कलाकार : अविनाश कश्यप |
आज़ाद हिंदुस्तान की तवारीख में अब तक सिर्फ़ एपीजे अब्दुल कलाम ऐसे मुस्लिम हुए हैं जिनका पूरा हिंदुस्तान एहतेराम करता था और करता है। जब तक वो इस दुनिया-ए-फ़ानी में थे, उनको पूरा मुल्क अपनी आँखों का सितारा बनाए हुए था और उनके इस जहां से रुख़्सत हो जाने के बाद पूरी शिद्दत से याद करता है और बड़े अदब से उनका नाम लेता है।
आख़िर उनमें ऐसा क्या था जिसकी वजह से उन्हें इतना आला मुक़ाम मिला। पद्म भूषण फिर पद्म विभूषण और फिर भारत रत्न से नवाज़ा गया। भारत जैसे विशाल देश के राष्ट्रपति बने। यह सब एक दिव्य स्वप्न सा लगता है, मगर कलाम साहब ने अपनी और सिर्फ़ अपनी सादगी, इंसानियत, दीनदार किरदार, वैज्ञानिक सोच और राष्ट्रप्रेम से वशीभूत भाव से इस दिव्य स्वप्न को साकार कर दिखाया।
मिसाइल मैन के नाम से उनके बारे बहुत कुछ लिखा जा चुका है। बचपन से लेकर आख़री सफ़र तक मज़मून सबके सामने खुली किताब जैसा है। लेकिन उन्होंने जिस तरह की दीनदार ज़िन्दगी जी थी वह उनको महान बनाती है। बेशक वे मुस्लिम थे लेकिन उन मुस्लिमों की तरह नहीं जो सिर्फ़ अपनी क़ौम, अपने मज़हब और अपने दीन तक महदूद (सीमित) रहते हैं। कलाम साहब ने न सिर्फ़ अपनी सरज़मीं की हिफ़ाज़त के लिए मिसाइलें तैयार की बल्कि दुनिया में मुल्क का नाम रोशन हो इसके लिए उन्नत तकनीक पर काम किया और प्रेरणा दी।
जहाँ तक उनके बारे में मेरा अपना नज़रिया है वो दिखावटी दीनदारी से दूर थे। रोज़े-नमाज़ के पाबंद थे। बचपन से ही नमाज़ पढ़ा करते थे। पक्के मुस्लिम होने के बावजूद उन्होंने कभी भी अपने धर्म की बड़ाई या दूसरे धर्म की निंदा नहीं की। वो पूरी ज़िंदगी इंसानियत और मुल्क परस्ती की पैरोकारी करते रहे।
उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद स.अ.व. की उस सुन्नत का पूरे जीवन पालन किया। कलाम साहब ने भी अपने पास कुछ भी संचय करके न रखा। ज़रूरतमंदों की मदद में ख़र्च करते रहे। तालीम की बहुत बड़े हिमायती रहे। तालीम देते-देते ही वे इस नश्वर संसार से बिदा हो गए। 27 जुलाई 2015 को शिलांग के आईआईएम में वो बच्चों को तालीम ही दे रहे थे जब उन्हें हार्ट अटैक आया। अब यही काम उनके विचार, उनकी लिखी किताबें और उनका कृतित्व कर रहा है
भारत के ऐसे महान सपूत डा एपीजे अब्दुल कलाम को आज पूरा हिंदुस्तान बड़ी इज़्ज़त से याद कर रहा है। ऐसी आलीशान शख़्सियत को हज़ार बार सलाम...
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जय हिन्द
ज़हीर अंसारी