सिर्फ पूजा इबादत प्रार्थना से खुश नहीं होता
मेरा मालिक मुझसे कभी नाखुश नहीं होता।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
तुम ईश्वर वादी हो मैं भी उसकी सत्ता को अस्वीकृत नहीं करता । कोई भी व्यक्ति उसकी सत्ता के बाहर नहीं। मुझसे यह मत पूछना कि-" नास्तिक भी...?"
मुझसे मत पूछो इन लिखे हुए अक्षरों पर विश्वास मत करो। इसका अनुभव प्राप्त करो "अप्प दीपो भव..!"
चलो जिद्द कर रहे हो तो बता देता हूं हां सर्वोच्च सत्ता ईश्वर की है । उसे अस्वीकार्य करने वाला नास्तिक अपनी ओर से दावा कर रहा है न ईश्वर ने कहा।
ईश्वर न होने का दावा तो आप भी कर सकते हो? मैं भी हम सब कर सकते हैं।
नास्तिक इसी आधार पर पूछते हैं- ईश्वर तत्व के अस्तित्व ही होने के कोई प्रमाण है क्या?
हां मेरे पास प्रमाण है ईश्वर के। हो सकता है कि तुम उन्हें अपने तर्कों से भरे तरकश से तीर निकाल निकाल कर खंडित करने के प्रयास करो। मुझे इसका भय नहीं है।
किसी भी सृजन का एक सृजक होता है जिसे करता कहते हैं। जरूरी नहीं है कि वह व्यक्ति हो वह परिस्थिति भी हो सकता है? वह पावर भी हो सकता है कुछ भी हो सकता है। मैं तो उससे पावर के रूप में पहचानने की कोशिश करता हूं आप भी यही करते होंगे। सभी जानते हैं कि ईश्वर शक्तिमान सर्व शक्तिमान अनुभूति है। उसका आकार वजन विस्तार अर्थात उसका क्षेत्रफल कोई नहीं जान सकता परंतु भारतीय जीवन दर्शन और अध्यात्मिक दर्शन ईश्वर तत्व विस्तारित पाता है उसे कण-कण में व्याप्त होने के सिद्धांत को मानता है। आप किसी धर्म संप्रदाय पंच कुछ भी कह सकते हैं कोई फर्क नहीं पड़ता। परंतु इतना तय है कि तत्व ही पूर्ण है। इसे समझने के लिए हम अपनी पूजन प्रक्रिया को देखें विशेष तौर पर पूजन प्रक्रिया के अंतर को देखें जब हम अपनी पूजन प्रक्रिया पूर्ण करते समय यही दोहराते हैं न -
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
श्लोक का अर्थ क्या है ?
यही न कि अब पूजा पूरी हो गई है अब हमें अन्य कार्य करनी चाहिए ? यही सोच रहे हो न तो गलत हो ?
इसका अर्थ यह है कि तुम आश्वस्त हो जाओ
सब कुछ उस पूर्ण पर छोड़ दो जो संपूर्ण विश्व का संचालन करता है। जीवन की दैहिक भौतिक जरूरतों को पूरा करो। ईश्वर ठीक ऐसे ही मेरा विश्वास है। ईश्वर की आराधना को लेकर पूजन प्रणाली या पूजन प्रणालियों का आप और हम अनुसरण करते हैं इस विषय पर फिर कभी बात करेंगे अभी तो हम यह जान लें कि ईश्वर तत्व संपूर्ण विश्व में ही नहीं बल्कि अखिल ब्रह्मांड में सर्वोच्च सत्ता स्थापित करता है
.. पूर्ण और पूर्ण की पूर्णता ब्रह्म और ब्रह्म तत्व का एहसास है ईश्वर। श्लोक का अर्थ भी यही है शाब्दिक अर्थों में तो यही हुआ ना कि पूर्ण में से पूर्ण को निकाल दो तब भी पूर्ण बचेगा...!
इस इस लोक का एक अन्य महत्वपूर्ण अर्थ भी है,,,,जो पूर्ण बचता है वह बचता नहीं है...! वास्तव में वह पूर्ण ही है। ध्यान से समझो मैंने पूर्ण की बात की है जो पूर्ण है वही तो ईश्वर है और तुम्हें केवल पूर्णता का अनुभव बस करना है । तुम्हारे नास्तिक होने न होने से मेरा कोई सरोकार नहीं है। मेरा सरोकार तो केवल इस बात से है कि-" बस इतना जान लो कि आधा अधूरा अर्थात अपूर्ण कुछ भी नहीं था न है और न रहेगा। वैज्ञानिक अनुसंधान और ने सिद्ध कर दिया है कि-" चंद्रमा सदैव पूर्ण रहता है लेकिन यह बेहद परीक्षण के बाद किया। पर पूर्ण विकसित ऋषियों के मस्तिष्क विज्ञान की खोज के पहले ही यह सिद्ध कर दिया था कि केवल प्रकाश का खेल है वरना चंद्रमा पूरे महीने भर प्रकाश दे सकता था। बहुत कम उम्र में एक कविता लिखी थी मुझे उस वक्त इस कविता का अर्थ भी नहीं मालूम था , उस कविता की एक पंक्ति है -
दर्पण के लघुत्तम कण
अर्पण के उत्तम क्षण
बिखर टूट जाते हैं।
हर कण में क्षण-स्मृति..
हर क्षण की कण - स्मृति..!
अक्सर तनहाई में
बाक़ी रह जाती है...
बाक़ी रह जाती है.. !
जो ना तुम्हें दिखाना मुझे दिखा और लाखों लोगों की जिंदगी खतरे में हो गई। जी हां मैं कोविड-19 के विषाणु की बात कर रहा हूं। चलो प्लेग की बात कर लेते हैं आपने देखा? नहीं देखा पर वह घातक था। बहुतेरे लोगों के प्राण हर लिए थे उसने। हां भई ! मैं कोविड-19 के विषाणु या 100 साल पहले फैले प्लेग के बारे में ही कह रहा हूं। चलो अनदेखा वायरस पोलियो जिस का शिकार मैं भी उसे भी तो किसी ने नहीं देखा क्यों नहीं दिखता वह अस्तित्व नहीं है ऐसा आप कैसे कह सकते हैं ?
दुनिया में न कभी कुछ रुकेगा न ही कोई उसे रोक सकता है। बस कुछ बायोलॉजिकल फिजिकल, कुछ मेंटल, सोशल पॉलीटिकल इकोनॉमिकल बदलाव ही होते हैं, ऐसे हर एक बदलाव का अगले नवनिर्माण से सीधा संबंध होता है । लोग सोचते हैं कि-' हमारा स्वप्न टूट गया हम काम पूरा नहीं कर पाए।'
कुछ लोग किसी को पराजित होता दिल उसे ही दोष देने लगते हैं। यह सब गलत बात है। सत्य तो यह है कि जिसे जो करना है जिसमें जिसे जो सफलता मिल गई है उसका मूल्यांकन करना किसी के बस की बात नहीं है। चलिए सीधे विषय पर लौटते हैं... जितना अब तक पढ़ लिया है उसे छोड़ दो भूल जाओ विराट को जानने के लिए आत्मज्ञान की जरूरत है। आपको याद है न.... बुल्ले शाह गली कूचे में गाता फिरता था..." बुल्ला की जाणा मैं कौन ?"
विज्ञान अंतरिक्ष अंतरिक्ष खोजता है विज्ञान समंदर खोजता है पर विज्ञान एक बूंद पानी के रहस्य को नहीं जानता। जबकि योगी ध्यान मग्न होकर पृथ्वी से आकाश के पिंडो की दूरी का अनुमान लगा चुके थे। तुम कहते हो सूर्य सर्वशक्तिमान है, समझते भी होना? परंतु ऐसे अनंत सूर्य है जिनके अनंत ग्रह है उनके अनंत उपग्रह है विज्ञान कह रहा है मैं नहीं। तो ब्रह्म सकता है न इस वक्त तो है न बहुत दूर भटकने की जरूरत नहीं है। जान लो कि ब्रह्म निरंकार है ईश्वर तत्व यानी ब्रह्म महाशक्ति है। ब्रह्म का चिंतन करो बाहर नहीं मिलेगा ध्यान मग्न होकर निर्विकार देखोगे तो विश्वास के साथ कह दोगे-
सिर्फ पूजा इबादत प्रार्थना से खुश नहीं होता
मेरा मालिक मुझसे कभी नाखुश नहीं होता।