#आजतक चैनल पर आइएम के महासचिव डॉक्टर जयेश लेले एवं एवं पूर्व अध्यक्ष श्री राजन शर्मा ने एंकर अंजना ओम कश्यप की मौजूदगी में एक विवादास्पद बहस में हिस्सा लिया जिसमें टारगेट किया जा रहा था प्राकृतिक चिकित्सा के पुनर्प्रवर्तक बाबा रामदेव को। इस बहस में परिचर्चा का कोई भी गुण नजर नहीं आ रहा था बल्कि यह अपराध परीक्षण जी हां मीडिया ट्रायल था यह एक सबसे बड़ी विवादास्पद बहस थी। एलोपैथिक वर्सेस आयुर्वेद एवं नेचरोपैथी को लेकर आजतक न्यूज़ ने जिस तरह का नेगेटिव अवधारणा को जन्म दिया है शर्मनाक है। भारत ने आयुर्वेद योग दर्शन और फिलासफी के लिए बहुत अधिक योगदान नहीं किया है और अगर किया भी है तो वह निजी तौर पर हुआ है उनमें से एक है रामदेव जिनकी अपनी अवधारणा है और वे इस दिशा में काम कर रहे हैं। परंतु उनके इस आयुर्वेदिक एवं प्राकृतिक #innovation को इस कदर अपमानित किया गया जो आज तक न्यूज़ चैनल की टीआरपी के लिए भले अच्छा हो लेकिन भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। एलोपैथिक को बुरा नहीं कहा जा सकता तो आयुर्वेद और नेचुरोपैथी को भी अपमानित करने का अधिकार किसी को नहीं है। और खासकर तब जबकि कोविड-19 जैसी महामारी का दौर है। आप स्पष्ट रूप से जान लीजिए कि हमारा रसोईघर अपने आप में एक मेडिसिन सेंटर है। जो हम खाते हैं उसमें माइक्रोन्यूट्रिएंट्स पर्याप्त मात्रा में मौजूद होता है और इम्यूनिटी पावर बढ़ाने की क्षमता हमारे भोजन में मौजूद होती है। कुछ इन्हीं सिद्धांतों पर काम करती है बाबा रामदेव की दवाई यूनानी आयुर्वेद बायोकेमिक नेचुरोपैथी द्वारा किए गए कार्य एलोपैथी के तीव्र विस्तार के कारण बहुत अधिक नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं। ना तो इससे भारत का भला है और ना ही एलोपैथी का। एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली धन कमाने का बहुत बड़ा साधन है अमेरिकन मेडिकल सिस्टम एक माफिया की तरह काम करता है ऐसा लोगों का मानना है परंतु इस मान्यता की मेरे द्वारा आज तक पुष्टि नहीं की जा सकती है पर क्या नहीं किया जा सकता अमेरिका या यूरोप देशों द्वारा। भारत का प्राकृतिक अधिकार है परंतु अगर आप विश्व के किसी भी हिस्से में योग कक्षा खोलना चाहते हैं तो आपको यूरोप के किसी इंस्टिट्यूशन से हजारों डॉलर देखकर लाइसेंस हासिल करना पड़ता है। आप समझ सकते हैं कि हमारे चिकित्सक जो एलोपैथी को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं उनको यह भी मानना होगा कि अगर आयुर्वेद यूनानी बायोकेमिक जर्मनी नेचुरोपैथी आदि चिकित्सा प्रणालियों पर कार्य होता तो निश्चित तौर पर देश काफी आगे होते और एकमात्र चिकित्सा प्रणाली के पीछे भटकाव नहीं हो पाता। यह सब हमारी मूर्खताओं का परिणाम है क्योंकि हम आयातित चीजों को अपना स्टेटस सिंबल मानते हैं। जैसा कर रहे हो तो भोगना ही होगा बहराल में अपना व्यक्तिगत अनुभव बता दो की 2010 से लेकर 2019 तक प्रतिवर्ष मुझे फेफड़ों की शिकायत होती थी और मुझे लगातार लगभग 50+ से अधिक रुपए खर्च करने होते थे लेकिन लेकिन कोविड-19 के कारण आयुर्वेदिक खास तौर पर पतंजलि की मेडिसिन का प्रयोग किया ताकि मुझे कफ की वजह से फेफड़ों की समस्या से मुक्ति मिले और उन दवाओं से मुझे लाभ हुआ है। जबकि यह सामर्थ्य एलोपैथी में नहीं है। निर्णय आपको करना है सभी चिकित्सा प्रणालियां अपने आप में प्रभावशाली हैं किसी को अपमानित करने की जरूरत नहीं है ना तो एलोपैथिक को और 9 अन्य को लेकिन यह वीडियो यह सिद्ध कर रहा है कि एलोपैथी के अलावा दुनिया में इसका का कोई विकल्प नहीं है। मैं एक ऐसे विद्वान को जानता हूं जो इसी शहर में रहते हैं और जिन्होंने एनाटॉमी का रेखा चित्र बनाकर ब्रिटेन में भेजा और ब्रिटेन ने एनाटॉमी संरचना को अपने मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए पाठ्यक्रम में शामिल किया । आप चाहेंगे तो आपसे मुलाकात किसी दिन जरूर कर आऊंगा। फिलहाल आप दिए लिंक को क्लिक करके डॉ हेमराज जैन साहब के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं
दुर्भाग्य यह है कि जनसत्ता जनसत्ता ने भी अपने समाचार में जो हेडिंग दी है वह कम भड़काऊ या अपमानकारी है