4.9.19

अदभुत तो निश्चित ही थे नेताजी


अदभुत तो निश्चित ही थे नेताजी

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         कल ही मुझे मेरी सहकर्मी Vijaya Iyer Laxmi  ने बताया कि  उनकी माता श्रीमती मीनाक्षी अय्यर #आईएनए में नर्सिंग का काम करतीं थीं । जबकि पिता श्री श्रीनिवासन अय्यर रेडियो कम्यूनिकेशन का काम देखते थे । एक बार आई एन ए के जहाज में सांप घुस गया । अफरातफरी के माहौल में श्रीमती मीनाक्षी अय्यर जिनको लोग अलमेलू के नाम से जानते थे ....का पैर एक खीले (कीले ) पर पड़ा जो उर्ध्वगामी था ... कीला आरपार निकल आया था ।
आई एन ए के सुप्रीम कमांडर जो कभी भी सर से कैप नहीं हटाते ने कैप हटाया और अलमेलू के पैरों के पास झुक के बैठ गए ढांढस बंधाते रहे ।
जब नेताजी की बात छिड़ ही गई तो आप सबसे कुछ बात कर लेना ज़रूरी है .....
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सुभाष चंद्र बोस क्यों नहीं ...?
यह सवाल सुबह पूछा था ....
पर किसी को नहीं मालूम इसका जवाब क्या होना चाहिए... !
     कौन देगा इसका जवाब वही ना जो सुभाष बाबू के बारे में जरा सा भी पढ़ा हो ।  औसतन हम क्या पढ़ते हैं हमें खुद ही नहीं मालूम हम किस तरह पढ़ते हैं यह भी हम नहीं जानते तो फिर आप और मैं यानि हम पढ़ रहे हैं ?
  त्रिपुरी सम्मेलन में तो वे आये भी थे न जबलपुर ....1939 में है न...!
याद सभी को है है न...!
    कलकत्ते से छन के आई खबरों से बहुत वाद में सबने जाना कि  दूसरे विश्व युद्ध के बाद अगर ब्रिटिश गवर्नमेंट को सबसे ज्यादा खतरा था तो वह था सुभाष चंद्र बोस और उनकी आर्मी से ।
पता नहीं क्या हुआ था आयातित विचारधारा के ब्रांडेड इतिहासकारों को कि उनसे यह बिंदु लिखा न गया था उफ़्फ़ बेगैरत लोग ।
भारत की पहली किन्तु निर्वासित सरकार  को तो 11 देशों मान्यता पहले ही दे रखी थी । सुभाष बाबू संघर्ष का एक प्रतीक थे । अपने वतन की आजादी के लिए सर पर कफ़न बांधे ब्रिटिश सरकार का हाल बिगाड़ने वाले सुभाष बाबू का बाद में रहस्यमय नेताजी सुभाष चंद्र बोस  हो जाना और फिर खो जाना कहीं तय तो न था...!
           चिंता और चिंतन दोनों का विषय है । सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानंद के पथ पर चलने वाले व्यक्ति थे । आजाद भारत आजादी के पहले ही अंग्रेजों की अथवा आस्तीन के सांपों की सियासी चालों का शिकार हो चुका था । बर्मा श्रीलंका मुक्त हो ही चुके थे ब्रिटेन ने उन्हें पहले ही भारत का हिस्सा नहीं माना ऐसा नहीं था कि उन्हें कोई यह बताता के सांस्कृतिक तौर पर ब्रह्म देश  श्रीलंका भारत का हिस्सा थे । परंतु चालाक ब्रिटिश जानते थे की एशिया की सबसे बड़ी ताकत जिसका 25% योगदान है वैश्विक जीडीपी में को कमजोर किए बिना यूरोप को मजबूत नहीं किया जा सकता । अंग्रेजों ने उसी फलसफे   पर काम किया और भारत को टुकड़े-टुकड़े हिस्सों में बांटा ताकि वह भारत को अपनी जेब में रखी हुई जेबी घड़ी की तरह घड़ी घड़ी   इस्तेमाल कर सकें ।

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