नेशनल न्यूज़ पर दहाड़ा जबलपुर का शेर

न्यू्ज नेशन से साभार
        आज मकर संक्रांति के दिन न्यूज नेशन राष्ट्रीय चैनल पर "N.C.E.R.T. की 12वीं की इतिहास की पुस्तक में षड्यंत्र पूर्वक शामिल किए गए तथ्य जिसमें मुगलों को मंदिरों के विनाशक के साथ पुनर्निर्माण कर्ता बताया गया है" विषय पर एक डिबेट का आयोजन किया गया । इस डिबेट मेंं एम यू के फिरोज साहब वामपंथी प्रोफेसर सतीश प्रकाश, प्रोफेसर बद्रीनारायण  मौलाना  अली कादरी  प्रोफ़ेसर संगीत रागी , शुबही खान प्रोफेसर बद्रीनारायण के साथ जबलपुुुर प्रोफेसर डॉ आनंद राणा ने भी हिस्सा लिया। बहस  के मुद्दे पर केवल सतीश प्रकाश को छोड़कर सभी नियंत्रित रहे । 

   वर्तमान में भारत के इतिहास को लेकर एक लंबी बहस छिड़ चुकी है। देश में यह स्वीकार आ गया कि आजादी के बाद जब इतिहास लिखने की बात आई तो तत्सम कालीन नीति नियंताओं इस भय से कि भविष्य में कहीं  धर्म एवं संप्रदाय को मानने वालों  के बीच में वैमनस्यता पैदा ना हो ऐसा इतिहास लिखा जाए। इस बिंदु पर जाकर मेरा मस्तिष्क अचानक बुद्धिहीनता पर चकित हो जाता है। मित्रों जैसे ही पत्रकार दीपक चौरसिया ने जो देश की बहस को संचालित कर रहे थे डॉ आनंद राणा को कनेक्ट किया आनंद राणा ने बतौर साक्ष्य प्रभाव कारी वक्तव्य में बताया कि मुगलों ने खास तौर पर औरंगजेब ने तो कभी भी उज्जैन के महाकाल की पूजा के लिए संसाधन या धन उपलब्ध नहीं कराया। एनसीईआरटी पुस्तकों में इस संबंध में जो भी लिखा है गलत है । महाकाल के पुजारी ने भी इस बात की पुष्टि कि आक्रांताओं से बचाव के उद्देश्य से महाकाल की प्रतिमा को गुफा में सुरक्षित कर दिया गया था। मित्रों सभी जानते हैं कि 16 अप्रैल 1669 को बाकायदा मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश मुगल बादशाह औरंगजेब ने दिया था। और वर्तमान में एनसीईआरटी की किताबों में अगर यह पढ़ाया जाता है कि औरंगजेब ने मंदिरों के प्रबंधन के लिए खास इंतजाम किए थे कुल मिलाकर यह झूठ है और इस झूठ को ज्ञान के हित में केवल किताबों से विलोपित कर देना चाहिए बल्कि ऐसी किताब लिखने वालों की किताबें ही प्रतिबंधित कर देनी चाहिए। पूरी बहस में जहां एक ओर मुस्लिम मत को मानने वाले औरंगजेब के कृत्य से असहमत थे वही  कुतर्क का पुलिंदा किए हुए प्रोफेसर सतीश प्रकाश उज्जैन के महाकाल मंदिर के पुजारी को भी नकार रहे थे ।  आयातित विचारधारा  मानने वाले और  अपने ही एजेंडे  को आगे रखने वाले प्रोफेसर सतीश प्रकाश को बेनकाब होता देख आश्चर्यचकित नहीं हूं बल्कि जबलपुर के शेर आनंद राणा की जबरदस्त अभिव्यक्ति के प्रति प्रफुल्लित अवश्य हूं।

 

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