14.4.20

बने किचिन किंग पत्नी से चार गुना प्यार पाए


सुप्रभात मित्रों
#कोरोना #लॉक_अवधि अब 30 अप्रैल 2020 तक बढ़ना है । 21 दिन का यह अनुभव आपके जीवन में निश्चित एक बेहतरीन परिवर्तन लेकर आया है। आपको किस तरह अपनी परिवार की मदद करनी चाहिए और किन-किन मुद्दों पर आपको परिवार के साथ में बैठकर चर्चा करनी चाहिए यह सब आपने सीख लिया है। फिर भी एक बार जो अनुभव मैंने किया वह आपके साथ शेयर कर रहा हूं। मित्रों सबसे बढ़िया बात तो यह है 21 दिन के इस लॉक डाउन मुझे घर को समझने का एक और अवसर मिला। यहां एक खूबसूरत बात यह हुई मैंने यह जाना कि - "हम पुरुष के रूप में कहां कहां अपने दायित्वों को भूल जाते हैं भले ही वह हमारे कार्य का दबाव हो या हमारा पुरुषोचित अभिमान", क्योंकि हम यह भूल जाते हैं कि हम हैं केवल उपभोक्ता घर में आकर हमें हर चीज हर काम हमारी इच्छा अनुसार होना चाहिए। यहां महिलाओं की भी एक त्रुटि है कि वे स्वयं को हमारी इस धारणा के लिए अनुकूल बना लेती हैं। हमारा यही दंभ हमारे लिए घातक हो जाता है और हम इस बात के लिए भी कभी तैयार नहीं होते यदि घर में एक ऐसी विषम परिस्थिति आ जाए कि हमें भोजन बनाना हो, हम परेशान से हो जाते है। और फिर एप्स या टेलीफोन नंबर के जरिए खाना मंगा लेते हैं । जो हमारे लिए न तो रुचिकर होता और न ही हमारे स्वास्थ्य के लिए अनुकूल ही होता है। बहुधा यह देखा गया है कि होटल अथवा ब्रांडेड भोजन की गुणवत्ता और शुद्धता हमारी परंपरागत आहार व्यवस्था के विपरीत होती है। आइए इस क्रम में हम आज एक ऐसे ब्लॉग का जिक्र करते हैं जो आपकी पत्नी पत्नी से चौगुना प्रेम प्राप्त करने का रास्ता खोलेगा।
जबलपुर मूल के श्री समीर लाल जो ब्लॉग जगत के बेहद प्रसिद्ध टेक्स्ट ब्लॉगर है तथा वर्तमान में कनाडा में रहते हैं। उनका ब्लॉग उड़नतश्तरी के नाम से प्रसिद्ध है अगर जबलपुर से हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास शुरू होता है तो चार्टर्ड अकाउंटेंट कनाडा वासी श्री समीर लाल के नाम से उसके बाद कहीं मेरा नंबर आता है और फिर उंगलियों पर गिनने लायक कुछ लोग शामिल है। 2007 से हम हिंदी ब्लॉगिंग कर रहे हैं। समीर लाल हिंदी ब्लॉगिंग के साथ-साथ अब यूट्यूब पर विभिन्न रेसिपी बताते हैं। और उनके द्वारा बहुत सारी रेसिपी अब तक यूट्यूब पर प्रस्तुत की जा चुकी है। जिसका लिंक मैं नीचे दे रहा हूं आप उस पर शाकाहारी एवं मांसाहारी रेसिपी देख सकते हैं और मनपसंद रेसिपीज बनाकर न केवल स्वयं बल्कि अपनी फैमिली को भी आनंदित कर सकते हैं।
वी-ब्लॉग का नाम - UFO KITCHEN
चैनल के निर्माण की तिथि तथा दर्शक संख्या - इस चैनल के निर्माण की तिथि 25 जनवरी 2015 है 226 वीडियो वाले इस चैनल पर अब तक 249,466 दर्शक भ्रमण कर चुके हैं। चैनल की नियमित दर्शक संख्या 158000 है ।
श्रेणी :- रसोई और रेसिपी
https://www.youtube.com/channel/UCt6ug85XfaM3VB5Eq4Knv2g

12.4.20

भारत में कोरोना संक्रमण : मज़दूरों पर प्रभाव

किसी भी स्थिति में भारत की अर्थव्यवस्था बेहद नकारात्मक परिणाम नहीं दिखा सकती।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के संबंध में स्मरण करें। रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले 6 माह में भारत के 40 करोड लोग बेरोजगारी का शिकार हो जाएंगे। मेरे पिछले आलेख में स्पष्ट कर दिया गया था कि भारत पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमान के  अनुकूल उतना  प्रभाव नहीं पड़ेगा जितना कि उक्त रिपोर्ट में दर्शाया गया है ।
   मेरे ऑब्जरवेशन अनुसार भारत की 20 करोड़ आबादी को अगले 3 से 4 महीने तक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
आई एल ओ ने नौकरियां कम होने संबंधी जो आशंका व्यक्त की थी वह बिल्कुल स्वभाविक और लगभग सटीक कही जा सकती है। जबकि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को इसका कोई जबरदस्त असर पड़ने वाला है ऐसा बिल्कुल नहीं है। बल्कि यह आंशिक सत्य है। भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली वर्कफोर्स के संबंध में आईएलओ का विश्लेषण केवल एक नजीबी नक्शे की तरह है। खेतिहर भूमि हर मजदूर घरेलू नौकर चाय बागानों में काम करने वाले कृषि कार्यों के ट्रेडिंग से जुड़े व्यवसायियों के साथ काम करने वाले असंगठित क्षेत्र के मजदूर अब अधिक मांग में बने रहेंगे। भारत का मध्यमवर्ग इनका दूसरा सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण संरक्षक है। उस पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का योजनाओं के जरिए ऐसे मजदूरों को कवर्ड करना उल्लेखनीय है। इस बिंदु पर विचार किए बिना आईएलओ द्वारा जारी रिपोर्ट आंशिक रूप से खारिज की जा सकती है।
इसका अर्थ यह नहीं कि - यह तब का पूर्ण तरह प्रभावित रहेगा बल्कि इसका अर्थ यह है कि भारत के कथित 40 करोड़ असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों में से 50% को रोजगार  का संकट आ सकता है। वह भी कार्य के घंटों के संदर्भ में। क्योंकि यह समस्या अस्थाई होगी अतः आशा करता हूं कि प्रभाव भी अस्थाई ही रहेगा परंतु जो श्रमिक उद्योगों पर आश्रित हैवी अवश्य पूरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं।
11 मार्च 2020 को भारत के प्रधानमंत्री के साथ संपन्न बैठक में मुख्यमंत्रियों द्वारा इन मजदूरों के बारे में विशेष रुप से सहयोग और सपोर्ट की मांग की गई। भारत सरकार राज्य सरकारों को सपोर्ट निश्चित तौर पर कर सकती है। कोरोनावायरस संक्रमण से जूझने वाले इस दौर में 15 दिनों तक प्रतिबंध को जारी रखना लगभग आवश्यक प्रतीत होता है। ऐसा निर्णय लिया जाना भी संभावित है। इससे अस्थाई समस्या के रूप में मजदूरों को गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है परंतु जैसे ही परिस्थितियां धीरे-धीरे अनुकूल होंगी व्यवसाय व्यापार में श्रम की मांग फिर से प्रारंभ हो जावेगी।
   यह अवश्य है कि व्यवसायियों को फिर से मूल स्वरूप में लौटने में एक माह का समय और लग सकता है। इस संबंध में एक तथ्य आपकी दृष्टि में लाना चाहता हूं जिस से आपको समझ में आएगा कि भारत की अर्थव्यवस्था में श्रम की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि भारत एक बड़ा बाजार है और इस बाजार में क्रय शक्ति अचानक शून्य हो जाना लगभग असंभव है। आज भी मध्य वर्ग क्रय शक्ति विहीन नहीं हुआ है हां अगर कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए 2 से 3 माह और लॉक डाउन करना पड़ा तो भारतीय अर्थव्यवस्था में इस वर्ग की स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है। भारत सहित पू विश्व का एक जैसा दृश्य है। परंतु भारत जिस तेजी से संक्रमण रोकने के लिए एकजुट है उससे प्रतीत होता है कि भारत में अधिकतम मई 2020 तक हम कोरोना संक्रमण का समूल विनाश कर सकेंगे।
  मीडिया को चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट को सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत ना करते हुए उसका आंतरिक विश्लेषण अवश्य करें फिर उस पर समाचारों का प्रकाशन एवं प्रसारण किया जाए ताकि सामाजिक हड़बड़ाहट को स्थान ना मिले ।
   केंद्र और  राज्य की सरकारें एकजुटता के साथ इस कार्य को अंजाम देंगी पहले से ही सरकारों ने अपनी अपनी समझ एवं संसाधनों के अनुकूल व्यवस्थाएं सुनिश्चित कर ली है । 

11.4.20

क्या 40 करोड़ लोग जा सकतें है आय के निचले स्तर पर...?


कोरोनावायरस संक्रमण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। यह जानकारी विश्व श्रम संगठन जिसे इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन भी कहा जाता है जिसका प्रधान कार्यालय जिनेवा स्विट्जरलैंड में स्थित है द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे अगले 6 माह में ही बेहद नकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। विश्वव्यापी लॉक डाउन के स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसका यह आशय नहीं है की लॉक डाउन से नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है बल्कि यह है कि जीवन बचाने के लिए विश्व की सरकारों द्वारा किया जा रहा है यह प्रभावी कार्य एक ऐसी परिणीति भी दे सकता है जिसका अनुमान सामान्य लोग वर्तमान में नहीं लगा पा रहे। आईएलओ का मानना है कि विश्व में 7.5 खरब की जनसंख्या है जिसका 3.3 खरब हिस्सा वर्किंग फोर्स के रूप में चिन्हित है। श्रम संगठन की रिपोर्ट बताती है कि वर्किंग फोर्स अर्थात 3.3 खरब आबादी का 81% हिस्सा जो लगभग दो खरक से अधिक होगा बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। यह वैश्विक आंकड़ा है भारत जी इस आंकड़े में ब्राजील और नाइजीरिया के साथ सम्मिलित किया गया है। उसका कारण बताते हुए श्रम संगठन का मानना है कि यहां 90% जनसंख्या इनफॉरमल सेक्टर मैं कार्य कर रही है। यही हो तब का है जो रोजगार एवं वेतन के संदर्भ में सर्वाधिक प्रभावित होने जा रहा है। अपनी रिपोर्ट में विश्व श्रम संगठन ने यह अवगत कराया है कि 40 करोड़ भारतीय लोग रोजगार में उतना लाभ नहीं पाएंगे जितना कि कोरोनावायरस के विस्तार के पूर्व पा रहे हैं । अर्थव्यवस्था में ऐसी गिरावट द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार देखने को मिल सकती है । वैसे भी भारतीय अर्थव्यवस्था लिक्विडिटी पर आधारित है विश्व श्रम संगठन का अनुमान सही प्रतीत होता है। रिपोर्ट को देखा जाए तो स्पष्ट है कि उत्पादन रियल स्टेट ट्रेडिंग प्रशासनिक क्षेत्र शिक्षा खनिज आदि क्षेत्र तेजी से प्रभावित हो सकते हैं । अगर यह स्थिति है तो इसकी वजह केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कंपनियों का उत्पादन प्रभावित होना भी है। आरती कंपनीयाँ भी इससे अछूती नहीं रहेगी। आईटी कंपनी को अपना आकार कम करना होगा जिसका अर्थ है कि वह अपने कर्मचारियों की छटनी भी कर सकती है । इससे अवश्य शिक्षित एवं प्रशिक्षित बेरोजगारी में बढ़ोतरी हो सकती है। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अगर अकेले यूरोप ने ऐसी कंपनियों के लिए अपनी आर्थिक नीतियों में व्यवस्था कर ली होगी तो यह बेरोजगारी तेजी से नहीं बढ़ेगी। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि दक्षिण एशिया भारत पाकिस्तान बांग्लादेश के आईटी प्रोफेशनल्स वर्क फ्रॉम होम डिस्टेंस वर्किंग के मामले में सक्षम है और यदि आईटी सेक्टर की कंपनियां किसी तरह सरवाइव कर लेती है तो निश्चित तौर पर आय में कमी अवश्य हो सकती है परंतु बेरोजगारी की दर में वृद्धि नहीं होगी। परंतु अगर प्रोडक्शन और ट्रेडिंग करने वाली कंपनियों की स्थिति नकारात्मक रुझान दिखाती है तो यह तय है कि आईटी कंपनियां भी अवश्यंभावी शुरू से प्रभावित होंगी जिसका सीधा असर दक्षिण एशियाई देशों से काम में नियोजित वर्क फोर्स पर असर अवश्य पड़ेगा। वर्तमान में अमेरिका द्वारा वहां काम कर रहे नागरिकों को वीजा देने में विलंब किया जा रहा है। जिसकी दो वजह हैं एक - अमेरिका में तेजी से फैलता कोरोना वायरस संक्रमण और उसके प्रबंधन में उत्पन्न समस्याएं दो - अमेरिका पूंजी प्रबंधन की समस्या उपरोक्त दोनों कारणों से कंपनियों के शेयरों में गिरावट हो रही है। जैसा कि आप टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले समाचारों में सो नहीं रहे होंगे। अभी यह कहना जल्दबाजी ही होगा की कोरोनावायरस संक्रमण की समस्या स्थाई है निश्चित तौर पर भारत सहित यूरोप के कई देश इसके समाधान में तेजी से काम कर रहे हैं और यह विश्वास है कि कोरोनावायरस संक्रमण को रोकने का कोई उचित प्रबंध सुनिश्चित हो जाएगा। यहां कृषि वैज्ञानिकों से यह आव्हान किया जाता है कि वह उत्पादन क्षमता बढ़ाने के और अधिक प्रयास करें ताकि आगामी 2 से 3 वर्षों में जब तक इस महामारी के कारण होने वाली संभावित महामंदी का प्रभाव रहेगा तो भी भारत एक उच्च स्तरीय उत्पादक के रूप में उभर के आए और वह विश्व व्यापार ने भले ही बहुत अधिक हिस्सेदारी ना दिखा पाए पर उसका अनाज भंडार कम से कम अगले 3 वर्षों के लिए पर्याप्त रहे। इस तथ्य को हमें उसी नजरिए से देखना है जिस नजरिए से आपने हमने भारत के ऐतिहासिक स्वरूप का अध्ययन किया है। भारत कृषि प्रधान देश रहा है और रहेगा भी। वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट तब तक एकांगी है जब तक की आर्थिक औद्योगिक मुद्दे पर अध्ययन करने वाली किसी विश्वसनीय और सर्वमान्य संस्था की रिपोर्ट नहीं आ जाती। रिपोर्ट में भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि के योगदान के संबंध में टिप्पणी नहीं है । इसलिए अगले छह माह में 40 करोड़ लोगों को प्रभावित होने की बात गलत अनुमान है ऐसा मैं स्वयं के नजरिए से कहता हूं। भारतीय युवा शक्ति को खेतों की ओर मुड़ना ही चाहिए भारतीय वर्कफोर्स कृषि आधारित उत्पादों की ट्रेडिंग में भी तेजी से काम कर सकते हैं। यहां यह बात भी स्पष्ट कर देनी आवश्यक है कि इस संभावित महामंदी का असर अवश्य होगा भारत में भी हम इसे देख सकेंगे। लेकिन मध्यमवर्ग जो सर्वाधिक कार्यशील समुदाय है वह निश्चित तौर पर रोजगार के विकल्पों पर काम अवश्य करेगा। भारत सरकार की स्टार्टअप योजना जैसी योजनाओं ने युवाओं को अपनी रुचि दिखानी ही होगी। यद्यपि पूरे विश्व की सरकारों को इंटरनेशनल लेबर ऑफ डाइजेशन ने चार स्तंभों में सलाह दी है जो इस प्रकार है 1 टैक्स में कमी या उसका पुनरीक्षण करना, धन का प्रवाह करना *भारत सरकार ने रिजर्व बैंक के सहयोग चाहिए बैंकिंग सिस्टम में ऐसे प्रयास यह बहुत पहले ही प्रारंभ कर दिए हैं* 2 जॉब को बचाए रखना उसके लिए आर्थिक नीतियों में बदलाव अथवा उसका पुनरीक्षण करना 3 अगले 6 महीनों तक कम से कम सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखना। यथासंभव वर्क फ्रॉम होम जैसी प्रणाली को जारी रखना 4 समुदाय के साथ सरकार का बेहतर समन्वयन भी एक महत्वपूर्ण स्तंभ होगा। समुदाय में उत्पादन से जुड़े लोग ओपिनियन लीडर्स वर्क फोर्स आदि से सतत समन्वय बेहद जरूरी होगा । कोरोनावायरस संक्रमण को रोकने के लिए नागरिकों को चाहिए कि अगले 15 से 20 दिनों में अगर लॉक डाउन समाप्त भी हो जाता है तब भी वे सोशल डिस्टेंसिंग को किसी भी हालत में मेंटेन करके चलें। *जहां तक रोजगार में कमी का संकेत है वह अवश्यंभावी है उसे रोका नहीं जा सकता भले ही 40 करोड़ भारतीय इससे प्रभावित ना हो तब भी 20 करोड़ जनसंख्या का प्रभावित होना तय है।* क्योंकि रिपोर्ट के अनुसार छोटे और अत्यंत छोटे व्यापारियों को यह समस्या आ सकती है। अतः मितव्ययिता, एवम श्रम तथा पूंजी का उत्कृष्ट प्रबंधन ही भारत के छोटे व्यापारियों को संकट से उबारने में सबसे ज्यादा सहायक होगा। यहां यह भी कहना जरूरी है कि भारत के अधिकांश युवा जो अप्रवासी हैं और विभिन्न क्षेत्रों में विदेशों में कार्यरत हैं केवल अपनी योग्यता और क्षमता के आधार पर यूरोप में रुक सकेंगे ऐसा नहीं है कि केवल योग्यता और क्षमता का ही मूल्यांकन किया जावेगा बल्कि कंपनियां क्लाइंट कंपनियों से कार्य मिलने या ना मिलने के कारण भी कटौती कर सकती है। कुल मिलाकर स्थिति नाजुक हो सकती है अगर नागरिक और सरकार दोनों के बीच बेहतर समन्वय संवाद स्थापित ना हुआ तो। अभी विश्व स्वास्थ संगठन के अलावा व्यापारिक तथा औद्योगिक विषयों की समीक्षा एवं रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाली सर्वमान्य संस्थाओं के विश्लेषण के बाद विस्तृत रूप से कुछ कहा जा सकता है यह आलेख केवल अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की अनुमान पर आधारित है। गिरीश बिल्लोरे मुकुल चिट्ठाकार, लेखक एवम साहित्यकार 

9.4.20

लॉक डाउन By Nilesh Rawal

लाॅक डाउन - भाग - ६ 

कल हमने लॉक डाउन - भाग - 5  में भगवान श्री राम के व्यक्तिगत गुणों और उनके हमारे जीवन में अपने राम के तौर पर अवधरण की बात की थी कल मैंने यह भी कहा था कि कल हम भगवान राम के अपने व्यवसायिक जीवन में उपस्थिति की बातें करेंगे !
वैसे भी अगर हम ठीक ढंग से देखेंगे तो आज की तारीख में हमारे व्यक्तिगत जीवन के साथ साथ व्यवसायिक जीवन भी बहुत बड़ा हो चुका है हमारा व्यक्तिगत जीवन सीधे तौर पर हमारे व्यवसायिक जीवन से प्रभावित रहता है इसलिए यदि हमारे व्यवसायीक जीवन में राम का दिशानिर्देश मिल जाए तो व्यवसायीक जीवन के साथ-साथ व्यक्तिगत जीवन भी संतुलित हो जाएगा! 

जिस तरह से मैंने अपने राम के बारे में बताया था कि मैं अपने राम से अपने व्यक्तिगत जीवन में किन का 5 गुणों से प्रभावित हूं उसी तरह से मैं अपने व्यवसायीक जीवन में राम के किन पांच गुणों से प्रभावित हूं इस विषय पर अपनी बात आपसे साझा करता हूं !
१. समन्वय २. मानव शक्ति प्रबंधन ३. स्किल डेवलपमेंट ४. भरोसा ५ . सम्मान

१.समन्वय -  राम जीवन में समन्वय स्थापित करने का सबसे अप्रतिम उदाहरण है राम का कहीं कोई विरोधी नहीं था, सारे ही लोगों के साथ राम का कोआर्डिनेशन एकदम परफेक्ट था उनका अपने पिता से ,अपने भाइयों से, अपनी प्रजा से, जब जंगल में गए तो अपने सहयोगियों से , अपने शुभचिंतकों से एक गजब का समन्वय था ! यहां तक कि उनके सारे सहयोगियों और साथियों का भी उन्होंने आपस में बहुत गजब का समन्वय  बिठा रखा था उनका कोई भी भाई दूसरे भाई से नाखुश नहीं था, या कोई भी सहयोगी किसी सहयोगी से कोई बैर भाव या वैमनस्य नहीं रखता था शायद पूरी दुनिया में समन्वय का इससे खूबसूरत कोई भी उदाहरण हमें नहीं मिल सकता है हमारे व्यवसायिक जीवन के साथ-साथ इस करोना काल में भी समन्वय का बड़ा महत्व है हम घर पर हैं हमारा अपने परिवार, बंद ऑफिस में जब हमारे कर्मचारी काम पर नहीं आ रहे हैं और हमारा व्यापार नहीं हो रहा है आय नहीं हो रही है उस दौर में अपने साथियों के साथ अपनी टीम के साथ समन्वय की सख्त आवश्यकता है !

२ मानव शक्ति प्रबंधन-  मानव शक्ति प्रबंधन या मेन पावर मैनेजमेंट, राम मानव शक्ति प्रबंधन का इस धरती पर सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है उन्होंने अपने भाइयों की शक्ति का, अपने सहयोगियों की शक्ति का, अपने साथ जुड़े वानरों की शक्ति का, या यूँ कहें की रावण के मुकाबले बहुत कमजोर सेना की शक्ति का सही अर्थों में शक्ति प्रबंधन करके ही रावण पर विजय प्राप्त की !
कभी सोचियेगा दलितों , वानरों या वन में रहने वालों की एक कमजोर सी सेना लेकर ब्रह्मांड कि सबसे शक्तिशाली सेना और सबसे शक्तिशाली व्यक्ति रावण से युद्ध करना और उस युद्ध को जीत लेना , दुनिया का श्रेष्ठतम मेन पावर मैनेजमेंट का उदाहरण है ,करोना काल में भी इस शक्ति के प्रबंधन की बहुत आवश्यकता है प्रशासन के पास, सरकारों के पास बहुत ही सीमित संसाधन है इसलिए यह जो समाज की, स्वयंसेवकों की, समाजसेवी संस्थाओं की शक्ति है यदि हम इसका सही प्रबंधन करने में सफल हो जाए तो समाज के अंतिम छोर तक करोना काल में उसकी आवश्यकताएं पूरी करने में सफल हो जाऐंगे और यदि हम लोगों की आवश्यकता है पूरी करने में सफल हो गए तो ही हम करोना के विरुद्ध उनसे नीति नियमों का पालन करके करोना पर विजय प्राप्त कर सकेंगे! 

३. स्किल डेवलपमेंट -   राम किस तरह से लोगों का विकास किया या मेन पावर डेवलपमेंट करके उनकी जिम्मेदारी और शक्तियों का एहसास करा कर हर कार्य को करने योग्य बना दिया, उसके कुछ उदाहरण हनुमान, सुग्रीव, अंगद, नल, नील आदि है, राम ने उन लोगों को उन लोगों के अंदर शक्तियों का एहसास करा कर उन्हें विकास क्रम की उस अवस्था में ला दिया कि उनके लिए हर कार्य को करना बहुत सहज और संभव हो गया करोना काल में भी यह गुण बहुत आवश्यक है लोगों की जीवन शैली में विकास उनके जीवन में साफ सफाई का महत्व ,सोशल डिस्टेंसिंग का महत्व, सेनेटाइजिंग का महत्व और उनके अंदर निहित प्रतिरोधक क्षमता का एहसास करा कर उनको विश्वास से इतना अधिक भरने की आवश्यकता है की यदि वे उपरोक्त  नीति नियमों का पालन करेंगे तो करोना कभी उन्हें छू भी नहीं सकता है !

४. भरोसा - राम दूसरों पर भरोसा करने का भी दुनिया का सर्वश्रेष्ठ  उदाहरण है जो शायद इतिहास मैं कभी कहीं और नहीं मिल सकता! श्री राम का अपने पिता पर भरोसा करना हो, गुरु पर भरोसा करना हो , वनवास देने के बावजूद माता पर भरोसा करना हो , अपने भाइयों पर भरोसा करना हो, सीता की खोज के लिए हनुमान पर भरोसा करना हो, रावण के पास से आऐ  हुए उसके भाई विभीषण पर भरोसा करना हो, सुग्रीव और उसकी सेना पर भरोसा करके लंका पर चढ़ाई करना हो,  अंगद को दूत बनाकर रावण के पास भेजना हो  एक बार सोच कर देखियेगा  राम ने हर उस काम में अपने लोगों पर भरोसा किया जो लगभग असंभव था परन्तु राम ने उस जगह पर पूरा भरोसा किया और उस भरोसे ने उस कार्य को संभव बना दिया! आज भी इस करोना त्रासदी में बहुत विश्वास और भरोसे की आवश्यकता है भरोसा हमारे प्रशासन पर , पुलिसकर्मियों पर, चिकित्सकों पर या सरकार पर  ! यह समय हमें अपने लोगों पर विश्वास सिर्फ करने का नहीं बल्कि पूरी मजबूती से अपने लोगों पर भरोसा करके इस लड़ाई में उनके साथ खड़े होने का है आप एक बार विश्वास तो करिए आप की सरकार है आपका प्रशासन , आपकी पुलिस, आपके चिकित्सक - हनुमान, अंगद, नल, नील और सुग्रीव की तरह ही अद्वितीय शक्ति के परिचायक हैं और करोना से इस युद्ध में अपनी अपनी भूमिका को पूरी क्षमता से निभा कर करोना रूपी रावण पर आप की विजय सुनिश्चित करेंगे! 

५. सम्मान-  व्यापार में , व्यवसाय में अपने से जुड़े छोटे से छोटे कर्मचारी का ,अपने से जुड़े दूसरे व्यापारियों का ,यहां तक कि अपने प्रतिद्वंद्वियों का यदि हम ठीक ढंग से सम्मान करना सीख जाए उन्हें उनका यथेष्ठ स्थान देना सीख जाएं तो शायद हमारे काम में ,व्यापार में, व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा जैसी कोई वस्तु रह ही नहीं जाएगी, राम ने बाली को मार कर सुग्रीव को  का राजा बनाया वे स्वयं नहीं बने, रावण को मारकर लंका को अपने राज्य में मिलाने के स्थान पर उससे उसका अस्तित्व देकर विभीषण को उसका राजा बनाया , बाली वध के बाद सुग्रीव के पुत्र के स्थान पर बाली के पुत्र अंगद को युवराज बनाया और हर छोटे से छोटे व्यक्ति को चाहे मल्लाह हो, चाहे शबरी हो अपने गले से लगाकर उन्हें पूरा सम्मान दिया और इसी
सम्मान देने के गुण ने राम को राम से भगवान राम बना दिया! 
करोना कॉल में भी सम्मान की बहुत आवश्यकता है चाहे करोना से लड़ने वाले प्रथम प्रथम पंक्ति के वीर हो या करोना के संक्रमण में आए लोग ! यदि करोना से संक्रमण में आए हुए लोगों को हम सम्मान नहीं देंगे तो लोग इस बीमारी के विषय में स्वयं आगे आकर बताने से डरेंगे और यदि ऐसा हुआ तो फिर करोना की यह चेन कभी नहीं टुट पायेगी!

अगर हमने अपने  राम के इन व्यवसायिक गुणों को एक बार ठीक से समझ कर अपने जीवन में अपने व्यवसाय में उतारने का प्रयास कर लिया और आंशिक उतारने में भी सफल हो गए तो हमारा कोई विकल्प हो ही नहीं सकता हम निर्विकल्प हो जायेंगे! 
जय श्री राम
निलेश रावल

लॉक डाउन By Nilesh Rawal


लाॅक डाउन - भाग - ५

 लॉक डाउन है, सुनसान सडकें हैं ,खाली बाजार  हैं और हर व्यक्ति अपनी देहरी के अंदर सिमटा हुआ है ! 
 कुछ दिनों पहले रामनवमी गई और कल हनुमान जयंती है ,
दूरदर्शन पर रामायण का पुनः प्रसारण हो रहा है एक टीआरपी रिपोर्ट के अनुसार लगभग 15 करोड लोग इसे देख रहे और वैसे भी राम भारतीय सनातनी परंपरा का सबसे सम्मानीय, मान्य और पूजनीय चरित्र है और रामायण सबसे सम्माननीय और पूजनीय चरित्र चित्रण रहा है! 

परंतु क्या रामायण इस काल में भी और विशेष तौर पर करोना काल से जुझती हुई दुनिया के लिए प्रासंगिक है! 

चलिए एक बार मिलकर समझने का प्रयास करते हैं !

रामायण में राम को हर किसी ने अपने-अपने राम की तरह देखा है! 

मैंने अपने जिस राम को देखा है उस पर मैं जो सोचता हूं आपसे साझा कर रहा हूं! 

मै राम के निम्नलिखित गुणों से अभिभूत और प्रभावित रहा हूँ!

1.समर्पण 2.धैर्य 3.विनम्रता 4.सकारात्मकता 5  वीरता 

अब चलिए समझने का प्रयास करते हैं क्या राम की ये गुण इस काल में और विशेष तौर पर करोना  काल में भी प्रासंगिक हैं! 

1.सबसे पहले बात करते हैं समर्पण की -  रामायण में राम समर्पण की एक प्रतिमूर्ति थे उनका अपने गुरु के प्रति समर्पण हो ,अपने पिता के प्रति समर्पण हो, अपनी माता के प्रति समर्पण हो, अपनी पत्नी के प्रति समर्पण हो या अपने राज्य और अपने साथियों के प्रति समर्पण! 
यदि हम गौर से देखें तो आज हमें भी अपने जीवन में इस तरह के समर्पण की आवश्यकता है अपने हर रिश्ते में , और शायद हमारा यही समर्पण भाव हमारी इस दुनिया को स्वर्ग बना सकता है इस करोना काल में भी समर्पण का गुण बहुत आवश्यक है समर्पण देश और समाज के प्रति, ईमानदारी से लॉक डाउन के नियमों का पालन कर के हम अपने समाज को इसी समर्पण भाव की वजह से करोना युद्ध में विजय दिला सकते हैं! 

2. धैर्य -  राम हर परिस्थिति में धैर्य का एक अनुपम उदाहरण है चाहे एक रात पहले राजा बनने की स्थिति हो और अगले दिन वनवास जाने की, जंगल में पत्नी का अपहरण हो या पूर्ण समर्पित भाई का मृत्यु शैया पर लेटा हुआ होना हो , हर परिस्थिति में राम ने धैर्य धारण करके स्वयं को और स्वयं के सारे लोगों को उन परिस्थितियों से बाहर निकाला , राम के पूरे चरित्र में कुछ जो सबसे मजबूत रहा है तो वह धैर्य ही रहा है! आज समाज में , हमारे जीवन में धैर्य की सख्त आवश्यकता है हम छोटी-छोटी परिस्थितियों में, छोटे-छोटे व्यापारिक ऊंच-नीच में ,छोटे-छोटे पैसों की लेन-देन में अपना धैर्य खो देते हैं और बड़ी-बड़ी गलतियां करके अपने जीवन को नर्क बना लेते हैं शायद यदि हम धैर्य धारण करना सीख जाएं तो हम अपने जीवन की बहुत सारी परेशानियों और तकलीफों से अपने आप को बचाने में सफल हो जाएंगे इसी तरह करोना काल में भी धैर्य की बहुत आवश्यकता है हम घर पर बैठे हैं ,हमारा काम बंद है ,हमारे व्यापार बंद है हमारा वित्तीय नुकसान है और भी बहुत सारी  चीजें हैं जो कहीं ना कहीं हमें अधीर करती है और घर से बाहर निकलने के लिए दबाव बनाती है पर शायद यही समय है जब हमें धैर्य धारण करना है और पूरी इमानदारी से घर में रहकर लॉक डाउन के सारे नियमों का पालन करना है! 

3.विनम्रता - बहुत बार हमारी सफलता या हमारा व्यवहार हमें विनम्रता की परिधि से बाहर ले जाता है और यही शायद हमारे पतन का कारण भी बनता है इसलिए हर हाल में हर परिस्थिति में स्वयं पर आत्म नियंत्रण रखें और विनम्रता का दामन कभी नहीं छोड़े ! इस करोना काल में विनम्रता और सम्मान उन लोगों के प्रति जो इस करोना युद्ध में प्रथम पंक्ति में युद्ध कर रहे हैं जैसे सफाई कर्मी ,चिकित्सा कर्मी ,प्रशासन, पुलिस इनके प्रति हमारी विनम्रता हमारा सम्मान ही इनके द्वारा किए गए कार्यों का सही विश्लेषण  होगा,

 राम को इसी विनम्रता ने भारत का सबसे मान्य और सम्मानित चरित्र बना दिया है! 

4.सकारात्मकता - सकारात्मकता शब्द अपने आप में स्वपरिभाषित शब्द है  , नौकरी ,व्यापार, व्यवसाय, लाभ, हानि ,यश, अपयश इन सारी परिस्थितियों से बाहर आने का इन सारे विचारों से स्वयं को बाहर निकालने का एकमात्र रास्ता और तरीका सकारात्मकता ही है ! राम ने किसी भी परिस्थिति में सकारात्मकता का दामन कभी नहीं छोड़ा जब भरत और तीनों माताएं राम को जंगल से वापस लेने गई तो राम ने उनसे कहा कि नहीं मां मेरे साथ किसी तरह का कोई अन्याय नहीं हुआ है भरत को पिता श्री ने नगर का शासन दिया है और मुझे जंगल का राजा बनाया है और आने वाले दिनों में मुझे अपने सारे बड़े कामों का अंजाम इसी राज्य से देना है, एक दूसरा छोटा सा उदाहरण है युद्ध के पूर्व विभीषण ने राम से कहा कि हम युद्ध के लिए तैयारी शुरू करते हैं राम ने कहा - नहीं अभी अंगद दूत के तौर पर  गए हुए हैं उनके आने से पहले युद्ध की तैयारी शुरू करना मतलब अंगद को प्रयास के पूर्व असफल मान लेना होगा , पहले प्रतीक्षा कीजिए अंगद के प्रयासों पर विश्वास किजिए , अंगद अपने प्रयासों में सफल होंगे, शायद इस तरह की सकारात्मकता का उदाहरण जीवन में कम देखने को मिलता है , आज करोना काल में भी हमें सकारात्मक होना और रहना है  इस पूरे मजबूत विश्वास के साथ की करोना से युद्ध हम जीतेंगे ही! 

5. वीरता -  जब सारे रास्ते समाप्त हो जाए और संधि का या सामंजस्य का कोई विकल्प नहीं बचे तो फिर युद्ध और उस युद्ध को जीतने के लिए आपके अपने अंदर की वीरता ही एकमात्र विकल्प रह जाती है , राम ने अपने हर युद्ध के पूर्व विनम्रता और धैर्य के साथ उस युद्ध को रोकने और टालने का यथासंभव प्रयास किया परंतु जब युद्ध टल नहीं सके तो फिर राम ने पूरे समर्पण भाव से, पूरी शक्ति से, पूरी वीरता से युद्ध को लड़ा भी! आज हमारे लिए भी शायद यही आवश्यक है यथासंभव हम समाज में, मित्रता में ,आपस में टकराव को टालने का पूरा प्रयास करें और हाँ ये प्रयास सचमुच पूरी ईमानदारी से हो!  परंतु एक जगह कहीं आने के बाद हमें यह लगे कि युद्ध टाला नहीं जा सकता है , उस लड़ाई को उतनी ही वीरता से लडें जैसा कि आज हम करोना काल में करोना के विरुद्ध युद्ध लड रहें हैं! जिस तरह से अपने आपको अपनी ही देहरी के अंदर समेट कर लॉक डाउन और करोना के विरुद्ध युद्ध के नियमों का पूरी वीरता और समर्पण भाव से पालन करके इस युद्ध में अपनी विजय सुनिश्चित कर रहे हैं !

ऐसा मेरा मानना है कि राम आदि काल से लेकर आज तक हर एक व्यक्ति के जीवन में चाहे वो छोटा हो ,बढ़ा हो, अमीर हो ,गरीब हो, सफल हो असफल हो  प्रासंगिक है और जब तक मानव जीवन है मानव जीवन की जीवन शैली में राम है क्योंकि राम एक चरित्र मात्र नहीं है ये एक जीवनशैली हैं यह जीवन शैली किसी जाति या मात्र हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है यह तो धरती के प्रत्येक मनुष्य के लिए प्रासंगिक है!

" अपने अपने राम को अपने अपने अंदर ही धारण करके अपने अपने अंदर ही देखने और समझने का प्रयत्न करें " ! 

आज हमने राम के व्यक्तिगत गुणों पर बात की लॉक डाउन के अगले भाग में हम राम के व्यवसायिक गुण धर्मो पर बात करेंगे । 
 जय श्री राम


7.4.20

लॉक डाउन By Nilesh Rawal


लाॅक डाउन के इस दौर में हमारे देश का एक बड़ा पर्व आया है -  "महावीर जयंती" 
विशेष तौर पर जैन समाज का यह साल का सबसे बड़ा पर्व होता है! 

पूरे शहर में बड़ी धूम रहती है और बहुत से आयोजन होते हैं , बहुत से कार्यक्रम होते हैं और पूरा शहर नेताओं द्वारा जैन समाज को बधाई के बैनर पोस्टरों से पट जाता है! 
परंतु इस बार कुछ अलग हालात हैं , कुछ अलग सी शांति है ना कोई कार्यक्रम, ना कोई बधाई ना कोई बैनर ना कोई पोस्टर! 

लेकिन त्यौहार तो है और इस बार यह  यह त्यौहार कैसे मनाया जाए? 

मौका है मनन का, चिंतन का, महावीर को एक बार फिर एक नए सिरे से जानने का, समझने का , आत्मसात करने का, उनके द्वारा बताए हुए सिद्धांतों को, नीति को ,नियमों को नए सिरे से परिभाषित कर उनके अर्थों को ठीक तरह से समझने का !

मैं महावीर स्वामी के विषय में यह लिखने का प्रयास कर रहा हूं लेकिन मैं जैन नहीं हूं लेकिन मेरा यह मानना है कि महावीर स्वामी जैसा विशाल और विराट व्यक्तित्व किसी संप्रदाय तक सीमित नहीं हो सकता है और उसके सिद्धांत समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए है!

एक बात कहना चाहता हूं  मेरे बचपन से बहुत सारे जैन मित्र रहे हैं बहुत सारे जैन मित्रों के घर में आना जान रहा है ,बड़ी निकटता रही है! लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मैंने महसूस किया है हालांकि यह बात सुनने में कड़वी लग सकती है लेकिन हिंदू और जैनों के बीच में एक दूरी से बनती जा रही है या यूं कहें कि जैन समाज एवं अन्य समाजों के बीच में एक दूरी सी बनती चली जा रही है! 

मित्रों महावीर स्वामी ने जो दया, करुणा, अहिंसा के पंचशील सिद्धांत  दिए हैं किसी संप्रदाय विशेष के लिए नहीं है यहां तक कि वह तो मानव जाति तक भी सीमित नहीं है वह तो इस संसार के प्रत्येक प्राणी ,यहां तक कि पेड़, पौधे, वृक्ष इनके लिए भी प्रतिपादित है !
आज महावीर जयंती के उपलक्ष में चाहे वह जैन समाज के लोग हो या अन्य समाज के लोग महावीर स्वामी के प्रति सही आदरांजली या भावांजलि यही हो सकती है  हमारी तरफ से कि हम इन दूरियों को कम करें और जिस तरह दूध के अंदर मख्खन का अस्तित्व होता है वैसा ही अस्तित्व हमारा इस राष्ट्र के अंदर हो, हमारा आपस में किसी भी तरह का विभाजन कभी भी इस राष्ट्र के हित में नहीं हो सकता है! 

बहुत समय पहले मैंने ओशो की एक किताब पढ़ी थी उसकी कुछ बातें आपसे साझा करता हूं -

ओशो ने महावीर स्वामी के एक सिद्धांत -
 " मूर्खों के संसर्ग से बचें "
 को विस्तार से परिभाषित करने का प्रयास किया था ! 
उन्होंने कहा था कि मूर्ख वह नहीं है जिसे  कुछ पता नहीं है वे तो अज्ञानी है ,
मूर्ख तो वह है जिसे बिना कुछ जाने सब पता है ! 

उन्होंने एक उदाहरण दिया एक धर्म गुरु उनके पास आए उन्होंने कहा कि ईश्वर को परिभाषित नहीं किया जा सकता है ईश्वर की थाह नहीं ली जा सकती है ! 
 
ओशो ने उनसे कहा कि यह बात आप दो ही परिस्थितियों में कह सकते हो या तो आपने थाह 
ले ली है और यदि आपने थाह ले ली है तो आपकी बात सत्य नहीं है और यदि आपने थाह नहीं ली है तो आपको यह कहने का अधिकार नहीं है! 
अभी हमारे इर्द-गिर्द ऐसे लोगों की भरमार है हमारी सोशल मीडिया पर ,फेसबुक पर ,व्हाट्सएप पर इस तरह के संदेशों की भरमार है जो हिंदू धर्म को नहीं जानता वह हिंदू धर्म को परिभाषित कर रहा है , जो जैन धर्म के विषय में कुछ भी नहीं जानता वह जैन धर्म को परिभाषित करने का प्रयास कर रहा है और यही शायद हमारे बीच विरोधाभास और विसंगतियों का कारण भी है या शायद हम सब की आपसी दूरियों का कारण भी है!

और यह ना हिंदू धर्म के लिए अच्छा है ना जैन धर्म के लिए अच्छा है और ना ही राष्ट्र के लिए अच्छा है! 

ऐसे लोगों से बचें ऐसे लोगों से सावधान रहें , स्वयं मनन, चिंतन करें, सत्य को समझने का प्रयास करें और हम एक दूसरे के विचारों का ,एक दूसरे की धार्मिक आस्थाओं का ,एक दूसरे के धर्मों का सच्चे अर्थों में सम्मान करें और उन्हें स्वीकार करें!
 
यही इस राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए आवश्यक भी है !

और यकीन मानिए हमारे सारे धर्म हमारे सारे सिद्धांत हमें सिर्फ और सिर्फ उस परमपिता परमेश्वर की तरफ ही लेकर जाते हैं! 

हरिवंश राय बच्चन की छायावादी युग की एक बहुत खूबसूरत रचना है  -
 " मधुशाला" 

 जिसकी कुछ लाइने आपसे साझा करता हूं! 

घर से चलता है जब पीने वाला, 
घर से चलता है जब पीने वाला,
असमंजस में है वह भोला भाला, 
अलग-अलग पथ बतलाते सब , 
पर मैं यह बतलाता हूं, 
राह पकड़ तू एक चला चल ,
पा जाएगा मधुशाला !

 
हम सब अपनी अपनी पृष्ठभूमि , अपनी अपनी पसंद के अनुसार अपने-अपने धर्म अपने अपने सिद्धांतों का चयन कर सकते हैं, लेकिन आप यकीन मानिए अंततः हम सब उस परमपिता परमेश्वर के दरवाजे पर ही पहुंचेंगे चाहे हम रास्ता कोई भी अपना लें!

 इसलिए आइए महावीर जयंती के उपलक्ष पर हम आप सब मिलकर दृढ़ संकल्पित हो और मानव से मानव के बीच की इस दूरी को कम करके अनेकता में एकता की इस राष्ट्र की संकल्पना को साकार रूप प्रदान करें

निलेश रावल

6.4.20

लाॅक डाउन - By Nilesh Rawal

 
Jabalpur Dated 5th Apr 2020, at Between 09:00 to 09:09 Photo By Ashish Vishvakarma 
    
Writer : Mr. Nilesh Rawal

लाॅक डाउन - भाग एक से तीन
नीलेश रावल
लाॅक डाउन - भाग - १

लॉक डाउन चल रहा है हम सब अपने अपने घरों में ठहर गए हैं!
बहुत दिनों से व्हाट्सएप में , फेसबुक पर बहुत सारी जगह पर मैं पोस्ट देख रहा था यदि हम बाहर नहीं जा सकते तो अपने भीतर जाने की कोशिश करें मैं सोच रहा था कि भीतर कैसे जाऊं बहुत कोशिश की पर भीतर जाने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था हमने अपने भीतर जाने के सारे दरवाजों पर नाराजगी के, गुस्से के ,नफरत के बडे बड़े ताले जड़ रखे हैं , अपने भीतर प्रवेश करना भी अब शायद हमारे लिए बहुत आसान नहीं रह गया हैं !
अचानक बैठे-बैठे मेरे मन में ख्याल आया कि एक काम करते हैं आराम से शांत मन से बैठते हैं और अपने स्मृति पटल पर जहां तक की स्मृतियां शेष है अपने जीवन में वापस पीछे जाते हैं और फिर वहां से शुरू करते हैं अपनी एक एक गलती , एक एक भूल, एक एक अपराध के लिए स्वयं से , स्वयं की आत्मा से , परम पिता परमेश्वर से क्षमा मांगते हैं !
इस तरह से उस अंतिम छोर से आज तक के सफर पर चलते हैं !
अपने हर छोटे बड़े अपराध के लिए माफी मांगने का प्रयास करते हैं!
फिर एक बार हम शांत मन से सोचते हैं हमें किन से प्रेम है किन से नफरत है किन के प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है हमारे मन में नाराजगी है एक-एक करके जिनसे हम नाराज हैं जिनके प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है उन सबको एक-एक करके माफ करने की कोशिश करते है!
यकीन मानिए यदि हम सच्चे मन से एक-एक व्यक्ति को माफ करते चले जाएंगे तो हमें हमारे भीतर प्रवेश के द्वार पर लगे सारे ताले टूटते हुए नजर आएंगे !
और हाँ जब हम अपने भीतर प्रवेश कर जाए तो मन के सारे द्वार, सारी खिड़कियां और विशेष तौर पर मन का वह झरोखा जरूर खोल दीजिए जिससे मन के अंदर नाराजगी ,गुस्से और नफरत की जितनी भी गर्म हवाएं है उससे बाहर निकल सके!
यकीन मानिए उस खुले झरोखे से मन की सारी गर्म हवाएं एक बार बाहर निकल जाएंगी तो बाहर से आती हुई शीतल हवाएं जब हमें स्पर्श करेंगी तो वे हमें अलौकिक आनंद से भरकर आल्हादित कर देगीं !
अब आपके पास लेने और देने के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम बचेगा और हां लेकिन इतना जरूर याद रखियेगा की देने के लिए प्रेम है लेकिन लेने के लिए प्रेम की अपेक्षा मत कीजिए यदि मिल जाएगा तो आप सौभाग्यशाली हैं और नहीं मिला तो आपके पास देने को बहुत सारा प्रेम होगा यह आपका सौभाग्य है!
एक नए संसार का सृजन करिये जो प्रेम के द्वारा हो, प्रेम के लिए हो और प्रेम से हो!
भाग दो
लॉक डाउन चल रहा है हम सब अपने अपने घरों में ठहर गए हैं!
बहुत दिनों से व्हाट्सएप में , फेसबुक पर बहुत सारी जगह पर मैं पोस्ट देख रहा था यदि हम बाहर नहीं जा सकते तो अपने भीतर जाने की कोशिश करें मैं सोच रहा था कि भीतर कैसे जाऊं बहुत कोशिश की पर भीतर जाने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था हमने अपने भीतर जाने के सारे दरवाजों पर नाराजगी के, गुस्से के ,नफरत के बडे बड़े ताले जड़ रखे हैं , अपने भीतर प्रवेश करना भी अब शायद हमारे लिए बहुत आसान नहीं रह गया हैं !
अचानक बैठे-बैठे मेरे मन में ख्याल आया कि एक काम करते हैं आराम से शांत मन से बैठते हैं और अपने स्मृति पटल पर जहां तक की स्मृतियां शेष है अपने जीवन में वापस पीछे जाते हैं और फिर वहां से शुरू करते हैं अपनी एक एक गलती , एक एक भूल, एक एक अपराध के लिए स्वयं से , स्वयं की आत्मा से , परम पिता परमेश्वर से क्षमा मांगते हैं !
इस तरह से उस अंतिम छोर से आज तक के सफर पर चलते हैं !
अपने हर छोटे बड़े अपराध के लिए माफी मांगने का प्रयास करते हैं!
फिर एक बार हम शांत मन से सोचते हैं हमें किन से प्रेम है किन से नफरत है किन के प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है हमारे मन में नाराजगी है एक-एक करके जिनसे हम नाराज हैं जिनके प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है उन सबको एक-एक करके माफ करने की कोशिश करते है!
यकीन मानिए यदि हम सच्चे मन से एक-एक व्यक्ति को माफ करते चले जाएंगे तो हमें हमारे भीतर प्रवेश के द्वार पर लगे सारे ताले टूटते हुए नजर आएंगे !
और हाँ जब हम अपने भीतर प्रवेश कर जाए तो मन के सारे द्वार, सारी खिड़कियां और विशेष तौर पर मन का वह झरोखा जरूर खोल दीजिए जिससे मन के अंदर नाराजगी ,गुस्से और नफरत की जितनी भी गर्म हवाएं है उससे बाहर निकल सके!
यकीन मानिए उस खुले झरोखे से मन की सारी गर्म हवाएं एक बार बाहर निकल जाएंगी तो बाहर से आती हुई शीतल हवाएं जब हमें स्पर्श करेंगी तो वे हमें अलौकिक आनंद से भरकर आल्हादित कर देगीं !
अब आपके पास लेने और देने के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम बचेगा और हां लेकिन इतना जरूर याद रखियेगा की देने के लिए प्रेम है लेकिन लेने के लिए प्रेम की अपेक्षा मत कीजिए यदि मिल जाएगा तो आप सौभाग्यशाली हैं और नहीं मिला तो आपके पास देने को बहुत सारा प्रेम होगा यह आपका सौभाग्य है!
एक नए संसार का सृजन करिये जो प्रेम के द्वारा हो, प्रेम के लिए हो और प्रेम से हो!
भाग तीन
लाॅक डाउन

आज 5 अप्रैल है और आज के दिन हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने आह्वान किया था कि रात 9:00 बजे देश का प्रत्येक नागरिक अपने घर की छत पर 9 मिनट के लिए 9 दीपक जलाएं!
सोशल मीडिया पर इसके समर्थन और विरोध में बहुत सारी क्रियाएं और प्रतिक्रियाएं देख रहा हूं!
मेरे एक मित्र ने मुझे एक व्हाट्सएप पर संदेश भेजा था जिसमें एक कहानी थी जो आप सभी लोगों से साझा करना चाहता हूं !
एक छोटे से राज्य पर एक बड़े राज्य ने आक्रमण कर दिया।
उस राज्य के सेनापति ने राजा से कहा कि आक्रमणकारी सेना के पास बहुत संसाधन है हमारे पास सेनाएं कम है संसाधन कम है हम जल्दी ही हार जायेंगे बेकार में अपने सैनिक मरवाने का कोई मतलब नहीं। इस युद्ध में हम निश्चित हार जायेंगे और इतना कहकर सेनापति ने अपनी तलवार को नीचे रख दिया।
अब राजा बहुत घबरा गया अब क्या किया जाए, फिर वह अपने गुरु के पास गया और सारी बातें बताई।
गुरु ने कहा उस सेनापति को फौरन हिरासत में ले लो उसे जेल भेज दो। नहीं तो हार निश्चित है।
यदि सेनापति ऐसा सोचेगा तो सेना क्या करेंगी।
आदमी जैसा सोचता है वैसा हो जाता है।
फिर राजा ने कहा कि युद्ध कौन करेगा।
गुरु ने कहा मैं,
वह गुरु बूढ़ा था, उसने कभी कोई युद्ध नहीं लड़ा था और तो और वह घोड़े पर भी कभी नहीं चढ़ा था। उसके हाथ में सेना की बागडोर कैसे दे दे।
लेकिन कोई दूसरा चारा न था।
वह बूढ़ा गुरु घोड़े पर सवार होकर सेना के आगे आगे चला।
रास्ते में एक पहाड़ी पर एक मंदिर था। गुरु सेनापति वहां रुका और सेना से कहा कि पहले मंदिर के देवता से पूछ लेते हैं कि हम युद्ध में जीतेंगे कि हारेंगे।
सेना हैरान होकर पूछने लगी कि देवता कैसे बतायेंगे और बतायेंगे भी तो हम उनकी भाषा कैसे समझेंगे।
गुरु बोला ठहरो मैंने आजीवन देवताओं से संवाद किया है मैं कोई न कोई हल निकाल लूंगा।
फिर गुरु अकेले ही पहाड़ी पर चढा और कुछ देर बाद वापस लौट आया।
गुरु ने सेना को संबोधित करते हुए कहा कि मंदिर के देवता ने मुझसे कहा है कि यदि रात में मंदिर से रौशनी निकलेगी तो समझ लेना कि दैविय शक्ति तुम्हारे साथ है और युद्ध में अवश्य तुम्हारी जीत हासिल होगी।

सभी सैनिक साँस रोके रात होने की प्रतीक्षा करने लगे। रात हुई और उस अंधेरी रात में मंदिर से प्रकाश छन छन कर आने लगा ।
सभी सैनिक जयघोष करने लगे और वे युद्ध स्थल की ओर कूच कर गए ।
21 दिन तक घनघोर युद्ध हुआ फिर सेना विजयी होकर लौटीं।

रास्ते में वह मंदिर पड़ता था।
जब मंदिर पास आया तो सेनाएं उस गुरु से बोली कि चलकर उस देवता को धन्यवाद दिया जाए जिनके आशीर्वाद से यह असम्भव सा युद्ध हमने जीता है।
सेनापति बोला कोई जरूरत नहीं ।।
सेना बोली बड़े कृतघ्न मालूम पड़ते हैं आप जिनके प्रताप से आशीर्वाद से हमने इस भयंकर युद्ध को जीता उस देवता को धन्यवाद भी देना आपको मुनासिब नही लगता।
तब उस बूढ़े गुरु ने कहा , वो दीपक मैंने ही जलाया था जिसकी रौशनी दिन के उजाले में तो तुम्हें नहीं दिखाई दि थी, पर रात्रि के घने अंधेरे में तुम्हे दिखाई देने लगी ।
तुम जीते क्योंकि तुम्हे जीत का ख्याल निश्चित हो गया।

आज चाहे ताली बजाना हो या दीपक जलाना यह सब मानव मन और मस्तिष्क को निराशा से बाहर निकालकर आशावादी बनाने का एक उपक्रम मात्र है!
और इस तरह के उपक्रम अपनी जनता और अपनी सेना का मनोबल ऊंचा करने और किसी भी युद्ध को पूरी मजबूती और शक्ति से लड़ने के लिए उन्हें तैयार करने के लिए आवश्यक भी है !

हम जैसे बहुत सारे लोग जो अपने व्यवसाय में अपने कामों में अत्यधिक व्यस्त रहने के आदी हो चुके थे और जो एक लंबे समय से अपने घरों में बंद है यह उन सबके लिए बहुत ही ज्यादा अवसाद में जाने और निराशा में जाने का समय था उन्हें इस अवसाद और निराशा से निकालने के लिए भी ये उपक्रम आवश्यक है!

कोई समर्थक हो या विरोधी लेकिन सारे ही लोग यह जरूर मानेगे कि चाहे ताली बजाने की क्रिया हो या आज दीपक जलाने की क्रिया इन दोनों ने ही एक असीम ऊर्जा का संचार पूरे देश में किया है जो अद्भुत और विलक्षण हैं और ये पल शायद हम में से किसी ने भी पहले अपने जीवन में कभी नहीं देखे!

मैं जानता हूं कि केवल ताली बजाने से या दीपक जलाने से करोना नहीं मर सकता है लेकिन आप सब भी यह मानेंगे इन क्रियाओं से हमारे अंदर , हमारे समाज में, हमारे देश में असीम उर्जा और जोश का जो संचार हुआ है वह हमें किसी भी करोना पर विजय दिला सकता है और हमारी जीत सुनिश्चित कर सकता है!

और यूं भी जिस तरह से लोगों ने एकजुट होकर दलों से, विचारधाराओं से बाहर निकलकर ताली बजाई या दीपक जलाए उसने इससे राष्ट्र की जीवंतता का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किया है!

इस राष्ट्र के अंदर हर परिस्थिति से लड़ने की , उससे जीत हासिल करने की अदम्य शक्ति और जिजीविषा है!

अटल बिहारी वाजपेई जी की कुछ पंक्तियां याद आई -:
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है,
कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं,
सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है,
अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है,
यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।

और हम ही जितेंगे!
हमारी जीत सुनिश्चित है, मैने उस मंदिर से दिपक के प्रकाश को बाहर निकलते देखा है! 

3.4.20

खुला ख़त राहत इंदौरी के नाम कॉपी टू मुन्नवर राणा, जावेद अख्तर

 
 
ज़नाब राहत इंदौरी साहेब
नर्मदे हर
इसकी जिम्मेदारी हम लिटरेचर के लोगों की भी होती है। आपकी बहुत सारी बातें जो रोंगटे खड़े कर देने वाली होती है हमने सुनी है-
*लगेगी आग जग में आएंगे...*
हमने एनवायरमेंट क्रिएट किया है ,
हम कितने दुखी हैं इंदौर की इस घटना से जिसका आईकॉन राहत इंदौरी हो वहां इस तरह के लोग मौजूद हैं। आप नहीं जानते शहर जबलपुर में बहुत पुराने हादसे के बाद आज तक ऐसा कोई मंज़र शहर ने पेश नहीं किया जैसा कि इंदौर ने किया है। आप जानते हैं कि हम मौलाना मुफ्ती साहब के इंतकाल के बाद कितना दुखी है हम जो हिंदू हैं वह जो क्रिश्चियन है वह जो मुस्लिम है सब को एक सूत्र में पिरो देते थे मौलाना साहब। गोया कि आप आपके शहर में पढ़े लिखे समझदार अथॉरिटी को भी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। आपने अपनी शायरी में बहुत कुछ अच्छा लिखा है हम सभी देर रात तक खुले आकाश के नीचे मुशायरा में जाया करते थे और आपने तब शायरी शुरू ही की थी मंच से सुनते थे आपको और जो अपनापन आपकी कलम में उस दौर में देखा गया अब नजर नहीं आता। हम लिटरेचर के लोग आज भी ह्यूमैनिटी और भाईचारे पर यकीन करते हैं और करेंगे किसी की मजाल है कि कौमी बवाल खड़ा कर पाए परंतु कुछ दिनों से देख रहा हूं कि आप और कुछ नामचीन शायर कुछ कवि अमन पर बुरादा डालने वाली शायरी और कविताएं पेश करते हैं। थिएटर भी कुछ इस तरह से कोशिशें करता है। खासतौर पर बाएँ जमात वाले । एक शायर कवि लेखक होने के नाते ऐसी कोशिशों की मज़्ज़मत करता हूं ।
आपको या किसी कवि को किसी खास इंसान से असहमति हो सकती है परंतु आवाम के हक में बात करने के अपने फर्ज को भूल कर आप लोग आप कमिटेड हो गए हो। साहित्य क्या है आप जानते थे मुगल काल में जब बहुत मुश्किल का दौर था जजिये लगाए जाते थे तब तुलसी ने कभी भी आग नहीं लगाई की बस्तियां झुलस जाए बल्कि नीति प्रेम और अनुशासन का कथानक रामचरितमानस की शक्ल में जनता के सामने पेश किया था। उसी समय भक्त कवियों ने अपना अपना फर्ज निभाया। सूफी आए और तमाम लोगों के बीच मोहब्बत का पैगाम दिया। लेकिन ऐसा क्या हो गया है कि अब आप जैसे लोग भी कमिटेड हो गए हैं। आपकी एक ग़ज़ल का जवाब हमारे पास तैयार है हमने भेजा भी था मिल भी गया होगा मौका बिल्कुल सही है सोचता हूं शेयर कर दूं
*जो खिलाफ हैं वो समझदार इंसान थोड़ी हैं*
जो वतन के साथ हैं वो बेईमान थोड़ी है ।।
लगेगी आग तो बुझाएंगे हम सब मिलकर
बस्ती हमारी है वफादार हैं बेईमान थोड़ी हैं ।।
मैं जानता कि हूँ वो दुश्मन नहीं था कभी मेरा उकसाने वालों का सा मेरा खानदान थोड़ी है ।।
मेरे मुंह से जो भी निकले वही सचाई है
मेरे मुंह में विदेशी ज़ुबान थोड़ी है ।।
वो साहिबे मसनद है कल रहे न रहे -
वो भी मालिक है ये किराए की दूकान थोड़ी है
अब तो हर खून को बेशक परखना होगा
वतन सबके बाप का है, हर्फ़ों की दुकान थोड़ी है ।।
जनाब राहत इंदौरी साहब हम भवानी प्रसाद मिश्र के शहर के लोग हैं हम जानते हैं सिय विजनवास को वे खुद उतनी बेहतर ढंग से पेश ना कर पाते जितना की चाचा लुकमान ने पेश किया। लुकमान रुला देते थे उनकी अभिव्यक्ति गोया कविता पर भारी पड़ जाया करती थी। मेरे कहने का मतलब समझ रहे हैं सही गंगा जमुना की धारा नर्मदा के किनारे वाले इस पत्थरों के शहर में नजर आ जाती है एक आपका शहर है जहां ना तो आपकी चलती है नाही नई नस्लें आपको समझ पाती हैं। बड़े बोल नहीं बोल रहा हूं पर शहर जबलपुर तुम्हारे शहर से न केवल खूबसूरत हो गया है अमन पसंद भी हो गया है। जबलपुर वह शहर है हां जिसे अमन का शहर कह सकते हैं। जिसके पत्थरों की कीमत जौहरी ही जानते है। हम सभी जानते हैं हमारा शहर पत्थरों का जरूर है लेकिन संगमरमर के पत्थर नरम ही होते हैं ना ।
बाहरी ताकतें हिंदुस्तान को कितना भी हिलाने की कोशिश करें जनाब सबसे पहले शायरों की जिम्मेदारी होती है फन कारों की जिम्मेदारी होती है कि वह अपना पाया मजबूत करें और हमारी कोशिश है देख कर हमारे फॉलोअर्स भी वैसा करेंगे।
कैसे सो लेते होंगे आप लोग मुझे तो नींद नहीं आ रही है 7 दिन हो गए किस्तों में सो रहा हूं जगता हूं तो आओ देख लो तड़पता हूं और रो रहा हूं मतलब समझ रहे हैं मेरी इस बात का
एलाने अमन करना सीखो
इस वाह-वाह में क्या रखा
यह बात बारास्ता और उन तमाम कवियों शायरों के लिए लिखी जा रही है जो कमिटेड है किसी विचारधारा के लिए। तरक्की पसंद लोग भी अब आग लगाने में माहिर हो गए हैं जनाब, समझ लीजिए अभी नहीं सुधरे तो तुम्हारी हमारी शायरी कविताएं नाटक कहानियां सब फिजूल की बातें मानी जाएंगी। आग की तरह जलते वीडियो देखकर आइंदा नस्लें ना तुम्हें माफ करेगी ना मुझसे राहत साहब यह अलग बात है कि इंदौर मुंबई के पास है मुंबई में बहुतेरे लोग खाल ओढ़कर अपनी नौकरी टाइप की साहित्य सेवा कर रहे हैं। जनाब यूं तो जावेद अख्तर साहब से भी नाराज हूं पर ठीक है आपको भेज रहे खत से उनको कुछ समझ आए

29.3.20

रवीश कुमार की समस्या :रामायण का प्रसारण


Ravish Kumar नामक व्यक्ति को दूरदर्शन पर रामायण का प्रसारण फिर से एक बार जनता की मांग पर किया। पता नहीं रवीश जी के पेट में अजीब अजीब सी हरकतें होने लगी जैसी अपच में होती है और दोपहर होते-होते तक मामला वोमिटिंग तक पहुंच गया। कोरोना वायरस वहीं से आया है, जहां से इन भाई साहब को विचारों की खेती करने के लिए बीच मिलते हैं। तकनीकी भी वहीं से मिलती है खेती करने की। यह श्रीमान मात्र 45 साल की उम्र के हैं 74 में इनका जन्म हुआ है परंतु मैग्सेसे अवार्ड पाने के बाद पता नहीं इतने हल्के हो गए हैं कि इन्हें किसी भी व्यक्ति का समुदाय का चिंतन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इनका किसी से कोई भी राजनैतिक रिश्ता अच्छा या बुरा हो सकता है, उससे हमें कोई लेना-देना नहीं हमें लेना देना इस बात से है कि आज से जनता की मांग पर श्री राम के जीवन पर आधारित रामायण का प्रसारण क्या हुआ भाई साहब आज दोपहर की नींद सोए नहीं। और सोते भी कैसे रक्ष संस्कृति के संवाहक के रूप में इनकी कदाचित जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि ये उसका विरोध करें। विरोध इनकी मूल प्रकृति में है। बिहार मोतिहारी के जन्मे दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ लिख कर रोटी कमाने के लायक हो गए और एक खास प्रकार के चिंतन के ध्वजवाहक भी हो गई। वास्तव में राम और रामराज के मर्म को इन्हें समझने में बड़ी कठिनाई हो रही है। घर से बैठे-बैठे फेसबुक पर लाइव होकर भाई ने बताया कि भारत बिल्कुल भी तैयार नहीं है चीन जनित महामारी से निपटने के लिए . मुझे ऐसा लगा कि शायद भाई सही कह रहा हो? तफ्सील से हमने भी तस्दीक शुरू कर दी , हमें पता चला हर आईएएस हर आईपीएस हर वह व्यक्ति जो राजनीतिक प्रतिद्वंदी है इस मुद्दे पर मानवता के साथ है जितना बन पड़ रहा है कर रहे हैं। रवीश कुमार का कहना है कि भारत सरकार ने आज तक अगर महामारी फैल जाती है तो कोई व्यवस्था नहीं कर रखी है . मुझे लगता है बिल्कुल सही कहा इन्होंने भारत सरकार और समस्त राज्यों की सरकारें अपने संसाधनों का बेहतर से बेहतर उपयोग करने में सक्षम है और करती भी हैं। परंतु क्या कभी भाई ने अथवा इनके चैनल ने दिन भर चलने वाले एक विज्ञापन का भी सहयोग दिया है किसी भी सरकार को शायद कभी नहीं। रविश एक कुटिल बुद्धिमान हैं इन्होंने मिशन विरोध के चलते यह भी नहीं सोचा कि कभी इन्होंने चिकित्सकीय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए किसी भी सरकार को सलाह दी अब तक मैंने इनके जितने प्रोग्राम देखें संभवत है ऐसा कभी इन्होंने नहीं किया। अगर कोई प्रोग्राम होगा भी तो उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं हो सकता है कि पूरे दिन इनके चैनल को ना देखा हो। सुधि पाठकों को बता देना चाहता हूं कि भारत में राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम होने के कारण पूजनीय एवं आदर्श है। कवियों ने उन्हें मर्यादित राजा की उपाधि से नवाज़ते हुए श्रेष्ठ कहां है। तुलसीदास ने राम के चरित्र को लोक नायक के रूप में प्रस्तुत किया है। पत्रकार है इतना तो जानते ही होंगे। राम एक ऐसे राजा के रूप में कथानक के माध्यम से जाने जाते हैं जो ईश्वर की तरह पवित्र और सर्वमान्य थे। और अगर अपने आदर्श के जीवन चरित्र पर आधारित किसी नाटक को जनता देखना चाहती है जो उसका व्यक्तिगत अधिकार भी है भाई को आपत्ति क्यों होने लगी। बहुत सारी चैनल है जिनमें धार्मिक सीरियल आ रहे हैं उन पर भाई साहब की टिप्पणी क्यों नहीं आई। कोरोनावायरस के विस्तार को लेकर इतनी ही चिंता इनके मन में है तो यह मास्क बांधकर किसी पीड़ित मानवता की सेवा में क्यों नहीं निकल गई आखिर भारत के नागरिक तो है। इनके चिंतन में कहीं ना कहीं किसी को किया हुआ कमिटमेंट नजर आ रहा है। कहां रामायण का प्रदर्शन और कहां करुणा वायरस। आज शाम और सुबह तकनीकी कारणों से मेरा टेलीविजन सेट खराब था मेरी पत्नी और बेटी का मूड भी खराब हो गया। क्या इन पढ़ी लिखी जनता को आप समझाऐंगे..? भाई जी जनता का अधिकार और आपकी अभिव्यक्ति का अधिकार सिंक्रोनाइज नहीं है जनता जो चाहती है उसी आप पढ़ नहीं पाएंगे आप जो भी व्यक्त करते हैं उसे वह निभा नहीं पाएगी। रवीश के लिए यूं तो मेरे दिमाग में हजारों सवाल परंतु विषय को चबा चबा कर गन्ने की बेदम हुई बचत की माफिक उगलने वालों से हम बात नहीं कर सकते हमारा भी तो कोई स्वाभिमान है। अरे कम से कम मिर्जा गालिब को ही पढ़ रहे थे भारत का सांस्कृतिक दर्शन समझने के लिए मेरे परम पूज्य मिर्जा गालिब काफी है। बहुत प्रेरणा करो भारतीय आइकॉन से जिन्हें विवेकानंद कहा जाता है जिन्हें रामकृष्ण परमहंस कहा जाता है जिन्हें गांधी कहा जाता है जिन्हें रजनीश कहा जाता है जिन्हें कबीर कहा जाता है बस तुम रसखान को पढ़ लो कबीर को समझ लो सब कुछ साफ हो जाएगा अभी तो तुम्हारी उम्र बहुत कम है मुझसे लगभग 11 बरस बाद पैदा हुए यह उम्र अनुशीलन चिंतन और संस्कृति को समझने की है पता नहीं कहां से तुम्हें तकलीफ होती है ताली बजाने पर। छठ मैया की पूजा करते तुम्हें हमने भी देखा है इस देश में भी देखा है क्या वह पाखंड था आज के प्रसारण को देखकर तो लगा शुद्ध पाखंड था। उम्र के लिहाज से मुझसे बहुत छोटे हो और मैं भी परसाई की जमीन मैं जन्मा रजनीश परसाई सभी का सम्मान करते हुए जहां-जहां असहमति है असहमत रहता भी हूं परंतु वोमिटिंग नहीं करता। यह अलग बात है पेट के लिए तुम्हें किसी एजेंडे को आगे बढ़ाना है बढ़ाते रहो परंतु एक बात ध्यान रखो अगर आज रामायण का पुनः प्रसारण हुआ है तो वह जनता की मांग पर हुआ है, उस समय तुम 12 या 13 वर्ष उम्र के किशोर रहे थे न..? क्या किसी से सुना होगा सड़कों पर सन्नाटा रहता था अतिथियों को पानी भी तब मिलता था जब सीरियल खत्म हो जाए। आज जरूरत है कि जनता सड़कों पर ना दिखे और अगर इस सीरियल से यह फायदा मिल रहा है तो अपच वाली बात क्या? प्रिय रवीश इतना ज़हर मत बोलो कि लोग यह भूल जाए कि तुम वाकई में गलत प्रजाति में जन्मे हो। कभी तो सद्भावना रख लिया करो कभी तो समरस बनने की कोशिश किया करो यह सब बहुत दूर तक नहीं चलेगा अध्यात्म से जुड़ जाओ शायद भारतीय तो हो पर अच्छे और सच्चे भारतीय बन जाओगे । यह आलेख तुम्हें भेज रहा हूं निश्चित तौर पर तुम्हारा यह कहना होगा कि मैं अमुक या तमुक विचारधारा से संबद्ध तो यह गलत है पहले ही स्पष्ट कर दूं कि मुझे दाएं बाएं से कोई लेना देना नहीं है तो ऐसे आरोप लगाना भी मत भूलकर भी नहीं । अन्य प्राप्त होने वाले पुरस्कार और सम्मान के लिए अग्रिम शुभकामनाएं

28.3.20

*मध्यवर्ग की आवाज सुनने के लिए धन्यवाद*

भारत सरकार ने मध्यमवर्ग की आवाज जिस तेजी से सुनी उसे लगा कि सरकार ने उम्मीद से अधिक कर दिया । जिस तरह से बैंकों की रेपो रेट में गिरावट बैंक की लिक्विडिटी बढ़ाई है तो सीआरआर का 1 परसेंट कम हो जाना भी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है इससे सीधा लाभ मध्यमवर्ग को मिलना सुनिश्चित है।
वर्तमान परिदृश्य में सारे प्रश्न हल हो चुके हैं किंतु ई एम आई में प्रीमियम का स्थगन स्पष्ट नहीं है। दिन भर मित्रों से चर्चा के बाद सबके मन में एक ही आशंका है कि क्या बैंक स्थगित प्रीमियम एक साथ वसूलेंगी अथवा लोन की अवधि बढ़ेगी? बढ़ी हुई अवधि में ब्याज की स्थिति क्या होगी यह भी आरबीआई के द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया है? यद्यपि यह 2 सवाल के संदर्भ में विश्वास कि सरकार और रिजर्व बैंक इस पर शीघ्र ही स्पष्ट हो जावेगी।
मित्रों मध्यवर्ती आवाज इतना जल्दी कभी नहीं सुनी गई जितना की आज सुनी गई है इसके लिए रिजर्व बैंक और भारत सरकार को साधुवाद देना ही होगा।
ऐसे समय में इंश्योरेंस कंपनियों के लिए भी सरकार को पृथक से इस आशय के स्पष्ट आदेश जारी करने होंगे जिसमें यह स्पष्ट कर दिया जाए कि उनके प्रीमियम भी स्थगित हों तथा जोखिम को 3 माह तक कवर की जा सके।
यद्यपि यह एकदम पृथक मामला है अतः उम्मीद है कि सरकार बीमा कंपनियों सरकारी जीवन बीमा निगम के साथ संवाद विस्थापित कर सकेगी।
अब जहां तक किसी परिस्थिति वश भारत कोरोना वायरस के संक्रमण पर नियंत्रण नहीं कर पाता है तब सरकार की स्थिति भी बेहद कमजोर हो जावेगी। वैसे यह स्थिति पूरे विश्व में समान रूप से इस समाज रह सकती है अतः इससे ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं।
सरकार ने अपना फर्ज निभाया है अब आम जनता को क्या करना चाहिए ?
यह सवाल स्वभाविक है, आप 3 माह की प्रीमियम अगर सुरक्षित रख देते हैं तो वह एक बचत के रूप में आपके खाते में पर देश की बचत के रूप में बैंकों में जमा रहेंगे। अर्थात हमें केवल बहुत जरूरी खर्चों के लिए उक्त राशि को उपयोग में लाना है। ताकि सिस्टम से राशि बाहर ना हो। सरकार ने यह सुविधा इस उद्देश्य रिजर्व बैंक के माध्यम से दिलवाई है ताकि उसका लाभ मध्यमवर्ग की कर्मचारियों और व्यापारियों को सीधा सीधा मिल जावे।
आपके हाथ में कैश है किंतु दुरुपयोग के लिए तो बिल्कुल नहीं। अगर आप इस कैश को अपने बैंक खाते में रखते हैं, तो यह बचत आपके लिए महत्वपूर्ण और सुखदाई होगी।
ऐसा नहीं है कि सरकार बाजार को जीवंत रखने के लिए कोई कदम नहीं उठाने वाली है। क्रय शक्ति आपके हाथ में होगी परंतु आवश्यकता के अनुरूप आपको वह करना होगा। यहां पुरानी भारतीय परंपराओं और व्यवस्था का अनुसरण करते रहना जरूरी है।
मेरा यह मानना है कि मध्यवर्ग का सर्वाधिक योगदान होता है अर्थव्यवस्था के संचालन में, साथ ही उत्पादकता में भी मध्यवर्ग महत्वपूर्ण है।
ऐसी स्थिति में आपको अपनी भूमिका स्पष्ट कर देनी चाहिए, अन्यथा अगर विषम परिस्थिति हुई तो आप अगले 3 माह में भी अपने आप को सुरक्षित नहीं रख पाएंगे। अगले तीन माह की स्थिति निर्भर करती है संक्रमण कि हम कितना जल्द काबू पाते हैं।
इसके लिए सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन रखना फिलहाल तो बेहद जरूरी है, विश्व स्वास्थ्य संगठन इस मुद्दे पर बहुत ही स्पष्ट और साफ है, उसने भारत द्वारा उठाए गए कदम को सटीक माना है। जो जहां है वह वहां रहे यह व्यवस्था का प्रश्न है। जिसे राज्य सरकारें स्थानीय निकाय, जन सहयोग के के जरिए हल किया जाएगा।
आपको करना क्या है...?
आपको बहुत कुछ अधिक नहीं करना है, केवल उन व्यक्तियों को संसाधन उपलब्ध कराने के लिए सरकार को मदद करनी है। ठीक उसी प्रकार जैसे सिख मतावलंबी गुरुद्वारे के लंगर का संचालन करते हैं। अगर 100 मिडिल क्लास परिवार 10 रोटियां और उसके अनुकूल दाल या सब्जी एकत्र कर प्रशासन द्वारा निर्धारित सुविधा केंद्रों को उपलब्ध कराते हैं तो आप बहुत बड़ा सहयोग कर रहे होते हैं।
आवास व्यवस्था के लिए अगर आप अपने घर से एक कंबल या चादर या बिस्तर जो आपके घर में सहज उपलब्ध है दान कर देते हैं तो प्रशासन को आवास की समस्या हल करने में कोई देर नहीं लगेगी।
इस तरह बूंद बूंद से समस्याओं का सूखा सागर भरा जा सकता है। अगर इतना भी नहीं तो आप घर बैठे 100 से 500 रुपए तक का दान सीधे जिले में स्थित रेड क्रॉस सोसाइटी को दे सकते हैं। वह भी बिना जाए। घर से भी बाहर निकलने की जरूरत नहीं है आप ऑनलाइन भुगतान की सुविधा व्यवस्था का लाभ उठा सकते हैं।
सरकार जब मध्यमवर्ग की आवाज को एक बार में सुन सकती है तो हम बिना देर किए सरकार के प्रति इतना प्रतिकार तो कर सकते हैं।
मैं देख रहा हूं सोशल मीडिया पर दानदाताओं के रूप में अपेक्षा अधिक की जा रही है सवाल कई बार किया कि भाई अभी तक आपने क्या किया है इस पर कोई उत्तर नहीं मिल रहा। विधायकों सांसदों मंदिरों व्यापारियों वृहद उद्योगों उद्योगपतियों ने बहुत कुछ करना शुरू कर दिया है इस पर टीका टिप्पणी भी हो रही है जो अलग बात है परंतु सबके मन में उस समाज के प्रति संवेदनाएं जाग रहे हैं जिसमें ऊपर लिखे वर्ग स्वयं शामिल है। मजदूरों गरीबों से एक भी पैसा लेने की जरूरत बिल्कुल नहीं है हम 60% से अधिक मध्यमवर्गीय लोग अपने संसाधन से छोटा सा काम आसानी से कर सकते हैं। वरना हम भिक्षुक के रूप में नजर आएंगे।
अगले आर्टिकल तक मुझे उम्मीद है बहुत सारा पैसा रेडक्रॉस सोसायटी या सरकार द्वारा बताए गए खातों में भेजी जा सकती है क्योंकि अभी इसकी बहुत जरूरत है।

27.3.20

विश्व रंगकर्म दिवस 2020 : संस्कारधानी जबलपुर में रंगकर्म यात्रा

उन्नति तिवारी सुभद्रा जी की भूमिका में 

सुप्रभात मित्रों आज विश्व रंगमंच दिवस विश्व रंगमंच दिवस पर संस्कारधानी जबलपुर के रंगमंच से जुड़े सभी रंग कर्मियों को नमन करता हूं
मित्रों भारतीय रंगकर्म भरतमुनि की परंपराओं का वर्तमान स्वरूप है। भारतीय रंगकर्म की लोकप्रियता का मूल आधार है उसका बहु आयामी स्वरूप। ऐतिहासिक समसामयिक पौराणिक राजनीतिक सामाजिक धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों पर रंगकर्म की प्रयोग सर्वाधिक दक्षिण एशिया के भारतीय उपमहाद्वीप में ही किए गए। यह एक बहुत बड़ा माध्यम बना। सिनेमा ने इसे रिप्लेस कर दिया लेकिन गर्व है संस्कारधानी पर जिसने रंगकर्म को यथावत जीवित रखा जीवित ही नहीं रखा बल्कि उसमें संवर्धन और परिवर्धन के निरंतर प्रयोग किए गए। अब तो संसाधनों से संपन्न है हमारा थिएटर।
अगर मिर्जा साहब के एक शेर पर पैरोडी बनाने को कहा जाए तो मैं कहूंगा
हैं और भी दुनिया में थिएटर बहुत अच्छे
कहते हैं कि जबलपुर का अंदाज ए बयां और ।।
   जी हां जबलपुर थिएटर का एकमात्र बहुत बड़ा विश्वविद्यालय है चल रहा है नहीं दौड़ रहा है काला घोड़ा नाट्य उत्सव ले लीजिए अगर जबलपुर की मौजूदगी वहां नहीं होती है तो शायद वे असहज महसूस करते हैं सुना है मैंने पुष्टि आप कीजिए कैसा होता है निश्चित होता ही होगा दर्शकों को अभाव महसूस।
मुझे पता नहीं क्यों थिएटर ने आकृष्ट किया। थिएटर में मैं सक्रिय रुप से घुस जाना नहीं चाहता था पर एक बार हिम्मत की। तस्लीमा नसरीन की लज्जा पर कुछ लिखने की लिखा भी कि मुझसे मेरे छोटे भाई सोनू पाहुजा ने कहा - भैया मैंने लज्जा पर लिखा है सोनू को यह नहीं मालूम था कि मैं भी लिख रहा हूं। दिमाग में दो बात चल रही थी एक यह कि सोनू थिएटर का अनुभवी है दूसरा यह कि मुझसे छोटा है अब अपनी स्क्रिप्ट रहने दो सोनू को सपोर्ट करते हैं !
   मैंने अपनी अंदर की बात सुनी और वैसा ही किया जैसा अंतस में गूंज रहा था। सोनू ने अच्छी स्क्रिप्ट तैयार की थी । अच्छा लगा वैसा ही अच्छा लगा जैसे मेरे बड़े भैया मेरे किसी काम को देख कर खुश होते हैं। थिएटर के इतिहास से स्वर्गीय धर्मदास जायसवाल मेरे काका श्री उमेश नारायण बिल्लोरे तथा उनके इष्ट मित्रों के जरिए हल्का सा जुड़ा हुआ था बचपन में। पर आज 10 साल के बच्चे को उस समय इतना ज्ञान ना था। पर युवा होते होते आकाशवाणी में रेडियो रूपक के ऑडिशन में जाने का मौका मिला। कवि के रूप में जो आकाशवाणी वालों से जान पहचान हो गई थी तब आकाशवाणी का कार्यालय रसल चौक के पास हुआ करता था। फेल हो गया वॉइस टेस्ट में पर दुख नहीं हुआ मालूम था रेडियो नाटक के लिए प्रशिक्षित नहीं हूं और ना ही योग्य। और फिर आकाशवाणी से मुझे काव्य पाठ के लिए नियमित बुलाया तो जाता ही है?
   हां दिमाग में एक बात जरूर आ गई कि बच्चों के लिए ऐसे प्रशिक्षण की जरूरत अवश्य है। कुछ दिनों बाद विवेक पांडे ने और अरुण पांडे जी ने विवेचना के बैनर के साथ बच्चों के थिएटर का प्रयोग किया। अच्छा लगा बहुत नेचुरल बच्चे जिस तरह से मेहनत करते नजर आए मुझे नहीं लगता कि इतनी मेहनत कोई करता होगा। नाटक पूरी तरह तो याद नहीं है परंतु हां राजा का बाजा मृच्छकटिकम् जैसे नाटक उस वर्कशॉप में तैयार किए गए थे और उनके प्रदर्शन के दिन बच्चों में बहुत उत्साह था। अब इसकी पुष्टि हो चुकी थी की थिएटर के विकास के लिए बच्चों के थिएटर  के विकास की जरूरत है।
  सच मानिए, मुझ में बिल्कुल भी थिएटर देखने का शऊर नहीं है निहायती पागल हूं जानते हैं आपने यह क्या कह रहा हूं ? आपको लग रहा होगा कि थियेटर मैं बार-बार उठने की आदत होगी मुझे नहीं ऐसा नहीं है मैं नाटक के हर एक कैरेक्टर में घुस जाना चाहता हूं। कई बार मनचले आंसू रुकते ही नहीं भाग लेते हैं कब तक रुमाल गीला करता रहूंगा अब आप ही बताइए ना ।  इसका अर्थ जानते हैं- गंभीर नाटक दिल पर सीधे अटैक करते हैं रुला देते हैं मेरे साथ तो कम से कम ऐसा ही हुआ है।
      पिछले वर्ष भी मैंने बताया था कि भोपाल के रंगकर्मी श्री के जी त्रिवेदी Kg Trivedi कहते हैं कि जबलपुर का थिएटर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से मजबूत है . तो दूसरी ओर काला घोड़ा नाट्य फेस्टिवल जबलपुर की अपनी अमिट छाप है इसकी पुष्टि कई बार हो चुकी है।मराठी थिएटर पारसी थियेटर बंगाली थिएटर अपनी अपनी अलग अलग छवि प्रस्तुत करते हैं परंतु संस्कारधानी के नाटक की अपनी पहचान है लोग स्वीकारते हैं और कहते भी हैं .
    सीमित साधनों में बाल भवन Balbhavan Jabalpur  जो कर सकता है वह कर रहा है. संस्थान की अपनी मजबूरियां जो भी कुछ दिया है यकीनन जरूरत थी जिसकी . और वह इसलिए क्योंकि भाई संजय गर्ग ने कभी कहा था- आप 4 महीने बच्चों को तथाकथित पर्सनालिटी डेवलपमेंट कोर्स में भेज दो अथवा एक थियेटर वर्कशाप में भेज दो, अच्छा रिजल्ट थिएटर से ही मिलेगा। थिएटर में विविध विधाओं के प्रशिक्षण के चलते बच्चों में मल्टीपल टैलेंट जल्द ही उभर आता है।
इस विषय पर सबके अपने अपने विचार होते हैं तो आइए कुछ विचार यहां शेयर करना चाहूंगा
निर्देशक एक्टर श्री वसंत काशीकर ने कहा- विश्वरंगमंच दिवस पर मेरा संदेश इस संक्रमण काल में समूची मानव जाति  ,धर्म,राजनीति,जातपात,मज़हब  से  उठकर एकजुट होकर जिये। हम पुनः अपनी जड़ों को तलाशें,हम रंकर्मी अपने नाट्यप्रदर्शन एवम अपने व्यवहार से ये  संदेश प्रत्येक दर्शक के साथ ही  सारे देशवासियों के बीच सम्प्रेषित करने का संकल्प ले।
किस-किस का नाम का उल्लेख किया जाए  समझ में नहीं आ रहा परंतु हर एक समूह अपनी अपनी विचारधाराओं धाराओं तथा तालमेल की वजह से रंगकर्म कर रहा है अच्छा लगा . अब तो पूजा केवट मनीषा तिवारी जैसी बेटियों की निर्देशन में हाथ अजमाने लगी हैं । अगर कोरोना वाला यह माहौल नहीं होता तो अब तक सबसे ज्यादा शोरगुल थिएटर वाली कक्षा में ही होता। बहुत छोटे-छोटे बच्चे थिएटर में आ रहे हैं हां एक प्रयोग और जिसका जिक्र करना बहुत जरूरी है नाट्यलोक ने म्यूजिक पिट को कंटेंट के साथ शामिल करने की जोखिम उठाई है। संजय सफल भी हैं वे इसमें, सफलता की वजह है डॉ शिप्रा और उनकी टीम बहुत मेहनती हैं। रवींद्र तरुण अक्षय शुभम देखते ही देखते पता नहीं कितने बड़े हो गए इनके ज्ञान को सेल्यूट करता हूं यह अलग बात है कि पूजा और अक्षय एमपीएसडी में के छात्र रहे हैं । बाकी तो एकलव्य की तरह सीखते रहे ऐसा नहीं है कि उन्हें गुरु नहीं मिले बस एक पाठशाला जो जानकी रमन में लगती है दूसरी जो चंचल बाई कॉलेज में बरसों से लग रही है तीसरी परसाई भवन में जिसका जैसा कमिटमेंट हो वह वैसा सीख रहा है कर रहा है इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं पर हां बच्चों से आग्रह अवश्य करूंगा कि तुम्हारी धारा या विचारधारा जो भी हो तुम्हारा थिएटर के प्रति निष्ठावान होना जरूरी है। थिएटर कभी भी घमंड और वैमनस्यता का आधार नहीं हो सकता आत्मप्रदर्शन का भी नहीं थिएटर में स्टारडम नहीं होता 2 मिनट के अभिनय में ही प्रतिभा को परख लिया जाता है। यहां मूर्खता होगी कि स्वयं को आप यह सिद्ध करते रहो कि आप महान कलाकार हो । आपकी महानता आप की श्रेष्ठता आपकी अभिनय क्षमता आपकी अभिनय और थिएटर के प्रति प्रतिबद्धता को साबित करने के लिए आप खुद आगे ना आए हम हैं ना आप को बढ़ावा देने वाले । खुले शब्दों में कहूं तो कान खोल कर सुन लो मेरे बच्चों तुम्हारी श्रेष्ठता का मूल्यांकन तुम्हारी क्षमता करेगी जब आत्म प्रशंसा करते हो तो ऐसा लगता है जैसे तुम अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश कर रहे हो। एक ऐसे समंदर में डूब रहे हो जहां से तुम बच नहीं पा रहे और यही तुम्हारी रंगकर्म का अवसान हो जाता है।
 रंगकर्म किसी विचारधारा से जुड़ा नहीं होना चाहिए यह भी एक जरूरी बात थी जो आपसे कह दी। रंगकर्म का एबीसीडी सीखने के बाद एक्स वाई जेड का अभिनय करना छोड़ना होगा। यहां यह भी स्पष्ट कर दूं कायिक  कैमरों यानी  आंखों के सामने थिएटर होता है जहां हजारों लोग उसे देखते हैं और तुरंत रिएक्ट कर देते हैं जबकि यांत्रिक कैमरे के सामने फिल्में होती हैं जिसमें आपकी प्रतिभा में कृत्रिम तौर पर बदलाव भी संभव है रंगकर्मी अधिक मेहनती होता है फिल्मी कलाकार के सापेक्ष
पर जानते हो बहुत सारी फिल्में आधी अधूरी देखकर सिनेमा हॉल से कई बार बाहर  निकला हूं पर नाटक देख कर भाव से भरा हुआ ही लौटा हूं। ध्यान रखिए रंगकर्म सबसे प्रभावशाली विधा है । रंगकर्म सच में आपका खून पसीने के रूप में बहाता है । कठिन साधना है इसलिए करने योग्य है सरल कार्य (फ़िल्म तो ) अभिषेक बच्चन भी कर लेता है।
  विश्व रंगमंच दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं बधाई और आपकी प्रतिबद्धता के प्रति मेरा सिर झुका हुआ है उनके  सम्मान में जो कमिटेड हैं।
बच्चों से अनुरोध है अपनी जमीन पर बने रहना क्योंकि जड़े जमीन के जितना अंदर जाती हैं उतना ही तुम्हारा तना मजबूत होगा और मजबूत बनोगे वरना बहुरूपिया नजर आओगे ना कि रंगकर्मी

26.3.20

आपदाओं से जूझने हमें चिकित्सा व्यवस्था सुधारनी ही होगी

फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा को फ्री शिक्षा और स्वास्थ्य की गारंटी दी थी. कृति हजार जनसंख्या पर 8 चिकित्सक क्यूबा में मौजूद है. जबकि भारत में प्रति हजार के विरुद्ध मात्र पॉइंट 008 चिकित्सक मौजूद है. क्यूबा और भारत की चिकित्सकीय व्यवस्था बेहद बड़े अंतराल के साथ है. बावजूद इसके भारत में उसका अपना आयुर्वेदिक सिस्टम भी संचालित है. आजादी के बाद से आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली पर एक लंबी अवधि तक कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया. जबकि इस चिकित्सा प्रणाली को संजीवनी देना इस पर रिसर्च जारी रखना सरकार का दायित्व था. ठीक उसी तरह शिक्षा व्यवस्था पर भी भारत की सोच बेहद लचर और उसके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण महसूस नहीं किया गया है. लेकिन कम संसाधनों और अच्छी शिक्षा प्रणाली के महंगे होने के बावजूद भारतीय युवा खासतौर पर मध्यमवर्गीय परिवारों से निकला युवा अपने संघर्ष और आत्मशक्ति के बलबूते पर वह सब हासिल कर लेता है जो क्यूबा में वहां का युवा हासिल करता है. सुधि पाठकों आज से कुछ साल पहले जब मैं वैचारिक रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के संबंध में विचार कर रहा था तो मैंने पाया कि वास्तव में भारत को अगर बहुत तेजी से आगे बढ़ना है तो उसे अपनी शिक्षा प्रणाली को बेहद सहज और सब्सिडाइज करना ही होगा. परंतु आरक्षण और उपेक्षा जैसी व्यवस्था के कारण शैक्षणिक व्यवस्था चरमरा गई है. इंजीनियरिंग और तकनीकी शिक्षा के कई सारी केंद्र खुले परंतु अधिकांश अब पढ़ने वालों  की कमी जैसी स्थिति में है. कला साहित्य अर्थशास्त्र समाजशास्त्र साइकोलॉजी भाषा विज्ञान जैसे विषयों के प्रति भारतीय मध्यवर्ग की उपेक्षा के कारण की शिक्षा का स्तर अचानक गिरा है. निजी कंपनी के मैकेनिक बन कर रह जाते हैं इंजीनियर. जबकि चिकित्सकों की आवश्यकता है और आपूर्ति के मामले में शैक्षणिक व्यवस्था में ऐसा कोई सकारात्मक विचार 45 के बाद से अब तक जनसंख्या के सापेक्ष कोई खास परिवर्तन नहीं आया है. अपने उक्त आर्टिकल में मैंने यह भी लिखा था कि वास्तव में संपूर्ण विकास के लिए अन्य विषयों पर ना तो सरकार का ध्यान है ना ही अभिभावकों का. परंतु सक्षम एवं उच्च स्तरीय आय समूह के बच्चे विदेशों से इन विषयों पर शिक्षा विदेशों से प्राप्त कर सकते थे और मध्यवर्ग पूर्णतः है कुकुरमुत्तों जैसे खेतों में भी बने इंजीनियरिंग महाविद्यालयों ने पढ़ाई पूर्ण करते हैं. और अब भी पढ़ाई के सापेक्ष अधिकतम 25 से 30000 प्रतिमाह का पैकेज हासिल कर पा रहे हैं. अधिकांश बच्चे साइबर लेबर की तरह काम कर रहे हैं. यहां सरकार ने उन विषयों पर ध्यान ही नहीं दिया जो विषय निकट भविष्य में उपयोग में आने वाले थे. कुल मिलाकर विदेशों में वह कर साइबर लेबर की तरह काम करने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर इतना कुछ हासिल नहीं कर पाए जितना कि डॉलर से भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाया. वैसे यह एक अच्छी बात है परंतु इन साइबर लेबर के दिए अगर भारत में ही पहले बाजार उपलब्ध करा दिया जाता तो वे लेबर की तरह काम ना करके एक प्रोपराइटर की तरह काम करते. अब हम मूल प्रश्न पर आते हैं कि क्या भारत की चिकित्सा व्यवस्था फुल प्रूफ है ? तो दावे के साथ यह कहा जा सकता है कि भारत की चिकित्सा व्यवस्था फुलप्रूफ कदापि नहीं है.
 अपने पुराने लिख में सरकार को हमने आगाह कर दिया था कि अगर कोई महामारी फैलती है तो उसका नुकसान अगर हम उठाएंगे तो उसका मूल कारण हमारी चिकित्सा व्यवस्था में चिकित्सकों का अभाव ही होगा.
महामारी से जो स्थिति उत्पन्न हो सकती है वह आर्थिक व्यवस्था पर गहरा संकट है. अर्थशास्त्री और विचारक मानते हैं कि पूरे विश्व भर में कोरोना वायरस से फैली महामारी विश्व की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है. कोई चमत्कार ही है जो महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रख सकता है परिस्थितियां अनुकूल नजर नहीं आ रही है.
आज दिनांक 24 मार्च 2020 को भारत के प्रधानमंत्री ने संपूर्ण भारत में लॉक डाउन को 21 दिन के लिए और बढ़ा दिया है. यह निर्णय बेहद कठोर होगा परंतु बेहतर व्यवस्था और मानवता की रक्षा के लिए यह जरूरी है इसके अलावा कोई अच्छा विकल्प नजर नहीं आ रहा. इसका प्रभाव निश्चित तौर पर अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है. लेकिन अगर यह नहीं होगा तो अर्थव्यवस्था पर जो प्रभाव पड़ेगा वह और भी भयंकर हो सकता है. विश्व की सरकारों के ऐसे निर्णय सराहनीय है क्योंकि अगर मानव शक्ति मौजूद रही तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता है. पाठको यहां समझने की जरूरत है कि हर एक राष्ट्र को स्वास्थ्य और शिक्षा पर अधिकतम खर्च करते रहना चाहिए. भारत सरकार की अर्थव्यवस्था शुरू से जीवन बीमा और बचत पर केंद्रित रही इसके अपने फायदे थे लेकिन सामान्य बीमा कंपनियां विकसित राष्ट्रों में जिस तरह से सक्रियता से काम करती हैं भारत वहां बहुत पीछे नजर आता है. हर सरकार को चाहे वह किसी छोटे राष्ट्र की सरकार हो यह भारत जैसे विकासशील राष्ट्र की सरकार हो उसका कोई भी दृष्टिकोण हो उसे भविष्य के प्रावधानों खासतौर पर युद्ध महामारी और प्राकृतिक आपदा से जूझने के लिए आवश्यक प्रावधान अब कर ही लेने होंगे. खासतौर पर चिकित्सकीय व्यवस्था फुलप्रूफ होनी चाहिए. शायद विश्व के राष्ट्र इस भाषा को समझ पाएंगे.
भारत को क्या करना चाहिए? इस प्रश्न के उत्तर में केवल यह कहना चाहूंगा कि जिस तरह से भारत जैसे विकासशील देश ने तरक्की का रास्ता अपनाया है ठीक उसी तरह सामाजिक मुद्दों पर नजर डालना बहुत जरूरी है. प्रत्येक जीवन को अधिकार है कि उसे प्राकृतिक मृत्यु का अधिकार सुनिश्चित कर देना चाहिए. आपदा युद्ध और महामारी जैसी स्थितियों से जूझने के लिए सदा तैयार होना चाहिए. इसके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य पर ना केवल अधिक खर्च करना होगा बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान रूप से शिक्षा के अधिकार का सृजन जरूरी है.
सरकार को उसकी अर्थव्यवस्था में सपोर्ट करने वाले मध्यमवर्ग जिसका सहयोग सकल घरेलू उद्योग एवं बचत में 60 प्रतिशत से 70% तक की भागीदारी होती है के अधिकार सुनिश्चित करने होंगे.
मित्रों- इसके अतिरिक्त आयुष्मान योजना की लाभ की परिधि में लाने के लिए 10 करोड़ से अधिक और 50 करोड़ से कम आबादी को लाना ही होगा. परंतु सरकार की माली हालत यह आंकड़ा एकदम हासिल नहीं कर सकती. उसे 50 करोड़ की आबादी को आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत शामिल करने के लिए कम से कम 5 साल की कोई कार्य योजना प्रस्तावित की जानी चाहिए और उस पर काम भी करना चाहिए. कराधान व्यवस्था को यद्यपि पिछले 10 वर्षों में काफी लाभकारी बनाया गया है किंतु इस पर और काम करने की जरूरत है.
आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली को अनदेखा करना भारत को बहुत महंगा पड़ा है. मुझे प्रतिवर्ष कफ और कोल्ड के कारण अपनी वार्षिक आय का 7% वह करना होता था. इस वर्ष मुझे सर्दियों के समय आयुर्वेदिक इलाज के जरिए यह खर्च मात्र ₹500 के भीतर करने का मौका मिला. यहां व्यक्तिगत उदाहरण इसलिए दिया गया ताकि आयुर्वेदिक प्रणाली को सरकार को स्वीकार देना चाहिए और उसमें अनुसंधान को बढ़ावा देना  इलाज के लिए योग की तरह प्रोत्साहन देना जरूरी है.
सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे इतिहास में एलेग्जेंडर यानी सिकंदर को बचाने वाला बेहद साधारण सा वैद्य था. अर्थात हमारी प्राचीन चिकित्सा व्यवस्था को प्रोत्साहन एवं उसके संवर्धन की अत्यंत जरूरत है. यदि हम कोरोना वायरस  पर समय रहते काबू ना पा सके तो मानिए कि हम स्वयं को माफ़ नहीं कर पाएंगे.

16.3.20

"Don't Panic" - Aabhas-Shreyas Joshi

  ( This video recorded by Girish billore for district administration Jabalpur )
"Don't Panic" - Aabhas and Shreyas appeal on Corona Virus.
Famous singer Abhas and Shreyas Joshi came to Jabalpur to pay tribute To there grandmother late Shrimati Pushpa Joshi. Old old age film artist It was first Holi festival at Jabalpur after Har death. As per DM Jabalpur Mr Bharath Yadav's advice both artist appeal on prevention of coronavirus. Video attached herewith for further necessary action please use this video in Public Interest.

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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...