21.11.22

भारत, जैफ बेगौस की भविष्यवाणी गलत साबित करेगा


     भारत, जैफ बेगौस की भविष्यवाणी गलत साबित करेगा:गिरीश बिल्लोरे
     पिछले 4 दिन पहले विश्व के चौथे नंबर के अरबपति जैफ़ बेगौस ने यह कहकर यूरोप में हड़कंप मचा दिया कि-" वैश्विक महामंदी बहुत जल्दी प्रारंभ हो सकती है, हो सकता है दिसंबर 22 अथवा जनवरी 23 में ही यह स्पष्ट हो जाए। अपनी अरबों रुपए की संपत्ति जनता को वापस करने की घोषणा करने वाले जैफ़ ने कहा-" इस महामंदी के आने के पहले विश्व के लोगों को बड़े आइटम पर तुरंत खर्च करना बंद कर देना चाहिए। कंजूमर को इस तरह की सलाह देते हुए महामंदी के भयावह दृश्य अंदाज़ लगाने वाली इस शख्सियत ने कहा है कि-" कार रेफ्रिजरेटर अगर आप बदलना चाहते हैं तो इसके खर्च को स्थगित कर दीजिए ।
*बिलेनियर जैफ के* इस कथन को *विश्लेषित* करने मैंने अपने पूर्व अनुभव के आधार पर अनुमान लगाया कि- यह सत्य है कि, 1990-91 की महामंदी ने जो स्थिति उत्पन्न की थी उससे भारतीय अर्थव्यवस्था अप्रभावित रही है। उसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होगा?
   कृषि उत्पादन एवं वाणिज्य परिस्थितियों का अवलोकन करने पर पाया कि विश्व में कितनी भी बड़ी मंदी का दौर आ जाए , अगर भारतीय व्यवस्था जो मूल रूप से कृषि उत्पादन एवम उत्पादों पर आधारित है, अप्रभावित रहेगी और यदि उस पर कोई नकारात्मक प्रभाव पढ़ना है तो भी अर्थव्यवस्था में मामूली प्रभाव पढ़ना संभव होगा। *इस संबंध में भोपाल में व्यवसाय से जुड़े श्री विमल चौरे, महामंदी से पूरी तरह सहमत हैं।*
 उसका कारण वही है जैसा मैंने पूर्व में वर्णित किया है। अर्थात भारतीय अर्थव्यवस्था ठोस अर्थव्यवस्था के रूप में समझी जा सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में पॉजिटिविटी का सकारात्मक पहलू  जनसंख्या है, और यह आबादी ऐसे किसी भी तरह के उपभोक्तावादी संसार का हिस्सा नहीं है, जो अत्यधिक उपभोक्तावादी हो।
*भारत में पर्सनल सेक्टर में पूंजी का निर्माण आसानी से किया जा सकता है।*
 भारत में अभी भी प्रूडेंट शॉपिंग प्रणाली को परंपरागत रूप से स्थान दिया जाता है। *अतः यह संभावना कम ही है कि हम महामंदी से बुरी तरह प्रभावित होंगे।*
*गोल्ड फैक्टर*
भारत में वार्षिक 21 हजार टन सोने की मांग बनी रहती है.  जबकि भारत की खदानें मात्र 1.5 टन सोना उत्पादित करती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक
विश्व स्वर्ण परिषद (डब्ल्यूजीसी) ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत में सोने की खदानों से उत्पादन 2020 में 1.6 टन था, लेकिन दीर्घावधि में यह 20 टन प्रतिवर्ष तक बढ़ सकती है। भारत का मध्य वर्ग एवं निम्न वर्ग भी सोने के प्रति आकर्षित होता है, क्योंकि *सोना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण परंपरा आधारित घटक है। इसे एक बेहतरीन इन्वेस्टमेंट माना जाता है।*
वर्तमान परिस्थितियों में भारत के प्रत्येक परिवार के औसत रूप से 2 से 3 तोला यानी 20 से 30 ग्राम सोना संचित रहता है। परिवार अपनी आवश्यकता के मुताबिक इस होने का नगरीकरण करा लेता है। 
परिणाम स्वरूप अर्थ- व्यवस्था कुल मिलाकर रोकड़  के अभाव में प्रभावित नहीं होती। 
भारतीय परिवारों में ही  कोआपरेटिव व्यवस्था परंपरागत रूप से प्रभावी है । आपसी आर्थिक व्यवहार के कारण आर्थिक मंदी नियंत्रित होगी। इसके अलावा जनसंख्या भी अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा विकल्प माना जा सकता है। socio-economic सिस्टम में भारतीय  परिवारिक व्यवस्था किसी भी तरह की मंदी से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहती है इसलिए आसन्न महामंदी का असर भारत के अथवा दक्षिण एशियाई देशों के लिए बेहद खतरनाक नहीं होगी। यदि युद्ध महामारी जैसी परिस्थितियां निर्मित न हो तो!
 उपरोक्त बिंदुओं से इस बात की पुष्टि होती है कि *भारत की अर्थव्यवस्था यूरोपीय अर्थव्यवस्था की तुलना में बेहद मजबूत  है।*

14.11.22

भारत में आरक्षण : सामाजिक इंजीनियरिंग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण


हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने के संबंध में जो परदेस पारित किए हैं उससे स्पष्ट है कि हमारी न्याय व्यवस्था भी वंचित वर्ग के लिए पूरी तरह से सहानुभूति पूर्वक दृष्टिकोण अपना रही है। सामाजिक इंजीनियरिंग का जीता जागता उदाहरण आरक्षण माना जा सकता है। यद्यपि बहुत से विचारक जातिगत आरक्षण के विरुद्ध हैं। क्योंकि जब योग्यता का प्रश्न उठता है तो आरक्षित संवर्ग एक फॉर्मेट के तहत कम योग्यता धारित करने के बावजूद किसी अधिक योग्य व्यक्ति के समकक्ष होता है। यह अकाट्य सत्य है। परंतु सत्य यह भी है कि आरक्षण का कारण अपलिफ्टमेंट ऑफ द वीकर सेक्शन Upliftment of the Weaker Section  ही है। सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि आरक्षण वैयक्तिक हितों को साधने का कारण नहीं होना चाहिए। यह सामाजिक इंजीनियरिंग के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी है। जहां तक शासकीय सेवाओं में आरक्षण का प्रश्न है मेरे हिसाब से आरक्षण का अवश्य केवल एक बार दिया जाना ठीक होता है। जबकि पदोन्नति में आरक्षण को लेकर सबकी अपनी अपनी राय हो सकती है। लेकिन सामाजिक इंजीनियर के परिपेक्ष में यह एक तरह से अनुचित ही है। वैसे व्यक्तिगत राय पर सभी सहमत होंगे ऐसा कदापि मेरी अपेक्षा नहीं है।
    संक्षेप में हम सवर्ण आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की सहमति के संबंध में देखें तो... सुप्रीम कोर्ट ने केवल जाति के आधार पर आरक्षण के विरुद्ध न होते हुए आर्थिक आधार पर आरक्षण की समीक्षा की गई है।
केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को दिए गए आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को वैध बताते हुए, इससे संविधान के उल्‍लंघन के सवाल को नकार दिया। हालांकि, चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच संदस्यीय बेंच ने 3-2 से ये फैसला सुनाया है। इससे यह साफ हो गया कि केंद्र सरकार ने 2019 में 103वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा और नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की थी, संविधान का उल्‍लंघन नहीं है। 
   याचिकाकर्ता द्वारा सवर्ण आरक्षण को असंवैधानिक करार देने की याचना की थी। परंतु सामाजिक इंजीनियरिंग के परिपेक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी बेहद प्रासंगिक और अनुकूल है। आप गंभीरता से विचार कीजिए तो आप पाएंगे कि सामाजिक समरसता और एकात्मता के लिए सामाजिक न्याय सर्वोच्च प्राथमिकता वाला कंपोनेंट है। वर्तमान संदर्भ में देखा जाए तो विगत 10 वर्षों में सामाजिक जातिगत व्यवस्था  समाप्त होती नजर आ रही है। पहले तो वैवाहिक संदर्भों में केवल अपनी बिरादरी में ही विवाह को मान्यता प्राप्त होती थी परंतु अब अधिसंख्यक वैवाहिक अनुष्ठान अंतर्जातीय विस्तार ले चुके हैं। और आने वाले समय में जातिगत व्यवस्था लगभग समाप्त हो जाएगी।
   आरक्षण समतामूलक समाज की अवधारणा पर आधारित व्यवस्था है। भारतीय व्यवस्था में socio-economic पहलुओं पर विचार करना आगामी समय के लिए सुव्यवस्थित करने की योजना बनाना हम सबका सामाजिक दायित्व है। दीर्घकाल में जातिगत सामाजिक व्यवस्था पूर्णत: समाप्त हो सकती है। वर्तमान में एक नए तरह के भारत ने आकार लिया है। सामाजिक संरचना के प्रतिमानों में बदलाव आ रहा है, परंपराएं भी बदली जा रही हैं या कुछ परंपराएं स्वयं ही बदल गई हैं। बदलते परिवेश में सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव ठीक वैसा ही है जैसे- ईसा पूर्व गौतम बुद्ध का अभ्युदय होना। गौतम बुद्ध ने समतामूलक समाज की स्थापना की बुनियाद रखी थी। उनके संदेश आर्थिक समानता के लिए जितने प्रभावी रहे हैं उससे कहीं अधिक सामाजिक समानता और एकात्मता के पक्षधर थे। महात्मा बुद्ध के अधिकांश उपदेशों में एकात्मता समरसता एवं शांति के उन समस्त बिंदुओं को समावेशित किया गया है जिन बिंदुओं पर भारतीय दर्शन में उपनिषदों में मार्ग स्थापित किया था। भारतीय सनातनी व्यवस्था समतामूलक समाज की व्यवस्था के प्रति सतर्क और सजग रही है। भारत में जैनमत, बुद्धिज़्म,शैव,शाक्त, वैष्णव, चार्वाक, सूफी, यहां तक कि विदेशों से आए इस्लाम और क्रिश्चियनिटी को भी मान्यता मिली। जातिवादी व्यवस्था को समाप्त करने की दिशा में अगर जातिगत आरक्षण एक उत्प्रेरक है तत्व है तो दूसरी ओर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश सामाजिक इंजीनियरिंग के लिए महत्वपूर्ण घटक सिद्ध होगा। कुल मिलाकर कल्याणकारी राज्य की कल्पना को आकार देने के लिए माननीय न्यायालय का नजरिया प्रत्येक नागरिक के बीच सामाजिक आर्थिक राजनीतिक परिपेक्ष्य में बेहद प्रभावशाली फैसला है। यह भारत संदर्भ में टर्निंग प्वाइंट सिद्ध होगा।

6.11.22

कुंठा विध्वंसक ही होती है..?

कुंठा क्रोध मिश्रित हीन भावना है। जो अभिव्यक्त की जाती है कुंठा के दो भाग होते हैं एक अभिव्यक्त और दूसरी अनाभिव्यक्त..! कुंठित मस्तिष्क हताशा का शिकार होता है। कुंठित लोग जब भी बात करते हैं तो भी आरोप-प्रत्यारोप शिकायत और आत्म प्रदर्शन पर केंद्रित चर्चा करते हैं। कुंठित लोगों में सकारात्मकता की बिल्कुल भी मौजूदगी नहीं होती। जो भी कुंठित होता है उसके चेहरे में आप ओजस्विता कभी भी महसूस नहीं कर सकते। अगर कोई कुंठित व्यक्ति आपके सामने आता भी है तो आपको उसे पहचानने में विलंब नहीं करना चाहिए। वैसे विलंब होता भी नहीं है। क्योंकि जब कोई कुंठित व्यक्ति आपके सामने आएगा तो आप भौतिक रूप से उसके औरे से ही पहचान जाएंगे कि व्यक्ति नकारात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन कर रहा है। इसके प्रतिकूल यदि आप एक संतृप्त एवं सकारात्मक व्यक्तित्व से मिलेंगे तो आपको उसे बार-बार मिलने का जी चाहेगा। किसी भी व्यक्ति का जीवन उसके व्यक्तित्व को पूरी तरह से प्रदर्शित करता है। सामान्यतः मेरी तरह कई लोग कई लोगों से घृणा नहीं करते परंतु कुछ व्यक्तित्व दिन भर में जब मिलते हैं तो उनमें से आजकल 50% व्यक्ति नकारात्मक ऊर्जा से भरे नजर आते हैं। कुंठित व्यक्ति अक्सर जिन वाक्य  प्रयोग करते करते हुए सुनाई दे जाएंगे- "मुझे पहले बताया होता तो यह स्थिति नहीं होती..!" अथवा यह है कि आपने गलत व्यक्ति को चुना था, इसके अलावा कुंठित व्यक्ति किसी भी व्यक्ति के प्रति सकारात्मक अभिव्यक्ति करता ही नहीं है। एक राजनेता है जो अक्सर कहते हैं -"सब मिले हुए हैं..!"
  कुंठित व्यक्ति को हमेशा दूसरों में दोष दिखाई देते हैं। जबकि सकारात्मक व्यक्तित्व का धनी व्यक्ति हमेशा दूसरों के प्रति सहृदयता सद्भावना और उत्सवी व्यवहार से परिपूर्ण करता है।
  कल किसी से मेरी दूरभाष पर चर्चा हो रही थी। चर्चा के दौरान ज्ञात हुआ कि वे बहुत विद्वान हैं । उन्होंने ही बताया कि उनके द्वारा  ढेरों पुस्तकें लिखीं हैं। उनकी बातों से लगा मानों कि-" वे दुनिया से नाराज़ हैं..!' 
   उनकी कुंठा का आधार यह था कि उन्हें किसी भी प्रकार की पहचान नहीं मिल पाई है। 
   हर उस व्यक्ति को आप कुंठित पाएंगे जो यह महसूस करता है कि उसकी उपब्धियों को अथवा उसके कार्यों को कोई पहचान नहीं मिल रही है। ऐसा व्यक्ति सदा 
      -" आप हर दूसरे तीसरे व्यक्ति के समक्ष शिकायत लेकर खड़े हो जाएं।" कुंठा एक तरह  से मानसिक बीमारी है। इस तरह की बीमारी का रोगी वही होता है जो अपेक्षा करता है। अत्यधिक अपेक्षाएं कुंठा को जन्म देती है। जबकि गीता में यह कहा गया है- "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन...!" 
   वर्तमान जीवन क्रम लगातार परिवर्तनशील है। आप एक महान लेखक हैं आप एक महान दार्शनिक हैं आप एक महान कवि हैं चित्रकार है गायक हैं तो यह जरूरी नहीं कि आपको तानसेन या सर्वोत्तम ही माना जाए। तानसेन के गुरु स्वयं नेपथ्य में रहना पसंद करते थे। गुरु के सापेक्ष उनके शिष्य तानसेन की प्रसिद्धि सर चढ़कर बोलती थी। परंतु गुरु कुंठित नहीं थे। ऐसे हजारों उदाहरण हैं। प्रेमचंद ने उपन्यास कहानियां लिखे हैं तब जाकर उन्हें प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। इसी के सापेक्ष चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी.. "उसने कहा था..!" न केवल शर्मा जी को अमर कर दिया वरन कहानी ने भी हजारों हजार मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ी है। तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो मुंशी प्रेमचंद कुंठित नहीं हुए होंगे अपनी समकालीन सुप्रसिद्ध लेखकों के सापेक्ष वे अपना कर्म करते रहे और परिणाम की भी अपेक्षा उन्होंने नहीं की। प्रोफेसर चंद्रमोहन जैन जिन्हें भगवान रजनीश ओशो रजनीश आदि आदि नाम से जानते हैं उनके  यूनाइटेड स्टेट से वापसी के बाद के वक्तव्य कुंठित व्यक्तित्व का उदाहरण है जो आज के इस आलेख के लिए समीचीन है। यह तो रही महान लोगों की महान बातें।  अगर हम देखें तो श्रेष्ठता कभी भी अंतिम नहीं होती। श्रेष्ठता सदैव निरंतरता के साथ अनंतिम होती है। श्रेष्ठता जिसे प्राप्त हो जाती है वह अगर सकारात्मक है तो प्रभावशाली होता है और अगर उसके व्यक्तित्व में नकारात्मक  होती हैं तो वह कुंठित हो जाता है। जीवन में सर्वश्रेष्ठ होता है एकात्मता का भाव जो कुंठित व्यक्ति कभी नहीं ला सकते। क्योंकि जैसे ही मन में नकारात्मकता का प्रभाव बढ़ता है तो हमारा व्यक्तित्व आकर्षण हीन हो जाता है। यह की लोगों से दूर होने लगते हैं। चलिए इस क्रम में कुंठा के दोनों प्रकारों का थोड़ा सा विश्लेषण कर लेते हैं-
*अभिव्यक्त कुंठा* :- अभिव्यक्त कुंठा व्यक्तित्व को छत्तीसगढ़ करती है। जिसका विश्लेषण हमने ऊपर कर ही चुके हैं। आपकी मिलनसारिता बेहद नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है और इसका असर डीएनए पर भी पड़ता है। समाज में अभिव्यक्त कुंठा के संवाहक लोगों के कारण राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पर भी बेहद नकारात्मक प्रभाव देखा गया है। इसका एक ताजातरीन उदाहरण है पाकिस्तान की स्थिर सामाजिक राजनीतिक परिस्थिति। इसके अलावा चीन में भी ऐसी ही परिस्थिति निर्मित है। और तो और आप यूनाइटेड किंगडम के संदर्भ में गंभीरता से विचार करें तो वहां की socio-economic संरचना बेहद नकारात्मक रूप से कुंठित मानसिकता के कारण प्रभावित हुई है इसका विश्लेषण अलग तरह से किया जा सकता है वर्तमान में हम अभिव्यक्त कुंठा पर अपनी चर्चा सीमित रखते हैं। सामाजिक संदर्भों में देखा जाए तो अत्यधिक महत्वाकांक्षा जो कुंठा के रूप में अभिव्यक्त भी हो जाती है कि परिणिति तानाशाही वाले राष्ट्रों में नजर आती है। अत्यधिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए दबाव पैदा करना मनुष्य की प्रवृत्ति है। मौलिक रूप से कुंठा का उत्पादन वैयक्तिक होता है, और धीरे-धीरे यह सर्वजनिक एवं सामाजिक विकृति के स्वरूप में परिवर्तित हो जाता है।
अनाभिव्यक्त-कुंठा :-अनाभिव्यक्त - कुंठा, मनुष्य के मस्तिष्क मस्तिष्क में मौजूद रहती है। व्यक्ति उसे अभिव्यक्त नहीं करता परंतु वह अवसर मिलते ही नुकसान करने में पीछे नहीं होता। ऐसे गुण पॉलीटिशियन में सर्वाधिक मात्रा में पाए जाते हैं। परंतु पिछले कई दिनों से यह देखा जा रहा है बहुतेरे लोग इस तरह के मनोरोग से भी ग्रसित हैं। इसे हम 1 मुहावरे से समझ सकते हैं जिसमें यह कहा गया है मुंह में राम बगल में छुरी। सामान्यतः कुंठित लोग सीधे प्रतिरोध ना करते हुए अवसर की तलाश करते हैं। ऐसे लोग आपको सामान्य रूप से कहीं भी मिल जाते हैं। अनाभिव्यक्त-कुंठा कई बार लंबे समय तक मन में पलती है और फिर कभी अचानक भयानक स्वरूप में विस्फोट करती है। यह विस्फोट सब कुछ खत्म करने की सीमा तक बढ़ जाता है। अनाभिव्यक्त-कुंठा सामाजिक व्यवस्था को तहस-नहस भी कर सकती है। इसका सर्वोच्च उदाहरण महाभारत का प्रमुख पात्र धृतराष्ट्र है। धृतराष्ट्र के अलावा आपने रावण के चरित्र की समीक्षा की ही होगी? रावण का चरित्र कुछ ऐसा ही था। मुझे रावण में ज्ञान नैतिक बल योग्यता और क्षमता की बिल्कुल भी कमी नजर नहीं आती। परंतु स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने की कुंठा रावण के साम्राज्य का अंत की वजह बनी। ठीक उसी तरह मध्यकाल में उत्तर मध्य काल में ऐसे कई सारे उदाहरण देखने को मिल जाएंगे।
  लोग कुंठित क्यों हो जाते हैं?
वर्तमान समय के परिपेक्ष में देखा जाए तो लोगों में कुंठा का कारण अत्यधिक स्पर्धा है। भौतिकवादी व्यवस्था में सर्वाधिक कुंठा का समावेश होता है। जबकि अध्यात्मिक चिंतनशील का कुंठा का दमन करती है। यहां तक कि जो आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विचार करते हैं वह कुंठित नहीं होते। कुंठित व्यक्ति विध्वंस कर सकते हैं परंतु नव निर्माण की उनसे उम्मीद करना बेकार है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि कुंठा किसी भी विकास का आधार हो ही नहीं सकती। 
   

29.10.22

मेरा मालिक मुझसे कभी नाखुश नहीं होता...!


   सिर्फ पूजा इबादत प्रार्थना से खुश नहीं होता
मेरा मालिक मुझसे कभी नाखुश  नहीं होता।
              *गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
   तुम ईश्वर वादी हो मैं भी उसकी सत्ता को अस्वीकृत नहीं करता । कोई भी व्यक्ति उसकी सत्ता के बाहर नहीं। मुझसे यह मत पूछना कि-" नास्तिक भी...?"
   मुझसे मत पूछो इन लिखे हुए अक्षरों पर विश्वास मत करो। इसका अनुभव प्राप्त करो "अप्प दीपो भव..!"
  चलो जिद्द  कर रहे हो तो बता देता हूं हां सर्वोच्च सत्ता ईश्वर की है । उसे अस्वीकार्य करने वाला नास्तिक अपनी ओर से दावा कर रहा है न ईश्वर ने कहा।
  ईश्वर न होने का दावा तो आप भी कर सकते हो? मैं भी हम सब कर सकते हैं।
नास्तिक इसी आधार पर पूछते हैं- ईश्वर तत्व के अस्तित्व ही होने के कोई प्रमाण है क्या?

   हां मेरे पास प्रमाण है ईश्वर के। हो सकता है कि तुम उन्हें अपने तर्कों से भरे तरकश से तीर निकाल निकाल कर खंडित करने के प्रयास करो। मुझे इसका भय नहीं है।
किसी भी सृजन का एक सृजक होता है जिसे करता कहते हैं। जरूरी नहीं है कि वह व्यक्ति हो वह परिस्थिति भी हो सकता है? वह पावर भी हो सकता है कुछ भी हो सकता है। मैं तो उससे पावर के रूप में पहचानने की कोशिश करता हूं आप भी यही करते होंगे। सभी जानते हैं कि ईश्वर शक्तिमान सर्व शक्तिमान अनुभूति है। उसका आकार वजन विस्तार अर्थात उसका क्षेत्रफल कोई नहीं जान सकता परंतु भारतीय जीवन दर्शन और अध्यात्मिक दर्शन ईश्वर तत्व विस्तारित पाता है उसे कण-कण में व्याप्त होने के सिद्धांत को मानता है। आप किसी धर्म  संप्रदाय पंच कुछ भी कह सकते हैं कोई फर्क नहीं पड़ता। परंतु इतना तय है कि तत्व ही पूर्ण है। इसे समझने के लिए हम अपनी पूजन प्रक्रिया को देखें विशेष तौर पर पूजन प्रक्रिया के अंतर को देखें जब हम अपनी पूजन प्रक्रिया पूर्ण करते समय यही दोहराते हैं  न -
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
श्लोक का अर्थ क्या है ?
यही न कि अब पूजा पूरी हो गई है अब हमें अन्य कार्य करनी चाहिए ? यही सोच रहे हो न तो गलत हो ?
  इसका अर्थ यह है कि तुम आश्वस्त हो जाओ
सब कुछ उस पूर्ण पर छोड़ दो जो संपूर्ण विश्व का संचालन करता है। जीवन की दैहिक भौतिक जरूरतों को पूरा करो। ईश्वर ठीक ऐसे ही मेरा विश्वास है। ईश्वर की आराधना को लेकर पूजन प्रणाली या पूजन प्रणालियों का आप और हम अनुसरण करते हैं इस विषय पर फिर कभी बात करेंगे अभी तो हम यह जान लें कि ईश्वर तत्व संपूर्ण विश्व में ही नहीं बल्कि अखिल ब्रह्मांड में सर्वोच्च सत्ता स्थापित करता है
..   पूर्ण और पूर्ण की पूर्णता ब्रह्म और ब्रह्म तत्व का एहसास है ईश्वर। श्लोक का अर्थ भी यही है शाब्दिक अर्थों में तो यही हुआ ना कि पूर्ण में से पूर्ण को निकाल दो तब भी पूर्ण बचेगा...!
   इस इस लोक का एक अन्य महत्वपूर्ण अर्थ भी है,,,,जो पूर्ण बचता है वह बचता नहीं है...! वास्तव में वह  पूर्ण ही है। ध्यान से समझो मैंने पूर्ण की बात की है जो पूर्ण है वही तो ईश्वर है और तुम्हें केवल पूर्णता का अनुभव बस करना है । तुम्हारे नास्तिक होने न होने से मेरा कोई सरोकार नहीं है। मेरा सरोकार तो केवल इस बात से है कि-" बस इतना जान लो कि आधा अधूरा अर्थात अपूर्ण कुछ भी नहीं था न है और न रहेगा। वैज्ञानिक अनुसंधान और  ने सिद्ध कर दिया है कि-" चंद्रमा सदैव पूर्ण रहता है लेकिन यह बेहद परीक्षण के बाद किया। पर पूर्ण विकसित ऋषियों के मस्तिष्क विज्ञान की खोज के पहले ही यह सिद्ध कर दिया था कि केवल प्रकाश का खेल है वरना चंद्रमा पूरे महीने भर प्रकाश दे सकता था। बहुत कम उम्र में एक कविता लिखी थी मुझे उस वक्त इस कविता का अर्थ भी नहीं मालूम था , उस कविता की एक पंक्ति है -
दर्पण के लघुत्तम कण
अर्पण के उत्तम क्षण
बिखर टूट जाते हैं।
हर कण में क्षण-स्मृति..
हर क्षण की कण - स्मृति..!
अक्सर तनहाई में
बाक़ी रह जाती है...
बाक़ी रह जाती है.. !
     जो ना तुम्हें दिखाना मुझे दिखा और लाखों लोगों की जिंदगी खतरे में हो गई। जी हां मैं कोविड-19 के विषाणु की बात कर रहा हूं। चलो प्लेग की बात कर लेते हैं आपने देखा? नहीं देखा पर वह घातक था। बहुतेरे लोगों के प्राण हर लिए थे उसने। हां भई ! मैं कोविड-19 के विषाणु या 100 साल पहले फैले प्लेग के बारे में ही कह रहा हूं। चलो अनदेखा वायरस पोलियो जिस का शिकार मैं भी उसे भी तो किसी ने नहीं देखा क्यों नहीं दिखता वह अस्तित्व नहीं है ऐसा आप कैसे कह सकते हैं ?
   दुनिया में न कभी कुछ रुकेगा न ही कोई उसे रोक सकता है। बस कुछ बायोलॉजिकल   फिजिकल, कुछ मेंटल, सोशल पॉलीटिकल इकोनॉमिकल बदलाव ही होते हैं, ऐसे  हर एक बदलाव का अगले नवनिर्माण से सीधा संबंध होता है । लोग सोचते हैं कि-' हमारा स्वप्न टूट गया हम काम पूरा नहीं कर पाए।'
   कुछ लोग किसी को पराजित होता दिल उसे ही दोष देने लगते हैं। यह सब गलत बात है। सत्य तो यह है कि जिसे जो करना है जिसमें जिसे जो सफलता मिल गई है उसका मूल्यांकन करना किसी के बस की बात नहीं है। चलिए सीधे विषय पर लौटते हैं... जितना अब तक पढ़ लिया है उसे छोड़ दो भूल जाओ विराट को जानने के लिए आत्मज्ञान की जरूरत है। आपको याद है न.... बुल्ले शाह गली कूचे में गाता फिरता था..." बुल्ला की जाणा मैं कौन ?"
   विज्ञान अंतरिक्ष अंतरिक्ष खोजता है विज्ञान समंदर खोजता है पर विज्ञान एक बूंद पानी के रहस्य को नहीं जानता। जबकि योगी ध्यान मग्न होकर पृथ्वी से आकाश के पिंडो की दूरी का अनुमान लगा चुके थे। तुम कहते हो सूर्य सर्वशक्तिमान है, समझते भी होना? परंतु ऐसे अनंत सूर्य है जिनके अनंत ग्रह है उनके अनंत उपग्रह है विज्ञान कह रहा है मैं नहीं। तो ब्रह्म सकता है न इस वक्त तो है न बहुत दूर भटकने की जरूरत नहीं है। जान लो कि ब्रह्म निरंकार है ईश्वर तत्व यानी ब्रह्म महाशक्ति है। ब्रह्म का चिंतन करो बाहर नहीं मिलेगा ध्यान मग्न होकर निर्विकार देखोगे तो विश्वास के साथ कह दोगे-
सिर्फ पूजा इबादत प्रार्थना से खुश नहीं होता
मेरा मालिक मुझसे कभी नाखुश  नहीं होता।
     
     

26.10.22

ब्रेकिंग न्यूज़ की खूंटी से लटके टीवी चैनल्स

 *ब्रेकिंग न्यूज़ के खूंटी से लटके टीवी चैनल्स*
             गिरीश बिल्लोरे मुकुल
  25 अक्टूबर 2022 को लगभग डेढ़ घंटे के लिए व्हाट्सएप सेवाएं बाधित हुई हो सकता है कोई तकनीकी कारण रहा हो परंतु एक मुद्दा तुरंत मिल गया खबरिया चैनल्स को। मुझे तो लगा कि कहीं ऐसा ना हो कि शाम तक अगर व्हाट्सएप चालू ना हो तो पक्का राष्ट्रीय शोक की घोषणा करने के लिए सारे खबरिया चैनल एकजुट न हो जाए विराम
ब्रिटेन की प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद से एक दिन पहले तो ऋषि सुनक की खूंटी  पर सारे के सारे चैनल लटके नजर  आ रहे थे कि अचानक व्हाट्सएप की सेवाएं बंद हो गई लगभग एक घंटा 30 मिनट के आसपास खराब एवं अवरुद्ध सेवाओं के दौरान हंगामा खड़ा हो गया। पैनिक क्रिएशन इतना तेजी से हुआ कि- लोग घबरा गए. सभी जले हुए थे कि कहीं उनका डाटा गायब न हो जाए ?
ट्विटर पर मैंने लोगों को सलाह दी कि भैया कुछ घर परिवार के काम कर लो अगर व्हाट्सएप नहीं है तो थोड़ा सा रिलैक्स तो मिला। पर कहां लोगों की आत्मा बेहद कुंठित ही हो गई थी। हमारे खबरिया चैनल ने  एक दृश्य पैनिक क्रिएट कर दिया।
  एक ओर व्हाट्सएप चलाने वाली मेटा कंपनी के लोग हड़बड़ा कर सुधारने की कोशिश कर रहे थे, दूसरी ओर खबर-रटाऊ रुदाली चैनल्स ने अपने अखंड रुदाली होने का दायित्व निभाया। मुझे तो लगा कि कहीं अगर रात तक या एक-दो दिन व्हाट्सएप ना चला तो कहीं ऐसा ना हो कि सरकार को राष्ट्रीय शोक घोषित करना पड़े..!
   एक टेलीविजन चैनल तो परमाणु बम पटके जा रहा है। रोज वह समाचार बदल बदल कर बताता है कि -" विश्व परमाणु युद्ध के कगार पर है..!"
  आप सबको याद होगा स्वर्गीय राजू श्रीवास्तव ने इन चैनल्स के बारे में जबरदस्त कॉमेडी की है । आपको यह भी याद होगा कि  एक चैनल की महिला संवाददाता ने किसी महिला  आई एफ एस अधिकारी के मुंह में माइक लगा दिया और सवाल पूछने लगी। वैसे आपको एक बात मैं ऐसा बता दूं कि यह खबरिया चैनल महिलाओं के प्रति सकारात्मक भाव रखते हैं। दोपहर में सास बहू देवरानी जेठानी के कार्यक्रम उनके हाईलाइट दिखा कर मध्यमवर्गीय महिलाओं को बांधे रहने की ड्यूटी बखूबी निभाते हैं। जबकि शाम को पुरुष अगर समाचार देखना भी चाहे तो उसे सिवाय लड़ाई झगड़े के कुछ नहीं मिलता। चार-पाँच पैनलिस्ट आमंत्रित किए जाते हैं, जो वास्तव में खबरिया चैनलों के लिए एक तरह का प्रोडक्ट होते हैं उनके मुंह से जो चाहे उगलवाने में माहिर होस्ट कभी गंभीर विषय पर चर्चा करते नजर नहीं आए। शाम की डिबेट देखना पुरुषों के लिए बड़ा घातक तक हो जाता है। कई मित्र कहते हैं कि - "हमने टीवी देखना छोड़ दिया।" स्वाभाविक भी है लड़ाई झगड़ा देखते रहना किसे पसंद होगा।
   खबरिया चैनलों की रिस्पांसिबिलिटी है कि वे सुव्यवस्थित तरीके से कार्यक्रम प्रस्तुत कर संपूर्ण विषयों पर केंद्रित जानकारियां प्रस्तुत करें। परंतु उनके विषय फिक्स होते हैं। किसी खबरिया चैनल ने यह नहीं बताया कि केवल रुपया नहीं बल्कि विश्व की सभी करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर होती जा रही है। अगर किसी ने दिखाया भी होगा तो भारत के वित्त मंत्री के भाषण के बाद। अर्थात कुल मिलाकर महत्वपूर्ण विषयों पर विशेषज्ञता ना होने के कारण खबरिया चैनलस कटघरे में खड़े हुए हैं। अगर आप गंभीरता से विचार करें तो पाएंगे कि सामाजिक मुद्दों स्पेस ना के बराबर मिलता है। हमारे एक मित्र अक्सर कहते थे-" कुत्ते ने आदमी को काटा यह कोई खबर ही नहीं है, आप तो बताओ किसी आदमी ने कुत्ते को काटा हो तो? बढ़िया चटपटी खबर बनेगी।
   भारतीय मीडिया अब एग्रेसिव मीडिया हो गया है पश्चिमी मीडिया की तरह। हमें अनुशासन का ध्यान रखना चाहिए ताकि विजुअल जर्नलिज्म खतरनाक स्थिति तक ना पहुंच जाए। देखिए कब तक हम समाचारों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार करते रहेंगे। खास तौर पर खबरीले चैनलस् को अनुशासन पर रहने की जरूरत है।

25.10.22

Rishi Sunak proved the claims of Winston Churchill wrong

Winston Churchill had said that the people of India cannot be politically strong and he is not capable of running this power. Rishi Sunak has proved this fact to be false. 
The most serious problem for the newly elected Prime Minister of Britain, Rishi Sunak, will be the energy crisis in Britain.
  The UK economy is going through a serious crisis these days.Our best wishes to Rishi Sunak and Sunak family on the occasion of Diwali. We are sure that Rishi Sunak will establish the image of an honest Hindu by taking England out of the crisis of the economy.Now no Prime Minister of India will have to go to England to praise the education system there.This is the second achievement that Indians have achieved political status in Europe.Rishi Sunak is the first Hindu after Kamala Harris to achieve this feat. Now no prime minister or political figure should feel ashamed of calling himself a Hindu, I hope so.
The situation in UK cities has become such that there is a very deep energy crisis.It would be wrong to consider white superior in the changing global situation.Rishi Sunak had provided stability to the UK economy in his capacity as Finance Minister and he made important contributions to deal with the problems of Kovid-19.The rate of Pound in Hindi in UK against Dollar is very low relative to India.Free trade agreement with India is also currently pending.Rishi Sunak has a plethora of problems as the Prime Minister.Britain is grappling with China's problems, including transportation, medical facilities, unemployment and public distrust of the government.How Rishi Sunak can conquer all the issues, it will be proved by his hard work and dedication.The Indian people will definitely like Rishi Sunak becoming the Prime Minister of the United Kingdom, but we should believe that a Prime Minister will work within his own limits.Under no circumstances will the British constitution be separated and it is necessary for them to do so.
   Rishi Sunak is basically used to taking tough decisions. He will not do anything that is against Britain's internal and international policy.
Rishi Sunak also has to deal with internal crises within the Conservative Party. On the other hand, power has to be protected from the aggressive attitude of the Labor Party.This is a different challenge.Overall, it is the goal of Rishi Sunak to establish himself in 2 years.If media reports are to be believed, it is known that when Boris Johnson wanted him to go to the post of Prime Minister again, but Rishi Sunak did not agree to his proposals. You must have heard that - "Later Boris Johnson found himself unsuitable as well.Boris Johnson said that he wants to be Prime Minister but at present he does not feel capable to fulfill this responsibility.That is, he wants to be the Prime Minister in a comfort zone. He also claims that he will definitely lead the party in the 2024 general elections.If Rishi succeeds even 50% in his tenure, then it is certain that Boris Johnson's dream will remain a dream.
Overall, you know that Rishi Sunak will definitely take some difficult decisions in the near future, apart from India, changes can be expected in his relations with South Asia and the Middle East.

24.10.22

नारी स्वातंत्र्य नहीं नारी सशक्तिकरण

 




    ईरान के घटनाक्रम को हम देखते हैं तो हमें एक नवीन क्रांति का प्रादुर्भाव होता दिखाई देता है। परंपराएं क्या है? परंपराएं किस हद तक अपनाई जानी चाहिए? परंपराओं में परिवर्तन और परिवर्द्धन के तरीके क्या है? इन सभी सवालों का उत्तर मैं अपने चिंतन के आधार पर यहां प्रस्तुत करना चाहता हूं
*परंपराएं क्या है*:- 

  परंपराएं समकालीन व्यवस्था के लिए प्रावधान हैं जो समय अनुकूल परिस्थिति मैं सम्यक रूप से लागू होती हैं। परंतु अगर परिस्थिति बदलती है और बदली हुई परिस्थिति में कोई परंपरा  लंबे समय तक अगर जारी रहती है अथवा इसे जारी रखा जाता है तो परंपरा -"रूढ़ी" के रूप में प्रतिष्ठित हो जाती हैं।
  इस क्रम में यह सुझाव अनुकूल है कि परंपराओं का विश्लेषण समय-समय पर होते रहना चाहिए और अगर परिवर्तनशील परिस्थितियों में परंपरा में
परंपराएं किस हद तक अपनाई जानी चाहिए यह सुनिश्चित किया जा सके, साथ ही साथ  परंपराएं कठिन परिस्थितियों का निर्माण ना कर पाऐं..!
  महिलाओं के संदर्भ में देखा जाए तो उनके लिए बनाए गए सारे नियम सनातन में अन्य संप्रदाय के सापेक्ष बेहद बहुविकल्पीय एवं परिवर्तनशील होते हैं। घूंघट प्रथा के बारे में विचार करें तो क्या आपको स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि भारत में यह प्रथा आदिकाल से नहीं थी। पूर्व मध्यकालीन भारत से मध्य कालीन भारत तथा कुछ हद तक अफगानी एवं पूर्णतया चंगेज खान के काल में भारतीय सामाजिक व्यवस्था में पर्दा प्रथा प्रारंभ हुई। अरब में चंगेज खान का आक्रमण बुर्का प्रणाली का जनक रहा है। चंगेज खान पूरे विश्व में अपने कबीले के डीएनए को विस्तारित करना चाहता था। वह असभ्य एवं बर्बर प्रजाति का लुटेरा था..न की चंगेज खान कोई मुसलमान था। चंगेज खान और उसकी सेना नहीं अरब में सर्वाधिक हिंसक एवं यौन शोषण संबंधी अपराधों को कारित किया था। उसके फलस्वरूप  ऐसी संताने जन्मी जो कुछ लोग कहते हैं कि मुगलों के रूप में बाद में प्रतिष्ठित हुई? यदि यह सही भी है अथवा नहीं भी तब भी महिलाओं की बाध्यता थी कि- "तत्सम कालीन परिस्थितियों में महिलाओं को परदे में रखा जाए।" यह एक मनोवैज्ञानिक और तात्कालिक आवश्यकताओं की परिणिति थी।

परंपराएं किस हद तक अपनाई जानी चाहिए

   भारतीय जीवन दर्शन के अनुसार परंपराएं ठीक उसी तरह से और ऊंची सीमा के भीतर स्वीकार करनी चाहिए जितना उसे सहने की क्षमता हो। उदाहरण के तौर पर अगर एक थैली में आप 5 किलो भार उठा सकते हैं तो आप उससे ही कम  या उसके बराबर हो जो थैली कि भार-क्षमता के अनुकूल हो। एक और विश्व में जहां महिला सशक्तिकरण और विकास में महिलाओं की सक्रिय एवं समानांतर भागीदारी सिद्ध हो रही है वही आप महिलाओं को विभिन्न प्रतिबंधों से अगर जोड़ेंगे तो उत्तर है कि विद्रोह और विवाद स्वभाविक है। हम जिस विषय पर चर्चा कर रहे हैं किसी धर्म संप्रदाय  डॉक्ट्रिन अथवा पंथ के निर्देश से संबंधित ना होकर वर्तमान सामाजिक आवश्यकताओं पर केंद्रित है। बदलते परिवेश में अगर आप और दबाव की स्थिति उत्पन्न करेंगे तो दबाव विस्फोटक होगा। और यह विस्फोट आपको भरेगी बुरा लगे परंतु यह विस्फोट परिवर्तन का आधार होता है। भारतीय सनातनी पौराणिक कथाओं में आपने देखा होगा कि अत्यधिक शारीरिक मानसिक हिंसा एवं दबाव की प्रतिक्रिया होती हैं। प्रतिक्रिया का परिणाम कभी-कभी भीषण और विप्लवी हो जाती है। फिर होता है विध्वंस और यही  विध्वंस एक नए निर्माण का प्रवेश द्वार है

मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हिंसक क्रांति या होनी चाहिए रक्त पास होना चाहिए परंतु यह स्वभाविक घटनाएं हो सकती हैं अतः  सामाजिक व्यवस्था में धर्म एवं संप्रदायों के निर्देशों पर आधारित परंपराओं की आड़ में किसी भी तरह की अतिवादी परंपरा को प्रश्रय ना दिया जाए।

*परंपराओं में परिवर्तन और परिवर्द्धन के तरीके क्या है..*
   जैसा ऊपर बताया कि परंपराओं की निरंतर समीक्षा होनी चाहिए ऐसी स्थिति में परिवर्तन और परिवर्धन के लिए विशेष प्रयास की आवश्यकता नहीं होती। उदाहरण के तौर पर इसे ऐसा समझिए कि यदि आप रोज वस्त्र को धोते हैं तो उसे आप हमेशा सच ही रखते हैं वरना आपको वस्त्र परिवर्तन शीघ्रतम करने की आवश्यकता पड़ती है। फिर अगर परिस्थिति वश आप किसी भी परंपरा का पालन करने के लिए बाध्य हैं तो उसके स्वरूप में उपलब्ध संसाधन एवं परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन कर लेना सनातन व्यवस्था में प्रतिबंधित कदापि नहीं है। आपने देखा होगा कि हमारी बहुत सारी पौराणिक कथाएं बहुत सारे संकेत देती हैं। राजा हरिश्चंद्र एवं तारामती की कहानी बेहद उल्लेखनीय है। राजा हरिश्चंद्र डोम राजा के कर्मचारी हुए उनका काम था चिता के अंतिम संस्कार में सहायता करना तथा शमशान व्यवस्था के लिए कर अथवा शुल्क वसूल करना। तारामती के पुत्र का आकस्मिक देहावसान करने पर तारामती को अंतिम संस्कार करना था। सामान्यतः अंतिम संस्कार की प्रक्रिया दिन में निष्पादित की जाती है। रात्रि में निष्पादन न करने के बहुत सारे कारण हैं। यह कोई तांत्रिक बाध्यता नहीं है। अंतिम संस्कार रात्रि काल में भी हो जाते हैं और किए जा सकते हैं। सामान्यतः दिन में इसलिए यह कार्य कर आना चाहिए क्योंकि प्राचीन भारत में विद्युत उपलब्ध न थी रात्रि काल जटिल होते थे। कहने का आशय है कि सनातन विकल्प युक्त सामाजिक दक्षिणी एवं अध्यात्मिक व्यवस्था है। यहां तारामती ने अपने पुत्र का अंतिम संस्कार किया, तथा शुल्क स्वरूप साड़ी का हिस्सा फाड़ कर दिया। कुल मिलाकर व्यवस्था बिल्कुल साफ है कि-" श्मशान में नारी का जाना वर्जित है परंतु यह पूरी तरह से नहीं। अगर हिंदू धर्म में पूर्ण रूप से इस बात की वर्जना होती तो तारामती को शमशान जाना अनुचित था । अंतिम संस्कार का अधिकार केवल पुरुषों को है ऐसा नहीं अंतिम संस्कार का अधिकार परिवार की महिलाओं को भी होता है और यही महिला सशक्तिकरण का ही संकेत एक उदाहरण है जो प्राचीन व्यवस्था में समाहित है।


 

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