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( निवेदन:- यह आलेख मैं बेहद कठिन भाषा में लिख रहा हूं कठिन तो नहीं लेकिन कूट भाषा कहूंगा और उसकी वजह यह है कि आज भी प्यालों में जहर लेकर कुछ स्वयंभू न्यायाधीश मेरे पीछे दौड़ रहे हैं और यह सत्य है इसका अंदाजा आप में से किसी को भी नहीं है मैं उन जहर के प्याले लेकर दौड़ने वालों के प्रति भी बिल्कुल नाराजगी का भाव नहीं रखता लेकिन याद रहे यह आलेख उनके लिए एक ब्रह्मास्त्र है वे और उनकी पीढ़ियां भी नहीं बच सकतीं चाहे जितना कैटवॉक करने वाले के लबादे की ओट में छिपने की कोशिश करें क्योंकि मैं कृष्ण का अनुयाई हूं और धर्म युद्ध जानता हूं सतर्क हो जाइए वह जो मेरी आत्मा को देह से अलग करवाने सक्रिय है )
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सुकरात को जहर पीना पड़ा था । हर सच्चे के लिए जहर एक अमृत ही तो है । 6000 साल पहले श्रीमद भगवत गीता 10000 साल पहले रामायण उसके पहले वेद वेदांत ! क्या कह गए किसे मालूम और मालूम भी करके यह करेंगे क्या समझ ही नहीं पाते की सनातन दर्शन क्या है ?
याद होगा आपको एलेक्जेंडर के गुरु अरस्तु ने सुकरात को बहुत दिनों तक जिंदा रखा हम सब तक पहुंचाया । पर हम इतने बेवकूफ हैं कि हम कहते हैं विश्व के प्रथम सत्यार्थी हम हैं ....!
अरे मूरख..! विश्व का क्या आप मोहल्ले के भी नहीं हां तुमको लालबुझक्कड़ अवश्य मां सकता हूँ ।
अब मैं पूरे विश्व के नहीं पश्चिम के सत्यार्थी था सुकरात उसे प्रणाम करता हूं दर्शन की चरम परिस्थिति थी पर वह यह नहीं जानता था कि चंद्रमा सूरज और बाकी सौरमंडल देवता है या सूरज के इर्द गिर्द चक्कर लगाने वाले बालू मिट्टी के या गैस के गोले । कुछ टटपूजिए विद्वान जो विद्वान कम पुजारी ज्यादा थे ने एनेक्सावारस को युवा सुकरात के समक्ष ले गए.... जो यह दावा कर रहा था कि चंद्रमा कोई देवी नहीं है बल्कि पत्थर पहाड़ों का पिंड है और सुकरात ने अपनी राय ज़ाहिर करने से इनकार कर दिया क्योंकि तब तक उस सत्य से अभिज्ञ थे
हाँ ने उस विद्वान से सहमति या असहमति नहीं जताई तो #पुजारी_ब्रांड विद्वान नाराज हो गए ।
एथेंस का सत्यार्थी निरंतर सत्य की तलाश में लगा रहा और वह जितने करीब पहुंचता सत्य की उजागर कर देता तो रूढ़ीवादी यूनानी लोग सत्यार्थी से दूरियां कायम करने लगते । केवल युवा और समझदार लोग ही एथेंस के सत्यार्थी के , आस पास होते ।
मित्रों यहां यह उदाहरण इसलिए दे रहा हूं कि हम chandrayaan-2 भी चुके हैं और हमें मालूम है कि वाकई चंद्रमा कोई देवी देवी नहीं है और उसके पास अपना कोई प्रकाश नहीं है ।
आज से लगभग 2500 साल पहले सुकरात ने समझ लिया था कि यह एक सौर मंडल है ।
ज्ञात तो आपको भी होगा कि... 6000 साल पहले कृष्ण ने अर्जुन और अपनी मातुश्री को अपने मुंह में ब्रह्मांड के घूमते हुए पिंड दिखा दिए थे ।
उसके भी पूर्ण नवग्रह के संबंध में बहुत ही व्यापक विश्लेषण कर चुके थे हमारे योगी ।
एथेंस का सत्यार्थी डेमोक्रेटिक सिस्टम की सीमाएं बताता साथ ही एकमात्र निरंकार ब्रह्म के अस्तित्व को रेखांकित करता तो एथेंस का अभिजात्य वर्ग हाहाकार करता । सत्यार्थी ईश्वर को राजा से भी ऊपर बताता वह किसी देवता के अस्तित्व को अस्वीकार करता जैसे मैं भी एक बात बार बार कहता हूं- कुबेर का अर्थ कोई देवता या व्यक्ति नहीं है बल्कि कुबेर वैश्विक इकोनामिक रेगुलेटरी सिस्टम है तो लोग सर खुजाने लगते हैं । अरे भाई सच ही तो कह रहा हूं हम जिन देवताओं को मानते हैं या एथेंस जिन देवताओं को मानता था या मानता है वे किसी ना किसी गतिविधि के हेड होते हैं और उन्हें किसी रहस्यमई देवी या देवता के रूप में मानना गलत तो नहीं है बल्कि अगर यह सोचकर माना जाए कि बुद्धि का देवता बुध है अर्थात बौद्धिकता का प्रतीक बुध ग्रह है तुम मुझे कोई आपत्ति नहीं पर वह देवता है कुछ अचानक चमत्कार कर देगा स्वीकार्य नहीं है अव्वल तो अंतरिक्ष का एक ग्रह है दूसरा बौद्धिकता का प्रतीक है और तीसरा वह कोई चमत्कार नहीं करने वाला आपकी हो अचानक अतुलित ज्ञान देने वाला भी नहीं है बल्कि आपकी अपने अध्ययन चिंतन योग्य मनन से वह सब कुछ हासिल हो जाएगा ज्ञान हासिल करने का कोई शॉर्टकट भी नहीं है मित्रों ।
और जिनको तुम देवी देवता मानते हो न वे रहस्यमय कभी नहीं थे और न ही रहस्यमय होंगे । वे तुम्हारे लिए अगर रहस्य वाली बातें श्रेयकर हैं तो सुनो .... एकबार मेरा साक्षात्कार वरुण देवता से हुआ सौहार्द पूर्ण शिष्टाचार के आदान प्रदान के बाद वे बोले - भाई ये मूर्ख मेरी पूजा करने आते हैं कि मुझ पर कहर ढाने ?
मैंने पूछा यानि
वे बोले - तुम्हारे शहर का एक यायावर मेरी परिक्रमा करते वक्त मेरे आसपास के कचरे साफ कर दिया करता था । और ये नामाकूल मेरी राह में गंदगी डालते हैं ।
वरुण देव की बात से एग्री हूँ पर क्या कहूँ न अमृतलाल वेगड़ जी आब मौज़ूद हैं वर्ना साक्ष्य दिला देता । उनकी किताबें पढ़ लो सब सामने आ जाएगा ।
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अरस्तु डेमोक्रेटिक सिस्टम पर स्पष्ट रूप से बताते थे की अगर किसी जहाज में कप्तान को सलाह देना हो तो सलाह विशेषज्ञ से ली जावे न कि मूर्खों से वोटिंग कराई जावे तब वहां हर बात वोटिंग से तय होती थी ।
अगर ऐसा होता तो 500 के 500 जूरी मेंबर वोटिंग सुकरात के फेवर में करती सुकरात की जीवन को 220 वोट मिले और मृत्यु के फैसले को 280 लोगों ने स्वीकृति दी थी । उन लोगों से रिश्वत जरूर खाई थी जो चाहते थे कि सुकरात का अंत हो जाए सुकरात जिद्दी थे उनको मालूम था कि एथेनिका के एथेंस उनको अद्भुत प्रेम है वे यूनान और एथेंस कि लोगों से बेहद निस्वार्थ प्यार करते थे और करते भी क्यों ना एथेंस में जन्मा व्यक्ति एथेंस में ही मरना चाहेगा जैसे हम आप अपने शहर को गांव को प्यार करते हैं और उस हद तक कि इसी शहर से हम अनंत यात्रा पर निकले देश निकाली से बेहतर जहर वाली सजा को कबूल किया ।
ईशा के चार पांच सौ साल पहले की ही बात है ना और अब अभी वही स्थिति है कई सुकरातों को जहर पिलाया जाता है दफ्तरों में, मीडिया ट्रायल के रूप में, कभी-कभी तो अखबारों में, भी समाज में यानी हर जगह है लोगों को कितना नेगेटिव पोट्रेट करते हैं लोग और इसमें कितना मजा आता है इसका अंदाज़ा लगाओ ।
शेर का शिकार करना किसे पसंद नहीं दुर्भाग्य है कि शेर का शिकार शेर या शिकारी नहीं कर रहे गीदड़ करने लगे हैं आजकल...!
एक बात कहूं यहां #मैं शब्द का इस्तेमाल मैंने इस पोस्ट के प्राक्कथन में भी किया है और अंत में भी कर दिया इसका अर्थ यह ना लगाना की मैं स्वयं के बारे में कुछ लिख रहा हूं साहित्य सबके लिए लिखा जाता है ध्यान रहे मैं वही करता हूं