होने जा रहा है ।
#शुद्धानंद

500 गुरुकुल खुलने के बाद क्या अंग्रेजी स्कूलों की बादशाहट खत्म हो जाएगी?

हर अभिभावक टी वी स्टार बनाना चाहते हैं अपने बच्चों को



  इन दिनों रियलिटी शो का माहौल इस कदर दिमाग पर हावी है कि कला साधक बच्चों का लक्ष्य केवल रियलिटी शो तक सीमित रह गया है। अभिभावक जी रियलिटी शो के लिए अपने बच्चों को चुने जाने के सपने में दिन-रात डूबे रहते हैं।
   नृत्य संगीत तक समाज को सीमित रखने वाली इन ग्लैमरस कार्यक्रमों में संवेदना उनका भरपूर दोहन किया जाता है। दर्शकों के मन में बच्चे की गरीबी अथवा उसकी अन्य कोई विवशता को प्रदर्शित करके टीआरपी में आसानी से ऊंचाई हासिल करने का हुनर उन्हें करोड़ों रुपए के विज्ञापनों से लाभ दिलवाता है।
   मेरा दावा है कि अगर मौलिक कंपोजीशन पर केंद्रित गैर फिल्मी गीतों पर आधारित कोई रियलिटी शो आयोजित किया जाए तो ना तो बच्चे खुद को सक्षम पाएंगे और ना ही अभिभावक ऐसे कार्यक्रमों मैं बच्चों को शामिल करने की कोशिश करेंगे। टेलीविजन चैनल भी ऐसा करने के लिए ना तो मानसिक रूप से तैयार है और ना ही उनमें ऐसे काम करने की कोई विशेष योग्यता है।
  जबलपुर नगर का ही उदाहरण ले लीजिए। नगर से अब तक कई बच्चे ऐसे संगीत शो में शामिल हुए हैं परंतु स्थायित्व कितनों को मिला है यह एक विचारणीय प्रश्न है?
    ऐसे रियलिटी शो के कारण दूरदर्शन तथा अन्य चैनल पर आने वाले क्विज कार्यक्रम भी समाप्त हो चुके हैं। भारत को समझने के लिए भारत की निगाह चाहिए। परंतु रियलिटी शो के मकड़जाल ने बच्चों को इस कदर जकड़ रखा है कि वह 100 200 गीत गाकर अपने आपको महान गायक मानने लगे हैं। कुछ गायक तो यह समझते हैं कि वे अमुक महान गायक के विकल्प हैं। वास्तविकता इससे उलट है। मेरा मानना है की कराओके पर गाना गा लेना श्रेष्ठ गायकी का कोई पैमाना नहीं होना चाहिए। इन दिनों यह इडियट बॉक्स केवल कॉपी पेस्ट कलाकार पैदा कर रहा है और उन्हें प्रचारित कर रहा है। जबकि भारत को लता मंगेशकर मोहम्मद रफी किशोर कुमार कुमार गंधर्व पंडित भीमसेन जोशी जैसे महान कलाकारों की जरूरत है। मुझे अधिकांश बच्चों के अंतिम लक्ष्य की जानकारी प्राप्त होने महसूस हुआ संगीत कला के ऊपरी हिस्से तक भी यह बच्चे नहीं पहुंच पाए हैं। आप जानते हैं कि इन दिनों गीतों की उम्र मुश्किल से एक माह से लेकर अधिकतम 12 माह तक होती है। आजकल गीत देखे जाते हैं ना कि सुने जाते हैं। 50 60 के दशकों में जो गीत रचे जाते थे गाए जाते थे वह आज भी जिंदा है। मुंबई महा नगरी में जहां गीत दिखाने के लिए बनते हैं वहां केवल और केवल संगीत का व्यवसायिक उपयोग किया जा रहा है। हाल ही में कुछ शो इस फॉर्मेट पर बनाए गए कि लोग उस चैनल विशेष का ऐप डाउनलोड करें और अपने मनपसंद कलाकार के लिए वोटिंग करें। इसका सीधा सीधा लाभ केवल चैनल को हासिल होता है। ऐप डाउनलोड होने से टीआरपी में वृद्धि होती है और आमदनी भी होती है।
  मेरे संस्थान की एक बालिका इशिता तिवारी बच्चों के किसी रियलिटी शो के लिए सेलेक्ट ना हो पाई तो उसने आकर मुझसे अपना दुख व्यक्त किया। बच्ची ने यह भी कहा कि मैं योग्य नहीं हूं। इस पर मैंने उसे समझाया बेटा संगीत  महान साधना के बिना हासिल नहीं किया जा सकता। और उसका मूल्यांकन  टीवी चैनल कर भी नहीं सकते। संगीत साधना कठोर तपस्या की तरह ही होती है। पंडित छन्नूलाल मिश्र की गायकी उस बच्ची को सुना कर मैंने बताया कि- यह उन महान गायकों में से हैं जिन्होंने अपनी साधारण आवाज को कर्णप्रिय आवाज के रूप में परिवर्तित कर दिया। ऐसे महान गायक किसी टीवी शो के मोहताज नहीं थे।
   हम अपने संस्थान में कॉपी पेस्ट गीत संगीत को बिल्कुल महत्व नहीं देते। जब इस देश को अच्छे तैयार कलाकारों की जरूरत है तो हम क्यों ना ऐसी कोशिशें करें जो क्षणिक प्रसिद्धि दिलाने वाली व्यवसायिक मनोरंजक प्रणाली से बच्चों को मुक्त करें।
    इन रियलिटी शोज में जिन बच्चों को मौका नहीं मिलता वह अपने आप को अयोग्य मानने लगते हैं , यहां तक कि उनके अभिभावक भी यही सोचते हैं कि मेरे बच्चे में प्रतिभा की कमी है? अभिभावक यह विचार करें की कॉपी पेस्ट करके या नकल उतार के कौन महान कलाकार बन सका है? बस अगर इतना आप सोचेंगे तो तय है कि आप रियलिटी शो के इस मकड़जाल से बाहर होंगे।
  

शं नो वरुण: सुस्वागतम आई एन एस विक्रांत 2.0

[ भारत की 7516 किलोमीटर लंबी समुद्री सीमा पर चौकसी के लिए जरूरी था यह सामरिक महत्व का पोत, स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के स्वप्न को साकार होते हम देख रहे हैं। हम देख रहे हैं कि हम गुलामी के प्रतीकों से स्वयं को हटा रहे हैं। आई एन एस विक्रांत टू पॉइंट जीरो की परिकल्पना भारत की रक्षा पंक्ति का महत्वपूर्ण नया दस्तावेज बन गया है। ऐसा नहीं है कि समुद्री सीमा की रक्षा के लिए नौसेना की कल्पना ब्रिटिश इंडिया के कालखंड में हुई थी सच बल्कि सच्चाई तो यह है कि मोहनजोदड़ो हड़प्पा कालीन अवधि में ही विश्व के साथ व्यवसायिक संबंध स्थापित कर चुके थे और वह भी समुद्री मार्ग से। जिसके बाद सामरिक रक्षा पंक्ति तैयार करने का श्रेय वीर शिवाजी को जाता है। इसके पूर्व चोल राजाओं ने जावा सुमात्रा मलेशिया जैसे स्थानों पर अपने राज्य स्थापित किए। कैसे गए होंगे यह राजा अब के लोग विचार करते रहे परंतु भारतवंशियों की बौद्धिक क्षमता का आकलन करें हम पाते हैं कि हम समुद्री मार्ग के प्रति पहले से ही जागरूक थे। मेरे मतानुसार मुगल और अन्य विदेशी आक्रांता ओं के स्मृति चिन्ह भिन्न भिन्न कर देना चाहिए या उन्हें अपने राज्य चिन्हों की सूची से हटा देना कोई असहिष्णुता नहीं है। मित्रों आज मैं अपने मित्र प्रोफेसर आनंद राणा का आर्टिकल इस ब्लॉग में प्रस्तुत कर बेहद प्रसन्नता महसूस कर रहा हूं। उनकी स्वीकृति के उपरांत मुद्रित इस ब्लॉग को आपकी सहमति और सम्मति अवश्य मिलेगी ]
"स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर : एक और दासता प्रतीक ध्वस्त" - "शं नो वरुण"(जल के देवता हमारे लिए मंगलकारी रहें) भारतीय नौसेना को मिला नया ध्वज। भारतीय नौसेना को आज यशस्वी प्रधानमंत्री श्रीयुत नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नया ध्वज प्राप्त हुआ और औपनिवेशिक रायल नेवी का अंतिम प्रतीक ध्वस्त हो गया । ध्वज का अनावरण कोच्चि में स्वदेशी विमान वाहक - 1(आई.ए.सी.)को 'आई. एन. एस. विक्रांत को नौसेना में सम्मिलित करने दौरान हुआ है। एक सेंट जार्ज के क्रास को दर्शाने वाली लाल पट्टी को अब छत्रपति शिवाजी महाराज की राजकीय मुहर के निशान से बदला गया है। नए ध्वज के ऊपरी कोने पर भारत के राष्ट्रीय तिरंगे झंडे और अशोक के चिन्ह को यथास्थिति रखा गया है। छत्रपति शिवाजी महाराज की राजकीय मुहर को नीले और सोने के अष्टकोण के साथ दर्शाया गया है। यद्यपि परम श्रद्धेय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय 2001 में इसे बदला गया था, परंतु सन् 2004 में पुनः ध्वज मूल स्वरुप में आ गया था। 
यह था औपनिवेशिक रायल नेवी का ध्वज जिसे ध्वस्त किया गया - एक सफेद पृष्ठभूमि पर रेड क्रॉस को सेंट जॉर्ज क्रॉस के रूप में प्रदर्शित किया  जाता है, इसका नाम एक ईसाई योद्धा के नाम पर रखा गया है, जो ईसाईयों के तृतीय धर्मयुद्ध में शामिल एक वीर  योद्धा था।
यह  क्रॉस इंग्लैंड के ध्वज के रूप में भी कार्य करता है जो यूनाइटेड किंगडम का एक घटक है।
इसे इंग्लैंड और लंदन शहर ने वर्ष 1190 में भूमध्य सागर में प्रवेश करने वाले अंग्रेजी जहाज़ों की पहचान करने के लिये अपनाया था।
अधिकांश राष्ट्रमंडल देशों ने अपनी स्वतंत्रता के समय रेड जॉर्ज क्रॉस को बरकरार रखा है, हालाँकि कई देशों ने वर्षों से अपने संबंधित नौसैनिकों पर रेड जॉर्ज क्रॉस को हटा दिया है।
उनमें से प्रमुख हैं ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और कनाडा।आज दिनांक 2सितंबर 2022 को भारत ने भी इस दासता के प्रतीक से मुक्ति प्राप्त कर ली।
 "सत्यमेव जयते" 
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डॉ. आनंद सिंह राणा 
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1.9.22

चिंतन : कबिरा मार मार समझाए

 
  उपासना आराधना चिंतन अध्ययन ज्ञान साधना तपस्या समाधि वैराग्य, अध्यात्मिक दर्शन के बीए खोजे गए शब्द नहीं है। इनका संबंध सनातन व्यवस्था में जीवन दर्शन के साथ भी स्थापित किया है। पर्यूषण पर्व एवं गणेश उत्सव के अवसर पर कुछ बिंदु विचार योग्य हैं।
   शरीर के लिए आवश्यक पुरुषार्थ है इस कारण सभी को कहा जाता है - कर्म करो। कर्म अपनी आंतरिक शुचिता के साथ करो। किसी का दिल मत दुखाओ।  हम किसी को मन वचन और कर्म  कष्ट पहुंचाते हैं, और आध्यात्मिक होने का अभी नहीं करते हैं ईश्वर ऐसी स्थिति में हमें स्वीकार नहीं करता।
   हिंसक व्यक्ति को कभी ईश्वर ने स्वीकारा ही नहीं भले ही वह स्वयं अवतार क्यों ना रहा हो?
  इसकी हजारों कथाएं उपलब्ध हैं हर धर्म के ग्रंथों में।
   मुझे घृणित कार्य इसलिए नहीं करना चाहिए कि ईश्वर मुझे दंडित करेगा यह कांसेप्ट ही गलत है। ईश्वर से डरो मत उसके शरणागत हो जाओ और पवित्र भाव से प्राणी मात्र में ईश्वर के तत्व को पहचानो यही सभी ग्रंथों में लिखा है।
कठोर तप साधना ध्यान तपस्या योगी करते हैं। यह क्रिया आत्मबोध का अनुसंधान Research है , आत्मबोध होते ही हम ईश्वर के तत्व को पहचान सकते हैं।
हर एक पौराणिक कथा कहानी का उद्देश्य होता है। यह केवल हमें अहिंसा अपरिग्रह शुचिता उक्त कार्यों की प्रेरणा के लिए कहीं गई कथाएं हैं। कुछ कथाएं काल्पनिक है कुछ वास्तविक हैं यही कथाएं गृहस्थ जीवन को सुख में बनाती हैं। सुखी जीवन ब्रह्म के आनंद का मार्ग है।
मुझे अच्छी तरह से याद है मैं अपने मित्र के साथ रात में फुहारे पर चटपटा खाने जाया करता था। अक्सर वहां एक भिक्षुक अपेक्षा भरी आंखों से मुझे और मेरे मित्र को देखता था। अक्सर ऐसा होता था कि हम 3 फलाहारी चाट इत्यादि आर्डर करने लगे थे। ना हम उसका नाम जानते ना वह हमारा नाम जानता पर इतना अवश्य है कि उसके अंदर के ब्रह्म का सम्मान करते हुए हम अपने मन में बहुत आनंद का अनुभव करते थे। सुख खरीदा जाता है परंतु आनंद बरसता है आनंद त्याग की कीमत मांगता है आनंद समता का भाव मांगता है आनंद आध्यात्मिक तथ्य है आनंद ईश्वर में समा जाने का विषय है। जो इंद्रियों को जीत लेता है उसे परमानंद की प्राप्ति सहित हो जाती है।
मित्रों मैं उपदेशक नहीं । ना हीं ऐसी कोई योग्यता मुझे प्राप्त हुई है। हम सब ऐसे ही हैं। परंतु त्याग और समता का भाव यह सब सिखा देता है।
एक थे संत कबीर, उनका जन्म ही इसलिए हुआ था कि सत्य का जीवन विश्लेषण कर सकें। खुल के बोलते थे काहे का तुर्क काहे का हिंदू और काहे का मुस्लिम उनके निशाने पर सब के सब थे। कवि जीवंत और जीवित है। कबीर ना किसी की छाप छुड़वाते ना किसी का तिलक। कबीर तो बस ऐसा ताना-बाना बुन जीते थे कि सर से पांव तक मनुष्य पवित्र हो जाए जाए इसके लिए कठोर वचन भी कह देते। अपने दौर का सबसे अकिंचन और तेज़ तर्रार कवि एक अकेला जुलाहा सबसे लड़ता रहा सबको समझाता रहा कबीर ने ना कोई आश्रम खड़ा किया ना कोई दौलत बनाई अक्खड़ बिंदास बेखौफ कबीर तो कबीर ठहरे उन्हें किसी लाग लपेट की जरूरत नहीं। तरीका कुछ भी हो कबीर ने मानवता के श्रेष्ठतम प्रतिमान स्थापित कर दिए। एक थे हमारे मिर्जा गालिब साहब कहते थे 
खुदा के वास्ते काबे से पर्दा न हटा
कहीं ऐसा ना हो वहां भी काफिर सनम निकले . !
   इस तरह इन विचारों और चिंतकों ने समतामूलक समाज की स्थापना में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। परंतु इस देश का दुर्भाग्य जिसमें इस्लाम आतंक के सहारे बढ़ने का प्रयास कर रहा है। जबकि कोई भी संप्रदाय दिलों में प्रेम श्रद्धा विश्वास और एकात्मता के बिना घर नहीं बना पाता। तुर्रा यह कि सर कलम कर देंगे? दुनिया  ऐसी नहीं बनती भारत में तो इन सब का कोई स्थान नहीं है। यह अपराध है इन अपराधियों को रोकना होगा। यह गलती है इसे स्वीकार ना होगा।
    हमारे गुरुदेव ने कहा था-"जीवन की छोटी से छोटी गलती अथवा भूल को  स्वीकार कर लेना चाहिए । क्योंकि व्यवहारिक जीवन में यह सब संभव है यह होना सुनिश्चित है शरीर गलतियां करता है आत्मा का कार्य है गलतियों को पहचानना और फिर पश्चाताप और प्रायश्चित करना।
    परंतु इसके पूर्व क्षमा प्रार्थना सर्वोपरि है। हर गलत कार्य के फल स्वरुप नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। इस नकारात्मक ऊर्जा का सम्मान करना हमारा खुद का दायित्व है। मेरे इस अभिकथन से किसी को ठेस पहुंचती है तो मैं पूरी विनम्रता और शुचिता के साथ क्षमा प्रार्थी।
  *ॐ श्री राम कृष्ण हरि*

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...