18.1.12

कविता और गीत : गिरीश बिल्लोरे मुकुल

कविता


"विषय '',
जो उगलतें हों विष
उन्हें भूल 


अमृत बूंदों को
उगलते
कभी नर्म मुलायम बिस्तर से
सहज ही सम्हलते
विषयों पर चर्चा करें
अपने "दिमाग" में
कुछ बूँदें भरें !
विषय जो रंग भाषा की जाति
गढ़तें हैं ........!
वो जो अनलिखा पढ़तें हैं ...
चाहतें हैं उनको हम भूल जाएँ
किंतु क्यों
तुम बेवज़ह मुझे मिलवाते हो इन विषयों से ....
तुम जो बोलते हो इस लिए कि
तुम्हारे पास जीभ-तालू-शब्द-अर्थ-सन्दर्भ हैं
और हाँ 


तुम अस्तित्व के लिए बोलते हो-
इस लिए नहीं कि 

तुम मेरे शुभ चिन्तक हो । 

शुभ चिन्तक 
रोज़ रोटी 
चैन की नींद !!

गीत:-

अनचेते अमलतास नन्हें
कतिपय पलाश।
रेणु सने शिशुओं-सी
नयनों में लिए आस।।
अनचेते चेतेंगें
सावन में नन्हें
इतराएँगे आँगन में
पालो दोनों को ढँक दामन में।
आँगन अरु उपवन के
ये उजास।

ख़्वाबों में हम सबके बचपन भी
उपवन भी।
मानस में हम सबके
अवगुंठित चिंतन भी।
हम सब खोजते
स्वप्नों के नित विकास।।

मौसम जब बदलें तो
पूत अरु पलाश की
देखभाल तेज़ हुई साथ
अमलतास की
आओ सम्हालें इन्हें ये तो
अपने न्यास।।

17.1.12

कुछ तो है दुनिया में अच्छा..क्या हर तरफ़ बुराई है ?

हम कह दें वो अफ़साने और तुम कहदो तो सच्चाई
बोल बोल के  झूठ इस तरह शोहरत तुमने पाई है ...!!
****************
जैसा देखा इंसा सनमुख वैसी बात कहा करते हो
लगता है गिरगिट को घर में मीत सदा रक्खा करते हो
बात मेरी बिखरे आखर हैं और तुम्हारी रूबाई है...!!
    बोल बोल के  झूठ इस तरह शोहरत तुमने पाई है ...!!

****************
मन चाहा लिक्खा करते हो मनमाना नित बोल रहे हो
चिंतन हीन मलिन चेहरे को  लेके इत उत डोल रहे हो
कुछ तो है दुनिया में अच्छा..क्या हर तरफ़ बुराई है ?
    बोल बोल के  झूठ इस तरह शोहरत तुमने पाई है ...!!
*****************



तू चाहे मान ले भगवान किसी को भी हमने तो पत्थरों में भगवान पा लिया !!




उनको यक़ीन हो कि न हो हैं हम तो बेक़रार
चुभती हवा रुकेगी क्या कंबल है तारतार !!
मंहगा हुआ बाज़ार औ’जाड़ा है इस क़दर-
हमने किया है रात भर सूरज का इंतज़ार.!!
हाक़िम ने  फ़ुटपाथ पे आ बेदख़ल किया -
औरों की तरह हमने भी डेरा बदल दिया !
सुनतें हैं कि  सरकार कल शाम आएंगें-
जलते हुए सवालों से जाड़ा मिटाएंगें !
हाक़िम से कह दूं सोचा था कि सरकार से कहे
मुद्दे हैं बहुत उनको को ही वो तापते रहें....!
लकड़ी कहां है आपतो - मुद्दे जलाईये
जाड़ों से मरे जिस्मों की गिनती छिपाईये..!!
 जी आज़ ही सूरज ने मुझको बता दिया
कल धूप तेज़ होगी ये  वादा सुना दिया !
तू चाहे मान ले भगवान किसी को भी
हमने तो पत्थरों में भगवान पा लिया !!
 कहता हूं कि मेरे नाम पे आंसू गिराना मत
 फ़ुटपाथ के कुत्तों से मेरा नाता छुड़ाना मत
 उससे ही लिपट के सच कुछ देर सोया था-
ज़हर का बिस्किट उसको खिलाना मत !!

15.1.12

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव का सम्मान समारोह के साथ समापन


तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव का दिनांक 12 जनवरी को सम्मान समारोह के साथ समापन हुआ जिसमें प्रसिद्द साहित्यकार कुंवर नारायण द्वारा देश – विदेश के हिंदी साहित्यकारों , विद्वानों को सम्मानित किया गया । इनमें भारत मे बल्गारिया के राजदूत श्री  कोस्तोव, प्रसिद्ध लेखिका चित्रा मुद्गल, प्रसिद्ध शायर शीन काफ निज़ाम, इटली के प्रो. श्याम मनोहर पांडेय,  प्रवासी साहित्यकार  उषा राजे सक्सेना, ( ब्रिटेन) शैल अग्रवाल,( ब्रिटेन) अनिता कपूर ( अमरीका), दीपक मशाल, ( उतरी आयरलेंड) स्नेह ठाकुर ( कनाडा) कैलाश पंत, महेश शर्मा, विमला सहदेव को पुरस्कार प्रदान किया गया।
सम्मान प्रदान करते हुए श्री कुंवर नारायण ने कहा कि भाषा और साहित्य के क्षेत्र में गहन अध्ध्यन और शोध की आवश्यकता है। उन्होंने मध्यकाल में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा भारतीय ज्ञान को एशिया और दूरस्थ देशों में ले जाने को प्रेरणा का स्रोत बताया। उन्होंने  पुस्तकें ले जाते बोद्ध भिक्षुओं को  संस्कृति का वाहक बताया। उन्होने सम्मान विजेताओं को पुरस्कार देते हुए कहा कि उनकी हिदी के प्रति निष्ठा और समर्पण की सराहना की । रत्नाकर पांडेय ने इस अवसर पर आयोजकों प्रवासी दुनिया , अक्षरम और हंसराज कालेज की सराहना करते हुए कि हिंदी का विकास केवल सरकार के माध्यम से संभव नहीं है।
सम्मान समारोह के तुरंत पश्चात अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया । यह सम्मेलन इस बार बाल स्वरूप राही जी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में था। इस कवि सम्मेलन में देश के प्रमुख कवियों उदय प्रताप सिंह, सुरेन्द्र शर्मा, शेरजंग गर्ग कुंवर बैचेन, नरेश शांडिल्य , सर्वेश चंदोसवी,आलोक श्रीवास्तव, अल्का सिन्हा और विदेश से उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, स्नेह ठाकुर, अनिता कपूर, दीपक मशाल आदि  काव्य पाठ का सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने देर रात तक आनंद लिया। इस अवसर पर बालस्वरूप राही के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाशित स्मारिका और उनकी ओर पुष्पा राही की पुस्तकों का लोकार्पण किया गया।
इससे पूर्व सुबह के सत्रों में वर्ष 2050 में हिंदी और भारतीय भाषाएं विषय में हिंदी के भविष्य के संबंध में व्यापक विचार –विमर्श किया गया। असगर वजाहत ने चर्चा की शुरूआत  करते हुए। विश्वविद्यालयों, अकादमियों. राजभाषा और गैर –सरकारी क्षेत्र में हिंदी की दुर्दशा का विश्लेषण किया। अभय दुबे ने हिंदी और भारतीय भाषाओं को पारिभाषात करते हुए कहा कि हिंदी राष्ट्रभाषा और राजभाषा नहीं अपितु संपर्क भाषा है। प्रभु जोशी ने हिंदी की दुर्दशा के लिए एक गहरे षड्यंत्र का उल्लेख किया । उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकारी अधिकारी, मीडिया और मैकालेपुत्र जिम्मेदार हैं। कैलाश पंत ने हिंदी के संबंध में सकारात्मक पक्षों की ओर ध्यान दिलाया। राहुल देव ने विचारोत्तेजक भाषण में सूत्र दिया अपनी भाषा में अपना भविष्य और युवकों को भाषा के संबंध में बड़े बदलाव का आह्वान किया। बहुत से युवाओं ने इस अभियान से जुड़ने के लिए स्वयं को प्रस्तुत किया । अनिल जोशी ने इसके लिए संयोजित और संगठित प्रयास करने पर बल दिया । उन्होंने कहा कि हिंदी का संस्थागत फ्रेमवर्क बहुत कमजोर है।
तीन दिन का यह कार्यक्रम प्रवासी दुनिया , अक्षरम और हंसराज कालेज की ओर से किया गया था।
विदेशों में हिंदी शिक्षण विषय पर विचार व्यक्त करते हुए केन्द्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष अशोक चक्रधर ने विदेशों में हिंदी शिक्षण की चुनौतियों पर सिलसिलेवार बात की और एकरूपता और मानकीकरण के संबंध मे किए जा रहे उपायों के संबंध में बताया। डा विमलेश कांति वर्मा ने अपनी सूरीनाम और त्रिनिडाड की यात्रा में आए अनुभव बांटे । डा  श्याम मनोहर पांडेय ने इटली में 30 वर्षों के सुदीर्घ अनुभव के आधार पर शिक्षण की प्रविधियों की चर्चा की। वीरेन्द्र भारद्वाज ने दक्षिण कोरिया के अपने अनुभवों का ब्यौरा दिया।
रिपोर्ट-स्रोत :- प्रवासी दुनिया     http://www.pravasiduniya.com

13.1.12

नाई के नौकर की समयबद्धता और और भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार..

                                                   बिना शेव चेहरा जाहिल गवांरपने से लबालब होना साबित करता है पर गुरुवार घर में सेव करने की सख्त पाबंदी के चलते आफ़िस जाने से पहले यादव कालोनी के  श्रेष्ठ सैलून चोरी से पर जाना लाज़िमी था  सो चले गये. धर्म भीरू हम मन ही मन भगवान की प्रार्थना करते निकल पड़े ड्रायवर बोला -सा’ब, आफ़िस..?
न, ज़रा यादव कालोनी होके चलतें आफ़िस शेविंग कराके ही जाऊंगा. डर था कि  चपरासी समुदाय और बाबू साहबान क्या सोचेंगे.बोलेंगे भी. आज़ बिल्लोरे जी को तो देखो कैसे दिख रए हैं..बस इसी इकलौते भय से  भगवान को मन ही मन सैट किया और सैलून में जा घुसे..
दो बंदे एक मालिक दूसरा उसका कर्मचारी बाक़ायदा अभिवादन की औपचारिकता के साथ खाली कुर्सी पे बैठने का आग्रह करते नज़र आये.मेरी शेविंग के लिये दौनों में अबोला काम्पीटिशन चल पड़ा मालिक ने तेज़ आवाज़ में चल रहे  टी.वी. को कम करने की हिदायत मातहत को दी घर से हनुमान चालीसा पाठ बांचने के बाद "कोलावरी-डी" बहुत सुकू़न से सुनने की तमन्ना तो भी मैने शराफ़त और सदाचारी होने का अभिनय किया. कर्मचारी को दूसरे काम में लगा कर मालिक मेरे पास आ के बोला "तो शेविंग बस.."
हां भई.. ज़ल्दी जाना है मीटिंग  बस शेव करो..
      गुनगुना पानी तेज़ शीत लहर के दबाव में बार बार अपने मूल स्वरूप में लौट रहा था कि एक आवाज़ सुनाई दी बीस बाइस साल का लड़का दूसरे दोस्त से कहता सुना गया-"अरे, बस घण्टे आध घण्टे में निकल जाऊंगा तुम भी चेहरा साफ़ करालो "
दूसरा लड़का बोला-भाई न मुझे कराना है चेहरा साफ़ नही मुझे इस सब की आदत है
अर्र.. पैसा कौन तुम दोगे ....
दूसरा लड़का स्पष्ट रूप से बोला-"भाई, पैसे मैं न दूंगा तो फ़ेश क्लीनिंग मैं क्यों कराऊं"
अरे मेरी गर्लफ़ैण्ड क्या सोचेगी...
वो तुम्हारी है मुझसे क्या...
           काफ़ी देर तक हां-ना का धंधा चला दोस्तों के बीच अंतत: पहला वाला युवक कुर्सी पे जा धंसा बोला-यार भाई, शाम को गर्ल-फ़्रैण्ड की सगाई  है तुम ऐसा कुछ करो कि चेहरे में ग्लो कम से कम शाम तक रहे.                
                                पिंड खजूरी चेहरे में ग्लो.. मन ही मन मुझे हंसी आ गई हंसी एक्स गर्ल-फ़ैण्ड की सगाई में जाने के उछाह को देखकर भी आ रही थी. यानी अहम नाते की अर्थी निकलना आज की जनरेशन को सहजता से स्वीकार्य है... तू नहीं और सही .....
            इसी बीच ऐन मेरी कार के पीछे पासिंग-शो सिगरेट की तरह कृशकाय युवक ने अपनी कार लगाई और कोलावरी डी गुनगुनाते  हुए सैलून में घुसा उसका प्रवेश ही इतना अभद्र था कि उस युवक को आप गुण्डे की संज्ञा  दे सकते हैं शोहदा बोल सकते हैं
 बारबर से बड़े अक्खड़पन से उस शोहदे ने पूछा-"आज तुम और ये बस बाक़ी..."
"बाक़ी आज़ देर से आते हैं गुरुवार है न" यानी तुम तो मालिक हो ये तो नौकर होके टाइम पे हाज़िर हो गया इस जैसे दो चार और हो जाएं तो देश भ्रष्टाचार खतम समझो.. ही ही जै अन्ना महराज़ की..
     मेरी खोपड़ी "नाई के नौकर की समयबद्धता और और भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार " को लेकर जंग छिड़ गई तभी अनायास मैं पूछ बैठा-बेटे, इसके समय पर काम पर आने से भ्रष्टाचार का क्या नाता है..?
        उसका जवाब आने लगा कि मेरे शेविंग करने वाले ने फ़रमाया.. सर ज़रा मुण्डी सीधी हां अब ठीक है.
 वो लड़का बोल रहा था-"अंकल, देश के सारे लोग अपना कम ईमान दारी से करें तो भ्रष्टाचार दूर होगा कि नहीं "
  बात तो सही थी पर समीकरण मेरी खोपड़ी को नामंज़ूर था. सो मैने पूछ लिया-तुम क्या पढ़ाई करते हो..?
 न,मैं रुपए कमाता हूं..?
वाह, यानी नौकरी

तो
धंधा करता हूं
दो माह में मैने तीन लाख रुपए कमाए..पूरी मेहनत से काम करता हूं
                         इधर साला पूरा छै महीने लगते हैं तीन लाख तब कमा पाते हैं. इस शोहदे को दो महीने में तीन लाख..?
उसकी बात सुनकर गुस्से से मेरे दाढ़ी के एक एक बाल खड़े हो गए और क्या  खर्र-खर्र दाढ़ी सफ़ा चट्ट हो गई . मैने पूछा -ऐसा कौन सा अंनात्मक कार्य करते हो कि माह में डेढ़ लाख कमा लेते हो
"अंकल प्लाट-खरीद-बेच करता हूं...दिन के दूने हो जाते है"
                           सच कितना ईमानदार है मेरा देश का युवा कितना सच्चा चरित्र है उसकी नज़र से भ्रष्टाचार काश अन्ना जी को नज़र आ जाता तो "मैं अन्ना हूं कहने वाले हरेक सख्श को अन्ना जी आप जान लेते भीड़ में वास्तविक रूप से कितने अन्ना है आप जान लेते"
                      तभी मुंह से निकल गया तो यानी तुम दूध से धुले हो बेटे ..?
 "हां अंकल,दूध से एकदम धुला हूं पर दूध ही मिलावट वाला है ..? -पूरी मक्कारी थी उस की आवाज़ में
   अपनी मां के दूध को लजाते उस युवक को सड़क पर एक लक्ज़री कार जाते दिकी अऔर वो सैलून मालिक की ओर मुखातिब हो के बोला-"अरे लगता है मेरा बाप जा रहा है.. पर इत्ती ज़ल्दी !!"


12.1.12

नन्हां दिन जाड़े का


मेरा ट्रेनिंग कालेज 


जनवरी-दिसंबर 1996 की यादें आज ताज़ा हो आईं .नौकरी में ट्रेनिंग की ज़रूरी रस्म के लिये  लखनऊ के  गुड़म्म्बा गांव में हमें  ट्रेनिंग कालेज . ट्रेनिंग के लिये भेजा सरकारी फ़रमान का अनादर करना हमारे लिये नामुमकिन था. सो निकल पड़े . जाते वक़्त ये याद न रहा कि उत्तर भारत में गज़ब जाड़ा पड़ता है.  सुईयां चुभोती शीतलहर और उत्तर भारत के जाड़े का एहसास मेरे लिये बिलकुल नया था सच इतनी सर्दी से मुक़ाबले का मौका मेरे लिये पहला ही था.


   इतनी सर्दी कि शरीर को गर्म रखना मेरे लिये एक भारी आफ़त का काम था. वो लोग जिनको जाड़ा जाड़ा महसूस न होता उनको देखना मेरे लिये अचम्भे की बात थी.जाड़ा तो जबलपुर में भी गज़ब होता है पर हिमालय को चूम के आने वाली हवाएं बेशक हड्डियों तक को बाहर पडे़ लोहे के सरिये की तरह ठण्डी जातीं थी वहां.उस दिन जब मेरा सब्र टूट गया तब मित्र ने कहा भाई कुछ लेते क्यों नहीं..?
    उस रविवार लखनऊ घूमने की गरज़ से हम दोस्त विक्रम पे सवार हो निकल पड़े खूब पैदल घूमें चिकन के कपड़े खरीदे सोचा रिक्शे की सवारी कर लें जबलपुरिया रिक्शों से अलग लखनवी रिक्शे छोटे और बहुत सस्ते थे पांच किलोमीटर तक घुमाया था उसने मालूम है हम दो लोगों से भाड़े के नाम पर कितना लिया..? बस दो -दो रुपये मैने कहा-अशोक भाई ये क्या मांग रहा है, बूढ़ा रिक्शे वाला घबरा गया था मेरे सवाल को सुन बोला सा’ब, एक रुपया कम देदो..! 
     हम हंस दिये जेब से दस का नोट निकाला और दे दिया रिक्शे वाला बोला-"छुट्टा नईं है साब," अशोक जी बोले मांग कौन रहा है दादा जाओ तुमको दस देना चाहते हैं. हमारे चेहरे ताक़ता बूढ़ा गोया नि:शब्द आभार कह रहा हो. गुड़म्म्बा का नाई भी दो रुपये में दाढ़ी-कटिंग-चम्पी करता था. 
 जाड़े से बचने के लिये दो घूंट अल्कोहल .फ़िर खुद ब खुद बोला.. न भाई न हम लोग हास्टल के नियम भंग क्यों करें . बाज़ार से बोरे खरीद लाए हम जमीन पे बिछाने न बिस्तर के नीचे बिछा लिये थे तब जाकर लगा कि बिस्तर सोने लायक है. रूम पार्टनर बोला-यार अगर रजाईयां जाड़ा न रोक पाएं तो क्या करेंगे ?
"रजाई और कम्बल के बीच लगा लेंगे बोरे हा हा हा "
    बाहर बर्फ़ीली हवाएं हिटलर ब्राण्ड डायरेक्टर साहब का हीटर पर प्रतिबंध लकड़ी फ़ाटे से गुरसी जलाने का ज्ञान न होना कम ऊलन कपड़े यानी कुल मिला कर पिछले जन्म के पापों  की सजा भोगने जैसी स्थिति . उधर हर सुबह टाइम पे यानी नौ बजे  क्लास में पहुंचने की अनिवार्यता ..सोच रहा था किसी डाक्टर को सेट करके बीमारी के बहाने छुट्टी चला जांऊं रूम पार्टनर बोला -"यार, साला इधर के मेडिकल कालेज में भर्ती करा दिया इन लोगों ने तो घर वाले भी बेक़ार परेशान हो जाएंगे" सो हमने अपने पलायन का विचार किनारे रख दिया. एक दिन यानी 15 दिसम्बर के आस पास बताया गया कि अब गांव में जाना होगा हम सबको. रोज़ सुबह आठ बजे बस रवाना होगी . तय शुदा कार्यक्रम के मुताबिक हम अगले दिन गुड़म्म्बा और कुर्सी रोड के बीच के गांवों में छोड़ दिये गये जहां हमको आंगनवाड़ी सहायिकाओं, कार्यकर्ता से लेकर मातहत सुपरवाईज़र के काम देखने थे. 
          इस दौरान होम-विज़िट भी पाठ्यक्रम के मुताबिक़ करनी होती थी. उस गांव में सभी लोग मज़दूर थे मर्द बाहर काम पे जाते थे औरतें चिकन वर्क करतीं . मंहगे दामों में बाज़ार में बिकने वाले चिकन वर्क वाले कपड़ों को खूबसूरत बनाने वाले धंसी आखों वाले जिस्म उन औरतों के थे जो दिन भर में एक दो कुर्ते तैयार कर पातीं थीं . एक लड़की जो वहां की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थी ने  मुझे सब कुछ बताया गांव -स्वास्थ्य सुविधाएं, पानी, बिजली सब के बारे में बताया. मैने पूछ ही लिया-"तुम कम से कम ग्रेजुएट तो हो मुझे लगता है "
आंखों में उदासी छा गई फ़िर अचानक बोली-"हां सर, बी एस सी सेकण्ड के आगे न पढ़ सकी"
तभी अंदर से आवाज़ आई -"बेटा भीतर भेज दो साहब को"
   दलान में जूते उतार जब कमरे में गया तो बिस्तर पर पड़ा एक अधेड़ जो किसी दुर्घटना का शिक़ार लगता था  सम्मान से आगवानी के लिये उठ बैठने की असफ़ल कोशिश करने लगा. उसके बिस्तर का मुआयना करने पर पाया खटिया उसपर पुआल बोरा एक गंदा सी गद्दा उस पर मैली चादर फ़िर वह आदमी. पास ही में गुरसी जिसकी आग उसकी बेटी बार बार चेताने ही जाती होगी. गुरसी में आग थी किसी मुद्दे पर वो कुछ कहना चाह रहा था पर मौन मुझे देख रहा था फ़िर अचानक बोला-"ट्रेनिंग पे आए हो ?"
"हां"
किधर से बाबू..
मध्य-प्रदेश से..जनते हो..
हां जबलपुर गया था एक बार 
हां, मैं वहीं से हिइं..
हम कायस्थ हैं..
अच्छा आप किस बिरादरी के हो 
तबी लड़की चाय ले आई 
बिरादरी से ब्राह्मण हूं पर शादी शुदा हूं 
कोई कायस्थ है ट्रेनिंग में तुम्हारे साथ..
हां, एक तो बिहार का, डिप्टी कलेक्टर है. 
उसे लाना बेटा 
पर वो भी शादी शुदा है
    ओह तब ठीक है भगवान की जैसी मर्जी. 
अगले दिन मैं फ़िर उसी गांव में गया उस लड़की से पूछा-"तुम्हारे पिता बहुत परेशान हैं उनका इलाज़ हो तो सकता है न ..?"
 हां, हो सकता है साहब , उनको मुआवज़े के दो लाख रुपए मिले थे बैंक में जमा रखते हैं बोलते हैं मेरे दहेज में खर्च करेंगे .
पता नहीं उस अधेड़ के संकल्प का क्या हुआ होगा 

8.1.12

खाली होता यमन


डैनियल
पाइप्स


मौलिक अंग्रेजी सामग्री: The Emptying of Yemen
हिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी
  साभार स्रोत :-"डेनियल पाइप्स ओआर्जी"



अपने लम्बे इतिहास में शाय पहली बार यमन ने बाहरी विश्व के लिये खतरा उत्पन्न किया है। मुख्य रूप से यह खतरा ो प्रकार से है।
पहला, 15 जनवरी को आरम्भ हुए राजनीतिक उठा पटक से पहले ही यमन की हिंसा की लपट पश्चिमवासियों तक पहुँचने लगी थी। जैसा कि राष्ट्रपति अली अब्ुल्लाह सालेह की कमजोर सरकार का नियंत्रण ेश के एक छोटे भाग तक ही सीमित है तो हिंसा यमन के निकट ( जैसे कि अमेरिकी और फ्रांसीसी जहाजों पर आक्रमण ) और सुूर ( अनवर अल अवलाकी ्वारा टेक्सास, मिचीजन और न्यूयार्क में भडकाये गये आतंकवा) तक िखी । 4 जून को श्रीमान सालेह ्वारा लगभग पलायन करने की स्थिति कि जब वे चिकित्सा के लिये सउी अरब की यात्रा कर रहे हैं तो कें्रीय सरकार की शक्ति और भी क्षीण होगी। यमन अब हिंसा के निर्यात का अधिक बडा कें्र बनने की तैयारी में है।
लेकिन ूसरा खतरा मस्तिष्क को अधिक झकझोरने वाला है वह है अ्वितीय ढंग से यमन का खाली होना जिससे कि लाखों की संख्या में अप्रशिक्षित और अनागंतुक शरणार्थी जिसमें कि अधिकाँश इस्लामवाी हैं पहले तो मध्य पूर्व में और फिर पश्चिम में आर्थिक शरण की माँग कर रहे हैं।
इस समस्या का आरम्भ विनाशकारी जलाभाव से हुआ है। इस विषय के विशेषज्ञ गेरहार्ड लिचेनहेलर ने वर्ष2010 में लिखा कि किस प्रकार ेश के अनेक पहाडी क्षेत्रों में , " जलाशयों में उपलब्ध जल कम होकर प्रति व्यक्ति चौथाई गैलन रह गया। इन जलाशयों को इतने गहरे तक खोा गया कि जलस्तर प्रति वर्ष 10 से 20 फीट नीचे गिरता गया, इससे कृषि को खतरा उत्पन्न हो गया और प्रमुख शहरों में सुरक्षित पीने के जल की पर्याप्त मात्रा का अभाव हो गया है । साना विश्व का पहला राजधानी शहर होगा जो कि पूरी तरह सूख गया है" ।
और केवल साना ही नहीं जैसा कि लंन टाइम्स के मुख्य शीर्षक ने कहा है, " यमन ऐसा पहला ेश होगा जहाँ कि जल का अभाव उत्पन्न होगा" । इस स्तर की अतिशय स्थिति आधुनिक समय में उत्पन्न नहीं हुई थी जबकि इसी परिपाटी मे सूखे सीरिया और इराक में भी हुए हैं।
स्तम्भकार डेविड गोल्डमैन ने संकेत िया है कि खा्य संसाधनों के अभाव के चलते मध्य पूर्व में बडी संख्या में लोगों के भूखा रहने का संकट उत्पन्न हो गया है और इसमें भी यमन में आरम्भ हुई अशांति से पूर्व ही एक तिहाई यमन के लोग भूख से पीडित थे । यह संख्या तेजी से बढ रही है।
आर्थिक स्थिति के सिकुडने की सम्भावना िनों िन बढ्ती ही जा रही है। तेल की आपूर्ति तो इस स्तर तक घट गयी है कि, " ट्रक और बस पेट्रोल स्टेशन पर बढी संख्या में लोग घन्टों तक भीड में लगे रहते हैं , जबकि जल की कमी और बिजली की कटौती तो रोजमर्रा का अंग बन चुका है" । उत्पाक गतिविधि अपेक्षाकृत पतनोन्मुख है।
मानों जल और खा्य कोई बडी चिंता नहीं थी कि यमन विश्व में जन्मर के मामले में सबसे आगे है और इसने संसाधनों के संकट को और भी गम्भीर कर िया है। प्रत्येक स्त्री का संतान उत्पत्ति का औसत 6.5 है और प्रत्येक 6 में से 1 स्त्री हर समय गर्भवती ही रहती है। ऐसी भविष्यवाणी की जा रही है कि 2.4 करोडकी जनसंख्या अगले 30 वर्षों में ुगुना हो जायेगी।
राजनीति समस्या को अधिक गम्भीर बना ेती है। यि यह मान भी लें कि श्रीमान सालेह का शासन इतिहास का विषय हो गया है ( सउी उन्हें नहीं जाने ेंगे और साथ ही अनेक घरेलू विरोधी भी उनके विरु्ध उठ खडे हुये हैं) तो उनके उत्तराधिकारी को उस छोटे से भाग पर शासन करने में भी कठिनाई होगी जिस पर अभी उनका शासन है।
अनेक धडे विरोधाभासी उेश्य के साथ सत्ता के लिये संघर्ष कर रहे हैं , सालेह की सेना, उत्तर में हूती वि्रोही , क्षिण में अलगाववाी , अला काया तरीके की शक्तियाँ , एक युवा आंोलन , सेना, अग्रणी कबीलाई और अहमर परिवार। एक ऐसा ेश जो कि वास्तव में " कबीलाई व्यवस्था पर आधारित है और सैन्य अधिनायकवाी जैसा िखता है" वहाँ सोमालिया और अफगान की तर्ज पर अराजकता की सम्भावना अधिक िखती है न कि गृह यु्ध की।
यमन के इस्लामवाी इस्लाह राजनीतिक ल से लेकर जो कि संसीय चुनाव में भाग लेता है सउी सेना से टक्कर लेने वाले हूती वि्रोही और अरब प्राय्वीप में अ‍ल काया तक बिखरे हैं। उनकी बढ्ती शक्ति ईरान समर्थित राज्यों और संगठनों के " प्रतिरोध खंड" को बल प्रान करती है । यि यमन में शिया सुन्नी पर भारी पड्ते हैं तो इससे तेहरान को ही लाभ होगा।
कुल मिलाकर पर्यावरणिक , आर्थिक, राजनीतिक, विचारधारागत संकट यमन से एक असाधारण , सामूहिक और ुर्भाग्यपूर्ण पलायन को प्रेरित करेगा और इससे एक विशाल यमन विरोधी प्रतिक्रिया की स्थिति उत्पन्न होगी।
व्यक्तिगत रूप से एक छात्र के रूप में 1972 में यमन के यात्रा कर मैं अत्यंत प्रभावित हुआ था। एक ऐसी भूमि जिस तक पहुँचना अत्यंत कठिन था और औपनिवेशक इसके कुछ ही भाग तक प्रवेश कर सके उसने अपनी परम्परा, अपनी विशिष्ट स्थापत्य, विशेष पहनावे को सँभाल कर रखा।
क्या बाहरी विश्व इस विनाश को रोक सकता है? नहीं, यमन की पहाडी स्थिति , संस्कृति और राजनीति सभी कुछ सैन्य हस्तक्षेप को लगभग असम्भव बनाती है और इस समय जबकि पश्चिम चुकी सी स्थिति में है और सउी डरे से हैं तो कोई भी इस डहती अर्थव्यवस्था का ायित्व अपने ऊपर नहीं लेना चाहेगा। न ही राज्य आगे बढकर लाखों लाख आवश्यकता के मारे शरणार्थियों को लेना चाहेगा। इस घोर अंधकार मे यमनवासी अपने साथी स्वयं ही हैं।

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