26.5.21

महात्मा गौतम बुद्ध 583 BCE में नहीं बल्कि1865 BCE में अवतरित हुए थे :वेदवीर आर्य


आज महात्मा गौतम बुद्ध की जयंती है वैशाख पूर्णिमा पर महात्मा बुध का जन्म नेपाल के लुंबिनी उपवन में  हुआ था।
महात्मा गौतम बुद्ध की जन्म स्थली  को लेकर किसी भी तरह का कोई भ्रम नहीं है । और यह भी भ्रम नहीं है कि उनका जन्म वैशाख पूर्णिमा को ना हुआ हो । परंतु नवीनतम समीक्षाओं से पता चलता है कि महात्मा बुध का जन्म  583  बीसीई में हुआ में इस बात को लेकर बड़ा असमंजस है।
   महात्मा बुद्ध महाभारत युद्ध के 1200 वर्ष उपरांत अट्ठारह सौ चौंसठ बीसीई  लुंबिनी में जन्मे थे और वे इक्ष्वाकु वंश राजा के राजा शुद्धोधन महारानी माया देवी पुत्र थे। इसमें भी कोई शक नहीं है।
आप आपने जुरुथरुष्ट का नाम सुना होगा । जुरुथरुष्ट जब अपनी मान्यताओं को प्रचारित प्रसारित करने के लिए मध्य एशिया तक आए तब बौद्ध धर्म लगभग 29 देशों में विस्तारित था। विश्व के समकालीन 29 देशों में जोराष्ट्रीयन आईडियोलॉजी का विस्तार करने वाले जोराष्ट्र दो ने बुद्ध मत को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया और उसे अफगानिस्तान तक सीमित कर दिया तब अफगानिस्तान को बैक्ट्रिया के नाम से जाना जाता था। अर्थात बुद्ध जोराष्ट्र के पहले
मान्यताओं के हिसाब से जो राष्ट्र दो 647 से 570 bc-e में जन्मे थे तथा बुध का जन्म 563 से 483 बीसीई दर्शाया गया है। अबू रेहान की किताब  अतहर उल बाकी या नामक किताब में अबू रियान  कहते हैं कि बुद्ध का जन्म जोराष्ट्र सेकंड के पहले हुआ था। अब आप समझ सकते हैं कि अलबरूनी या अबू रियान एक कथन को ओवरलूक किया गया है।
[  ] नेपाल के लुंबिनी में उपवन महामाया देवी भ्रमण पर गई हुई थी तथा वहां महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। सारे बुद्धिज्म मानने वाले जानते हैं लुंबिनी का उपवन केवल उपवन ही था वहां किसी तरह का कोई स्ट्रक्चर बुद्ध के जन्म के पूर्व उपलब्ध नहीं था परंतु बुद्ध के बाद था एक मंदिर का निर्माण  किया गया। जिसके कार्बन डेटिंग और ओएसएल परीक्षण के प्रमाण मौजूद है।
[  ] महाभारत की समाप्ति 3162 बी सी के 1210 डायनेस्टी 1000 वर्ष प्रद्योत डायनेस्टी 138 वर्ष हिस्ट्री 360 और नंद डायनेस्टी 100 वर्ष कुल 1600 वर्ष के उपरांत बुद्ध का जन्म हुआ।
[  ] 0 गया में उपलब्ध एक लिपि में 1813 संवत में प्रकाश नेपाली मान्यताओं में 1800 वर्ष शताब्दी यानी शक संवत में उनका जन्म होना पाया माना है
इससे साबित होता है कि महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म एवं महानिर्वाण 1765 BCE में सुनिश्चित किया जाता है ।
    और इस से 80 वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध का लुंबिनी में जन्म हुआ था। 15 मार्च 1944 बीसीई वैशाख माह उनका जन्म स्थापित होता है। तथा इसके 80 वर्ष उपरांत 23 अप्रैल 1909 BCE में उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई तथा उनका निर्वाण 5 अप्रैल 1864 ईसवी में वैशाख पूर्णिमा को हुआ था।
    इसके एस्ट्रोनॉमिकल एविडेंसेस भी उपलब्ध है। तदनुसार 8 मार्च अट्ठारह सौ चौंसठ बीसीई में चंद्र ग्रहण तथा सूर्य ग्रहण 23 मार्च 18 सो 64 ईस्वी में हुआ है तथा उसके 15 दिनों के बाद गौतम बुद्ध का निर्वाण हुआ है ।
उपरोक्त ऐतिहासिक बिंदु की पुष्टि के लिए आप the chronology of India from Manu To Mahabharat में विस्तार से देख सकते हैं अमेजॉन पर यह पुस्तक उपलब्ध है। कुछ दिन इंतजार कीजिए संस्कृति के प्रवेश द्वार नामक मेरी आगामी हिंदी कृति का जिसमें हिंदी रहस्यों पर से पर्दा हटाने की कोशिश की है।
बुद्ध जयंती पर सभी भारतीयों और विश्व के समस्त उन लोगों को हार्दिक शुभकामनाएं जो बुद्ध के प्रति आस्थावान है

आज तक किया बाबा रामदेव का मीडिया ट्रायल : आयुर्वेद और नेचुरोपैथी दुर्भाग्यपूर्ण दौर में

#आजतक चैनल पर आइएम के महासचिव डॉक्टर जयेश लेले एवं एवं पूर्व अध्यक्ष श्री राजन शर्मा ने एंकर अंजना ओम कश्यप की मौजूदगी में एक विवादास्पद बहस में हिस्सा लिया जिसमें टारगेट किया जा रहा था प्राकृतिक चिकित्सा के पुनर्प्रवर्तक बाबा रामदेव को। इस बहस में परिचर्चा का कोई भी गुण नजर नहीं आ रहा था बल्कि यह  अपराध परीक्षण जी हां मीडिया ट्रायल था यह एक सबसे बड़ी विवादास्पद बहस थी। एलोपैथिक वर्सेस आयुर्वेद एवं नेचरोपैथी को लेकर आजतक न्यूज़ ने जिस तरह का नेगेटिव अवधारणा को जन्म दिया है शर्मनाक है। भारत ने आयुर्वेद योग दर्शन और फिलासफी के लिए बहुत अधिक योगदान नहीं किया है और अगर किया भी है तो वह निजी तौर पर हुआ है उनमें से एक है रामदेव जिनकी अपनी अवधारणा है और  वे इस दिशा में काम कर रहे हैं। परंतु उनके इस आयुर्वेदिक एवं प्राकृतिक #innovation को इस कदर अपमानित किया गया जो आज तक न्यूज़ चैनल की टीआरपी के लिए भले अच्छा हो लेकिन भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। एलोपैथिक को बुरा नहीं कहा जा सकता तो आयुर्वेद और नेचुरोपैथी को भी अपमानित करने का अधिकार किसी को नहीं है। और खासकर तब जबकि कोविड-19 जैसी महामारी का दौर है। आप स्पष्ट रूप से जान लीजिए कि हमारा रसोईघर अपने आप में एक मेडिसिन सेंटर है। जो हम खाते हैं उसमें माइक्रोन्यूट्रिएंट्स पर्याप्त मात्रा में मौजूद होता है और इम्यूनिटी पावर बढ़ाने की क्षमता हमारे भोजन में मौजूद होती है। कुछ इन्हीं सिद्धांतों पर काम करती है बाबा रामदेव की दवाई यूनानी आयुर्वेद बायोकेमिक नेचुरोपैथी द्वारा किए गए कार्य एलोपैथी के तीव्र विस्तार के कारण बहुत अधिक नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं। ना तो इससे भारत का भला है और ना ही एलोपैथी का। एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली धन कमाने का बहुत बड़ा साधन है अमेरिकन मेडिकल सिस्टम एक माफिया की तरह काम करता है ऐसा लोगों का मानना है परंतु इस मान्यता की मेरे द्वारा आज तक पुष्टि नहीं की जा सकती है पर क्या नहीं किया जा सकता अमेरिका या यूरोप देशों द्वारा। भारत का प्राकृतिक अधिकार है परंतु अगर आप विश्व के किसी भी हिस्से में योग कक्षा खोलना चाहते हैं तो आपको यूरोप के किसी इंस्टिट्यूशन से हजारों डॉलर देखकर लाइसेंस हासिल करना पड़ता है। आप समझ सकते हैं कि हमारे चिकित्सक जो एलोपैथी को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं उनको यह भी मानना होगा कि अगर आयुर्वेद यूनानी बायोकेमिक जर्मनी नेचुरोपैथी आदि चिकित्सा प्रणालियों पर कार्य होता तो निश्चित तौर पर देश काफी आगे होते और एकमात्र चिकित्सा प्रणाली के पीछे भटकाव नहीं हो पाता। यह सब हमारी मूर्खताओं का परिणाम है क्योंकि हम आयातित चीजों को अपना स्टेटस सिंबल मानते हैं। जैसा कर रहे हो तो भोगना ही होगा बहराल में अपना व्यक्तिगत अनुभव बता दो की 2010 से लेकर 2019 तक प्रतिवर्ष मुझे फेफड़ों की शिकायत होती थी और मुझे लगातार लगभग 50+ से अधिक रुपए खर्च करने होते थे लेकिन लेकिन कोविड-19 के कारण आयुर्वेदिक खास तौर पर पतंजलि की मेडिसिन का प्रयोग किया ताकि मुझे कफ की वजह से फेफड़ों की समस्या से मुक्ति मिले और उन दवाओं से मुझे लाभ हुआ है। जबकि यह सामर्थ्य एलोपैथी में नहीं है। निर्णय आपको करना है सभी चिकित्सा प्रणालियां अपने आप में प्रभावशाली हैं किसी को अपमानित करने की जरूरत नहीं है ना तो एलोपैथिक को और 9 अन्य को लेकिन यह वीडियो यह सिद्ध कर रहा है कि एलोपैथी के अलावा दुनिया में इसका का कोई विकल्प नहीं है। मैं एक ऐसे विद्वान को जानता हूं जो इसी शहर में रहते हैं और जिन्होंने एनाटॉमी का रेखा चित्र बनाकर ब्रिटेन में भेजा और ब्रिटेन ने  एनाटॉमी संरचना को अपने मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए पाठ्यक्रम में शामिल किया । आप चाहेंगे तो आपसे मुलाकात किसी दिन जरूर कर आऊंगा। फिलहाल आप  दिए लिंक को क्लिक करके डॉ हेमराज जैन साहब के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं

दुर्भाग्य यह है कि जनसत्ता जनसत्ता ने भी अपने समाचार में जो हेडिंग दी है वह कम भड़काऊ या अपमानकारी है

20.5.21

सच है दुनिया वालो कि हम हैं अनाड़ी...!

" सच है दुनिया वालो कि हम हैं #अनाड़ी"
😢😢😢😢😢😢
जो भी व्यक्ति आर्यों को बाहर से आया हुआ साबित करेगा उसे जयपुर डायलॉग के सीईओ संजय दीक्षित रिटायर्ड आईएएस दो करोड़ की राशि देंगे। तो आइए  जानते हैं क्या आर्य विदेशों से आए थे...?
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आज भारत आए थे इस मुद्दे पर एक लंबी बहस चल रही है किंतु अभी तक एनसीईआरटी की किताबों से यह सिद्ध हो जाने के बावजूद की आर्य भारत के ही मूल निवासी थे तथा उनका डीएनए पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण समान रूप से मैच करता है ।
   ब्रिटिश कालखंड  में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि 1500 वर्ष ईसा पूर्व आर्यों का आगमन हुआ और उन्होंने वेदों की रचना की और उन्होंने भारत के मूलनिवासी लोगों को अपमानित किया उन्हें स्लेवरी करने को मजबूर किया इस तरह से एक अशुद्ध सिद्धांत का प्रतिपादन कर फूट डालने का काम ब्रिटिश सरकार की सहमति के अनुसार हुआ है।
आर्यों के आगमन के संबंध में एक प्रश्न आपके समक्ष भी रखता हूं
[  ] अगर आर्य 3500 वर्ष पूर्व अर्थात ईसा के 1500 वर्ष पूर्व भारत आए थे और उन्होंने संस्कृत में वेदों,संहिताओं, उपनिषदों ब्राह्मण आरण्यकों का लेखन किया।  लेखन का काल हम ईशा के 1500 वर्ष पूर्व निर्धारित कर भी लेते हैं तो उस सरस्वती नदी के संबंध में क्या जवाब होगा जो बताए गए 1500 साल पूर्व के भी 2000 साल पहले विलुप्त हो गई। अर्थात यह एक अशुद्ध एवं तथ्यहीन भ्रामक थ्योरी है। जिसकी पुष्टि अब तक नहीं हुई है परंतु इस आधार पर किताब में लिखी जा चुकी है।
[  ] संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी इस तथ्य के समर्थक नहीं थे
[  ] उपलब्ध जानकारी के आधार पर यह कहा गया है कि वेदों का रचनाकाल 14500 से 10500 ईसा पूर्व किया गया था। सब सरस्वती नदी अस्तित्व में रही है
[  ] मैक्स मूलर द्वारा इस थ्योरी विकसित करने का उद्देश्य मात्र भाषा नस्ल के आधार पर विभाजन कर एक व्यवस्थित व्यवस्था को दूषित करना था इसके पीछे उनका संप्रदायिक उद्देश्य भी शामिल है ।
[  ] अनाड़ी ( नीरज अत्री जी से साभार Niraj Atri  ) शब्द का अर्थ आप समझेंगे तो आपको आर्यों के संबंध में समझ बढ़ सकती है। आर्य का अर्थ एक विशेषण है अर्थात हे आर्य अर्थात हे सुविज्ञ और यह शब्द एक संबोधन है जो ऋग्वेद में 33 बार प्रयोग किया गया है। हालांकि मैंने इसकी कोई गिनती नहीं की है परंतु स्रोत यही कहते हैं अब जो सुविज्ञ हैं वे आर्य हैं और जो अभी दिया उस ज्ञान से वंचित है वह अनार्य है अर्थात अनाड़ी है अनाड़ी शब्द का अर्थ अनार्य से ही संबंधित है देशज भाषा में अनार्य को अनाड़ी कहा गया है। हो सकता है कि विद्वान इतिहासकार इसे अस्वीकार कर दें परंतु  भाषाई धरातल पर यही सत्य है। आर्य का संबोधन कर देना मात्र एक जाति का उत्पन्न हो जाना नहीं है। और वह भी इस हद तक कि समाज में विघटन की स्थिति भी पैदा हो सके !
[  ]  मैक्स मूलर ने पूरी प्लानिंग के साथ सबसे पहले वेद का ट्रांसलेशन किया ट्रांसलेशन करने के उपरांत औसत भारतीय को कॉन्फिडेंस में लिया तत्सम कालीन व्यवस्था को कॉन्फिडेंस में लिया और महामहिम मोक्षमूलर की उपाधि से अलंकृत भी हुए। सुधि पाठक कृपया ध्यान दें कि यही वह मोक्ष मूलर साहब हैं जिन्होंने एक शांत निश्छल समाज का वर्गीकरण किया वर्गीकरण करके उनके बीच में एक अवधारणा डाली गई जिससे कि वे विक्टिम है और दूसरा पक्ष जो अधिक शक्तिशाली है वह उनका शोषण कर रहे हैं। अब आप बिन बुलाए मेहमान बन कर इस अवधारणा को विस्तारित करेंगे तो निश्चित रूप से वर्ग संघर्ष पैदा होगा। वाम मार्ग तथा धर्म का विस्तार करने वाली ताकतें इसी तरह के हथकंडे अपनाती हैं। यह एक ऐतिहासिक सत्य है और तथ्य भी।
[ फोटो आभार सहित Vishal Hans क्रिएटिव डायरेक्टर सिटी मुंबई ]

19.5.21

आर्यों को विदेशी बताना नस्लभेदी विप्लव की साजिश है...!

 चित्र गूगल से साभार
ब्रिटिश उपनिवेशवाद के कालखंड में जिस तरह से कांसेप्ट भारतीय जन के मस्तिष्क में डालने की कोशिश की गई उससे सामाजिक विखंडन एवं विप्लव की स्थिति स्थिति निर्मित हुई है। आर्य भारत के ही थे इस बात की पुष्टि के हजारों तथ्य हैं किंतु आर्य भारत में आए थे इसके कोई तार्किक उत्तर नहीं है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में आर्य अनार्य अथवा दास जैसे शब्दों की व्याख्या भ्रामक एवं सामाजिक विघटन के लिए प्रविष्ट किया गया नैरेटिव है। इस सिद्धांत की स्थापना  के पीछे ब्रिटिश विद्वानों का उद्देश्य राजनीतिक विप्लव सामाजिक विघटन एवं भाषा तथा नस्ल भेद को बढ़ावा देना है।
     आर्यों की भारत आने का सिद्धांत सही साबित करने वाले को दो करोड़ का पुरस्कार
आज भारत आए थे इस मुद्दे पर एक लंबी बहस चल रही है किंतु अभी तक एनसीईआरटी की किताबों से यह सिद्ध हो जाने के बावजूद की आर्य भारत के ही मूल निवासी थे तथा उनका डीएनए पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण समान रूप से मैच करता है ।
   ब्रिटिश कालखंड  में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि 1500 वर्ष ईसा पूर्व आर्यों का आगमन हुआ और उन्होंने वेदों की रचना की और उन्होंने भारत के मूलनिवासी लोगों को अपमानित किया उन्हें स्लेवरी करने को मजबूर किया इस तरह से एक अशुद्ध सिद्धांत का प्रतिपादन कर फूट डालने का काम ब्रिटिश सरकार की सहमति के अनुसार हुआ है।
आर्यों के आगमन के संबंध में एक प्रश्न आपके समक्ष भी रखता हूं
[  ] अगर आर्य 3500 वर्ष पूर्व अर्थात ईसा के 1500 वर्ष पूर्व भारत आए थे और उन्होंने संस्कृत में वेदों,संहिताओं, उपनिषदों ब्राह्मण आरण्यकों का लेखन किया।  लेखन का काल हम ईशा के 1500 वर्ष पूर्व निर्धारित कर भी लेते हैं तो उस सरस्वती नदी के संबंध में क्या जवाब होगा जो बताए गए 1500 साल पूर्व के भी 2000 साल पहले विलुप्त हो गई। अर्थात यह एक अशुद्ध एवं तथ्यहीन भ्रामक थ्योरी है। जिसकी पुष्टि अब तक नहीं हुई है परंतु इस आधार पर किताब में लिखी जा चुकी है।
[  ] संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी इस तथ्य के समर्थक नहीं थे
[  ] आर्यों के भारत आने के सिद्धांत के पीछे जो अवधारणा है उसमें भाषा का समूह बनाकर उसे प्रस्तुत करना सबसे बड़ा षड्यंत्र है। जिसमें दक्षिण भारत की भाषाएं जो अधिक संस्कृतनिष्ठ को द्रविड़ भाषा समूह में रखा गया है जबकि दक्षिण भारतीय भाषाएं संस्कृत के सबसे नजदीकी भाषा है। और इनका विकास भी बड़े पैमाने पर भाषा विज्ञानियों ने संस्कृत के आधार पर ही किया है। उत्तर भारत की भाषा जिस समूह की प्रतिनिधित्व करती हैं अपेक्षाकृत कम संस्कृतनिष्ठ होने के बावजूद भी संस्कृत के बिल्कुल नजदीक रखी गई है।
[  ] उपलब्ध जानकारी के आधार पर यह कहा गया है कि वेदों का रचनाकाल 14500 से 10500 ईसा पूर्व किया गया था। सब सरस्वती नदी अस्तित्व में रही है
[  ] मैक्स मूलर द्वारा इस थ्योरी विकसित करने का उद्देश्य मात्र भाषा नस्ल के आधार पर विभाजन कर एक व्यवस्थित व्यवस्था को दूषित करना था इसके पीछे उनका संप्रदायिक उद्देश्य भी शामिल है
         

14.5.21

भारतीय साहित्यकारों ने भारतीय प्राचीन इतिहास के साथ न्याय नहीं किया : गिरीश बिल्लोरे मुकुल


पूज्यनीय राहुल सांकृत्यायन जी ने वोल्गा से गंगा तक कृति लिखी है । इस कृति का अध्ययन आपने किया होगा यदि नहीं किया तो अवश्य करने की कोशिश करें। इस कृति के अतिरिक्त एक अन्य कृति है परम पूज्य रामधारी सिंह दिनकर जी की जो संस्कृति के चार अध्याय के नाम से प्रकाशित है और यह दोनों कृतियां आयातित विचारक बेहद पसंद करते हैं और इनको पढ़ने के लिए प्रेरित भी करते हैं। इसी क्रम में मेरे हाथों में यह दोनों कृतियां युवावस्था में ही आ चुकी थी तब यह लाइब्रेरी में पढ़ी थी । इतिहास पर आधारित इन दोनों कृतियों के संबंध में स्पष्ट रूप से यह स्वीकारना होगा कि-"साहित्यकार अगर किसी इतिहास पर कोई फिक्सन या  विवरण कहानी के रूप में लिखना चाहते हैं तो उन्हें कथा समय का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।  कृति  वोल्गा से गंगा तक में 6000 हजार ईसा पूर्व से 3500 ईसा पूर्व  की अवधि में भारतीय वेदों की रचना सामाजिक विकास विस्तार सांस्कृतिक परिवर्तन सब कुछ कॉकटेल के रूप में रखने की कोशिश की है। उद्देश्य एकमात्र है मैक्स मूलर द्वारा भारत के संदर्भ में इतिहास की टाइमलाइन सेटिंग को  ईसा 6000 से 3500 साल पूर्व  सेट करना है
।" साहित्यकार को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखने के पूर्व टाइमलाइन के संदर्भ में सतर्क और सजग रहना चाहिए। पूजनीय राहुल सांकृत्यायन जी से असहमति के साथ कृति पर चिंतन का आग्रह है । ]
        राहुल संस्कृतम् वोल्गा से गंगा तक मैं अपनी पहली कहानी निशा शीर्षक से लिखते हैं। और वे अपनी इस कहानी के माध्यम से करना चाहते हैं की ईशा के 6000 साल पहले मानव छोटे-छोटे कबीले में रहता था। वोल्गा नदी के ऊपरी तट पर निशा नामक महिला के प्रभुत्व वाला परिवार रहता था जिसमें 16 सदस्य थे वह एक गुफा में रहते थे। महिला प्रधान कबीले में प्रजनन की प्रक्रिया को डिस्क्राइब भी करते हैं। वोल्गा से गंगा तक की संपूर्ण कहानियां 6000 ईसा पूर्व से शुरू होती है दूसरी कथा दिवा नाम से लिखते हुए उसका कालखंड ईसा के 3500 साल पहले   निर्धारण करते हुए फुटनोट में व्यक्त करते हैं -" आज से सवा दो सौ पीढ़ी पहले आर्य जन की कहानी होने का दावा करते हैं तथा यह कहते हैं कि उस वक्त भारत ईरान और रूस की श्वेत जातियां एक ही जाती थी जिसे हिंदी स्लाव या शत वंश कहा गया है। यह कहानी प्रथम कहानी निशा से एकदम ढाई हजार वर्ष के बाद की कहानी है। और इसे वे आर्य कहते हैं । इस कहानी का शीर्षक दिवा है। जो रोचना परिवार की वंशिका के रूप में समझ में आती है। इस कहानी में दिवा को जन नायिका के रूप में दर्शाया गया है। तथा आर्य जन का विकास प्रमाणित करने की चेष्टा की है। और वे अर्थात राहुल सांकृत्यायन इस कहानी में यह कहते हैं कि अग्नि पूजा आर्य जन अब समिति के माध्यम से प्रबंधन करना सीख गए थे। निशा जन और और उषा जन नामक दो व्यवस्थाओं के संबंध में चर्चा की गई है। दोनों व्यवस्थाएं अपने-अपने शिकार के लिए निर्धारित क्षेत्र के रक्षण व्यवस्थापन और प्रबंधन के जिम्मेदार होते। उषा जन से निशा जन की शक्ति दुगनी थी ऐसा इस कथा में वर्णित किया गया है। कहानी में एक और समूह का जिक्र होता है जिसे कुरु जन के रूप में संबोधित किया गया है। कुल मिलाकर राहुल सांकृत्यायन साहब अपनी कृति वोल्गा से गंगा में पर्शिया रूस और भारत को एक विशाल भूखंड के रूप में प्रदर्शित करते हैं तथा इसमें जनतंत्र की व्यवस्था को वर्णित करते हैं। अपनी एक करनी कहानी अमृताशव में  सेंट्रल एशिया पामीर (उत्तर कुरु), कथा जाति हिंदी एवं ईरानी के रूप में प्रस्तुत करते हुए इसे ईसा के 3000 साल पूर्व का कथानक मानते हैं और यही वे यह घोषित करते हैं कि आर्यजन इसी अवधि में भारत में आए थे। इस कालखंड को भी कृषि एवं तांबे के प्रयोग का युग कहते हैं। ईसा के 2000 वर्ष पूर्व के कथानक पुरुधान नामक कथानक में स्वाद के ऊपरी हिस्से की कहानी लिखते लिखते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं थी भारतीय मूल के लोग आर्यों से युद्ध करते हैं और यही देवासुर संग्राम है। अगर इस कृतिका फुटनोट देखा जाए तो राहुल संस्कृतम् जी कहते हैं कि आज से 108 पीढ़ी आर्य (देव) असुर संघर्ष हुआ था उसी की यह कहानी है आर्यों के पहाड़ी समाज में दासता स्वीकृत नहीं हुई थी। तांबे पीतल के हथियारों और व्यापार का जोर बढ़ चला था।
    अपनी अगली कहानी अंगिरा का कालखंड अट्ठारह सौ ईसा पूर्व हिंदी आज मैं गांधार अर्थात तक्षशिला क्षेत्र का विवरण कथानक में प्रस्तुत किया जाता है। सातवीं कहानी सुदास में वे 15 100 ईसा पूर्व गुरु पंचाल वैदिक आर्य जाति का उल्लेख करते हैं। और इसी कालखंड को वेद रचना का कालखंड निरूपित करते हैं। प्रवासन नामक कथा में पंचाल प्रदेश के 700 ईसा पूर्व का विवरण अंकित करते हुए उपनिषदों की रचना का कालखंड निरूपित करते हैं।
   इस तरह से बड़ी चतुराई के साथ लेखक ने रामायण एवं महाभारत काल वेदों के सही काल निर्धारण वेदों के वर्गीकरण के काल निर्धारण तथा आर्यों के भारत आगमन को प्रमुखता से उल्लेखित करने की कोशिश की है।
     ऐसी कहानियां जो इस उद्देश्य के लिए लिखी गई हो जिससे एक ऐसे नैरेटिव का विकास हो जो सत्यता से परे है इसे सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता अतः इसे प्रमाणित करके ही समाप्त किया जा सकता है। यहां राहुल सांकृत्यायन जी की भी अपनी मजबूरियां है। वे यह कहना चाह रहे थे कि जो मैक्स मूलर ने सीमा निर्धारण कर लिया है उससे हुए आगे नहीं जाएंगे। तथा आर्यों को भारत में प्रवेश दिला कर ही भारत का प्राचीन इतिहास पूर्ण होता है ऐसा उनका मानना है। परंतु इससे भारतीय ऐतिहासिक बिंदु एवं सामाजिक सांस्कृतिक विकास पर जो नकारात्मक प्रभाव पड़ा है वह चिंतन की दिशा को मोड़ कर रख देता है। केंद्रीय कारागार हजारीबाग 23 जून 1942 में प्रथम संस्करण प्राक्कथन में राहुल जी का कथन स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि वे मैक्स मूलर के पद चिन्हों पर चल रहे हैं। साथ ही राहुल जी बंधुल मल्ल अर्थात बुध के काल पर सिंह सेनापति उपन्यास का उल्लेख करते हैं।
  मैं यह नहीं कहता कि आप संस्कृति के चार अध्याय और वोल्गा से गंगा तक के कथानक उनसे या विवरणों से परिचित ना हो। अध्ययन तो करना चाहिए परंतु अध्ययन कैसा करना चाहिए इसे समझने की जरूरत है। यह दोनों कृतियां मुझे शुरू से खटकती हैं। कृतियों की विषय वस्तु पर असहमति का आधार है काल खंड का निर्धारण । और फिर मैक्स मूलर सहित पश्चिमी विद्वानों से तत्कालीन साहित्यकारों की अंधाधुंध सहमति। वास्तव में देखा जाए तो इतिहास की विषय वस्तु को साहित्यकार को केवल तब स्पर्श करना चाहिए जबकि उसके कालखंड का उसे सटीक अथवा समयावधि का कुछ आगे पीछे का ज्ञान हो। अन्यथा कथा के रूप में कुछ भी लिखा जा सकता है उस पर किसी की भी कोई आपत्ति नहीं होती और ना भविष्य में होगी। यहां यह कहना बेहद जरूरी है कि -" ऐसी कृतियों से किसी भी राष्ट्र की ऐतिहासिक टाइमलाइन को पूरी तरह से नष्ट भ्रष्ट किया जा सकता है और यह हुआ भी है।"
भारत के प्राचीन इतिहास में भारतीय जन का निर्माण, सिंधु घाटी की सभ्यता तथा अन्य नदी घाटियों पर विकसित सामाजिक व्यवस्थाओं का विश्लेषण, आर्यों के द्वारा किए गए कार्य, भाषाएं जैसी प्राकृत ब्राह्मी संस्कृत का का निर्माण विकास सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास श्रुति परंपरा के अनुसार महान चरित्रों के अस्तित्व आदि पर विचार करना आवश्यक होता है।

गिरीश बिल्लोरे मुकुल

  

12.5.21

हमास का इजरायल पर हमला क्या एक बड़ा बदलाव ला सकता है ?


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      हमास एक आतंकवादी संगठन है परंतु   इससे सुन्नी मुस्लिमों का सशस्त्र संगठन माना गया है। खाड़ी क्षेत्र में गाजा पट्टी में इसका बहुत अधिक प्रभाव है हमास का अरबी भाषा में अर्थ होता है हरकत अल मुकाबल इस्लामिया अर्थात इस्लामी प्रतिरोधक आंदोलन। हमास  का गठन सन 1987 में हुआ है और यह फिलिस्तीनी इस्लामिक राष्ट्रवाद से संबंधित है। विगत 10 मई 2021 को हम आज की रॉकेट लॉन्चरों से कुछ रॉकेट इजराइल में फेंके गए। तो आइए जानते हैं हम  क्या है हमास
  मुस्लिम उम्मा इस्लामिक ब्रदर हुड को बढ़ावा देने वाला एवं इस्लाम की रक्षा पंक्ति के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने वाला ऐसा संगठन है जिस की आधारशिला सन 1987 में रखी गई और यह संगठन एक 35 एकड़ की जमीन के लिए संघर्षरत है।  
      हमास को कनाडा यूरोपीय यूनियन इजराइल जापान और संयुक्त अमेरिका पूर्ण रूप से आतंकवादी संगठन मानते हैं जबकि ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड पैराग्वे यूनाइटेड किंगडम इसके सैन्य विंग को आतंकवादी संगठन करार देते हैं। इससे उलट ब्राजील चीन मिस्र ईरान  कतर रूस सीरिया और तुर्की इस संगठन को आतंकवादी संगठन नहीं मानते। वर्ष दिसंबर 2018 में मास्को आतंकवादी संगठन घोषित करने के प्रस्ताव को यूएनओ  द्वारा झटका लगा है।
इजराइल के दक्षिण पश्चिमी भाग में 6 से 10 किलोमीटर चौड़ी एवं 45 किलोमीटर लंबी क्षेत्र को गाजा पट्टी कहते हैं इस गाजा पट्टी पर इजराइल ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया यह एक बड़ी लड़ाई के बाद निर्मित स्थिति है। जिसका प्रबंधन इसराइल ने सन 2005 में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को सौंप दिया था। किंतु 2007 में हुए चुनाव में हमास संगठन द्वारा इस पर अपना हक साबित कर दिया। क्योंकि हमास की एक्टिविटी हमलावर प्रकृति की होने के कारण उसे एक आतंकवादी संगठन के रूप में देखा जाता है। 2008 से यहां संघर्षविराम लागू हुआ था हमास के द्वारा इससे पहले जो रॉकेट हमले किए गए उसके परिणाम स्वरूप लगभग 1300 लोगों के मारे जाने की सूचना है।  अब्राह्मिक धर्म के संस्थापक फादर इब्राहिम के संदेशों को 3 सेक्टर में बांटा गया है एक क्रिश्चियनिटी दूसरा यहूदी और तीसरा इस्लाम यह तीनों संप्रदाय आपस आज तक सामंजस्य स्थापित नहीं कर सकते हैं। इजराइल एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी राजधानी यरूशलम है। इसकी भाषा हिब्रू और अरबी है इस देश में 46% यहूदी निवास करते हैं जबकि 19% अरबी और 5% अन्य अल्पसंख्यक समूह निवास करते हैं। बेंजामिन नेतनयाहू वर्तमान में यहां के प्रमुख है जबकि यहां राष्ट्रपति का पद भी है इजराइल का निर्माण विश्व भर में बस रहे यहूदी लोगों को बुलाकर 14 मई 1948 में किया गया वर्तमान में इस देश की जनसंख्या लगभग एक करोड़ है यहां मुद्रा शकील के नाम से जानी जाती है। यहूदी संप्रदाय को मानने वाले लोग इजराइल में पूरे विश्व से बुलवा कर बस आई गए हैं। इजराइल शब्द का अर्थ बाइबिल में प्राप्त होता है बाइबल के अनुसार फरिश्ते के साथ ही युद्ध लड़ने वाले जैकब को इसराइल कहा गया है और उसी के नाम पर इस राष्ट्र का नाम इजराइल पड़ा है। इजराइल एक बहुत छोटा सा राष्ट्र है लेकिन इसकी सामरिक शक्ति और इसकी रक्षात्मक क्षमता को कोई भी राष्ट्र नात नहीं पाया है।
यहूदियों तथा यहूदी राष्ट्र इजराइल को आज भी कई देश जैसे पाकिस्तान आदि ने मान्यता प्रदान नहीं की है। जबकि अरब देशों की बॉडी लैंग्वेज में कुछ परिवर्तन जरूर आया है। भारत के इजराइल से पहले भी सकारात्मक और बेहतर संबंधित है जो वर्तमान में भी जारी हैं लेकिन यासर अराफात के दौर में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन यानी पीएलओ के साथ भारत के आत्मीय संबंध होने की पुष्टि स्वर्गीय यासिर अराफात और स्वर्गीय इंदिरा जी के बीच सकारात्मक विचार विमर्श से होती रही है।
  भारतीय विदेश नीति की शुरू से विशेषता यह है कि भारत धर्म आधारित किसी भी अवधारणा को लेकर मित्रता या दुश्मनी का व्यवहार नहीं रखता बल्कि भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों का आधार वैश्विक मानवतावादी दृष्टिकोण ही रहा है। भारत न केवल गुटनिरपेक्ष अवधारणा का प्रमुख केंद्र रहा है बल्कि भारत पंथनिरपेक्ष एवं धर्मनिरपेक्षता का प्रमुख केंद्र था है और रहेगा बावजूद इसके कि यह समझा जाता हो या समझाया जाता हो कि भारत एक ऐसी पार्टी के शासन में है जो राष्ट्रवादी है। भारत में राष्ट्रवाद की परिभाषा वह नहीं है जो कि अन्य देशों या शेष विश्व में परिलक्षित होती है।
इस वर्ष रमजान के मौके पर 7 मई शुक्रवार को अल अक्सा मस्जिद पर फिलिस्तीनीयों और पुलिस के बीच में झड़प हुई और धीरे-धीरे इस झड़प में एक बड़ा रूप ले लिया। दूसरी ओर एक मीडिया रिपोर्ट कहती है कि एक आतंकवादी अबू अल हता की मृत्यु हुई इसका एक कारण है ।
दिनांक 10 मई 2021 को हुए हमले के बाद इसराइल ने उग्र रूप धारण कर लिया है। इजराइल प्रशासन पर यह आरोप भी है कि इजरायल वेस्ट बैंक वाले उस क्षेत्र में जहां पर फिलिस्तीनी रहते हैं विशेष रूप से नकारात्मक दृष्टिकोण रखता है। बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इजराइल जूविनाइल्स को भी बिना किसी कारण बताएं बंधक बना लेता और उन्हें टॉर्चर किया जाता है। इसके उलट इजराइल का प्रशासन यह कहता है कि आईएसआईएस आतंकी गतिविधियों में बच्चों एवं किशोरों का इस्तेमाल करने की वजह से ऐसे कदम उठाए जाते हैं। वैसे इस्लामिक उग्रवाद द्वारा ऐसा ही  हथकंडा आपने कश्मीर में भी देखा होगा । 
     कहने को तो यरूशलम एक पवित्र धरती है और इस पवित्र धरती पर फादर अब्राहिम इसराइल और मोहम्मद साहब के स्वर्गारोहण की मान्यता है  अर्थात अब्राहिमिक- धर्म के तीनों संप्रदाय यहूदी क्रिश्चियनिटी इस्लाम  के लिए यह शहर आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। वर्तमान में जेरूसलम के प्रशासन के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो इस शहर को सुरक्षित रख सके परंतु इजराइल का इस पर कब्ज़ा बढ़ता जा रहा है ।यही सबसे बड़ी विवाद की परिस्थिति है। 
     फिलिस्तीन तथा इजरायल के बीच किसी बड़े युद्ध की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इस संबंध में भारत का अगला कदम क्या होगा यह देखने वाली बात होगी। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी मैं भारत की भूमिका को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिस्थितियां इस युद्ध को टालने का मन बना चुकी है। हमास संगठन के लोगों द्वारा यह आक्रमण किया है जिस के प्रत्युत्तर में हमास के कई महत्वपूर्ण ठिकानों पर इजराइल ने घातक प्रभाव शाली हमले किए हैं और उससे अंततः नुकसान फिलिस्तीन का ही हुआ है।
   अल अक्सा मस्जिद से शुरू हुए इस विवाद के संबंध में अरब देशों से अब तक कोई वर्जन नहीं आना भी उल्लेखनीय स्थिति है। जानकारों का और मेरा स्वयं यह विचार है कि संभवत ओआईसी इस पर विशेष ध्यान नहीं देंगे। यद्यपि इसके उलट भी कार्य हो सकता है परंतु यह सब अरब देशों की नीति पर निर्भर करेगा। फिलिस्तीनी राष्ट्रवादीयों के विरुद्ध इस वक्त यहूदियों की ताकत अर्थात इजराइल की ताकत और यूरोप का समर्थन आगे देखने को मिल सकता है। फल स्वरुप परिस्थिति में आमूलचूल परिवर्तन संभव है।  लगभग 2000 साल पहले यहूदियों के साथ यूरोप एवं 1400 बरस पूर्व इस्लाम की उत्पत्ति के उपरांत पहले परिस्थितियों को देखकर वर्तमान में स्थिति पहली बार कुछ इस तरह निर्मित हुई है कि यूरोप और इजराइल एक साथ है अर्थात यहूदी और क्रिश्चियनिटी के मध्य जुड़ाव की स्थिति देखी गई है। ऐसी स्थिति में गाजा पट्टी पर संपूर्ण प्रभाव एवं व्यवस्थापन की जिम्मेदारी इजराइल को मिल सकती है। साथ ही यरुशलम का प्रबंधन भी इसराइल के हाथों में मिलने की पूरी पूरी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता । परंतु अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बनते बिगड़ते देर नहीं होती इस सिद्धांत को देखा जाए तो अनिश्चितता फिर भी शेष रहेगी।
                     टर्की का सुर ओ आई सी को उकसाने के  बोल, बोल  रहा है.                            

2.5.21

बृहदत्त वध

बृहदत्त-वध 
   ईसा के 185 वर्ष पूर्व मगध में
बृहदत्त के शासनकाल में पुष्यमित्र को प्रियदर्शी अशोक के सिद्धांतों पर का गलत तरीके से बनाए गए नियमों एवं उनके क्रियान्वयन पर आपत्ति थी । सेना के लिए पर्याप्त धन कोषागार से ना मिलना उन्हें बहुत अखर जाता था, पुष्यमित्र का विधायक तब भी दिन हो जाता था  जब अनावश्यक रूप से सेना के व्यय से कटौती करके स्वर्ण मुद्राएं मठों को दी जाती थीं। अन्य मंत्रियों को भी अपने-अपने विभाग के कार्य संचालन के लिए यही समस्या बहुधा खड़ी हो जाती थी। परंतु बृहदत्त के समक्ष विरोध करने का किसी में साहस नहीं था। साहस तो मात्र एक व्यक्ति में था , वह था पुष्यमित्र ।
   ब्राम्हण वेद के साथ विधान के साथ सामान्यतः खड़ग नहीं उठाते खडग उठाएं लेकिन जब राष्ट्र के अस्तित्व का प्रश्न उठता है राष्ट्र के अस्तित्व को बचाने के लिए विप्रो को तलवार उठानी पड़ती है । राज निष्ठा और राष्ट्र निष्ठा दो अलग-अलग पहलू है।
   चाणक्य को यह नहीं मालूम था कि भविष्य का कोई ब्रहदत्त किसी विप्र के गुस्से का शिकार होगा ! राष्ट्र के धर्म को बचाने के लिए एक और ब्राम्हण को खडग उठाना होता है । 
     इसका प्रमाण जानने के लिए  आप सांची के स्तूपों पर ध्यान दीजिए ये स्तूप अभी के नहीं है यह बौद्ध स्तूप शुंग वंश के दौर मैं ही संरक्षित किए गए  हैं। मध्यप्रदेश में रहने वाले तथा इस लेख को पढ़ने वाले समझ गए होंगे कि पुष्यमित्र शुंग के बारे में जितना नकारात्मक कहा गया है वह एक तरफा नैरेटिव है। पुष्यमित्र शुंग बृहदत के खिलाफ था ना कि महात्मा बुद्ध की परंपरा के। कुछ ग्रंथों एवं इतिहास में जो भी लिखा हो उससे तनिक दूर हट के इस सवाल का उत्तर दीजिए क्या बौद्ध मठों में यूनान के जासूसों को शरण देना ठीक था..? 
    
पटना को जानते हैं वही जिसे बिहार की राजधानी और प्राचीन काल में पाटलिपुत्र कहते थे ।  मौर्य वंश के महान प्रतापी राजा चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर बृहदत्त तक बहुत बड़ी कहानियां लिखी गईं ।  मौर्य वंश के प्रतापी राजाओं की सम्राट अशोक भी थे और बहुत सारे राजा जिन्होंने मगध पर शासन किया और उस वक्त मगध पर शासन अर्थात अखंड भारत का सम्राट हो जाना ही तो था। 16 महाजनपदों में सबसे बलवान समृद्ध और शक्तिमान मगध ही तो था। परंतु यह क्या अचानक नदियों के किनारे से आदित्य स्त्रोत की आवाजें आनी बंद हो गईं। मंदिरों से वेद मंत्रोच्चार ना सुनकर सेनापति पुष्यमित्र के मन में हलचल पैदा हो गई। फिर पुष्यमित्र भूल गए कुछ समय के लिए। तभी एक गुप्तचर ने आकर सूचना दी सेनापति जी आपने पूछा था ना कि आदित्य स्त्रोत भूल रहा हूं नदी के तटों से आवाज नहीं आ रही शिव महिम्न स्त्रोत भी नहीं सुनाई देती है अब इसकी वजह जानना चाहेंगे ?
पुष्यमित्र चकित होकर गुप्तचर को देखते रहे।
  और फिर बोल पड़े हां बताओ क्या वजह है ?
सेनापति जी मठों में यूनान से आए लोग जो आम जनता नहीं है बल्कि गुप्तचर है निवास कर रहे हैं
दीर्घ सांस छोड़ते हुए पुष्यमित्र ने कहा- ठीक तो है महात्मा बुद्ध के संदेश यवनों को कुछ आचरण सिखा देंगे सीखने दो रहने दो. और मठों में उनके निवास करने से शिव महिम्न स्त्रोत और आदित्य स्त्रोत का क्या लेना देना बच्चों जैसी बात कर रहे हैं गुप्तचर आप तो ?
गुप्तचर- नहीं सेनापति जी, आप विषय की गंभीरता से दूर है मैं यह नहीं कह रहा हूं की यूनानी यात्री कहां रुकें कहां ना रुकें ..? परंतु जो स्थिति है वह राष्ट्र की अस्मिता पर हमला होने जा रहा है। यूनानी लोग महाराज बृहदत्त के विरुद्ध वातावरण निर्माण कर रहे हैं।
आप विश्वास करें या ना करें हो सकता है कि मैंने गलत देखा हूं परंतु अगर एक बार आप इसका परीक्षण करा लेते तो बेहतर होता।
    पुष्यमित्र बहुत देर तक अपने महल में बेचैन से घूमते रहे और विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि ये मठ सिहासन के पायदान कमजोर करने की तैयारी में लिप्त हो गए हैं। अचानक पुष्यमित्र कुछ विश्वसनीय लोगों को बुलाते हैं और कई मठों में उन्हें भिक्षुक बना कर भेजते हैं। एक टीम के साथ वे खुद भी जाते हैं। इस बात का खास ध्यान रखा गया कि जिन मठों में यूनानी लोग रुके हैं उनसे ज्यादा से ज्यादा संपर्क में रह जाए। बहुत जल्दी ही कहानी स्पष्ट हो गई और पता चला कि निकट भविष्य में कोई बड़ी सेना यूनान से भारत आएगी और अखंड भारत का यह महत्वपूर्ण महाजनपद उनके दासता में होगा...!
     पुष्यमित्र से रहा न गया वे तुरंत ही बृहदत्त से मिलना चाहते थे। परंतु वे जानते थे कि महाराज समय भोग विलासी शाम के बाहु पास में बंद होंगे। अगले दिन प्रातः काल की संपूर्ण जानकारी के साथ दरबार में पहुंचे तो पता चला कि महाराज आज भी दरबार में नहीं आए और ना ही आएंगे।
   सैनिकों के वेतन पर कटौती एवं सैन्य में कमी का वस्त्र पत्र देखकर सिर से पांव तक क्रोध की अग्नि के संचार का एहसास करते हुए पुष्यमित्र अब रुकने वाले कहां थे। हाथों में खड़ग लिखकर दरबार से सीधे राजमहल की ओर चल पड़े जहां से उन्हें वापस लौटना पड़ा। तीसरे दिवस में राजा सी भेंट हो सकी वह भी दरबार में बहुत इंतजार किया था दरबारियों ने उनके साथ और राजा से मिलते ही पुष्यमित्र ने अपनी समस्या बता दी। परंतु राजा ने ना तो सैनिकों की पगार में कटौती को वापस लिया नाही सैन्य बल में कमी के आदेश को बदलने की कोई पहल की थी। तब भरी सभा में इस बात का रहस्योद्घाटन करना पड़ा कि किसी भी वक्त यूनान की सेना भारत पर आक्रमण कर सकती है। और इस बात के सबूत भी प्रस्तुत किए गए।
बृहदत्त ने अट्टहास करते हुए कहा कि आप अनावश्यक भ्रमित है ऐसा कुछ नहीं हो सकता। हमें लगता है कि आपके मस्तिष्क पर किसी ने वैदिक मंत्रों और ऋचाओं से आक्रमण आप जाएं और बच्चों को जातक कथाओं की जानकारी दें अनावश्यक राष्ट्र की चिंता ना करें।
   खून का घूंट पीकर पुष्यमित्र वापस अपने महल में आए। और फिर अचानक उन्होंने सेना को टुकड़ियों में तैयार रहने को कहा और उन मठों में प्रवेश किया जहां पर यूनानी जासूस मौजूद थे।
लगभग 40 से 50 बंदी बनाए गए साक्ष्य सहित दरबार में जब बंदियों सहित पुष्यमित्र शुंग उपस्थित हुए तब बृहदत्त आक्रोश में आ गए।
  बृहदत्त : पुष्यमित्र आप अपनी सीमाओं को पार कर रहे हैं राजआज्ञा के विरुद्ध आपने राजा की सहमति के बिना यह कार्य किया है यह दंडनीय है।
पुष्यमित्र - मान्यवर हम इस देश के प्रति वफादार हैं
बृहदत्त : और राजा के लिए
पुष्यमित्र : राष्ट्र सर्वोपरि है शायद आप नहीं अगर आप राष्ट्र के विरोध में काम करेंगे तो। राष्ट्रीय जनता से बनता है आप तो बस सेवक हैं मेरी तरह। हे राजन यह किसी भी तरह आपके लिए अपमान कारक कार्य नहीं है जो मैंने किया अपमान तो तब होता जब यूनान की सेना आप को बंदी बना कर ले जाती।
बृहदत्त: सेनापति पुष्यमित्र तुम अपनी हदें पार कर रहे हो। मुझे लगता है राज्य के प्रति तुम्हारी निष्ठा समाप्त प्रतीत होती है। क्यों ना मैं तुम्हें कारागार में डलवा दूं अभी भी वक्त है यूनानी बौद्ध भिक्षुओं को छोड़ दीजिए। यह राजाज्ञा है 
पुष्यमित्र शुंग : महाराज मेरे पास पर्याप्त सबूत है और जनता के प्रति मेरा उत्तरदायित्व है आप भले ही प्रमाद में डूबे रहे परंतु मैंने यह भी जानकारी हासिल कर ली है कि आप केवल एक धर्म सापेक्ष और सेना का अपमान करने वाले राजा सिद्ध हो गए हैं। आपने मठों को अकारण ही बहुत सारा धन दिया है। जनता के श्रम पसीने से श्रेणिकों  के श्रम से अर्जित धन से प्राप्त कराधान राशि का दुरुपयोग किया है।
मान्यवर यह बताएं कि आपने कितने गुरुकुलों को धन दिया है कितने जैन मंदिरों को टूटने से बचाया है कितने वेदाश्रमों को आपने राजाश्रय दिया है। राजन आपका यह एकपक्षीय व्यवहार मगध की जनता को दुखी कर रहा है।
     इतना सुनना था कि बृहदत्त ने म्यान से तलवार निकाली और झपट पड़े पुष्यमित्र शुंग पर आक्रामक होकर। सेनापति पुष्यमित्र शरीर पर तलवार का प्रहार रक्त की एक लकीर दरबार में सबने देखी। और फिर क्या था पुष्यमित्र शुंग के अंतस बैठा परशुराम जाग उठे और आत्मरक्षा के लिए ही नहीं बल्कि मगध की रक्षा के लिए पुष्यमित्र ने गंभीर प्रहार करके विलासी एवं अल्पज्ञ प्रशासन संरक्षक बृहदत्त को समाप्त कर दिया।
     इसके साथ ही शुरू हुआ शुंग वंश का मगध राज। विशुद्ध रूप से ब्राह्मणों का राज परंतु अधिकार किसी के नहीं छीने गए
विदिशा का बौद्ध स्तूप के सुधार कार्य एवं उसके विस्तार के लिए  सबसे पहले राजकोष से राशि आवंटित की गई। और फिर सभी मतों संप्रदायों के साथ वैदिक धर्म के उत्थान के लिए कार्य प्रारंभ हुए।

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