12.4.20

भारत में कोरोना संक्रमण : मज़दूरों पर प्रभाव

किसी भी स्थिति में भारत की अर्थव्यवस्था बेहद नकारात्मक परिणाम नहीं दिखा सकती।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के संबंध में स्मरण करें। रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले 6 माह में भारत के 40 करोड लोग बेरोजगारी का शिकार हो जाएंगे। मेरे पिछले आलेख में स्पष्ट कर दिया गया था कि भारत पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमान के  अनुकूल उतना  प्रभाव नहीं पड़ेगा जितना कि उक्त रिपोर्ट में दर्शाया गया है ।
   मेरे ऑब्जरवेशन अनुसार भारत की 20 करोड़ आबादी को अगले 3 से 4 महीने तक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
आई एल ओ ने नौकरियां कम होने संबंधी जो आशंका व्यक्त की थी वह बिल्कुल स्वभाविक और लगभग सटीक कही जा सकती है। जबकि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को इसका कोई जबरदस्त असर पड़ने वाला है ऐसा बिल्कुल नहीं है। बल्कि यह आंशिक सत्य है। भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली वर्कफोर्स के संबंध में आईएलओ का विश्लेषण केवल एक नजीबी नक्शे की तरह है। खेतिहर भूमि हर मजदूर घरेलू नौकर चाय बागानों में काम करने वाले कृषि कार्यों के ट्रेडिंग से जुड़े व्यवसायियों के साथ काम करने वाले असंगठित क्षेत्र के मजदूर अब अधिक मांग में बने रहेंगे। भारत का मध्यमवर्ग इनका दूसरा सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण संरक्षक है। उस पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का योजनाओं के जरिए ऐसे मजदूरों को कवर्ड करना उल्लेखनीय है। इस बिंदु पर विचार किए बिना आईएलओ द्वारा जारी रिपोर्ट आंशिक रूप से खारिज की जा सकती है।
इसका अर्थ यह नहीं कि - यह तब का पूर्ण तरह प्रभावित रहेगा बल्कि इसका अर्थ यह है कि भारत के कथित 40 करोड़ असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों में से 50% को रोजगार  का संकट आ सकता है। वह भी कार्य के घंटों के संदर्भ में। क्योंकि यह समस्या अस्थाई होगी अतः आशा करता हूं कि प्रभाव भी अस्थाई ही रहेगा परंतु जो श्रमिक उद्योगों पर आश्रित हैवी अवश्य पूरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं।
11 मार्च 2020 को भारत के प्रधानमंत्री के साथ संपन्न बैठक में मुख्यमंत्रियों द्वारा इन मजदूरों के बारे में विशेष रुप से सहयोग और सपोर्ट की मांग की गई। भारत सरकार राज्य सरकारों को सपोर्ट निश्चित तौर पर कर सकती है। कोरोनावायरस संक्रमण से जूझने वाले इस दौर में 15 दिनों तक प्रतिबंध को जारी रखना लगभग आवश्यक प्रतीत होता है। ऐसा निर्णय लिया जाना भी संभावित है। इससे अस्थाई समस्या के रूप में मजदूरों को गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है परंतु जैसे ही परिस्थितियां धीरे-धीरे अनुकूल होंगी व्यवसाय व्यापार में श्रम की मांग फिर से प्रारंभ हो जावेगी।
   यह अवश्य है कि व्यवसायियों को फिर से मूल स्वरूप में लौटने में एक माह का समय और लग सकता है। इस संबंध में एक तथ्य आपकी दृष्टि में लाना चाहता हूं जिस से आपको समझ में आएगा कि भारत की अर्थव्यवस्था में श्रम की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि भारत एक बड़ा बाजार है और इस बाजार में क्रय शक्ति अचानक शून्य हो जाना लगभग असंभव है। आज भी मध्य वर्ग क्रय शक्ति विहीन नहीं हुआ है हां अगर कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए 2 से 3 माह और लॉक डाउन करना पड़ा तो भारतीय अर्थव्यवस्था में इस वर्ग की स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है। भारत सहित पू विश्व का एक जैसा दृश्य है। परंतु भारत जिस तेजी से संक्रमण रोकने के लिए एकजुट है उससे प्रतीत होता है कि भारत में अधिकतम मई 2020 तक हम कोरोना संक्रमण का समूल विनाश कर सकेंगे।
  मीडिया को चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट को सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत ना करते हुए उसका आंतरिक विश्लेषण अवश्य करें फिर उस पर समाचारों का प्रकाशन एवं प्रसारण किया जाए ताकि सामाजिक हड़बड़ाहट को स्थान ना मिले ।
   केंद्र और  राज्य की सरकारें एकजुटता के साथ इस कार्य को अंजाम देंगी पहले से ही सरकारों ने अपनी अपनी समझ एवं संसाधनों के अनुकूल व्यवस्थाएं सुनिश्चित कर ली है । 

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