7.12.20

WhatsApp DP | Short Film | Indie Routes Films | Reaction YouTube film

##WhatApp_DP By Indie Routes Films 
Staring *ing Abha Joshi #Ravindr_Joshi

मर्मस्पर्शी यूट्यूब वीडियो है . 
यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि रोजगार के लिए यात्रा करनी पड़ती है । भारत से पिछले 25 वर्ष में बहुत सारे बच्चे विदेशों में गए। इन बच्चों की वापसी अब असंभव है। आपके पूर्वज एक ही पहले पिता माता जब गांव से शहर आए तो वापस फिर कभी नहीं गए उन गांवों में जहां उनके जन्म के नाम के लड्डू बांटे गए थे। उसके बाद आपके बच्चे मेट्रो दिल्ली मुंबई गुड़गांव चेन्नई पुणे हैदराबाद यानी भाग्यनगर में साइबर मजदूरी करने लगे तो वे भी वापस आने में आनाकानी कर रहे हैं।मेट्रो से निकलकर अमेरिका, कैनेडा  आस्ट्रेलिया  इंग्लैंड इटली जर्मनी फ्रांस नीदरलैंड, आदि  देशों में गए हैं वे क्या खाक आपका कस्बा नुमा शहर जबलपुर जैसे शहरों को पसंद करेंगे जहां आज भी गाने गा गा कर कचरा इकट्ठा किया जा रहा हो। इस फिल्म में एक डायलॉग है वहां इंडियन डायसपोरा केवल अपने ही हुजूम के साथ रहता है। उसे उस देश की आबादी में स्वीकार्य नहीं किया है। 10 से  15 साल पहले वैश्वीकरण के उपरांत पड़ने वाले प्रभाव को टेक केयर नाटक में बखूबी प्रदर्शित किया गया था शहीद स्मारक में आयोजित विवेचना #अविभाजित नाट्य समारोह में यह नाटक हृदय पर गंभीर रूप से चोट कर रहा था।
उसके कुछ सालों बाद हमने एक सत्य कथा सुनी की एक मां अपने फ्लैट में मरने के बाद सूखी हुई ढांचे के रूप में बेटे के इंतजार में पड़ी रही।
मायानगरी के पॉश इलाके 
लोखंडवाला के वेल्सकॉड टावर की दसवीं मंजिल पर स्थित एक बंद फ्लैट में रविवार को 63 वर्षीय महिला का कंकाल मिलने से सनसनी फैल गई। पुलिस ने बताया कि महिला का बेटा डेढ़ साल बाद रविवार को दोपहर जब भारत आया तो मां के फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद था, जिसे तोड़ने के बाद अंदर जाने पर उसने मां का कंकाल बेड पर देखा। महिला की पहचान आशा केदार साहनी के रूप में हुई, जिसका बेटा रितुराज साहनी यूएसए में आईटी इंजिनियर हैं। 
भारतीय मध्यम वर्ग भी डालर्स के मोहपाश में बंध गया..?
जी हां भारत का मध्यवर्ग डॉलर के जाल में फंसा नजर आ रहा है ।  मध्य वर्ग एक ऐसी खतरनाक भूल करने जा रहा है जिससे उसकी पारिवारिक और कौटुंबिक आकृति में बदलाव बहुत करीब दिखाई देने वाला है। क्योंकि भारत का मध्य वर्ग भारत के आर्थिक विकास रीढ़ की हड्डी है । और इस वर्ग से निकले हुए बच्चे भारत के लिए विदेशी मुद्रा कमाने  की योग्यता  में अब  सबसे आगे नजर आते हैं ।  फिल्म निर्माता एवं अभिनेता श्री रवि जोशी जी  से आज चर्चा हुई  उनका  मानना है कि -"भारत का मध्य वर्ग अपने बच्चों को विदेश भेज अवश्य देता है किंतु बच्चों के सिर पर हाथ फेरने के लिए तरसता भी है"
फिल्म में एक दृश्य है जिसमें नायिका यूएस में बसे हुए बेटे और उसकी संतान तथा बहू के विषय में चर्चा करते समय नायक के मित्र का फोन आता है तो वह अपने पुत्र की जबरदस्त तारीफ करता है। जबकि संवाद  बोलते समय नायक के चेहरे पर वह कसक स्पष्ट नजर आती है जो संतान से मिलने के लिए एक पिता के चेहरे से झलकती है । दिल्ली मुंबई और नए-नए महानगरों में ऐसे बुजुर्ग बहुत मिल जाएंगे जो मॉर्निंग वॉक के समय विदेश में बस रहे अपने बच्चों के बारे में बड़े गर्व से बताते हैं। सुधि पाठकों भारत का सारा टैलेंट मल्टी नेशंस के शिकंजे में है क्योंकि ना तो भारत और ना ही भारत की परिस्थितियां उस योग्यता को समझ पा रही हैं । 
  अक्सर मैं यूएस और फिर कनाडा में बसे अपने भतीजे की पुत्री से बात करता हूं...ताकि उसे अपने से बांध कर रख सकूं। शायद वह जब भारत आए तो हमारी मुलाकात अजनबीयों की तरह ना हो ..!
    
फाह्यान और वास्को डी गामा जो पूरब के भारत को तलाशते हुए भारत आई थी वोल्गा से गंगा तक संस्कृति के चार अध्याय को समझना चाहते थे अपुष्ट जानकारी के मुताबिक एक पंथ के प्रवर्तक का भारत आना हुआ था। उन तीनों भारत का दर्शन अध्यात्म सामाजिक सांस्कृतिक वैभव विज्ञान कला राजनैतिक ज्ञान का अक्षय भंडार माना जाता था। उसी भारत के लोग डॉलर की तलाश में साइबर लेबर बनके विश्व के चक्कर लगा रहे हैं और आत्मिक अंतर्संबंध प्रॉपर्ली सिंक्रोनाइज नहीं हो पा रहे है। मित्रों कृषि प्रधान भारत में आत्मनिर्भरता जैसी योजना का लाना यही सिद्ध करता है कि हमारे विश्व की ओर प्रवाहित बौद्धिक संपदा को वापस लाया जा सके परंतु क्या करें..?  यह बच्चे भारत में लौट कर नहीं आने वाले। लेकिन हां हर मध्यवर्गीय पिता माता और विदेश जाने वाला युवा दक्षिण भारत के गांवों के बारे में गूगल करें तो उसे स्पष्ट हो जाएगा कि भारत और विश्व के किसी भी कोने से रिटायर्ड चपरासी से लेकर आईएएस आईएएस आईपीएस की अंतिम इच्छा गांव में वापस लौटना ही होती है बहुत सारे लोगों को आप दक्षिण भारत में मस्त रिटायर्ड लाइफ जीते देख सकते हैं। पर सच तो यह भी है कि अब भारत की डस्ट और गंदगी प्रवासी परिंदों को पसंद नहीं आती । 
आगे आने वाले दौर की पीढ़ीयाँ भी यही सब करेगी हां सच है कि वह लौटेंगे नहीं। 
इस फिल्म को मैं पांच सितारे भी दूं तो कम है।
         यूट्यूब के  इंडी रूट्स फिल्म  चैनल पर प्रस्तुत इस वीडियो में एक कमेंट भी है जिसमें एक व्यक्ति ने लिखा है कि यह मेरी कहानी है । 
इस आप पढ़ना ना भूलें । 
    मित्रों मेरे एक मित्र अनुराग त्रिवेदी ने बताया की जब फुदक चिरैया गीत को  स्थानीय नईदुनिया ने गौरैया बचाओ अभियान के तहत छापा तो उनके परिचित रिश्तेदार उसे पढ़ कर रोने लगे थे - उनके भावुक होने का कारण गीत की ये पंक्तियां थी
जंगला साफ़ करो न साजन
चिड़िया का घर बना वहां ..!
जो तोड़ोगे घर इनका तुम
भटकेंगी ये कहाँ कहाँ ?
अंडे सेने दो इनको तुम – अपनी प्यारी गौरैया ...!!
हर जंगले में जाली लग गई
आँगन से चुग्गा भी गुम...!
बच्चे सब परदेश निकस गए-
घर में शेष रहे हम तुम ....!!
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https://m.youtube.com/channel/UCCOt2wDuIe7Szx4PPQ7Jc5Q
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3.12.20

अन्नदाता कृषक भी भारतीय नागरिक है

कृषि कार्य में उन्नत तकनीकी अजमानी की जोखिम बहुत कम किसान उठा पाते हैं चित्र में हरदा जिले के कृषक श्री राजेंद्र गुहा अपने एमबीए किसान पुत्र के साथ नजर आ रहे हैं

 वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन ने भारत सहित 164 देश संधिबद्ध हैं..!
      मित्रों मैं किसान आंदोलन के प्रारंभिक दिनों से ही आंदोलन को फॉलो कर रहा हूं। किंतु उसके पहले आपको बता दूं कि WTO एवम विश्व व्यापार पर भी निरंतर मेरा अध्ययन जारी है ।
         विश्व व्यापार संगठन  के 1 जनवरी  1995 के पूर्व  विश्व व्यापार का रेगुलराइजेशन आपसी अस्थाई समझौता के तहत हुआ करता था । इसे सामान्य समझौता ट्रेड एवं टैरिफ कहा जा गया था। अंग्रेजी में इसे general agreement on trade and tariff संक्षेप में  GATT  कहा गया जो सन 1986 से 94 प्रभावी रहा । इस पर आधारित समझौते अस्थाई और अनुबंध तोड़ भी दिए जाते थे और इसी कारण से विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की गई जिसे हम डब्ल्यूटीओ के नाम से जानते हैं
डब्ल्यूटीओ अति महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो विश्व मैं व्यापारी व्यवस्था को विनियमित यानी रेग्युलेट  करती है। 
आइये हम चर्चा करते हैं कनाडा की ! इस अचानक चर्चा की वजह है । 
कनाडा विश्व के लिए यूरोप का एक बहुत महत्वपूर्ण राष्ट्र है । जो कि नाटो, जी-20 और जी-7 सहित कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों एवं संगठनों का हिस्सा भी है। भारत में  सब्सिडी एवं एमएसपी के विरुद्ध  2014 में जस्टिन ट्रूडो ने लीड लेते हुए डब्ल्यूटीओ के प्रमुख वोबर्डो अज़वेडो के समक्ष भारत के विरुद्ध और विश्व व्यापार में अपने हितों के पक्ष में जबरदस्त  दबाव बनाने के लिए ब्राजील और न्यूजीलैंड के साथ लिखित मांग पत्र प्रस्तुत किया। भारतीय व्यापार व्यवस्था से जिन तीन राष्ट्रों को खासी समस्या होने वाली है उनमें कनाडा ब्राजील और न्यूजीलैंड है।
ब्राजील के प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ
 न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ
भारत से समस्या तो चीन को भी है किंतु कृषि के मामले में जिस तेजी से भारत  कृषि उत्पादों के निर्यात में 2014 से कोविड-19 के पूर्व के समय तक जिस  चुनौती दे रहा था उसका सीधा सीधा प्रभाव केनेडा ब्राजील और न्यूजीलैंड पर पड़ रहा था । कृषि प्रधान पंजाब से गए लगभग वहां की आबादी के 5% सिख समुदाय अब वहां अपनी मेहनत के बूते अपना लोहा मनवा चुके हैं । 
आप यह जानकर आश्चर्य करेंगे कि जस्टिन ट्रूडो भारत के लिए अपनी नेगेटिव नैरेटिव के लिए विश्व में जाने जाते हैं ।  सबूत के तौर पर आप याद कीजिए इनकी 2018 की भारत यात्रा तब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इन्हें वर्ष 2018 में शाहरुख भाई जान से स्वागत करा कर ही वापस लौटना पड़ा था।
और बाद में खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे की स्थिति में उनने एक इंटरव्यू में कहा कि-"मुझे भारत यात्रा याद नहीं ।" 
  वास्तव में यह सत्य भी है भारत की ओर से इन्हें इनके बर्ताव के चलते प्रोटोकॉल के अनुरूप सम्मान हासिल नहीं हो सका था ।


विश्व व्यापार संधि के अनुसार विश्व के सभी राष्ट्र उत्पादन लागत को स्थिर रखेंगे और सामान्यत: में वैश्विक बाजार में विक्रय की मूल्य में बहुत अधिक अंतर नहीं होना चाहिए।

मित्रों भारत बहुत गरीब देश है । जहां पर जनसंख्या का अधिकांश कृषि से जुड़े व्यक्ति भूस्वामी कृषक ना हो कर कृषि मजदूरों की संख्या के रूप में चयनित होते हैं।
  खेती को उत्तम मानने वाला भारत का सामाजिक ढांचा कृषि को अब उद्योग के रूप में नहीं देखता । साथ ही तकनीकी रूप से किसान का सुविधा संपन्न ना होना सबसे बड़ी समस्या है। भारत में सहकारिता कृषि का भी कांसेप्ट नहीं है।
भारतीय किसान  स्वयं को कंजरवेटिव मानते हुए पूंजी संचय के सापेक्ष प्राप्त आय को व्यक्तिगत खर्चों अनुत्पादक मदों पर खर्च करना अधिक पसंद करते हैं । कैश क्रॉप और अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने की प्रबंधन क्षमता भी अपेक्षाकृत कृषक के पास कम है। 1951 से वर्तमान तक कृषि उत्पादन में मात्र 4 गुना वृद्धि हुई है जबकि  इसमें कम से कम 10 गुना वृद्धि होनी चाहिए थी ।
   भारत में कृषि योग्य भूमि का सही दोहन करने में कृषक असफल रहते हैं। कृषि क्षेत्र में भूमि के सापेक्ष उत्पादन भी अन्य देशों की अपेक्षा बहुत कम है। इसे समझने के लिए आप यह समझने की कोशिश कीजिए जैसे एक दम्पत्ति  अपने बच्चों को बेहतर बनाने में असफल रह जाते हैं  ठीक उसी तरह भूस्वामी किसान भी केवल अधिकतम 5 से 10 गुना फसल ही प्राप्त रहे हैं।
अभी भी भारत में उन्नत तरीके से कृषि कार्य करने में भारत का किसान कमजोर ही साबित हुआ है।
*इसलिए भारत सरकार को एवं राज्य सरकारों को लागत हेतु कैपिटल निर्माण के लिए सब्सिडी देती है ताकि लागत और विक्रय एवं उसके अंतर अर्थात लाभ  में सकारात्मक वृद्धि हो...*
सब्सिडी और बोनस का भरपूर विरोध लिखित रूप में डब्ल्यूटीओ के सामने जस्टिन ट्रूडो रहे अन्य दोनों देशों ब्राजील एवं न्यूजीलैंड के राष्ट्र अध्यक्षों ने हस्ताक्षर करके 2014 में  ही सौंप दिया था।
ब्राज़ील और न्यूजीलैंड के राष्ट्राध्यक्ष को छोड़ दिया जाए तो यहां सबसे संदिग्ध भूमिका में कैनेडियन प्राइम मिनिस्टर जस्टिन नज़र आते हैं। जस्टिन भारत को नागरिक आंदोलनों के संदर्भ में गैर जरूरी अर्थात  अप्रासंगिक सलाह दी कि हमें नागरिक आंदोलन का सम्मान करना चाहिए। फिर याद दिलाता हूँ कि  जस्टिन  वही राष्ट्राध्यक्ष है जिनके अन अपेक्षित भारत प्रवास वर्ष दो 2018 में भारत सरकार को उनके लायक ट्रीटमेंट देना पड़ा था।
  "इस शिकायती पत्र को WTO ने कचरे के डब्बे में डाला माना जाता है। अगर कोई कार्रवाई WHO करता भी तो भारत अपने किसानों को MSP एवम सब्सिडी नहीं रोकी जाती । "

पाठकों कनाडा जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्र के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो  इस वक्त राजनीतिक दबाव में अधिक हैं और उन्हें अपनी सत्ता में बने रहने के लिए सांसदों की जरूरत है । साथ ही एक वित्तीय घोटाले में उनके रिश्तेदारों व स्वयम जस्टिन के विरूद्ध कथित रूप से आरोप भी हैं । 
कैनेडा में पाकिस्तान डायस्पोरा के कैनेडियन नागरिकों से चुने गए सांसदों एवं खालिस्तान समर्थित भारतीय डायस्पोरा से चुने गए सांसदों के समर्थन की जरूरत है साथ ही सियासत के लिए धन भी ?
      परंतु अंतरराष्ट्रीय दबाव और भारतीय प्रशासन के संभावित तीखे तेवर के भय से वह केवल नागरिक आंदोलन के अधिकार के सम्मान की बात कह पाए ।
*इससे सिद्ध होता है कि कीमतों का निर्धारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार और डब्ल्यूटीओ संधि के आधार पर ही सामान्यतः होता है। भारत के किसान को पैसा मिलते ही सारा धन सोना चांदी जैसी बहुमूल्य वस्तुओं अथवा गैर उत्पादक कार्यों पर खर्च करने की परंपरागत आदत है। जबकि वर्तमान में कृषि एक औद्योगिक रूप से विकसित होने वाला सेक्टर है..!*

2.12.20

एक प्रधानमंत्री अंतर्राष्ट्रीय चूक

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने मंगलवार को भारत में किसानों द्वारा नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन के बारे में चिंता व्यक्त ( यूट्यूब लिंक ) की । ट्रूडो ने सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक या गुरु नानक की 551 वीं जयंती के अवसर पर कनाडाई सांसद बर्दिश चग्गर द्वारा आयोजित एक फेसबुक वीडियो कांफ्रेंस में भाग लेते हुए ये चिंता जाहिर की। उनके साथ कनाडा के मंत्री नवदीप बैंस, हरजीत सज्जन और सिख समुदाय के सदस्य शामिल थे। ट्रूडो ने कहा, “अगर मैं किसानों द्वारा विरोध के बारे में भारत से आने वाली खबरों की बात करूं स्थिति गंभीर है और हमें चिंता है। ट्रूडो ने कहा "आपको याद दिला दूं, शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार की रक्षा के लिए कनाडा हमेशा खड़ा रहेगा। हम बातचीत के महत्व पर विश्वास करते हैं और इसीलिए हम अपनी चिंताओं को उजागर करने के लिए सीधे भारतीय अधिकारियों के पास कई माध्यमों से पहुंच गए हैं।
 जस्टिन का यह भाषण केवल भारतीय मूल के कैनेडियन नागरिकों को संतुष्ट करने  वाला  वक्तव्य है जो उन्हें आगामी समय में राजनैतिक   लाभ दिला सकता है । वैसे भी कनाडा के आगामी आम चुनावों की परिस्थितियां जस्टिन  तू डूब के अनुकूल नहीं है। परंतु श्रीमती प्रियंका चतुर्वेदी जी ने जस्टिन ट्रूडो की इस हरकत पर ट्वीट करते हुए भारतीय मामलों में हस्तक्षेप ना करने की स्पष्ट  संदेश दिए  और आंतरिक मुद्दे के शीघ्र निपटान के लिए भारत के प्रधानमंत्री महोदय से  अनुरोध किया है। 
    आपको याद होगा जस्टिन ट्रूडो की 2018 वाली भारत यात्रा जिस पर यूट्यूब पर बहुत ज़बरदस्त कॉमेडी पेश करते हुए उनकी यात्रा को एक कलाकार ने डिजास्टर तक की संज्ञा दी डाली
भारत की ओर से फिल्मी कलाकार जस्टिन से मिले 

इस यात्रा को ना केवल विश्व में याद रखा है बल्कि Justin trudeau की आने वाली पीढ़ियों का इतिहास भी यही होगा।
   मुझे तो लगता है कि कैनेडियन प्रधानमंत्री के दिल का 2018 वाला
घाव अभी तक नहीं भरा है ।
  अपने ही देश में समस्याओं से घिरे जस्टिन के मुंह से भारत को नागरिक अधिकारों का ज्ञान बांटने वाले जस्टिन ट्रूडो को चाहिए कि -" खालिस्तान के समर्थकों को कनाडा आमंत्रित करें वहां की नागरिकता दें  और कनाडा को खालिस्तान के रूप में विकसित करलें । इससे बेहतर विकल्प उनके पास कोई शेष नहीं है अथवा एक और विकल्प है कि वह भारत के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करें ।  वैसे भी भारत में 1 इंच भी भूमि देशद्रोहियों के लिए अब शेष नहीं है। वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह

1.12.20

कोविड19 टीकाकरण के लिए 13.77 लाख से बड़ी आर्मी तैयार है !

 

हमारी सीमाओं की रक्षा करने  14 लाख से अधिक  वीर सैनिक तैनात हैं इसी तरह  भारत के सभी गांव शहर में 13 लाख 77 हज़ार आंगनवाड़ी कार्यकर्ता उतनी ही हेल्पर्स एवं आशा वर्कर ऊषा वर्कर हजारों प्रोजेक्ट ऑफीसर सुपरवाइजर एएनएम भारत में कोविड-19 के लिए तैयार  और निकट भविष्य में प्राप्त होने वाले टीके आसानी से मात्र 3 से 6 माह के भीतर लगा सकने में सक्षम है। 


 1975 से प्रारंभ  icds कार्यक्रम का इतना लाभ होने का है जिसकी विश्व में परिकल्पना ही ना की होगी यह मेरा दावा है । 
बात उन दिनों की है जब हम लिटरेसी को लेकर बहुत परेशान थे गांव में साक्षरता की दर को देखकर दुख होता था 2007 आते आते हमने जब गांवों का सैंपल सर्वे किया तो पाया 2004 से 2007 तक जिस तेजी से वृद्धि हुई उसकी वजह आंगनवाड़ी केंद्रों के साथ शिक्षा विभाग का कन्वर्जेंस तेजी से बड़ा यह एक उदाहरण मात्र है यह समझने के लिए कि अगर आंगनवाड़ी केंद्रों का इंवॉल्वमेंट किसी भी मुहिम के लिए किया जाता है तो उसकी सफलता की गारंटी कोई भी ले सकता है। 1996 में जब मैं इस सेवा का हिस्सा बना तब कुपोषण गैर बराबरी अशिक्षा कुरीतियां सोशल इंटेक्स को काफी नेगेटिवली रिफ्लेक्ट  कर रहे थे। इसकी  जड़ में  अशिक्षा बड़ा योगदान था । और देखते देखते  मंजर तेजी से बदल गया। 
   राज्य सरकारों ने इस सेवा की उपयोगिता को देखते हुए बहुत तेजी से सेवा के विस्तार को अपनाया उपहार के रूप में पाया कुपोषण के मामलों में कमी इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी की संख्या में इजाफा टोटल सैनिटेशन प्रोग्राम्स के कारण सकारात्मक वातावरण  बनाने के मामलों में बढ़ोतरी । 
मुझे अच्छी तरह याद है मेरे  सिलेक्शन  मेरी सिलेक्शन में यह पूछा था - "आप और कहीं जॉब कर सकते थे आपने आईसीडीएस को क्यों चुना 
" मैंने अपनी क्रैचस दिखाते हुए कहा कि -"1963 में  पोलियो का टीका होता तो शायद मैं इन्हें यूज नहीं कर रहा होता ।
 समझ लीजिए कि दक्षिण एशिया के चीन को छोड़कर समूचे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत जैसी व्यवस्था कहीं भी नजर नहीं आ सकती यहां तक कि यूरोप के अफ्रीका के देशों में भी ऐसी शासकीय तौर पर बनाई गई व्यवस्था के बारे में कोई सोच भी ना रहा होगा और इसका फायदा हम उठा सकेंगे यह तय है कोविड-19 का वैक्सीन तो आने दीजिए ।
इन सबके साथ साथ अगर ओपिनियन लीडर पॉलीटिकल लीडर सोशल वर्कर सोशल मीडिया इस कार्यक्रम में साथ देंगे तो भारत में कोविड-19 का वैक्सीनेशन विश्व के लिए सबसे कम समय में सबसे अधिक उपलब्धियों वाले आईकॉनिक अभियान के रूप में नजर आएगा। मुझे ऐसा लगता है कि अगर आप पूरे देश को 25 दिनों में टीकाकरण करना चाहे तो भी हम अपना टारगेट आसानी से हासिल कर लेंगे। यह मेरा 30 साल की सार्वजनिक जिंदगी का अनुभव कहता है।

30.11.20

जन्मपर्व पर शुभतामय संदेशों के लिए आभार

आभार नमन 
आज पूर्णिमा है 
    ॐ रामकृष्ण हरि:

    गुरुवर का जन्मपर्व मना रहा हूँ आप सबके साथ । 

29 नवम्बर को मेरा जन्मपर्व था ।  आप सब ने मुझे व्यक्तिगत रुप से उपस्थित होकर / टेलीफोन कॉल कर/ वीडियो  आडियो के जरिए तथा सोशल मीडिया पर शुभकामनाएं देने वाले शब्दों से युक्त उत्साहवर्धक और जीवन में जीने की जिजीविषा को नव संचार देने वाली शुभकामनाएं भेजीं । कुछ टेलीफोन कॉल शाम के बाद अचानक स्वास्थ्य खराब होने के कारण मैं रिसीव नहीं कर सका ब्लड प्रेशर का अचानक बढ़ जाना जरा दुखद रहा क्षमा चाहता हूं।
आप सब के शुभकामना संदेश के प्रति एवं विविध प्रकार की कलात्मक तरीके से अभिव्यक्त भावनाओं का सम्मान करता हूं। उन बच्चों का विशेष रूप से हार्दिक आभार और उन्हें अनवरत स्नेह देना चाहता हूं जिन्होंने अपने स्वरों में गीत उच्च स्तरीय शब्दों में कविता संप्रेषित की हैं ।
जीवन का आलाप यानी मेलोडी ऑफ लाइफ़ यही है। मैं ऐसे किसी स्वर्ग की कल्पना नहीं करता जहां ग्रंथों में वर्णित दृश्य होते हैं। धरती पर ही सब कुछ है स्वर्ग भी...। सनातन अध्यात्म और दुनिया भर की विचारधाराएं अब  स्वीकारने लगी हैं कि..  स्वर्ग कहीं है तो इस धरा पर ही है। मन में मानस में चिंतन में अगर शुचिता और निष्कपट प्रेम हो तो सब कुछ संभव है हां स्वर्ग का धरा पर होना भी । गुरुदेव कहते हैं प्रेम ही संसार की नींव है..! 
           अपनी स्वर्गीय मातुश्री पिताश्री भाईयों एवं संतानों से पहले परमपिता परमेश्वर के प्रति कृतज्ञ हूं जिन्होंने मुझे पृथ्वी पर अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए भेजा है। नेति नेति ब्रह्म के प्रति कृतज्ञता के साथ परिवार जन , बिल्लोरे कुटुम्ब, चौरे परिवार, बालभवन परिवार, अखिल भारतीय नार्मदीय ब्राह्मण समाज, जबलपुर इकाई साहित्य सेवी साथियों, महिला बाल विकास विभाग के सहकर्मियों स्टेडियम ग्रुप नाट्यलोक एवं जानकी रमण परिवार एवं सभी साथियों के प्रति विनम्र कृतज्ञता के साथ नतमस्तक हूं जिनकी शुभकामनाओं ने यह साबित कर दिया कि शुभकामनाएं जीवन को स्वर्ग तुल्य आनंद देती है ।  यूं तो वे कविता लिखते नहीं है लेकिन यह सत्य है कि वे कविता जीते हैं Satish Billore जी की कविता Suryansh Nema की कविता के साथ यहां प्रस्तुत है 
आपका स्नेह पात्र
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

29.11.20

स्व इंदिरा जी , मोदी जी बनाम किसान आंदोलन

 किसान आंदोलन में किसान कहां है यह सोचना पड़ा जब हमने पाया कि एक बंदा यह बोल रहा था कि हमने कनाडा में जाकर सिखों को ठोका इंदिरा को ठोका मोदी को भी ठोकेंगे ....? - इससे आंदोलन की पृष्ठभूमि और आधार स्पष्ट हो चुका है। भारत की सर्वप्रिय प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी का उल्लेख कर प्रजातांत्रिक अवस्था को धमकाना यह साबित करता है कि आंदोलन का आधार और उद्देश्य किसान तो कदापि नहीं है। आंदोलन प्रजातांत्रिक जरूरत है प्रजातंत्र से अनुमति भी देता है। भारत के संविधान के प्रति हमें आभार व्यक्त करना चाहिए की भारत सरकार आंदोलनों के प्रति डिक्टेटर रवैया अपना सकें । ऐसे प्रावधान संविधान में सुनिश्चित कर दिए गए।
किसान आंदोलन का अर्थ समझने के लिए स्व. इंदिरा गांधी के लिए अपमान कारक  बाात कह देंना आंदोलन की आधार कथा कह देता है । इस वाक्य  को लिखना तक मेरे मानस को झखजोर रहा है कि -"इस तरह की भाषा का प्रयोग करना केवल खालिस्तान आंदोलन की पुनरावृत्ति है । किसी भी आंदोलन के लिए हमें भारत का संविधान स्वीकृति स्वभाविक रूप से देता है । परन्तु आंदोलन की पृष्ठभूमि जिस तरह से तैयार की गई उससे साबित हो रहा है कि देश के विरुद्ध कोई एक ऐसी ताक़त काम कर रही है जो एक बार फिर भारत को भयभीत कर देना चाहती है। 
 इस तस्वीर में भिंडरावाले का चित्र लगा कर जो कुछ किया जा रहा है उसे किसान आंदोलन का नाम देना सर्वाधिक चिंतनीय मुद्दा है ।
    मित्रो सी ए ए के विरोध में किये गए आंदोलन का आरम्भ एवम अंत और उसकी  पृष्ठभूमि के मंज़र को देखें तो साफ हो जाता है कि यह आंदोलन भी केवल भारत को खत्म करने की बुनियाद पर खड़ा किया था ।
     भारतीय  के रूप में कोई भी व्यक्ति इस प्रकार के आंदोलनों को  कैसे स्वीकारे आप ही तय कर सकते हैं । स्व इंदिरा गांधी जी की निर्मम हत्या का हवाला देकर मोदी जी के अंत की धमकी कनाडा के लोगों को मारने के उदाहरण के साथ देना क्या किसान आंदोलन का आधार हो सकता है ?
मेरी बुद्धि यह स्वीकार नहीं करती । रवीश ब्रांड लोग चाहें तो स्वीकार सकते हैं ।
   ज्ञानरंजन जी द्वारा सम्पादित पहल के एक आर्टिकल में  जिस कानून का हवाला देकर जबलपुर के पूर्व वाशिंदे प्रोफेसर भुवन पांडे ने फोन पर मुझे सन्तुष्ट करने की कोशिश की उससे सहमत होने का कोई सवाल ही नहीं उठता । आयातित विचार धारा के पोषक एवम प्रमोटर्स इन प्रोफेसर साहब ने जो कहा सुनकर हंसी आती है । वे उस वर्ग को मासूम बता रहे थे जो केवल दक्षिण पंथी विचारकों से बाकायदा डिस्टेंस मेंटेन कर रहे थे । शाहीनबाग के पथभ्रष्ट आंदोलन के समर्थन में इतने अधीर होकर लिख दिया जैसे कि अन्य किसी वर्ग की भावना का कोई महत्व ही नहीं है ।
बेचारे प्रोफेसर साहब का मानस जिस CAA के जिस आंदोलन को दादी नानी वाला आंदोलन करार दे रहे हैं अपने आलेख में उसके लिए पैसा दादाओं- नानाओं ने भेजा था यह किससे छिपा है ? 
 केंद्र सरकार की गुप्तचर व्यवस्था को चाहिए कि अब हर आंदोलन पर पैनी नज़र रखी जावे  वरना हम किस आतंकी संगठन के कुत्सित प्रयास के शिकार हो जाएं किसी को पता भी नहीं लगेगा ?
Twitter पर एक बुजुर्ग की सलाह दी उल्लेखनीय है नीचे लिंक पर क्लिक करके अवश्य देखिए
https://twitter.com/realshooterdadi/status/1332727043864215552?s=09
  

22.11.20

ब्राह्मणों के विरुद्ध ज़हरीले होते लोग



              वामन मेशराम
   जाति व्यवस्था कब से आई क्यों आई इसे समझने के लिए हमें समझना होगा कि  हम एक तरह की कबीलों में रहने की मानसिकता के आदिकाल से ही शिकार हैं। और यह मानसिक स्थिति हमसे अलग नहीं हो पाती है।
      भारत में इसे जाति व्यवस्था कह सकते हैं तो यूरोप में इसे रंग भी और नस्लभेद की व्यवस्था के रूप में अंगीकार किया है। उधर अब्राहिमिक संप्रदायों ने तो तीन खातों में बांट दिया है । इतने से ही काम नहीं चला और गंभीर वर्गीकरण प्रारंभ कर दिए गए किसी रिपोर्ट में देख रहा था कि अकेले इस्लाम में 70 से अधिक सैक्ट बन गए हैं । सनातनीयों ने भी शैव वैष्णव शाक्त आदि के रूप में समाज को व्यक्त कर दिया था।समाज के विकास के साथ असहमतियाँ पूरे अधिकार के साथ विकसित होती चली गईं । जाति व्यवस्था का कोई मौलिक आधार तो है नहीं भारतीय समाज में जाति व्यवस्था का प्रवेश होना कबीले वाली मानसिकता का सर्वोच्च उदाहरण है।
वामन मेश्राम जैसे लोग जिसका फायदा उठाकर एक विशेष समूह को टारगेट कर की केवल सामाजिक भ्रम पैदा कर रहे हैं। वास्तव में उनके पास ऐसा कोई आधार भारतीय संविधान के लागू होने के बाद शेष तो नहीं है। वर्तमान परिस्थितियों में भी वैसी नहीं है जैसा उनके द्वारा परिभाषित किया जा रहा है। भारतीय सामाजिक व्यवस्था के वर्तमान स्वरूप को देखने से स्पष्ट होता है कि-"अब भारत में जातिगत संरक्षण जैसे मसलों पर मजमा लगाना अर्थहीन और राष्ट्रीय एकात्मता के भाव को तार तार करना है...!"
  अब तो वामन मेश्राम और बामसेफ का नैरेटिव उतना ही अप्रासंगिक है जितना ब्रिटिश इंडिया के समय एवं उसके पहले हुआ करता था। अब बाकायदा सामुदायिक समरसता कीजिए न केवल वातावरण तैयार है अगर वातावरण का असर ना हुआ तो कठोर कानूनी प्रावधानों को चाहे जितना से कोई भी उपयोग में ला सकता है।
  हां यहां एक खास बिंदु उभर कर आता है जिस से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि-"अब मुद्दा विहीन बामसेफ के पास केवल व्यवस्था को डराने धमकाने के अलावा अपने लोगों को उकसाने का कार्य बाकी रह गया है !"
हाल के दिनों में 10 या 11 साल के बच्चे ने एक भाषण प्रतियोगिता में कहा था कि-"आज भी भारत में दलित महिलाओं का शोषण सर्वाधिक हो रहा है..!"  मैं जानता हूं कि उस बच्चे का मस्तिष्क इतना तो पता भी नहीं चल सकता । उस बच्चे के माता पिता को भी जानता हूं जो एक खास है  एजेंडे को  लेकर हर जगह मुखर हो जाते हैं । बच्चे के भाषण में  लैगेसी साफ नजर आ रही थी । हम सब जानते हैं कि कमजोर का शोषण करना शोषक की मूल प्रवृत्ति है। हम देखते हैं कि जहां तक महिलाओं के अधिकारों दिव्यांगों के अधिकारों या किन्नरों के अधिकारों की बात होती है तब हमारा चिंतन खो जाता है। यह एक मानसिकता है इसे बदलना होगा। वर्तमान परिस्थितियों में ना तो वामन मेश्राम प्रासंगिक हैं ना ही वे लोग ही प्रासंगिक हैं जो वर्गीकरण करते हैं और वर्ग संघर्ष कराने या उसे जीवित रखने पर विश्वास करते हैं। किंतु डेमोक्रेटिक सिस्टम में  ऐसी कोई सेफ्टी गार्ड नहीं लगे हैं जो यह तय कर दें कि  ऐसे अप्रासंगिक विषयों पर जहर न उगल सकें ।
   यूट्यूब पर एक वीडियो देख रहा था एक सिख वक्ता ने बामसेफ की मीटिंग में ना केवल राम की परिभाषा को बदल दिया बल्कि गुरु तेग बहादुर के बलिदान को भी नकारते हुए ब्राह्मण वर्ग को यह तक कह दिया कि यदि सांप और ब्राह्मण एक साथ नजर आ जाए तो पहले ब्राम्हण को मारना चाहिए।
यूट्यूब धड़ल्ले से ऐसे वक्तव्य को जारी रखता है जो न केवल हिंसा बल्कि सामाजिक समरसता की धज्जियां उड़ाते हैं। हाल के दिनों में सत्य सनातन के एक चैनल को यूट्यूब में प्रतिबंधित कर दिया । इस चैनल पर कभी भी हमने हिंसा को प्रमोट करते हुए किसी को भी नहीं देखा सुना । जबकि बामसेफ जैसी संस्थाओं के चैनल निर्भीकता के साथ के अप्रासंगिक एवं दुर्दांत कंटेंट प्रस्तुत करते हैं। विश्व गुरु बनने की राह में अगर यही जरूरी है तो फिर सपना देखते रहिए । 

https://youtu.be/NagyW0YArZY

     

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