28.3.20

*मध्यवर्ग की आवाज सुनने के लिए धन्यवाद*

भारत सरकार ने मध्यमवर्ग की आवाज जिस तेजी से सुनी उसे लगा कि सरकार ने उम्मीद से अधिक कर दिया । जिस तरह से बैंकों की रेपो रेट में गिरावट बैंक की लिक्विडिटी बढ़ाई है तो सीआरआर का 1 परसेंट कम हो जाना भी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है इससे सीधा लाभ मध्यमवर्ग को मिलना सुनिश्चित है।
वर्तमान परिदृश्य में सारे प्रश्न हल हो चुके हैं किंतु ई एम आई में प्रीमियम का स्थगन स्पष्ट नहीं है। दिन भर मित्रों से चर्चा के बाद सबके मन में एक ही आशंका है कि क्या बैंक स्थगित प्रीमियम एक साथ वसूलेंगी अथवा लोन की अवधि बढ़ेगी? बढ़ी हुई अवधि में ब्याज की स्थिति क्या होगी यह भी आरबीआई के द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया है? यद्यपि यह 2 सवाल के संदर्भ में विश्वास कि सरकार और रिजर्व बैंक इस पर शीघ्र ही स्पष्ट हो जावेगी।
मित्रों मध्यवर्ती आवाज इतना जल्दी कभी नहीं सुनी गई जितना की आज सुनी गई है इसके लिए रिजर्व बैंक और भारत सरकार को साधुवाद देना ही होगा।
ऐसे समय में इंश्योरेंस कंपनियों के लिए भी सरकार को पृथक से इस आशय के स्पष्ट आदेश जारी करने होंगे जिसमें यह स्पष्ट कर दिया जाए कि उनके प्रीमियम भी स्थगित हों तथा जोखिम को 3 माह तक कवर की जा सके।
यद्यपि यह एकदम पृथक मामला है अतः उम्मीद है कि सरकार बीमा कंपनियों सरकारी जीवन बीमा निगम के साथ संवाद विस्थापित कर सकेगी।
अब जहां तक किसी परिस्थिति वश भारत कोरोना वायरस के संक्रमण पर नियंत्रण नहीं कर पाता है तब सरकार की स्थिति भी बेहद कमजोर हो जावेगी। वैसे यह स्थिति पूरे विश्व में समान रूप से इस समाज रह सकती है अतः इससे ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं।
सरकार ने अपना फर्ज निभाया है अब आम जनता को क्या करना चाहिए ?
यह सवाल स्वभाविक है, आप 3 माह की प्रीमियम अगर सुरक्षित रख देते हैं तो वह एक बचत के रूप में आपके खाते में पर देश की बचत के रूप में बैंकों में जमा रहेंगे। अर्थात हमें केवल बहुत जरूरी खर्चों के लिए उक्त राशि को उपयोग में लाना है। ताकि सिस्टम से राशि बाहर ना हो। सरकार ने यह सुविधा इस उद्देश्य रिजर्व बैंक के माध्यम से दिलवाई है ताकि उसका लाभ मध्यमवर्ग की कर्मचारियों और व्यापारियों को सीधा सीधा मिल जावे।
आपके हाथ में कैश है किंतु दुरुपयोग के लिए तो बिल्कुल नहीं। अगर आप इस कैश को अपने बैंक खाते में रखते हैं, तो यह बचत आपके लिए महत्वपूर्ण और सुखदाई होगी।
ऐसा नहीं है कि सरकार बाजार को जीवंत रखने के लिए कोई कदम नहीं उठाने वाली है। क्रय शक्ति आपके हाथ में होगी परंतु आवश्यकता के अनुरूप आपको वह करना होगा। यहां पुरानी भारतीय परंपराओं और व्यवस्था का अनुसरण करते रहना जरूरी है।
मेरा यह मानना है कि मध्यवर्ग का सर्वाधिक योगदान होता है अर्थव्यवस्था के संचालन में, साथ ही उत्पादकता में भी मध्यवर्ग महत्वपूर्ण है।
ऐसी स्थिति में आपको अपनी भूमिका स्पष्ट कर देनी चाहिए, अन्यथा अगर विषम परिस्थिति हुई तो आप अगले 3 माह में भी अपने आप को सुरक्षित नहीं रख पाएंगे। अगले तीन माह की स्थिति निर्भर करती है संक्रमण कि हम कितना जल्द काबू पाते हैं।
इसके लिए सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन रखना फिलहाल तो बेहद जरूरी है, विश्व स्वास्थ्य संगठन इस मुद्दे पर बहुत ही स्पष्ट और साफ है, उसने भारत द्वारा उठाए गए कदम को सटीक माना है। जो जहां है वह वहां रहे यह व्यवस्था का प्रश्न है। जिसे राज्य सरकारें स्थानीय निकाय, जन सहयोग के के जरिए हल किया जाएगा।
आपको करना क्या है...?
आपको बहुत कुछ अधिक नहीं करना है, केवल उन व्यक्तियों को संसाधन उपलब्ध कराने के लिए सरकार को मदद करनी है। ठीक उसी प्रकार जैसे सिख मतावलंबी गुरुद्वारे के लंगर का संचालन करते हैं। अगर 100 मिडिल क्लास परिवार 10 रोटियां और उसके अनुकूल दाल या सब्जी एकत्र कर प्रशासन द्वारा निर्धारित सुविधा केंद्रों को उपलब्ध कराते हैं तो आप बहुत बड़ा सहयोग कर रहे होते हैं।
आवास व्यवस्था के लिए अगर आप अपने घर से एक कंबल या चादर या बिस्तर जो आपके घर में सहज उपलब्ध है दान कर देते हैं तो प्रशासन को आवास की समस्या हल करने में कोई देर नहीं लगेगी।
इस तरह बूंद बूंद से समस्याओं का सूखा सागर भरा जा सकता है। अगर इतना भी नहीं तो आप घर बैठे 100 से 500 रुपए तक का दान सीधे जिले में स्थित रेड क्रॉस सोसाइटी को दे सकते हैं। वह भी बिना जाए। घर से भी बाहर निकलने की जरूरत नहीं है आप ऑनलाइन भुगतान की सुविधा व्यवस्था का लाभ उठा सकते हैं।
सरकार जब मध्यमवर्ग की आवाज को एक बार में सुन सकती है तो हम बिना देर किए सरकार के प्रति इतना प्रतिकार तो कर सकते हैं।
मैं देख रहा हूं सोशल मीडिया पर दानदाताओं के रूप में अपेक्षा अधिक की जा रही है सवाल कई बार किया कि भाई अभी तक आपने क्या किया है इस पर कोई उत्तर नहीं मिल रहा। विधायकों सांसदों मंदिरों व्यापारियों वृहद उद्योगों उद्योगपतियों ने बहुत कुछ करना शुरू कर दिया है इस पर टीका टिप्पणी भी हो रही है जो अलग बात है परंतु सबके मन में उस समाज के प्रति संवेदनाएं जाग रहे हैं जिसमें ऊपर लिखे वर्ग स्वयं शामिल है। मजदूरों गरीबों से एक भी पैसा लेने की जरूरत बिल्कुल नहीं है हम 60% से अधिक मध्यमवर्गीय लोग अपने संसाधन से छोटा सा काम आसानी से कर सकते हैं। वरना हम भिक्षुक के रूप में नजर आएंगे।
अगले आर्टिकल तक मुझे उम्मीद है बहुत सारा पैसा रेडक्रॉस सोसायटी या सरकार द्वारा बताए गए खातों में भेजी जा सकती है क्योंकि अभी इसकी बहुत जरूरत है।

कोई टिप्पणी नहीं:

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...