7.4.20

लॉक डाउन By Nilesh Rawal


लाॅक डाउन के इस दौर में हमारे देश का एक बड़ा पर्व आया है -  "महावीर जयंती" 
विशेष तौर पर जैन समाज का यह साल का सबसे बड़ा पर्व होता है! 

पूरे शहर में बड़ी धूम रहती है और बहुत से आयोजन होते हैं , बहुत से कार्यक्रम होते हैं और पूरा शहर नेताओं द्वारा जैन समाज को बधाई के बैनर पोस्टरों से पट जाता है! 
परंतु इस बार कुछ अलग हालात हैं , कुछ अलग सी शांति है ना कोई कार्यक्रम, ना कोई बधाई ना कोई बैनर ना कोई पोस्टर! 

लेकिन त्यौहार तो है और इस बार यह  यह त्यौहार कैसे मनाया जाए? 

मौका है मनन का, चिंतन का, महावीर को एक बार फिर एक नए सिरे से जानने का, समझने का , आत्मसात करने का, उनके द्वारा बताए हुए सिद्धांतों को, नीति को ,नियमों को नए सिरे से परिभाषित कर उनके अर्थों को ठीक तरह से समझने का !

मैं महावीर स्वामी के विषय में यह लिखने का प्रयास कर रहा हूं लेकिन मैं जैन नहीं हूं लेकिन मेरा यह मानना है कि महावीर स्वामी जैसा विशाल और विराट व्यक्तित्व किसी संप्रदाय तक सीमित नहीं हो सकता है और उसके सिद्धांत समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए है!

एक बात कहना चाहता हूं  मेरे बचपन से बहुत सारे जैन मित्र रहे हैं बहुत सारे जैन मित्रों के घर में आना जान रहा है ,बड़ी निकटता रही है! लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मैंने महसूस किया है हालांकि यह बात सुनने में कड़वी लग सकती है लेकिन हिंदू और जैनों के बीच में एक दूरी से बनती जा रही है या यूं कहें कि जैन समाज एवं अन्य समाजों के बीच में एक दूरी सी बनती चली जा रही है! 

मित्रों महावीर स्वामी ने जो दया, करुणा, अहिंसा के पंचशील सिद्धांत  दिए हैं किसी संप्रदाय विशेष के लिए नहीं है यहां तक कि वह तो मानव जाति तक भी सीमित नहीं है वह तो इस संसार के प्रत्येक प्राणी ,यहां तक कि पेड़, पौधे, वृक्ष इनके लिए भी प्रतिपादित है !
आज महावीर जयंती के उपलक्ष में चाहे वह जैन समाज के लोग हो या अन्य समाज के लोग महावीर स्वामी के प्रति सही आदरांजली या भावांजलि यही हो सकती है  हमारी तरफ से कि हम इन दूरियों को कम करें और जिस तरह दूध के अंदर मख्खन का अस्तित्व होता है वैसा ही अस्तित्व हमारा इस राष्ट्र के अंदर हो, हमारा आपस में किसी भी तरह का विभाजन कभी भी इस राष्ट्र के हित में नहीं हो सकता है! 

बहुत समय पहले मैंने ओशो की एक किताब पढ़ी थी उसकी कुछ बातें आपसे साझा करता हूं -

ओशो ने महावीर स्वामी के एक सिद्धांत -
 " मूर्खों के संसर्ग से बचें "
 को विस्तार से परिभाषित करने का प्रयास किया था ! 
उन्होंने कहा था कि मूर्ख वह नहीं है जिसे  कुछ पता नहीं है वे तो अज्ञानी है ,
मूर्ख तो वह है जिसे बिना कुछ जाने सब पता है ! 

उन्होंने एक उदाहरण दिया एक धर्म गुरु उनके पास आए उन्होंने कहा कि ईश्वर को परिभाषित नहीं किया जा सकता है ईश्वर की थाह नहीं ली जा सकती है ! 
 
ओशो ने उनसे कहा कि यह बात आप दो ही परिस्थितियों में कह सकते हो या तो आपने थाह 
ले ली है और यदि आपने थाह ले ली है तो आपकी बात सत्य नहीं है और यदि आपने थाह नहीं ली है तो आपको यह कहने का अधिकार नहीं है! 
अभी हमारे इर्द-गिर्द ऐसे लोगों की भरमार है हमारी सोशल मीडिया पर ,फेसबुक पर ,व्हाट्सएप पर इस तरह के संदेशों की भरमार है जो हिंदू धर्म को नहीं जानता वह हिंदू धर्म को परिभाषित कर रहा है , जो जैन धर्म के विषय में कुछ भी नहीं जानता वह जैन धर्म को परिभाषित करने का प्रयास कर रहा है और यही शायद हमारे बीच विरोधाभास और विसंगतियों का कारण भी है या शायद हम सब की आपसी दूरियों का कारण भी है!

और यह ना हिंदू धर्म के लिए अच्छा है ना जैन धर्म के लिए अच्छा है और ना ही राष्ट्र के लिए अच्छा है! 

ऐसे लोगों से बचें ऐसे लोगों से सावधान रहें , स्वयं मनन, चिंतन करें, सत्य को समझने का प्रयास करें और हम एक दूसरे के विचारों का ,एक दूसरे की धार्मिक आस्थाओं का ,एक दूसरे के धर्मों का सच्चे अर्थों में सम्मान करें और उन्हें स्वीकार करें!
 
यही इस राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए आवश्यक भी है !

और यकीन मानिए हमारे सारे धर्म हमारे सारे सिद्धांत हमें सिर्फ और सिर्फ उस परमपिता परमेश्वर की तरफ ही लेकर जाते हैं! 

हरिवंश राय बच्चन की छायावादी युग की एक बहुत खूबसूरत रचना है  -
 " मधुशाला" 

 जिसकी कुछ लाइने आपसे साझा करता हूं! 

घर से चलता है जब पीने वाला, 
घर से चलता है जब पीने वाला,
असमंजस में है वह भोला भाला, 
अलग-अलग पथ बतलाते सब , 
पर मैं यह बतलाता हूं, 
राह पकड़ तू एक चला चल ,
पा जाएगा मधुशाला !

 
हम सब अपनी अपनी पृष्ठभूमि , अपनी अपनी पसंद के अनुसार अपने-अपने धर्म अपने अपने सिद्धांतों का चयन कर सकते हैं, लेकिन आप यकीन मानिए अंततः हम सब उस परमपिता परमेश्वर के दरवाजे पर ही पहुंचेंगे चाहे हम रास्ता कोई भी अपना लें!

 इसलिए आइए महावीर जयंती के उपलक्ष पर हम आप सब मिलकर दृढ़ संकल्पित हो और मानव से मानव के बीच की इस दूरी को कम करके अनेकता में एकता की इस राष्ट्र की संकल्पना को साकार रूप प्रदान करें

निलेश रावल

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