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रविवार, फ़रवरी 10, 2013

एक पान हल्का रगड़ा किमाम और एक मीठा घर के लिये .............बिना सुपारी का..

        जाने कितने चूल्हे जलाता है पान .. कटक.. कलकतिया..बंगला. सोहागपुरी.. नागपुरी.बनारसी पानकिमाम.. रत्ना तीन सौ भुनी सुपारी और रगड़े वाला पान.. ऊपर गोरी का मकान नीचे पान की दुकान वाला पान जी हां मैं उसी पान की बात कर रहा हूं   जो नये पुराने रोजिया मिलने वाले दोस्तों को श्याम टाकीज़करम चंद चौकमालवीय चौक अधारताल घमापुररांझीइनकमटेक्स आफ़िस के सामने रसल-चौकप्रभू-वंदना टाकीज़ गोरखपुरग्वारीघाटयानी हर खास - ओ- आम ज़गह पर मिलता है. जबलपुर की शान पहचान है पान..!! 
एक पान हल्का रगड़ा किमाम और एक मीठा घर के लिये .............बिना सुपारी का.. जबलपुर  वाले रात आठ के बाद पान की दूक़ान पर अक्सर यही तो कहते हैं.. बड्डा हम जेई सुन के बड़े हुए और अब पान की दूकान में जाके जेई बोलते  हैं
     कॉलेज़ के ज़माने से  हम पान चबाने का शौक रखते हैं. चोरी चकारी से हमने पान में रगड़ा खाना शुरु किया. डी.एन.जैन कालेज़ में पढ़ने के दौर से अब तक  हमने जाने कितने पान चबाए   हैं हमें तो याद नहीं.. याद करके भी क्या करेंगें. हम को  तो यह भी याद नहीं कि  पान भंडारों पर हमारी  कितने पानों की उधारी बाक़ी है. वे भी हमको टोकते नहीं  काहे टोकेंगें टोके होते तो हम जाते उधर नहीं न बात जेई तो है कि पान वाला किसी को टोकता नहीं. उस दौर में जब हम कम उम्र वाले नौ सिखिया पान प्रेमी जबलपुरिया बने तब पान के रेट थे  चौअन्नी में कटक, पचास का बनारसी सोहागपुरीपचहत्तर का नागपुरी मिलता था. जैसे ही एक रुपये का हुआ तो बज़ट बिगड़ना स्वाभाविक था.बिगड़ते बजट में उधारी होना भी स्वभाविक था और कभी नक़द कभी उधारी में पान की आपूर्ति जारी रही. खैर पान में औषध गुण  के बारे में पढ़ा-सुना था सो हम पान खाते रहे किंतु आगे कब  रगड़ा  यानि   तंबाखू  इसमें शामिल हो गया हमें ये भी याद नहीं. कई दिनों यानी साल डेढ़ साल तक चोरी छिपे तम्बाकू खाते रहे. इसकी भनक  एक दिन  मां को लगी.  तम्बाखू खाने का लायसेंस हम तब हासिल कर पाए जब एक दिन तम्बाखू सेवन के सारे प्रूफ़ सहित बड़ी दीदी ने हमको रंगे हाथ तम्बाखू रगड़ते  धर दबोचा  खूब   लानत मलानत हुई हमारी. परंतु फ़िर उम्र का लिहाज़ करते हुए  घर की परम्परा अनुसार हमको भी  तम्बाखू सेवन का लायसेंस अघोषित रूप से इस सलाह के साथ मिला कि  ”  बहुत  कम खाना..समझे !
            अब मालवीय चौक वाले पान प्रदाता हमको मीठा पत्ता, हल्का रगड़ा, लौंग लायची बिना पिपर मिंट वाला पान बिना कहे पेश करने लगे. पान खाने के लिये हमने भी कई जगह नियत कर लीं थी विजेता पान भंडार, मालवीय चौक की चुनिंदा दुक़ाने, आशीर्वाद मार्केट के सामने नाले पर बनी दुक़ानों में से नाम याद नहीं शायद संजू की दुक़ान, मछरहाई वाले हिलडुल भैया,रेल्वे स्टेशन, डिलाइटयानी इन जगहों पर हमारी पसंद का पान उपलब्ध हो जाता था. कईयों को तो आज़ भी याद है. याददाश्त के मामले में जबलपुर के पान वालों का ज़वाब नहीं. आप हम भले सत्रह से उन्नीस तक के पहाड़े आज तक याद न कर पाए हों. पर उनको सब याद  रहता है
     शहर के नामी गिरामियों को ब्रांडेड पान खाने का शौक है.  नामचीन लोग जब अपने चिलमचियों को पान लाने का आदेश देते तो कुछ यूं कहते 
काय..रे,
बोलो भैय्या
जा मुन्ना कने जाके बोलना भैया के पान
      कौन भैया ! कैसा पान खाते हैं भैया !! इस चिलमची के आक़ा की च्वाइस  मुन्ना को मालूम है. नागपत्ती के व्यापारी मुन्ना या शंकर मेधावी होने पर हमको कोई शक नहीं वे भेजे गये चिलमची को एक झलक देखते और समझ जाते कि ये डा. सुधीर तिवारी का नौकर है इसको किस प्रकार का पान देना है. कितने पान भेजना है. चिलमची भी मुट्ठी के नोट बिना गिने  दूकान में रखता पान वाले भैया भी बिना गिने उसे गल्ले में समाहित कर देते यानी विश्वास की अनूठी मिसाल .. पूरा ट्रांजक्शन बिना किसी शक-ओ-शुबहा के ईमानदारी से भरा होता.   जब नौकरी शुदा हुए तो लखनऊ ट्रेनिंग कालेज से छुट्टी वाले दिन बारादरी जाकर मगही पान खाते थे पूरा हफ़्ता इस मौके का इंतज़ार किया करते थे हम गोविंद सिंह शाक्या जी को तो मगही पान का जोड़ा इत्ता भाता था के दो दिन की खुराक संग साथ धर लाते थे । 
पान वाला :- काय तुमने टी वी ले लओ ?
हम :- सबसे पहले और तुमने ?
पान वाला :- लेना है दो !
हम :- काय..! टीवी और दो पगला गए का ?
पान वाला :- पगलाओगे आप सब देखना ..
              तीसरे दिन भाई ने बताया कि उसने घर में भी एक टीवी लगवा लिया . दूकान वाली टी वी रंगीन हो तो उसपे रंगीन स्क्रीन अलग से फिट थी. मस्त दूरदर्शन दिखाता जिसके घर में टीवी न थे वो देर रात तक सुपर मार्केट के सामने पान चबाते टीवी देखते थे . सलमा सुलतान, मंजरी सहाय, पेन खोंसने वाले शम्मी नारंग तक अवश्य देखते . तब रिमोट न था सो पान वाले भैया की टीवी का बटन कत्थे से कत्थई हो गया था . दोनों  टीवी का पैसा पान की अनायास बढ़ी बिक्री से तीन चार महीने में वापस . उसकी देखा देखी कई सारे पान शाप पे टीवी लग गए थे .
          पान की दूकान पे अब सियासी और देश विदेश में हो रही तरक्की और  संचार योजनाओं पर चर्चा आम हो गई थीं.
         दूरदर्शन पान की दूकान और ग्राहक तीनों के मध्य  एक दीर्घकालिक नाता स्थापित हो गया. कुल मिला के जबलपुरिया बदलाव के इस संस्मरण को लिख कर मन बेहद भावुक इस लिए हो रहा है कि अब न तो हम मालवीय चौक जा पाते न सुपर मार्केट ..... नेट पे आप सबको संस्मरण सुनाने लायक रह गए है .......

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