भारत, जैफ बेगौस की भविष्यवाणी गलत साबित करेगा


     भारत, जैफ बेगौस की भविष्यवाणी गलत साबित करेगा:गिरीश बिल्लोरे
     पिछले 4 दिन पहले विश्व के चौथे नंबर के अरबपति जैफ़ बेगौस ने यह कहकर यूरोप में हड़कंप मचा दिया कि-" वैश्विक महामंदी बहुत जल्दी प्रारंभ हो सकती है, हो सकता है दिसंबर 22 अथवा जनवरी 23 में ही यह स्पष्ट हो जाए। अपनी अरबों रुपए की संपत्ति जनता को वापस करने की घोषणा करने वाले जैफ़ ने कहा-" इस महामंदी के आने के पहले विश्व के लोगों को बड़े आइटम पर तुरंत खर्च करना बंद कर देना चाहिए। कंजूमर को इस तरह की सलाह देते हुए महामंदी के भयावह दृश्य अंदाज़ लगाने वाली इस शख्सियत ने कहा है कि-" कार रेफ्रिजरेटर अगर आप बदलना चाहते हैं तो इसके खर्च को स्थगित कर दीजिए ।
*बिलेनियर जैफ के* इस कथन को *विश्लेषित* करने मैंने अपने पूर्व अनुभव के आधार पर अनुमान लगाया कि- यह सत्य है कि, 1990-91 की महामंदी ने जो स्थिति उत्पन्न की थी उससे भारतीय अर्थव्यवस्था अप्रभावित रही है। उसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होगा?
   कृषि उत्पादन एवं वाणिज्य परिस्थितियों का अवलोकन करने पर पाया कि विश्व में कितनी भी बड़ी मंदी का दौर आ जाए , अगर भारतीय व्यवस्था जो मूल रूप से कृषि उत्पादन एवम उत्पादों पर आधारित है, अप्रभावित रहेगी और यदि उस पर कोई नकारात्मक प्रभाव पढ़ना है तो भी अर्थव्यवस्था में मामूली प्रभाव पढ़ना संभव होगा। *इस संबंध में भोपाल में व्यवसाय से जुड़े श्री विमल चौरे, महामंदी से पूरी तरह सहमत हैं।*
 उसका कारण वही है जैसा मैंने पूर्व में वर्णित किया है। अर्थात भारतीय अर्थव्यवस्था ठोस अर्थव्यवस्था के रूप में समझी जा सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में पॉजिटिविटी का सकारात्मक पहलू  जनसंख्या है, और यह आबादी ऐसे किसी भी तरह के उपभोक्तावादी संसार का हिस्सा नहीं है, जो अत्यधिक उपभोक्तावादी हो।
*भारत में पर्सनल सेक्टर में पूंजी का निर्माण आसानी से किया जा सकता है।*
 भारत में अभी भी प्रूडेंट शॉपिंग प्रणाली को परंपरागत रूप से स्थान दिया जाता है। *अतः यह संभावना कम ही है कि हम महामंदी से बुरी तरह प्रभावित होंगे।*
*गोल्ड फैक्टर*
भारत में वार्षिक 21 हजार टन सोने की मांग बनी रहती है.  जबकि भारत की खदानें मात्र 1.5 टन सोना उत्पादित करती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक
विश्व स्वर्ण परिषद (डब्ल्यूजीसी) ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत में सोने की खदानों से उत्पादन 2020 में 1.6 टन था, लेकिन दीर्घावधि में यह 20 टन प्रतिवर्ष तक बढ़ सकती है। भारत का मध्य वर्ग एवं निम्न वर्ग भी सोने के प्रति आकर्षित होता है, क्योंकि *सोना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण परंपरा आधारित घटक है। इसे एक बेहतरीन इन्वेस्टमेंट माना जाता है।*
वर्तमान परिस्थितियों में भारत के प्रत्येक परिवार के औसत रूप से 2 से 3 तोला यानी 20 से 30 ग्राम सोना संचित रहता है। परिवार अपनी आवश्यकता के मुताबिक इस होने का नगरीकरण करा लेता है। 
परिणाम स्वरूप अर्थ- व्यवस्था कुल मिलाकर रोकड़  के अभाव में प्रभावित नहीं होती। 
भारतीय परिवारों में ही  कोआपरेटिव व्यवस्था परंपरागत रूप से प्रभावी है । आपसी आर्थिक व्यवहार के कारण आर्थिक मंदी नियंत्रित होगी। इसके अलावा जनसंख्या भी अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा विकल्प माना जा सकता है। socio-economic सिस्टम में भारतीय  परिवारिक व्यवस्था किसी भी तरह की मंदी से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहती है इसलिए आसन्न महामंदी का असर भारत के अथवा दक्षिण एशियाई देशों के लिए बेहद खतरनाक नहीं होगी। यदि युद्ध महामारी जैसी परिस्थितियां निर्मित न हो तो!
 उपरोक्त बिंदुओं से इस बात की पुष्टि होती है कि *भारत की अर्थव्यवस्था यूरोपीय अर्थव्यवस्था की तुलना में बेहद मजबूत  है।*

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