जो पंगु गिरी को सहज ही लांघे तो मेरे रहबर बवाल होगा।
खुदा के बन्दों से जाके कह दो - कमाल हूँ तो कमाल होगा ॥
खुदा की रहमत से जो है रोशन दिया अंधेरी निशा का मेरी -
उसी के कहने से ही बुझेगा, जो तुम बुझाओ कमाल होगा।।
एक भाई साहब इर्दगिर्द भी ऐसा ही कुछ घट रहा है जो लोग उसे जानते भी नहीं बेचारे स्नेह वश उसके माथे पे टीका लगा के चले जातें हैं क्रम चला आगे तो ये तक हुआ कि जिनके बाल कड़े होने के कारण शेव करने में कठिनाई हो रही थी उनके बाल कार्यक्रम के इंतज़ाम में शामिल एक दुर्जन के सर - कार्यक्रम के बाद के, ठीकरा फोड़ समारोह की चल-रिपोर्ट पठन से खड़े हो जाते और सट-सट शेव हो जाती . लंबे समय तक कुंठावश कसमें खाईं और खाई बनाई। जिसके बगैर सब कुछ चल सकता था । खैर "समय की प्रतीक्षा करना ज़रूरी था'' किंतु अब ज़रूरी हो गया था कि सब कुछ खुलासा कर दिया जाए सो वो आलेख के इसी किसी भाग में लिख दिया जाएगा । डरता भी हूँ की कहीं कोई बवाल न मच जाए .
किंतु एकतरफा कारर्वाई इस टीकाकरण समारोह के प्रायोजक भी अकबकाए...... अंत में पिछली कसमों पर इस उस का हवाला देकर बदली गयी । जिसकी सबको उम्मीद थी ।
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नागफनी की चर्चा आप अपने आँगन तक सीमित रखे बेहतर होगा . खेमबजी गुटबाजी जैसे शब्दों से परहेज करता हूँ और बरदास्त भी नही करता हूँ . नागफनी शब्द के साथ मुझे बधाई देना शायद मेरी भावनाओं को ठेस पहुँचा सकता है . आप बहुत बड़े ब्लॉगर है कृपया भविष्य में संतुलित शब्दों का प्रयोग करे . यही अपेक्षा करता हूँ .
January 26, 2009 10:53 PM
जिस तरह से बिना किसी की अनुमति के वगैर कोई कार्य करना उचित नही है पहले कोई भी कार्य करे तो सहमति सभी की ली जानी चाहिए और सभी का विश्वास अर्जित करना चाहिए यह सभी कहते है .पर एकला चलो की नीति अच्छी नही होती है ... जबलपुर के ब्लागरो से आज से राम राम कृपया नोट करे ..
January 26, 2009 11:21 PM
मिश्र जी मेरी पोस्ट जल्द बाजी में लिखी गयी पोस्ट थी जिसे मैं अन्तर पट से विभक्त न कर सका वास्तव में पोस्ट के प्रथम भाग में एक घटना का चित्रण चाह रहा था कि यकायक आपकी पोस्ट पर घूमने चला गया जहाँ आपके द्वारा कुछ सुझाव लिखे देखे उसका उत्तर फ़टाफ़ट देने के चक्कर में पोस्ट लिख मारी जो नीचे दूसरे भाग में लिखी है "खेमबजी गुटबाजी" जैसे शब्द लिखे ही नहीं गए जिनका आप ज़िक्र कर रहें हैं । यदि पोस्ट में हों तो बताएं ................?
अंत में
आइना आईने के रू बरू हो जाए ज़रा
बात दौनों की चली जाए बहुत गहरे में !!
स्पष्ट है न कि दो दर्पण आमने सामने हों तो अन्नंत प्रतिबिम्बों का दर्शन किया जा सकता है मिश्र जी
“ध्यानाकर्षण के लिए आभार” विगत दिवस जबलपुरिया ब्लॉगर मीट भोजन के साथ संम्पन्न हुई ..............................................जो ब्लॉगर भाई किन्ही कारणों से मीट में नही पहुँचपाये उनके नही पहुँचने के कारणों की खोजबीन(पोस्टमार्टम)की जा रही है .... पर आयोजक बन्धु ने अनुपस्थित शहरी और बाहरी अन्य ब्लॉगर बंधुओं को ब्लॉगर मीट केसम्बन्ध में जानकारी देना भी उचित नही समझा ........भाई अपनी अपनी मर्जी .....जानकारी दे देते ....कम से कम नेट पे दे देते । अब समीर जी कुछ जानकारी अवश्य देंगे इस उम्मीद के साथ"
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एक " रिपोर्ट:"- (संक्रांति की सुबह "महाजाल " पर समाचार नुमा यह
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