कश्मीर से हमारे सांस्कृतिक संबंधों को एक सुनिश्चित स्टेटस जी के तहत मजबूत करना जरूरी है यह संभव केवल वहां के लोगों के साथ हमारे पारिवारिक संबंधों को बढ़ाना आप कहां तक सहमत हैं बताएंगे ?
शायद आपने यह नहीं सोचा होगा कि हम कश्मीर के बारे में 1990 के बाद क्या सोच रहे हैं हालिया दौर में भारत की स्थिति को समझने के लिए यूट्यूब पर मौजूद एक वीडियो को ध्यान से देखिए सुनिए उसमें साफ तौर पर लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता ने क्या कहा.. !
वास्तव में सैयद साहब ने वह हकीकत बयान कर दी जो पाकिस्तानी हुक्मरानों और फौजियों की दिल में जनरल जिया उल हक ने पैदा कर दी थी सच है कि वे भारत को घेरना चाहते थे ।
उनकी अपने मकसद हैं पर हमारी कुछ मजबूरियां थी उस दौर में जिससे इस भाषण में खुलकर समझाया गया है । एक बात तो तय है कि अगर हमारी आर्थिक स्थिति उस वक्त मजबूत होती तथा हम श्रीलंका के अंदर पनप रहे आतंक और वर्गीकरण में हस्तक्षेप और सहयोग ना करते तो शायद हम बेहतर तरीके से मुकाबला कर सकते थे टेररिज्म का जो कश्मीर में पनप चुका है हमारी राजनीतिक अस्थिरता और सांस्कृतिक एक्सचेंज कश्मीर के साथ शून्य होता चला गया यही बात इस भाषण में खुलकर कही गई है लेफ्टिनेंट जनरल अतः साहब ने मुख्तसर बयां कर दिया है कि किस तरह का एनवायरमेंट उस समय भारत के साथ था डोगरा और पंडितों के खिलाफ कश्मीर में एक वातावरण निर्मित किया गया यह सच है कि इसकी भनक जरूर भारत की शीर्ष सत्ता को लगी होगी किंतु तत समय की कमजोर व्यवस्था राजनीतिक परिस्थिति सबसे ज्यादा उत्तरदाई है कश्मीर में मुस्लिम और हिंदुओं को अलग-अलग करने के लिए ।
1989 - 1990 के बाद 30 साल बीत गए अर्थात 1990 में जन्मा बच्चा अब लगभग उनतीस तीस साल का है .... उसने क्या पढ़ा होगा या उसे क्या पढ़ाया गया होगा इस पर हमें और करना था । हम सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से कश्मीर से पूरी तरह अलग हो चुके थे और केवल और केवल कश्मीर की नई पीढ़ी को भारत के खिलाफ जो भी पढ़ाया जा रहा था उसका बेस कैंप या तो पाक ऑक्यूपाइड कश्मीर में था या फिर पाकिस्तान में । धारा 370 और 35 बी एक लाइसेंस था पाकिस्तान को कश्मीर में हस्तक्षेप करने का । कश्मीर के लोगों के साथ हमारे संबंध इस दौर में सबसे खराब रहे हैं । हां संशोधन किए देता हूं कि पिछले 30 साल से हम कश्मीर से कटे रहे हैं बावजूद इसके कि कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है इस नारे को बुलंद करते करते हमने इस नारे को साकार करने में कोई खास बेहतरीन पहल नहीं की ।
और इस पहल को करने के लिए जिम्मेदारी न केवल सरकार की थी बल्कि हम भी उतने ही जिम्मेदार हैं जो यह नहीं बता पाए कि कश्मीर में पाकिस्तान का कौन सा षड्यंत्र सफल हो रहा है ऐसा नहीं है कि हमारे देश के शीर्ष नेतृत्व को अथवा दिल्ली को यह नहीं मालूम था कि कश्मीर घाटी में क्या घट रहा है हमारा रॉ बाहर से खबर दे रहा था तो हमारा आंतरिक इंटेलिजेंट सिस्टम भी बाकायदा अपनी ड्यूटी निभा रहा था फिर भी हम सजग नहीं रहे परंतु कहते हैं ना कि हर काम का हो ना तभी संभव है जब उसके लिए सटीक समय आए । और 5 अगस्त 6 अगस्त 2019 का समय कुछ वैसा ही था जो हाथों में परोस गया एक उचित मौका । और इस मौके की तलाश भारत को 2017 से ही थी इस संयोग को भारत के लिए ऐतिहासिक कहा जाना गलत नहीं होगा ।
सुधी पाठकों आप समझदार हैं तो हम आपके सामने समझदारी वाली स्थितियां ही रखेंगे हम यह नहीं कहेंगे कि कश्मीर की लड़कियों को दुल्हन बनाएँगे या हम कश्मीर में प्लॉट खरीदेंगे यह संभल की बातें बल्कि हमें यह कहना चाहिए कि हम कश्मीर को वास्तविक रूप में सांस्कृतिक सामाजिक अनुबंधों के साथ अपने में जोड़ लेंगे...!
फिल्मों में देखकर बड़ा रश्क होता है कि की शिकारी पर हीरो बैठा मस्त मगन होकर संतूर सुन रहा है या एक जोड़ा खिलखिला ता हुआ डल झील में अपनी मोहब्बत का लुफ्त उठा रहा है । हां वह दिन लौट सकते हैं अगर हर भारतीय अनाधिकृत रूप से 370 और 35 बी का हटाना अनुचित ना माने ।
यहां राजनीतिज्ञ पर टिप्पणी किए बिना आम आदमी से अनुरोध है कि जब 370 हटी ही चुकी है 35b को भी दफना दिया गया है तब वहां के लोग बावजूद इसके कि 1990 का दर्द हमारे सीने में है हम उनके साथ अंतर्संबंध स्थापित करें सांस्कृतिक आदान प्रदान करें उनके कंबल खरीदें केसर भी मंगा लें अखरोट के तो क्या कहने वह भी मंगा सकते हैं प्रतिबंध कुछ नहीं है अब कश्मीर पहली बार आजाद है भारतीय फौज की हिफाजत नहीं है भले ही गंदी पत्रकारिता करने वाली ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन को कुछ भी महसूस हो आप उसकी रिपोर्टिंग से असमत ही रहिए यह भारत के हित में है यह आपके हित में है और यह कश्मीरियत के हित में है । यहां आयातित विचारधारा की बात भी करना चाहूंगा जो यह नहीं चाहती की भारत में शांति रहे बीबीसी को इस बात का एहसास होना चाहिए कि अगर अफगानिस्तान के नागरिक शरणार्थी के रूप में दिल्ली की गली नंबर 5 में रह रहे हैं तो वे कश्मीर की तरह ही पाकिस्तान की नापाक कोशिशों के कारण शरणार्थी बने हैं । कनाडा तथा विश्व के कुछ देशों में बसे हुए लोगों को सुनिए तो पता चलेगा कि अफगानिस्तान हमसे ज्यादा सताया हुआ मुल्क है पाकिस्तान कि आई एस आई द्वारा संचालित नकली डेमोक्रेटिक संस्था पार्लियामेंट आफ पाकिस्तान से । बलूच और सिंध का हाल कम खराब नहीं है । बुरे हालात तो चाइना के हांगकांग के भी है उधर वीगर मुस्लिम कम तनाव में नहीं है किसी ना किसी दिन छोटी आंखों वाली शरारती चाइना का भी परिणाम वैसा ही होना है मैं इस बात की भविष्यवाणी नहीं कर रहा हूं पर इतना अवश्य जानता हूं की चाइना में निश्चित तौर पर एक बदलाव जरूर आएगा और वह बदलाव चाइना की जनता करेगी यह अलग बात है कि चीन के कितने हिस्से होंगे पर होंगे अवश्य ।
वैसे भारत अब एक सूत्र में बंधा दृष्टिगोचर हो रहा है और यह सूत्र है राष्ट्र की सीमाओं के बारे में सोचते रहने का एहसास आम आदमियों के सीने में घर कर गया है । कोई भी व्यक्ति जो भारत के बारे में पॉजिटिव सोचता है वह अपनी विद्यमान भारत के नक्शे में किसी भी तरह की कमतरी और झंडे में किसी भी तरह के बदलाव को स्वीकार नहीं करेगा आयातित विचारधारा अर्थात इंपोर्टेड थॉट्स कुछ भी करें कितनी भी कोशिश करें हिंदुस्तान को अब समझने के लिए विश्व भी नए सिरे से कवायद में लगा हुआ है कारण है हिंदुस्तान के लोग जिन्हें जब पॉजिटिविटी और नेगेटिविटी का अंदाज होता है तो आनंदमठ जैसे घटनाक्रमों का विस्तार हो जाता है मैं यह मानकर चल रहा हूं कि आप पाठक के रूप में आनंदमठ के घटनाक्रम को समझ पा रहे हैं आज उसे उल्लेखित करने का बेहतरीन समय है । भारत के अस्तित्व को अब किसी भी प्रकार का खतरा नहीं है पर यह निरापद स्थिति बनी रहे इसके लिए हमें भारत का विस्तार करना होगा यह सच है कि भारत सीमा विस्तार पर ध्यान नहीं देता यह भारत की विशेषता है पर भारत का विस्तार विश्व में रह रही मानवता के मन में भारत को लेकर उठ रही जिज्ञासा का लाभ उठाना होगा बौद्धिक वर्ग को भी । यहां 140 शब्दों की सीमा में बंद कर बात नहीं करनी है अगर आप इंटरनेट पर लिखते हैं तो आपको टेक्स्ट डालना होगा भारत की खूबियां सामाजिक सांस्कृतिक विकास के संबंध में खुद समझना होगा और विश्व को समझाने के लिए ऐसा करना होगा क्योंकि आप यूनिकोड के आने के बाद किसी भी भाषा में लिखने के बाद उसे विस्तार देने की समस्या नहीं है . गूगल ने ऑटो ट्रांसलेशन की सुविधा जो मुहैया करा दी है ।
सुधी पाठकों उन्हें आपको स्मरण कराना चाहता हूं कि भारत में कश्मीर के साथ सांस्कृतिक एक्सचेंज को बढ़ावा देने की जरूरत है ना कि उन्हें दोष देने की बावजूद इसके कि हमारे डोगरा एवं कश्मीरी पंडितों के साथ हुए दुर्व्यवहार और उनके प्रति हिंसक वातावरण जो उन्नीस सौ नवासी नब्बे में हुआ था हमें संस्कृति अंतर्संबंध बढ़ाने ही होंगे यही राष्ट्र हित के लिए जरूरी भी है ।