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शुक्रवार, अप्रैल 03, 2020

खुला ख़त राहत इंदौरी के नाम कॉपी टू मुन्नवर राणा, जावेद अख्तर

 
 
ज़नाब राहत इंदौरी साहेब
नर्मदे हर
इसकी जिम्मेदारी हम लिटरेचर के लोगों की भी होती है। आपकी बहुत सारी बातें जो रोंगटे खड़े कर देने वाली होती है हमने सुनी है-
*लगेगी आग जग में आएंगे...*
हमने एनवायरमेंट क्रिएट किया है ,
हम कितने दुखी हैं इंदौर की इस घटना से जिसका आईकॉन राहत इंदौरी हो वहां इस तरह के लोग मौजूद हैं। आप नहीं जानते शहर जबलपुर में बहुत पुराने हादसे के बाद आज तक ऐसा कोई मंज़र शहर ने पेश नहीं किया जैसा कि इंदौर ने किया है। आप जानते हैं कि हम मौलाना मुफ्ती साहब के इंतकाल के बाद कितना दुखी है हम जो हिंदू हैं वह जो क्रिश्चियन है वह जो मुस्लिम है सब को एक सूत्र में पिरो देते थे मौलाना साहब। गोया कि आप आपके शहर में पढ़े लिखे समझदार अथॉरिटी को भी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। आपने अपनी शायरी में बहुत कुछ अच्छा लिखा है हम सभी देर रात तक खुले आकाश के नीचे मुशायरा में जाया करते थे और आपने तब शायरी शुरू ही की थी मंच से सुनते थे आपको और जो अपनापन आपकी कलम में उस दौर में देखा गया अब नजर नहीं आता। हम लिटरेचर के लोग आज भी ह्यूमैनिटी और भाईचारे पर यकीन करते हैं और करेंगे किसी की मजाल है कि कौमी बवाल खड़ा कर पाए परंतु कुछ दिनों से देख रहा हूं कि आप और कुछ नामचीन शायर कुछ कवि अमन पर बुरादा डालने वाली शायरी और कविताएं पेश करते हैं। थिएटर भी कुछ इस तरह से कोशिशें करता है। खासतौर पर बाएँ जमात वाले । एक शायर कवि लेखक होने के नाते ऐसी कोशिशों की मज़्ज़मत करता हूं ।
आपको या किसी कवि को किसी खास इंसान से असहमति हो सकती है परंतु आवाम के हक में बात करने के अपने फर्ज को भूल कर आप लोग आप कमिटेड हो गए हो। साहित्य क्या है आप जानते थे मुगल काल में जब बहुत मुश्किल का दौर था जजिये लगाए जाते थे तब तुलसी ने कभी भी आग नहीं लगाई की बस्तियां झुलस जाए बल्कि नीति प्रेम और अनुशासन का कथानक रामचरितमानस की शक्ल में जनता के सामने पेश किया था। उसी समय भक्त कवियों ने अपना अपना फर्ज निभाया। सूफी आए और तमाम लोगों के बीच मोहब्बत का पैगाम दिया। लेकिन ऐसा क्या हो गया है कि अब आप जैसे लोग भी कमिटेड हो गए हैं। आपकी एक ग़ज़ल का जवाब हमारे पास तैयार है हमने भेजा भी था मिल भी गया होगा मौका बिल्कुल सही है सोचता हूं शेयर कर दूं
*जो खिलाफ हैं वो समझदार इंसान थोड़ी हैं*
जो वतन के साथ हैं वो बेईमान थोड़ी है ।।
लगेगी आग तो बुझाएंगे हम सब मिलकर
बस्ती हमारी है वफादार हैं बेईमान थोड़ी हैं ।।
मैं जानता कि हूँ वो दुश्मन नहीं था कभी मेरा उकसाने वालों का सा मेरा खानदान थोड़ी है ।।
मेरे मुंह से जो भी निकले वही सचाई है
मेरे मुंह में विदेशी ज़ुबान थोड़ी है ।।
वो साहिबे मसनद है कल रहे न रहे -
वो भी मालिक है ये किराए की दूकान थोड़ी है
अब तो हर खून को बेशक परखना होगा
वतन सबके बाप का है, हर्फ़ों की दुकान थोड़ी है ।।
जनाब राहत इंदौरी साहब हम भवानी प्रसाद मिश्र के शहर के लोग हैं हम जानते हैं सिय विजनवास को वे खुद उतनी बेहतर ढंग से पेश ना कर पाते जितना की चाचा लुकमान ने पेश किया। लुकमान रुला देते थे उनकी अभिव्यक्ति गोया कविता पर भारी पड़ जाया करती थी। मेरे कहने का मतलब समझ रहे हैं सही गंगा जमुना की धारा नर्मदा के किनारे वाले इस पत्थरों के शहर में नजर आ जाती है एक आपका शहर है जहां ना तो आपकी चलती है नाही नई नस्लें आपको समझ पाती हैं। बड़े बोल नहीं बोल रहा हूं पर शहर जबलपुर तुम्हारे शहर से न केवल खूबसूरत हो गया है अमन पसंद भी हो गया है। जबलपुर वह शहर है हां जिसे अमन का शहर कह सकते हैं। जिसके पत्थरों की कीमत जौहरी ही जानते है। हम सभी जानते हैं हमारा शहर पत्थरों का जरूर है लेकिन संगमरमर के पत्थर नरम ही होते हैं ना ।
बाहरी ताकतें हिंदुस्तान को कितना भी हिलाने की कोशिश करें जनाब सबसे पहले शायरों की जिम्मेदारी होती है फन कारों की जिम्मेदारी होती है कि वह अपना पाया मजबूत करें और हमारी कोशिश है देख कर हमारे फॉलोअर्स भी वैसा करेंगे।
कैसे सो लेते होंगे आप लोग मुझे तो नींद नहीं आ रही है 7 दिन हो गए किस्तों में सो रहा हूं जगता हूं तो आओ देख लो तड़पता हूं और रो रहा हूं मतलब समझ रहे हैं मेरी इस बात का
एलाने अमन करना सीखो
इस वाह-वाह में क्या रखा
यह बात बारास्ता और उन तमाम कवियों शायरों के लिए लिखी जा रही है जो कमिटेड है किसी विचारधारा के लिए। तरक्की पसंद लोग भी अब आग लगाने में माहिर हो गए हैं जनाब, समझ लीजिए अभी नहीं सुधरे तो तुम्हारी हमारी शायरी कविताएं नाटक कहानियां सब फिजूल की बातें मानी जाएंगी। आग की तरह जलते वीडियो देखकर आइंदा नस्लें ना तुम्हें माफ करेगी ना मुझसे राहत साहब यह अलग बात है कि इंदौर मुंबई के पास है मुंबई में बहुतेरे लोग खाल ओढ़कर अपनी नौकरी टाइप की साहित्य सेवा कर रहे हैं। जनाब यूं तो जावेद अख्तर साहब से भी नाराज हूं पर ठीक है आपको भेज रहे खत से उनको कुछ समझ आए

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