24.9.19

महिला बाल विकास विभाग द्वारा आयोजित पोषण सभा में पहुंचे माननीय मुख्यमंत्री कमलनाथ जी





दिनांक 21 सितंबर 2019 को मध्य पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के तरंग सभागार में आयोजित पोषण सभा में 👉 उपस्थित हुए जहां माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा महिला बाल विकास द्वारा लगाई गई पोषण व्यंजनों की प्रदर्शनी तथा श्री एन एस तोमर संयुक्त संचालक महिला बाल विकास के मार्गदर्शन में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर केंद्रित प्रदर्शनों का अवलोकन किया , बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के संकल्प पत्र पर भी हस्ताक्षर किए गए  माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा इस अवसर पर कुमारी मुस्कान किरार आत्मजा श्रीमती माला किरार एवम श्री वीरेंद्र किरार को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के ब्रांड एंबेसडर के रूप में तथा कुमारी उन्नति तिवारी आत्मजा श्रीमती शोभना श्री गौरी शंकर तिवारी को पॉक्सो ब्रांड एंबेसडर के रूप में क्राउन पहनाकर सम्मानित किया गया । क्रम के अंतर्गत ई सी ई केंद्रों के कार्यों से संबंधित सारेगामा गायन प्रतियोगिता में सम्पूर्ण देश में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली और लाडो अभियान की पूर्व ब्रांड एम्बेसेडर इशिता विश्वकर्मा को भी सम्मानित किया । 
वृत्तचित्र का विमोचन ईसीई गतिविधियों पर केंद्रित वृतचित्र ( निर्देशक एवं निर्माण सीडीपीओ श्री गौरीशंकर लववंशी ) विमोचन भी इस अवसर पर मुख्यमंत्री जी के कर कमलों से हुआ । मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ने किया पोषण आहार प्रदर्शनी का अवलोकन किया तथा  लाड़ली लक्ष्मी योजना के अंतर्गत अर्पिता केवट एवं आर्वी चौधरी को प्रमाणपत्र प्रदान किये । 

कार्यक्रम में मध्यप्रदेश शासन के ऊर्जा मंत्री एवं जबलपुर जिले के प्रभारी मंत्री श्री प्रियव्रत सिंह, वित्त मंत्री श्री तरूण भनोत, सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण मंत्री श्री लखन घनघोरिया, सांसद श्री विवेक कृष्ण तन्खा, विधायक श्री संजय यादव एवं श्री विनय सक्सेना, पूर्व मंत्री श्री चन्द्र कुमार भनोत, पूर्व मंत्री सुश्री कौशल्या गोंटिया, नगर निगम के पार्षद, भारतीय औद्योगिक परिसंघ के श्री आशीष केशरवानी, महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव श्री अनुपम राजन, संभागायुक्त श्री राजेश बहुगुणा, पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के प्रबंध संचालक श्री व्ही किरण गोपाल, कलेक्टर श्री भरत यादव, पुलिस अधीक्षक श्री अमित सिंह एवं अन्य अधिकारीगण उपस्थित थे । 
कार्यक्रम के प्रारंभ में संभागीय बाल भवन जबलपुर के बाल कलाकारों द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया ,

                    गीतकार श्रीआर.सी. त्रिपाठी(पूर्व डी पी ओ जबलपुर)  द्वारा लिखित तथा डॉ शिप्रा सुल्लेरे द्वारा संगीतबद्ध किए गए पोषण गीत की प्रस्तुति भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित थी । 
इस समूह गान को प्रभावी बनाने के लिए संगतकार-सोमनाथ सोनी
ढोलक-राजवर्धन पटेल
हारमोनियम वादक- शास्वत पंड्या
गायक स्वर-सजल सोनी उन्नति तिवारी, इशिता तिवारी, गर्व जैन, अरिहंत जैन, विभांशी जैन,मुस्कान बर्मन,अग्रति नामदेव, सिद्धि महावर, लकी सुफेले, प्रिंस पंजाबी, आरोही जैन, साक्षी साहू, शाम्भवी पंड्या, शास्वत पंड्या, विभांश जैन, रतनिका श्रीवास्तव की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । 

कार्यक्रम को सफलता पूर्वक संपन्न कराने में प्रमुख सचिव महिला बाल विकास से लेकर मैदानी अमले की भूमिका महत्वपूर्ण रही । 
प्रमुख सचिव महिला बाल विकास श्री अनुपम राजन जी के निर्देश एवम सतत मॉनीटरिंग में संयुक्त संचालक श्री एन एल कंडवाल संयुक्त संचालक श्री एनएस तोमर साथ जिला कार्यक्रम अधिकारी श्री एम एल मेहरा श्रीमती मनीषा लुंबा उपसंचालक सहायक संचालक श्री मनीष सेठ सहायक संचालक श्री पुनीत मरवाह श्री संजय अब्राहम सहायक संचालक बाल भवन गिरीश बिल्लौरे के नेतृत्व  में सीडीपीओ  श्री विकेश राय श्री रितेश दुबे श्रीमती रीता पटेल परियोजना अधिकारी श्री माधव सिंह यादव श्री प्रशांत पुरबिया डॉक्टर कांता देशमुख एवं मैदानी अमले का उल्लेखनीय योगदान रहा है . 













ओवैसी के बयान पर फक्र होना ही चाहिए





कुछ लोग नेतृत्व को गलत कहते हैं कुछ लोग अपनी आईडियोलॉजी को सर्वश्रेष्ठ कहने के चक्कर में यह भूल जाते हैं कि हिंदुस्तान की जमीन पर पैदा होने वाला कोई भी शख्स जो अपने मादरे वतन से प्रेम नहीं करता है वह इंसानियत का दुश्मन होता है हिंदुस्तान का दुश्मन होता है परंतु इन साहब को सुनिए जिन्होंने पाकिस्तान में जाकर खुला एलानिया बयान दिया कि आप हिंदुस्तान के मोमिन की चिंता करना छोड़ दें....!
 आपको और क्या सबूत चाहिए सरजमी है हिंद पर ऐसे खयालात रखने वालों से हम एक परसेप्शन बना लेते हैं कि अगर वह यह नहीं कह रहा है तो गलत है अगर यह वह नहीं कह रहा है तो गलत है हिंदुस्तान को आज की हिंदुस्तानी लोग प्यार करते हैं किसी भी जाति धर्म मजहब से वाबस्ता क्यों ना हो दोस्तों और सुधि पाठको इस देश में अमन का माहौल बना के रखें....प्यार बांटते चलो और इस बात से बिल्कुल ना घबराएं की कोई भी धर्म खतरे में हिंदुस्तान एक बेहतरीन आईन के साथ परवान चढ़ रहा है यहां कम से कम कीर्तन अजान फातिहा कथा होली दिवाली ईद क्रिसमस प्रकाश पर्व पर सियासी मुल्लमा ना चढ़ने दें .


17.9.19

नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला हुई बेनक़ाब


मलाला के झूठ का पर्दा फाश किया ताहिर गौरा ने- पिछले शनिवार को मलाला यूसफजई का एक ट्वीट सामने आया मलाला कहती है कि - "मलाला ने ट्वीट कर दावा किया  है कि उसने कश्मीर के पत्रकारों वकीलों छात्रों से बात की है ।"
   एक्टिविस्ट एवं पत्रकार स्तंभकार ताहिर गोरा ने अपनी टिप्पणी में कहा कि- "#मलाला क्या तुमने कभी कुछ पल बिताएं हैं उनके साथ जो जिनके अधिकारों का हनन हो रहा है पाकिस्तान में ?     अपने राष्ट्र पाकिस्तान में हिंदू सिख ईसाई धर्म को मानने वालों की बेटियों के मानवाधिकारों के बारे में विचार किया है ? मज़ाहिरों बलोच अहमदियों के बारे में जानकारी है तुमको ?
   ट्वीट को देखकर लगता है कि - " मलाला एक सस्ती लोकप्रियता के लिए अपनी सेलिब्रिटी होने का दुरुपयोग कर रही है या मलाला प्रो आर्मी डेमोक्रेटिक सिस्टम के नरेशन को सामने ला रही है । मैंने भी अपने ट्वीट में मलाला को स्पष्ट किया है कि अगर इतनी ही जानकारी है तो तुमको ( मलाला को ) मानव अधिकार एक्टिविस्ट के रूप में यह भी जानना चाहिए था कि अब तक क्या होता रहा है कश्मीर में क्या वहां सभी बालक बालिकाओं को हिंसा नहीं पढ़ाई जा रही थी ?
 - कश्मीर के मामले में हिंदुस्तान के हर नागरिक को समझ लेना चाहिए कि मलाला जैसी हरकतें करने वालों को सीधे ट्वीट कर सटीक जवाब दें मलाला जैसी तथाकथित सेलिब्रिटीस को यह समझाना जरूरी है जितना सुरक्षित हिंदुस्तान है उतना पाकिस्तान तो कदापि नहीं । पाकिस्तान के ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट बहुधा कनाडा या विश्व के अन्य देशों में रह रहे हैं उनमें एक ताहिर गौरा साहब भी हैं ।
    हिंदुस्तान की सरजमीं पर रहने वाला हर हिंदुस्तानी चाहे वह किसी भी धर्म जाति रंग भाषा से बाबस्ता हो उसके मानवाधिकार अधिक सुरक्षित है पाकिस्तान जैसे राष्ट्र में मानव अधिकार की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं । सोशल एक्टिविस्ट को चाहिए कि मलाला को जवाब जरूर लिखें और तथ्यों के साथ  लिखें ताकि विश्व को समझ में आए कि पाकिस्तान का असली चेहरा क्या है

14.9.19

हर जीवन का साथी मुनगा उर्फ मोरिंगा उर्फ सहजन

दुनिया का सबसे
ताकतवर पोषण पूरक आहार है- सहजन (मुनगा)। इसकी जड़ से लेकर फूल, पत्ती, फल्ली, तना, गोंद हर चीज उपयोगी होती है।
           आयुर्वेद में सहजन से तीन सौ रोगों का उपचार संभव है। सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना :- विटामिन सी- संतरे से सात गुना अधिक। विटामिन ए- गाजर से चार गुना अधिक। कैलशियम- दूध से चार गुना अधिक। पोटेशियम- केले से तीन गुना अधिक। प्रोटीन- दही की तुलना में तीन गुना अधिक।
            स्वास्थ्य के हिसाब से इसकी फली, हरी और सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी-काम्प्लेक्स प्रचुर मात्रा में पाई जाते हैं। इनका सेवन कर कई बीमारियों को बढ़ने से रोका जा सकता है, इसका बॉटेनिकल नाम ' मोरिगा ओलिफेरा ' है। हिंदी में इसे सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा नाम से भी जानते हैं, जो लोग इसके बारे में जानते हैं, वे इसका सेवन जरूर करते हैं।
          सहजन का फूल पेट और कफ रोगों में, इसकी फली वात व उदरशूल में, पत्ती नेत्ररोग, मोच, साइटिका, गठिया आदि में उपयोगी है। इसकी छाल का सेवन साइटिका, गठिया, लीवर में लाभकारी होता है। सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात और कफ रोग खत्म हो जाते हैं।
          सहजन की पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, साइटिका, पक्षाघात, वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है। साइटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखाता है। मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं और मोच के स्थान पर लगाने से जल्दी ही लाभ मिलने लगता है।
            सहजन के फली की सब्जी खाने से पुराने गठिया, जोड़ों के दर्द, वायु संचय, वात रोगों में लाभ होता है। इसके ताजे पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है साथ ही इसकी सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है। इसकी जड़ की छाल का काढ़ा सेंधा नमक और हींग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है।
          सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उल्टी-दस्त भी रोकता है। ब्लड प्रेशर और मोटापा कम करने में भी कारगर सहजन का रस सुबह-शाम पीने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है। इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे-धीरे कम होने लगता है। इसकी छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं और दर्द में आराम मिलता है।
            सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होता है, इसके अलावा इसकी जड़ के काढ़े को सेंधा नमक और हींग के साथ पीने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है। इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सूजन ठीक होते हैं।
          सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीसकर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लोरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है, बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है।
            कैंसर तथा शरीर के किसी हिस्से में बनी गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ों में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी आदि में भी लाभकारी है |
            सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द तथा दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से वायरस से होने वाले रोग, जैसे चेचक आदि के होने का खतरा टल जाता है।
           सहजन में अधिक मात्रा में ओलिक एसिड होता है, जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिए अति आवश्यक है। सहजन में विटामिन-सी की मात्रा बहुत होती है। यह शरीर के कई रोगों से लड़ता है। यदि सर्दी की वजह से नाक-कान बंद हो चुके हैं तो, सहजन को पानी में उबालकर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होती है। सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है, जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं। इसका जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है, इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है, गर्भवती महिला को इसकी पत्तियों का रस देने से डिलीवरी में आसानी होती है।
           सहजन के फली की हरी सब्जी को खाने से बुढ़ापा दूर रहता है इससे आंखों की रोशनी भी अच्छी होती है। सहजन को सूप के रूप में भी पी सकते हैं,  इससे शरीर का खून साफ होता है।
            सहजन का सूप पीना सबसे अधिक फायदेमंद होता है। इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। विटामिन सी के अलावा यह बीटा कैरोटीन, प्रोटीन और कई प्रकार के लवणों से भरपूर होता है, यह मैगनीज, मैग्नीशियम, पोटैशियम और फाइबर से भरपूर होते हैं। यह सभी तत्व शरीर के पूर्ण विकास के लिए बहुत जरूरी हैं।
            कैसे बनाएं सहजन का सूप? सहजन की फली को कई छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं। दो कप पानी लेकर इसे धीमी आंच पर उबलने के लिए रख देते हैं, जब पानी उबलने लगे तो इसमें कटे हुए सहजन की फली के टुकड़े डाल देते हैं, इसमें सहजन की पत्त‍ियां भी मिलाई जा सकती हैं, जब पानी आधा बचे तो सहजन की फलियों के बीच का गूदा निकालकर ऊपरी हिस्सा अलग कर लेते हैं, इसमें थोड़ा सा नमक और काली मिर्च मिलाकर पीना चाहिए।
           १. सहजन के सूप के नियमित सेवन से सेक्सुअल हेल्थ बेहतर होती है. सहजन महिला और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फायदेमंद है।
           २. सहजन में एंटी-बैक्टीरियल गुण पाया जाता है जो कई तरह के संक्रमण से सुरक्षित रखने में मददगार है. इसके अलावा इसमें मौजूद विटामिन सी इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने का काम करता है।
          ३. सहजन का सूप पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाने का काम करता है, इसमें मौजूद फाइबर्स कब्ज की समस्या नहीं होने देते हैं।
          ४. अस्थमा की शिकायत होने पर भी सहजन का सूप पीना फायदेमंद होता है. सर्दी-खांसी और बलगम से छुटकारा पाने के लिए इसका इस्तेमाल घरेलू औषधि के रूप में किया जाता है।
          ५. सहजन का सूप खून की सफाई करने में भी मददगार है, खून साफ होने की वजह से चेहरे पर भी निखार आता है।
          ६. डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए भी सहजन के सेवन की सलाह दी जाती है।
प्रस्तुति - जितेन्द्र रघुवंशी, प्रज्ञाकुंज, हरिद्वार

4.9.19

अदभुत तो निश्चित ही थे नेताजी


अदभुत तो निश्चित ही थे नेताजी

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         कल ही मुझे मेरी सहकर्मी Vijaya Iyer Laxmi  ने बताया कि  उनकी माता श्रीमती मीनाक्षी अय्यर #आईएनए में नर्सिंग का काम करतीं थीं । जबकि पिता श्री श्रीनिवासन अय्यर रेडियो कम्यूनिकेशन का काम देखते थे । एक बार आई एन ए के जहाज में सांप घुस गया । अफरातफरी के माहौल में श्रीमती मीनाक्षी अय्यर जिनको लोग अलमेलू के नाम से जानते थे ....का पैर एक खीले (कीले ) पर पड़ा जो उर्ध्वगामी था ... कीला आरपार निकल आया था ।
आई एन ए के सुप्रीम कमांडर जो कभी भी सर से कैप नहीं हटाते ने कैप हटाया और अलमेलू के पैरों के पास झुक के बैठ गए ढांढस बंधाते रहे ।
जब नेताजी की बात छिड़ ही गई तो आप सबसे कुछ बात कर लेना ज़रूरी है .....
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सुभाष चंद्र बोस क्यों नहीं ...?
यह सवाल सुबह पूछा था ....
पर किसी को नहीं मालूम इसका जवाब क्या होना चाहिए... !
     कौन देगा इसका जवाब वही ना जो सुभाष बाबू के बारे में जरा सा भी पढ़ा हो ।  औसतन हम क्या पढ़ते हैं हमें खुद ही नहीं मालूम हम किस तरह पढ़ते हैं यह भी हम नहीं जानते तो फिर आप और मैं यानि हम पढ़ रहे हैं ?
  त्रिपुरी सम्मेलन में तो वे आये भी थे न जबलपुर ....1939 में है न...!
याद सभी को है है न...!
    कलकत्ते से छन के आई खबरों से बहुत वाद में सबने जाना कि  दूसरे विश्व युद्ध के बाद अगर ब्रिटिश गवर्नमेंट को सबसे ज्यादा खतरा था तो वह था सुभाष चंद्र बोस और उनकी आर्मी से ।
पता नहीं क्या हुआ था आयातित विचारधारा के ब्रांडेड इतिहासकारों को कि उनसे यह बिंदु लिखा न गया था उफ़्फ़ बेगैरत लोग ।
भारत की पहली किन्तु निर्वासित सरकार  को तो 11 देशों मान्यता पहले ही दे रखी थी । सुभाष बाबू संघर्ष का एक प्रतीक थे । अपने वतन की आजादी के लिए सर पर कफ़न बांधे ब्रिटिश सरकार का हाल बिगाड़ने वाले सुभाष बाबू का बाद में रहस्यमय नेताजी सुभाष चंद्र बोस  हो जाना और फिर खो जाना कहीं तय तो न था...!
           चिंता और चिंतन दोनों का विषय है । सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानंद के पथ पर चलने वाले व्यक्ति थे । आजाद भारत आजादी के पहले ही अंग्रेजों की अथवा आस्तीन के सांपों की सियासी चालों का शिकार हो चुका था । बर्मा श्रीलंका मुक्त हो ही चुके थे ब्रिटेन ने उन्हें पहले ही भारत का हिस्सा नहीं माना ऐसा नहीं था कि उन्हें कोई यह बताता के सांस्कृतिक तौर पर ब्रह्म देश  श्रीलंका भारत का हिस्सा थे । परंतु चालाक ब्रिटिश जानते थे की एशिया की सबसे बड़ी ताकत जिसका 25% योगदान है वैश्विक जीडीपी में को कमजोर किए बिना यूरोप को मजबूत नहीं किया जा सकता । अंग्रेजों ने उसी फलसफे   पर काम किया और भारत को टुकड़े-टुकड़े हिस्सों में बांटा ताकि वह भारत को अपनी जेब में रखी हुई जेबी घड़ी की तरह घड़ी घड़ी   इस्तेमाल कर सकें ।

1.9.19

कश्मीर के साथ हमारी सांस्कृतिक तालमेल की जरूरत है...!!




कश्मीर से हमारे सांस्कृतिक संबंधों को  एक सुनिश्चित  स्टेटस जी के तहत  मजबूत करना जरूरी है यह संभव केवल वहां के लोगों के साथ हमारे पारिवारिक संबंधों को बढ़ाना आप कहां तक सहमत हैं बताएंगे ?
शायद आपने यह नहीं सोचा होगा कि हम कश्मीर के बारे में 1990 के बाद क्या सोच रहे हैं हालिया दौर में भारत की स्थिति को समझने के लिए यूट्यूब पर मौजूद एक वीडियो को ध्यान से देखिए सुनिए उसमें साफ तौर पर लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता ने क्या कहा.. !
वास्तव में सैयद साहब ने वह हकीकत बयान कर दी जो पाकिस्तानी हुक्मरानों और फौजियों की दिल में जनरल जिया उल हक ने पैदा कर दी थी सच है कि वे भारत को घेरना चाहते थे ।
उनकी अपने मकसद हैं पर हमारी कुछ मजबूरियां थी उस दौर में जिससे इस भाषण में खुलकर समझाया गया है । एक बात तो तय है कि अगर हमारी आर्थिक स्थिति उस वक्त मजबूत होती तथा हम श्रीलंका के अंदर पनप रहे आतंक और वर्गीकरण में हस्तक्षेप और सहयोग ना करते तो शायद हम बेहतर तरीके से मुकाबला कर सकते थे टेररिज्म का जो कश्मीर में पनप चुका है हमारी राजनीतिक अस्थिरता और सांस्कृतिक एक्सचेंज कश्मीर के साथ शून्य होता चला गया यही बात इस भाषण में खुलकर कही गई है लेफ्टिनेंट जनरल अतः साहब ने मुख्तसर बयां कर दिया है कि किस तरह का एनवायरमेंट उस समय भारत के साथ था डोगरा और पंडितों के खिलाफ कश्मीर में एक वातावरण निर्मित किया गया यह सच है कि इसकी भनक जरूर भारत की शीर्ष सत्ता को लगी होगी किंतु तत समय की कमजोर व्यवस्था राजनीतिक परिस्थिति सबसे ज्यादा उत्तरदाई है कश्मीर में मुस्लिम और हिंदुओं को अलग-अलग करने के लिए ।
1989 - 1990 के बाद 30 साल बीत गए अर्थात 1990 में जन्मा बच्चा अब लगभग उनतीस तीस साल का है .... उसने क्या पढ़ा होगा या उसे क्या पढ़ाया गया होगा इस पर हमें और करना था । हम सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से कश्मीर से पूरी तरह अलग हो चुके थे और केवल और केवल कश्मीर की नई पीढ़ी को भारत के खिलाफ जो भी पढ़ाया जा रहा था उसका बेस कैंप या तो पाक ऑक्यूपाइड कश्मीर में था या फिर पाकिस्तान में । धारा 370 और 35 बी एक लाइसेंस था पाकिस्तान को कश्मीर में हस्तक्षेप करने का । कश्मीर के लोगों के साथ हमारे संबंध इस दौर में सबसे खराब रहे हैं । हां संशोधन किए देता हूं कि पिछले 30 साल से हम कश्मीर से कटे रहे हैं बावजूद इसके कि कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है इस नारे को बुलंद करते करते हमने इस नारे को साकार करने में कोई खास बेहतरीन पहल नहीं की ।
और इस पहल को करने के लिए जिम्मेदारी न केवल सरकार की थी बल्कि हम भी उतने ही जिम्मेदार हैं जो यह नहीं बता पाए कि कश्मीर में पाकिस्तान का कौन सा षड्यंत्र सफल हो रहा है ऐसा नहीं है कि हमारे देश के शीर्ष नेतृत्व को अथवा दिल्ली को यह नहीं मालूम था कि कश्मीर घाटी में क्या घट रहा है हमारा रॉ बाहर से खबर दे रहा था तो हमारा आंतरिक इंटेलिजेंट सिस्टम भी बाकायदा अपनी ड्यूटी निभा रहा था फिर भी हम सजग नहीं रहे परंतु कहते हैं ना कि हर काम का हो ना तभी संभव है जब उसके लिए सटीक समय आए । और 5 अगस्त 6 अगस्त 2019 का समय कुछ वैसा ही था जो हाथों में परोस गया एक उचित मौका । और इस मौके की तलाश भारत को 2017 से ही थी इस संयोग को भारत के लिए ऐतिहासिक कहा जाना गलत नहीं होगा ।
सुधी पाठकों आप समझदार हैं तो हम आपके सामने समझदारी वाली स्थितियां ही रखेंगे हम यह नहीं कहेंगे कि कश्मीर की लड़कियों को दुल्हन बनाएँगे या हम कश्मीर में प्लॉट खरीदेंगे यह संभल की बातें बल्कि हमें यह कहना चाहिए कि हम कश्मीर को वास्तविक रूप में सांस्कृतिक सामाजिक अनुबंधों के साथ अपने में जोड़ लेंगे...!
फिल्मों में देखकर बड़ा रश्क होता है कि की शिकारी पर हीरो बैठा मस्त मगन होकर संतूर सुन रहा है या एक जोड़ा खिलखिला ता हुआ डल झील में अपनी मोहब्बत का लुफ्त उठा रहा है । हां वह दिन लौट सकते हैं अगर हर भारतीय अनाधिकृत रूप से 370 और 35 बी का हटाना अनुचित ना माने ।
यहां राजनीतिज्ञ पर टिप्पणी किए बिना आम आदमी से अनुरोध है कि जब 370 हटी ही चुकी है 35b को भी दफना दिया गया है तब वहां के लोग बावजूद इसके कि 1990 का दर्द हमारे सीने में है हम उनके साथ अंतर्संबंध स्थापित करें सांस्कृतिक आदान प्रदान करें उनके कंबल खरीदें केसर भी मंगा लें अखरोट के तो क्या कहने वह भी मंगा सकते हैं प्रतिबंध कुछ नहीं है अब कश्मीर पहली बार आजाद है भारतीय फौज की हिफाजत नहीं है भले ही गंदी पत्रकारिता करने वाली ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन को कुछ भी महसूस हो आप उसकी रिपोर्टिंग से असमत ही रहिए यह भारत के हित में है यह आपके हित में है और यह कश्मीरियत के हित में है । यहां आयातित विचारधारा की बात भी करना चाहूंगा जो यह नहीं चाहती की भारत में शांति रहे बीबीसी को इस बात का एहसास होना चाहिए कि अगर अफगानिस्तान के नागरिक शरणार्थी के रूप में दिल्ली की गली नंबर 5 में रह रहे हैं तो वे कश्मीर की तरह ही पाकिस्तान की नापाक कोशिशों के कारण शरणार्थी बने हैं । कनाडा तथा विश्व के कुछ देशों में बसे हुए लोगों को सुनिए तो पता चलेगा कि अफगानिस्तान हमसे ज्यादा सताया हुआ मुल्क है पाकिस्तान कि आई एस आई द्वारा संचालित नकली डेमोक्रेटिक संस्था पार्लियामेंट आफ पाकिस्तान से । बलूच और सिंध का हाल कम खराब नहीं है । बुरे हालात तो चाइना के हांगकांग के भी है उधर वीगर मुस्लिम कम तनाव में नहीं है किसी ना किसी दिन छोटी आंखों वाली शरारती चाइना का भी परिणाम वैसा ही होना है मैं इस बात की भविष्यवाणी नहीं कर रहा हूं पर इतना अवश्य जानता हूं की चाइना में निश्चित तौर पर एक बदलाव जरूर आएगा और वह बदलाव चाइना की जनता करेगी यह अलग बात है कि चीन के कितने हिस्से होंगे पर होंगे अवश्य ।
वैसे भारत अब एक सूत्र में बंधा दृष्टिगोचर हो रहा है और यह सूत्र है राष्ट्र की सीमाओं के बारे में सोचते रहने का एहसास आम आदमियों के सीने में घर कर गया है । कोई भी व्यक्ति जो भारत के बारे में पॉजिटिव सोचता है वह अपनी विद्यमान भारत के नक्शे में किसी भी तरह की कमतरी और झंडे में किसी भी तरह के बदलाव को स्वीकार नहीं करेगा आयातित विचारधारा अर्थात इंपोर्टेड थॉट्स कुछ भी करें कितनी भी कोशिश करें हिंदुस्तान को अब समझने के लिए विश्व भी नए सिरे से कवायद में लगा हुआ है कारण है हिंदुस्तान के लोग जिन्हें जब पॉजिटिविटी और नेगेटिविटी का अंदाज होता है तो आनंदमठ जैसे घटनाक्रमों का विस्तार हो जाता है मैं यह मानकर चल रहा हूं कि आप पाठक के रूप में आनंदमठ के घटनाक्रम को समझ पा रहे हैं आज उसे उल्लेखित करने का बेहतरीन समय है । भारत के अस्तित्व को अब किसी भी प्रकार का खतरा नहीं है पर यह निरापद स्थिति बनी रहे इसके लिए हमें भारत का विस्तार करना होगा यह सच है कि भारत सीमा विस्तार पर ध्यान नहीं देता यह भारत की विशेषता है पर भारत का विस्तार विश्व में रह रही मानवता के मन में भारत को लेकर उठ रही जिज्ञासा का लाभ उठाना होगा बौद्धिक वर्ग को भी । यहां 140 शब्दों की सीमा में बंद कर बात नहीं करनी है अगर आप इंटरनेट पर लिखते हैं तो आपको टेक्स्ट डालना होगा भारत की खूबियां सामाजिक सांस्कृतिक विकास के संबंध में खुद समझना होगा और विश्व को समझाने के लिए ऐसा करना होगा क्योंकि आप यूनिकोड के आने के बाद किसी भी भाषा में लिखने के बाद उसे विस्तार देने की समस्या नहीं है . गूगल ने ऑटो ट्रांसलेशन की सुविधा जो मुहैया करा दी है ।
सुधी पाठकों उन्हें आपको स्मरण कराना चाहता हूं कि भारत में कश्मीर के साथ सांस्कृतिक एक्सचेंज को बढ़ावा देने की जरूरत है ना कि उन्हें दोष देने की बावजूद इसके कि हमारे डोगरा एवं कश्मीरी पंडितों के साथ हुए दुर्व्यवहार और उनके प्रति हिंसक वातावरण जो उन्नीस सौ नवासी नब्बे में हुआ था हमें संस्कृति अंतर्संबंध बढ़ाने ही होंगे यही राष्ट्र हित के लिए जरूरी भी है ।

8.8.19

सुकरात विष के प्याले लिए मेरे पीछे भी लगे हैं लोग


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महान दार्शनिक सुकरात 
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( निवेदन:- यह आलेख मैं बेहद कठिन भाषा में लिख रहा हूं कठिन तो नहीं लेकिन कूट भाषा कहूंगा और उसकी वजह यह है कि आज भी प्यालों में जहर लेकर कुछ स्वयंभू न्यायाधीश मेरे पीछे दौड़ रहे हैं और यह सत्य है इसका अंदाजा आप में से किसी को भी नहीं है मैं उन जहर के प्याले लेकर दौड़ने वालों के प्रति भी बिल्कुल नाराजगी का भाव नहीं रखता लेकिन याद रहे यह आलेख उनके लिए एक ब्रह्मास्त्र है वे और उनकी पीढ़ियां भी नहीं बच सकतीं चाहे जितना कैटवॉक करने वाले के लबादे की ओट में छिपने की कोशिश करें क्योंकि मैं कृष्ण का अनुयाई हूं और धर्म युद्ध जानता हूं सतर्क हो जाइए वह जो मेरी आत्मा को देह से अलग करवाने सक्रिय है )
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सुकरात को जहर पीना पड़ा था । हर सच्चे के लिए जहर एक अमृत ही तो है । 6000 साल पहले श्रीमद भगवत गीता 10000 साल पहले रामायण उसके पहले वेद वेदांत ! क्या कह गए किसे मालूम और मालूम भी करके यह करेंगे क्या समझ ही नहीं पाते की सनातन दर्शन क्या है ? 
याद होगा आपको एलेक्जेंडर के गुरु अरस्तु ने सुकरात को बहुत दिनों तक जिंदा रखा हम सब तक पहुंचाया । पर हम इतने बेवकूफ हैं कि हम कहते हैं विश्व के प्रथम सत्यार्थी हम हैं ....! 
अरे मूरख..! विश्व का क्या आप मोहल्ले के भी नहीं हां तुमको लालबुझक्कड़ अवश्य मां सकता हूँ । 
अब मैं पूरे विश्व के नहीं पश्चिम के सत्यार्थी था सुकरात उसे प्रणाम करता हूं दर्शन की चरम परिस्थिति थी पर वह यह नहीं जानता था कि चंद्रमा सूरज और बाकी सौरमंडल देवता है या सूरज के इर्द गिर्द चक्कर लगाने वाले बालू मिट्टी के या गैस के गोले । कुछ टटपूजिए विद्वान जो विद्वान कम पुजारी ज्यादा थे ने एनेक्सावारस को युवा सुकरात के समक्ष ले गए.... जो यह दावा कर रहा था कि चंद्रमा कोई देवी नहीं है बल्कि पत्थर पहाड़ों का पिंड है और सुकरात ने अपनी राय ज़ाहिर करने से इनकार कर दिया क्योंकि तब तक उस सत्य से अभिज्ञ थे 
हाँ ने उस विद्वान से सहमति या असहमति नहीं जताई तो #पुजारी_ब्रांड विद्वान नाराज हो गए । 
एथेंस का सत्यार्थी निरंतर सत्य की तलाश में लगा रहा और वह जितने करीब पहुंचता सत्य की उजागर कर देता तो रूढ़ीवादी यूनानी लोग सत्यार्थी से दूरियां कायम करने लगते । केवल युवा और समझदार लोग ही एथेंस के सत्यार्थी के , आस पास होते । 
मित्रों यहां यह उदाहरण इसलिए दे रहा हूं कि हम chandrayaan-2 भी चुके हैं और हमें मालूम है कि वाकई चंद्रमा कोई देवी देवी नहीं है और उसके पास अपना कोई प्रकाश नहीं है ।
आज से लगभग 2500 साल पहले सुकरात ने समझ लिया था कि यह एक सौर मंडल है । 
ज्ञात तो आपको भी होगा कि... 6000 साल पहले कृष्ण ने अर्जुन और अपनी मातुश्री को अपने मुंह में ब्रह्मांड के घूमते हुए पिंड दिखा दिए थे । 
उसके भी पूर्ण नवग्रह के संबंध में बहुत ही व्यापक विश्लेषण कर चुके थे हमारे योगी । 
एथेंस का सत्यार्थी डेमोक्रेटिक सिस्टम की सीमाएं बताता साथ ही एकमात्र निरंकार ब्रह्म के अस्तित्व को रेखांकित करता तो एथेंस का अभिजात्य वर्ग हाहाकार करता । सत्यार्थी ईश्वर को राजा से भी ऊपर बताता वह किसी देवता के अस्तित्व को अस्वीकार करता जैसे मैं भी एक बात बार बार कहता हूं- कुबेर का अर्थ कोई देवता या व्यक्ति नहीं है बल्कि कुबेर वैश्विक इकोनामिक रेगुलेटरी सिस्टम है तो लोग सर खुजाने लगते हैं । अरे भाई सच ही तो कह रहा हूं हम जिन देवताओं को मानते हैं या एथेंस जिन देवताओं को मानता था या मानता है वे किसी ना किसी गतिविधि के हेड होते हैं और उन्हें किसी रहस्यमई देवी या देवता के रूप में मानना गलत तो नहीं है बल्कि अगर यह सोचकर माना जाए कि बुद्धि का देवता बुध है अर्थात बौद्धिकता का प्रतीक बुध ग्रह है तुम मुझे कोई आपत्ति नहीं पर वह देवता है कुछ अचानक चमत्कार कर देगा स्वीकार्य नहीं है अव्वल तो अंतरिक्ष का एक ग्रह है दूसरा बौद्धिकता का प्रतीक है और तीसरा वह कोई चमत्कार नहीं करने वाला आपकी हो अचानक अतुलित ज्ञान देने वाला भी नहीं है बल्कि आपकी अपने अध्ययन चिंतन योग्य मनन से वह सब कुछ हासिल हो जाएगा ज्ञान हासिल करने का कोई शॉर्टकट भी नहीं है मित्रों । 
और जिनको तुम देवी देवता मानते हो न वे रहस्यमय कभी नहीं थे और न ही रहस्यमय होंगे । वे तुम्हारे लिए अगर रहस्य वाली बातें श्रेयकर हैं तो सुनो .... एकबार मेरा साक्षात्कार वरुण देवता से हुआ सौहार्द पूर्ण शिष्टाचार के आदान प्रदान के बाद वे बोले - भाई ये मूर्ख मेरी पूजा करने आते हैं कि मुझ पर कहर ढाने ?
मैंने पूछा यानि 
वे बोले - तुम्हारे शहर का एक यायावर मेरी परिक्रमा करते वक्त मेरे आसपास के कचरे साफ कर दिया करता था । और ये नामाकूल मेरी राह में गंदगी डालते हैं । 
वरुण देव की बात से एग्री हूँ पर क्या कहूँ न अमृतलाल वेगड़ जी आब मौज़ूद हैं वर्ना साक्ष्य दिला देता । उनकी किताबें पढ़ लो सब सामने आ जाएगा । 
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अरस्तु डेमोक्रेटिक सिस्टम पर स्पष्ट रूप से बताते थे की अगर किसी जहाज में कप्तान को सलाह देना हो तो सलाह विशेषज्ञ से ली जावे न कि मूर्खों से वोटिंग कराई जावे तब वहां हर बात वोटिंग से तय होती थी । 
अगर ऐसा होता तो 500 के 500 जूरी मेंबर वोटिंग सुकरात के फेवर में करती सुकरात की जीवन को 220 वोट मिले और मृत्यु के फैसले को 280 लोगों ने स्वीकृति दी थी । उन लोगों से रिश्वत जरूर खाई थी जो चाहते थे कि सुकरात का अंत हो जाए सुकरात जिद्दी थे उनको मालूम था कि एथेनिका के एथेंस उनको अद्भुत प्रेम है वे यूनान और एथेंस कि लोगों से बेहद निस्वार्थ प्यार करते थे और करते भी क्यों ना एथेंस में जन्मा व्यक्ति एथेंस में ही मरना चाहेगा जैसे हम आप अपने शहर को गांव को प्यार करते हैं और उस हद तक कि इसी शहर से हम अनंत यात्रा पर निकले देश निकाली से बेहतर जहर वाली सजा को कबूल किया ।
ईशा के चार पांच सौ साल पहले की ही बात है ना और अब अभी वही स्थिति है कई सुकरातों को जहर पिलाया जाता है दफ्तरों में, मीडिया ट्रायल के रूप में, कभी-कभी तो अखबारों में, भी समाज में यानी हर जगह है लोगों को कितना नेगेटिव पोट्रेट करते हैं लोग और इसमें कितना मजा आता है इसका अंदाज़ा लगाओ । 
शेर का शिकार करना किसे पसंद नहीं दुर्भाग्य है कि शेर का शिकार शेर या शिकारी नहीं कर रहे गीदड़ करने लगे हैं आजकल...!
एक बात कहूं यहां #मैं शब्द का इस्तेमाल मैंने इस पोस्ट के प्राक्कथन में भी किया है और अंत में भी कर दिया इसका अर्थ यह ना लगाना की मैं स्वयं के बारे में कुछ लिख रहा हूं साहित्य सबके लिए लिखा जाता है ध्यान रहे मैं वही करता हूं

7.8.19

इंतज़ार था जिस पल का उस पल को जी कर अमर हो गई

आखिरी सांस तक इंतजार था जा सांस इंतजार कर रही थी जिस पल का उस पल को जी कर अमर हो गई राष्ट्र प्रेम को अभिव्यक्त करने वाली सुषमा स्वराज जी को शत शत नमन उनका आखिरी ट्वीट पढ़ते-पढ़ते निगाह जब टीवी
पर गई विश्वास ना हो सका एक आकर्षक आध्यात्मिक व्यक्तित्व की धनी सुषमा जी को राष्ट्र की महान वक्ता थीं इंदिरा जी अटल जी जैसे वक्ताओं की सूची में शामिल भारत की  चिंतक विचारक श्रीमती सुषमा स्वराज मेरी मातुश्री स्वर्गीय प्रमिला देवी को बेहद पसंद थी वे कहती थी कि अगर विश्व में महान महिलाओं का नाम शामिल किया जाए तो उसमें इंदिरा जी के साथ साथ मैं श्रीमती सुषमा स्वराज जी को महान मानती हूं मेरी मां को भी बहुत रुचि थी महिलाओं की एंपावरमेंट की आइकॉनस को रेखांकित किया करती थी सरोजनी नायडू, सुभद्रा जी, रानी दुर्गावती, लता जी  सिरिमाओ भंडारनायके मार्गरेट थैचर सुषमा स्वराज जी और इंदिरा जी  मेरी स्वर्गीय मां की पसंदीदा एंपावर्ड विमेन आईकॉन थीं ।
      आदर्श तो आदर्श होता है वह किसी पार्टी किसी संप्रदाय किसी दल किसी रंग किसी भाषा का भी हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए । क्योंकि मुझ पर मेरे बच्चों पर भी मेरी मातुश्री का गहरा प्रभाव इसलिए  मुझे  स्वर्गीय  श्रीमती सुषमा जी के निधन व्यक्तिगत सी क्षति महसूस हो रही है । आज मैं मानता हूं कि भारत ऐसी विदुषी महिलाओं को उनका स्थान अवश्य देगा । सुषमा जी का वह भाषण जो यूएन में उन्होंने दिया था और पाकिस्तान को बेनकाब किया था उस समय सुषमा जी एक वीरांगना की तरह नजर आ रही थी समकालीन महिलाओं में वह सारी बातें विकसित होती हैं उनके एंपावरमेंट से सुषमा जी उम्र भर सीखतीं रहीं । दक्षिण भारत में जब वे प्रत्याशी के रूप में गई तो उन्होंने वहां की भाषा सीख ली थी । हमारे दौर की नायिकाओं में सुषमा जी को बड़े सम्मान के साथ हर विचारधारा दल जाति से सम्मान मिलेगा यह तो तय है । जो लोग विदेश में किसी भी समस्या में होते थे सुषमा जी का हस्तक्षेप होते ही वे सुरक्षित हो जाते थे महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता उनकी महानता को और अधिक प्रभावी बनाती हैं । मित्रों उनके जीवन से कम से कम मैं तो यह सबक ले सका हूं की आप आईडियोलॉजी से कुछ भी हो लेकिन एक बेहतर इंसान होना आपके जाने के बाद भी आप को अमरता प्रदान कर देता है । सुषमा जी जात पात से ऊपर के मुस्लिम बेटी ने भी जब पाकिस्तान से ट्वीट किया था तो उसे बचाने सुषमा जी ने जो किया वह किसे याद नहीं ओम शांति शांति शत शत नमन इस युग की महान महिला को मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि आज मुझे माताजी का वह कथन भी याद आ रहा है कुछ भी बनो कितने भी बड़े बन जाओ मन से पवित्र रहना सबके प्रति समभाव रखना चाहे तुम्हें कितना भी कष्ट क्यों ना हो उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि शत शत नमन

27.7.19

तालीम और इंसानियत के पैरोकार थे डा. कलाम... ज़हीर अंसारी

कलाकार : अविनाश कश्यप

आज़ाद हिंदुस्तान की तवारीख में अब तक सिर्फ़ एपीजे अब्दुल कलाम ऐसे मुस्लिम हुए हैं जिनका पूरा हिंदुस्तान एहतेराम करता था और करता है। जब तक वो इस दुनिया-ए-फ़ानी में थे, उनको पूरा मुल्क अपनी आँखों का सितारा बनाए हुए था और उनके इस जहां से रुख़्सत हो जाने के बाद पूरी शिद्दत से याद करता है और बड़े अदब से उनका नाम लेता है।

आख़िर उनमें ऐसा क्या था जिसकी वजह से उन्हें इतना आला मुक़ाम मिला। पद्म भूषण फिर पद्म विभूषण और फिर भारत रत्न से नवाज़ा गया। भारत जैसे विशाल देश के राष्ट्रपति बने। यह सब एक दिव्य स्वप्न सा लगता है, मगर कलाम साहब ने अपनी और सिर्फ़ अपनी सादगी, इंसानियत, दीनदार किरदार, वैज्ञानिक सोच और राष्ट्रप्रेम से वशीभूत भाव से इस दिव्य स्वप्न को साकार कर दिखाया।

मिसाइल मैन के नाम से उनके बारे बहुत कुछ लिखा जा चुका है। बचपन से लेकर आख़री सफ़र तक मज़मून सबके सामने खुली किताब जैसा है। लेकिन उन्होंने जिस तरह की दीनदार ज़िन्दगी जी थी वह उनको महान बनाती है। बेशक वे मुस्लिम थे लेकिन उन मुस्लिमों की तरह नहीं जो सिर्फ़ अपनी क़ौम, अपने मज़हब और अपने दीन तक महदूद (सीमित) रहते हैं। कलाम साहब ने न सिर्फ़ अपनी सरज़मीं की हिफ़ाज़त के लिए मिसाइलें तैयार की बल्कि दुनिया में मुल्क का नाम रोशन हो इसके लिए उन्नत तकनीक पर काम किया और प्रेरणा दी।

जहाँ तक उनके बारे में मेरा अपना नज़रिया है वो दिखावटी दीनदारी से दूर थे। रोज़े-नमाज़ के पाबंद थे। बचपन से ही नमाज़ पढ़ा करते थे। पक्के मुस्लिम होने के बावजूद उन्होंने कभी भी अपने धर्म की बड़ाई या दूसरे धर्म की निंदा नहीं की। वो पूरी ज़िंदगी इंसानियत और मुल्क परस्ती की पैरोकारी करते रहे।

उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद स.अ.व. की उस सुन्नत का पूरे जीवन पालन किया। कलाम साहब ने भी अपने पास कुछ भी संचय करके न रखा। ज़रूरतमंदों की मदद में ख़र्च करते रहे। तालीम की बहुत बड़े हिमायती रहे। तालीम देते-देते ही वे इस नश्वर संसार से बिदा हो गए। 27 जुलाई 2015 को शिलांग के आईआईएम में वो बच्चों को तालीम ही दे रहे थे जब उन्हें हार्ट अटैक आया। अब यही काम उनके विचार, उनकी लिखी किताबें और उनका कृतित्व कर रहा है

भारत के ऐसे महान सपूत डा एपीजे अब्दुल कलाम को आज पूरा हिंदुस्तान बड़ी इज़्ज़त से याद कर रहा है। ऐसी आलीशान शख़्सियत को हज़ार बार सलाम...

O
जय हिन्द
ज़हीर अंसारी

खाकी वर्दी के पीछे धड़कता एस पी का नाज़ुक दिल


( जबलपुर के एसपी श्री अमित सिंह बेहद सुकोमल ह्रदय के धनी है इनका ह्रदय एक पुलिस अफसर का नहीं हो कर एक सोशल वर्कर यह दिल की तरह धड़कता है एक बार जब यह बाल भवन आए थे तब एक गरीब बच्चे को अपने गले लगाया उसे अपना कैप पहनाया और प्यार भी किया ऐसा नहीं कि ऐसा गिनी तौर पर ही है करते हैं वास्तव में यह किसी को दुखी नहीं देखना चाहते पुलिस ऑफिसर्स के लिए आपका नजरिया कैसा है मैं नहीं जानता पर इतना अवश्य जानता हूं कि अगर आप कितना भी नेगेटिव सोचेंगे इनके लिए पर एक बार एसपी जबलपुर अमित सिंह के साथ बैठेंगे या उनके बारे में जानेंगे तो आपका नजरिया एकदम बदल जाएगा यही ब्रह्म सत्य है)

पिता के हत्या के अपराध में निरूद्ध होने पर 6 वर्षिय प्रीति को पुलिस अधीक्षक जबलपुर ने पहल कर रखवाया राजकुमारी बाई बाल निकेतन में, पढाई की ली जिम्मेवारी
दिनॉक 19-7-19 को विजय नगर स्थित इंडियन कॉफी हाउस के पीछे रहने वाले अज्जू उर्फ रमेश वंशकार ने अपनी डेढ वर्षिय बेटी कु. रूपाली की पत्थर पर पटक कर हत्या कर दी थी, उक्त हत्या के प्रकरण में अज्जू उर्फ रमेश वंशकार को गिरफ्तार कर केन्द्रीय जेल जबलपुर मे निरूद्ध कराया गया है।अज्ज्ू उर्फ रमेश वंशकार की पत्नि किरण वंशकार एल्गिन अस्पताल मे उपचारार्थ भर्ती थी,  आरोपी अज्जू उर्फ रमेश वंशकार के एल्गिन अस्पताल मे होने की सूचना पर पुलिस अधीक्षक जबलपुर श्री अमित सिहं (भा.पु.से.) तत्काल अस्पताल पहुंचे थे जहॉ पूछताछ पर 6 वर्षिय बेटी प्रीति  मुखर होकर अपने पिता के विरूद्ध बोली थी एवं पूरी घटना बतायी थी, और जिस तरह उसने पढाई करने की इच्छा जाहिर की थी, तभी से मै कशमकश मे था, प्रीति का प्रजेन्स ऑफ माईड, कॉमनसेंस  बहुत ही स्ट्रॉग था, 5-6 साल के बच्चों में जो बहुत की कम देखने को मिलता है, तभी मैने यह निर्णय लिया था कि बच्ची को यदि किसी अच्छी संस्था मे रखा जाये एवं अच्छा एज्यूकेशन दिलाया जाये, तो जीवन मे आत्मनिर्भर होगी तथा मॉ के लिये भी अच्छा रहेगा, क्योंकि परिवार में कोई बेटा नहीं है 2 छोटी बहनें है, पतासाजी पर यह भी जानकारी मिली कि प्रीति की मॉ ने अपनी मर्जी से शादी की थी, इसलिये बच्ची के मामा भी अपने साथ नहीं रखना चाहते हैं, मॉ लोगो के घर एवं बंगलों में काम करके अपना जीवकोपार्जन करती है, पुलिस अधिकारी के तौर पर हमारा भी दायित्व बनता है कि एैसे बच्चो को सही संरक्षण एवं मार्ग दर्शन दिया जाये ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें किसी के मौहताज न रहें। इन्हीं सब बातों को ध्यान मे रखते हुये पुलिस अधीक्षक जबलपुर द्वारा चाईल्ड हैल्प लाईन से सम्पर्क कर कु. प्रीति को थाना मदनमहल अन्तर्गत शास्त्री ब्रिज के पास स्थित राजकुमारी बाई बाल निकेतन की देखरेख में रखवाया गया, एवं कहा गया कि  कु. प्रीति की स्कूल की फीस, ड्रेस किताबें मेरे द्वारा प्रोवाईड की जायेंगी l

24.7.19

14_करोड़_रेड_इंडियन्स का कब्रिस्तान अमेरिका

14 करोड़ रेड इंडियन्स का कब्रिस्तान है #अमेरिका जहाँ का राजा झूठ बोलने लगा है....! अमेरिका में ऐसा क्या है कि आप भारतीय होकर उधर बसना जीना और फिर मरना चाहते हैं ?
अमेरिका डरता है भारतीय दर्शन से विवेकानंद जी जो किताबें ले गए थे उनको विश्व धर्म संसद में नीचे रख दिया था अमेरिकी आयोजकों ने । वे सोच रहे थे कि इससे सनातन संस्कृति को बौना साबित किया जा सकता है.... विवेकानंद ठहरे जीनियस बोल पड़े- अब विश्व का हर धर्म सुरक्षित है क्योंकि उसकी बुनियाद में सनातन दर्शन जो है ।

  • सुकरात ने ज़हर का प्याला पीने के पूर्व कहा था कि- "मेरी आत्मा अमर है शरीर का क्या ?" यही सुकरात के पहले का भारतीय दर्शन है । जो आत्मा को मजबूत कर देता है ।

मेरा हाल में एक चिंतन गोष्टी में जाना हुआ जीवन के सरलीकरण सुखद स्वरूप पर चिंतक ने बात रखी । तरीका रोचक था पर बात वही थी जो बूढ़े लोग जैसे नाना नानी आजी आदि ने कही थी जिस देश में सिकंदर  सीमाओं केेे अंदर ही ना सका हो जिसके दिमाग में हर एक भारतीय के दार्शनिक  और  आध्यात्मिक  होने की छवि आते ही बन गई हो अरस्तु का वह शिष्य भारत को गुरु मानने लगा हो उस भारत को अमेरिकी लोग या अमेरिकी चिंतन कैसेे हताश कर सकता है ।
  हमें ध्यान रखना चाहिए कि एक ओशो से डर गया था अमेरिकी सिस्टम । बेहद ज़रूरी है अमेरिका जाओ पर अमेरिका को भारत बना दो कठिन नहीं यह कार्य । पर वहां जीने या बसने के लिए नहीं बल्कि 14 करोड़ रेड इंडियन की आत्मा की शान्ति के लिए जाओ ।
ज्ञान और बुद्धि से खून नहीं गिरता बहता सड़कों पर । वहां बौद्धिकता और ज्ञान का अभाव है स्थान रिक्त हैं उन पर हक़ जमाओ ज्ञान और बुद्धि के बूते ..... उस देश को जीत लो ओशो सफल होते तो तय था कि आज विश्व की दशा कुछ अलग होती । ये अलग बात है कि ओशो सत्ता के लिए आसक्त न थे पर वे बदलते ज़रूर अमेरिका की जनता को ।

10.7.19

गीत गीले हुए अबके बरसात में,


गीत गीले हुए अबके बरसात में,
हाँ! ठिठुरते रहे जाड़ों की रात में।।
गीत गीले हुए, ये जो कुंठा भरे।
और ठिठुरे वही, जो रहे सिरफिरे।
उसका दावा बिखर के, सेमल बना,
कोई आगे फरेबी न दावा करे।।
राई के भाव बदले हैं इक रात में।।
कुछ सुदृढ़, कुछ प्रखर, कुछ मुखर बानियाँ।
थी, सदा ही चलाती रहीं घानियाँ।
कुछ मठों से मठा सींचते वृक्षों में-,
कुछ बजाते रहे हैं सदा तालियाँ।।
बिंब देखें सदी का मेरी बात में।।
सूत कट न सके भोंथरी धार से,
सो गले गस दिए फूलों के हार से।
बोलिए किससे जाके शिकायत करें-
घूस लेने लगे फूल कचनार के।
आँख सावन-सी झरती इसी बात में।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

30.6.19

भारतीय ज्ञान का खजाना (भाग 01) : प्रशांत पोळ


पंचमहाभूतों के मंदिरों का रहस्य..!
-  प्रशांत पोळ

इस लेखमाला, अर्थात ‘भारतीय ज्ञान का खजाना’ का उद्देश्य है कि हमारे प्राचीनतम देश में छिपे हुए अनेक अदभुत एवं ज्ञानपूर्ण बातों को जनता के सामने लाना. इस पुस्तक का प्रत्येक लेख प्रिंट मीडिया एवं सोशल मीडिया के माध्यम से अक्षरशः लाखों लोगों तक पहुँचता है. संभवतः इसीलिए पत्र, फोन एवं सोशल मीडिया के माध्यम से प्रतिक्रियाओं की मानो वर्षा ही हो रही है.

परन्तु ऐसी अनेक बातें हैं, जो हमें पता चलने पर हम भौचक्के रह जाते हैं, सुन्न हो जाते हैं. आज जो बातें हमें असंभव की श्रेणी में लगती हैं, वह आज से ढाई-तीन हजार वर्षों पहले भारतीयों ने कैसे निर्माण की होंगी, कैसे बनाई होंगी... यह एक प्रश्नचिन्ह हमारे सामने निरंतर बड़ा होता जाता है.

हिन्दू दर्शन में पंचमहाभूतों का विशेष महत्त्व है. पश्चिमी जगत ने भी इस संकल्पना को मान्य किया है. डेन ब्राउन जैसे प्रसिद्ध लेखक ने भी इस संकल्पना का उल्लेख किया है और इस विषय पर ‘इन्फर्नो’ जैसा उपन्यास भी लिखा. यह पंचमहाभूत हैं, जल, वायु, आकाश, पृथ्वी एवं अग्नि. ऐसी मान्यता है कि हम सभी का जीवनचक्र इन पाँचों महाभूतों के आधार पर ही आकार ग्रहण करता है.

यह बात कितने लोगों की जानकारी में है कि हमारे देश में इन पंचमहाभूतों के भव्य एवं विशिष्टताओं से भरे मंदिर हैं? बहुत ही कम लोगों को इसकी जानकारी है. जो लोग भगवान शंकर के उपासक हैं, उन लोगों को इन मंदिरों की जानकारी होने की थोड़ी बहुत संभावना है. क्योंकि इन पंचमहाभूतों के मंदिर अर्थात शिव मंदिर, भगवान शंकर के मंदिर है. लेकिन इसमें कोई बड़ी विशेषता अथवा रहस्य तो नहीं है... फिर इनकी विशेषता किस बात में है??

पंचमहाभूतों के इन पाँच मंदिरों की विशेषता अथवा रहस्य यह है कि इनमें से तीन मंदिर, जो एक-दूसरे से कई सौ किमी दूरी पर स्थित हैं, यह तीनों एक ही रेखा पर स्थित हैं. जी हाँ..! बिलकुल एक सीधी रेखा में हैं... यह तीन मंदिर हैं –

• श्री कालहस्ती मंदिर
• श्री एकम्बरेश्वर मंदिर, कांचीपुरम
• श्री तिलई नटराज मंदिर, त्रिचनापल्ली.

पृथ्वी पर किसी स्थान को चिन्हित या तय करने के लिए हम जिन कॉर्डिनेट्स का उपयोग करते हैं, एवं जिसे हम अक्षांश व रेखांश कहते हैं. इनमें से अक्षांश (Latitude) अर्थात पृथ्वी के नक़्शे पर खींची गई (काल्पनिक) आड़ी रेखाएं. जैसे कि विषुवत, कर्क रेखा इत्यादि... जबकि रेखांश इसी नक़्शे पर खींची गई लम्बवत रेखाएं. इन तीनों मंदिरों के अक्षांश और रेखांश इस प्रकार से हैं –

क्र.    मंदिर                           अक्षांश    रेखांश     पंचमहाभूत तत्त्व
१.  श्री कालहस्ती मंदिर    13.76 N    79.41 E वायु
२.  श्री एकम्बरेश्वर मन्दिर    12.50 N    79.41 E पृथ्वी
३.  श्री तिलई नटराज मन्दिर   11.23 N    79.41 E आकाश

यह तीनों मंदिर एक ही रेखांश बिंदु 79.41E पर स्थित हैं, अर्थात एक ही सीधी रेखा पर हैं. कालहस्ती और एकाम्बरेश्वर मंदिर के बीच लगभग सवा सौ किमी की दूरी है और एकाम्बरेश्वर तथा नटराज मंदिर के बीच लगभग पौने दो सौ किमी का अंतर है. यह तीनों मंदिर कब निर्माण किए गए, यह बताना कठिन है. इस क्षेत्र में जिन्होंने शासन किया है वे पल्लव, चोल इत्यादि राजाओं द्वारा इन मंदिरों का नवीनीकरण किए जाने का उल्लेख अवश्य मिलता है. परन्तु लगभग तीन - साढ़े तीन हजार वर्ष पुराने तो हैं ही, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है.

अब इसमें वास्तविक आश्चर्य यही है कि लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व आपस में इतनी दूरी पर स्थित ये तीनों मंदिर एक ही सीधी रेखा यानी रेखांश पर कैसे निर्मित किए गए होंगे?

इसका अर्थ यह है कि उस कालखंड में भी भारत में नक्शाशास्त्र इतना उन्नत था कि, उन्हें अक्षांश-रेखांश इत्यादि का ठोस ज्ञान था?? परन्तु यदि किसी को अक्षांश-रेखांश का परिपूर्ण ज्ञान हो, तब भी एक सीधी रेखा में मंदिर निर्माण करने के लिए नक्शा शास्त्र के अलावा “कंटूर मैप” का ज्ञान भी आवश्यक है. तो इन मंदिरों के निर्माण में कौन सी प्रक्रिया, सूत्र एवं समीकरण उपयोग किए गए, यह अब समय की गर्त में खो गया है…

सब कुछ अविश्वसनीय सा प्रतीत होता है. और आश्चर्य यहीं पर समाप्त नहीं होता है. बल्कि जब अन्य दो मंदिरों को इस सीधी रेखा में स्थित मंदिरों से जोड़ा जाता है, तब उसमें एक विशिष्ट कोण निर्माण होता है.

इसका दूसरा अर्थ भी है. उस कालखंड में हमारे वास्तुविदों के ज्ञान की गहराई कितनी होगी यह दिखाई देता हैं. भूमि के कुछ हजार किमी में फैले हुए भूभाग पर ये वास्तुविद, पंचमहाभूतों के पाँच शैव मंदिरों का बड़ा सा बड़ा सा आकार बनाते हैं और उस रचना के माध्यम से हमें कोई विशेष संकेत देने का प्रयास करते हैं. यह हमारा ही दुर्भाग्य है कि हम उस प्राचीन ज्ञान की कूट भाषा को समझ नहीं पाते हैं.

इन पंचमहाभूतों के मंदिरों में से एक मंदिर आंध्रप्रदेश में स्थित है, जबकि चार मंदिर तमिलनाडु में निर्मित हैं. इनमें से वायु तत्त्व का प्रतिनिधित्व करने वाला मंदिर है कालहस्ती मंदिर. यह आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में, तिरुपति से लगभग ३५ किमी दूरी पर स्थित है. स्वर्णमुखी नामक छोटी सी नदी के किनारे पर यह मंदिर स्थापित किया गया है. हजारों वर्षों से इस मंदिर को ‘दक्षिण का कैलास’ अथवा ‘दक्षिण काशी’ कहा जाता है.

भले ही यह मंदिर अत्यंत प्राचीन हो तब भी मंदिर का अंदरूनी गर्भगृह वाला भाग पाँचवीं शताब्दी में, जबकि बाहरी गोपुर वाला भाग ग्यारहवीं शताब्दी में बनाया गया है. पल्लव, चोल और उसके पश्चात विजयनगर साम्राज्य के राजाओं ने इस मंदिर की मरम्मत और निर्माण किए जाने के उल्लेख मिलते है. इस मंदिर में आदि शंकराचार्य भी आ चुके हैं, ऐसा साहित्य में उल्लेख है. स्वयं शंकराचार्य ने ‘शिवानंद लहरी’ में इस मंदिर एवं यहाँ के परम भक्त कणप्पा का उल्लेख किया है.

यह मंदिर पंचमहाभूतों में से ‘वायु’ का प्रतिनिधित्व करता है. इस बात के भी आश्चर्यजनक संदर्भ हमें प्राप्त हो जाते हैं. जैसे कि इस मंदिर में शिवलिंग सफ़ेद रंग का है एवं इसे स्वयंभू शिवलिंग माना जाता है. इस शिवलिंग में वायुतत्व होने के कारण इसे कभी भी स्पर्श नहीं किया जाता है. मंदिर के मुख्य पुजारी भी इस शिवलिंग को स्पर्श नहीं करते हैं. अभिषेक एवं पूजा करने के लिए एक ‘उत्सव शिवलिंग’ पास में स्थापित किया गया है. विशेष बात यह है कि इस मंदिर के गर्भगृह में एक दीपक अखंड रूप से जलता रहता है एवं उस गर्भगृह में कहीं से भी हवा आने का साधन नहीं होने के बावजूद वह दीपक सदैव फड़फड़ाते रहता है. यहाँ तक कि पुजारियों द्वारा मंदिर का मुख्य द्वारा बन्द करने के बाद भी इस दीपक की ज्योति फडफडाती ही रहती है...! आज तक किसी भी वैज्ञानिक को इस का कारण समझ नहीं आया है. परन्तु स्थानीय लोगों का यही कहना है कि चूँकि शिवलिंग में वायु तत्त्व है, इसी कारण गर्भगृह के उस दीपक की ज्योति सदैव फडकती रहती है.

इसी मंदिर से लगभग १२५ किमी दूरी पर दक्षिण में एकदम सीधी रेखांश बिंदु पर स्थित दूसरा मंदिर है ‘एकाम्बरेश्वर मंदिर’. यह तमिलनाडु के प्रसिद्ध कांचीपुरम स्थित, पृथ्वी तत्त्व का प्रतिनिधित्व करने वाला मंदिर है.

पृथ्वी तत्त्व होने के कारण ही इस मंदिर का शिवलिंग मिट्टी का बना हुआ है. ऐसा माना जाता है कि भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए आम के वृक्ष के नीचे माता पार्वती ने मिट्टी के शिवलिंग की तप-आराधना की थी, यही वह शिवलिंग है. इसीलिए इसे एकाम्बरेश्वर मंदिर कहा जाता है. तमिल भाषा में एकाम्बरेश्वर’ अर्थात आम के वृक्ष वाले देवता. आज भी मंदिर के परिसर में एक बहुत प्राचीन आम का वृक्ष लगा हुआ है. कार्बन डेटिंग जाँच के अनुसार इस वृक्ष की आयु भी लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष पुरानी ही निकली है. इस आम के वृक्ष को चार वेदों का प्रतीक समझा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस एक ही पेड से चार भिन्न-भिन्न स्वादों के आम निकलते हैं.

यह मंदिर ‘कांचीपुरम’ नामक मंदिरों की नगरी में है. कांचीपुरम शहर ‘कांजीवरम’ साड़ियों के लिए विश्वप्रसिद्ध है. इस मंदिर में तमिल, तेलुगु, अंग्रेजी एवं हिन्दी में एक फलक (बोर्ड) लगा हुआ है कि यह मंदिर ३५०० वर्ष प्राचीन है. हालाँकि ठोस रूप से यह कहना कठिन है कि वास्तव में मंदिर कितना पुराना है. आगे चलकर पाँचवीं शताब्दी में पल्लव, चोल एवं विजयनगर साम्राज्य के राजाओं ने इस मंदिर की मरम्मत एवं देखरेख किए जाने के उल्लेख ग्रंथों में मिलते हैं.

इन दोनों मंदिरों की ही सीधी रेखा में दक्षिण दिशा में, एकाम्बरेश्वर मंदिर से लगभग पौने दो सौ किमी दूरी पर स्थित है पंचमहाभूतों का तीसरा मंदिर अर्थात तिलई नटराज मंदिर. आकाश तत्त्व का प्रतिनिधित्व करने वाला यह मंदिर तमिलनाडु के चिदम्बरम शहर में स्थित है.

ऐसा माना जाता है कि स्वयं पतंजलि ऋषि ने इस मंदिर की स्थापना की थी. इसलिए ठीक-ठीक कहना कठिन है कि इस मंदिर का निर्माण कब हुआ. परन्तु इसकी भी देखभाल एवं मरम्मत पल्लव, चोल एवं विजयनगर साम्राज्य के राजाओं द्वारा पाँचवी शताब्दी में की गई, इसका उल्लेख ग्रंथों में मिलता है. इस मंदिर के अंदर ‘भरतनाट्यम’ नृत्य की विभिन्न १०८ मुद्राओं को पत्थर के स्तंभों पर उकेरा गया है. इसका अर्थ यही है कि भरतनाट्यम नामक नृत्य शास्त्र भारत में कुछ हजार वर्षों से पहले से ही काफी विकसित था. मंदिर में पत्थर के अनेक स्तंभों पर भगवान शंकर की अनेक मुद्राएं भले ही खुदी हुई हों, परन्तु नटराज की मूर्ति एक भी नहीं बनाई गई है... यह मूर्ति केवल गर्भगृह में ही विराजमान है.

इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान शंकर, नटराज के रूप में हैं, और साथ में शिवकामी अर्थात पार्वती की मूर्ती भी है. अलबत्ता नटराज रूपी शिव प्रतिमा के दाँयी तरफ थोडा सा रिक्त स्थान है, जिसे ‘चिदंबरा रहस्यम’ कहा जाता है. इस खाली स्थान को स्वर्ण की गिन्नियों वाले हार से सजाया जाता है. यहाँ की मान्यता के अनुसार यह रिक्त स्थान, खाली नहीं है, बल्कि वह आकारहीन आकाश तत्त्व है.

पूजा के समय को छोड़कर बाकी के पूरे समय पर यह रिक्त स्थान लाल परदे से आच्छादित रहता है. पूजा करते समय लाल परदा सरका कर उस आकारहीन शिव तत्त्व अर्थात आकाश तत्त्व की भी पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि यहाँ पर शिव एवं कालीमाता के रूप में पार्वती, दोनों ने नृत्य किया था.

चिदम्बरम से लगभग चालीस किमी दूरी पर कावेरी नदी समुद्र में जाकर मिलती है. इस क्षेत्र में आठवीं / नौवीं शताब्दी में चोल राजाओं ने जहाज़ों के लिए बंदरगाह का निर्माण किया था. इस स्थान का नाम है पुम्पुहार. एक समय पर यह पूर्वी तट का बहुत बड़ा बंदरगाह था, परन्तु आजकल अब वह एक छोटा सा गाँव मात्र रह गया है.

इस पुम्पुहार में कुछ वर्ष पहले पुरातत्व विभाग ने उत्खनन किया था, और तब समझिए कि उन्हें अक्षरशः विशाल खजाना ही मिला था. पुराविदों को यहाँ लगभग ढाई हजार वर्ष प्राचीन एक अत्यंत समृद्ध एवं विकसित शहर का पता चला. इस विशाल नगर का नियोजन, इस नगर के मार्ग, घर, नालियाँ, जल निकासी की व्यवस्था देखकर हम आज भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं.

कुल मिलाकर यह कहना उचित ही होगा कि आज से लगभग तीन हजार वर्ष पहले इस परिसर में एक अत्यंत समृद्ध एवं विकसित संस्कृति मौजूद थी. जिस संस्कृति द्वारा पंचमहाभूतों के पाँचों मंदिरों हेतु एक भव्य प्रांगण, इस विशाल स्थान पर निर्माण किया था.

इन तीनों ही मंदिरों द्वारा एक ही रेखांश पर तैयार की गई सीधी रेखा से एक विशेष कोण बनाते हुए इन पंचमहाभूतों में से चौथा मंदिर है - जम्बुकेश्वर मंदिर.

त्रिचनापल्ली के पास, तिरुवनैकवल गाँव में यह मंदिर स्थित है. पंच महाभूतों में से एक अर्थात ‘जल’ का प्रतिनिधित्व करने वाला, कावेरी नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ पर शिवलिंग के नीचे पानी का एक छोटा सा झरना है, जिस कारण यह शिवलिंग निरंतर पानी में डूबा हुआ रहता है.

ब्रिटिश काल में फर्ग्युसन नामक पुरातत्वविद ने इस मंदिर के बारे में काफी शोधकार्य किया, जिसे अनेक लोगों ने ठोस प्रमाण माना. उसके मतानुसार चोल वंश के प्रारंभिक काल में इस मंदिर का निर्माण हुआ. परन्तु उसका यह निरीक्षण गलत था, यह बात अब सामने आ रही है. क्योंकि मंदिर में प्राप्त एक शिलालेख के आधार पर यह अब सिद्ध किया जा चुका है कि ईसा पूर्व कुछ सौ वर्ष पहले ही यह मंदिर अस्तित्त्व में था.

उस सीधी रेखांश पंक्ति के तीन मंदिरों के साथ विशिष्ट कोण पर बनाए गए पंच महाभूतों  के मंदिरों में से अंतिम मंदिर है – अरुणाचलेश्वर मंदिर. तमिलनाडु में ही तिरुअन्नामलाई में यह मंदिर स्थित है. पंचमहाभूतों में से अग्नि तत्त्व का प्रतिनिधित्व करने वाला यह मंदिर भारत के बड़े मंदिरों में से एक है. यह मंदिर एक पहाड़ी पर एक विशाल परिसर में निर्मित किया गया है. सात सौ फुट से अधिक ऊँचाई वाली दीवारों के अंदर निर्माण किए गए इस मंदिर के प्रमुख गोपुर की ऊँचाई १४ मंजिली इमारत के बराबर है.

यह पाँचों शिव मंदिर एवं जमीन पर उनकी संरचना अक्षरशः चमत्कृत करने वाली है. इन पाँच में से तीन मंदिर एक सीधी रेखा में होना कोई साधारण संयोग नहीं हो सकता. तमिलनाडु के विशाल भूभाग पर इन मंदिरों का ऐसा सटीक निर्माण एक अदभुत घटना ही है. इन मंदिरों की रचना के माध्यम से निर्मित होने वाली कूट भाषा यदि हम आधुनिक काल में समझ पाते तो प्राचीन काल के अनेक रहस्य हमारे समक्ष खुल सकते थे...!!
- प्रशांत पोळ

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