ब्रेकिंग न्यूज़ की खूंटी से लटके टीवी चैनल्स

 *ब्रेकिंग न्यूज़ के खूंटी से लटके टीवी चैनल्स*
             गिरीश बिल्लोरे मुकुल
  25 अक्टूबर 2022 को लगभग डेढ़ घंटे के लिए व्हाट्सएप सेवाएं बाधित हुई हो सकता है कोई तकनीकी कारण रहा हो परंतु एक मुद्दा तुरंत मिल गया खबरिया चैनल्स को। मुझे तो लगा कि कहीं ऐसा ना हो कि शाम तक अगर व्हाट्सएप चालू ना हो तो पक्का राष्ट्रीय शोक की घोषणा करने के लिए सारे खबरिया चैनल एकजुट न हो जाए विराम
ब्रिटेन की प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद से एक दिन पहले तो ऋषि सुनक की खूंटी  पर सारे के सारे चैनल लटके नजर  आ रहे थे कि अचानक व्हाट्सएप की सेवाएं बंद हो गई लगभग एक घंटा 30 मिनट के आसपास खराब एवं अवरुद्ध सेवाओं के दौरान हंगामा खड़ा हो गया। पैनिक क्रिएशन इतना तेजी से हुआ कि- लोग घबरा गए. सभी जले हुए थे कि कहीं उनका डाटा गायब न हो जाए ?
ट्विटर पर मैंने लोगों को सलाह दी कि भैया कुछ घर परिवार के काम कर लो अगर व्हाट्सएप नहीं है तो थोड़ा सा रिलैक्स तो मिला। पर कहां लोगों की आत्मा बेहद कुंठित ही हो गई थी। हमारे खबरिया चैनल ने  एक दृश्य पैनिक क्रिएट कर दिया।
  एक ओर व्हाट्सएप चलाने वाली मेटा कंपनी के लोग हड़बड़ा कर सुधारने की कोशिश कर रहे थे, दूसरी ओर खबर-रटाऊ रुदाली चैनल्स ने अपने अखंड रुदाली होने का दायित्व निभाया। मुझे तो लगा कि कहीं अगर रात तक या एक-दो दिन व्हाट्सएप ना चला तो कहीं ऐसा ना हो कि सरकार को राष्ट्रीय शोक घोषित करना पड़े..!
   एक टेलीविजन चैनल तो परमाणु बम पटके जा रहा है। रोज वह समाचार बदल बदल कर बताता है कि -" विश्व परमाणु युद्ध के कगार पर है..!"
  आप सबको याद होगा स्वर्गीय राजू श्रीवास्तव ने इन चैनल्स के बारे में जबरदस्त कॉमेडी की है । आपको यह भी याद होगा कि  एक चैनल की महिला संवाददाता ने किसी महिला  आई एफ एस अधिकारी के मुंह में माइक लगा दिया और सवाल पूछने लगी। वैसे आपको एक बात मैं ऐसा बता दूं कि यह खबरिया चैनल महिलाओं के प्रति सकारात्मक भाव रखते हैं। दोपहर में सास बहू देवरानी जेठानी के कार्यक्रम उनके हाईलाइट दिखा कर मध्यमवर्गीय महिलाओं को बांधे रहने की ड्यूटी बखूबी निभाते हैं। जबकि शाम को पुरुष अगर समाचार देखना भी चाहे तो उसे सिवाय लड़ाई झगड़े के कुछ नहीं मिलता। चार-पाँच पैनलिस्ट आमंत्रित किए जाते हैं, जो वास्तव में खबरिया चैनलों के लिए एक तरह का प्रोडक्ट होते हैं उनके मुंह से जो चाहे उगलवाने में माहिर होस्ट कभी गंभीर विषय पर चर्चा करते नजर नहीं आए। शाम की डिबेट देखना पुरुषों के लिए बड़ा घातक तक हो जाता है। कई मित्र कहते हैं कि - "हमने टीवी देखना छोड़ दिया।" स्वाभाविक भी है लड़ाई झगड़ा देखते रहना किसे पसंद होगा।
   खबरिया चैनलों की रिस्पांसिबिलिटी है कि वे सुव्यवस्थित तरीके से कार्यक्रम प्रस्तुत कर संपूर्ण विषयों पर केंद्रित जानकारियां प्रस्तुत करें। परंतु उनके विषय फिक्स होते हैं। किसी खबरिया चैनल ने यह नहीं बताया कि केवल रुपया नहीं बल्कि विश्व की सभी करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर होती जा रही है। अगर किसी ने दिखाया भी होगा तो भारत के वित्त मंत्री के भाषण के बाद। अर्थात कुल मिलाकर महत्वपूर्ण विषयों पर विशेषज्ञता ना होने के कारण खबरिया चैनलस कटघरे में खड़े हुए हैं। अगर आप गंभीरता से विचार करें तो पाएंगे कि सामाजिक मुद्दों स्पेस ना के बराबर मिलता है। हमारे एक मित्र अक्सर कहते थे-" कुत्ते ने आदमी को काटा यह कोई खबर ही नहीं है, आप तो बताओ किसी आदमी ने कुत्ते को काटा हो तो? बढ़िया चटपटी खबर बनेगी।
   भारतीय मीडिया अब एग्रेसिव मीडिया हो गया है पश्चिमी मीडिया की तरह। हमें अनुशासन का ध्यान रखना चाहिए ताकि विजुअल जर्नलिज्म खतरनाक स्थिति तक ना पहुंच जाए। देखिए कब तक हम समाचारों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार करते रहेंगे। खास तौर पर खबरीले चैनलस् को अनुशासन पर रहने की जरूरत है।

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