1.9.22

चिंतन : कबिरा मार मार समझाए

 
  उपासना आराधना चिंतन अध्ययन ज्ञान साधना तपस्या समाधि वैराग्य, अध्यात्मिक दर्शन के बीए खोजे गए शब्द नहीं है। इनका संबंध सनातन व्यवस्था में जीवन दर्शन के साथ भी स्थापित किया है। पर्यूषण पर्व एवं गणेश उत्सव के अवसर पर कुछ बिंदु विचार योग्य हैं।
   शरीर के लिए आवश्यक पुरुषार्थ है इस कारण सभी को कहा जाता है - कर्म करो। कर्म अपनी आंतरिक शुचिता के साथ करो। किसी का दिल मत दुखाओ।  हम किसी को मन वचन और कर्म  कष्ट पहुंचाते हैं, और आध्यात्मिक होने का अभी नहीं करते हैं ईश्वर ऐसी स्थिति में हमें स्वीकार नहीं करता।
   हिंसक व्यक्ति को कभी ईश्वर ने स्वीकारा ही नहीं भले ही वह स्वयं अवतार क्यों ना रहा हो?
  इसकी हजारों कथाएं उपलब्ध हैं हर धर्म के ग्रंथों में।
   मुझे घृणित कार्य इसलिए नहीं करना चाहिए कि ईश्वर मुझे दंडित करेगा यह कांसेप्ट ही गलत है। ईश्वर से डरो मत उसके शरणागत हो जाओ और पवित्र भाव से प्राणी मात्र में ईश्वर के तत्व को पहचानो यही सभी ग्रंथों में लिखा है।
कठोर तप साधना ध्यान तपस्या योगी करते हैं। यह क्रिया आत्मबोध का अनुसंधान Research है , आत्मबोध होते ही हम ईश्वर के तत्व को पहचान सकते हैं।
हर एक पौराणिक कथा कहानी का उद्देश्य होता है। यह केवल हमें अहिंसा अपरिग्रह शुचिता उक्त कार्यों की प्रेरणा के लिए कहीं गई कथाएं हैं। कुछ कथाएं काल्पनिक है कुछ वास्तविक हैं यही कथाएं गृहस्थ जीवन को सुख में बनाती हैं। सुखी जीवन ब्रह्म के आनंद का मार्ग है।
मुझे अच्छी तरह से याद है मैं अपने मित्र के साथ रात में फुहारे पर चटपटा खाने जाया करता था। अक्सर वहां एक भिक्षुक अपेक्षा भरी आंखों से मुझे और मेरे मित्र को देखता था। अक्सर ऐसा होता था कि हम 3 फलाहारी चाट इत्यादि आर्डर करने लगे थे। ना हम उसका नाम जानते ना वह हमारा नाम जानता पर इतना अवश्य है कि उसके अंदर के ब्रह्म का सम्मान करते हुए हम अपने मन में बहुत आनंद का अनुभव करते थे। सुख खरीदा जाता है परंतु आनंद बरसता है आनंद त्याग की कीमत मांगता है आनंद समता का भाव मांगता है आनंद आध्यात्मिक तथ्य है आनंद ईश्वर में समा जाने का विषय है। जो इंद्रियों को जीत लेता है उसे परमानंद की प्राप्ति सहित हो जाती है।
मित्रों मैं उपदेशक नहीं । ना हीं ऐसी कोई योग्यता मुझे प्राप्त हुई है। हम सब ऐसे ही हैं। परंतु त्याग और समता का भाव यह सब सिखा देता है।
एक थे संत कबीर, उनका जन्म ही इसलिए हुआ था कि सत्य का जीवन विश्लेषण कर सकें। खुल के बोलते थे काहे का तुर्क काहे का हिंदू और काहे का मुस्लिम उनके निशाने पर सब के सब थे। कवि जीवंत और जीवित है। कबीर ना किसी की छाप छुड़वाते ना किसी का तिलक। कबीर तो बस ऐसा ताना-बाना बुन जीते थे कि सर से पांव तक मनुष्य पवित्र हो जाए जाए इसके लिए कठोर वचन भी कह देते। अपने दौर का सबसे अकिंचन और तेज़ तर्रार कवि एक अकेला जुलाहा सबसे लड़ता रहा सबको समझाता रहा कबीर ने ना कोई आश्रम खड़ा किया ना कोई दौलत बनाई अक्खड़ बिंदास बेखौफ कबीर तो कबीर ठहरे उन्हें किसी लाग लपेट की जरूरत नहीं। तरीका कुछ भी हो कबीर ने मानवता के श्रेष्ठतम प्रतिमान स्थापित कर दिए। एक थे हमारे मिर्जा गालिब साहब कहते थे 
खुदा के वास्ते काबे से पर्दा न हटा
कहीं ऐसा ना हो वहां भी काफिर सनम निकले . !
   इस तरह इन विचारों और चिंतकों ने समतामूलक समाज की स्थापना में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। परंतु इस देश का दुर्भाग्य जिसमें इस्लाम आतंक के सहारे बढ़ने का प्रयास कर रहा है। जबकि कोई भी संप्रदाय दिलों में प्रेम श्रद्धा विश्वास और एकात्मता के बिना घर नहीं बना पाता। तुर्रा यह कि सर कलम कर देंगे? दुनिया  ऐसी नहीं बनती भारत में तो इन सब का कोई स्थान नहीं है। यह अपराध है इन अपराधियों को रोकना होगा। यह गलती है इसे स्वीकार ना होगा।
    हमारे गुरुदेव ने कहा था-"जीवन की छोटी से छोटी गलती अथवा भूल को  स्वीकार कर लेना चाहिए । क्योंकि व्यवहारिक जीवन में यह सब संभव है यह होना सुनिश्चित है शरीर गलतियां करता है आत्मा का कार्य है गलतियों को पहचानना और फिर पश्चाताप और प्रायश्चित करना।
    परंतु इसके पूर्व क्षमा प्रार्थना सर्वोपरि है। हर गलत कार्य के फल स्वरुप नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। इस नकारात्मक ऊर्जा का सम्मान करना हमारा खुद का दायित्व है। मेरे इस अभिकथन से किसी को ठेस पहुंचती है तो मैं पूरी विनम्रता और शुचिता के साथ क्षमा प्रार्थी।
  *ॐ श्री राम कृष्ण हरि*

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