16.2.13

महिला सशक्तिकरण सह सुशासन सम्मेलन में शिवराज सिंह ने खोला पिटारा

·                     प्रदेश के हर विकास खंड में अंग्रेजी माध्यम की स्कूल होंगे.
·                     विदेश जाने वाले विद्यार्थियों को 15 लाख की राशि ब्याज मुक्त लोन
·                     एक बेटी वाले परिवार को पेंशन मिलेगी
·                     डिंडोरी शहपुरा नगरीय क्षेत्र की विकास गतिविधियों के लिये 11 करोड़ की राशि दी   
         जावेगी
·                     महिला बाल विकास विभाग अंतर्गत शहपुरा एवम डिंडोरी में बहुउद्देश्यीय भवन बनेंगे.
·                     वाहन-चालन प्रशिक्षण,मोर डुबुलिया कार्यक्रम नवाचारों की मिक्तकंठ सराहना की
बेटी-बचाओ अभियान एवम बाल विवाह रोकथाम को गति देने किया आह्वान 

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि जिन दम्पतियों के केवल बेटी हैं उन्हें वृद्धावस्था पेंशन दिये जाने की योजना प्रारंभ की जायेगी। मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन योजना में 65 साल से अधिक उम्र के वृद्ध की देखभाल के लिए एक व्यक्ति साथ में जायेगा उसका व्यय भी म.प्र. शासन द्वारा वहन किया जायेगा। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान आज डिण्डौरी जिले के शहपुरा में महिला सशक्तिकरण सह सुशासन सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने शहपुरा नगर पंचायत के विभिन्न वार्डो में सीमेन्ट क्रांकीट रोड और नाली निर्माण के लिए 2 करोड़ रूपये और डिण्डौरी नगर पंचायत में विकास कार्यो के लिए 9 करोड़ रूपये मुख्यमंत्री अधोसंरचना विकास योजना के तहत स्वीकृत किये जाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि शहपुरा में पंजीयन कार्यालय स्थापना, की जायेगी। शहपुरा महाविद्यालय में विज्ञान एवं कामर्स की कक्षायें, शहपुरा में लायब्रेरी, डिण्डौरी जिले में 4 राजस्व मोबाइल कोर्ट, महिला बाल विकास विभाग के बहुउद्देशीय भवन निर्माण की घोषणा की. साथ ही गाड़ासरई में महाविद्यालय प्रारंभ किये जाने की मांग पूरी की.   मुख्यमंत्री ने शहपुरा पॅहुचने पर जिले के नवाचार मोरे डुबलिया के अंतर्गत महिला सशक्तिकरण का दीप प्रज्जवलित कर 21 गर्भवती महिलाओं की गोदभराई कार्यक्रम में सम्मिलित हुये तथा प्रोजेक्ट परिवर्तन के तहत वाहन चालन प्रशिक्षण प्राप्त 40 बालिकाओं एवं महिलाओं को वाहन चालक लायसेंस के साथ शासन की विभिन्न विभागीय योजनाओं से लाभान्वित हितग्राहियों को अनुदान राशि के चैक एवं सामग्री का वितरण किया सम्मेलन को संबोधित करते हुये मुख्यमंत्री श्री सिंह ने कहा कि प्रदेश में महिलाओं को सशक्त बनाकर राजनीति की दिशा बदलने की कोशिश है। लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों को जनता के सेवक के रूप में कार्य करना चाहिए। विकास को आन्दोलन बनाना, जनता के कल्याण के लिए कार्य करना और सभी के सहयोग से गरीबी मिटाना सरकार का संकल्प है। मुख्यमंत्री ने बताया कि प्रदेश में अधिकांश वन में बसे लोगों को वनाधिकार पत्र दिये जा चुके हैं और अभी भी वन में काबिज व्यक्तियों को हथया नहीं जायेगा बल्कि उनके वनाधिकार पत्र बनाये जायेगे। लोक तंत्र में विकास पंक्ति में खड़े अन्तिम व्यक्ति का विकास प्रदेश का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि गरीब व्यक्ति के आवास की समस्या हल होगी और जो गरीब आवास भूमि में काबिज है उन्हें आवास से वंचित नहीं किया जायेगा बल्कि पट्टे जारी किये जायेंगे। उन्होंने निःशुल्क पाठ्य-पुस्तक वितरण, गणवेश, निःशुल्क साइकिल वितरण जैसी योजनाओं की जानकारी देते हुये कहा कि प्रत्येक अनुसूचित जन जाति विकासखंडों में एक अंग्रेजी माध्यम का स्कूल खोला जायेगा। इसी प्रकार प्रदेश में हिन्दी विश्वविद्यालय खोलकर इंजीनियरिंग एवं मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में कराई जायेगी। विदेश में जाकर शिक्षा ग्रहण करने वाले बेटे-बेटी को 15 लाख देकर पढ़ाया जायेगा। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के लिए बैक ऋण की गारंटी सरकार लेगी। विद्यार्थी की नौकरी लगने के 6 माह बाद उसे मूलधन भी किश्त में लौटाने की सुविधा दी जायेगी तथा ब्याज भी राज्य सरकार भरेगी। इसी प्रकार गरीबों को अपना काम-धंधा शुरू करने के लिए 50 हजार तक के बैंक ऋण की गारंटी मुख्यमंत्री ग्राम स्वरोजगार योजना के स्वरोजगार योजना के तहत सरकार लेगी और 5 वर्ष तक ब्याज भी देगी। 
    मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि किसान पंचायत में तय किया गया है कि किसान का बिजली बिल हर महीने नहीं आयेगा। बल्कि किसान को एक हार्स पावर बिजली के 12 सौ रूपये वार्षिक जमा करने होंगे शेष राशि शासन देगा। किसान के पिछले बिल का बकाया सरचार्च भी माफ होगा और जो मूल बचेगा उसकी भी आधी राशि सरकार देगी। शेष राशि किसान को आसान किश्तों में भुगतान करना होगी। किसान की उपज खरीदने के लिए गेहूँ का समर्थन मूल्य 15 सौ रूपये किया जायेगा। कार्यक्रम को  राज्य सभा सदस्य सांसद श्री फगगन सिंह कुलस्ते ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में प्रभारी मंत्री श्री देवसिंह सैयाम सहित जनप्रतिनिधि, गणमान्य नागरिक एवं बड़ी संख्या में नागरिक मौजूद थे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने वनवासी सेवा मंडल की स्मारिका का विमोचन भी किया ।  कलेक्टर श्री मदन कुमार, एस.पी.श्री आर. के. अरूसिया, केनेतृत्व में प्रशासन की चाक-चौबंद व्यवस्थाएं इस कार्यक्रम की विशेषता रही .ए.डी.एम. श्री अवधेश प्रताप सिंह, एस.डी.एम. डिंडोरी श्री परस्ते,  एस.डी.एम.शहपुरा श्री केरकेट्टा, महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी श्रीमति कल्पना तिवारी "रिछारिया" श्री एस. सी.करवड़े,गिरीश बिल्लोरे, मनमोहन कुशराम, उदयवती तेक़ाम, के अलावा समस्त विभाग के अधिकारी कर्मचारीयों ने मिलकर इस कार्यक्रम को प्रभाव शाली बनाया. डी.आई.जी. जबलपुर संभाग, तथा संयुक्त संचालक बाल विकास सेवाएं, श्री एस. सी चौबे, सम्भागीय उप संचालक श्रीमति शालिनी तिवारी की उपस्थिति उल्लेखनीय रही है. दिन भर चले इस आयोजन के प्रारंभ में महिलाओं के लिये विभिन्न विभागों द्वारा चलाये जा रहे क्ल्याणकारी कार्यक्रमों की जानकारी दी गई. कार्यक्रम का संचालन सहायक आयुक्त आदिवासी विकास श्री श्रोत्रीय एवम गिरीश बिल्लोरे बाल विकास परियोजना अधिकारी ने किया गया.

13.2.13

उनने देखा कि हम सलोनी भाभी को गुलाब दे रहें हैं. बस दहकने लगीं गुलाब सी .


             सच बताएं आज का वैलेंटाइन हमको सूट नहीं किया अखबार में राशिफ़ल वाले कालम में यही तो लिखा था . सुबह सवेरे हमारी शरीक़े-हयात ने हमसे कहा उपर गमलों से कुछ फ़ूल तोड़ लाएं . राजीव तनेजा जी की तरह हमने वी आर द बेस्ट कपल बने रहने के लिये उनकी हरेक बात मानने की कसम खाई थी. सो बस छत पर जा पहुंचे. जहां हमारे  बाबूजी ने बहुत खूबसूरत बगीचा लगवाया है.  हमने उसी बगीचे से खूब सारे फ़ूल तोड़े सीढ़ीयों से उतर ही रहे थे कि बाजू वाले घर  में  वाली गुजराती परिवार की  सलोनी भाभी ने देखा बोली:- अरे वाह, इतने गुलाब..किस लिये ले जा रहें हैं ?
 जी, पूजा के लिये ले जा रहा हूं...?
वो हमारे भोंदूपने पे ठिलठिला के हंस दीं बोली :- भाई साब, बड़े भोले हो या हमको मूर्ख समझते हो. 
हम:-"न भाभी सच पूजा के लिये ही हैं ! यक़ीन कीजिये " 
हां हां पूजा के लिये ही तो ले जाओगे कोई राखी के लिये थोड़े न ले जाओगे ...
अर्र भाभी सा’ब, आप भी हमारी श्रीमति जी पूजा कर रहीं हैं उनके लिये ही लाया हूं. 
ओह समझी मुझे लगा कि आप प्यारी सी भाभी को फ़ूल देने के बज़ाय किसी पूजा को .... मुहल्ले में पूजाओं की कमीं है क्या.. ?
हम - अरे भाभी जी, हम ऐसे नहीं हैं.. जी.. 
सलोनी भाभी: अच्छा..? तो ठीक है एक मुझे भी दे दीजिये ..हंसते हुए बोलीं  पूजा के लिये 
फ़िर लौट के आती हूं.. दीजिये न ज़ल्दी दीजिये  हमने जैसे ही उनको गुलाब पक़ड़ाया वे फ़ुर्ती में निकल पड़ीं   इसी बीच हमारी बीवी जी दरवाजे तक आ चुकीं थीं  उनने देखा कि हम सलोनी भाभी को गुलाब दे रहें हैं. बस दहकने लगीं गुलाब सी . और फ़िर क्या दिन भर जारी जंग. भगवान का आभारी हूं कि  श्रीमती जी को  सही समय पर बेलन न मिला वर्ना वेलेनटाइन डे को बेलन ट्राईंग डे में तब्दील होने में देर न होती. सुबह की झगड़ा रात का पानी देर तक चलता है. हमारी समस्या भी  तब जाकर हल हुई  जब सलोनी भाभी ये बताने घर आई की हमारी ननद पूजा ने आपके घर का गुलाब अमय को दे दिया दुआ कीजिये दौनों की जोड़ी पक्की हो जाए आज़ वैलेंटाइन डे है न 
 मैं भाई साब से बाबूजी की बगिया का  गुलाब ले गई थी पूजा के लिये.पूजा ने अमय को दिया. 
श्रीमति जी का क्रोध शांत हुआ हम ठहरे कवि किसी का एहसान पास नहीं रखते एक कविता भेंट कर दी उनको

प्रीत का पावन महीनाऔर तुम्हारा व्यस्त रहनाबताओ प्रिय और कब तकपड़ेगा मुझको ये सहना ?

चेतना में तुम ही तुम हो
संवेदना में भी तो तुम हो !
तुम पहनो या न पहनो
तुम्हारी मुस्कान गहना !!

लबों का थोड़ा सा खुलना
पलक का हौले से गिरना
समझ लेता हूं प्रिया तुम
चाहती हो क्या है कहना !!

मदालस हैं स्वर तुम्हारे
सहज हो  जब जब उचारे !
तुम्हारी सखियां हैं चंचल
उनसे तुम कुछ भी न कहना

10.2.13

एक पान हल्का रगड़ा किमाम और एक मीठा घर के लिये .............बिना सुपारी का..

        जाने कितने चूल्हे जलाता है पान .. कटक.. कलकतिया..बंगला. सोहागपुरी.. नागपुरी.बनारसी पानकिमाम.. रत्ना तीन सौ भुनी सुपारी और रगड़े वाला पान.. ऊपर गोरी का मकान नीचे पान की दुकान वाला पान जी हां मैं उसी पान की बात कर रहा हूं   जो नये पुराने रोजिया मिलने वाले दोस्तों को श्याम टाकीज़करम चंद चौकमालवीय चौक अधारताल घमापुररांझीइनकमटेक्स आफ़िस के सामने रसल-चौकप्रभू-वंदना टाकीज़ गोरखपुरग्वारीघाटयानी हर खास - ओ- आम ज़गह पर मिलता है. जबलपुर की शान पहचान है पान..!! 
एक पान हल्का रगड़ा किमाम और एक मीठा घर के लिये .............बिना सुपारी का.. जबलपुर  वाले रात आठ के बाद पान की दूक़ान पर अक्सर यही तो कहते हैं.. बड्डा हम जेई सुन के बड़े हुए और अब पान की दूकान में जाके जेई बोलते  हैं
     कॉलेज़ के ज़माने से  हम पान चबाने का शौक रखते हैं. चोरी चकारी से हमने पान में रगड़ा खाना शुरु किया. डी.एन.जैन कालेज़ में पढ़ने के दौर से अब तक  हमने जाने कितने पान चबाए   हैं हमें तो याद नहीं.. याद करके भी क्या करेंगें. हम को  तो यह भी याद नहीं कि  पान भंडारों पर हमारी  कितने पानों की उधारी बाक़ी है. वे भी हमको टोकते नहीं  काहे टोकेंगें टोके होते तो हम जाते उधर नहीं न बात जेई तो है कि पान वाला किसी को टोकता नहीं. उस दौर में जब हम कम उम्र वाले नौ सिखिया पान प्रेमी जबलपुरिया बने तब पान के रेट थे  चौअन्नी में कटक, पचास का बनारसी सोहागपुरीपचहत्तर का नागपुरी मिलता था. जैसे ही एक रुपये का हुआ तो बज़ट बिगड़ना स्वाभाविक था.बिगड़ते बजट में उधारी होना भी स्वभाविक था और कभी नक़द कभी उधारी में पान की आपूर्ति जारी रही. खैर पान में औषध गुण  के बारे में पढ़ा-सुना था सो हम पान खाते रहे किंतु आगे कब  रगड़ा  यानि   तंबाखू  इसमें शामिल हो गया हमें ये भी याद नहीं. कई दिनों यानी साल डेढ़ साल तक चोरी छिपे तम्बाकू खाते रहे. इसकी भनक  एक दिन  मां को लगी.  तम्बाखू खाने का लायसेंस हम तब हासिल कर पाए जब एक दिन तम्बाखू सेवन के सारे प्रूफ़ सहित बड़ी दीदी ने हमको रंगे हाथ तम्बाखू रगड़ते  धर दबोचा  खूब   लानत मलानत हुई हमारी. परंतु फ़िर उम्र का लिहाज़ करते हुए  घर की परम्परा अनुसार हमको भी  तम्बाखू सेवन का लायसेंस अघोषित रूप से इस सलाह के साथ मिला कि  ”  बहुत  कम खाना..समझे !
            अब मालवीय चौक वाले पान प्रदाता हमको मीठा पत्ता, हल्का रगड़ा, लौंग लायची बिना पिपर मिंट वाला पान बिना कहे पेश करने लगे. पान खाने के लिये हमने भी कई जगह नियत कर लीं थी विजेता पान भंडार, मालवीय चौक की चुनिंदा दुक़ाने, आशीर्वाद मार्केट के सामने नाले पर बनी दुक़ानों में से नाम याद नहीं शायद संजू की दुक़ान, मछरहाई वाले हिलडुल भैया,रेल्वे स्टेशन, डिलाइटयानी इन जगहों पर हमारी पसंद का पान उपलब्ध हो जाता था. कईयों को तो आज़ भी याद है. याददाश्त के मामले में जबलपुर के पान वालों का ज़वाब नहीं. आप हम भले सत्रह से उन्नीस तक के पहाड़े आज तक याद न कर पाए हों. पर उनको सब याद  रहता है
     शहर के नामी गिरामियों को ब्रांडेड पान खाने का शौक है.  नामचीन लोग जब अपने चिलमचियों को पान लाने का आदेश देते तो कुछ यूं कहते 
काय..रे,
बोलो भैय्या
जा मुन्ना कने जाके बोलना भैया के पान
      कौन भैया ! कैसा पान खाते हैं भैया !! इस चिलमची के आक़ा की च्वाइस  मुन्ना को मालूम है. नागपत्ती के व्यापारी मुन्ना या शंकर मेधावी होने पर हमको कोई शक नहीं वे भेजे गये चिलमची को एक झलक देखते और समझ जाते कि ये डा. सुधीर तिवारी का नौकर है इसको किस प्रकार का पान देना है. कितने पान भेजना है. चिलमची भी मुट्ठी के नोट बिना गिने  दूकान में रखता पान वाले भैया भी बिना गिने उसे गल्ले में समाहित कर देते यानी विश्वास की अनूठी मिसाल .. पूरा ट्रांजक्शन बिना किसी शक-ओ-शुबहा के ईमानदारी से भरा होता.   जब नौकरी शुदा हुए तो लखनऊ ट्रेनिंग कालेज से छुट्टी वाले दिन बारादरी जाकर मगही पान खाते थे पूरा हफ़्ता इस मौके का इंतज़ार किया करते थे हम गोविंद सिंह शाक्या जी को तो मगही पान का जोड़ा इत्ता भाता था के दो दिन की खुराक संग साथ धर लाते थे । 
पान वाला :- काय तुमने टी वी ले लओ ?
हम :- सबसे पहले और तुमने ?
पान वाला :- लेना है दो !
हम :- काय..! टीवी और दो पगला गए का ?
पान वाला :- पगलाओगे आप सब देखना ..
              तीसरे दिन भाई ने बताया कि उसने घर में भी एक टीवी लगवा लिया . दूकान वाली टी वी रंगीन हो तो उसपे रंगीन स्क्रीन अलग से फिट थी. मस्त दूरदर्शन दिखाता जिसके घर में टीवी न थे वो देर रात तक सुपर मार्केट के सामने पान चबाते टीवी देखते थे . सलमा सुलतान, मंजरी सहाय, पेन खोंसने वाले शम्मी नारंग तक अवश्य देखते . तब रिमोट न था सो पान वाले भैया की टीवी का बटन कत्थे से कत्थई हो गया था . दोनों  टीवी का पैसा पान की अनायास बढ़ी बिक्री से तीन चार महीने में वापस . उसकी देखा देखी कई सारे पान शाप पे टीवी लग गए थे .
          पान की दूकान पे अब सियासी और देश विदेश में हो रही तरक्की और  संचार योजनाओं पर चर्चा आम हो गई थीं.
         दूरदर्शन पान की दूकान और ग्राहक तीनों के मध्य  एक दीर्घकालिक नाता स्थापित हो गया. कुल मिला के जबलपुरिया बदलाव के इस संस्मरण को लिख कर मन बेहद भावुक इस लिए हो रहा है कि अब न तो हम मालवीय चौक जा पाते न सुपर मार्केट ..... नेट पे आप सबको संस्मरण सुनाने लायक रह गए है .......

8.2.13

पता नहीं बांछैं होतीं कहां हैं पर खिल ज़रूर जातीं हैं

पुरातत्व विषाधारित ब्लाग लेखक ललित शर्मा की
प्रसन्नता का अर्थ मूंछों  के विस्तार से झलकी तो लगा कि
बांछैं यानी मूंछ 


हर कोई  कहता फ़िरता है भई क्या बात है मज़ा आ गया उसे उसने सुना और उसकी बांछैं खिल गईं.
       "बांछैं" शब्द का अर्थ पूछियेगा तो अच्छे अच्छों के होश उड़ जाते हैं . अर्थ तो हमको भी नहीं मालूम रागदरबारी  का एक  सँवाद जो हमारे तक हमारे श्री लाल शुक्ल जी ने  व्हाया  मित्र मनीष शर्मा के भेजा की " बाछैं शरीर के किस भाग में पाई जातीं हैं. पर इस बात से सहमत नज़र आते हैं कि बाछैं खिलती अवश्य हैं.  यानी कि जब वो नहीं जानते तो किसी और के जानने का सवाल ही नहीं खड़ा होता ". 

इसका अर्थ तपासने जब हम गूगल बाबा के पास गये तो हिंदी में लिख के सर्च करने पर गूगल बाबा ने हमको ठैंगा दिखा दिया. तब हमने प्रसन्नता के लिये इमेज सर्च  की तो पाया कि पुरातत्व विषाधारित ब्लाग लेखक ललित शर्मा  किन्ही महाशय के साथ हंस रहें हैं. तो हम समझ गये कि बांछौं का अर्थ मूंछ होता है . किंतु दूसरे ही छण याद आया कि पल्लवी मैडम एक बार  कह रहीं थीं कि खबर सुन कर हम सारी महिलाओं की बांछैं खिलनी हीं थीं . तो झट हमने खुद की अग्यानता पर माथा पीटा कि उनके मूंछ किधर होतीं है ? बताओ भला .. सही है न.
      तो फ़िर कहां होतीं हैं बाछैं जो खिलतीं हैं. तभी याद आया  कि मकान मालिकिन का कुत्ता हमारे भयवश उसको दुलारने पर दुम हिला रहा था और उसके कान भी खड़े हो रहे थे . कान खड़े होना बांछैं खिलने से इतर मामला निकला. हैरान हूं मेरे फ़ेसबुकिया दोस्तों में से एक और शर्मा जी बोले - बाछैं यानी बांहैं ही बांछैं हैंमुझे लगता है....बाछैं शारीर के दोनों ओर पाई जाती है.जिन्हें हम बाहे भी कहते है. और फ़िर सवाल दागा - क्या यह सही ?  तो राजीव तनेजा साहब फ़रमा रहे हैं कि - खुशी के मारे चेहरे पर पड़ने वाली लकीरें .. अब बताइये कभी लक़ीरें भी खिलती हैं.. 
 तो फ़िर कहां होतीं हैं बाछैं जो खिलतीं हैं.
        चलिये छोड़िये भी बांछैं जहां भी हों उससे क्या लेना देना . ..  प्रसन्नता की सूचना देने खिलतीं हैं जिसका सीधा सीधा ताल्लुक आपकी भाव भंगिमा आवर आंतरिक उछाह  से है  और उससे भी  आगे प्रसन्नता की नातेदारी  हमारे स्वास्थ्य से  है. प्रसन्नता आयु-वर्धक  होती है उसके पहले प्रसन्नता  काया को रोग हीन बनाती है. 
                                             प्रसन्नता ईश्वर सानिध्य है. ईश्वर का सानिध्य कौन नहीं चाहेगा. यक़ीनन सभी अपने इर्द गिर्द ईश्वर के अभिरक्षक कवच को महसूस करते हैं. पर खुश कितने लोग रहते हैं इसका आंकलन करने पर पता चलता है कि खुशी के रूप में ईश्वर के सानिध्य का एहसास बहुत ही कम लोग कर पाते हैं कारण यह है कि लोग दूसरों की बाछैं खिलना अब बर्दाश्त नहीं करते. आज़ हर किसी की प्रसन्नता पर ग्रहण लग गया है. एक दौर था कि लोग गांव खेडे़ में, शहरों की गलियों में एक विशाल पारिवारिक भाव के साथ जीते थे. पर अब अंतरंग मित्र भी आपकी प्रसन्नता का सबसे बड़ा दुश्मन है इस बात का एहसास आप कई मर्तबा कर चुके होंगे. मित्रों की बात चली तो अपने कुछ अनुभव से बताना चाहता हूं कि -अक्सर सबसे करीब वाला आपके चेहरे से कब मुस्कुराहट चुरा ले जाए आपको एहसास नहीं हो पाएगा. और अचानक आप अपना सब कुछ खो बैठेंगे. कभी कभी तो बात घोर अवसाद तक ले जा सकती है. इतना अवसाद कि आप आत्महंता भी बन सकते हैं. 
                                                              तनाव देने की प्रवृत्ति वाले लोग अक्सर एक जुमला दुहराते हैं " टेंशन लेने का नईं देने का ..क्या बोला देने का..!!" - जब सारे के सारे लोग इस फ़लसफ़े को अपनातें तो तय है कि आत्म-हत्याओं, अपराधों, अत्याचारों में इज़ाफ़ा ही होगा. क्या आपको  प्रसन्नता ईश्वर सानिध्य नहीं चाहिये वह भी लौकिक जीवन में चाहिये न तो फ़िर प्रसन्न रही मन को अकारण ही प्रसन्न रखिये और जीवन का सफ़ल प्रबंधन कीजिये. क्योंकि तनाव न तो लेने की वस्तु है न देने की ...... बस खोजते रहिये बांछों के खिलने के अर्थ और इस खोजबीन में प्रसन्नता का मार्ग प्रशस्त  कीजिये  हमारे अंतस की यही तो उर्जा है जो जीने का मक़सद बताती है. 

3.2.13

इन दिनों ख़ुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत

इक ग़ज़ल उस पे लिखूँ दिल का तकाज़ा है बहुत
इन दिनों ख़ुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत !
                         बहुत उम्दा कहा है कृष्ण बिहारी नूर ने. एक अदद  बेचारा  दिमाग उस पर बाहरी वाहियाद बातों का दबाव तो ऐसा होना लाज़िमी भी है. आज़ का आदमी फ़ैंटेसी में जी रहा है वो खुद को धर्मराज और दूसरों को चोर मानता है. 
 इस बात को नक़ारना नामुमक़िन है. किसी से किसी को कुछ भी लेना देना न हो फ़िर भी अपेक्षाएं उफ़्फ़ यूं कि गोया आपस में एक दूसरे के बहुत बड़ा लेन-देन बाक़ी है गोया. कल दफ़्तर पहुंचते ही एक बीसेक बरस का नौजवान हमारे कमरे में तांक झांक कर रहा था पर हमें मीटिंग लेता देख वापस जाने लगा.  हमने सोचा इस युवक को हमारी ज़रूरत है सो बस हमने उसे बुला लिया. बिना दुआ सलाम किये लगभग टिर्राते हुए युवक ने सामने  हमारे सामने टेबल के उस पार वाली कुर्सी पर  अपना दक्षिणावर्त्य टिका दिया. हाथ से एक मैगजीन निकाली बिना कुछ कहे हमारे सामने पटक दी.
                 हमने सोचा चलो छोटी सी जगह में  कोई तो है जो मैगजीन लाएगा हमारी अध्ययन वृत्ति के लिये . 
                पहला पन्ना पलटते ही हमें उस मैगज़ीन का पीलापन साफ़ दिखाई देने लगा. युवक  ने  
बताया कि मैगजीन का लोकल करेस्पांडेस है.तो मुझे लगा कि  अगले कुछ पलों में ये मुझसे एड के नाम पर पैसे मांगेगा. हुआ भी ऐसा ही. हम भी पन्ने पलट कर उसे मैगज़ीन के रूप में मान्यता देने की ग़रज़ से उसमें "मैग्जीनिया तत्व" तलाश रहे थे. पर ऐसी पठन-सामग्री  हम खोज न सके   हक़ीकत में उस कथित  मैगज़ीन का हर पन्ना या तो किसी व्यक्ति विशेष की  अकारण तारीफ़ वाला था अथवा किसी को भ्रष्ट साबित कर रहा था. ऐसा लगा कि जिसकी तारीफ़ छपी है उसके जेब से कुछ निकला है जिसकी निंदा छपी उसके जेब से कुछ निकला नहीं. बस इसी की पुष्टि के लिये अचानक हमने उस युवक से पूछा- भई, ये मैगज़ीन है इसमें मैगज़ीन होने जैसी कोई बात नज़र नहीं आ रही है. ? हमारे सवाल पर भाई के तोते फुर्र हो गये. हमसे येन केन प्रकारेण सम्बंध बनाने की ग़रज से युवक पूछता है.. सर, सुना है आप लिखते हैं 
हां, सही सुना. तो
तो आप भी अपने लेख दीजिये ?
हां, मेरे ब्लाग से लिफ़्ट कर लिया करो. अलग से लिखने के लिये नोट लगेंगे, !
युवक बोला- सर, ये तो सम्भव नहीं. 
मैं- तो मैं भी छपास का भूखा नहीं. 
युवक- तो फ़िर सरकारी एड ही दे दिया कीजिये..!
मैं- क्यों, मुझे अधिकार नहीं हैं इसका. 
युवक- तो ये समाचार  देखिये.. कहते हुए उसने एक ऐसा  समाचार दिखाया जो किसी व्यक्ति  के   
दुर्गुणों की गाथा थी. जो युवक द्वारा भेजी गई थी छपी भी थी . 
          पत्रिका क्या मुझे तो पिस्टल नज़र आ रही थी वो क़िताब. दो वर्ना आपकी भी ... ये ही गत होगी. कमज़ोर दिलवाले डर जाते हैं. पर हम ठहरें जबलईपुर वाले हम भी बिंदास वक्तव्य जारी करते रहे 
          दाल गलती  न देख युवक खीज कर मुद्दे पे आया और बोला - तो तीन हज़ार की रसीद काट दूं.. 
मैने लगभग डपट दिया. तय है  उस युवक के लिये बुरा हो चुका हूं .. कल कुछ ज़रूर  होगा जो होगा उसके लिये  मैं ही ज़वाबदार रहूंगा तय है. बात निकली है  तो उसका दूर तलक़ जाना तय है, निकलने दीजिये बात है ही निकलते ही माउथ टू माउथ दूर तलक जावेगी ही. जाना भी चाहिये . ज़रूरी भी है कुछ खास चेहरे बेनाक़ाब करने का जोखिम उठाना ही है मुझे. वर्ना ये सत्यकथा मुझे सोने न देगी . 

27.1.13

अक़्ल हर चीज़ को, इक ज़ुर्म बना देती है !


बापू आसाराम के बाद समाज शास्त्री  आशीष नंदी भाई सा के विचारों के आते ही खलबली मचती देख भाई कल्लू पेलवान को न जाने क्या हुआ  बोलने लगा : सरकार भी गज़ब है कई बार बोला कि भई मूं पे टेक्स लगा दो सुनतई नहीं.. 
हमने पूछा :- कहां बोला तुमने कल्लू भाई
कल्लू     :- पिछले हफ़्ते मिनिस्टर साब का पी.ए. मिला था, मुन्नापान भंडार में ..उनई को बोला रहा. कसम से बड़े भाई हम सही बोलते हैं. हैं न ?
            कल्लू को मालूम है कि काम किधर से कराना है कई लोग इत्ता भी नहीं जानते. कल्लू की बात सरकार तलक पहुंच गई होती तो पक्क़े में वक़्तव्यों के ज़रिये राजकोष में अकूत बढ़ोत्तरी होती. 
          इस विषय पर हमने कल्लू से बात होने के बाद  रिसर्च की तो पता चला पर्यावरण में वायु के साथ "वक्तव्य वायरस" का संक्रमण विस्तार ले रहा है.   आजकल बड़े बड़े लोग "वक्तव्य वायरस" की वज़ह से बकनू-बाय नामक बीमारी के शिक़ार हो रहे हैं.  इस बीमारी के  शिकार मीडिया के अत्यंत करीब रहने वाले सभा समारोह में भीड़ को देख कर आपा खोने वाले, खबरीले चैनल के कैमरों से घिरे व्यक्ति होते हैं. इस बीमारी के  रोगी को आप रोज़िन्ना देख सकते हैं. अखबार जिन खबरों में इन्वर्टेड कामा लगा कर  वर्ज़न लगाया करते हैं उन वर्ज़नों से आप रोगी को पहचान सकते हैं. यानी वर्ज़न से आप रोगी को पहचान सकते हैं. ऐसा नहीं है कि केवल वर्ज़न के ज़रिये बीमार पहचाने जाते हैं एक सा’ब ट्वीटर पर पहचाने गये थे, कुछ फ़ेसबुक पे, कुछेक प्रेस कांफ़्रेंस करके खुद को  बीमार होने की जानकारी  देते हैं . 
            दरअसल बीमार के सामने  माइक, कैमेरा, संवाददाता टाईप के लोग जब सामने आते हैं तो बीमारी इस कारण उभर आती है क्योंकि वे समझने लगते हैं कि उनके वक्तव्य से देश की स्थिति में सुधार आएगा. बस फ़िर क्या दिमाग से तेज़ जुबान चल पड़ती है. अब आशीष नंदी भाई सा को ही लीजिये बोलना कुछ था बोल कुछ गये. उनने सोचा भी न होगा कि फ़िसली ज़ुबां से बबंडर ऊगेगा. 
 नंदी जी बेचारे बहुत भोले और भले मानुष हैं.. क्या करें वे भूल गये कि आतंक और करप्शन दौनों ही ”गुणातीत’ है. इनको जाति,धर्म,वर्ग,सम्प्रदाय से जोड़ के देखना केवल एक नज़रिया हो सकता है न कि सचाई. 

        जन सामान्य में बीमारों की तलाश की गरज़ से  हमने एक हथकंडा अपनाया. हम अपने साथ एक कैमरामैन मित्र उमेश राठौर को लेकर एक पान की दूकान पे पंहुचे .  पहुंचते ही हमने अपने कैमराधारी मित्र को कुछ फ़ोटू उतारने की हिदायत दी. आस पास के लोग हमें पत्रकार समझ बैठे तत्काल हमसे सरकार और व्यवस्था के खिलाफ़ खासतौर पे नगर निगम के खिलाफ़ खुलकर बोले. इतना खुलकर कि खुद को याद न रहा कि क्या क्या बोले.  बार बार पिच्च से पान-तम्बाखू की पीक सड़क पे थूकते हुए श्रीमान जी का गंदगी पे   का भाषण तब तक जारी रहा जब तक कि हमने ये न पूछा कि-"भाई सा’ब, जे जो आप पीक थूके हैं इसे भी नगर निगम साफ़ नहीं कर पाएगी क्या..?" सवाल से भाई का मुंह मनमोहन साहब की तरह बंद हो गया. 
 बकनू-बाय नामक बीमारी लाइलाज़ बीमारी है. इस पर इलाज के लिये  रिसर्च के लिये सरकार को धन खर्चना चाहिये तब तक कल्लू भाई की सलाह मान कर मूं पर टेक्स की व्यवस्था इसी बज़ट में कर ली जाए तो अच्छा होगा. 
                            वैसे तो सारे विश्व में इस बीमारी का विस्तार देखा जा सकता है किंतु यह बीमारी भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र में महामारी की तरह फ़ैली है. अब अच्छे भले  मिमियाते डायलाग डिलेवरी करते बेचारे शाहरुख की सार्वजनिक ज़िंदगी में पड़ोसी पाक़ ने ज़हर घोलने की नापाक़ हरक़त कर डाली. 
                 इस बीमारी के गम्भीर परिणाम होते हैं जो सारे समाज पर गहरा असर डालते हैं. इस बीमारी से वक़्तव्य वीरों को पनपने का अवसर मिलता है. वे भी कुकरमुत्तों की मानिंद ऊग आतें हैं. ऐसे मौकों पे गली गली आपको नुक्कड़ वार्ताओं से गर्मागर्म उष्माएं निकलते नज़र आएंगी. जो न बोला उसे जबलपुरिया भाषा में ” पुर्रा ” घोषित किया जाता है. बातों बातों में फ़सादों की सम्भावना बढ़ जाती है. कई आलमाईटी साहबान यानी डी.एम. साहब लोग आपत बैठकें आहूत कर निगरानी कराते हैं कि प्रतिक्रिया स्वरूप कोई बेज़ा हरक़त न कर दे और क़ानून व्यवस्था तार तार न हो जाए. 
         सारी बीमारी की जड़ है लोगों का अत्यधिक अक्ल वाला होना 
     अदम गोंडवी साहब बेहद  सटीक बात कही है 
            अक़्ल हर चीज़ को, इक ज़ुर्म बना देती है
             बेसबब सोचना, बे-सूद पशीमा होना ..!

   
       
           

26.1.13

डिंडोरी में हर्षोल्लास एवं उत्साह पूर्वक मनाया गया गणतंत्र दिवस

 पंचायत एवं ग्रामीण विकास राज्यमंत्री
श्री देवसिंह सैयाम  ध्वजारोहण करते हुये
  डिण्डौरी जिले में गणतंत्र दिवस हर्षोल्लास एवं उत्साहपूर्वक मनाया गया। मुख्य समारोह स्थल पुलिस परेड ग्राउंड में समारोह के मुख्य अतिथि पंचायत एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री एवं जिले के प्रभारी मंत्री श्री देवसिंह सैयाम ने ध्वजारोहण कर परेड की सलामी ली। उन्होंने कलेक्टर श्री मदन कुमार और पुलिस अधीक्षक श्री आर.के.अरूसिया के साथ परेड का निरीक्षण किया और मुख्य मंत्री के संदेश का वाचन किया। इस अवसर पर प्रभारी मंत्री ने शांति के प्रतीक कबूतर और समृद्धि एवं अनेकता में एकता के प्रतीक रंगीन गुब्बारे आकाश में उड़ाये। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष श्री ओमप्रकाश धुर्वे, सांसद श्री बसोरी सिंह मसराम,सांसद श्री फ़ग्गन सिंह कुलस्ते विधायक ओमकार मरकाम,अध्यक्ष जिला-पंचायत  नगर पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सुशीला मार्को, श्रीमति ज्योति-प्रकाश धुर्वे, भा.ज.पा.अध्यक्ष संजय साहू, कैलाशचंद जैन, अशोक अवधिया, सहित, न्यायाधीश गण एवं प्रशासनिक अधिकारी और नागरिक उपस्थित थे। 
 सरस्वती उ० मा० विद्यालय डिण्डौरी 
    कार्यक्रम के प्रारंभ में ध्वजारोहण एवं मुख्य अतिथि के परेड निरीक्षण के बाद हर्षफायर और महामहिम राष्ट्रपति की जयघोष के पश्चात् रक्षित निरीक्षक विजय कुमार दुबे के नेतृत्व में परेड ने मुख्य अतिथि को मार्चपास्ट कर सलामी दी। परेड में एस.ए.एफ., जिला पुलिस बल, होमगार्ड, एन.सी.सी., सीनियर एवं जूनियर डिवीजल, गर्ल्स डिवीजन, एकलव्य आवासीय विद्यालय, सरस्वती शिशु मंदिर, स्काउट एवं गाइड, रेडक्रास सहित 16 प्लाटून ने भागीदारी निभायी। परेड के बाद मुख्य अतिथि द्वारा परेड कमांडरों से परिचय प्राप्त किया गया। इस अवसर पर स्कूलों के लगभग 800
छात्र-छात्राओं द्वारा सामूहिक व्यायाम प्रदर्शन किया गया। कार्यक्रम में जिले के स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के परिजनों के सम्मान के अंतर्गत स्वतंत्रता संग्राम सैनानी स्वर्गीय प्रभा चंद जैन की पत्नी श्रीमती शांति बाई जैन एवं स्वर्गीय रनमत सिंह की पत्नी श्रीमती रामकली बाई का मुख्य अतिथि द्वारा शाल एवं श्रीफल देकर सम्मान किया गया। 
    गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में मुख्य अतिथि श्री सैयाम द्वारा शासकीय कार्यों को उत्कृष्टता के साथ संपादित करने वाले अधिकारी कर्मचारियों  और जनगणना में उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिकारी कर्मचारियों को पदक एवं प्रषस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में आयोजित परेड में सीनियर वर्ग में जिला पुलिस बल को प्रथम और एस.ए.एफ. को द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ। इसी प्रकार जूनियर वर्ग में सी.व्ही.रमन शाला रेडक्रास को प्रथम और एन.सी.सी. जूनियर डिवीजन को द्वितीय घोषित किया गया। सामूहिक व्यायाम प्रदर्शन में आदर्श एकलव्य आवासीय विद्यालय प्रथम, बालक उ.मा.विद्यालय प्राचीन डिण्डौरी एवं सरस्वती बालिका उच्च.माध्य.शाला संयुक्त रूप से द्वितीय तथा बालिका माध्य. शाला प्रचीन डिण्डौरी एवं बालक सरस्वती शिशु मंदिर डिण्डौरी को संयुक्त रूप से तृतीय स्थान दिया गया। इसी प्रकार नगर के आठ विद्यालयों द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सरस्वती उच्च. माध्य. विद्यालय डिण्डौरी को प्रथम, राजूषा हाई स्कूल को द्वितीय, तथा मदर टैरेसा स्कूल एवं आदर्श एक लव्य आवासीय विद्यालय को संयुक्त रूप से तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। 

कार्यक्रम का संचालन
    समारोह में म.प्र. ग्रामीण आजीविका परियोजना, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, महिला एवं बाल विकास, कृषि विभाग, सामान्य वन मंडल, आदिम जाति कल्याण, स्वास्थ्य, जिला पंचायत, राजस्व मोबाइल कोर्ट, चलित स्वास्थ्य सेवायें, सर्वशिक्षा अभियान, ग्रामीण यांत्रिकी सेवा तथा नगर पंचायत द्वारा विभागीय योजनाओं की झांकी प्रदर्शित की गयी। झॉकी प्रदर्शन में कृषि विभाग को प्रथम, आदिम जाति कल्याण विभाग को द्वितीय और महिला एवं बाल विकास विभाग को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। अंत में आभार प्रदर्शन अपर कलेक्टर ए.पी.सिंह द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन परियोजना अधिकारी गिरीश बिल्लौरे और राजूषा हाई स्कूल की शिक्षिका श्रीमती नीतु नामदेव द्वारा किया गया।

21.1.13

जनतांत्रिक-चैतन्यता बनाम हमारे अधिकार और कर्तव्य

                 यही सही वक़्त  है जब कि हमें जनतांत्रिक संवेदनाओं का सटीक विश्लेशण कर उसे समझने की कोशिश करनी चाहिये. भारतीय गणतांत्रिक व्यवस्था में जहां एक ओर आदर्शों की भरमार है वहीं  सेंधमारी की के रास्तों की गुंजाइश भी है. जिनको अनदेखा करने  की हमारी आदत को नक़ारा नहीं जा सकता. हम हमेशा बहुत कम सोच रहे होते हैं. केवल जनतंत्र की कतिपय प्रक्रियाओं को ही जनतंत्र मान लेते हैं. जबकि हमें जनतंत्र के मूल तत्वों को समझना है उसके प्रति संवेदित होना है. अब वही समय आ चुका ज हमें आत्म-चिंतन करना है
                    हम, हमारे जनतंत्र किस रास्ते  ले जा रहें हैं इस मसले पर हम कभी भी गम्भीर नहीं हुए. हमारे पास चिंता के विषय बहुतेरे हैं जबकि हमें चिंतन के विषय दिखाई नहीं दे रहे अथवा हम इसे देखना नहीं चाहते. हमारी जनतांत्रिक संवेदनाएं समाप्त प्राय: नहीं तो सुप्त अवश्य हैं.वरना दामिनी की शहादत पर बेलगाम बातें न होंतीं. हम जनतंत्र के प्रति असंवेदित नहीं पर सजग नहीं हैं. न ही हमने इस बिंदु पर अपनी संतानों को ही कुछ समझाइश ही दी है. हम केवल चुनाव तक जनतंत्र  के प्रति संवेदित हैं ऐसी मेरी व्यक्तिगत राय है. क्या सिर्फ़ ई.वी.एम तक जनतंत्र होता है..? अथवा सरकार बनना बनवाना ही जनतांत्रिक गोल है..? शायद हमारी सोच ग़लत रास्ते पर जा रही है. तभी तो जनतंत्र के प्रति हम इससे ज़्यादा सोच ही नहीं पा रहे कि वास्तव में जनतंत्र में चैतन्य एवम संवेदित समाज का भावात्मक स्वरूप भी मौज़ूद  है. 
                                     बेलगाम बोलतें हैं, बेवज़ह बोलतें हैं, अपने कर्तव्यों से अधिक अपने अधिकारों के हनन नाम पर बखेड़ा खड़ा कर देते हैं. हम अपनी वोटिया ताक़त का ग़लत इस्तेमाल करने में भी नहीं चूकते. कभी भाषा तो कभी उत्तर दक्षिण, कभी बिरादरी ... अब बताएं जब संवैधानिक व्यवस्थाएं सबके लिये समान हैं तो क्यों ज़रूरी है सिगमेंट में जीना. विकास और रचनात्मकता के लिये सिगमेंट का होना ज़रूरी है ताक़ि छोटे-छोटे हिस्से को सुधारा जा सके किंतु जब चिंतन करना तो सामष्टिक ही किया जाना ज़रूरी है. 
                मूलभूल यानी अधोसंरचनात्मक विकास के लिये हम अज़ीब मानसिकता के पोषक हैं , हम चाहतें हैं कि विकास करे तो सरकार करे सही भी है किंतु जैसे ही हमें सरकारी तौर पर विकास का तोहफ़ा मिल जाता है उसका दुरुपयोग अगले ही पल हम शुरु कर देतें हैं.सबसे आम उदाहरण देखिये
 क्या  आपके मुहल्ले में नल है..?
हां है....!
उसमें टोंटी है..?
 न, 
कहां गई..?
कोई चुरा ले गया..?
                     और फ़िर आप अनाप-शनाप बोलेंगे सरकारी कर्मचारी के खिलाफ़ जिसे आपने कई बार कहा होगा टोंटी लगाने को. है न आपकी नज़र में वो नक़ारा बेईमान है. खूब कोस कर आपने  आपके मुहल्ले में आपके बीच रह रहे चोर यानी चोर-वृत्ति के खिलाफ़ एक शब्द भी नहीं बोला..? क्यों..?
                                          सरकारी इमदाद, और सुविधाओं के लिये हमारी चेतना में लुटेरों के सरीखी सोच भी बेहद निर्मम है. बिजली चुराना, पेड़ काटना, जंगली पशुओं के खिलाफ़ हिंसा , क्या क्या गिनाएं.. सरकार के अस्पतालों के प्रति तक हम बेहद नक़ारात्मक रवैया अपनाने से बाज़ नहीं आते. हमारी विचारधारा भी सेवाओं की गुणवत्ता पर विपरीत असर डालतीं हैं.
                                      सरकारी स्कूल के विद्यार्थी कथित अच्छे (जो प्रायवेट हैं ) स्कूलों के विद्यार्थियों से स्वयम को हीन महसूस करने लगे हैं. मामला इतना संगीन हो चुका है कि शिक्षा, चिकित्सा, एन.जी.ओ. के क्षेत्रों ने विशाल औद्योगिक सिगमेंट को आकार दे दिया है. सामान्य आय वर्ग का व्यक्ति/ परिवार को कुंठा के कुटीर में बंद कर देते हैं.
                            कारण जो भी हो  भारत की पुलिसिंग व्यवस्था को बार बार अपमानित और लांछित कर हमने उससे दूरी बना ली है.  अगर पुलिस   और जनता के बीच के अंतर्संबंध में विश्वासी-तत्व का अभाव होगा तो अराजकता की आग से छुटकारा मिलना मुश्किल है.
                वास्तव में देश के सम्पूर्ण विकास के अर्थ को समझना और समझाना ज़रूरी है अब. विकास का अर्थ मूलभूत सुविधाओं के विकास के  साथ साथ राज्य के प्रति राज्य की जनता की सोच में विश्वासी वातावरण की अनिवार्यता है. .. जिसे जनतांत्रिक-चैतन्यता नाम देना चाहूंगा.
     

20.1.13

आम आदमी से जुड़ा़ खास चेहरा श्री पी.नरहरि I.A.S.

आम आदमी से जुड़ा़ खास चेहरा
श्री पी.नरहरि I.A.S. ट्विटर पर
आम आदमी से जुड़ा़ खास चेहरा
श्री पी.नरहरि I.A.S. फ़ेसबुक पर

श्री पी. नरहरि को आम आदमी की मुश्किलों तक पहुंचने के लिये किसी भी स्थापित माध्यम की आवश्यकता नहीं वे जन-समस्याओं के लिये सीधे लोगों से जुड़े रहने के के लिये फ़ेसबुक एवम ट्विटर के इस्तेमाल में कोई गुरेज़ नहीं रखते. ये बात नहीं कि वे आवेदकों को समय नहीं देते नियमित रूप से आम आदमी के हाथों से उन तक पहुंचे आवेदनों का निपटारा भी बाक़ायदा तेज़ी से ही होता है. एक ज़ुनूनी व्यक्तित्व है नरहरी साहब का. मेरा परिचय एक बहुत छोटे मातहत के रूप में उनसे तब हुआ जब वे मेरे कार्यक्षेत्र में दौरे पर आए. उन दिनों हम इस कोशिश में थे कि मैदानी अमले को सिखाया जावे कि किस तरहा आंगनवाड़ी-कार्यक्रम को लोकप्रियता दी जा सकती है. संयोग वश मुझे नरहरी सर जो प्रोजेक्ट डायरेक्टर हुआ करते थे वाले दल में रखा मंडला के बीजाडांडी ब्लाक से लौटते वक़्त मैने श्रीमति तारा काछी द्वारा संचालित आंगनवाड़ी केंद्र तिलहरी में रुकने का अनुरोध किया. समय कम था इस लिये मुझे बस पांच मिनिट रुकने की शर्त पर आंगनवाड़ी केंद्र तिलहरी में रुकने के अनुमति मिली. उस दिन वहां हम गोद-भराई नवाचार के ज़रिये जनरुचि बढ़ाने वाला प्रयोग करने वाले थे.जैसा कि जबलपुर विकासखंड के अन्य कई आंगनवाड़ी केंद्रों में हम कर चुके थे ..इस नवाचार ने उनको तय समय से ज़्यादा रुकने पर मज़बूर किया. और मुझे इस बात का संतुष्टि की हमारा प्रयोग किसी ने देखा तो.
जबलपुर पहुंचते ही मुझे दल से यह कह कर बेदखल किया कि एक घंटे के भीतर आप नवाचार का राइटअप, प्रयोग काल की तस्वीरें, सम्भावित खर्च, परिणाम लेकर आओ.दो-तीन महीने बाद यह प्रयोग मंगल-दिवस के रूप में पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया.
      मेरा इस घटना को याद करने का ये अर्थ न निकाला जावे कि आत्म-प्रस्तुती कर रहा हूं घटना का जिक्र इस कारण कर रहा हूं कि आप जानें श्री नरहरि का आब्ज़र्वेशन काफी तीक्ष्ण है.उनकी निगाह हमेशा अच्छाई तलाशतीं हैं. नैगेटिविटी से परे पाज़िटिव थिंकर कलेक्टर ग्वालियर  श्री पी नरहरि आम आदमी के हित में सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बेहतर इस्तेमाल किया.और उन्हैं मिला इंटरनेट एण्ड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया तथा माइक्रोसॉफ्ट एडवरटाइजिंग इंडिया का एवार्ड। राष्ट्रीय स्तर पर दिये जाने वाला यह तीसरा अवार्ड है।
सोशल नेटवर्किंग साइट ‘फेसबुक’ और ‘टि्वटर’ पर कलेक्टर श्री नरहरि से लगभग 17 हजार फॉलोअर जुड़े हैं। फेसबुक एवं टि्वटर के जरिए उनके ध्यान में आईं 1,473 समस्याओं में से 1,322 का उन्होंने निराकरण भी कर दिया है। निराकरण की सूचना उन्होंने एसएमएस के जरिए संबंधित फॉलोअर तक पहुँचाई है। शेष समस्याओं को निराकृत करने के लिये कलेक्टर ने कुछ को न्यायालयीन, कुछ को जन-सुनवाई तो कुछ समस्याओं को टीएल की सूची में पंजीबद्ध करवाया है।
फेसबुक और टि्वटर के जरिये ग्वालियर के विकास के संबंध में महत्वपूर्ण सुझाव भी उन्हें मिले हैं। साथ ही इन सुझाव पर अमल के लिये फॉलोअप से सतत संवाद भी हुआ है। शहर के चौराहों और सड़कों का विकास तथा शहर के सौंदर्यीकरण से संबंधित इन सुझावों पर अमल भी किया गया है। शहर की ज्वलंत समस्याओं से संबंधित सोशल नेटवर्किंग साइटों के जरिए 1500 से अधिक सुझाव उन्हें मिले हैं।
जनसुनवाई, टीएल, जन शिकायत निवारण तथा अन्य माध्यम से प्राप्त हो रहे आवेदनों के त्वरित निराकरण के लिये भी जिले में सूचना प्रौद्योगिकी का सफल इस्तेमाल हुआ है। इन आवेदन का निराकरण ऑनलाइन किया जा रहा है। ऑनलाईन निराकरण व्यवस्था लागू होने से प्रकरणों के निराकरण में विशेष तेजी आई है। अब तक प्राप्त आवेदन में से लगभग 88 फीसदी आवेदन निराकृत हो चुके हैं। जन-सुनवाई आदि में प्राप्त आवेदन के निराकरण की स्थिति आवेदक ऑनलाइन देख सकते हैं। कलेक्टर ने सभी आवेदक से आग्रह कर रखा है कि वह आवेदन पर टेलीफोन और मोबाइल नम्बर जरूर लिखें ताकि उन्हें निराकरण की सूचना दी जा सके।

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आखिरी काफ़िर: हिंदुकुश के कलश

"आखिरी काफ़िर : हिंदूकुश के कलश" The last infidel. : Kalash of Hindukush"" ऐतिहासिक सत्य है कि हिंदूकुश प...