एक " रिपोर्ट:"- (संक्रांति की सुबह "महाजाल " पर समाचार नुमा यह आलेख) पढ के शरीर का रोयाँ -रोयाँ खड़ा हो गया। तभी श्रीमति जी ने शेविंग-उपकरण सामने लाके रख दिए साहब आज शेव करके समय एक भी बाल न छूट पाया । वे बोलीं:-आज इत्ती जल्दी शेव निपटा लिया । मेरे मुंह से निकल गया महाजाल पे छपी 2040 का समाचार पढा तो यह सम्भव हुआ है। श्रीमति बिल्लोरे अपना माथा खाजुआनें लगीं कि हम ने क्या कहा । तब तक अपने मानस में भी "
" हलचल:"होने लगी कि इतने शब्द तो पहले से ही हिन्दी में विराजे हैं पंडित जी ने गज़ब शब्द खोज निकाला इसे अब भाषाविज्ञानी तय करेंगे कि थोक कट-पेस्टीय लेखनशब्द को शामिल किया जाए या नहीं अगर ब्लागर्स से कोई पूछेगा तो हम सब दादा के साथ हैं। उधर कबाड़ी भाई के पास पुराने रेडुए से ये सुनने मिला आत्म-विभोर हूँ ! इस बीच तिल का कटोरा दो बार मेरे सामने से से वापस जा चुका है अत: पोस्ट आधी-अधूरी छोड़ के उठ रहा हूँ बाकी एहावाल शाम के बाद पोस्ट करूंगा मुझ डर है कि संक्रांति कहीं क्रान्ति का रूप न रख लेवे। इन अन्तिम-पंक्तियों के लिखे जाने तक पाँच पुकार सुनाई पड़ चुकीं हैं मुझे । सभी को सादर मकर-संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनाए अबआगे 08:45बजे घरलौटातोसोचताहूँसुबहकीचर्चाकोएकसुंदरमोड़देदूँ- सोलेपूखोलाहीथाकियेभाई साहब -यानीअपनेदुबेजी याद आ गए जिनने ने गज़ब की बात कही ।अपन को याद आया गंगटोक जहाँ पिछले दिनों बड़े भैया होकर आए थे सो ये आलेख बांच ही लिया कि नाथुला पास --बर्फीलीवादियाँ में कैसा लगता है कि मन में आया पतंग बाजी करलें किंतु एक डाकिया हाँ वही हवा का डाकिया मेरी पुरानी प्रेमिका , की याद लाया वो भी व्हाया - राजीव रंजन प्रसाद, और फ़िर अचानक हमने पतंग बाजी का मसला बीच में ही छोड़ कर [रात में पतंग उडाना असम्भव मान के ] आइने में जब देखा, तो पाया कि हम 45 के हैं और पतंग पर समय जाया करने 'कुत्ते से कुछ शिक्षा लें कि वो कैसे अमीर हुआ । नौवें सोपान पर है चिट्ठों की चर्चा जो रवीन्द्र प्रभात जीकी "परिकल्पना" में है । उधर श्रीमती जी के बनाए तिल ले लड्डू खूब ज्यादा हो गए हैं तो ब्लॉग पर स्वास्थ्य चर्चा लेकर मिहिर भोज उपस्थित हैं न अब आप न तो तिल से डरिए और न ही ताड़ से । चलो अब बंद करता हूँ चर्चा बस का फ़ोन आ गया कल की ममत्व मेले वाली प्रेस कांफ्रेंस की तैयारी करनी है। सो सहिकिन्तु बॉस इस आलवेज राइट अब विदा कल तक के लिए
सांपों से बचने के लिए घर की दीवारों पर आस्तिक मुनि की दुहाई है क्यों लिखा जाता है घर की दीवारों पर....! आस्तिक मुनि वासुकी नाम के पौराणिक सर्प पात्र की पुत्री के पुत्र थे । एक बार तक्षक से नाराज जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया और इस यज्ञ में मंत्रों के कारण विभिन्न प्रजाति के सांप यज्ञ वेदी संविदा की तरह आ गिरे । तक्षक ने स्वयं को बचाने के लिए इंद्र का सहारा लिया तो वासुकी ने ऋषि जगतकारू की पत्नी यानी अपनी बहन से अनुरोध किया कि पृथ्वी पर रहने वाले सभी सांपों की रक्षा कीजिए और यह रक्षा का कार्य आपके पुत्र मुनि आस्तिक ही कर सकते हैं । अपने मामा के वंश को बचाने के लिए आस्तिक मुनि जो अतिशय विद्वान वेद मंत्रों के ज्ञाता थे जन्मेजय की यज्ञशाला की ओर जाते हैं । किंतु उन्हें सामान्य रूप से यज्ञशाला में प्रवेश का अवसर पहरेदार द्वारा नहीं दिया जाता । किंतु आस्तिक निराश नहीं होते और वे रिचाओं मंत्रों के द्वारा यज्ञ के सभी का सम्मान करते हैं । जिसे सुनकर जन्मेजय स्वयं यज्ञशाला में उन्हें बुलवा लेते हैं । जहां आस्तिक मुनि पूरे मनोयोग से यज्ञ एवं सभी की स्तुति की जैसे जन्मेजय ने उनसे वरदान मांगने की
संदेह को सत्य समझ के न्यायाधीश बनने का पाठ हमारी . "पुलिस " को अघोषित रूप से मिला है भारत / राज्य सरकार को चाहिए की वे ,सामाजिक आचरण के अनुपालन कराने के लिए ,पुलिस को दायित्व नहीं देना चाहिए . इस तरह के मामले ,चाहे सही भी हों विषेशज्ञ से परामर्श के पूर्व सार्वजनिक न किएँ ,जाएँ , एक और आरुशी के मामले में पुलिस की भूमिका , के अतिरिक्त देखा जा रहा है पुलिस सर्व विदित है . सामान्य रूप से पुलिस की इस छवि का जन मानस में अंकन हो जाना समाज के लिए देश के लिए चिंतनीय है , सामाजिक - मुद्दों के लिए बने कानूनों के अनुपालन के लिए पुलिस को न सौंपा जाए बल्कि पुलिस इन मामलों के निपटारे के लिए विशेष रूप से स्थापित संस्थाओं को सौंपा जाए । संदेह को सत्य समझ के न्यायाधीश बनने का पाठ हमारी पुलिस को अघोषित रूप से मिला है भारत / राज्य सरकार को चाहिए की वे सामाजिक आचरण के अनुपालन कराने के लिए पुलिस को दायित्व नहीं देना चाहिए . इस तरह के मामले चाहे स
मध्य प्रदेश के मालवा निमाड़ एवम भुवाणा क्षेत्रों सावन में दो त्यौहार ऐसे हैं जिनका सीधा संबंध महिलाओं बालिकाओं बेटियों के आत्मसम्मान की रक्षा से बाबस्ता है । अक्सर सोचता था कि इन तीज त्यौहारों का कोई न कोई कारण अवश्य ही है । नानी दादी माँ से सुनी कहानी को जैसा समझा उसे आप सुधि जनों तक पहुंचाना मेरी जवाबदारी है सो देखिये ये लोककथा जो दो त्यौहारों को जन्म देती है उद्देश्य साफ है कि समकालीन चिंतक चाहते थे कि नारी के अधिकारों की पुनर्व्याख्या की जावे तथा ग्रामीण भारत की भोली भाली जनता को समझाया जावे कि सनातन संस्कृति में नारी के अधिकार समान थे । यह पर्व एक सामाजिक पुनर्जागरण के उद्देश्य से शुरू हुआ है अब आप भी देखिए जिरोती एक बेहद नाज़ुक और अतिसुन्दर बालिका थी । बड़े सुख से पली बढ़ी जिरोती जब युवा हुई तो उसका विवाह एक सुयोग्य वर से कर दिया गया । उसे कोई संतान भी न हुई थी वंश वृद्धि होते देख सास उसे ताने देने लगी । जिससे क्षुब्ध होकर जिरोती ने ससुराल छोड़कर मायके वापस जाना तय किया, और एक दिन वो घर से निकल पड़ी । श्रमसाध्य पैदल यात्रा से पांवों से खून रिसने लगा तक के चूर बालिका एक पेड़ के
टिप्पणियाँ
आपको भी मकर संक्रांति कि बधाई
- विजय
मकर संक्रांति कि बधाई
Shukriya ji
Aap kee shili aaj bhee vahee
jaise baat cheet kar rahe hai
mujhe apanaa mob. contect no. dijie
Arvind Sen
state bank colony
ukhari
jabalpur
बिल्लोरे जी
आपने आज तिल के साथ तिल और ताड़ तक
खूब बताया
हे पीड़ा हर्ता !!
हे ब्लागवाणी
चिट्ठा जगत के जरिए
ब्लॉग दर्शन कर्ता
आपसे हर अच्छा ब्लॉगर डरता
आभारी आपका
"बड़ी सकरात की राम राम "