Ad

गुरुवार, जनवरी 12, 2012

नन्हां दिन जाड़े का


मेरा ट्रेनिंग कालेज 


जनवरी-दिसंबर 1996 की यादें आज ताज़ा हो आईं .नौकरी में ट्रेनिंग की ज़रूरी रस्म के लिये  लखनऊ के  गुड़म्म्बा गांव में हमें  ट्रेनिंग कालेज . ट्रेनिंग के लिये भेजा सरकारी फ़रमान का अनादर करना हमारे लिये नामुमकिन था. सो निकल पड़े . जाते वक़्त ये याद न रहा कि उत्तर भारत में गज़ब जाड़ा पड़ता है.  सुईयां चुभोती शीतलहर और उत्तर भारत के जाड़े का एहसास मेरे लिये बिलकुल नया था सच इतनी सर्दी से मुक़ाबले का मौका मेरे लिये पहला ही था.


   इतनी सर्दी कि शरीर को गर्म रखना मेरे लिये एक भारी आफ़त का काम था. वो लोग जिनको जाड़ा जाड़ा महसूस न होता उनको देखना मेरे लिये अचम्भे की बात थी.जाड़ा तो जबलपुर में भी गज़ब होता है पर हिमालय को चूम के आने वाली हवाएं बेशक हड्डियों तक को बाहर पडे़ लोहे के सरिये की तरह ठण्डी जातीं थी वहां.उस दिन जब मेरा सब्र टूट गया तब मित्र ने कहा भाई कुछ लेते क्यों नहीं..?
    उस रविवार लखनऊ घूमने की गरज़ से हम दोस्त विक्रम पे सवार हो निकल पड़े खूब पैदल घूमें चिकन के कपड़े खरीदे सोचा रिक्शे की सवारी कर लें जबलपुरिया रिक्शों से अलग लखनवी रिक्शे छोटे और बहुत सस्ते थे पांच किलोमीटर तक घुमाया था उसने मालूम है हम दो लोगों से भाड़े के नाम पर कितना लिया..? बस दो -दो रुपये मैने कहा-अशोक भाई ये क्या मांग रहा है, बूढ़ा रिक्शे वाला घबरा गया था मेरे सवाल को सुन बोला सा’ब, एक रुपया कम देदो..! 
     हम हंस दिये जेब से दस का नोट निकाला और दे दिया रिक्शे वाला बोला-"छुट्टा नईं है साब," अशोक जी बोले मांग कौन रहा है दादा जाओ तुमको दस देना चाहते हैं. हमारे चेहरे ताक़ता बूढ़ा गोया नि:शब्द आभार कह रहा हो. गुड़म्म्बा का नाई भी दो रुपये में दाढ़ी-कटिंग-चम्पी करता था. 
 जाड़े से बचने के लिये दो घूंट अल्कोहल .फ़िर खुद ब खुद बोला.. न भाई न हम लोग हास्टल के नियम भंग क्यों करें . बाज़ार से बोरे खरीद लाए हम जमीन पे बिछाने न बिस्तर के नीचे बिछा लिये थे तब जाकर लगा कि बिस्तर सोने लायक है. रूम पार्टनर बोला-यार अगर रजाईयां जाड़ा न रोक पाएं तो क्या करेंगे ?
"रजाई और कम्बल के बीच लगा लेंगे बोरे हा हा हा "
    बाहर बर्फ़ीली हवाएं हिटलर ब्राण्ड डायरेक्टर साहब का हीटर पर प्रतिबंध लकड़ी फ़ाटे से गुरसी जलाने का ज्ञान न होना कम ऊलन कपड़े यानी कुल मिला कर पिछले जन्म के पापों  की सजा भोगने जैसी स्थिति . उधर हर सुबह टाइम पे यानी नौ बजे  क्लास में पहुंचने की अनिवार्यता ..सोच रहा था किसी डाक्टर को सेट करके बीमारी के बहाने छुट्टी चला जांऊं रूम पार्टनर बोला -"यार, साला इधर के मेडिकल कालेज में भर्ती करा दिया इन लोगों ने तो घर वाले भी बेक़ार परेशान हो जाएंगे" सो हमने अपने पलायन का विचार किनारे रख दिया. एक दिन यानी 15 दिसम्बर के आस पास बताया गया कि अब गांव में जाना होगा हम सबको. रोज़ सुबह आठ बजे बस रवाना होगी . तय शुदा कार्यक्रम के मुताबिक हम अगले दिन गुड़म्म्बा और कुर्सी रोड के बीच के गांवों में छोड़ दिये गये जहां हमको आंगनवाड़ी सहायिकाओं, कार्यकर्ता से लेकर मातहत सुपरवाईज़र के काम देखने थे. 
          इस दौरान होम-विज़िट भी पाठ्यक्रम के मुताबिक़ करनी होती थी. उस गांव में सभी लोग मज़दूर थे मर्द बाहर काम पे जाते थे औरतें चिकन वर्क करतीं . मंहगे दामों में बाज़ार में बिकने वाले चिकन वर्क वाले कपड़ों को खूबसूरत बनाने वाले धंसी आखों वाले जिस्म उन औरतों के थे जो दिन भर में एक दो कुर्ते तैयार कर पातीं थीं . एक लड़की जो वहां की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थी ने  मुझे सब कुछ बताया गांव -स्वास्थ्य सुविधाएं, पानी, बिजली सब के बारे में बताया. मैने पूछ ही लिया-"तुम कम से कम ग्रेजुएट तो हो मुझे लगता है "
आंखों में उदासी छा गई फ़िर अचानक बोली-"हां सर, बी एस सी सेकण्ड के आगे न पढ़ सकी"
तभी अंदर से आवाज़ आई -"बेटा भीतर भेज दो साहब को"
   दलान में जूते उतार जब कमरे में गया तो बिस्तर पर पड़ा एक अधेड़ जो किसी दुर्घटना का शिक़ार लगता था  सम्मान से आगवानी के लिये उठ बैठने की असफ़ल कोशिश करने लगा. उसके बिस्तर का मुआयना करने पर पाया खटिया उसपर पुआल बोरा एक गंदा सी गद्दा उस पर मैली चादर फ़िर वह आदमी. पास ही में गुरसी जिसकी आग उसकी बेटी बार बार चेताने ही जाती होगी. गुरसी में आग थी किसी मुद्दे पर वो कुछ कहना चाह रहा था पर मौन मुझे देख रहा था फ़िर अचानक बोला-"ट्रेनिंग पे आए हो ?"
"हां"
किधर से बाबू..
मध्य-प्रदेश से..जनते हो..
हां जबलपुर गया था एक बार 
हां, मैं वहीं से हिइं..
हम कायस्थ हैं..
अच्छा आप किस बिरादरी के हो 
तबी लड़की चाय ले आई 
बिरादरी से ब्राह्मण हूं पर शादी शुदा हूं 
कोई कायस्थ है ट्रेनिंग में तुम्हारे साथ..
हां, एक तो बिहार का, डिप्टी कलेक्टर है. 
उसे लाना बेटा 
पर वो भी शादी शुदा है
    ओह तब ठीक है भगवान की जैसी मर्जी. 
अगले दिन मैं फ़िर उसी गांव में गया उस लड़की से पूछा-"तुम्हारे पिता बहुत परेशान हैं उनका इलाज़ हो तो सकता है न ..?"
 हां, हो सकता है साहब , उनको मुआवज़े के दो लाख रुपए मिले थे बैंक में जमा रखते हैं बोलते हैं मेरे दहेज में खर्च करेंगे .
पता नहीं उस अधेड़ के संकल्प का क्या हुआ होगा 

Ad

यह ब्लॉग खोजें

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में