19.5.21

आर्यों को विदेशी बताना नस्लभेदी विप्लव की साजिश है...!

 चित्र गूगल से साभार
ब्रिटिश उपनिवेशवाद के कालखंड में जिस तरह से कांसेप्ट भारतीय जन के मस्तिष्क में डालने की कोशिश की गई उससे सामाजिक विखंडन एवं विप्लव की स्थिति स्थिति निर्मित हुई है। आर्य भारत के ही थे इस बात की पुष्टि के हजारों तथ्य हैं किंतु आर्य भारत में आए थे इसके कोई तार्किक उत्तर नहीं है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में आर्य अनार्य अथवा दास जैसे शब्दों की व्याख्या भ्रामक एवं सामाजिक विघटन के लिए प्रविष्ट किया गया नैरेटिव है। इस सिद्धांत की स्थापना  के पीछे ब्रिटिश विद्वानों का उद्देश्य राजनीतिक विप्लव सामाजिक विघटन एवं भाषा तथा नस्ल भेद को बढ़ावा देना है।
     आर्यों की भारत आने का सिद्धांत सही साबित करने वाले को दो करोड़ का पुरस्कार
आज भारत आए थे इस मुद्दे पर एक लंबी बहस चल रही है किंतु अभी तक एनसीईआरटी की किताबों से यह सिद्ध हो जाने के बावजूद की आर्य भारत के ही मूल निवासी थे तथा उनका डीएनए पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण समान रूप से मैच करता है ।
   ब्रिटिश कालखंड  में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि 1500 वर्ष ईसा पूर्व आर्यों का आगमन हुआ और उन्होंने वेदों की रचना की और उन्होंने भारत के मूलनिवासी लोगों को अपमानित किया उन्हें स्लेवरी करने को मजबूर किया इस तरह से एक अशुद्ध सिद्धांत का प्रतिपादन कर फूट डालने का काम ब्रिटिश सरकार की सहमति के अनुसार हुआ है।
आर्यों के आगमन के संबंध में एक प्रश्न आपके समक्ष भी रखता हूं
[  ] अगर आर्य 3500 वर्ष पूर्व अर्थात ईसा के 1500 वर्ष पूर्व भारत आए थे और उन्होंने संस्कृत में वेदों,संहिताओं, उपनिषदों ब्राह्मण आरण्यकों का लेखन किया।  लेखन का काल हम ईशा के 1500 वर्ष पूर्व निर्धारित कर भी लेते हैं तो उस सरस्वती नदी के संबंध में क्या जवाब होगा जो बताए गए 1500 साल पूर्व के भी 2000 साल पहले विलुप्त हो गई। अर्थात यह एक अशुद्ध एवं तथ्यहीन भ्रामक थ्योरी है। जिसकी पुष्टि अब तक नहीं हुई है परंतु इस आधार पर किताब में लिखी जा चुकी है।
[  ] संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी इस तथ्य के समर्थक नहीं थे
[  ] आर्यों के भारत आने के सिद्धांत के पीछे जो अवधारणा है उसमें भाषा का समूह बनाकर उसे प्रस्तुत करना सबसे बड़ा षड्यंत्र है। जिसमें दक्षिण भारत की भाषाएं जो अधिक संस्कृतनिष्ठ को द्रविड़ भाषा समूह में रखा गया है जबकि दक्षिण भारतीय भाषाएं संस्कृत के सबसे नजदीकी भाषा है। और इनका विकास भी बड़े पैमाने पर भाषा विज्ञानियों ने संस्कृत के आधार पर ही किया है। उत्तर भारत की भाषा जिस समूह की प्रतिनिधित्व करती हैं अपेक्षाकृत कम संस्कृतनिष्ठ होने के बावजूद भी संस्कृत के बिल्कुल नजदीक रखी गई है।
[  ] उपलब्ध जानकारी के आधार पर यह कहा गया है कि वेदों का रचनाकाल 14500 से 10500 ईसा पूर्व किया गया था। सब सरस्वती नदी अस्तित्व में रही है
[  ] मैक्स मूलर द्वारा इस थ्योरी विकसित करने का उद्देश्य मात्र भाषा नस्ल के आधार पर विभाजन कर एक व्यवस्थित व्यवस्था को दूषित करना था इसके पीछे उनका संप्रदायिक उद्देश्य भी शामिल है
         

14.5.21

भारतीय साहित्यकारों ने भारतीय प्राचीन इतिहास के साथ न्याय नहीं किया : गिरीश बिल्लोरे मुकुल


पूज्यनीय राहुल सांकृत्यायन जी ने वोल्गा से गंगा तक कृति लिखी है । इस कृति का अध्ययन आपने किया होगा यदि नहीं किया तो अवश्य करने की कोशिश करें। इस कृति के अतिरिक्त एक अन्य कृति है परम पूज्य रामधारी सिंह दिनकर जी की जो संस्कृति के चार अध्याय के नाम से प्रकाशित है और यह दोनों कृतियां आयातित विचारक बेहद पसंद करते हैं और इनको पढ़ने के लिए प्रेरित भी करते हैं। इसी क्रम में मेरे हाथों में यह दोनों कृतियां युवावस्था में ही आ चुकी थी तब यह लाइब्रेरी में पढ़ी थी । इतिहास पर आधारित इन दोनों कृतियों के संबंध में स्पष्ट रूप से यह स्वीकारना होगा कि-"साहित्यकार अगर किसी इतिहास पर कोई फिक्सन या  विवरण कहानी के रूप में लिखना चाहते हैं तो उन्हें कथा समय का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।  कृति  वोल्गा से गंगा तक में 6000 हजार ईसा पूर्व से 3500 ईसा पूर्व  की अवधि में भारतीय वेदों की रचना सामाजिक विकास विस्तार सांस्कृतिक परिवर्तन सब कुछ कॉकटेल के रूप में रखने की कोशिश की है। उद्देश्य एकमात्र है मैक्स मूलर द्वारा भारत के संदर्भ में इतिहास की टाइमलाइन सेटिंग को  ईसा 6000 से 3500 साल पूर्व  सेट करना है
।" साहित्यकार को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखने के पूर्व टाइमलाइन के संदर्भ में सतर्क और सजग रहना चाहिए। पूजनीय राहुल सांकृत्यायन जी से असहमति के साथ कृति पर चिंतन का आग्रह है । ]
        राहुल संस्कृतम् वोल्गा से गंगा तक मैं अपनी पहली कहानी निशा शीर्षक से लिखते हैं। और वे अपनी इस कहानी के माध्यम से करना चाहते हैं की ईशा के 6000 साल पहले मानव छोटे-छोटे कबीले में रहता था। वोल्गा नदी के ऊपरी तट पर निशा नामक महिला के प्रभुत्व वाला परिवार रहता था जिसमें 16 सदस्य थे वह एक गुफा में रहते थे। महिला प्रधान कबीले में प्रजनन की प्रक्रिया को डिस्क्राइब भी करते हैं। वोल्गा से गंगा तक की संपूर्ण कहानियां 6000 ईसा पूर्व से शुरू होती है दूसरी कथा दिवा नाम से लिखते हुए उसका कालखंड ईसा के 3500 साल पहले   निर्धारण करते हुए फुटनोट में व्यक्त करते हैं -" आज से सवा दो सौ पीढ़ी पहले आर्य जन की कहानी होने का दावा करते हैं तथा यह कहते हैं कि उस वक्त भारत ईरान और रूस की श्वेत जातियां एक ही जाती थी जिसे हिंदी स्लाव या शत वंश कहा गया है। यह कहानी प्रथम कहानी निशा से एकदम ढाई हजार वर्ष के बाद की कहानी है। और इसे वे आर्य कहते हैं । इस कहानी का शीर्षक दिवा है। जो रोचना परिवार की वंशिका के रूप में समझ में आती है। इस कहानी में दिवा को जन नायिका के रूप में दर्शाया गया है। तथा आर्य जन का विकास प्रमाणित करने की चेष्टा की है। और वे अर्थात राहुल सांकृत्यायन इस कहानी में यह कहते हैं कि अग्नि पूजा आर्य जन अब समिति के माध्यम से प्रबंधन करना सीख गए थे। निशा जन और और उषा जन नामक दो व्यवस्थाओं के संबंध में चर्चा की गई है। दोनों व्यवस्थाएं अपने-अपने शिकार के लिए निर्धारित क्षेत्र के रक्षण व्यवस्थापन और प्रबंधन के जिम्मेदार होते। उषा जन से निशा जन की शक्ति दुगनी थी ऐसा इस कथा में वर्णित किया गया है। कहानी में एक और समूह का जिक्र होता है जिसे कुरु जन के रूप में संबोधित किया गया है। कुल मिलाकर राहुल सांकृत्यायन साहब अपनी कृति वोल्गा से गंगा में पर्शिया रूस और भारत को एक विशाल भूखंड के रूप में प्रदर्शित करते हैं तथा इसमें जनतंत्र की व्यवस्था को वर्णित करते हैं। अपनी एक करनी कहानी अमृताशव में  सेंट्रल एशिया पामीर (उत्तर कुरु), कथा जाति हिंदी एवं ईरानी के रूप में प्रस्तुत करते हुए इसे ईसा के 3000 साल पूर्व का कथानक मानते हैं और यही वे यह घोषित करते हैं कि आर्यजन इसी अवधि में भारत में आए थे। इस कालखंड को भी कृषि एवं तांबे के प्रयोग का युग कहते हैं। ईसा के 2000 वर्ष पूर्व के कथानक पुरुधान नामक कथानक में स्वाद के ऊपरी हिस्से की कहानी लिखते लिखते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं थी भारतीय मूल के लोग आर्यों से युद्ध करते हैं और यही देवासुर संग्राम है। अगर इस कृतिका फुटनोट देखा जाए तो राहुल संस्कृतम् जी कहते हैं कि आज से 108 पीढ़ी आर्य (देव) असुर संघर्ष हुआ था उसी की यह कहानी है आर्यों के पहाड़ी समाज में दासता स्वीकृत नहीं हुई थी। तांबे पीतल के हथियारों और व्यापार का जोर बढ़ चला था।
    अपनी अगली कहानी अंगिरा का कालखंड अट्ठारह सौ ईसा पूर्व हिंदी आज मैं गांधार अर्थात तक्षशिला क्षेत्र का विवरण कथानक में प्रस्तुत किया जाता है। सातवीं कहानी सुदास में वे 15 100 ईसा पूर्व गुरु पंचाल वैदिक आर्य जाति का उल्लेख करते हैं। और इसी कालखंड को वेद रचना का कालखंड निरूपित करते हैं। प्रवासन नामक कथा में पंचाल प्रदेश के 700 ईसा पूर्व का विवरण अंकित करते हुए उपनिषदों की रचना का कालखंड निरूपित करते हैं।
   इस तरह से बड़ी चतुराई के साथ लेखक ने रामायण एवं महाभारत काल वेदों के सही काल निर्धारण वेदों के वर्गीकरण के काल निर्धारण तथा आर्यों के भारत आगमन को प्रमुखता से उल्लेखित करने की कोशिश की है।
     ऐसी कहानियां जो इस उद्देश्य के लिए लिखी गई हो जिससे एक ऐसे नैरेटिव का विकास हो जो सत्यता से परे है इसे सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता अतः इसे प्रमाणित करके ही समाप्त किया जा सकता है। यहां राहुल सांकृत्यायन जी की भी अपनी मजबूरियां है। वे यह कहना चाह रहे थे कि जो मैक्स मूलर ने सीमा निर्धारण कर लिया है उससे हुए आगे नहीं जाएंगे। तथा आर्यों को भारत में प्रवेश दिला कर ही भारत का प्राचीन इतिहास पूर्ण होता है ऐसा उनका मानना है। परंतु इससे भारतीय ऐतिहासिक बिंदु एवं सामाजिक सांस्कृतिक विकास पर जो नकारात्मक प्रभाव पड़ा है वह चिंतन की दिशा को मोड़ कर रख देता है। केंद्रीय कारागार हजारीबाग 23 जून 1942 में प्रथम संस्करण प्राक्कथन में राहुल जी का कथन स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि वे मैक्स मूलर के पद चिन्हों पर चल रहे हैं। साथ ही राहुल जी बंधुल मल्ल अर्थात बुध के काल पर सिंह सेनापति उपन्यास का उल्लेख करते हैं।
  मैं यह नहीं कहता कि आप संस्कृति के चार अध्याय और वोल्गा से गंगा तक के कथानक उनसे या विवरणों से परिचित ना हो। अध्ययन तो करना चाहिए परंतु अध्ययन कैसा करना चाहिए इसे समझने की जरूरत है। यह दोनों कृतियां मुझे शुरू से खटकती हैं। कृतियों की विषय वस्तु पर असहमति का आधार है काल खंड का निर्धारण । और फिर मैक्स मूलर सहित पश्चिमी विद्वानों से तत्कालीन साहित्यकारों की अंधाधुंध सहमति। वास्तव में देखा जाए तो इतिहास की विषय वस्तु को साहित्यकार को केवल तब स्पर्श करना चाहिए जबकि उसके कालखंड का उसे सटीक अथवा समयावधि का कुछ आगे पीछे का ज्ञान हो। अन्यथा कथा के रूप में कुछ भी लिखा जा सकता है उस पर किसी की भी कोई आपत्ति नहीं होती और ना भविष्य में होगी। यहां यह कहना बेहद जरूरी है कि -" ऐसी कृतियों से किसी भी राष्ट्र की ऐतिहासिक टाइमलाइन को पूरी तरह से नष्ट भ्रष्ट किया जा सकता है और यह हुआ भी है।"
भारत के प्राचीन इतिहास में भारतीय जन का निर्माण, सिंधु घाटी की सभ्यता तथा अन्य नदी घाटियों पर विकसित सामाजिक व्यवस्थाओं का विश्लेषण, आर्यों के द्वारा किए गए कार्य, भाषाएं जैसी प्राकृत ब्राह्मी संस्कृत का का निर्माण विकास सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास श्रुति परंपरा के अनुसार महान चरित्रों के अस्तित्व आदि पर विचार करना आवश्यक होता है।

गिरीश बिल्लोरे मुकुल

  

12.5.21

हमास का इजरायल पर हमला क्या एक बड़ा बदलाव ला सकता है ?


.    
      हमास एक आतंकवादी संगठन है परंतु   इससे सुन्नी मुस्लिमों का सशस्त्र संगठन माना गया है। खाड़ी क्षेत्र में गाजा पट्टी में इसका बहुत अधिक प्रभाव है हमास का अरबी भाषा में अर्थ होता है हरकत अल मुकाबल इस्लामिया अर्थात इस्लामी प्रतिरोधक आंदोलन। हमास  का गठन सन 1987 में हुआ है और यह फिलिस्तीनी इस्लामिक राष्ट्रवाद से संबंधित है। विगत 10 मई 2021 को हम आज की रॉकेट लॉन्चरों से कुछ रॉकेट इजराइल में फेंके गए। तो आइए जानते हैं हम  क्या है हमास
  मुस्लिम उम्मा इस्लामिक ब्रदर हुड को बढ़ावा देने वाला एवं इस्लाम की रक्षा पंक्ति के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने वाला ऐसा संगठन है जिस की आधारशिला सन 1987 में रखी गई और यह संगठन एक 35 एकड़ की जमीन के लिए संघर्षरत है।  
      हमास को कनाडा यूरोपीय यूनियन इजराइल जापान और संयुक्त अमेरिका पूर्ण रूप से आतंकवादी संगठन मानते हैं जबकि ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड पैराग्वे यूनाइटेड किंगडम इसके सैन्य विंग को आतंकवादी संगठन करार देते हैं। इससे उलट ब्राजील चीन मिस्र ईरान  कतर रूस सीरिया और तुर्की इस संगठन को आतंकवादी संगठन नहीं मानते। वर्ष दिसंबर 2018 में मास्को आतंकवादी संगठन घोषित करने के प्रस्ताव को यूएनओ  द्वारा झटका लगा है।
इजराइल के दक्षिण पश्चिमी भाग में 6 से 10 किलोमीटर चौड़ी एवं 45 किलोमीटर लंबी क्षेत्र को गाजा पट्टी कहते हैं इस गाजा पट्टी पर इजराइल ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया यह एक बड़ी लड़ाई के बाद निर्मित स्थिति है। जिसका प्रबंधन इसराइल ने सन 2005 में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को सौंप दिया था। किंतु 2007 में हुए चुनाव में हमास संगठन द्वारा इस पर अपना हक साबित कर दिया। क्योंकि हमास की एक्टिविटी हमलावर प्रकृति की होने के कारण उसे एक आतंकवादी संगठन के रूप में देखा जाता है। 2008 से यहां संघर्षविराम लागू हुआ था हमास के द्वारा इससे पहले जो रॉकेट हमले किए गए उसके परिणाम स्वरूप लगभग 1300 लोगों के मारे जाने की सूचना है।  अब्राह्मिक धर्म के संस्थापक फादर इब्राहिम के संदेशों को 3 सेक्टर में बांटा गया है एक क्रिश्चियनिटी दूसरा यहूदी और तीसरा इस्लाम यह तीनों संप्रदाय आपस आज तक सामंजस्य स्थापित नहीं कर सकते हैं। इजराइल एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी राजधानी यरूशलम है। इसकी भाषा हिब्रू और अरबी है इस देश में 46% यहूदी निवास करते हैं जबकि 19% अरबी और 5% अन्य अल्पसंख्यक समूह निवास करते हैं। बेंजामिन नेतनयाहू वर्तमान में यहां के प्रमुख है जबकि यहां राष्ट्रपति का पद भी है इजराइल का निर्माण विश्व भर में बस रहे यहूदी लोगों को बुलाकर 14 मई 1948 में किया गया वर्तमान में इस देश की जनसंख्या लगभग एक करोड़ है यहां मुद्रा शकील के नाम से जानी जाती है। यहूदी संप्रदाय को मानने वाले लोग इजराइल में पूरे विश्व से बुलवा कर बस आई गए हैं। इजराइल शब्द का अर्थ बाइबिल में प्राप्त होता है बाइबल के अनुसार फरिश्ते के साथ ही युद्ध लड़ने वाले जैकब को इसराइल कहा गया है और उसी के नाम पर इस राष्ट्र का नाम इजराइल पड़ा है। इजराइल एक बहुत छोटा सा राष्ट्र है लेकिन इसकी सामरिक शक्ति और इसकी रक्षात्मक क्षमता को कोई भी राष्ट्र नात नहीं पाया है।
यहूदियों तथा यहूदी राष्ट्र इजराइल को आज भी कई देश जैसे पाकिस्तान आदि ने मान्यता प्रदान नहीं की है। जबकि अरब देशों की बॉडी लैंग्वेज में कुछ परिवर्तन जरूर आया है। भारत के इजराइल से पहले भी सकारात्मक और बेहतर संबंधित है जो वर्तमान में भी जारी हैं लेकिन यासर अराफात के दौर में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन यानी पीएलओ के साथ भारत के आत्मीय संबंध होने की पुष्टि स्वर्गीय यासिर अराफात और स्वर्गीय इंदिरा जी के बीच सकारात्मक विचार विमर्श से होती रही है।
  भारतीय विदेश नीति की शुरू से विशेषता यह है कि भारत धर्म आधारित किसी भी अवधारणा को लेकर मित्रता या दुश्मनी का व्यवहार नहीं रखता बल्कि भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों का आधार वैश्विक मानवतावादी दृष्टिकोण ही रहा है। भारत न केवल गुटनिरपेक्ष अवधारणा का प्रमुख केंद्र रहा है बल्कि भारत पंथनिरपेक्ष एवं धर्मनिरपेक्षता का प्रमुख केंद्र था है और रहेगा बावजूद इसके कि यह समझा जाता हो या समझाया जाता हो कि भारत एक ऐसी पार्टी के शासन में है जो राष्ट्रवादी है। भारत में राष्ट्रवाद की परिभाषा वह नहीं है जो कि अन्य देशों या शेष विश्व में परिलक्षित होती है।
इस वर्ष रमजान के मौके पर 7 मई शुक्रवार को अल अक्सा मस्जिद पर फिलिस्तीनीयों और पुलिस के बीच में झड़प हुई और धीरे-धीरे इस झड़प में एक बड़ा रूप ले लिया। दूसरी ओर एक मीडिया रिपोर्ट कहती है कि एक आतंकवादी अबू अल हता की मृत्यु हुई इसका एक कारण है ।
दिनांक 10 मई 2021 को हुए हमले के बाद इसराइल ने उग्र रूप धारण कर लिया है। इजराइल प्रशासन पर यह आरोप भी है कि इजरायल वेस्ट बैंक वाले उस क्षेत्र में जहां पर फिलिस्तीनी रहते हैं विशेष रूप से नकारात्मक दृष्टिकोण रखता है। बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इजराइल जूविनाइल्स को भी बिना किसी कारण बताएं बंधक बना लेता और उन्हें टॉर्चर किया जाता है। इसके उलट इजराइल का प्रशासन यह कहता है कि आईएसआईएस आतंकी गतिविधियों में बच्चों एवं किशोरों का इस्तेमाल करने की वजह से ऐसे कदम उठाए जाते हैं। वैसे इस्लामिक उग्रवाद द्वारा ऐसा ही  हथकंडा आपने कश्मीर में भी देखा होगा । 
     कहने को तो यरूशलम एक पवित्र धरती है और इस पवित्र धरती पर फादर अब्राहिम इसराइल और मोहम्मद साहब के स्वर्गारोहण की मान्यता है  अर्थात अब्राहिमिक- धर्म के तीनों संप्रदाय यहूदी क्रिश्चियनिटी इस्लाम  के लिए यह शहर आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। वर्तमान में जेरूसलम के प्रशासन के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो इस शहर को सुरक्षित रख सके परंतु इजराइल का इस पर कब्ज़ा बढ़ता जा रहा है ।यही सबसे बड़ी विवाद की परिस्थिति है। 
     फिलिस्तीन तथा इजरायल के बीच किसी बड़े युद्ध की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इस संबंध में भारत का अगला कदम क्या होगा यह देखने वाली बात होगी। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी मैं भारत की भूमिका को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिस्थितियां इस युद्ध को टालने का मन बना चुकी है। हमास संगठन के लोगों द्वारा यह आक्रमण किया है जिस के प्रत्युत्तर में हमास के कई महत्वपूर्ण ठिकानों पर इजराइल ने घातक प्रभाव शाली हमले किए हैं और उससे अंततः नुकसान फिलिस्तीन का ही हुआ है।
   अल अक्सा मस्जिद से शुरू हुए इस विवाद के संबंध में अरब देशों से अब तक कोई वर्जन नहीं आना भी उल्लेखनीय स्थिति है। जानकारों का और मेरा स्वयं यह विचार है कि संभवत ओआईसी इस पर विशेष ध्यान नहीं देंगे। यद्यपि इसके उलट भी कार्य हो सकता है परंतु यह सब अरब देशों की नीति पर निर्भर करेगा। फिलिस्तीनी राष्ट्रवादीयों के विरुद्ध इस वक्त यहूदियों की ताकत अर्थात इजराइल की ताकत और यूरोप का समर्थन आगे देखने को मिल सकता है। फल स्वरुप परिस्थिति में आमूलचूल परिवर्तन संभव है।  लगभग 2000 साल पहले यहूदियों के साथ यूरोप एवं 1400 बरस पूर्व इस्लाम की उत्पत्ति के उपरांत पहले परिस्थितियों को देखकर वर्तमान में स्थिति पहली बार कुछ इस तरह निर्मित हुई है कि यूरोप और इजराइल एक साथ है अर्थात यहूदी और क्रिश्चियनिटी के मध्य जुड़ाव की स्थिति देखी गई है। ऐसी स्थिति में गाजा पट्टी पर संपूर्ण प्रभाव एवं व्यवस्थापन की जिम्मेदारी इजराइल को मिल सकती है। साथ ही यरुशलम का प्रबंधन भी इसराइल के हाथों में मिलने की पूरी पूरी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता । परंतु अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बनते बिगड़ते देर नहीं होती इस सिद्धांत को देखा जाए तो अनिश्चितता फिर भी शेष रहेगी।
                     टर्की का सुर ओ आई सी को उकसाने के  बोल, बोल  रहा है.                            

2.5.21

बृहदत्त वध

बृहदत्त-वध 
   ईसा के 185 वर्ष पूर्व मगध में
बृहदत्त के शासनकाल में पुष्यमित्र को प्रियदर्शी अशोक के सिद्धांतों पर का गलत तरीके से बनाए गए नियमों एवं उनके क्रियान्वयन पर आपत्ति थी । सेना के लिए पर्याप्त धन कोषागार से ना मिलना उन्हें बहुत अखर जाता था, पुष्यमित्र का विधायक तब भी दिन हो जाता था  जब अनावश्यक रूप से सेना के व्यय से कटौती करके स्वर्ण मुद्राएं मठों को दी जाती थीं। अन्य मंत्रियों को भी अपने-अपने विभाग के कार्य संचालन के लिए यही समस्या बहुधा खड़ी हो जाती थी। परंतु बृहदत्त के समक्ष विरोध करने का किसी में साहस नहीं था। साहस तो मात्र एक व्यक्ति में था , वह था पुष्यमित्र ।
   ब्राम्हण वेद के साथ विधान के साथ सामान्यतः खड़ग नहीं उठाते खडग उठाएं लेकिन जब राष्ट्र के अस्तित्व का प्रश्न उठता है राष्ट्र के अस्तित्व को बचाने के लिए विप्रो को तलवार उठानी पड़ती है । राज निष्ठा और राष्ट्र निष्ठा दो अलग-अलग पहलू है।
   चाणक्य को यह नहीं मालूम था कि भविष्य का कोई ब्रहदत्त किसी विप्र के गुस्से का शिकार होगा ! राष्ट्र के धर्म को बचाने के लिए एक और ब्राम्हण को खडग उठाना होता है । 
     इसका प्रमाण जानने के लिए  आप सांची के स्तूपों पर ध्यान दीजिए ये स्तूप अभी के नहीं है यह बौद्ध स्तूप शुंग वंश के दौर मैं ही संरक्षित किए गए  हैं। मध्यप्रदेश में रहने वाले तथा इस लेख को पढ़ने वाले समझ गए होंगे कि पुष्यमित्र शुंग के बारे में जितना नकारात्मक कहा गया है वह एक तरफा नैरेटिव है। पुष्यमित्र शुंग बृहदत के खिलाफ था ना कि महात्मा बुद्ध की परंपरा के। कुछ ग्रंथों एवं इतिहास में जो भी लिखा हो उससे तनिक दूर हट के इस सवाल का उत्तर दीजिए क्या बौद्ध मठों में यूनान के जासूसों को शरण देना ठीक था..? 
    
पटना को जानते हैं वही जिसे बिहार की राजधानी और प्राचीन काल में पाटलिपुत्र कहते थे ।  मौर्य वंश के महान प्रतापी राजा चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर बृहदत्त तक बहुत बड़ी कहानियां लिखी गईं ।  मौर्य वंश के प्रतापी राजाओं की सम्राट अशोक भी थे और बहुत सारे राजा जिन्होंने मगध पर शासन किया और उस वक्त मगध पर शासन अर्थात अखंड भारत का सम्राट हो जाना ही तो था। 16 महाजनपदों में सबसे बलवान समृद्ध और शक्तिमान मगध ही तो था। परंतु यह क्या अचानक नदियों के किनारे से आदित्य स्त्रोत की आवाजें आनी बंद हो गईं। मंदिरों से वेद मंत्रोच्चार ना सुनकर सेनापति पुष्यमित्र के मन में हलचल पैदा हो गई। फिर पुष्यमित्र भूल गए कुछ समय के लिए। तभी एक गुप्तचर ने आकर सूचना दी सेनापति जी आपने पूछा था ना कि आदित्य स्त्रोत भूल रहा हूं नदी के तटों से आवाज नहीं आ रही शिव महिम्न स्त्रोत भी नहीं सुनाई देती है अब इसकी वजह जानना चाहेंगे ?
पुष्यमित्र चकित होकर गुप्तचर को देखते रहे।
  और फिर बोल पड़े हां बताओ क्या वजह है ?
सेनापति जी मठों में यूनान से आए लोग जो आम जनता नहीं है बल्कि गुप्तचर है निवास कर रहे हैं
दीर्घ सांस छोड़ते हुए पुष्यमित्र ने कहा- ठीक तो है महात्मा बुद्ध के संदेश यवनों को कुछ आचरण सिखा देंगे सीखने दो रहने दो. और मठों में उनके निवास करने से शिव महिम्न स्त्रोत और आदित्य स्त्रोत का क्या लेना देना बच्चों जैसी बात कर रहे हैं गुप्तचर आप तो ?
गुप्तचर- नहीं सेनापति जी, आप विषय की गंभीरता से दूर है मैं यह नहीं कह रहा हूं की यूनानी यात्री कहां रुकें कहां ना रुकें ..? परंतु जो स्थिति है वह राष्ट्र की अस्मिता पर हमला होने जा रहा है। यूनानी लोग महाराज बृहदत्त के विरुद्ध वातावरण निर्माण कर रहे हैं।
आप विश्वास करें या ना करें हो सकता है कि मैंने गलत देखा हूं परंतु अगर एक बार आप इसका परीक्षण करा लेते तो बेहतर होता।
    पुष्यमित्र बहुत देर तक अपने महल में बेचैन से घूमते रहे और विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि ये मठ सिहासन के पायदान कमजोर करने की तैयारी में लिप्त हो गए हैं। अचानक पुष्यमित्र कुछ विश्वसनीय लोगों को बुलाते हैं और कई मठों में उन्हें भिक्षुक बना कर भेजते हैं। एक टीम के साथ वे खुद भी जाते हैं। इस बात का खास ध्यान रखा गया कि जिन मठों में यूनानी लोग रुके हैं उनसे ज्यादा से ज्यादा संपर्क में रह जाए। बहुत जल्दी ही कहानी स्पष्ट हो गई और पता चला कि निकट भविष्य में कोई बड़ी सेना यूनान से भारत आएगी और अखंड भारत का यह महत्वपूर्ण महाजनपद उनके दासता में होगा...!
     पुष्यमित्र से रहा न गया वे तुरंत ही बृहदत्त से मिलना चाहते थे। परंतु वे जानते थे कि महाराज समय भोग विलासी शाम के बाहु पास में बंद होंगे। अगले दिन प्रातः काल की संपूर्ण जानकारी के साथ दरबार में पहुंचे तो पता चला कि महाराज आज भी दरबार में नहीं आए और ना ही आएंगे।
   सैनिकों के वेतन पर कटौती एवं सैन्य में कमी का वस्त्र पत्र देखकर सिर से पांव तक क्रोध की अग्नि के संचार का एहसास करते हुए पुष्यमित्र अब रुकने वाले कहां थे। हाथों में खड़ग लिखकर दरबार से सीधे राजमहल की ओर चल पड़े जहां से उन्हें वापस लौटना पड़ा। तीसरे दिवस में राजा सी भेंट हो सकी वह भी दरबार में बहुत इंतजार किया था दरबारियों ने उनके साथ और राजा से मिलते ही पुष्यमित्र ने अपनी समस्या बता दी। परंतु राजा ने ना तो सैनिकों की पगार में कटौती को वापस लिया नाही सैन्य बल में कमी के आदेश को बदलने की कोई पहल की थी। तब भरी सभा में इस बात का रहस्योद्घाटन करना पड़ा कि किसी भी वक्त यूनान की सेना भारत पर आक्रमण कर सकती है। और इस बात के सबूत भी प्रस्तुत किए गए।
बृहदत्त ने अट्टहास करते हुए कहा कि आप अनावश्यक भ्रमित है ऐसा कुछ नहीं हो सकता। हमें लगता है कि आपके मस्तिष्क पर किसी ने वैदिक मंत्रों और ऋचाओं से आक्रमण आप जाएं और बच्चों को जातक कथाओं की जानकारी दें अनावश्यक राष्ट्र की चिंता ना करें।
   खून का घूंट पीकर पुष्यमित्र वापस अपने महल में आए। और फिर अचानक उन्होंने सेना को टुकड़ियों में तैयार रहने को कहा और उन मठों में प्रवेश किया जहां पर यूनानी जासूस मौजूद थे।
लगभग 40 से 50 बंदी बनाए गए साक्ष्य सहित दरबार में जब बंदियों सहित पुष्यमित्र शुंग उपस्थित हुए तब बृहदत्त आक्रोश में आ गए।
  बृहदत्त : पुष्यमित्र आप अपनी सीमाओं को पार कर रहे हैं राजआज्ञा के विरुद्ध आपने राजा की सहमति के बिना यह कार्य किया है यह दंडनीय है।
पुष्यमित्र - मान्यवर हम इस देश के प्रति वफादार हैं
बृहदत्त : और राजा के लिए
पुष्यमित्र : राष्ट्र सर्वोपरि है शायद आप नहीं अगर आप राष्ट्र के विरोध में काम करेंगे तो। राष्ट्रीय जनता से बनता है आप तो बस सेवक हैं मेरी तरह। हे राजन यह किसी भी तरह आपके लिए अपमान कारक कार्य नहीं है जो मैंने किया अपमान तो तब होता जब यूनान की सेना आप को बंदी बना कर ले जाती।
बृहदत्त: सेनापति पुष्यमित्र तुम अपनी हदें पार कर रहे हो। मुझे लगता है राज्य के प्रति तुम्हारी निष्ठा समाप्त प्रतीत होती है। क्यों ना मैं तुम्हें कारागार में डलवा दूं अभी भी वक्त है यूनानी बौद्ध भिक्षुओं को छोड़ दीजिए। यह राजाज्ञा है 
पुष्यमित्र शुंग : महाराज मेरे पास पर्याप्त सबूत है और जनता के प्रति मेरा उत्तरदायित्व है आप भले ही प्रमाद में डूबे रहे परंतु मैंने यह भी जानकारी हासिल कर ली है कि आप केवल एक धर्म सापेक्ष और सेना का अपमान करने वाले राजा सिद्ध हो गए हैं। आपने मठों को अकारण ही बहुत सारा धन दिया है। जनता के श्रम पसीने से श्रेणिकों  के श्रम से अर्जित धन से प्राप्त कराधान राशि का दुरुपयोग किया है।
मान्यवर यह बताएं कि आपने कितने गुरुकुलों को धन दिया है कितने जैन मंदिरों को टूटने से बचाया है कितने वेदाश्रमों को आपने राजाश्रय दिया है। राजन आपका यह एकपक्षीय व्यवहार मगध की जनता को दुखी कर रहा है।
     इतना सुनना था कि बृहदत्त ने म्यान से तलवार निकाली और झपट पड़े पुष्यमित्र शुंग पर आक्रामक होकर। सेनापति पुष्यमित्र शरीर पर तलवार का प्रहार रक्त की एक लकीर दरबार में सबने देखी। और फिर क्या था पुष्यमित्र शुंग के अंतस बैठा परशुराम जाग उठे और आत्मरक्षा के लिए ही नहीं बल्कि मगध की रक्षा के लिए पुष्यमित्र ने गंभीर प्रहार करके विलासी एवं अल्पज्ञ प्रशासन संरक्षक बृहदत्त को समाप्त कर दिया।
     इसके साथ ही शुरू हुआ शुंग वंश का मगध राज। विशुद्ध रूप से ब्राह्मणों का राज परंतु अधिकार किसी के नहीं छीने गए
विदिशा का बौद्ध स्तूप के सुधार कार्य एवं उसके विस्तार के लिए  सबसे पहले राजकोष से राशि आवंटित की गई। और फिर सभी मतों संप्रदायों के साथ वैदिक धर्म के उत्थान के लिए कार्य प्रारंभ हुए।

26.4.21

इंडो यूएस रिलेशन बनाम पराधीन सपनेहु सुख नाही

#पराधीन_सपने_सुख_नाही
[ वैक्सीन रा मटेरियल आपूर्ति प्रकरण पर त्वरित टिप्पणी ]
भारत के संदर्भ में अमेरिकन डीप स्टेट और #जो_बायडन ने वैक्सीन के लिए रा मैटेरियलस की आपूर्ति के लिए जो प्रतिबंध लगाए थे को लिफ्ट करने का आश्वासन दिया है। परंपरागत मित्र रूस यूरोपीय यूनियन फ्रांस कनाडा ब्रिटेन ऑस्ट्रेलिया सिंगापुर और भारत के बड़ी संख्या में मित्र राष्ट्र जिनमें ईरान यहां तक कि पाकिस्तान भी शामिल है ने मानवता के हित में भारत को #कोविड19 से जुड़ने के लिए जो हाथ बढ़ाए उसे देख कर जो वाइडन प्रशासन को अपनी नीति में बदलाव करना पड़ा। कुछ राष्ट्र ऐसे होते हैं जो आत्म केंद्रित सिद्धांत पर ही चलते हैं। लेकिन दक्षिण एशिया सहित भारत के  दुख को समझने वाले मित्र यहां तक कि मित्र राष्ट्र भी भारत में प्रति 24 घंटे में 200 से अधिक प्रभावित हो रहे मनुष्यों की रक्षा के लिए आगे कदम बढ़ा रहे हैं। एक सामाजिक टिप्पणी कार और मानवतावादी टिप्पणीकार की हैसियत से मुझे वह घटना याद आ रही है जब भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए क्रायोजेनिक इंजन की तकनीकी आवश्यकता थी। और इसी अमेरिकी डीप सरकार ने ना केवल और सहयोग किया बल्कि रसिया को भी इस बात की धमकी दी थी कि अगर आप ने भारत को यह तकनीकी स्थानांतरित की तो आपको सीक्रेट 5 स्टेटस अलग कर दिया जाएगा। पता नहीं भारत के वैज्ञानिक इतने महान कैसे हैं जिन्होंने अपने प्रयासों से स्वदेशी इंजन का आविष्कार कर ही लिया।
इतना ही नहीं एहसान फरामोश राष्ट्रों को यह समझना चाहिए कि भारत का सूत्र वाक्य विश्व बंधुत्व है ! 
जियो पॉलिटिक्स में इन दिनों वाइडन महाशय और कमला हैरिस एक्सपोज़ हो चुके हैं। परंतु भारत और शेष विश्व का विकास में भाव देखकर इस बार अमेरिका शर्मिंदगी के साथ अपने फैसले को बदलने के लिए बाध्य हुआ।
इतना ही नहीं यह देश अमेरिका फर्स्ट की नीतियों पर चलते हुए केवल भारतीय ही नहीं बल्कि विश्व का चौधरी बने रहने का प्रयास करता है। वर्तमान में अमेरिका ने भारतीय करेंसी को भी ऑब्जरवेशन में रख लिया है। अमेरिकी प्रशासन का यह मानना है कि भारतीय रुपए में कृत्रिम कारणों से अंतरण मूल्यों में कमी की जाती है। मौद्रिक स्थिति को देखते हुए उनकी यह समाज बचकानी प्रतीत होती है। भारतीय करेंसी को इस तरह ऑब्जरवेशन में रखना अमेरिकन विद्वानों के ज्ञान की कमी का सबसे बड़ा उदाहरण है। अर्थशास्त्र के विद्यार्थी का होने के नाते इस करेंसी ऑब्जरवेशन की निंदा करता हूं।
डोनाल्ड ट्रंप का प्रशासन कैसा भी हो पर उनके कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था को एक सकारात्मक स्थान मिला है। अमेरिकी चुनाव के पूर्व हम ऐसे फैसलों की कल्पना कर चुके थे जो भारत के हितों के विपरीत हो। जो वायडन एवं कमला हैरिस का इतिहास देखा जाए तो भी एक ऐसे चिंतन से सरोकार रखते हैं जो भारत के सापेक्ष नहीं है।

सूर्या के समक्ष नतमस्तक हुए ऊर्जा मंत्री


यह कोई अपराधी नहीं जो अपने किए का पछतावा कर रहा हो। यह है मध्य प्रदेश शासन के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह आइए इस तस्वीर के पीछे की कहानी बताता हूं ।
           देश पर जब संकट आता हैं तो सबसे पहले स्वदेशी कंपनी ही सेवा के लिए आगे आती हैं,जिसका उदाहरण कल  #सूर्या_कंपनी ग्वालियर ने बल्ब निर्माण की नियमित यूनिट बंद कर आक्सीजन की सप्लाई मरीजों के लिए कर दी...।।
      इस सराहनीय कार्य पर मध्यप्रदेश के ऊर्जामंत्री प्रधुम्न सिंह तोमर कंपनी के प्रबंधन के इस निर्णय के फल स्वरुप दोनों हाथ जोड़कर घुटनों के बल बैठ कर प्रबंधन के सामने नतमस्तक हो आभार व्यक्त किया.।
स्वदेसी उद्योग को बढ़ावा दो ये अपने है सुखदुःख के साथी है । धन्य हैं #सूर्या_रोशनी, दोस्तो स्वदेशी उद्योगों ओर उद्योगपतियो को आयातित विचारकों के कहने में आकर अपमानित नहीं करना चाहिए ,देश मे आए संकट पर ये स्वदेशी उद्योग और उद्योगपति ही काम आते है ,अफवाह फैलाने वालों ओर भगदड़ मचाने वालों को इस अनुकरणीय कार्य से शिक्षा लेनी चाहिए। नमन #सूर्या कम्पनी ओर उसके मालिक को।
हमे गर्व है अपने स्वदेसी उद्योगों ओर उद्योगपतियों पर। 
सूचना सौजन्य से महेंद्र शुक्ला
( निवर्तमान महामंत्री
अखिल भारतीय नार्मदीय ब्राह्मण समाज )

25.4.21

मैक सिंह के युधिष्ठिर का जाना अखर रहा है..!

आज हमारे बीच से बीएस पाबला विदा हो गए। 2007 में हम सब ने अंतरजाल पर लिखना शुरू किया था उस शुरुआती दौर में एक दिन एसएमएस आया दिन था 29 नवंबर का। यह दिन मेरा जन्म दिवस है। पाबला जी को उस दौर के हर चिट्ठाकार जन्मदिन विवाह की तिथि याद थी। और सभी को शुभकामनाएं सबसे पहले भेजा करते थे। चिट्ठे पर लिखते भी धाराप्रवाह प्रांजल भाषा का प्रयोग करते हुए उनके विचार खास तौर पर एक आर्टिकल याद है जिसमें उनकी कार छत्तीसगढ़ से एक लंबी यात्रा में क्षतिग्रस्त हो गई थी यह यात्रा वृतांत बेहद रोमांचक और अविस्मरणीय है। पाबला जी का जीवन संघर्ष भरा ग्रंथ कहा जाए तो गलत ना होगा। पूज्यनिया भाभी साहब का जाना पुत्र विछोह उनके जीवन का सबसे दर्दनाक हिस्सा रहा है। पाबला जी से हमारी से शरीर में वर्ष 2011 में विश्व ब्लॉगिंग सम्मेलन में दिल्ली में हुई थी। 
व्यक्तित्व बड़ा शानदार और आलीशान था। उनका हमारे बीच से असमय जाना एक दर्दनाक पहलू है। पाबला साहब बहुत सहज और सुलभ थे। पाबला जी को ब्लॉगिंग तकनीकी का गहरा ज्ञान था। हमारी गलतियों और भूलों के कारण अगर हमारे ब्लॉग में कोई गलती या कमी होती है तो हम बेधड़क उनको कॉल करते । पाबला जी ने किलर झपाटा नामक एक फर्जी आईडी का पता लगा लिया था। इन दिनों में सोशल मीडिया पर अपने Mac Singh  आईडी से अपनी बात कुछ इस तरह से रखते थे जैसे उनका डॉगी मैक उनके बारे में कुछ कह रहा हूं। एक जबरदस्त व्यक्तित्व के धनी पाबला जी आप अपनी तरह के अनोखे व्यक्तित्व के धनी थे। हमारी स्मृतियों में जबरदस्त तरीके से शामिल हो जी मैं भी आखरी सांस तक शायद ही आप लोगों को पाबला जी के जबरदस्त व्यक्तित्व के साथ याद रखूंगा। हे विधाता तुम्हारी शक्ति के आगे कुछ नहीं कहते पर तुम बार-बार क्यों हमारे लोगों को छीन छीन कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हो ओम शांति शांति हे प्रभु इस परम आत्मा को अपने हृदय में स्थान अवश्य देंगे हमारी यही प्रार्थना है उन्हें शत शत नमन

21.4.21

राम और रामायण कदापि काल्पनिक नहीं..!

यह आर्टिकल वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित गैर राजनीतिक आर्टिकल  है । जो यह सिद्ध करता है कि राम कोई काल्पनिक चरित्र नहीं है कृपया इसे अवश्य देखें और शेयर भी कीजिए जिससे अधिकतम राम भक्तों तक यह पहुंच सके।
💐💐💐💐

प्रभु श्री राम की जन्म दिवस पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। कल 20-21 अप्रैल 2020 की लगभग पूरी रात की अथक कोशिशों के बाद भगवान श्री राम के संबंध में जो जानकारी जुटा सका हूं उसके अनुसार कुछ बातें संक्षिप्त में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। इसे आप धैर्य और वैज्ञानिक आधार पर देखेंगे ताकि आप वर्तमान में पढ़ाए जा रहे पश्चिमी एवं वामपंथी विचार को द्वारा लिखे गए इतिहास को समझ पाएंगे। वर्तमान में पढ़ाई जा रहे इतिहास में ढेरों भ्रामक जानकारी हैं। यह आर्टिकल किसी भी प्रकार से किसी विचारधारा का समर्थन ना करते हुए केवल सत्य को समर्पित है।
      पृथ्वी की उत्पत्ति एक खगोलीय घटना है। इस घटना में पृथ्वी आज से 4 दशमलव 5 करोड़ वर्ष पूर्व अपने पथ पर स्थापित हुई। पर प्रकृति अर्थात उसके शीतल होते होते कुछ करोड़ों वर्ष और लगे तदुपरांत ही जीवन उपयोगी वातावरण निर्मित हुआ। यह मान लेते हैं कि  आज से लगभग 2 लाख वर्ष पूर्व वर्तमान मानव के पूर्वज अस्तित्व में आए। और हम यह मानते हैं कि होमो सेपियंस के वंशज है हम मानव। यह कथानक नहीं सत्य है परंतु अंग्रेजी आयातित विचारधारा के आधार पर लिखे गए इतिहास में वैदिक काल को पता नहीं किस दबाव में ईसा के पंद्रह सौ वर्ष पूर्व स्थापित किया है। जबकि बाल्मीकि रामायण जो राम के समकालीन लिखी गई उसमें वेदों के संबंध में उल्लेख है। इसका अर्थ यह है कि राम के काल के पूर्व अर्थात सतयुग के प्रारंभ में अर्थात लगभग 11500 ईसा पूर्व से 9200 वर्ष पूर्व वेदों जिसमें संहिता आरण्यक ब्राह्मण एवं आदि का रचना काल रहा है। जो किसी  एक व्यक्ति द्वारा नहीं लिखे गए बल्कि यह है वेदव्यास द्वारा सुव्यवस्थित किए गए ऐसा मानना चाहिए। 
   अब स्पष्ट है कि रामायण काल के पूर्व त्रेता युग का शुभारंभ 6777 बी सी में हुआ। इस बात के प्रमाण प्रस्तुत किए हैं भारतीय राजस्व सेवा के एक अधिकारी श्री वेद वीर आर्य ने। उनके नजरिए से देखा जाए तो निम्नलिखित तथ्यों तक पहुंचा जा सकता है-
राम रावण के बीच धर्म युद्ध  हुआ या नहीं अथवा यह एक काल्पनिक घटना है इस प्रश्न के उत्तर में श्री आर्य बताते हैं कि
[  ]  हाल ही में नासा द्वारा अवगत कराया गया कि श्रीलंका से भारत के बीच समुद्र में एक प्राकृतिक रास्ता था। लेकिन सूर्य एवं चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण जल की अधिकता होने से उस सेतु के जरिए लंका वर्तमान श्रीलंका में जाना कठिन था। अतः राम ने पत्थर झाड़ी वनस्पति बालू इत्यादि का प्रयोग करवा कर एक सेतु का निर्माण किया जिसकी मोटाई  लगभग एक मीटर के आसपास रही है। नासा का यह प्रमाण प्रासंगिक है और राम एवं रावण के बीच हुए धर्म युद्ध की पुष्टि भी करता है। नासा यह बताता है कि राम रामसेतु में पत्थरों का जमाव डेटिंग के हिसाब से 7 हजार बीसी के आसपास रहा है तो यह माना जा सकता है कि राम ने युद्ध की व्यवस्था के लिए इस सेतु का निर्माण किया है।
[  ] श्रीलंका और भारत के बीच समुद्र में एक प्राकृतिक मार्ग था । किंतु जल स्तर बढ़ने से उस रास्ते पर चलना राम की सेना के लिए कठिन था। पता है नल नील के सहयोग से पत्थरों के जरिए जल-स्तर से ऊपर पत्थर इत्यादि डालकर रास्ता तैयार कराया गया।
[  ] इस क्रम में रावण की मृत्यु का कारण हेली धूमकेतु धरती पर नजर आया। इस कथन की पुष्टि के लिए सॉफ्टवेयर के माध्यम से लेखक आर्य ने अपने शोध ग्रंथ में अंकित किया है। तथा यह तथ्य लक्ष्मण के माध्यम से रामायण में उल्लेखित है ।
        वेदवीर आर्य श्री राम की जन्म दिनांक (ईसाई कैलेंडर के मुताबिक का) भी प्रमाण देने से नहीं चूकते। यह तिथि ईसा  पूर्व के ऋणात्मक कैलेंडर में स्थापित किया जा सकता है। 
एक अन्य शोध को देखें तो भी राम का कालखंड लगभग ईशा के 7000 वर्ष पूर्व सुनिश्चित किया गया है
आलोचकों के कारण राम पौराणिक थे या ऐतिहासिक इस पर शोध हुए हैं और हो रहे हैं। सर्वप्रथम फादर कामिल बुल्के ने राम की प्रामाणिकता पर शोध किया। उन्होंने पूरी दुनिया में रामायण से जुड़े करीब 300 रूपों की पहचान की। 

राम के बारे में एक दूसरा शोध चेन्नई की एक गैरसरकारी संस्था भारत ज्ञान द्वारा पिछले छह वर्षो में किया गया है। उनके अनुसार अगली 10 जनवरी को राम के जन्म के पूरे 7122 वर्ष हो जाएँगे। उनका मानना है कि राम एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। वाल्मीकि रामायण में लिखी गई नक्षत्रों की स्थिति को 'प्ले‍नेटेरियम' नामक सॉफ्टवेयर से गणना की गई तो उक्त तारीख का पता चला। यह एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जो आगामी सूर्य और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी कर सकता है। 

मुंबई में अनेक वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, व्यवसाय जगत की हस्तियों के समक्ष इस शोध को प्रस्तुत किया गया। और इस शोध संबंधित तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए इसके संस्थापक ट्रस्टी डीके हरी ने एक समारोह में बताया था कि इस शोध में वाल्मीकि रामायण को मूल आधार मानते हुए अनेक वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, ज्योतिषीय और पुरातात्विक तथ्यों की मदद ली गई है। इस समारोह का आयोजन भारत ज्ञान ने आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के साथ मिलकर किया था।

8.4.21

नक्सली हिंसा : वामधारा की देन..!

   वामधारा सिंचित नक्सलबाड़ी वार से रक्तपात भारत को बचाने चरम प्रयासों की ज़रूरत : गिरीश मुकुल

     यह एक चरमपंथी विचार है । चरम सदा ही पतन का प्रारंभ होता है। अक्सर आप जब शिखर पर चढ़ने का प्रयास करते हैं तब आपका उद्देश्य होता है.... स्वयं को श्रेष्ठ साबित कर देना। इसका अर्थ यह है कि आप चाहते हैं-" आप उन सब से अलग नज़र आएं जो भीड़ का हिस्सा नहीं है ।
    वामधारा चरमपंथी धारा है। यह एक ऐसी विचारधारा है जिसका प्रारंभ ही कुंठा से होता है।
     कोई भी व्यक्ति जो कुंठित है अर्थात पीडा और क्रोध के सम्मिश्रण युक्त व्यवहार करता है या कुंठित है वह सामान्य रूप से हिंसा के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति बनता है। अर्थात पीड़ा और क्रोध हिंसा  सृजन का प्रमुख घटक है।
      अब आप यह कहेंगे कि-" कृष्ण ही नहीं महाभारत के लिए उत्प्रेरित क्यों किया क्या वे पीड़ा युक्त क्रोध यानी कुंठा से ग्रसित थे..!"
     नहीं कृष्ण कुंठा से ग्रसित नहीं थे। कृष्ण ने युद्ध टालने के बहुत से प्रयास किए उनका अंतिम कथन यह था की कुल 5 गांव पांडवों को दे दिए जाएं ।
      कुंठित तो दुर्योधन था जिसने इतना भी नहीं स्वीकारा । जिसका परिणाम आप सब जानते हैं ।
      नक्सलवाद  दुर्योधनी विचार प्रक्रिया का परिणाम है । वामधारा का अर्थ भी यही है।
        25 मई 1967 में चारू मजूमदार और कनू सान्याल  ने जिस गांव से इस आंदोलन की शुरुआत की थी वह गांव था नक्सलबाड़ी।    
           नक्सलबाड़ी ग्राम की स्थानीय समस्या को किसानों के अधिकार चैतन्य के कारण उनका शक्ति प्रदर्शन भी एक सीमा तक उचित मानने योग्य माना जा सकता है जहां तक आंदोलन जान लेवा न हो । किंतु उनकी इस विजय के उपरांत तत-समकालीन व्यवस्था को इस बिंदु को अपने चिंतन में शामिल करना था ताकि ऐसी हत्यारी परिस्थितियां निर्मित ना हो । यह सत्य है कि न्यायालयीन आदेश का भी कोई पक्षकार पालन ना करें यह सर्वथा अनुचित है असवैधानिक है पर इसका विकल्प हत्या नहीं हो सकता।
    खैर 1967 के बाद बहुतेरे कैलेंडर बदल गए हैं 2021 में 3-4 मार्च को ऐसी कौन सी जरूरत आ पड़ी थी कि- 700 नक्सलियों ने 24 निर्दोष पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उतार दिया। सच पूछिए तो जरूरत बिल्कुल नहीं थी। न आदिवासी मजदूर किसान जमीदार या सूदखोर के चंगुल में थे नाही ऐसी कोई विषम परिस्थिति थी परंतु 1967 से 1970 तक आयातित विचारधाराओं के सहारे यह कांसेप्ट जरूर पुख्ता हो गया कि-" हम सरकार के समानांतर सरकार चला सकते हैं। छत्तीसगढ़ बंगाल बिहार उड़ीसा और झारखंड आंध्र प्रदेश का कुछ हिस्सा सन 1970-71 व्याप्त हो गया । कहते हैं कि 11 प्रदेशों के 90 से अधिक जिले  इस  समस्या से प्रभावित रहे हैं ।
समानांतर सरकार व्यवस्था और न्याय व्यवस्था
   सामान्यतः लोग यह नहीं जानते की समस्या के आधार में क्या है ?   
    साहित्यकारों ने तो लिखना पढ़ना ही छोड़ दिया। तथाकथित असभ्य संस्कृति का विकास और विस्तार का आधार वामधारा ही है।
    एक अध्ययन से पता चलता है कि आज 18 राज्यों के 218 जिलों जिनमें 460 थाने इस हिंसक संस्कृति के प्रभाव में हैं। इस विस्तार के लिए वाम धारा ने इन्हें पर्याप्त बौद्धिक खाद पानी दिया हुआ है जिसके प्रमाण आए दिन आप पढ़ते सुनते हैं परंतु अब इन सूचनाओं से आम आदमी को कोई लेना देना नहीं।
नक्सलवाद का विस्तार करने के लिए जिन चार महत्वपूर्ण बिंदुओं की जरूरत होती है उनमें :-
[  ]  अंतरराज्यीय सीमा पर स्थित क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण होते हैं
[  ] दुर्गम क्षेत्र भी नक्सलवाद को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं
[  ] आदिवासी जनसंख्या इनका मुख्य चारागाह है।
[  ] सरकार से हमेशा नाराज रहने वाली तथाकथित आयातित विचारधारा के पैरोंकारों से इन्हें खासी मदद मिलती है।
           इस समस्या पर 1970 आते-आते तक तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी गंभीरता से ध्यान देना शुरू ही किया था कि बांग्लादेश की समस्या ने घेर लिया। पर यह भी जानकारी मिलती है कि इंदिरा जी इस समस्या को हल करना चाहती थीं ।
      1970 से 1980 वाली दशक में नक्सल समस्या प्रभावित इलाकों में घटनाएं कम अवश्य हुई थी पर अचानक क्या हुआ के 1990 से 2004 तक नक्सलवादी हिंसा में उतार चढ़ाव देखा गया । 2004 से 2012 तक अचानक नक्सली हिंसा में वृद्धि हुई थी किंतु कोविड-19 आते हिंसा के आंकड़ों में कमियां आने लगी। व्यवस्था के विरुद्ध आतंक फैलाना राष्ट्र के भीतर की समस्या नहीं मानी जा सकती। उनसे हम क्या माने..?
"लाल समस्या आंतरिक नहीं है..!"
     यह समस्या कश्मीर समस्या से कम तो नहीं है। नक्सली समस्या में वह सारे तत्व मौजूद हैं जो अमित्र एवम कुंठित राष्ट्रों द्वारा दूसरे राष्ट्र में फैलाए जाते हैं । माओवाद का विस्तार प्रजातांत्रिक व्यवस्था के विरुद्ध  है। खासतौर पर जब भी चुनाव होते हैं तब नक्सलवादी गतिविधियां अपेक्षाकृत तेजी से विस्तार पाती हैं।
     आयातित विचारक अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए बुज़ुरूआ और सर्वहारा का वर्गीकरण हमेशा जीवंत रखना चाहते हैं। अगर वर्गीकरण न भी हो तो वर्ग बनाना इनकी प्राथमिक नीति होती हैं ।
  छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश आंध्र प्रदेश महाराष्ट्र की बॉर्डर पर हिडमा नामक कमांडर (जो अपने साथ 800 गुमराह महिलाओं पुरुषों की जमात के साथ चलता है) सक्रिय नजर आता है . छत्तीसगढ़ के पुलिस चीफ का कहना है कि बीजापुर सुकमा की घटना में 700 नक्सलवादियों ने हमला किया था।
हमने पहले ही स्पष्ट किया है कि- "वामधारा अक्सर वर्ग संघर्ष पैदा करने में सक्रिय रहती है। आपने देखा होगा कि विश्वविद्यालय के कैंपस से लेकर थिएटर और आयातित विचारधारा पर केंद्रित साहित्य अगर वर्ग संघर्ष ना हो तो भी वर्गीकरण करके दो वर्गों में परस्पर वैमनस्यता और अस्थिरता पैदा करते हैं। बेशक अर्बन नक्सली गतिविधि कहा जाना गलत नहीं है।"
इसका उदाहरण सीएए विरोधी आंदोलन में स्पष्ट रूप से नजर आया है। कुछ तथाकथित प्रगतिशील विचारकों के आर्टिकलस #पहल  नामक एक मैगजीन में देखे गए।
  साथ ही आपको याद होगा कि चिकन नेक पर अपना हक जमाने के लिए किस तरह से इसी आंदोलन में उत्प्रेरित एवं उत्तेजित किया जा रहा था।
   गंभीरता से सोचें तो माओवाद का उद्देश्य पशुपति से तिरुपति तक खूनी संघर्ष लक्ष्य की प्राप्ति करना है।
     मार्क्स लेनिन  स्टालिन माओ यह वह ब्रांड नेम है जिनके विचारों को वर्गीकरण को आधार बनाकर विस्तार दिया जा रहा है। पर्यावरण कार्यकर्ता मानव अधिकार कार्यकर्ता के लबादों में यह विचारधारा बकायदा गोबर के कंडे में राख के अंदर छिपी हुई आग की तरह जिंदा रहती है।
       तो इसका समाधान क्या है...?
वर्तमान संदर्भ में इसका एकमात्र समाधान उसी भाषा में जवाब देना है जिस भाषा में इन्हें जवाब समझ में आता है फिर भी कुछ समाधान सुलझाने की कोशिश करना मेरा साहित्यकार होने का दायित्व है :-
[  ] गृहमंत्री की की बॉडी लैंग्वेज में अभी तो स्पष्ठ कठोरता नज़र आ रही है । पर यह कब होगा देखने वाली बात है ।
[  ]  कठोर सैन्य कार्रवाई-  क्योंकि यह हमारे देश के नागरिक हैं किंतु उनके मस्तिष्क में इनके विदेशी आकाओं और कमांड देने वाली ताकतों के प्रति अटूट सम्मान है नज़र आता है इनका सीधा रिश्ता भारतीय एकात्मता को प्रभावित करने वालों से है।
[  ] विश्व बिरादरी और मानव अधिकारों की पैरोंकारी करने वाले लोगों को मात्र सूचना देकर आर्मी के एयर सर्विलांस पर इन्हें रखा जाना चाहिए और आवश्यकता पड़ते ही पूरी दृढ़ता के साथ बल प्रयोग करना चाहिए ।
[  ] स्थानीय समुदाय पर इन का सर्वाधिक प्रभाव होता है तथा इनकी अदालतें चलती है उस पर व्यवस्था की पैनी निगाह होनी चाहिए ।
[  ] इंटर स्टेट बॉर्डर्स (सीमाओं) पर  अत्याधुनिक सर्विलांस सिस्टम स्थापित करना आवश्यक है।
[  ] अर्बन नक्सलियों पर चाहे कितना भी विरोध हो सरकारी तौर पर शीघ्र ही जानकारी एकत्र कर ली जानी चाहिए ।
[  ] जन सामान्य को इनके दुष्कृत्यों की जानकारी देने का दायित्व मीडिया साहित्यकार कवियों और लेखकों नाटककारों चित्रकारों का होना चाहिए क्योंकि समाज यानी जनता  को भी राष्ट्र धर्म का पालन करना जरूरी है।
         अभी तो देखना है कि सरकारी हिसाब से नक्सलियों की हिंसक प्रवृत्तियों को कब तक स्थानीय राष्ट्रीय समस्या की श्रेणी से हटाकर कब तक वैदेशिक हस्तक्षेप माना जावेगा ।
सलवा जुडूम एक प्रक्रिया थी शांति स्थापित करने की इसका खुलकर विरोध किया गया। इस आंदोलन की असफलता के लिए जो भी प्रयास किए गए वह सोची समझी रणनीति थी ऐसा प्रतीत होता है।
     बीबीसी वेब पोर्टल ने कहा है कि-"शनिवार को जो मुठभेड़ हुई, वह हिड़मा के गांव पुवर्ती के पास ही है. 90 के दशक में माओवादी संगठन से जुड़े माडवी हिड़मा ऊर्फ संतोष ऊर्फ इंदमूल ऊर्फ पोड़ियाम भीमा उर्फ मनीष के बारे में कहा जाता है कि 2010 में ताड़मेटला में 76 जवानों की हत्या के बाद उसे संगठन में महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गई. इसके बाद झीरम घाटी का मास्टर माइंड भी इसी हिड़मा को बताया गया. इस पर 35 लाख रुपये का इनाम है." 
     इसी बीबीसी एवम अन्य कई मीडिया  ने सलवा जुडूम को आदिवासी विरोधी कहा  था ।  मीडियाा की भूमिका येे थी ( 5 /6/15 की बीबीसी की रपट) )

एक दर्ज़न हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों से घिरे रहने वाले चैतराम अट्टामी को आज भी लगता है कि सुप्रीम कोर्ट एक न एक दिन यह मान लेगी कि सलवा जुडूम सही आंदोलन था.

दंतेवाड़ा के कसौली कैंप में बैठे अट्टामी अपनी मुट्ठियां भींचे कहते हैं, “अगर सलवा जुडूम ग़लत था तो मान कर चलिये कि भारत की आज़ादी की लड़ाई भी ग़लत थी.”

अट्टामी दस साल पहले बस्तर में शुरु हुए सलवा जुडूम आंदोलन के ज़िंदा बचे हुए शीर्ष नेताओं में से एक हैं.

छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खिलाफ सरकार के संरक्षण में शुरु हुए सलवा जुडूम यानी कथित शांति यात्रा के दस साल पूरे हो गए हैं.

माओवाद का पक्षधर बहुत बड़ा बौद्धिक व्यवसायियों समूह हो रहा है जो प्रदेश के महानगरों में सक्रिय है। यह समूह उन सवालों पर मौन है जिसमें मानवता के संदर्भ में सवाल पूछे जाते हैं। सच तो यह है कि कुछ लोग अपनी किताबें भी बंद कर रहे हैं।


6.4.21

ध्वज तिरंगा लौहित किले पे अनमना है ।

            यह कविता राष्ट्र द्रोहियों की दुरभि संधि को उजागर कर रही है 26 जनवरी से लेकर 3-4 अप्रैल 2021 तक की घटनाओं की निकटता को प्रस्तुत कर रही है। देखना है शाहीन बाग पर अश्रुपात करने वाली कलमों की #पहल क्या होगी ..?
व्योम पे देखो ज़रा क्या तम घना है ?
रुको देखूँ शायद ये मन की वेदना है ।।
रक्त वीरों का सड़क को रंग रहा है -
ध्वज तिरंगा लौहित किले पे अनमना है ।
आज ग़र कौटिल्य मिल जाये कदाचित
कहूँगा जन्म लो चाणक्य मेरी याचना है ।
बंदूक से सत्ता के पथ खोजे जा रहें हैं-
जनतंत्र मेरे वतन का अब अनमना है ।।
आयातित बकरियों, का चरोखर देश ये
कर्मयोगी बोलिये, अब क्या बोलना है ?
आज़ाद मुक्ति मांगते बेशर्म होकर -
मुक्ति की ये मांग कैसी, और कैसी चेतना है ?
आज़ फिर सुकमा की ज़मीं को रंगा उनने
दुष्टों का संहार कर दो भला अब क्या सोचना है ।।
       

29.3.21

फागुन के गुन प्रेमी जाने

*होली पर हार्दिक शुभकामनाएं*
फागुन के गुन प्रेमी जाने, 
बेसुध तन अरु मन बौराना ।
या जोगी पहचाने फागुन, 
हर गोपी संग दिखते कान्हा ।। 

रात गये नजदीक जुनहैया, 
दूर प्रिया इत मन अकुलाना ।
सोचे जोगीरा शशिधर आए, 
भक्ति - भांग पिये मस्ताना ।। 

प्रेम रसीला, भक्ति अमिय सी, 
लख टेसू न फूला समाना ।
डाल झुकीं तरुणी के तन सी, 
आम का बाग गया बौराना ।। 

जीवन के दो पंथ निराले, 
कृष्ण भक्ति अरु प्रिय को पाना ।
दोनों ही मस्ती के पथ हैं, 
नित होवे है आना जाना...!! 

चैत बैसाख की गर्म दोपहरिया – 
सोच के मन लागा घबराना ।
छोर मिले न ओर मिले, 
चिंतितमन किस पथ पे जाना ? 

मन से व्याकुल तन से आकुल
राधारमण का कौन ठिकाना ।
बेसुध बैठ गई सखि मैं तो-
देख मेरा सखि तापस बाना ।।

गोकुल छोड़ गए जब से तुम
छूटा हमारा भी पानी-दाना ।
प्राण की राधा झुलसी झुलसी
तुरतई अब किसन को होगा आना ।।

💐💐💐💐💐💐
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

24.3.21

पॉक्सो एक्ट की जानकारी सर्वव्यापी हो''- रिजु बाफना आई ए एस


 बच्चों के लिए पॉक्सो अधिनियम के अंतर्गत महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा चलाए जा रहे प्रचारात्मक अभियानों को अंतर्विभागीय समन्वय से प्रभावशाली बनाया जा सकता है। आज ऐसे ही प्रयासों की नितांत आवश्यकता है। तदाशय के विचार जिला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी रिजु बाफना ने व्यक्त किये।

होटल कल्चुरी में आयोजित शिक्षा विभाग के प्राचार्योंबाल विकास परियोजना अधिकारियों एवं स्वयं सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों के लिये महिला बाल विकास द्वारा आयोजित पॉक्सो एक्ट पर केन्द्रित कार्यशाला में व्यक्त किए।

जिला विधिक प्राधिकरण के सदस्य सचिव ए.डी.जे. शरद भामकर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि 'जन्म-प्रमाण-पत्र एवं आयु प्रमाण पत्र के संबंध में प्रत्येक अॅथारिटी को सजगता बरतनी चाहिए तथा इस एक्ट में अंतर्निहित प्रावधानों जैसे वैधानिक कार्यवाही प्रक्रिया और प्रभावित को सहायता प्राप्त करने हेतु सरकारी अमले को विशेष रूप से आम जनता को जानकारी देना अत्यावश्यक है।

शिक्षा विभाग की ओर से जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम सोनी ने इस बात पर सहमति दी कि निकट भविष्य में महिला बाल विकास विभाग एवं शिक्षा विभाग मिलकर बच्चों के बीच इस अधिनियम की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए प्रत्येक स्कूल में मासिक सत्रों का प्रावधान करेंगे। कार्यक्रम की आवश्यकता एवं उपयोगिता पर श्री संजय अब्राहम सहा. संचालक द्वारा भी विचार व्यक्त किया गया।

इस अवसर पर बचपन बचाओ अभियान के प्रतिनिधियोंप्रांतीय समन्वयक सलमान मंसूरी  तथा बबन प्रकाश ने तकनीकी सत्र में पॉक्सो एक्ट की महत्ताप्रावधान एवं प्रक्रियाओं की जानकारी दी। साथ ही चाइल्ड लाइन ने लैंगिक अपराध से प्रभावित बच्चों के लिए विस्तार से जानकारी दी। जिला कार्यक्रम अधिकारी ने आमंत्रित अतिथियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित किया तथा कार्यक्रम का संचालन गिरीश बिल्लौरे ने किया।


चंद्रशेखर जी का वक्तव्य

लोहिया जी चंद्रशेखर जी उन भारतीयों के आदर्श हैं जो मानवता के सबसे बड़े सरोकारी कहे जाते हैं। भारत की संसदीय व्यवस्था में इस व्यक्तित्व ने लगभग मोहित कर लिया था । उन दिनों हम डी एन जैन कालेज में स्नातक डिग्री लेने के छात्र थे नेतागिरी का वायरस भी घुस चुका था । घर के लोग नाखुश रहते थे । ज़ायज़ बात है पर युवावस्था में हम सियासत समाज विचारधारा आदि को समझ रहे थे । सब समझते थे कि हम नेतागिरी में सरोपा धंस गए हैं । 1980-81 की बात है । कालेज में ऊटपटांग हरकतों के लिए मशहूर थे मुकेश राठौर । समाजवादी विचारधारा को मानते थे लोहिया जी चंद्रशेखर जी उनके आदर्श थे । पर हम अलहदा सोचते थे । 
     आपात काल के बाद चंद्रशेखर जी जबलपुर आए तो उनके सम्मान में हमारी यूनियन ने दादा को बुलाया । डी एन जैन कॉलेज के ओपन एयर थियेटर का लोकार्पण चन्द्रशेखर जी ने ही जिया था । 
    उनके भाषण में भूमंडलीकरण भविष्य के भारत की स्थिति, बेरोजगारी पर खुलकर बोले । 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी जी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था।
     तभी आपातकाल के जेल के दिन याद करते हुए वे बोले-"हम और हमारे मित्र एक सूखे पेड़ को लेकर किस्म किस्म की चर्चा करते थे । एक दिन मित्र को बताया कि -"बारिश में यह पेड़ अवश्य पुनः पीकेगा ..!
 कैसे ये तो ठूँठ है...?
मैने कहा -"इसमें पनपने की इच्छा शक्ति है । जैसे हममें । हम भारतीय प्रजातंत्र के ठूँठ भी निर्बंध होंगे । हमें खुद को आस्था की बूंदों से सींचते रहना होगा । 21 माह तक का आपातकाल गोया प्रजातंत्र में ब्रिटिश राज का ट्रांसलेशन ही था ।  मित्र अवाक ताकता रहा । 
 मई-जून 1975 की बारिश में  दो तीन फुहारों के बाद कटा हुआ पेड़ हरियाने लगा । 
  चंद्रशेखर जी के मित्र सह क़ैदी ने कहा - "चन्द्रशेखर जी ये तो पनप रहा है ! 
पनपेगा क्यों नहीं..? भारतीय डेमोक्रेटिक सिस्टम की जड़ें मजबूत और गहरी जो हैं । 
21 मार्च 1977 को आपातकाल वापस हुआ । तब तक वो पेड़ भी फिर से जिंदा हो चुका था ।
उसी दिन एक कविता लिख गई जो उनको ही समर्पित क्ररता हूँ...
आस्था 
बोलती नहीं पनपती है 
दावा प्रदर्शन 
न कभी नहीं ...!
आस्था हरियाती है । 
मंद मंद मुस्काती है । 
आस्था राग-द्वेष से दूर 
हाँ बहुत दूर चली जाती है ।।
आस्था
विश्वास की गहरी जड़ों 
वाले कटे पेड़ों में
बारिश की बूंदों से 
मिल तरुणी में प्रेम सी
अंकुरित हो जाती है 
तब सबको नज़र आती है ।
सूखे ठूँठ में 
हल्की फुहार के प्यार के बाद
कहीं कभी देखो अंकुरण..!
जान लो यही तो है आस्था का प्रकरण ।।

     
     
 

Wow.....New

आखिरी काफ़िर: हिंदुकुश के कलश

"आखिरी काफ़िर : हिंदूकुश के कलश" The last infidel. : Kalash of Hindukush"" ऐतिहासिक सत्य है कि हिंदूकुश प...