अन्नदाता कृषक भी भारतीय नागरिक है

कृषि कार्य में उन्नत तकनीकी अजमानी की जोखिम बहुत कम किसान उठा पाते हैं चित्र में हरदा जिले के कृषक श्री राजेंद्र गुहा अपने एमबीए किसान पुत्र के साथ नजर आ रहे हैं

 वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन ने भारत सहित 164 देश संधिबद्ध हैं..!
      मित्रों मैं किसान आंदोलन के प्रारंभिक दिनों से ही आंदोलन को फॉलो कर रहा हूं। किंतु उसके पहले आपको बता दूं कि WTO एवम विश्व व्यापार पर भी निरंतर मेरा अध्ययन जारी है ।
         विश्व व्यापार संगठन  के 1 जनवरी  1995 के पूर्व  विश्व व्यापार का रेगुलराइजेशन आपसी अस्थाई समझौता के तहत हुआ करता था । इसे सामान्य समझौता ट्रेड एवं टैरिफ कहा जा गया था। अंग्रेजी में इसे general agreement on trade and tariff संक्षेप में  GATT  कहा गया जो सन 1986 से 94 प्रभावी रहा । इस पर आधारित समझौते अस्थाई और अनुबंध तोड़ भी दिए जाते थे और इसी कारण से विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की गई जिसे हम डब्ल्यूटीओ के नाम से जानते हैं
डब्ल्यूटीओ अति महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो विश्व मैं व्यापारी व्यवस्था को विनियमित यानी रेग्युलेट  करती है। 
आइये हम चर्चा करते हैं कनाडा की ! इस अचानक चर्चा की वजह है । 
कनाडा विश्व के लिए यूरोप का एक बहुत महत्वपूर्ण राष्ट्र है । जो कि नाटो, जी-20 और जी-7 सहित कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों एवं संगठनों का हिस्सा भी है। भारत में  सब्सिडी एवं एमएसपी के विरुद्ध  2014 में जस्टिन ट्रूडो ने लीड लेते हुए डब्ल्यूटीओ के प्रमुख वोबर्डो अज़वेडो के समक्ष भारत के विरुद्ध और विश्व व्यापार में अपने हितों के पक्ष में जबरदस्त  दबाव बनाने के लिए ब्राजील और न्यूजीलैंड के साथ लिखित मांग पत्र प्रस्तुत किया। भारतीय व्यापार व्यवस्था से जिन तीन राष्ट्रों को खासी समस्या होने वाली है उनमें कनाडा ब्राजील और न्यूजीलैंड है।
ब्राजील के प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ
 न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ
भारत से समस्या तो चीन को भी है किंतु कृषि के मामले में जिस तेजी से भारत  कृषि उत्पादों के निर्यात में 2014 से कोविड-19 के पूर्व के समय तक जिस  चुनौती दे रहा था उसका सीधा सीधा प्रभाव केनेडा ब्राजील और न्यूजीलैंड पर पड़ रहा था । कृषि प्रधान पंजाब से गए लगभग वहां की आबादी के 5% सिख समुदाय अब वहां अपनी मेहनत के बूते अपना लोहा मनवा चुके हैं । 
आप यह जानकर आश्चर्य करेंगे कि जस्टिन ट्रूडो भारत के लिए अपनी नेगेटिव नैरेटिव के लिए विश्व में जाने जाते हैं ।  सबूत के तौर पर आप याद कीजिए इनकी 2018 की भारत यात्रा तब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इन्हें वर्ष 2018 में शाहरुख भाई जान से स्वागत करा कर ही वापस लौटना पड़ा था।
और बाद में खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे की स्थिति में उनने एक इंटरव्यू में कहा कि-"मुझे भारत यात्रा याद नहीं ।" 
  वास्तव में यह सत्य भी है भारत की ओर से इन्हें इनके बर्ताव के चलते प्रोटोकॉल के अनुरूप सम्मान हासिल नहीं हो सका था ।


विश्व व्यापार संधि के अनुसार विश्व के सभी राष्ट्र उत्पादन लागत को स्थिर रखेंगे और सामान्यत: में वैश्विक बाजार में विक्रय की मूल्य में बहुत अधिक अंतर नहीं होना चाहिए।

मित्रों भारत बहुत गरीब देश है । जहां पर जनसंख्या का अधिकांश कृषि से जुड़े व्यक्ति भूस्वामी कृषक ना हो कर कृषि मजदूरों की संख्या के रूप में चयनित होते हैं।
  खेती को उत्तम मानने वाला भारत का सामाजिक ढांचा कृषि को अब उद्योग के रूप में नहीं देखता । साथ ही तकनीकी रूप से किसान का सुविधा संपन्न ना होना सबसे बड़ी समस्या है। भारत में सहकारिता कृषि का भी कांसेप्ट नहीं है।
भारतीय किसान  स्वयं को कंजरवेटिव मानते हुए पूंजी संचय के सापेक्ष प्राप्त आय को व्यक्तिगत खर्चों अनुत्पादक मदों पर खर्च करना अधिक पसंद करते हैं । कैश क्रॉप और अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने की प्रबंधन क्षमता भी अपेक्षाकृत कृषक के पास कम है। 1951 से वर्तमान तक कृषि उत्पादन में मात्र 4 गुना वृद्धि हुई है जबकि  इसमें कम से कम 10 गुना वृद्धि होनी चाहिए थी ।
   भारत में कृषि योग्य भूमि का सही दोहन करने में कृषक असफल रहते हैं। कृषि क्षेत्र में भूमि के सापेक्ष उत्पादन भी अन्य देशों की अपेक्षा बहुत कम है। इसे समझने के लिए आप यह समझने की कोशिश कीजिए जैसे एक दम्पत्ति  अपने बच्चों को बेहतर बनाने में असफल रह जाते हैं  ठीक उसी तरह भूस्वामी किसान भी केवल अधिकतम 5 से 10 गुना फसल ही प्राप्त रहे हैं।
अभी भी भारत में उन्नत तरीके से कृषि कार्य करने में भारत का किसान कमजोर ही साबित हुआ है।
*इसलिए भारत सरकार को एवं राज्य सरकारों को लागत हेतु कैपिटल निर्माण के लिए सब्सिडी देती है ताकि लागत और विक्रय एवं उसके अंतर अर्थात लाभ  में सकारात्मक वृद्धि हो...*
सब्सिडी और बोनस का भरपूर विरोध लिखित रूप में डब्ल्यूटीओ के सामने जस्टिन ट्रूडो रहे अन्य दोनों देशों ब्राजील एवं न्यूजीलैंड के राष्ट्र अध्यक्षों ने हस्ताक्षर करके 2014 में  ही सौंप दिया था।
ब्राज़ील और न्यूजीलैंड के राष्ट्राध्यक्ष को छोड़ दिया जाए तो यहां सबसे संदिग्ध भूमिका में कैनेडियन प्राइम मिनिस्टर जस्टिन नज़र आते हैं। जस्टिन भारत को नागरिक आंदोलनों के संदर्भ में गैर जरूरी अर्थात  अप्रासंगिक सलाह दी कि हमें नागरिक आंदोलन का सम्मान करना चाहिए। फिर याद दिलाता हूँ कि  जस्टिन  वही राष्ट्राध्यक्ष है जिनके अन अपेक्षित भारत प्रवास वर्ष दो 2018 में भारत सरकार को उनके लायक ट्रीटमेंट देना पड़ा था।
  "इस शिकायती पत्र को WTO ने कचरे के डब्बे में डाला माना जाता है। अगर कोई कार्रवाई WHO करता भी तो भारत अपने किसानों को MSP एवम सब्सिडी नहीं रोकी जाती । "

पाठकों कनाडा जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्र के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो  इस वक्त राजनीतिक दबाव में अधिक हैं और उन्हें अपनी सत्ता में बने रहने के लिए सांसदों की जरूरत है । साथ ही एक वित्तीय घोटाले में उनके रिश्तेदारों व स्वयम जस्टिन के विरूद्ध कथित रूप से आरोप भी हैं । 
कैनेडा में पाकिस्तान डायस्पोरा के कैनेडियन नागरिकों से चुने गए सांसदों एवं खालिस्तान समर्थित भारतीय डायस्पोरा से चुने गए सांसदों के समर्थन की जरूरत है साथ ही सियासत के लिए धन भी ?
      परंतु अंतरराष्ट्रीय दबाव और भारतीय प्रशासन के संभावित तीखे तेवर के भय से वह केवल नागरिक आंदोलन के अधिकार के सम्मान की बात कह पाए ।
*इससे सिद्ध होता है कि कीमतों का निर्धारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार और डब्ल्यूटीओ संधि के आधार पर ही सामान्यतः होता है। भारत के किसान को पैसा मिलते ही सारा धन सोना चांदी जैसी बहुमूल्य वस्तुओं अथवा गैर उत्पादक कार्यों पर खर्च करने की परंपरागत आदत है। जबकि वर्तमान में कृषि एक औद्योगिक रूप से विकसित होने वाला सेक्टर है..!*

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