28.1.21

ओह तो मेघा पाटकर भी भटके हुए लोगों के आंदोलन की हिस्सा हैं ?


 वीडियो अवश्य देखिए मेरे चैनल मिसफ़िट लाइव पर 
Is kisan andolan anti indian khalistan movement

लाल किले कांड पर के संदर्भ में लोगों का यह मानना है कि यह आंदोलन भटक गया है वास्तविकता तो यह है कि यह भटके हुए लोगों का आंदोलन है जो भारत को विश्व में बदनाम करने की साजिश थी।
     अपने हाथों में फैक्चर का दर्द भोगने वाली एस एच ओ बलजीत सिंह ने बताया कि-" असलहे लेकर आए थे और हमने धीरज नहीं खोया।'
    कमर में गंभीर फैक्चर होने के बावजूद घायल जोगिंदर सिंह सहायक इंस्पेक्टर पुलिस ने पंजाब भारतीयता और देश प्रेम का संदेश दिया .
   दिल्ली पुलिस कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव ने कहा कि- "लगभग  394 पुलिसकर्मी विभिन्न अस्पतालों में इलाज कर रहे हैं 19 आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए हैं 50 आरोपियों को हिरासत में रखा है किसान निर्धारित समय और निर्धारित रूट से बाहर जाकर ट्रैक्टर रैली प्रारंभ कर दी।"
   इस सूचना के साथ कि भानु सिंह एवं वीएम सिंह के गुट ने आंदोलन से स्वयं को अलग कर लिया है।
 वी एम सिंह के नेतृत्व में एवं  श्री भानु जी जो चिल्ला बॉर्डर पर मौजूद आंदोलनकारियों का नेतृत्व कर रहे थे। यह दोनों नेता भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के अपमान से शुद्ध थे और इन्होंने 27 जनवरी 2021 की शाम होते-होते आंदोलन से ही अपने आप को अलग कर लिया .
    आप जो शेष बचे हैं उनमें राकेश टिकैत योगेंद्र यादव मेघा पाटकर जैसी वामपंथी विचारकों के हाथ में किसान आंदोलन की बागडोर है जो वास्तविक रूप में शुरू से ही थी।
   इस बीच मृत युवक की पहचान ऑस्ट्रेलिया निवासी युवक के रूप में की गई है। जो विगत कुछ माह पूर्व भारत आया था और आंदोलन में किसान के रूप में शामिल हुआ। इस युवा की मृत्यु ट्रैक्टर के पलटने से हुई है।
   राकेश टिकट मेघा पाटकर और योगेंद्र यादव की परिकल्पना को आकार देने वाला दीप सिंधु का सीधा रिलेशन वर्तमान में धर्मेंद्र देओल सनी देओल परिवार से नहीं है इसकी पुष्टि स्वयं सनी देओल ने 6 दिसंबर 2020 में ट्वीट करके कर दी थी ।
  मित्रों अगर कभी पंथ या धर्म के ध्वज की बात होगी तो उसे किसी भी स्थिति में तिरंगे से ऊपर या उसके समानांतर इस भावना से नहीं ठहराया जा सकता जिससे भारतीय एकात्मता को चोट पहुंचे।
    मित्रों 26 जनवरी 2021 के दिन रिकॉर्ड वीडियो भविष्य के लिए साक्ष्य बनेंगे ।
 आरएसएस के विरुद्ध बोलने वाले कर्नल दानवीर सिंह चौहान ने तक अपने वक्तव्य में माना एवम कहा है कि - "पंजाब में खालिस्तान आंदोलन का कोई विचार वर्तमान समय में जीवित नहीं है। कर्नल दानवीर से चौहान खालिस्तान आंदोलन के विदेशी कनेक्शनस् अवश्य है।  आम भारतीय कर्नल दानवीर सिंह चौहान के वक्तव्य से आंशिक सहमति रख सकता है और रखता भी है । यदि यह सही है तो सिखों को भी इस तथ्य को समझ लेना चाहिए । अर्थात अब वो समय है कि सिख समाज के नेता इसकी खुल के निंदा करें । साथ ही साथ मुखर होकर इस घटना को  राष्ट्र विरोधी घटना मानते हुए राष्ट्र विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग मुखर होकर ही करें । कर्नल दानवीर इस आंदोलन को शुद्ध रूप से किसान आंदोलन नहीं मानते हैं।


26.1.21

आंदोलन से पल्ला कैसे झाड़ सकते हो माफी मांगो यादव जी टिकैत जी कक्का जी मुला जी

बहुत ठंडा मौसम था । आज सुबह विजुअलटी मुश्किल से एक या डेढ़ किलोमीटर यह जबलपुर का मौसम परंतु इस मौसम  पर भारी था हमारा अपना उत्साह हम जो संविधान का सम्मान करते हैं हम जो षड्यंत्र करके किसी को बदनाम नहीं करते। हमारा दर्शन भी यह नहीं सिखाता। ना ही हमारी संस्कृति को ऐसे दृश्य देखने को मिले हो जिनसे तिरंगे के अपमान को बल मिले।
          लगातार एक सप्ताह से हम भारतीय आज के दिन का इंतजार कर रहे थे। 19 प्रोटोकॉल ना होता तो बच्चे भी सांस्कृतिक आयोजनों के लिए अपना बेहतर से बेहतर देने का प्रयास करते। आज 119 व्यक्तियों को पद्म पुरस्कार वीर और इनोवेटिव काम करने वाले बच्चों का सम्मानित होना बेशक गर्व की बात होती है। बाबा अंबेडकर हम शर्मिंदा हैं कि तुम्हारे नेतृत्व में लिखे गए इस संविधान नामक ग्रंथ पर जहां एक ओर गर्व करने का उत्सवी दिन था वहीं दूसरी ओर क्रूर एवं कुंठित मानसिकता ने ना केवल 72वें 
उत्साह से नहीं मनाने दिया वहीं दूसरी ओर गहरा विषाद लेकर हम शोकाकुल हो गए हैं । 
       आपको यहां स्पष्ट कर देना चाहता हूं मेरा उद्देश्य किसी भी मूर्ख व्यक्ति के नाम का जिक्र करने का कदापि नहीं है ना मैं यह चाहता हूं कि उन्हें यहां उल्लेखित कर उन्हें अमर कर दिया जावे । 
    मुद्दा यह है कि-" आंदोलन के प्रेरक एवं कर्ताधर्ता आज उस समय अपना पल्ला झाड़ते नजर आए जिन्होंने आंदोलन को शांतिपूर्ण ढंग से करने का दावा किया था तथा उनके वकीलों ने माननीय सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था हम शान्ति पूर्ण ट्रेक्टर मार्च इस लिए करेंगे  क्योंकि हम किसान भारतीय राष्ट्रीय पर्व  मना सकते..!"
    मीलार्ड भी सहमत ही होंगे जब हम सब सहमत हैं कि सब को हक है अपने राष्ट्रीय पर्वों को मनाने का। परंतु आज जिस तरह से निहंग तलवारें और फिर से चमकाते हुए लाल किले पर चढ़ गए उससे यह साबित हो गया कि यह आंदोलन मौलिक रूप से किस बुनियाद पर शुरू किया गया था । सूचनाओं के अनुसार दिल्ली में 86 पुलिसकर्मी के साथ 120 से अधिक लोग घायल हैं। किसान आंदोलन के 62 वें दिन आंदोलन के गंदे स्वरूप को देखकर लगा कि यह आंदोलन कनाडा एवं पाकिस्तानी के  साथ  आतंकियों की संधि का परिणाम है। भारत सरकार के वकील साहब यह स्थिति एक्सप्लेन करते रहे परंतु मीलार्ड को अधिक भरोसा था झूठा प्रॉमिस करने वाले आंदोलनकारियों के वकीलों पर। इसकी वजह है कि मिलावट यह समझ रहे होंगे कि जो किसान भारत के अन्नदाता है वह इस तरह का व्यवहार तो नहीं करेंगे। टेलीविजन पर दिखाया गया कि महिला पुलिस वीडियो जर्नलिस्ट प्रेस रिपोर्टर पर हमलावर होते किसान अन्नदाता तो नहीं क्योंकि एक पुलिसकर्मी को घेर कर मारने वाले  किसान आतंक की नए तरीके से परिभाषा प्रस्तुत कर रहे हैं। यह तरीका साफ तौर पर आयातित विचारधाराओं अर्बन नक्सली सोच का सुझाया हुआ ही है।

    आईटीओ पुलिस को ट्रैक्टर घुमाकर आतंकित करने वाला किसान जय जवान जय किसान के नारे की धज्जियां उड़ाता नजर आया शास्त्री जी हम भी शर्मिंदा हैं।
       इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इस आंदोलन में वित्तीय व्यवस्थापन से लेकर स्ट्रैटेजिक प्लानिंग भी हर हालत में
पाकिस्तान कनाडा चीन और भारत में पल रहे नक्सलवादी स्लीपर सेल की उपज है।
   मजबूरी में मुझे स्वराज इंडिया के संयोजक का नाम यहां जिक्र करना पड़ रहा है जो किसान आंदोलन से पल्ला झाड़ रहे हैं वास्तव में मुख्य कल्पित यही व्यक्ति है जिसे देश योगेंद्र यादव के नाम से जानता है। दीप संधू जिसे आंदोलन से अलग रखने का खुलासा करने वाला यह व्यक्ति सर से पांव तक झूठ बोल रहा है क्योंकि लगातार दो महीनों से संधू अत्यधिक सक्रिय है और उससे लगातार इस आंदोलन को हर एंगल से सहायता प्राप्त हो रही है। सनी देओल के साथ कभी जुड़ा यह व्यक्ति अर्थात दीप संधू वास्तव में अवसरवादी एवं भारत विरोधी गतिविधि में सक्रिय लोगों के हथियार चलाने का एक कंधा है
            दीप सन्धु
भारत वासियों चाहे कुछ भी हो अगर ये आंदोलनकारी किसान नेता माफी नहीं मांगते तो इन्हें देशद्रोही मान लेना एवं इनके खिलाफ विधिवत क्रिमिनल प्रोसिडिंग  प्रारंभ करना आवश्यक है अगर यह माफी मांग लेते हैं तब भी क्रिमिनल प्रोसीडिंग्स आवश्यक है  ताकि जिस न्याय व्यवस्था की आंखों में धूल झोंक कर पुलिस प्रशासन को गुमराह कर समय से पूर्व रैली निकाली गई और लाल किले पर धार्मिक एवम मोर्चे का झंडा फहरा  दिया गया। 
सुधी पाठकों अन्य प्रदेशों की सरकार को भी अपने अपने कृषि प्रधान इलाकों से इस आंदोलन में शामिल पुणे गए किसानों की सूची भी तैयार कर ले ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आवे।

24.1.21

नेता जी क्यों महान हैं..?

महात्मा गांधी ने जिनके बारे में कहा था - वे देशभक्तों के देशभक्त हैं ।
 तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा,  दिल्ली चलो कदम कदम बढ़ाए जा, जय हिंद, इन शब्दों के जरिए नेता जी को हम पहचानते हैं। राष्ट्रवादी इतिहासकार डॉ आनंद राणा  के अनुसार  नेताजी चार बार नेता जी का जबलपुर आगमन हुआ था।
 नेताजी गीता और महाभारत कथा के मिश्रित वर्जन थे। नेताजी के बारे में कहा जाता है कि वे हिटलर से मिले थे इतिहास भी यही है। परंतु आपने हमने कोई ऐसा शब्द भी नहीं पढ़ा जिसमें उन्होंने हिटलर के नैरेटिव  का जिक्र किया हो या उसे स्वीकार हो या फिर लेश मात्र भी सहमति व्यक्त की गई हो..!
  नेताजी की फैमिली से शादी भारतीय वैदिक परंपरा और रिचुअल्स के साथ संपन्न हुई। कई  विवरणों को पढ़कर पता चलता है कि- अपने विवाह के दौरान वे एमिली शेंगल के समक्ष भारतीय संस्कृति विवाह संस्था रिचुअल्स के महत्व का विश्लेषण और आवश्यकता पर प्रकाश डालते रहे। नेता जी महान क्यों है यह एक सवाल मेरे जिस्म में मौजूद मस्तिष्क में निरंतर सांय सांय होता है। अनुज धर ने नेताजी के व्यक्तित्व को बखूबी उभारते हुए स्पष्ट किया है कि- नेताजी अपने आप को आजादी के बाद नेता जी ने अपने जीवन को लगभग गुमशुदा कर लिया था। *इंडियाज मोस्ट कवर अप* के लेखक अनुज धर का मानना है कि भगवन उर्फ गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे । 
   इसके संबंध में उन्होंने इस बहस  से पर्दा हटा दिया  कि गुमनामी बाबा की हैंडराइटिंग पूरी तरह से नेताजी की हैंडराइटिंग से मिलती है। 
  अगर ऐसी बात है तो बेशक भारत का सबसे महान नेता का रुतबा नेताजी सुभाष चंद्र जी कोही दिया जाना चाहिए।
भारतीय राजनीति में ऐसे कम ही लोग हुए हैं जिन्होंने प्रयोगवादी होने का आरोप अपने सिर पर नहीं लिया है। वास्तव में इस श्रेणी में मेरे हिसाब से दो ही व्यक्ति रखे जा सकते हैं एक सरदार बल्लभ भाई पटेल और दूसरे नेताजी सुभाष चंद्र बोस।
मित्रों और सुधि पाठकों हम मस्तिष्क धारी हैं चिंतन भी करते हैं हमारे पास शब्द भाव विश्लेषण सब कुछ है तो विमर्श भी होगा और विमर्श में सहमति या असहमति सब कुछ संभव है।
चलिए तो वापस चलते हैं नेताजी के महान होने के संदर्भ में एक टच और जानते हैं
" मेरे कार्यालय में मेरी सहकर्मी के माता और पिता दोनों ही आजाद हिंद फौज में सेनानी थे। उन्होंने बताया कि माता-पिता अक्सर नेताजी की सहृदयता के बारे में चर्चा करते हुए सुनाई देते थे। वह अवश्य समझाते थे कि आजादी के लिए बलिदानी होना जरूरी है परंतु किसी को भूखा या बीमार देखकर नेताजी बेचैन हो जाते थे। श्रीमती अय्यर की मां के पैर में जहाज का एक कीला घुस गया था नेता जी ने स्वयं अपने हाथों से श्रीमती अय्यर के जख्म पर फर्स्ट ऐड किया और उस वक्त भी बेहद भावुक थे।
  60 हजार सैनिकों के लाव लश्कर वाली आईएनए  24000 के आसपास सैनिकों का शहीद हो जाना उनके हृदय को छलनी कर रहा था वे बहुत दुखी हो जाते थे उन शहीदों को याद करते हुए ।
शत शत नमन नेताजी एक बार फिर से जन्म लोग भारत में

20.1.21

कश्मीर 19 जनवरी 1990

 

कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है , 14वी शताब्दी से  लगातार इस कश्मीर एक आतंक के साए जीने के लिए मजबूर था ।
भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में एक ऐतिहासिक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम २०१९ पेश किया जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया ।
  और यह धारा 35 स्थाई प्रबंध था और इसका अंत कश्मीर की वादियों में चुभन भरी हवा से मुक्ति के लिए किया गया। नई  व्यवस्था लागू होने के साथ भारत के कश्मीरी पंडितों के साथ आधा न्याय मिल गया। भारत के सभी हिस्से में बदलाव की जरूरत थी । बदलाव हुआ और इस बदलाव में कश्मीरी पंडितों को अपनी जन्मभूमि में वापिस पहुंचने उस पर माथा टेकने का एक मौका मिलने की उम्मीद बढ़ती जा रही है। किंतु परिस्थितियां अभी भी बहुत अनुकूल नहीं कि कहीं जा सकती इसी विषय पर मीनाक्षी रैना कश्मीर से निकलकर कनाडा में जा बसी लेखिका की अभिव्यक्ति के आधार पर यह वीडियो तैयार किया है उम्मीद है कि आप भी सम्मिलित होंगे और वैश्विक स्तर पर इस बात की नहीं छोड़ेंगे कि कश्मीर पर हिंदू पंडितों पर कितने अत्याचार हुए हैं और उसे उनके मानव अधिकार से जोड़कर सबसे पहले देखना चाहिए। एक जन की तरह है ना केवल 19 जनवरी को बल्कि निरंतर भारत के पक्ष को सर्वव्यापी बनाना भारत के नागरिकों और प्रवासी भारतीयों की जिम्मेदारी है। मित्रों इस आर्टिकल को और ऊपर दिए वीडियो को जरूर देखिए सुनिए समझ ही और एक नैरेटिव बनाइए ताकि ब्रिटेन की संसद जैसी संस्थाओं में भारत के खिलाफ कोई भी फिरंगी नेगेटिव वातावरण निर्मित ना कर पाए।
आरती टिक्कू को सुनिए यूट्यूब के डिफेंसिव ऑफेंस में
https://youtu.be/CNl3WRCa8OA

19.1.21

कोविड का टीका : वाक़ई है तीखा

कोविड का टीका : वाक़ई है तीखा ।

    बाबा की सबसे गंदी आदत है कि इस उसकी भैंस बांध के ले आते हैं। जब भैंस से नहीं मिलती तो बकरियां बांध लेते हैं जिसको बुंदेलखंड में छिरियाँ बांध लेते हैं।
    यह सोचकर हम एक बार बाबा की बाखर का वीडियो मंगाए। वीडियो में आंख घुसा घुसा के देखें तब भी हमको भैंसिया नजर नहीं आई। अपने भाइयों की बकरियां तलाशनी चाही बाबा वह भी हम को नजर नहीं आई। हमने दुर्गेश भैया से पूछा भाई वह तो कुछ नहीं है फिर आप चिल्ल-पौं काय मचाते रए हो । दुर्जन भैया हमसे गुस्सा हो गए हमको उनने फेसबुक पर ब्लॉक करने की भयंकर अपमानजनक धमकी दे डाली।
     आज के दौर में अगर आपको कोई ब्लॉक कर दे उससे बड़ा अपमान विश्व में कोई हो सकता है क्या ?
    सोशल मीडिया से पता चलता है कि आपका स्टेटस क्या हुआ अरे आप का डाला हुआ स्टेटस नहीं आपका समाज में स्तर क्या है ? जे बोल रहा हूं । आप समझ रहे हो ना ?
   व्हाट्सएप पर ब्लॉक करना  या ग्रुप से निष्कासित कर देना दूसरा बड़ा डिफॉर्मेशन है।
   मार्क जुकरबर्ग तुम आओ भारत हमारे मोहल्ले में आए तो समझ लेना हम तुम्हारी ऐसी भद्रा उतारेंगे कि तुम्हें ऐसे डिफॉर्मेशन करने के बारे में सौ बार सोचना पड़ेगा ।
दुर्जन भाई को हमसे खुन्नस इस वजह से हुई कि वे कह रहे थे कि- ये टीका बाबा का है । हम नई लगवाएंगे ।
हम बोले :- भाई जी हम चाहते हैं कि आप लगवालो मर मुरा गए तो इस बाबा की 56 इंच की छाती पर मूंग कौन दलेगा ..? मूंग न दलोगे तो लड्डू कैसे बनेंगे । लड्डू न बने तो आप खाएंगे क्या ? बाबा के चक्कर में परेशान मत हो वैसे वो न तो खाएगा न खाने देगा !
      अब बताओ भैया हम क्या गलत बोले ?
लगे हाथ हमने पूछा - आपकी भी भैंस बाबा बांध लिए का..?
दुर्जन ने हमें  भक्त बोल दिया । बस फिर क्या था जब भी वो लिखते हम हुक्का पानी लेकर चढ़ बैठते । 4-5 टिप्पणियों में उनकी टैं निकल गई । सो
भाइयो बहनों पहले सुन लो जिनकी भी भैंस  और बकरियां बाबा बांध के लिए गया है वह सब कान खोल कर सुन ले अगले बार आप जो भी जानवर खरीदें उसका इंश्योरेंस कराने की कोशिश जरूर करें। और अगर कोई भी इंश्योरेंस कंपनी इनका बीमा न कर सके तो तुम सब मिलजुल के कैटल इंश्योरेंस कारपोरेशन बाबा के स्टार्टअप कार्यक्रम के अंतर्गत कर सकते हो । करो ना करो लेकिन भैंसों को बकरियों को संभाल के बांधो। दुर्जन भैया आप तो खासतौर पर खुलकर सुनो आपके जानवर आपसे ज्यादा ढीठ और बेलगाम हैं ।
   पड़ोसी देश में इमरान नाम के राजा राज करते हैं। वह इतने मासूम है क्या उनकी मासूमियत उनके अब्बा जान क़मर बाजवा के अलावा कोई भी नहीं जानता। अब्बू ने साफ-साफ कह दिया कि कोई फिजूलखर्ची नहीं करेगा तो हुजूर मलेशिया का लीज रेंट मलेशिया को नहीं  दिया।
    बस फिर क्या था... मलेशिया वालों ने इम्मू का तैयारा यानी भारत के बच्चे जिसे हिवाई  ज़िहाज़ कहते हैं से सारे पैसेंजर उतरवाए और जब्ती बना डाली अरे भई पैसेंजर की नहीं हिवाई ज़िहाज़ की।
   अब बताओ मुन्ना अब्बू ने जब इमरान बाबू को खर्चे वाली ज़रूरी मदों की जो लिस्ट दी थी  उसमें जहाज शामिल नहीं था सबसे टॉप पर लिखावाया था जहाज़..! टायपिंग मिस्टेक से वो जिहाद हो गया ।
  आपई बताओ जिहाद वाले मद से निकालकर खर्चा जहाज पर कैसे किया जा सकता ?
    उधर बड़े अब्बू यानी शेख साहब लोग  कटोरे में इतना भी नहीं डाल रहे किचन में तनाव आ जाए ।
कल इमरान साहब गा रहे थे
अब तो उतनी जी नहीं मिलती मयखाने में ।
जितनी हम छोड़के आते थे पैमाने में ।।
    अब्बू और इमरान के एक क़रीबी चाहने वाले कई दुर्जन सिंह इनको लेकर खासे चिंतित हैं..और सारा गुस्सा बाबा पर निकाल रहे हैं । बाबा को पता नहीं क्या क्या कहने लगे और इसी बात पर जब हमने पूछा- दुर्जन चाचा आप बेवजह क्यों तनाव में रहते हैं पड़ोसी मुल्क है रिश्ते खराब चल रहे हैं, चार बरतन होंगे तो आवाज तो आएगी ही आप काहे लोड ले रहे हो ?
  बस इत्ती सी बात थी कि उनने हमें फेसबुक से हटा देने  धमकी दे डाली। वास्तविकता यह है कि दुर्जन  शुरू से कार्ल मार्क्स को अपने सिरहाने रख के सोया करते थे ।  तब तक तो ठीक था परंतु जैसे-जैसे स्टालिन और माओ ने मिलकर  लाल रंग दुर्जन सिंह को टोटका करके शर्बत पिलाया दुर्जन जी को बाबा के लोग  कचरा कूड़ा नजर आते हैं। वॉल्टर ने कुछ भी कहा कि भइये सबकी बातों का मान करो पर  उस बात की अनदेखी कर मेरी मुर्गी का शुरुआ (शोरबा) सबसे उम्दा कह कह कह कर जनता में फेसबुक के ज़रिए मजमा लगा रहे हैं।
  इमरान चाइना के रिश्ते से उनका सगा भतीजा है और इसी नाते दुर्जन सिंह नाराज हैं बाबा से ।
   और इधर बाबा ने कोविड-19  के  वैक्सिन की प्रदर्शनी लगा दी बाबा के सीने पर पता नहीं कौन-कौन लोटने लगे ?  लोटने दो जो जो भी लोटे अपन तो चुपचाप हैं । पर एक बात अभी-अभी समझ में आती है यह जो कोविड-19 का है ना..! लगता तो बाजू में है पर जब   बाएं बाजू में लगता है तो
ज़्यादा ही चुभता  है । कुछ लोग बता रहे थे तीखा भी है। बाबा से  दुर्जन भैया टाईप के और उनके मित्रों की नाराजगी गलत नहीं है। हम सब दुर्जन जी के साथ हैं ।
     टीका लगवाएं तो ठीक न लगवाएं तो ठीक । अगर कुछ हो हुआ गया तो अपन बिदा करने जाएंगे ज़रूर ।

16.1.21

एनडीटीवी की पूर्व पत्रकार क्या सचमुच हुई फिशिंग का शिकार ?

NDTV  की पत्रकार निधि राजदान इन दिनों चर्चा में है। यदि वर्तमान में एनडीटीवी की भूतपूर्व पत्रकार कहा जाना ज्यादा उपयुक्त होगा क्योंकि निधि ने 2020 में ही एनडीटीवी से इस्तीफा दे दिया। 43 वर्ष की उम्र में एक शानदार स्टेटस पाने के बाद अचानक एनडीटीवी को छोड़ना विचारणीय मुद्दा तो था लेकिन कोविड-19 की आपाधापी में यह मुद्दा गंभीरता से नोटिस नहीं किया गया। बीबीसी से लेकर तमाम मीडिया चैनल्स जहां एक और निधि राजदान को फिशिंग का विक्टिम मान रहे हैं वहीं दूसरी ओर आज निधि ट्रोलिंग के मामले में सबसे बड़ी शिकार साबित हुई है। ऑप इंडिया चैनल वाले अजीत भारती हो या यूट्यूब पर लाइव चैनल चलाने वाले वन मैन प्रोड्यूसर है सभी ने अपनी अपनी भड़ास निकाली। 
   निधि राजदान के बारे में एक वीडियो यह भी आया कि उनके द्वारा पहले झूठ बोला गया और अब जब सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रही हैं साथ ही हावर्ड यूनिवर्सिटी से इनके विरुद्ध लीगल एक्शन की तैयारी हो रही है तो  निधि स्वयं को विक्टिम साबित करने की कोशिश कर रही हैं। जहां तक मेरा मानना है के निधि राजदान ने विषय को गंभीरता से समझे बिना कथित ईमेल का परीक्षण किए बिना शेखी बघारने के चक्कर में खुद को इस मामले में उलझा लिया है। मित्रों जब भी आपको आप को लुभावने मेल मिलें तो हमें सबसे पहले उस ई-मेल  का आईपी ऐड्रेस ऑनलाइन चेक कर लेना चाहिए चाहे आप तकनीकी के कितने भी कच्चे खिलाड़ी हैं आपको आईपी एड्रेस चेक करने वाली सैकड़ों वेबसाइट इस दिशा में मदद कर सकती हैं। दैनिक जीवन में ई संदेशों का आना-जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है 2006  में जब मैं इंटरनेट से जुड़ा था तब ही मुझे इस बात का ज्ञान हो चुका था कि किसी भी तरह की धोखेबाजी से बचने के लिए सबसे पहले हमें किसी भी लिंक वेबसाइट ई-मेल के आईपी एड्रेस को चेक कर लेना चाहिए।
कोशिश यही कर लेनी चाहिए कि इस तरह के लुभावने संदेशों पर प्रथम दृष्टया विश्वास न किया जाए।

15.1.21

नेशनल न्यूज़ पर दहाड़ा जबलपुर का शेर

न्यू्ज नेशन से साभार
        आज मकर संक्रांति के दिन न्यूज नेशन राष्ट्रीय चैनल पर "N.C.E.R.T. की 12वीं की इतिहास की पुस्तक में षड्यंत्र पूर्वक शामिल किए गए तथ्य जिसमें मुगलों को मंदिरों के विनाशक के साथ पुनर्निर्माण कर्ता बताया गया है" विषय पर एक डिबेट का आयोजन किया गया । इस डिबेट मेंं एम यू के फिरोज साहब वामपंथी प्रोफेसर सतीश प्रकाश, प्रोफेसर बद्रीनारायण  मौलाना  अली कादरी  प्रोफ़ेसर संगीत रागी , शुबही खान प्रोफेसर बद्रीनारायण के साथ जबलपुुुर प्रोफेसर डॉ आनंद राणा ने भी हिस्सा लिया। बहस  के मुद्दे पर केवल सतीश प्रकाश को छोड़कर सभी नियंत्रित रहे । 

   वर्तमान में भारत के इतिहास को लेकर एक लंबी बहस छिड़ चुकी है। देश में यह स्वीकार आ गया कि आजादी के बाद जब इतिहास लिखने की बात आई तो तत्सम कालीन नीति नियंताओं इस भय से कि भविष्य में कहीं  धर्म एवं संप्रदाय को मानने वालों  के बीच में वैमनस्यता पैदा ना हो ऐसा इतिहास लिखा जाए। इस बिंदु पर जाकर मेरा मस्तिष्क अचानक बुद्धिहीनता पर चकित हो जाता है। मित्रों जैसे ही पत्रकार दीपक चौरसिया ने जो देश की बहस को संचालित कर रहे थे डॉ आनंद राणा को कनेक्ट किया आनंद राणा ने बतौर साक्ष्य प्रभाव कारी वक्तव्य में बताया कि मुगलों ने खास तौर पर औरंगजेब ने तो कभी भी उज्जैन के महाकाल की पूजा के लिए संसाधन या धन उपलब्ध नहीं कराया। एनसीईआरटी पुस्तकों में इस संबंध में जो भी लिखा है गलत है । महाकाल के पुजारी ने भी इस बात की पुष्टि कि आक्रांताओं से बचाव के उद्देश्य से महाकाल की प्रतिमा को गुफा में सुरक्षित कर दिया गया था। मित्रों सभी जानते हैं कि 16 अप्रैल 1669 को बाकायदा मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश मुगल बादशाह औरंगजेब ने दिया था। और वर्तमान में एनसीईआरटी की किताबों में अगर यह पढ़ाया जाता है कि औरंगजेब ने मंदिरों के प्रबंधन के लिए खास इंतजाम किए थे कुल मिलाकर यह झूठ है और इस झूठ को ज्ञान के हित में केवल किताबों से विलोपित कर देना चाहिए बल्कि ऐसी किताब लिखने वालों की किताबें ही प्रतिबंधित कर देनी चाहिए। पूरी बहस में जहां एक ओर मुस्लिम मत को मानने वाले औरंगजेब के कृत्य से असहमत थे वही  कुतर्क का पुलिंदा किए हुए प्रोफेसर सतीश प्रकाश उज्जैन के महाकाल मंदिर के पुजारी को भी नकार रहे थे ।  आयातित विचारधारा  मानने वाले और  अपने ही एजेंडे  को आगे रखने वाले प्रोफेसर सतीश प्रकाश को बेनकाब होता देख आश्चर्यचकित नहीं हूं बल्कि जबलपुर के शेर आनंद राणा की जबरदस्त अभिव्यक्ति के प्रति प्रफुल्लित अवश्य हूं।

 

12.1.21

बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड यू के फ़ॉर पोट्रेट में शामिल हुई स्वामी विवेकानंद की 8 हज़ार वर्ग फ़ीट अनाजों से बनी रंगोली

ग्रामीण कलाकार सतीश गुर्जर ग्राम कुकराबद जिला हरदा  एक ऐसे लोग कलाकार हैं जो अनाज का उपयोग कर विशालकाय पोट्रेट बनाते हैं। विगत सप्ताह उन्होंने अपनी 60 सदस्यीय टीम के साथ स्वामी विवेकानंद की तस्वीर रंगोली के माध्यम से हरदा डिग्री कॉलेज कंपाउंड में बनाई। इस कलाकृति के निर्माण में टीम को 3 दिन लगे। बनाई गई कृति में लगभग 50 क्विंटल अनाज का उपयोग किया गया। प्रत्यक्षदर्शी श्रीमती शुभा पारे एवं श्री राजेन्द्र गुहे बताया कि इस अनाज से बनी रंगोली को देखने विवेकानंद जयंती यानी आज 12 जनवरी 2021 से 13 जनवरी 2021 तक का समय निर्धारित है।  बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड फ़ॉर पोट्रेट यू के  में अब तक इस श्रेणी में 8000 वर्ग फीट की कृति नहीं बनी थी जिसे श्री सतीश गुर्जर एवं उनके साथियों ने बनाया। कलेक्टर हरदा तथा हरदा की विधायक उद्घाटन के मौके पर विशेष रूप से उपस्थित रहे हैं।
इस कलाकृति में 10 सदस्य के रूप में
बिल्लोरे परिवार की की एक बेटी का नाम भी दर्ज हो गया है ।   नार्मदीय ब्राह्मण समाज  की बिटिया कु. सलोनी बिल्लौरे  टिमरनी पिता स्व. श्री कृष्ण कांत बिल्लौरे निवासी टिमरनी भी इस में सदस्य के रूप में सम्मिलित है।

10.1.21

कन्फ्यूज़्ड बचपन (हास्य व्यंग्य)

*1960 से 1980 तक जन्मे*
इस श्रेणी के बच्चे कन्फ्यूजन की सीमाओं से आगे तक कन्फ्यूज़ड थे। पिटने के बाद पता चलता था कि हम क्यों पीटे गए थे । हमारे गाल पिटते पिटते *गलवान* तथा पीठ  पिटते पिटते *शक्ति पीठ* बन गईं हैं ।
हमाये शरीर मैं भगवान ने सुनने के लिए कान दिए हैं। लेकिन हमारे पेरेंट्स ने इन्हें दवा दबाकर विकासशील बना दिया है अभी तक पूर्ण विकसित नहीं हो पाए हैं।
गदेलियां तो मास्साब ने छड़ी पड़े छम छम विद्या एक घमघम  के सूत्र वाक्य को प्रूफ करने में प्रयोग में लाई गई । हम 1960 से लेकर 1980 तक की पैदाइशें पप्पू गुड्डू टिंकू मुन्ना छोटे गुड्डू बड़े गुड्डू छोटा पप्पू बड़ा पप्पू आदि नाम से अलंकृत हो जाते थे । 
  कई बार तो भ्रम होता था हम मनुष्य प्रजाति में हैं या गधा प्रजाति के प्राणी है क्योंकि जिसे देखो वह हमें गधा घोषित करने पर पूरी ताकत लगा देता था।
    हमारे दौर में ट्यूशन सिर्फ गधे बच्चे पढ़ने जाते थे। अपने आप को होशियार बताने के चक्कर में 19 का पहाड़ा आज तक याद नहीं कर पाए पर रट्टा बकायदा मारा करते थे।
  हमारी एक बुआ जी थी उन्हें तो ऐलान कर दिया था कि पढ़ेगा लिखेगा नहीं तो इसकी शादी भैंस से कर देंगे । अब भैंस से शादी ना हो इस डर से रट्टा जोर से मारते थे । 
  कंचा भंवरा गपनी  और बेवजह आवारागर्दी करते अगर बाबूजी ने देख लिया तो समझो कयामत का दिन वही था। बाद में जाकर पता चला कि कयामत का दिन इतनी जल्दी नहीं आने वाला। कयामत का दिन अल्लाह ताला डिसाइड करेंगे। असलम ने बताया था तब फिर अपन थोड़ा निडर होने लगे।
   हम क्या देखेंगे क्या नहीं देखेंगे हमें क्या करना है हमें क्या खाना है इसका डिसीजन हमें नहीं करना चाहिए यह हमें सख्त हिदायत थी। फिर भी हमने बड़े भाई साहब कहानी को बड़े ध्यान से पढ़ा अरे हां वही कहानी जिसमें बड़े भाई साहब बाद में कनकव्वा उड़ाने चल पड़ते हैं। कहानी पढ़ने के बाद हमने महसूस किया कि हमसे ज्यादा कष्ट तो हमारे पूर्वज भोग चुके हैं हो सकता है हमारे मां-बाप भी यही भोग चुके हैं तभी तो ऐसी रिवायत चली आ रही है...!
और फिर हम शांत हो जाते । रईसजादों से दोस्ती करना वर्जित विषय था। हां मध्यमवर्गीय और हमसे लोअर क्लास के बच्चों से मित्रता में कोई रुकावट की योजना नहीं थी । और यहीं से शुरू होता है समाज की प्रगतिशील का आरंभ क्योंकि जातिभेद से परे ले जाता यह दृष्टिकोण माता पिता की आदर्श भावना को परिभाषित करता था। उनका यह कहना होता था कि बाहर से जब घर आओ तो हाथ पैर अवश्य धो लिया करो।
 आठवीं क्लास में जाकर फुल पैंट नसीब हुई उसकी वजह थी की फुल पैंट बनवाने में ज्यादा खर्च लगता है। फुल पेंट से याद आया कि गुप्ता जी के बच्चे बिल्लोरे जी के बच्चे शुक्ला जी के बच्चे जैन साहब के बच्चे अलग अलग पहचान में आ जाते थे।  शर्ट के मामले में तो कम से कम यह कहा जा सकता था कि -" लगता है बच्चों को थान पर लिटा कर बापू जी ने दर्जी से कपड़ा कटवा दिया।
 पेंट तो सामान्यतः काली या डार्क कलर की होती थी और शर्ट जिसे बुश शर्ट कहते थे वह हर परिवार के अलग-अलग रंग के रहते थे। गुप्ता जी के बच्चे स्लेटी कलर के कपड़े पहनते थे तो बाकी अन्य बच्चों के रोज पहने जाने वाले कपड़े अलग-अलग रंगों के परिवार के मुखिया के डिसीजन पर आधारित से हुआ करते थे। 
        कल ही इंजीनियर वरिष्ठ मित्र संजय त्रिपाठी बता रहे थे पिताजी कपड़ों को ढीला बनवाते थे और अगर दादाजी आ गए तो कुछ ढीला और करवा देते थे खास तौर पर शर्ट की बाहें पेंट की कमर पेंट की लंबाई आदि आदि। अब फुल साइज की लंबे बाहों का उपयोग बांह ढांकने के लिए तो होता ही था, पर सर्दियों में बड़ी लाभकारी सिद्ध होती थी । अब आप समझदार हैं रुमाल तो तब हुआ नहीं करते थे वैकल्पिक रुमाल के रूप में आस्तीन से बेहतर और क्या हो सकता था ?
  मजेदार बात यह हुई की एक हुनरमंद टेलर ने हमसे हमारी पुरानी हाफ पेंट मंगाई मामला गोसलपुर का है। एक पेंट का पीछे वाला हिस्सा खराब था जिसे आप दक्षिणावर्त्य कह सकते हैं वैसे हम उसे अपनी सुविधा के लिए अंग्रेजी में साउथ एवेन्यू मॉल कहते हैं। 
  तो सुनिए उस कलाकार टेलर मास्टर ने दोनों पेंट के बेकार हिस्सों को अलग अलग कर दिया और सुरक्षित बचे हिस्सों को एक साथ जोड़ दिया और यह कपड़ों के मामले में मेरी जिंदगी का अनूठा इन्वेंशन था। और जब मित्रों ने पूछा है ऐसा क्यों..!
हमने बता दिया यह फैशन आने वाली है और हमारे टेलर मास्टर ने बताया है कि भविष्य में राजेश खन्ना ऐसे ही कपड़ों में नजर आएंगे। बात आई गई हो गई ना तो राजेश खन्ना उस तरह की पैंट पहन कर आए ना ही पेंटल जूनियर महमूद ने कभी दो रंग वाली वैसी पैंट पहनी। टेलर मास्टर का इन्वेंशन उसी डिजाइन के बाद समाधि में विलीन हो गई।
        उस समय बच्चे जूते नहीं पहनते थे। उन दिनों केवल में दो  आर्थिक स्तर होते थे एक गरीब और एक अमीर । इस तरह बच्चे भी दो भाग में विभक्त थे ।
    गरीब बच्चे सामान्य स्लीपर जिसे आप हवाई चप्पल कहते हैं कहते हैं और जिनके मां बाप थोड़ा आर्थिक स्थिति से मजबूत थे उनके बच्चे करोना या बाटा के स्लीपर पहनते थे। घड़ी तो घर में दो थी एक अलार्म घड़ी जो रेडियो के ऊपर रखी रहती थी ।  दूसरी रिस्टवाच जो हमारे पिताजी के हाथ में जो शायद किसी को बाद में देनी पड़ी थी। परिवार की ही एक सदस्या ने भैया से कहा था- तुम्हारे तो #फादरअली के पास भी टाइम पास नहीं है । उस दिन बाबूजी , बाबू जी से फादरअली हो गए शब्द तो मजेदार था लेकिन जिस मुंह ने उसे व्यक्त किया  वह मुंह मसूर की दाल की भी काबिल नहीं है । जुबान से निकली बात न वो वापस ग्रहण कर पाई और ना हमने ऐसा होने दिया।उस दिन हमने तय कर लिया था कि अब हम वह हासिल करेंगे जो तुम यानी अपमानित करने वाले लोग जिंदगी भर हासिल नहीं कर सकते। 
    तब हमें पता चला की जिंदगी में किसी भी तरह का कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिए।
कुछ बड़ा होने पर एक शब्द गूंजता था पार्थ युद्ध करो जीवन का हर पल युद्ध है, जीवन युद्ध है जो दुनिया रूपी इस कुरुक्षेत्र से होता रहता है  किससे कोई नहीं बचता। जीवन के इस कुरुक्षेत्र में वही विजेता होता है जो अहर्निश युद्ध करता है ऐसा युद्ध जो रक्त नहीं बहाता परंतु युद्ध रत पार्थों का जीवन उजला बनाता है। 
     
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

9.1.21

अंग्रेज़ भारत से क्यों भागे.? लेखक :- श्रीमन प्रशांत पोळ

 

*मुंबई का नौसेना आंदोलन* 
-   प्रशांत पोळ 
द्वितीय विश्वयुध्द के बाद की परिस्थिति सभी के लिए कठिन थी. ब्रिटन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल भारत को स्वतंत्रता देने के पक्ष में नहीं थे. वे अपनी युवावस्था में भारत में रह चुके थे. ब्रिटीश आर्मी में सेकेंड लेफ्टिनंट के नाते वे मुंबई, बंगलोर, कलकत्ता, हैदराबाद आदि स्थानों तैनात थे. नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस में उन्होंने अफगान पठानों के विरोध में युद्ध भी लडा था. १८९६ और १८९७ ये दो वर्ष उन्होंने भारत में गुजारे. भारत की समृद्धि, यहां के राजे - रजवाडे, यहां के लोगों का स्वभाव… यह सब उन्होंने देखा था. यह देखकर उन्हें लगता था कि अंग्रेज भारत पर राज करने के लिये ही पैदा हुए हैं. इसलिये द्वितीय विश्वयुद्ध के समय विंस्टन चर्चिल की ओर से सर स्टेफोर्ड किप्स को भारतियों का सहयोग प्राप्त करने के लिए भारत भेजा गया. इस क्रिप्स मिशन ने भारतीय नेताओं को यह आश्वासन दिया गया की युद्ध समाप्त होते ही भारत को सीमित स्वतंत्रता दी जाएगी. 

इस आश्वासन को देने के बाद भी चर्चिल, भारत से अंग्रेजी सत्ता को निकालना नहीं चाहते थे. किंतू २६ जुलाई १९४५ में, ब्रिटन में आम चुनाव हुए और इस चुनाव में चर्चिल की पार्टी परास्त हुई. क्लेमेंट एटली के नेतृत्व में लेबर पार्टी चुनाव जीत गई. 

*लेबर पार्टी ने भी चुनाव जीतने के पश्चात भारत को स्वतंत्रता देने की घोषणा नहीं की. किंतू २६ जुलाई १९४५ और १८ जुलाई १९४७ (जब स्वतंत्र भारत के बिल को ब्रिटन की संसद ने और राजघराने ने स्वीकृति दी), इन दो वर्षों में तीन बडी घटनाएँ घटी, जिनके कारण अंग्रेजों को यह निर्णय लेने के लिये बाध्य होना पडा.* 

इनमे से पहली घटना थी, १९४६ के प्रारंभ में ‘शाही वायुसेना’ में ‘विद्रोह’. 

जनवरी १९४६ मे, ‘रॉयल एयर फोर्स’, जो आर ए एफ के नाम से जानी जाती थी, के जवानों ने असंतोष के चलते जो आंदोलन छेड़ा, उसमे वायुसेना के ६० अड्डों (एयर स्टेशन्स) में स्थित ५०,००० लोग शामिल थे.

इस आंदोलन की शुरुआत हुई ब्रह्मरौली, अलाहाबाद से. आंदोलन (हड़ताल) के इस समाचार के मिलतेही, कराची के मौरिपुर एयर स्टेशन के २,१०० वायुसैनिक और कलकत्ता के डमडम एयर स्टेशन के १,२०० जवान इस आंदोलन के साथ जुड़ गए. इसके बाद यह आंदोलन वायुसेना के अन्य अड्डों पर, अर्थात कानपुर, पालम (दिल्ली), विशाखापटनम, पुणे, लाहौर आदि स्थानों पर फैलता गया. कुछ स्थानों पर यह आंदोलन कुछ घंटों में समाप्त हुआ, तो अलाहाबाद, कलकत्ता आदि स्थानों पर इसे समाप्त होने में चार दिन लगे.   

*दूसरी घटना थी फरवरी १९४६ का ‘नौसेना विद्रोह..!’*

घटना के पहले अनेक दिनों से, भारतीय नौसेना में बेचैनी थी. इसके अनेक कारण थे. विश्वयुद्ध समाप्त हुआ था. ब्रिटन की हालत बहुत खराब हो गई थी. आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई थी. इस कारण अपनी नौकरी रहेगी या नहीं यह शंका नौसेनिकों के मन में आना स्वाभाविक था. अधिकारियों तक यह बात पँहुची भी थी. किंतू ब्रिटिश नौसेना से या ब्रिटिश सरकार से, इस बारे में स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दिये गए थे. और न हीं कोई टिप्पणी की गई थी. नौसैनिकों के वेतन में असमानता, सुविधाओं का अभाव ये कारण भी थे. लेकिन इससे भी बड़ा कारण था, आजाद हिन्द सेना के अधिकारियों पर दिल्ली के लाल किले में चल रहा कोर्ट मार्शल. इससे पहले भी ब्रिटिश सेना ने कलकत्ता में आजाद हिन्द सेना के अधिकारियों को मृत्युदंड दिया था. *भारतीय सैनिकों की सहानुभूति आजाद हिन्द सेना के सेनानियों के साथ थी.*   

इस सभी बातों का विस्फोट हुआ १८ फरवरी १९४६ को, मुंबई की ‘गोदी’ में, जब किनारे पर खडी एचएमआईएस (हिज मॅजेस्टिज इंडियन शिप) ‘तलवार’ के नौसैनिकों ने निकृष्ट दर्जे के भोजन और नस्लीय भेदभाव के विरोध में आंदोलन छेड दिया. उस समय नौसेना के २२ जहाज मुंबई बंदरगाह पर खडे थे. उन सभी जहाजों को यह संदेश गया और उन सभी जहाजों पर आंदोलन का शंखनाद हुआ. ब्रिटिश अधिकारियों को उनके बॅरेक्स में बंद कर दिया गया. और नेताजी सुभाषचंद्र बोस का बडा सा चित्र लेकर, हजारों की संख्या में इन नौसैनिकों ने एक ‘केंद्रिय नौसेना आंदोलन समिती’ बनाई और इस आंदोलन की आग फैलने लगी. 

वरिष्ठ पेटी ऑफिसर मदन सिंह और वरिष्ठ सिग्नल मॅन एम एस खान, सर्वानुमती से इस आंदोलन के नेता चुने गए. दूसरे दिन १९ फरवरी को इन नौसैनिकों के समर्थन में मुंबई बंद रही. कराची और मद्रास के नौसैनिकों ने भी आंदोलन में शामिल होने की घोषणा की. ‘केंद्रीय नौसेना आंदोलन समिती’ के द्वारा एक मांगपत्र जारी किया गया, जिसमें प्रमुख मांगें थी : 

_१. इंडियन नॅशनल आर्मी (INA) और अन्य राजनैतिक बंदियों को रिहा किया जाए._
_२. इंडोनेशिया से भारतीय सैनिकों को हटाया जाए._ 
_३. अफसरों के पद पर केवल भारतीय अधिकारी ही रहे. अंग्रेज नहीं._ 

नौसैनिकों का आंदोलन यह सारे ब्रिटिश आस्थापनाओं में, जहां जहां भारतीय सैनिक तैनात थे, वहां फैलने लगा. एडन और बहारीन के भारतीय नौसैनिकों ने भी आंदोलन की घोषणा की. एचएमआईएस तलवार पर उपलब्ध दूरसंचार उपकरणों की सहायता से आंदोलन का यह संदेश सभी नौसैनिक अड्डों पर और जहाजों पर पँहुचाया जा रहा था. 

एचएमआईएस तलवार के कमांडर एफ. एम. किंग ने, इन आंदोलन करने वाले सैनिकों को ‘सन्स ऑफ कुलीज एंज बिचेस’ कहा, जिसने इन आंदोलन की आग में घी डाला. लगभग बीस हजार नौसैनिक कराची, मद्रास, कलकत्ता, मंडपम, विशाखापट्टनम, अंदमान - निकोबार आदि स्थानों से शामिल हुए. 

आंदोलन प्रारंभ होने के दूसरे ही दिन, अर्थात १९ फरवरी को कराची में भी आंदोलन की ज्वालाएं धधक उठी. कराची बंदरगाह मे, मनोरा द्वीप पर ‘एचएमआईएस हिंदुस्तान’ खड़ी थी. आंदोलनकारियों ने उस पर कब्जा कर लिया. बाद में पास में खड़ी ‘एचएमआईएस बहादुर’ इस जलपोत को भी अपने अधिकार में ले लिया. इन जहाजों से अंग्रेज़ अधिकारियों को उतारने के बाद, ये नौसैनिक मनोरा की सड़कों पर अंग्रेजों के विरोध में नारे लगाते हुए घूमने लगे. मनोरा के स्थानिक रहिवासी भी बड़ी संख्या में इस जुलूस में शामिल हो गए. 

वहाँ के स्थानिक आर्मी कमांडर ने, बलूच सैनिकों की एक प्लाटून, इस तथाकथित ‘विद्रोह’ को कुचलने के लिए मैदान में उतारी. परंतु बलूच सैनिकों ने गोली चलाने से इंकार किया. बाद में अंग्रेजों के विश्वासपात्र, गोरखा सैनिकों को इन आंदोलनकारी सैनिकों के सामने लाया गया. लेकिन गोरखा सैनिकों ने भी गोली चलाने से मना किया. 

अंततः संपूर्ण ब्रिटिश सैनिकों की प्लाटून को लाकर, इन आंदोलनकारियों को घेरा गया. ब्रिटिश सैनिकों ने इन आंदोलनकारी सैनिकों पर निर्ममता पूर्वक गोली चलाई. जवाब में नौसैनिकों ने भी गोलीबारी की. लगभग चार घंटे यह युध्द चलता रहा. छह सैनिकों की मृत्यु हुई और तीस घायल हुए. यह समाचार कराची शहर में हवा की गति से फैला. तुरंत श्रमिक संगठनों ने ‘बंद’ की घोषणा की. कराची शहर ठप्प हो गया. शहर के ईदगाह में ३५,००० से ज्यादा लोग इकठ्ठा हुए और अंग्रेजों के विरोध में घोषणाएँ देने लगे. 

इससे पहले भी, १९४५ में कलकत्ता में नौसेना के सैनिकों में असंतोष पनपा था, जिसका कारण था, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ जाने वाले सैनिकों पर किया गया कोर्ट मार्शल. मुंबई के आंदोलन से कुछ पहले, कलकत्ता में ही रशीद अली को मृत्युदंड देने के कारण नौसैनिकों में बेचैनी थी, जो मुंबई आंदोलन के माध्यम से बाहर निकली. 

इन सैनिकों को ‘रेटिंग्स’ (Ratings) कहा जाता था. आंदोलन के दुसरे और तिसरे दिन ये सैनिक पूरी मुंबई में लॉरियों में भरकर घूम रहे थे. रास्ते में जो भी अंग्रेज दिखा, उसे पकडने का भी प्रयास हुआ. *१९ और २० फरवरी को मुंबई, कलकत्ता और कराची पूरी तरह से ठप हुए थे. सब कुछ बंद था. पूरे देश में, अनेक शहरों में छात्रों ने इन नौसैनिकों के समर्थन में कक्षाओं का बहिष्कार किया.*

किनारों पर खड़े कुल ७८ जहाज, नौसेना के २० बडे तल (नौसैनिक अड्डे) और लगभग २० हजार नौसैनिक इस आंदोलन में शामिल थे. 

२२ फरवरी को मुंबई में  यह आंदोलन चरम सीमा तक पँहुचा. मुंबई का कामगार वर्ग, इन नौसैनिकों के समर्थन में आगे आया. पुन: मुंबई बंद हुई. सारे दैनिक व्यवहार ठप्प हुए. लोकल्स को आग लगाई गई. 

जब ब्रिटिश सेना ने, वायुसेना को मुंबई भेजना चाहा, तो अनेक सैनिकों ने मना कर दिया. फिर आर्मी की एक बटालियन को मुंबई में उतारा गया. तीन दिन तक आंदोलन की यह आग फैलती रही. अंग्रेजी शासन ने इन आंदोलनकारी नौसैनिकों से वार्तालाप करने के लिये वल्लभभाई पटेल और जिन्ना से अनुरोध किया. इन दोनों के आश्वासन पर २३ फरवरी १९४६ को, आंदोलन करने वाले नौसैनिकों ने आत्मसमर्पण किया और १८ फरवरी से प्रारंभ हुआ यह नौसेना का आंदोलन शांत हुआ. 

*काँग्रेस और मुस्लिम लीग ने इस आंदोलन का विरोध किया था.* 

इस आंदोलन में ग्यारह नौसैनिक और एक अफसर मारा गया था. सौ से ज्यादा नौसैनिक और ब्रिटिश सोल्जर्स जखमी हुए थे. 

इस आंदोलन के थमने के बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने इन आंदोलनकारी सैनिकों पर कडाई के साथ कोर्ट मार्शल की कार्यवाही की. ४७६ सैनिकों की ‘पे एंड पेंशन’ समाप्त की. *दुर्भाग्य से, देढ वर्ष के बाद जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब इन निलंबित सैनिकों को भारतीय नौसेना में नहीं लिया गया. इनका अपराध इतना ही था, कि आंदोलन करते समय इन सैनिकों ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के चित्र लहराए थे !*
-   प्रशांत पोळ 
#स्वराज्य@75; #Swarajya@75; #स्वराज्य75 ; #Swarajya75 क्रमश:......

7.1.21

इसरो विज्ञानी तपन मिश्रा और वैज्ञानिकों की सुरक्षा की प्रासंगिकता

इसरो के वैज्ञानिक तपन मिश्रा
ने दावा किया है कि उनको मारने की कोशिश की गई । आप उन स्थितियों को स्मरण कीजिए जब हमारे देश के महान वैज्ञानिक संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए गए । जी हां स्वर्गीय विक्रम साराभाई जी । आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार ..चार साल में देश के 11 परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौत 2009 से 2013 तक कि अवधि में हुई ।
  मित्रो अब सरकार को इन वैज्ञानिकों की सम्पूर्ण सुरक्षा अवश्य ही कर लेनी चाहिए । 
उम्मीद है इस नैरेटिव को एक जुट होकर स्थापित करने की ज़रूरत है । 

4.1.21

देहदान : की उच्चतम अनुकरणीय पहल

जबलपुर की चिंतनधारा शिक्षा, सँस्कृति, सामाजिक-सरोकारों में गहरी रुचि के तत्व मौज़ूद हैं । वे उन लोगों के लिए अत्यंत भावात्मक रूप से संवेदनशील हैं जो त्याग के लिए ततपरता प्रदर्शित करते हैं । श्रीमती अर्चना और श्री विकास खंडेलवाल ने 2021 के पहले दिन देहदान का संकल्प लिया । कलेक्टर जबलपुर श्री शर्मा  ने देहदान करने वाले परिवारों के बीच मनाया !
      नया वर्ष बारह दिन में 15 लोगों ने किया देहदान जबलपुर - नए साल में समाज के लिए कुछ करने के उद्देश्य से जिले में देहदान अभियान के सूत्रधार एवं प्रणेता कलेक्टर  श्री कर्मवीर शर्मा की पहल से प्रेरित होकर जवाहर गंज गढाफाटक  निवासी विकास खंडेलवाल एवं उनकी पत्नी अर्चना खंडेलवाल, द्वारका नगर निवासी पुष्पराज और हाथी ताल निवासी श्रीमती रेखा हिरानी ने अपने परिवार के साथ आज कलेक्टर के समक्ष मरणोपरांत शरीर दान करने का इच्छा पत्र सौपा। 
 जिले में देहदान अभियान के सूत्रधार एवं प्रणेता कलेक्टर कर्मवीर शर्मा की पहल से प्रेरित होकर अब तक 15 लोगों ने देहदान करने की सहमति का फॉर्म भर कर दिया है। जिनमें  श्रीमती अर्चना एवम विकास खंडेलवाल के अलावा  न्यू शास्त्री नगर निवासी पत्रकार अनिल जैन कलेक्टर कार्यालय के चौकीदार राजेश गौड, चेरीताल निवासी श्रीमती सावित्री गुप्ता, शंकर शाह नगर निवासी अनिल मरावी, कांटी बेलखेड़ा निवासी एडवोकेट राकेश दुबे, आदिवासी विकास से रिटायर क्षेत्र संयोजक अरुण कुमार तिवारी, आधारताल निवासी विजय कुमार सेन, जवाहर गंज निवासी सुशील कुमार तिवारी, गोपाल बाग निवासी डी के शर्मा, श्रीमती माधुरी शुक्ला और श्री मधुसूदन शुक्ला शक्ति नगर निवासी के हैं ।
देहदान का संकल्प लेने वाले विकास खंडेलवाल ने कहा की मानव का शरीर जीते जी तो उपयोगी रहता है और मृत्यु के पश्चात शरीर के प्रमुख अंग दूसरों के काम भी आते हैं। श्री खंडेलवाल ने कहा कि कलेक्टर श्री शर्मा की प्रेरणा से मैं और मेरी पत्नी आज नए वर्ष में दान देकर बहुत ही खुशी महसूस कर रहे हैं कि उनका शरीर मरने के बाद लोगों के काम आयेगा।
इस अवसर पर कलेक्टर श्री कर्मवीर शर्मा ने नये वर्ष पर देहदान का संकल्प लेने वाले सभी लोगों की तारीफ की। उन्होंने बताया कि 12 दिनों में 15 लोगों ने देहदान का संकल्प फॉर्म भरकर दिया है। उन्होंने आम जनता से अपील की है कि इच्छुक व्यक्ति अपनी पासपोर्ट फोटो और आधार कार्ड की फोटो कॉपी के साथ  कलेक्ट्रेट कंट्रोल रूम कक्ष-9 पर पहुंच कर निर्धारित फॉर्म भर कर जमा कर सकते हैं

जन्मदिन पर करूंगी देहदान
आज नव वर्ष पर अपने माता पिता के साथ आई गढाफाटक निवासी श्रेया 18 वर्ष से कम उम्र की होने के कारण देहदान का  फॉर्म नहीं भर पाई। श्रेया ने कलेक्टर श्री कर्मवीर शर्मा से मुलाकात करके कहा कि आपने यह बहुत अच्छा अभियान छेड़ा है। अब मैं 13 अगस्त को अपना 18 वां जन्मदिन पर आकर देहदान का संकल्प पत्र सौंपूंगी।

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...