28.9.22

सांप्रदायिकता बुरी चीज नहीं है

    विचार या विचार समूह संप्रदायिकता का  स्वरूप है । दूसरे शब्दों में सांप्रदायिकता विचार अथवा विचार समूह का पर्यायवाची है। सांप्रदायिकता के विस्तार की प्रवृत्ति किसी भी देश के लिए खतरे की घंटी है। सामाजिक परिस्थितियों एवं सांस्कृतिक निरंतरताएं तथा सभ्यता के विकास  अनुक्रम को नुकसान पहुंचाने वाला सांप्रदायिकता का विस्तार मूल दार्शनिक और अध्यात्मिक सिद्धांतों का अवसान करता है।
   संप्रदायिकता अस्पृश्य नहीं है, परंतु इसका विस्तार करने का प्रयास अवश्य अस्पृश्य और अग्राह्य है। कोई भी संप्रदाय सम्मान  विचारधाराओं का ऐसा  स्वरूप होता है.जिसमें आध्यात्मिक तत्वों का मिश्रण होता है। बात बहुत कठिन नहीं है इसे आसानी से समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए आपके मन में ऐसी प्रक्रिया आकार लेती है जिससे  आप एक ऐसे विश्व की कल्पना कर रहे हैं जो सद्भावना और सहिष्णुता को कायम करने के प्रयास करता है और सफल भी रहता है। इसके लिए आप अपने विचार का संप्रेषण किसी दूसरे को करेंगे कोई दूसरा तीसरे को करेगा कोई तीसरा चौथे को करेगा और इसका विस्तार चैन सिस्टम से बहुत अधिक हो जाता है। आपका विचार बुद्ध की तरह विस्तारित होने लगता है और आप एक  स्प्रिचुअल व्यक्ति के रूप में स्थापित हैं..!
  यह स्थिति आपके जीवन काल में व्यवस्थित रूप से चलती है परंतु दीर्घकाल में आपके अनुयाई आपके विचार को इधर-उधर थोपते नजर आते हैं। कई कई बार आपके अनुयाई शस्त्र के बल पर तो कई बार लोग लालच देकर अपने संप्रदाय को विस्तार देना चाहते हैं। मेरी नजदीक घटित एक घटना के उदाहरण से  आपको समझाना चाहता हूं ।
   एक परिवार में मां को कैंसर हो गया था । उस कैंसर की पतासाजी चिकित्सकों ने की और परिवार को बताया कि यह महिला कुछ दिनों के लिए इस दुनिया में रह सकती है इसका जाना प्रभावित है यह अधिक दिनों तक आपके साथ रह नहीं सकती । एक संप्रदाय के एक अनुयाई ने जो अब संप्रदाय को विस्तारित करने प्रचारक बन चुका था, उस परिवार से संपर्क करता है और उसे कुछ धनराशि तथा कुछ अभिमंत्रित पानी इत्यादि के सेवन की सलाह देता है। इसके पहले वह व्यक्ति के परिवार की मूल साधना के संसाधनों को एक कपड़े में बांधकर  ताक पर रख देने का आदेश देता है। कैंसर लाइलाज रोग है। आप सब जानते हैं कि कैंसर में जीवन की प्रत्याशा बहुत कम ही होती है जिसे न के बराबर कहा जा सकता है। वास्तव में उस महिला को कैंसर न था कुछ दिनों में महिला स्वस्थ हो गई। परंतु पूरा का पूरा परिवार दूसरे संप्रदाय के मूल्यों और सिद्धांतों को मानने लगा। किस विचार को मानना है या उसे त्यागना है इसका अधिकार मनुष्य का है इसमें कोई शक नहीं परंतु यहां में उस व्यक्ति को कटघरे में खड़ा करना चाहता हूं जिसने झूठ बोलकर भावात्मकता को आधार बनाकर अपने संप्रदाय का विस्तार किया।
  एक और उदाहरण बहुत नजदीक से मुझे देखने को मिला। मेरे अधीनस्थ कर्मचारी की संतान का मानसिक संतुलन अक्सर बिगड़ जाया करता है। ऐसी स्थिति में जहां से राहत की सूचना मिलती है वहां पर  किसी का भी जाना स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस क्रम में अधीनस्थ कर्मी ने बताया कि-" अमुक व्यक्ति का परिवार उसकी संतान की इस बीमारी का अंत कर सकता है।"
   मैं जानता था कि यह केवल एक छलावा और झूठा आश्वासन है। फिर भी किसी भी दुखी व्यक्ति को मना करके उसकी आत्मा को आहत ना करने के उद्देश्य से मैंने उससे उस प्रक्रिया को देखने का यह उस प्रक्रिया में शामिल होने का यह कहते हुए नैतिक रुप से समर्थन किया कि-" इस बात का ध्यान रखना कि तुम अपनी संस्कृति और पैतृक आचरण वंशानुगत परंपराओं का पालन करते रहना।""
       कर्मचारी ने कहा ऐसा नहीं होगा वह लोग बहुत विश्वसनीय हैं वह ऐसा ऑफर भी नहीं देंगे।"
     अधीनस्थ कर्मचारी के विश्वास का सम्मान करते हुए उसे अवकाश दिया । इस व्यक्ति ने स्वास्थ्य सुधार के लिए कुछ सत्रों का आयोजन किया। कर्मचारी की सुल्तान का स्वास्थ उस कालखंड में ठीक रहा। ऐसा अक्सर होता भी रहा है। परंतु कर्मचारी को ऐसा प्रतीत हुआ कि इलाज के लिए आयोजित सत्रों से ही लाभ मिल रहा है। मुझे वह अधीनस्थ कर सूचित किया करता था कि हां मेरी संतान अब पहले से बेहतर है।
  इस बात की जानकारी उसने सत्र के आयोजकों को भी दी। बस फिर क्या था आयोजक उसके पैतृक गांव तक पहुंच गए। और परिवार को इस बात के लिए तैयार करने लगे कि वे अपनी आस्था का केंद्र बदल दें। घर की धार्मिक पुस्तकों को लपेटकर ऐसे स्थान पर रख दें जहां सामान्य रूप से जाना आना नहीं होता है। उस समय एक कर्मचारी और उसका परिवार चकित रह गया। और उसने स्पष्ट रूप से मना भी कर दिया।
   अबकी बार वह जब सप्ताहांत के अवकाश से लौटकर आया तो उसने मुझे घटना का विस्तार से विवरण दिया। उसने यह भी स्वीकारा कि-" सर आपका संदेह सत्य था।
   मैंने कहा कि यदि इन सारी प्रक्रियाओं से दुनिया को स्वस्थ किया जा सकता था तो कोविड-19 के लिए इससे मुफीद और क्या होता।।
    जो जो संप्रदाय अपनी मान्यताओं को प्रतिस्थापित करने के लिए इस तरह के प्रयास करते हैं उन संप्रदायों का स्थायित्व कब तक बना रहेगा मुझे संदेह है। आपको भी संदेह करना चाहिए।
   हाल ही में एक जिले में कुछ लोग एक खास वर्ग की आबादी को इकट्ठा करके उन्हें ज्ञान ध्यान की बातें बता रहे थे । सब कुछ ठीक चलता रहा अधिकारों पर बात हुई कर्तव्यों पर बात हुई सामाजिक विसंगतियों पर बात हुई सभी बातों को गंभीरता से सुना गया। उस समुदाय ने वक्ताओं के उस अनुरोध का तीखा विरोध तक किया जबकि समुदाय को मौजूदा आस्था से विमुक्ति का आग्रह वक्ताओं ने किया ।
    महात्मा गौतम बुद्ध के सिद्धांत और उनके समकालीन तथा बाद के अनुयाई आध्यात्मिकता का प्रचार करते रहे इससे बौद्ध मत के विस्तार समकालीन अखंड भारत बौद्ध मत सीरिया तक पहुंच गया था। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं यह इतिहास में दर्ज है। इसके पूर्व सनातन व्यवस्था अपनी खूबी के कारण ही विश्व में विस्तारित रही है ऐसा मेरा मानना है।
   उपरोक्त कथनों का आशय यह है कि
[  ] जो विचार या विचार समूह जिस भूखंड में विस्तारित होता है या हो रहा हो उसे उस भूखंड की कालगत परिस्थितियों के साथ अनुकूलन करना होगा। तभी वह विचार या विचारों का समूह स्थायित्व प्राप्त कर सकता है।
[  ] कोई भी विचार या विचार समूह तलवार के जोर पर अगर स्थापित भी कर दिया जाए तो दीर्घकाल में  उसका समापन सुनिश्चित है।
[  ] देश काल परिस्थिति के  साथ साथ जो  विचार या विचार समूह में परिवर्तनशीलता का गुण नहीं होता वह विचार अथवा विचार समूह भी अधिकतम कुछ शताब्दियों तक ही जीवित रह सकता है।
          भारत में शैव, वैष्णव,शाक्त, वैदिक,स्मार्त, बौद्ध, जैन, के अलावा कई और भी ज्ञात अज्ञात विचार स्थाई हैं। पारस्परिक आपसी वैमनस्यता देखने को कभी नहीं मिलती। चार्वाक तथा रक्ष संस्कृति की विचारधारा को छोड़कर सभी उपरोक्त वर्णित विचार सांस्कृतिक परंपराओं की निरंतरता के साथ जीवंत है इनमें आपसी  विद्वेष देखा नहीं गया ।
  द्वैत अद्वैत, द्वैताद्वैत, के सिद्धांत भी चिर स्थाई से हो गए हैं। कबीर अकाट्य है तो रहीम और मिर्जा गालिब का अध्यात्मिक दर्शन आज भी विद्यमान है।
   यवन भी चाहते थे कि वे बलपूर्वक अपनी सांस्कृतिक निरंतरता को भारत में स्थापित कर देंगे। परंतु ऐसा हो ना सका। ऐसा होना संभव भी न था होता भी कैसे भारत एक भौगोलिक संरचना नहीं है इसकी अपनी सांस्कृतिक निरंतरता है सामाजिक व्यवस्था है।
    यहां बिना नाम लिए संकेतों में स्पष्ट करना आवश्यक है कि-" जिस विचार में लचीलापन ना हो परिवर्तनशीलता का गुण ना हो वह न तो बलपूर्वक विस्तार पाता है और ना ही छल या कपट पूर्वक। लोभ लालच देकर तो उसके स्थायित्व को बनाए रखना बहुत मुश्किल होगा।"
   तय आपको करना है कि आप अपने विचार को विस्तारित करने अथवा विचार समूह को विस्तारित करने के लिए कौन सा तरीका अपनाते हैं वैसे तो यह सब जरूरी भी नहीं है क्योंकि सर्वोपरि है एकात्मता का महत्वपूर्ण सूत्र। जो सर्वे जना सुखिनो भवंतु अथवा विश्व बंधुत्व का नवनीत है। अंत में सिर्फ इतना जानना जरूरी है कि-" संप्रदायिकता बुरी चीज नहीं है बल्कि सांप्रदायिक होना और उसे
बल अथवा छल कपट से विस्तार करने की कोशिश गलत है अग्राह्य है ।

27.9.22

बाप की साली :मौसी क्यों नहीं..?

 
         गिरीश बिल्लोरे मुकुल 

   मैं उस महान लेखक का नाम भूल गया हूं परंतु उनकी लिखी गई कहानी का कथानक याद है। 
सामान्य रूप से हम अपने कहे हुए  शब्दों असर को गहराई से नहीं जानते, और तो और हम अपने किए गए कृत्य का प्रभाव क्या पड़ेगा इसका अनुमान नहीं लगा पाते। 
हरिहरन की गायक गजल मुझे बहुत पसंद आती है शायद आपने भी सुनी होगी-
" जब कभी बोलना 
मुख्तसर बोलना
वक़्त पर बोलना
मुद्दतों सोचना....
  इसमें कोई शक नहीं बोलने से पहले और कुछ करने से समझ लेना चाहिए कि-" हमारे मुंह से निकले शब्द कितने सकारात्मक असर छोड़ते हैं अथवा उनका कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ता है ?
हां तुम्हें बता रहा था कि, बात बहुत पुरानी है उस वक्त शायद हम कॉलेज में पढ़ा करते थे। कॉलेज के कैंपस से जुड़ी एक कहानी कैरेक्टर हॉस्टल में खाना बनाने या साफ सफाई करने का काम किया करती थी। पूरे स्टूडेंट्स उसे बाप की साली कहकर परेशान किया करते थे । ऐसा नहीं था कि इस कहानी की पात्र जिसे लोग बाप की साली कहते थे उसे छात्र पसंद नहीं करते थे परंतु ऐसा अलंकरण  महिला पात्र को बहुत दु:खी कर देता था, वह चिढ़ जाया करती थी । यह प्राकृतिक है कि जो व्यक्ति किसी शब्द या कार्य विशेष चिड़ता हो  है उसके सामने वही कार्य शब्द के दोहराव की आदत लोगों में होती है। युवा कुछ ज्यादा ही इस तरह की हरकतें किया करते हैं।
   ऐसा ही होता था उस महिला को हॉस्टल में रहने वाली सभी युवा बाप की साली कहकर परेशान किया करते थे। गांव से एक विद्यार्थी जब शहर आया और हॉस्टल में उसने उस महिला को मौसी शब्द से अलंकृत किया तो माहौल का बदल जाना स्वभाविक था ।
   हमें किसी से भी संवाद करने के पहले इसी तरह के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। संवादों में अत्यधिक क्रूरता उपेक्षा अथवा अपमानजनक संवाद करना निसंदेह प्रत्युत्तर का कारण होता है। आप नहीं समझ पाएंगे कि प्रत्युत्तर कैसा होगा?
  मुंह से निकला हुआ शब्द तरकस से निकला हुआ तीर और अबके संदर्भों में कहा जाए तो- "दागी हुई मिसाइल कभी वापस नहीं आती..!"
  हम अक्सर अधिकारियों को देखते हैं वह क्या बोल जाते हैं उन्हें खुद ही नहीं मालूम यह अलग बात है कि दिल से कई सारे ऑफिसर खराब नहीं होते परंतु ऑफिसर होने का लबादा उनके मस्तिष्क तक प्रभावित कर देता है। और फिर जब भी बोलते हैं तो उन्हें यह होश नहीं रहता कि - "वे ही ऑलमाइटी याने सर्वशक्तिमान नहीं है..!"
  मशहूर शायर चुके ने कहा है-
"नुक़रई खनक के सिवा क्या मिला शकेब..
कम कम वह बोलते हैं जो गहरे हैं पेट के"
   आप भी फौरन प्रतिक्रिया देने वालों की मनोदशा और उनकी मानसिक स्तर को आसानी से समझ सकते हैं। अक्सर जो लोग किसी भी मुद्दे पर त्वरित टिप्पणी कर देते हैं वह टिप्पणी सटीक  होगी यह कहना मुश्किल है । 
   कुछ कहने अथवा करने के पहले उसके प्रभाव का आंकलन करना बहुत जरूरी है। और जब भी आप संवादी हो तो वक्तव्य नपे तुले और सटीक होनी चाहिए। अपमानजनक शैली में बात करना किसी की योग्यता का नहीं वरन अयोग्यता का उदाहरण होता है।
   अक्सर लंबी लंबी बातों में भूत परोसना एक अंतराल में मस्तिष्क के रडार पर आपको संदिग्ध यूएफओ की तरह पोट्रेट कर देता है।
  मुझे विश्वास है कि इस बिंदु पर भी हम चिंतन करेंगे और चिंता भी।

पिता के पुत्र होने का एहसास छोड़िए

 
यह वाक्य मेरे लिए सदा से ही घृणास्पद रहा है। इस वाक्य के मेरे कानों में पड़ते ही मेरा मस्तिष्क क्रोध से भर गया था, और आज तक शिलालेख की तरह अंकित भी है। खैर यह मेरा अपना चिंतन है कदाचित कुछ लोगों का भी हो लेकिन जो पुत्र के पिता होते हैं वे केवल अहंकार के पिटारे से अधिक मुझे कुछ नजर नहीं आते।
   पुत्र संतान का गौरव अर्जित कराना तो सदियों से जारी है। भारत जैसे सनातनी देश में भारतीयों को यह जानकारी नहीं है कि भारत में शक्ति पूजा होती है। बेटियों के बिना कुछ भी नहीं बेटी दिवस पर विमर्श के लिए यह विषय जानबूझकर मैंने उन अल्प बुद्धि अभिभावकों के लिए चुना है जो केवल बेटों को अपना श्रेष्ठ संसाधन मानते हैं। जबकि मेरा दृष्टिकोण इससे इतर है। यह इसलिए नहीं कि -" ईश्वरीय संयोग से मैं बेटियों का पिता हूं बल्कि इसलिए कि मैंने हर मोर्चे पर बेटियों को सफल होते देखा है।"
   अक्सर घर के बड़े बूढ़े बुजुर्ग लोग किसी की संतान बेटी होने पर शोक ग्रस्त हो जाते हैं। इन बुजुर्गों ने ना तो वेदों का अध्ययन किया होता है और ना ही वे यह जानते कि वेदों के निर्माण में ऋषिकाओं का विशेष योगदान रहा है। ज्यादा दूर नहीं ऋग्वेद के कुछ अंश को पढ़ ले तो सब कुछ साफ हो जाएगा।
मुझे-"पुत्र के पिता बोध की जरूरत नहीं है। अगर मुझे संतान से प्रेम है तो यह सब तथ्य द्वितीयक हो जाते हैं।"
   आज मैं इस बात का रहस्योद्घाटन करना चाहता हूं कि पुत्र संतान का जनक या जननी होना गौरव और गरिमा की बात नहीं है बल्कि एक अच्छी संतान का जनक या जननी होना गौरव की बात है।
   भारतीय समाज को समझना चाहिए कि उसकी विरासत में बहुत कुछ ऐसा है जो यह सिद्ध करता है कि बेटियां भी बेटों के समकक्ष हैं। यह ऐतिहासिक और हमारी सांस्कृतिक निरंतरता के अन्वेषण से स्पष्ट हो जाता है। मुझे घटना याद आ रही है कि एक पुत्र संतान का पिता अपने पुत्र के विवाह के समय पुत्र के पिता और माता का दायित्व अपने भाई पर छोड़ना चाहता था। उसका यह कहना था कि मैंने यह दायित्व तुम्हें  इसलिए देना चाहता हूं क्या कि तुम्हें क्योंकि मैं  तुम्हें भी पुत्र बोध हो सके।
   छोटे भाई का इंकार कर देना साहस का कार्य था। उसने यह कहकर इंकार कर दिया कि जब ईश्वर ही नहीं चाहते कि मुझे ऐसा कोई बोध हो तो फिर आप ऐसा प्रयास क्यों कर रहे हैं? और फिर मैं तो पुत्री संतान को भी पुत्र संतान के समतुल्य समझता हूं।
   समाज का नकारात्मक चिंतन आप सकारात्मक दिशा की ओर जाता नजर आ रहा है। बिटिया दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं देकर आपसे आग्रह करूंगा कि कृपया बेटियों को लेकर किसी भी तरह की मानसिक ग्रंथि ना पाले। कृपया उसे एक संतान के रूप में देखें आपको कोई अधिकार नहीं है कि आप अपनी संतानों का विभाजन पुत्र  या पुत्री के रूप में करें।
  मुझे अच्छी तरह से याद है कि मेरे भांजे के विवाह के समय उसके  ससुर बेहद भावुक होकर मुझसे मिले और उन्होंने कहा हम आपके कृतज्ञ हैं और हमसे कोई कमी रह गई हो तो क्षमा कीजिए।
  मैंने पूछा- "आज आपने कन्यादान किया है न..?"
उनका उत्तर था- हां.. !
मेंरा प्रतिप्रश्न-" अर्थात दाता तो आप हो न ? तो फिर आपका हाथ हमारे हाथों के ऊपर है हम याचक हैं। याचक का स्तर हमेशा ही दाता से नीचे होता है मैं आपको प्रणाम करना चाहता हूं आपको प्रणाम है।
    भाव से परिपूर्ण पुत्री संतान के उस पिता को इस संवाद से जो प्रसन्नता हुई होगी उसका आंकलन करना बहुत मुश्किल है। पर मुझे विश्वास है कि-" इस तो कैसे संवाद से आप सबके मस्तिष्क में संतान के प्रति विभेद के दृष्टिकोण का अंत अवश्य हो जाएगा।"
  सुधि पाठक आप सबको नमन करते हुए  आत्मिक अनुरोध करना चाहता हूं-" आप पुत्र संतान , उत्कंठा में भ्रूण हत्याएं रोक दीजिए और अपनी पुत्री संतान को भी पुत्र संतान के समतुल्य ही मानिए। वंश केवल पुत्रों से नहीं चलता है, यह समाज का गलत दृष्टिकोण है। वंश पुत्रियां भी आगे नहीं जाती है यह वैज्ञानिक सत्य है। आप की संतान में आपका डीएनए है और वह डीएनए अनंत काल तक जीवित रहता है उसका स्थानांतरण होता रहता है। तो आप किस आधार पर कहते हैं कि वंश पुत्र ही चलाते हैं यह एक उत्तराधिकारी व्यवस्था हो सकती है लेकिन वैज्ञानिक और अध्यात्मिक व्यवस्था यह नहीं है जिसे आपने अपने मस्तिष्क को कूड़ेदान बनाकर संभाल कर रखा है।
 


 

25.9.22

Fall in LIC share prices, loss of middle class

*Institutional investment is needed on the falling stock of LIC, otherwise the loss is only the loss of the middle class shareholders.*
The BPO of Life Insurance Corporation of India was issued at Rs 949. But this stock has fallen to ₹ 648 with a terrible fall of 32%.
This is the result of the biggest weakness of Life Insurance Corporation of India's management.
Traders who intervene in the stock market consider this fall as a permanent decline.
The middle class took the shares of Life Insurance Corporation of India all over India.The middle class had reposed their trust in LIC given the tagline of their hard earned money with life and after life.
There is no doubt that this organization i.e. Life Insurance Corporation of India has expertise in the matter of sales, but this skill is not working in the stock market.Life Insurance Corporation of India appears to be the weakest in finance management.
Senior officers of Life Insurance Corporation, who directly intervene in the management, are busy explaining to their subordinate officers that - "It is a conspiracy by the elements of business competition, due to which the shares fell."
Blaming others for the fall in LIC's stock is a classic example of business weakness. The most unfortunate thing is that the fall in the stock prices of Life Insurance Corporation of India is a sad situation for thousands of middle class families.In fact the middle class people had unwavering trust in their LIC agent in this promotion.LIC agents also do not have much knowledge regarding stock marketing. 
Gautam Adani holds 10% of LIC's stock.Adani also has companies that are involved in other businesses.Despite this Adani Group of Companies has also received loan from State Bank of India.This is definitely a matter of concern.
Overall, this attempt to mobilize capital from the market is giving very negative results due to weak managerial ability. 
We can only pray that God can compensate the financial loss of the middle class people.

मिलिट्री तख्तापलट खबर और ग्लोबल टाइम्स खामोश..?


शुक्रवार और शनिवार दरमियानी रात से चीन में तख्तापलट की खबरों का बाजार गर्म हो गया। शनिवार अर्थात 24 सितंबर 2022 सुब्रमण्यम स्वामी जी ने ट्वीट करके चीन के हालातों पर सवाल खड़े कर दिए।
  विश्व का समाचार बाजार इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से बेहद प्रभावशाली बन गया है। आज ट्विटर पर नंबर एक पर शी जिनपिंग और नंबर दो पर बीजिंग शब्द सर्वाधिक बार प्रयोग में लाया जा रहा था।
  भारतीय खबर रटाऊ मीडिया को बैठे-बिठाए मसाला मिल गया परंतु तथ्यात्मक जानकारी मीडिया हाउसेस में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अनुपलब्ध रही है।
आइए हम बताते हैं कि किन कारणों से यह खबर इन दिनों विश्व के समानांतर, मीडिया न्यू मीडिया अथवा सोशल मीडिया पर वायरल है कि चीन में मिलिट्री तख्तापलट हो चुका है?
[  ] जब भी चीन के मामले में कोई खबर सुर्खियों में आती है तब ग्लोबल टाइम्स उसे तुरंत रिस्पॉन्ड करता है। परंतु इस खबर के संदर्भ में ग्लोबल टाइम्स की चुप्पी का अर्थ मौन स्वीकृति लक्षण तो नहीं?
[  ] शंघाई  को-ऑपरेशन संगठन की बैठक में अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आज सहज रूप में देखा तथा उसका उल्लेख भी किया।
[  ] एक पत्रकार जेनिफर जैंग ने ऐसा वीडियो रिलीज किया जिसमें 80 किलोमीटर तक मिलिट्री के ट्रक बीजिंग की ओर जाते हुए नजर आए। इस वीडियो को पाकिस्तानी यूट्यूबर आरजू अकादमी ने प्रमुखता के साथ अपने दैनिक शो में प्रेजेंट किया है। यद्यपि वे अपने शो में इस मिलिट्री कू की पुष्टि नहीं कर रही थीं।
[  ] इस तख्तापलट का श्रेय जाता है चीन के पूर्व राष्ट्रपति एवं पूर्व प्रधानमंत्री को जिनका नाम क्रमशः हू जिंग ताओ एवम वें ज़िया हो है । खबरें यह भी हैं कि इन दोनों में समरकंद में हुई s.c.o. सम्मिट में ही सी जिनपिंग को सुरक्षा एजेंसियों से गिरफ्तार करवा लिया था।
[  ] समाचार यह भी गर्म है कि-" चीन की एक सेना अधिकारी ली क्यांग मिंग चीन के अगले राष्ट्रपति होंगे।
[  ] अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इस समाचार की भी पुष्टि की है कि समिति के उपरांत होने वाले डिनर के पहले ही चाइना के राष्ट्रपति चीन के लिए रवाना हो चुके थे वह भी डिनर में शामिल हुए बिना।
[  ] सूचना माध्यम यह भी बताते हैं कि-" शी जिनपिंग को हाउस अरेस्ट कर दिया गया है।"
[  ] विश्व मीडिया का ध्यान चीन से विश्व में जाने वाली 60% फ्लाइट के उड़ान ना भर सकने को भी इस मिलिट्री तख्तापलट का संकेत माना है। कहा जाता है कि किंतु विश्व भर में 9584 एयरक्राफ्ट विदेशों के लिए उड़ ना सके।
[  ] रूस ने इनको पावर आफ साइबेरिया नाम से जानी जाने वाली पाइप लाइन के जरिए तेल देने पर अस्थाई तौर से रोक लगा दी है।
  उपरोक्त परिस्थितियों से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि-" चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब सत्ता विहीन हो चुके हैं। चीन की संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को केवल दो बार राष्ट्रपति बनने की व्यवस्था है परंतु शी जिनपिंग का यह प्रयास रहा कि वे आजीवन चीन के राष्ट्रपति रहेंगे। यह तथ्य पूरा विश्व जानता है और चीन के महत्वाकांक्षी लोगों के मन में शी जिनपिंग का यह सपना बरसों से खटक रहा है। इस कारण भी तख्तापलट की इन खबरों से इंकार नहीं किया जा सकता ?
*यदि यह मिलिट्री कू हुआ है तो उसका कारण क्या है?*
   मीडिया रिपोर्ट पर गंभीरता से विचार किया जाए तो आप पाएंगे ताइवान मुद्दे पर चीन के राष्ट्रपति की चुप्पी को लेकर चीन की आर्मी पी एल ए अर्थात पीपल्स लिबरेशन आर्मी राष्ट्रपति के खिलाफ है। दूसरी ओर चीन में आर्थिक संकट तथा आंतरिक आर्थिक अस्थिरता का दोषी भी शी जिनपिंग को माना जा रहा है। साथ ही चीन के नागरिक अब अधिक मुखर हो गए हैं वह शी जिनपिंग के कोविड कालीन प्रबंधन से बेहद नाराज दिखाई दे रहे हैं।
इसके अतिरिक्त चीन का अंतर्राष्ट्रीय रसूख भी इन दिनों तेजी से अपेक्षा कृत कमजोर हुआ है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो विश्वव्यापी इस अफवाह को पूरी तरह से अफवाह नहीं कहा जा सकता? और इसे हूबहू स्वीकारना भी ठीक नहीं है जब तक की कोई आधिकारिक घोषणा ना हो।
  *शी जिनपिंग के कार्यकाल में शाइनो-इंडिया रिलेशनशिप*
    भारत की ओर से चीन के साथ मैत्री संबंध के प्रयास हमेशा ही सकारात्मक रहे हैं परंतु चीन पर डोकलाम घटना के बाद चीन से रिश्ते नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए थे। अंततः चीन को अपनी रणनीति से भारत के समक्ष झुकना पड़ा। पाकिस्तान के साथ चीन के रिश्ते व्यवसायिक रूप से मजबूत रहे हैं परंतु चीन की श्रीलंका और पाकिस्तान सहित अफ्रीकन देशों के साथ आर्थिक धोखेबाजी से पूरा विश्व चीन के विरोध में है। भारत का स्टैंड जियोपोलिटिक्स में मजबूत होता नजर आता है तो उसका कारण है-"चीन के विश्व के महत्वपूर्ण देशों से रिश्तो में खटास..!" विश्व के महत्वपूर्ण राष्ट्रों में भारत भी शामिल है आप सहज अंदाज लगा सकते हैं कि चीन के साथ हमारा संबंध सामान्य से कमजोर ही रहा है।
   यदि यह खबर सत्य है तो ऊपर दिए गए समस्त कारणों के आधार पर ही सत्य होगी परंतु हमें इस बात पर विश्वास करना चाहिए कि भारत के प्रति कीमती विदेश नीति सकारात्मक और भावात्मक नहीं है।

24.9.22

चावल निर्यात पर प्रतिबंध से डब्ल्यूटीओ में हड़कंप

*चावल निर्यात पर प्रतिबंध से विश्व व्यापार संगठन में मची अफरा-तफरी*
   विगत तिमाही में भारत सरकार ने आयात निर्यात को विनियमित करते हुए भारतीय बाजार की स्थिति के मद्देनजर ब्रोकन चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। आप जानते ही हैं कि विश्व बाजार में खाद्य आपूर्ति के मामले में भारत का योगदान पहले पांच नंबरों में आता है। चावल की वैश्विक खपत को देखते हुए आप को आश्चर्य होगा कि भारत से विगत 2021 में चावल का निर्यात 150 देशों में 9.6 बिलियन डॉलर्स  का रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में प्राकृतिक कारणों से घरेलू उत्पादन में चावल का उत्पादन 13% कम रहा है। इससे भारत का आंतरिक बाजार प्रभावित हुआ है। भारत में चावल निर्यात में पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया है बल्कि केवल ब्रोकन चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है और सामान्य चावल पर 20% की एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाई गई है। इतना करने मात्र से विश्व व्यापार संगठन में लगभग 150 देशों के प्रतिनिधियों ने यह कहकर हंगामा खड़ा कर दिया कि भारत के इस कदम से विश्व की खाद्य आपूर्ति व्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है। इस मुद्दे को लीड करने में अमेरिका और सेनेगल सबसे आगे है। अमेरिका का यह भी कहना है कि -" ऐसे प्रतिबंधों से यह अर्थ निकाला जाता है कि भारत अत्यधिक प्रॉफिट कमाना चाहता है।"
   परंतु विश्व में फूड सिक्योरिटी , आपूर्ति और सप्लाई चैन के मामले में भारत का सदा ही पॉजिटिव नजरिया रहा है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि केवल निर्यात को सर्वोपरि रखा जावे निर्यात को सर्वोपरि रखने से हमारी आर्थिक व्यवस्था भी प्रभावित होती है फिर भी आंतरिक समस्याओं को देखते हुए हमें आवश्यक है कि हम कुछ ऐसे निर्णय लें जो भले ही नुकसानदेह हो परंतु जनता के लिए लाभकारी हो। भारत में 125 करोड़ से अधिक आबादी के लिए ब्रोकन राइस की उपलब्धता हमेशा आवश्यक और प्राथमिकता वाली होती है। यदि हम ऐसे अत्यंत उपयोगी खाद्य सामग्री को विश्व में बाटेंगे तो भारत में ब्रोकन राइस की कीमत आसमान को छू लेगी और आम आदमी तक इसकी उपलब्धता में नकारात्मक रूप से प्रभाव पड़ेगा। डब्ल्यूटीओ में इस मुद्दे को उठाकर विश्व के 150 देशों ने भारत को भेजने की कोशिश की परंतु भारतीय प्रतिनिधि ने स्पष्ट रूप से सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए स्पष्ट कर दिया कि-" भारत का संकल्प है की सप्लाई चेन को मेंटेन रखें लेकिन आंतरिक आवश्यकताओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता। जैसा कि आप सब जानते हैं कि इस वर्ष प्राकृतिक कारणों से भी भारत में खाद्यान्न का उत्पादन अपेक्षाकृत कम हुआ है अतः ऐसे कदम उठाना राष्ट्रहित में आवश्यक है और कोई भी सरकार अपने लोगों को भूखा रखकर निर्यात को सर्वोपरि कैसे रख सकती है?
   विश्व व्यापार संगठन की एक और अहम समस्या है कि विश्व व्यापार संगठन तेल उत्पादक देशों द्वारा निर्मित तेल के कृत्रिम अभाव कम उत्पादन पर हमेशा चुप रहा है। और आप देखते हैं कि विश्व बाजार में आए दिन क्रूड ऑयल कि वैश्विक आपूर्ति में मूल्यों में वृद्धि होती रहती है। और क्रूड आयल एक अत्यधिक लाभ कमाने का उत्पादक देशों के लिए महत्वपूर्ण साधन बन गया है। इससे दक्षिण एशियाई देशों ही नहीं बल्कि विश्व के उन तमाम देशों अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ता है जो तेल उत्पादक देशों से तेल का आयात करते हैं । इसके पूर्व भी आपने देखा होगा कि कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत में सब्सिडी को टारगेट करते हुए भारत के विरुद्ध आवेदन विश्व व्यापार संगठन के मुख्यालय में जमा किए। इसके अलावा कई देश विशेष तौर पर यूरोपियन देश भारत के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन में नकारात्मक वातावरण निर्मित करने की कोशिश करते रहे हैं।
   भारत की आयात निर्यात पॉलिसी सदा से ही सकारात्मक रही है। जबकि कोविड-19 के दौरान कच्चे केमिकल की आपूर्ति के संदर्भ में  अमेरिका द्वारा प्रतिबंध की कोशिश की थी। कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए भारत को जिस केमिकल की जरूरत थी उस पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा  दिया था। परंतु अंतरराष्ट्रीय दबाव एवं भारत की क्षमता को देखते हुए अमेरिका के तत्सम में नवनिर्वाचित हुए राष्ट्रपति जो बाइडन को अपनी निर्णय पर पुनर्विचार करना पड़ा। वर्तमान में भारत की स्थिति रशियन तेल आपूर्ति व्यवस्था के कारण सामान्यतः ठीक है। विश्व खाद्य आपूर्ति अर्थात आयात निर्यात को डब्ल्यूटीओ ने सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा तो है परंतु यूरोपियन देश भारत में उत्पादित खाद्यान्नों पर सब्सिडी देने तक पर सवाल उठाते हैं। भारत की फेडरल और राज्य सरकारों द्वारा कृषि उत्पादन को उत्कृष्ट बनाने की जद्दोजहद करते हुए राजकोष से सब्सिडी प्रदान करती है। इस कारण भारत में कृषि उत्पाद की गुणवत्ता तथा मात्रा में वृद्धि देखी जा रही है। और यही विकास यूरोपियन देशों के पेट का दर्द बना हुआ है।
   तेल संकट से जूझ रहा यूरोप इन दिनों भारत के आंतरिक कारणों से चावल पर लगाए गए प्रतिबंध से भयभीत भी नजर आ रहा है।
   डब्ल्यूटीओ को यह बात समझनी चाहिए कि अगर तेल की कीमतों पर नियंत्रण रहा तो विश्व के अविकसित विकासशील देशों की आर्थिक व्यवस्था धीरे धीरे सुदृढ़ होगी परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इस मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन एक पक्षीय दृष्टिकोण अपनाता है। तेल की कीमतों पर सदा चुपचाप रहना  और भारत द्वारा उत्पादित खाद्य सामग्रियों के संदर्भ में अत्यधिक मुखर देशों की बात सुनना डब्ल्यूटीओ की सबसे बड़ी भूल है।
   

22.9.22

दिलदार सरदार दमदार सरदार बीएस पाबला

अद्भुत व्यक्तित्व था बीएस पाबला जी का उनसे मुलाकात की वजह हिंदी ब्लॉगिंग में प्रभावी लेखन एवं ब्लॉगिंग के तकनीकी ज्ञान रही है। पाबला जी से मुलाकात दिल्ली में हुए अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर्स मीट में हुई थी। दिल्ली में मिले देश चिट्ठाकार  ऐसे मिले जैसे आपस में बड़ा घरेलू सा रिश्ता हो। मध्य प्रदेश के सहोदर राज्य छत्तीसगढ़ के रायपुर के सभी ब्लॉगर भाई श्री ललित शर्मा जी सहित ब्लॉगर्स से आवाज सुनने का रिश्ता तो था ही पर प्रत्यक्ष मिलते ही सच में ऐसा लगा जैसे हम सच एक ही मोहल्ले में रहने वाली लोग हैं। जबलपुर मूल के समीर लाल कनाडा से बैठे-बठे बहुत तेरी लोगों को ब्लॉगिंग सिखाते तो पाबला जी ब्लॉगिंग में आने वाली तकनीकी समस्याओं का  दुख दर्द मिटाने में पीछे नहीं रहते। अक्सर हम सब समस्याओं का निदान पावभाजी से ही पाते थे। उनका सहयोगी भाव अद्भुत था। 1 दिन में सुबह-सुबह चकित रह गया जब बाबूलाल जी का कॉल आया। 29 नवंबर 2008 अथवा 2009 की बात है यह मेरे लिए बड़ा महत्वपूर्ण दिन है इस  दिन मेरा जन्मदिन होता है पाबला जी ने शुभकामनाएं दी। उन्होंने बड़ी मेहनत से सारे हिंदी चिट्ठाकारों के जन्म पर्वों का लेखा जोखा बना रखा था और ऑफिस जाने के पहले उन सभी को फोन लगाकर बधाई अवश्य देते। एक बार मेरा ब्लॉग ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा था। पाबला जी ने अपने तकनीकी ज्ञान से ब्लॉग का ढांचा ही सुधार दिया। और मुझे निर्देश दिया कि आप तुरंत पासवर्ड बदल लीजिए। मैंने बड़े उदासीन भाव से कहा -" पाबला जी पासवर्ड आपके पास है न..?"
पाबला जी ने कहा-" मैं शाम को देखूंगा कि आपने पासवर्ड बदला कि नहीं अभी तो मुझे दफ्तर जाना है। पासवर्ड किसी को भी शेयर नहीं करना चाहिए।"
  पुत्र के असमय निधन से वे दुखी जरूर थे परंतु जीवन को भरपूर शिद्दत से जीते रहे अपने आंसू आंखों में कहां छुपा लिया करते थे इस बारे में वे ही जानते हैं या वाहेगुरु ?
 उनके अकेलेपन को मिटाने का काम उनका डॉगी था जिसे भी प्यार से मैक सिंह बुलाते थे।
   दिलदार सरदार दमदार सरदार बीएस पाबला 21 सितंबर 2021 को हम सब को छोड़ कर अनंत यात्रा में पर निकल पड़े। बी एस पाबला जी को विनम्र श्रद्धांजलि शत शत नमन उनकी अनुपस्थिति हमेशा हमें खलती है।

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