13.2.13

उनने देखा कि हम सलोनी भाभी को गुलाब दे रहें हैं. बस दहकने लगीं गुलाब सी .


             सच बताएं आज का वैलेंटाइन हमको सूट नहीं किया अखबार में राशिफ़ल वाले कालम में यही तो लिखा था . सुबह सवेरे हमारी शरीक़े-हयात ने हमसे कहा उपर गमलों से कुछ फ़ूल तोड़ लाएं . राजीव तनेजा जी की तरह हमने वी आर द बेस्ट कपल बने रहने के लिये उनकी हरेक बात मानने की कसम खाई थी. सो बस छत पर जा पहुंचे. जहां हमारे  बाबूजी ने बहुत खूबसूरत बगीचा लगवाया है.  हमने उसी बगीचे से खूब सारे फ़ूल तोड़े सीढ़ीयों से उतर ही रहे थे कि बाजू वाले घर  में  वाली गुजराती परिवार की  सलोनी भाभी ने देखा बोली:- अरे वाह, इतने गुलाब..किस लिये ले जा रहें हैं ?
 जी, पूजा के लिये ले जा रहा हूं...?
वो हमारे भोंदूपने पे ठिलठिला के हंस दीं बोली :- भाई साब, बड़े भोले हो या हमको मूर्ख समझते हो. 
हम:-"न भाभी सच पूजा के लिये ही हैं ! यक़ीन कीजिये " 
हां हां पूजा के लिये ही तो ले जाओगे कोई राखी के लिये थोड़े न ले जाओगे ...
अर्र भाभी सा’ब, आप भी हमारी श्रीमति जी पूजा कर रहीं हैं उनके लिये ही लाया हूं. 
ओह समझी मुझे लगा कि आप प्यारी सी भाभी को फ़ूल देने के बज़ाय किसी पूजा को .... मुहल्ले में पूजाओं की कमीं है क्या.. ?
हम - अरे भाभी जी, हम ऐसे नहीं हैं.. जी.. 
सलोनी भाभी: अच्छा..? तो ठीक है एक मुझे भी दे दीजिये ..हंसते हुए बोलीं  पूजा के लिये 
फ़िर लौट के आती हूं.. दीजिये न ज़ल्दी दीजिये  हमने जैसे ही उनको गुलाब पक़ड़ाया वे फ़ुर्ती में निकल पड़ीं   इसी बीच हमारी बीवी जी दरवाजे तक आ चुकीं थीं  उनने देखा कि हम सलोनी भाभी को गुलाब दे रहें हैं. बस दहकने लगीं गुलाब सी . और फ़िर क्या दिन भर जारी जंग. भगवान का आभारी हूं कि  श्रीमती जी को  सही समय पर बेलन न मिला वर्ना वेलेनटाइन डे को बेलन ट्राईंग डे में तब्दील होने में देर न होती. सुबह की झगड़ा रात का पानी देर तक चलता है. हमारी समस्या भी  तब जाकर हल हुई  जब सलोनी भाभी ये बताने घर आई की हमारी ननद पूजा ने आपके घर का गुलाब अमय को दे दिया दुआ कीजिये दौनों की जोड़ी पक्की हो जाए आज़ वैलेंटाइन डे है न 
 मैं भाई साब से बाबूजी की बगिया का  गुलाब ले गई थी पूजा के लिये.पूजा ने अमय को दिया. 
श्रीमति जी का क्रोध शांत हुआ हम ठहरे कवि किसी का एहसान पास नहीं रखते एक कविता भेंट कर दी उनको

प्रीत का पावन महीनाऔर तुम्हारा व्यस्त रहनाबताओ प्रिय और कब तकपड़ेगा मुझको ये सहना ?

चेतना में तुम ही तुम हो
संवेदना में भी तो तुम हो !
तुम पहनो या न पहनो
तुम्हारी मुस्कान गहना !!

लबों का थोड़ा सा खुलना
पलक का हौले से गिरना
समझ लेता हूं प्रिया तुम
चाहती हो क्या है कहना !!

मदालस हैं स्वर तुम्हारे
सहज हो  जब जब उचारे !
तुम्हारी सखियां हैं चंचल
उनसे तुम कुछ भी न कहना

4 टिप्‍पणियां:

नाचीज़ ने कहा…

Ehsaaso Ka Alfaazon mein
Kya khoob piroya hai

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सार्थक एव सुन्दर प्रस्तुती,आभार।

संध्या शर्मा ने कहा…

अरे वाह तो आप बच गए भाभी जी के बेलन से बधाई हो... वैसे आपकी इस सुन्दर कविता को पाकर तो वो सचमुच गुलाब सी खिल उठी होंगी...
तुम पहनो या न पहनो
तुम्हारी मुस्कान गहना !!
आप दोनों का स्नेह यूँ ही बना रहे... शुभकामनायें

dr.mahendrag ने कहा…

Bhai WAH,ye bhi khoob rahi

Wow.....New

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