आंदोलन से पल्ला कैसे झाड़ सकते हो माफी मांगो यादव जी टिकैत जी कक्का जी मुला जी

बहुत ठंडा मौसम था । आज सुबह विजुअलटी मुश्किल से एक या डेढ़ किलोमीटर यह जबलपुर का मौसम परंतु इस मौसम  पर भारी था हमारा अपना उत्साह हम जो संविधान का सम्मान करते हैं हम जो षड्यंत्र करके किसी को बदनाम नहीं करते। हमारा दर्शन भी यह नहीं सिखाता। ना ही हमारी संस्कृति को ऐसे दृश्य देखने को मिले हो जिनसे तिरंगे के अपमान को बल मिले।
          लगातार एक सप्ताह से हम भारतीय आज के दिन का इंतजार कर रहे थे। 19 प्रोटोकॉल ना होता तो बच्चे भी सांस्कृतिक आयोजनों के लिए अपना बेहतर से बेहतर देने का प्रयास करते। आज 119 व्यक्तियों को पद्म पुरस्कार वीर और इनोवेटिव काम करने वाले बच्चों का सम्मानित होना बेशक गर्व की बात होती है। बाबा अंबेडकर हम शर्मिंदा हैं कि तुम्हारे नेतृत्व में लिखे गए इस संविधान नामक ग्रंथ पर जहां एक ओर गर्व करने का उत्सवी दिन था वहीं दूसरी ओर क्रूर एवं कुंठित मानसिकता ने ना केवल 72वें 
उत्साह से नहीं मनाने दिया वहीं दूसरी ओर गहरा विषाद लेकर हम शोकाकुल हो गए हैं । 
       आपको यहां स्पष्ट कर देना चाहता हूं मेरा उद्देश्य किसी भी मूर्ख व्यक्ति के नाम का जिक्र करने का कदापि नहीं है ना मैं यह चाहता हूं कि उन्हें यहां उल्लेखित कर उन्हें अमर कर दिया जावे । 
    मुद्दा यह है कि-" आंदोलन के प्रेरक एवं कर्ताधर्ता आज उस समय अपना पल्ला झाड़ते नजर आए जिन्होंने आंदोलन को शांतिपूर्ण ढंग से करने का दावा किया था तथा उनके वकीलों ने माननीय सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था हम शान्ति पूर्ण ट्रेक्टर मार्च इस लिए करेंगे  क्योंकि हम किसान भारतीय राष्ट्रीय पर्व  मना सकते..!"
    मीलार्ड भी सहमत ही होंगे जब हम सब सहमत हैं कि सब को हक है अपने राष्ट्रीय पर्वों को मनाने का। परंतु आज जिस तरह से निहंग तलवारें और फिर से चमकाते हुए लाल किले पर चढ़ गए उससे यह साबित हो गया कि यह आंदोलन मौलिक रूप से किस बुनियाद पर शुरू किया गया था । सूचनाओं के अनुसार दिल्ली में 86 पुलिसकर्मी के साथ 120 से अधिक लोग घायल हैं। किसान आंदोलन के 62 वें दिन आंदोलन के गंदे स्वरूप को देखकर लगा कि यह आंदोलन कनाडा एवं पाकिस्तानी के  साथ  आतंकियों की संधि का परिणाम है। भारत सरकार के वकील साहब यह स्थिति एक्सप्लेन करते रहे परंतु मीलार्ड को अधिक भरोसा था झूठा प्रॉमिस करने वाले आंदोलनकारियों के वकीलों पर। इसकी वजह है कि मिलावट यह समझ रहे होंगे कि जो किसान भारत के अन्नदाता है वह इस तरह का व्यवहार तो नहीं करेंगे। टेलीविजन पर दिखाया गया कि महिला पुलिस वीडियो जर्नलिस्ट प्रेस रिपोर्टर पर हमलावर होते किसान अन्नदाता तो नहीं क्योंकि एक पुलिसकर्मी को घेर कर मारने वाले  किसान आतंक की नए तरीके से परिभाषा प्रस्तुत कर रहे हैं। यह तरीका साफ तौर पर आयातित विचारधाराओं अर्बन नक्सली सोच का सुझाया हुआ ही है।

    आईटीओ पुलिस को ट्रैक्टर घुमाकर आतंकित करने वाला किसान जय जवान जय किसान के नारे की धज्जियां उड़ाता नजर आया शास्त्री जी हम भी शर्मिंदा हैं।
       इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इस आंदोलन में वित्तीय व्यवस्थापन से लेकर स्ट्रैटेजिक प्लानिंग भी हर हालत में
पाकिस्तान कनाडा चीन और भारत में पल रहे नक्सलवादी स्लीपर सेल की उपज है।
   मजबूरी में मुझे स्वराज इंडिया के संयोजक का नाम यहां जिक्र करना पड़ रहा है जो किसान आंदोलन से पल्ला झाड़ रहे हैं वास्तव में मुख्य कल्पित यही व्यक्ति है जिसे देश योगेंद्र यादव के नाम से जानता है। दीप संधू जिसे आंदोलन से अलग रखने का खुलासा करने वाला यह व्यक्ति सर से पांव तक झूठ बोल रहा है क्योंकि लगातार दो महीनों से संधू अत्यधिक सक्रिय है और उससे लगातार इस आंदोलन को हर एंगल से सहायता प्राप्त हो रही है। सनी देओल के साथ कभी जुड़ा यह व्यक्ति अर्थात दीप संधू वास्तव में अवसरवादी एवं भारत विरोधी गतिविधि में सक्रिय लोगों के हथियार चलाने का एक कंधा है
            दीप सन्धु
भारत वासियों चाहे कुछ भी हो अगर ये आंदोलनकारी किसान नेता माफी नहीं मांगते तो इन्हें देशद्रोही मान लेना एवं इनके खिलाफ विधिवत क्रिमिनल प्रोसिडिंग  प्रारंभ करना आवश्यक है अगर यह माफी मांग लेते हैं तब भी क्रिमिनल प्रोसीडिंग्स आवश्यक है  ताकि जिस न्याय व्यवस्था की आंखों में धूल झोंक कर पुलिस प्रशासन को गुमराह कर समय से पूर्व रैली निकाली गई और लाल किले पर धार्मिक एवम मोर्चे का झंडा फहरा  दिया गया। 
सुधी पाठकों अन्य प्रदेशों की सरकार को भी अपने अपने कृषि प्रधान इलाकों से इस आंदोलन में शामिल पुणे गए किसानों की सूची भी तैयार कर ले ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आवे।

टिप्पणियाँ

किसान आंदोलन जायज़ है; मगर इसकी आड़ में गुण्डों को शामिल किया गया, ताकि किसी तरह रैली को विफल किया जा सके। महीनों से किसान आंदोलन चल रहा है। सरकार इतनी निरंकुश है कि उसके लिए किसी का भी जीवन दाँव पर लगा देती है, चाहे वह किसान हो, पुलिसकर्मी या आम जनता।

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