न, ज़रा यादव कालोनी होके चलतें आफ़िस शेविंग कराके ही जाऊंगा. डर था कि चपरासी समुदाय और बाबू साहबान क्या सोचेंगे.बोलेंगे भी. आज़ बिल्लोरे जी को तो देखो कैसे दिख रए हैं..बस इसी इकलौते भय से भगवान को मन ही मन सैट किया और सैलून में जा घुसे..
दो बंदे एक मालिक दूसरा उसका कर्मचारी बाक़ायदा अभिवादन की औपचारिकता के साथ खाली कुर्सी पे बैठने का आग्रह करते नज़र आये.मेरी शेविंग के लिये दौनों में अबोला काम्पीटिशन चल पड़ा मालिक ने तेज़ आवाज़ में चल रहे टी.वी. को कम करने की हिदायत मातहत को दी घर से हनुमान चालीसा पाठ बांचने के बाद "कोलावरी-डी" बहुत सुकू़न से सुनने की तमन्ना तो भी मैने शराफ़त और सदाचारी होने का अभिनय किया. कर्मचारी को दूसरे काम में लगा कर मालिक मेरे पास आ के बोला "तो शेविंग बस.."
हां भई.. ज़ल्दी जाना है मीटिंग बस शेव करो..
गुनगुना पानी तेज़ शीत लहर के दबाव में बार बार अपने मूल स्वरूप में लौट रहा था कि एक आवाज़ सुनाई दी बीस बाइस साल का लड़का दूसरे दोस्त से कहता सुना गया-"अरे, बस घण्टे आध घण्टे में निकल जाऊंगा तुम भी चेहरा साफ़ करालो "
दूसरा लड़का बोला-भाई न मुझे कराना है चेहरा साफ़ नही मुझे इस सब की आदत है
अर्र.. पैसा कौन तुम दोगे ....
दूसरा लड़का स्पष्ट रूप से बोला-"भाई, पैसे मैं न दूंगा तो फ़ेश क्लीनिंग मैं क्यों कराऊं"
अरे मेरी गर्लफ़ैण्ड क्या सोचेगी...
वो तुम्हारी है मुझसे क्या...
काफ़ी देर तक हां-ना का धंधा चला दोस्तों के बीच अंतत: पहला वाला युवक कुर्सी पे जा धंसा बोला-यार भाई, शाम को गर्ल-फ़्रैण्ड की सगाई है तुम ऐसा कुछ करो कि चेहरे में ग्लो कम से कम शाम तक रहे.
पिंड खजूरी चेहरे में ग्लो.. मन ही मन मुझे हंसी आ गई हंसी एक्स गर्ल-फ़ैण्ड की सगाई में जाने के उछाह को देखकर भी आ रही थी. यानी अहम नाते की अर्थी निकलना आज की जनरेशन को सहजता से स्वीकार्य है... तू नहीं और सही .....
इसी बीच ऐन मेरी कार के पीछे पासिंग-शो सिगरेट की तरह कृशकाय युवक ने अपनी कार लगाई और कोलावरी डी गुनगुनाते हुए सैलून में घुसा उसका प्रवेश ही इतना अभद्र था कि उस युवक को आप गुण्डे की संज्ञा दे सकते हैं शोहदा बोल सकते हैं
बारबर से बड़े अक्खड़पन से उस शोहदे ने पूछा-"आज तुम और ये बस बाक़ी..."
"बाक़ी आज़ देर से आते हैं गुरुवार है न" यानी तुम तो मालिक हो ये तो नौकर होके टाइम पे हाज़िर हो गया इस जैसे दो चार और हो जाएं तो देश भ्रष्टाचार खतम समझो.. ही ही जै अन्ना महराज़ की..
मेरी खोपड़ी "नाई के नौकर की समयबद्धता और और भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार " को लेकर जंग छिड़ गई तभी अनायास मैं पूछ बैठा-बेटे, इसके समय पर काम पर आने से भ्रष्टाचार का क्या नाता है..?
उसका जवाब आने लगा कि मेरे शेविंग करने वाले ने फ़रमाया.. सर ज़रा मुण्डी सीधी हां अब ठीक है.
वो लड़का बोल रहा था-"अंकल, देश के सारे लोग अपना कम ईमान दारी से करें तो भ्रष्टाचार दूर होगा कि नहीं "
बात तो सही थी पर समीकरण मेरी खोपड़ी को नामंज़ूर था. सो मैने पूछ लिया-तुम क्या पढ़ाई करते हो..?
न,मैं रुपए कमाता हूं..?
वाह, यानी नौकरी
न
तो
धंधा करता हूं
दो माह में मैने तीन लाख रुपए कमाए..पूरी मेहनत से काम करता हूं
इधर साला पूरा छै महीने लगते हैं तीन लाख तब कमा पाते हैं. इस शोहदे को दो महीने में तीन लाख..?
उसकी बात सुनकर गुस्से से मेरे दाढ़ी के एक एक बाल खड़े हो गए और क्या खर्र-खर्र दाढ़ी सफ़ा चट्ट हो गई . मैने पूछा -ऐसा कौन सा अंनात्मक कार्य करते हो कि माह में डेढ़ लाख कमा लेते हो
"अंकल प्लाट-खरीद-बेच करता हूं...दिन के दूने हो जाते है"
सच कितना ईमानदार है मेरा देश का युवा कितना सच्चा चरित्र है उसकी नज़र से भ्रष्टाचार काश अन्ना जी को नज़र आ जाता तो "मैं अन्ना हूं कहने वाले हरेक सख्श को अन्ना जी आप जान लेते भीड़ में वास्तविक रूप से कितने अन्ना है आप जान लेते"
तभी मुंह से निकल गया तो यानी तुम दूध से धुले हो बेटे ..?
"हां अंकल,दूध से एकदम धुला हूं पर दूध ही मिलावट वाला है ..? -पूरी मक्कारी थी उस की आवाज़ में
अपनी मां के दूध को लजाते उस युवक को सड़क पर एक लक्ज़री कार जाते दिकी अऔर वो सैलून मालिक की ओर मुखातिब हो के बोला-"अरे लगता है मेरा बाप जा रहा है.. पर इत्ती ज़ल्दी !!"