6.4.20

लाॅक डाउन - By Nilesh Rawal

 
Jabalpur Dated 5th Apr 2020, at Between 09:00 to 09:09 Photo By Ashish Vishvakarma 
    
Writer : Mr. Nilesh Rawal

लाॅक डाउन - भाग एक से तीन
नीलेश रावल
लाॅक डाउन - भाग - १

लॉक डाउन चल रहा है हम सब अपने अपने घरों में ठहर गए हैं!
बहुत दिनों से व्हाट्सएप में , फेसबुक पर बहुत सारी जगह पर मैं पोस्ट देख रहा था यदि हम बाहर नहीं जा सकते तो अपने भीतर जाने की कोशिश करें मैं सोच रहा था कि भीतर कैसे जाऊं बहुत कोशिश की पर भीतर जाने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था हमने अपने भीतर जाने के सारे दरवाजों पर नाराजगी के, गुस्से के ,नफरत के बडे बड़े ताले जड़ रखे हैं , अपने भीतर प्रवेश करना भी अब शायद हमारे लिए बहुत आसान नहीं रह गया हैं !
अचानक बैठे-बैठे मेरे मन में ख्याल आया कि एक काम करते हैं आराम से शांत मन से बैठते हैं और अपने स्मृति पटल पर जहां तक की स्मृतियां शेष है अपने जीवन में वापस पीछे जाते हैं और फिर वहां से शुरू करते हैं अपनी एक एक गलती , एक एक भूल, एक एक अपराध के लिए स्वयं से , स्वयं की आत्मा से , परम पिता परमेश्वर से क्षमा मांगते हैं !
इस तरह से उस अंतिम छोर से आज तक के सफर पर चलते हैं !
अपने हर छोटे बड़े अपराध के लिए माफी मांगने का प्रयास करते हैं!
फिर एक बार हम शांत मन से सोचते हैं हमें किन से प्रेम है किन से नफरत है किन के प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है हमारे मन में नाराजगी है एक-एक करके जिनसे हम नाराज हैं जिनके प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है उन सबको एक-एक करके माफ करने की कोशिश करते है!
यकीन मानिए यदि हम सच्चे मन से एक-एक व्यक्ति को माफ करते चले जाएंगे तो हमें हमारे भीतर प्रवेश के द्वार पर लगे सारे ताले टूटते हुए नजर आएंगे !
और हाँ जब हम अपने भीतर प्रवेश कर जाए तो मन के सारे द्वार, सारी खिड़कियां और विशेष तौर पर मन का वह झरोखा जरूर खोल दीजिए जिससे मन के अंदर नाराजगी ,गुस्से और नफरत की जितनी भी गर्म हवाएं है उससे बाहर निकल सके!
यकीन मानिए उस खुले झरोखे से मन की सारी गर्म हवाएं एक बार बाहर निकल जाएंगी तो बाहर से आती हुई शीतल हवाएं जब हमें स्पर्श करेंगी तो वे हमें अलौकिक आनंद से भरकर आल्हादित कर देगीं !
अब आपके पास लेने और देने के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम बचेगा और हां लेकिन इतना जरूर याद रखियेगा की देने के लिए प्रेम है लेकिन लेने के लिए प्रेम की अपेक्षा मत कीजिए यदि मिल जाएगा तो आप सौभाग्यशाली हैं और नहीं मिला तो आपके पास देने को बहुत सारा प्रेम होगा यह आपका सौभाग्य है!
एक नए संसार का सृजन करिये जो प्रेम के द्वारा हो, प्रेम के लिए हो और प्रेम से हो!
भाग दो
लॉक डाउन चल रहा है हम सब अपने अपने घरों में ठहर गए हैं!
बहुत दिनों से व्हाट्सएप में , फेसबुक पर बहुत सारी जगह पर मैं पोस्ट देख रहा था यदि हम बाहर नहीं जा सकते तो अपने भीतर जाने की कोशिश करें मैं सोच रहा था कि भीतर कैसे जाऊं बहुत कोशिश की पर भीतर जाने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था हमने अपने भीतर जाने के सारे दरवाजों पर नाराजगी के, गुस्से के ,नफरत के बडे बड़े ताले जड़ रखे हैं , अपने भीतर प्रवेश करना भी अब शायद हमारे लिए बहुत आसान नहीं रह गया हैं !
अचानक बैठे-बैठे मेरे मन में ख्याल आया कि एक काम करते हैं आराम से शांत मन से बैठते हैं और अपने स्मृति पटल पर जहां तक की स्मृतियां शेष है अपने जीवन में वापस पीछे जाते हैं और फिर वहां से शुरू करते हैं अपनी एक एक गलती , एक एक भूल, एक एक अपराध के लिए स्वयं से , स्वयं की आत्मा से , परम पिता परमेश्वर से क्षमा मांगते हैं !
इस तरह से उस अंतिम छोर से आज तक के सफर पर चलते हैं !
अपने हर छोटे बड़े अपराध के लिए माफी मांगने का प्रयास करते हैं!
फिर एक बार हम शांत मन से सोचते हैं हमें किन से प्रेम है किन से नफरत है किन के प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है हमारे मन में नाराजगी है एक-एक करके जिनसे हम नाराज हैं जिनके प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है उन सबको एक-एक करके माफ करने की कोशिश करते है!
यकीन मानिए यदि हम सच्चे मन से एक-एक व्यक्ति को माफ करते चले जाएंगे तो हमें हमारे भीतर प्रवेश के द्वार पर लगे सारे ताले टूटते हुए नजर आएंगे !
और हाँ जब हम अपने भीतर प्रवेश कर जाए तो मन के सारे द्वार, सारी खिड़कियां और विशेष तौर पर मन का वह झरोखा जरूर खोल दीजिए जिससे मन के अंदर नाराजगी ,गुस्से और नफरत की जितनी भी गर्म हवाएं है उससे बाहर निकल सके!
यकीन मानिए उस खुले झरोखे से मन की सारी गर्म हवाएं एक बार बाहर निकल जाएंगी तो बाहर से आती हुई शीतल हवाएं जब हमें स्पर्श करेंगी तो वे हमें अलौकिक आनंद से भरकर आल्हादित कर देगीं !
अब आपके पास लेने और देने के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम बचेगा और हां लेकिन इतना जरूर याद रखियेगा की देने के लिए प्रेम है लेकिन लेने के लिए प्रेम की अपेक्षा मत कीजिए यदि मिल जाएगा तो आप सौभाग्यशाली हैं और नहीं मिला तो आपके पास देने को बहुत सारा प्रेम होगा यह आपका सौभाग्य है!
एक नए संसार का सृजन करिये जो प्रेम के द्वारा हो, प्रेम के लिए हो और प्रेम से हो!
भाग तीन
लाॅक डाउन

आज 5 अप्रैल है और आज के दिन हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने आह्वान किया था कि रात 9:00 बजे देश का प्रत्येक नागरिक अपने घर की छत पर 9 मिनट के लिए 9 दीपक जलाएं!
सोशल मीडिया पर इसके समर्थन और विरोध में बहुत सारी क्रियाएं और प्रतिक्रियाएं देख रहा हूं!
मेरे एक मित्र ने मुझे एक व्हाट्सएप पर संदेश भेजा था जिसमें एक कहानी थी जो आप सभी लोगों से साझा करना चाहता हूं !
एक छोटे से राज्य पर एक बड़े राज्य ने आक्रमण कर दिया।
उस राज्य के सेनापति ने राजा से कहा कि आक्रमणकारी सेना के पास बहुत संसाधन है हमारे पास सेनाएं कम है संसाधन कम है हम जल्दी ही हार जायेंगे बेकार में अपने सैनिक मरवाने का कोई मतलब नहीं। इस युद्ध में हम निश्चित हार जायेंगे और इतना कहकर सेनापति ने अपनी तलवार को नीचे रख दिया।
अब राजा बहुत घबरा गया अब क्या किया जाए, फिर वह अपने गुरु के पास गया और सारी बातें बताई।
गुरु ने कहा उस सेनापति को फौरन हिरासत में ले लो उसे जेल भेज दो। नहीं तो हार निश्चित है।
यदि सेनापति ऐसा सोचेगा तो सेना क्या करेंगी।
आदमी जैसा सोचता है वैसा हो जाता है।
फिर राजा ने कहा कि युद्ध कौन करेगा।
गुरु ने कहा मैं,
वह गुरु बूढ़ा था, उसने कभी कोई युद्ध नहीं लड़ा था और तो और वह घोड़े पर भी कभी नहीं चढ़ा था। उसके हाथ में सेना की बागडोर कैसे दे दे।
लेकिन कोई दूसरा चारा न था।
वह बूढ़ा गुरु घोड़े पर सवार होकर सेना के आगे आगे चला।
रास्ते में एक पहाड़ी पर एक मंदिर था। गुरु सेनापति वहां रुका और सेना से कहा कि पहले मंदिर के देवता से पूछ लेते हैं कि हम युद्ध में जीतेंगे कि हारेंगे।
सेना हैरान होकर पूछने लगी कि देवता कैसे बतायेंगे और बतायेंगे भी तो हम उनकी भाषा कैसे समझेंगे।
गुरु बोला ठहरो मैंने आजीवन देवताओं से संवाद किया है मैं कोई न कोई हल निकाल लूंगा।
फिर गुरु अकेले ही पहाड़ी पर चढा और कुछ देर बाद वापस लौट आया।
गुरु ने सेना को संबोधित करते हुए कहा कि मंदिर के देवता ने मुझसे कहा है कि यदि रात में मंदिर से रौशनी निकलेगी तो समझ लेना कि दैविय शक्ति तुम्हारे साथ है और युद्ध में अवश्य तुम्हारी जीत हासिल होगी।

सभी सैनिक साँस रोके रात होने की प्रतीक्षा करने लगे। रात हुई और उस अंधेरी रात में मंदिर से प्रकाश छन छन कर आने लगा ।
सभी सैनिक जयघोष करने लगे और वे युद्ध स्थल की ओर कूच कर गए ।
21 दिन तक घनघोर युद्ध हुआ फिर सेना विजयी होकर लौटीं।

रास्ते में वह मंदिर पड़ता था।
जब मंदिर पास आया तो सेनाएं उस गुरु से बोली कि चलकर उस देवता को धन्यवाद दिया जाए जिनके आशीर्वाद से यह असम्भव सा युद्ध हमने जीता है।
सेनापति बोला कोई जरूरत नहीं ।।
सेना बोली बड़े कृतघ्न मालूम पड़ते हैं आप जिनके प्रताप से आशीर्वाद से हमने इस भयंकर युद्ध को जीता उस देवता को धन्यवाद भी देना आपको मुनासिब नही लगता।
तब उस बूढ़े गुरु ने कहा , वो दीपक मैंने ही जलाया था जिसकी रौशनी दिन के उजाले में तो तुम्हें नहीं दिखाई दि थी, पर रात्रि के घने अंधेरे में तुम्हे दिखाई देने लगी ।
तुम जीते क्योंकि तुम्हे जीत का ख्याल निश्चित हो गया।

आज चाहे ताली बजाना हो या दीपक जलाना यह सब मानव मन और मस्तिष्क को निराशा से बाहर निकालकर आशावादी बनाने का एक उपक्रम मात्र है!
और इस तरह के उपक्रम अपनी जनता और अपनी सेना का मनोबल ऊंचा करने और किसी भी युद्ध को पूरी मजबूती और शक्ति से लड़ने के लिए उन्हें तैयार करने के लिए आवश्यक भी है !

हम जैसे बहुत सारे लोग जो अपने व्यवसाय में अपने कामों में अत्यधिक व्यस्त रहने के आदी हो चुके थे और जो एक लंबे समय से अपने घरों में बंद है यह उन सबके लिए बहुत ही ज्यादा अवसाद में जाने और निराशा में जाने का समय था उन्हें इस अवसाद और निराशा से निकालने के लिए भी ये उपक्रम आवश्यक है!

कोई समर्थक हो या विरोधी लेकिन सारे ही लोग यह जरूर मानेगे कि चाहे ताली बजाने की क्रिया हो या आज दीपक जलाने की क्रिया इन दोनों ने ही एक असीम ऊर्जा का संचार पूरे देश में किया है जो अद्भुत और विलक्षण हैं और ये पल शायद हम में से किसी ने भी पहले अपने जीवन में कभी नहीं देखे!

मैं जानता हूं कि केवल ताली बजाने से या दीपक जलाने से करोना नहीं मर सकता है लेकिन आप सब भी यह मानेंगे इन क्रियाओं से हमारे अंदर , हमारे समाज में, हमारे देश में असीम उर्जा और जोश का जो संचार हुआ है वह हमें किसी भी करोना पर विजय दिला सकता है और हमारी जीत सुनिश्चित कर सकता है!

और यूं भी जिस तरह से लोगों ने एकजुट होकर दलों से, विचारधाराओं से बाहर निकलकर ताली बजाई या दीपक जलाए उसने इससे राष्ट्र की जीवंतता का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किया है!

इस राष्ट्र के अंदर हर परिस्थिति से लड़ने की , उससे जीत हासिल करने की अदम्य शक्ति और जिजीविषा है!

अटल बिहारी वाजपेई जी की कुछ पंक्तियां याद आई -:
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है,
कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं,
सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है,
अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है,
यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।

और हम ही जितेंगे!
हमारी जीत सुनिश्चित है, मैने उस मंदिर से दिपक के प्रकाश को बाहर निकलते देखा है! 

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