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रविवार, नवंबर 29, 2020

स्व इंदिरा जी , मोदी जी बनाम किसान आंदोलन

 किसान आंदोलन में किसान कहां है यह सोचना पड़ा जब हमने पाया कि एक बंदा यह बोल रहा था कि हमने कनाडा में जाकर सिखों को ठोका इंदिरा को ठोका मोदी को भी ठोकेंगे ....? - इससे आंदोलन की पृष्ठभूमि और आधार स्पष्ट हो चुका है। भारत की सर्वप्रिय प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी का उल्लेख कर प्रजातांत्रिक अवस्था को धमकाना यह साबित करता है कि आंदोलन का आधार और उद्देश्य किसान तो कदापि नहीं है। आंदोलन प्रजातांत्रिक जरूरत है प्रजातंत्र से अनुमति भी देता है। भारत के संविधान के प्रति हमें आभार व्यक्त करना चाहिए की भारत सरकार आंदोलनों के प्रति डिक्टेटर रवैया अपना सकें । ऐसे प्रावधान संविधान में सुनिश्चित कर दिए गए।
किसान आंदोलन का अर्थ समझने के लिए स्व. इंदिरा गांधी के लिए अपमान कारक  बाात कह देंना आंदोलन की आधार कथा कह देता है । इस वाक्य  को लिखना तक मेरे मानस को झखजोर रहा है कि -"इस तरह की भाषा का प्रयोग करना केवल खालिस्तान आंदोलन की पुनरावृत्ति है । किसी भी आंदोलन के लिए हमें भारत का संविधान स्वीकृति स्वभाविक रूप से देता है । परन्तु आंदोलन की पृष्ठभूमि जिस तरह से तैयार की गई उससे साबित हो रहा है कि देश के विरुद्ध कोई एक ऐसी ताक़त काम कर रही है जो एक बार फिर भारत को भयभीत कर देना चाहती है। 
 इस तस्वीर में भिंडरावाले का चित्र लगा कर जो कुछ किया जा रहा है उसे किसान आंदोलन का नाम देना सर्वाधिक चिंतनीय मुद्दा है ।
    मित्रो सी ए ए के विरोध में किये गए आंदोलन का आरम्भ एवम अंत और उसकी  पृष्ठभूमि के मंज़र को देखें तो साफ हो जाता है कि यह आंदोलन भी केवल भारत को खत्म करने की बुनियाद पर खड़ा किया था ।
     भारतीय  के रूप में कोई भी व्यक्ति इस प्रकार के आंदोलनों को  कैसे स्वीकारे आप ही तय कर सकते हैं । स्व इंदिरा गांधी जी की निर्मम हत्या का हवाला देकर मोदी जी के अंत की धमकी कनाडा के लोगों को मारने के उदाहरण के साथ देना क्या किसान आंदोलन का आधार हो सकता है ?
मेरी बुद्धि यह स्वीकार नहीं करती । रवीश ब्रांड लोग चाहें तो स्वीकार सकते हैं ।
   ज्ञानरंजन जी द्वारा सम्पादित पहल के एक आर्टिकल में  जिस कानून का हवाला देकर जबलपुर के पूर्व वाशिंदे प्रोफेसर भुवन पांडे ने फोन पर मुझे सन्तुष्ट करने की कोशिश की उससे सहमत होने का कोई सवाल ही नहीं उठता । आयातित विचार धारा के पोषक एवम प्रमोटर्स इन प्रोफेसर साहब ने जो कहा सुनकर हंसी आती है । वे उस वर्ग को मासूम बता रहे थे जो केवल दक्षिण पंथी विचारकों से बाकायदा डिस्टेंस मेंटेन कर रहे थे । शाहीनबाग के पथभ्रष्ट आंदोलन के समर्थन में इतने अधीर होकर लिख दिया जैसे कि अन्य किसी वर्ग की भावना का कोई महत्व ही नहीं है ।
बेचारे प्रोफेसर साहब का मानस जिस CAA के जिस आंदोलन को दादी नानी वाला आंदोलन करार दे रहे हैं अपने आलेख में उसके लिए पैसा दादाओं- नानाओं ने भेजा था यह किससे छिपा है ? 
 केंद्र सरकार की गुप्तचर व्यवस्था को चाहिए कि अब हर आंदोलन पर पैनी नज़र रखी जावे  वरना हम किस आतंकी संगठन के कुत्सित प्रयास के शिकार हो जाएं किसी को पता भी नहीं लगेगा ?
Twitter पर एक बुजुर्ग की सलाह दी उल्लेखनीय है नीचे लिंक पर क्लिक करके अवश्य देखिए
https://twitter.com/realshooterdadi/status/1332727043864215552?s=09
  

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