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सोमवार, दिसंबर 07, 2020

WhatsApp DP | Short Film | Indie Routes Films | Reaction YouTube film

##WhatApp_DP By Indie Routes Films 
Staring *ing Abha Joshi #Ravindr_Joshi

मर्मस्पर्शी यूट्यूब वीडियो है . 
यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि रोजगार के लिए यात्रा करनी पड़ती है । भारत से पिछले 25 वर्ष में बहुत सारे बच्चे विदेशों में गए। इन बच्चों की वापसी अब असंभव है। आपके पूर्वज एक ही पहले पिता माता जब गांव से शहर आए तो वापस फिर कभी नहीं गए उन गांवों में जहां उनके जन्म के नाम के लड्डू बांटे गए थे। उसके बाद आपके बच्चे मेट्रो दिल्ली मुंबई गुड़गांव चेन्नई पुणे हैदराबाद यानी भाग्यनगर में साइबर मजदूरी करने लगे तो वे भी वापस आने में आनाकानी कर रहे हैं।मेट्रो से निकलकर अमेरिका, कैनेडा  आस्ट्रेलिया  इंग्लैंड इटली जर्मनी फ्रांस नीदरलैंड, आदि  देशों में गए हैं वे क्या खाक आपका कस्बा नुमा शहर जबलपुर जैसे शहरों को पसंद करेंगे जहां आज भी गाने गा गा कर कचरा इकट्ठा किया जा रहा हो। इस फिल्म में एक डायलॉग है वहां इंडियन डायसपोरा केवल अपने ही हुजूम के साथ रहता है। उसे उस देश की आबादी में स्वीकार्य नहीं किया है। 10 से  15 साल पहले वैश्वीकरण के उपरांत पड़ने वाले प्रभाव को टेक केयर नाटक में बखूबी प्रदर्शित किया गया था शहीद स्मारक में आयोजित विवेचना #अविभाजित नाट्य समारोह में यह नाटक हृदय पर गंभीर रूप से चोट कर रहा था।
उसके कुछ सालों बाद हमने एक सत्य कथा सुनी की एक मां अपने फ्लैट में मरने के बाद सूखी हुई ढांचे के रूप में बेटे के इंतजार में पड़ी रही।
मायानगरी के पॉश इलाके 
लोखंडवाला के वेल्सकॉड टावर की दसवीं मंजिल पर स्थित एक बंद फ्लैट में रविवार को 63 वर्षीय महिला का कंकाल मिलने से सनसनी फैल गई। पुलिस ने बताया कि महिला का बेटा डेढ़ साल बाद रविवार को दोपहर जब भारत आया तो मां के फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद था, जिसे तोड़ने के बाद अंदर जाने पर उसने मां का कंकाल बेड पर देखा। महिला की पहचान आशा केदार साहनी के रूप में हुई, जिसका बेटा रितुराज साहनी यूएसए में आईटी इंजिनियर हैं। 
भारतीय मध्यम वर्ग भी डालर्स के मोहपाश में बंध गया..?
जी हां भारत का मध्यवर्ग डॉलर के जाल में फंसा नजर आ रहा है ।  मध्य वर्ग एक ऐसी खतरनाक भूल करने जा रहा है जिससे उसकी पारिवारिक और कौटुंबिक आकृति में बदलाव बहुत करीब दिखाई देने वाला है। क्योंकि भारत का मध्य वर्ग भारत के आर्थिक विकास रीढ़ की हड्डी है । और इस वर्ग से निकले हुए बच्चे भारत के लिए विदेशी मुद्रा कमाने  की योग्यता  में अब  सबसे आगे नजर आते हैं ।  फिल्म निर्माता एवं अभिनेता श्री रवि जोशी जी  से आज चर्चा हुई  उनका  मानना है कि -"भारत का मध्य वर्ग अपने बच्चों को विदेश भेज अवश्य देता है किंतु बच्चों के सिर पर हाथ फेरने के लिए तरसता भी है"
फिल्म में एक दृश्य है जिसमें नायिका यूएस में बसे हुए बेटे और उसकी संतान तथा बहू के विषय में चर्चा करते समय नायक के मित्र का फोन आता है तो वह अपने पुत्र की जबरदस्त तारीफ करता है। जबकि संवाद  बोलते समय नायक के चेहरे पर वह कसक स्पष्ट नजर आती है जो संतान से मिलने के लिए एक पिता के चेहरे से झलकती है । दिल्ली मुंबई और नए-नए महानगरों में ऐसे बुजुर्ग बहुत मिल जाएंगे जो मॉर्निंग वॉक के समय विदेश में बस रहे अपने बच्चों के बारे में बड़े गर्व से बताते हैं। सुधि पाठकों भारत का सारा टैलेंट मल्टी नेशंस के शिकंजे में है क्योंकि ना तो भारत और ना ही भारत की परिस्थितियां उस योग्यता को समझ पा रही हैं । 
  अक्सर मैं यूएस और फिर कनाडा में बसे अपने भतीजे की पुत्री से बात करता हूं...ताकि उसे अपने से बांध कर रख सकूं। शायद वह जब भारत आए तो हमारी मुलाकात अजनबीयों की तरह ना हो ..!
    
फाह्यान और वास्को डी गामा जो पूरब के भारत को तलाशते हुए भारत आई थी वोल्गा से गंगा तक संस्कृति के चार अध्याय को समझना चाहते थे अपुष्ट जानकारी के मुताबिक एक पंथ के प्रवर्तक का भारत आना हुआ था। उन तीनों भारत का दर्शन अध्यात्म सामाजिक सांस्कृतिक वैभव विज्ञान कला राजनैतिक ज्ञान का अक्षय भंडार माना जाता था। उसी भारत के लोग डॉलर की तलाश में साइबर लेबर बनके विश्व के चक्कर लगा रहे हैं और आत्मिक अंतर्संबंध प्रॉपर्ली सिंक्रोनाइज नहीं हो पा रहे है। मित्रों कृषि प्रधान भारत में आत्मनिर्भरता जैसी योजना का लाना यही सिद्ध करता है कि हमारे विश्व की ओर प्रवाहित बौद्धिक संपदा को वापस लाया जा सके परंतु क्या करें..?  यह बच्चे भारत में लौट कर नहीं आने वाले। लेकिन हां हर मध्यवर्गीय पिता माता और विदेश जाने वाला युवा दक्षिण भारत के गांवों के बारे में गूगल करें तो उसे स्पष्ट हो जाएगा कि भारत और विश्व के किसी भी कोने से रिटायर्ड चपरासी से लेकर आईएएस आईएएस आईपीएस की अंतिम इच्छा गांव में वापस लौटना ही होती है बहुत सारे लोगों को आप दक्षिण भारत में मस्त रिटायर्ड लाइफ जीते देख सकते हैं। पर सच तो यह भी है कि अब भारत की डस्ट और गंदगी प्रवासी परिंदों को पसंद नहीं आती । 
आगे आने वाले दौर की पीढ़ीयाँ भी यही सब करेगी हां सच है कि वह लौटेंगे नहीं। 
इस फिल्म को मैं पांच सितारे भी दूं तो कम है।
         यूट्यूब के  इंडी रूट्स फिल्म  चैनल पर प्रस्तुत इस वीडियो में एक कमेंट भी है जिसमें एक व्यक्ति ने लिखा है कि यह मेरी कहानी है । 
इस आप पढ़ना ना भूलें । 
    मित्रों मेरे एक मित्र अनुराग त्रिवेदी ने बताया की जब फुदक चिरैया गीत को  स्थानीय नईदुनिया ने गौरैया बचाओ अभियान के तहत छापा तो उनके परिचित रिश्तेदार उसे पढ़ कर रोने लगे थे - उनके भावुक होने का कारण गीत की ये पंक्तियां थी
जंगला साफ़ करो न साजन
चिड़िया का घर बना वहां ..!
जो तोड़ोगे घर इनका तुम
भटकेंगी ये कहाँ कहाँ ?
अंडे सेने दो इनको तुम – अपनी प्यारी गौरैया ...!!
हर जंगले में जाली लग गई
आँगन से चुग्गा भी गुम...!
बच्चे सब परदेश निकस गए-
घर में शेष रहे हम तुम ....!!
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https://m.youtube.com/channel/UCCOt2wDuIe7Szx4PPQ7Jc5Q
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