13.10.20

कोविड19 टोटल लॉक डाउन संस्मरण भाग 01


न दैन्यं न पलायनम्
आग्नेय परीक्षा की इस घड़ी में —
आइए, अर्जुन की तरह
उद्घोष करें :
‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’
महात्मा अटल की यह कविता मन से भय का अंत कर देती है ।  
   महासंकट का दौर जिसे हम अज़नबी शत्रु कह सकते हैं कोविड19 का दौर है। इसके पहले हम बहुत सामान्य जीवन में  थे । सामान्यता इतनी कि समझ ही नहीं पा रहे थे कि जीवन क्या है ? 
वास्तव में जिसे हम अपना अधिकार समझने की भूल कर बैठे थे वह प्रकृति का उपहार था। एक सुबह अचानक 4:17 पर नींद खुलती है खुली हुई खिड़की शरीर को तुरंत ताजगी का एहसास कराती है।
ब्रह्ममुहूर्त कि इस अवधि में सुबह का आनंद कुछ इस तरह मिला...
अचानक संपूर्ण वातावरण चिर परिचित सा लग रहा था जिसका एहसास हमने कभी  किया फिर अचानक उस प्रकार की सुहानी सुबहों के एहसासों का याद आने लगा जिसे हम भूल गए थे रात देर तक सोना स्वाभाविक रूप से नींद सूर्योदय के उपरांत खुलने का अभ्यास सा हो गया था कोविड के पहले ।
  लाला रामस्वरूप पंचांग के अनुसार निश्चित  समय पर पूर्व दिशा का आकाश लालिमा लेने लगता था। घर के सामने से खड़खड़ करती हुई साइकिल पर सवार पेपर वाला हर घर के आंगन में पेपर पटक रहा था.. किसी आँगन में खट्ट तो किसी छत पर टप की आवाज के साथ अखबार गिरते तो कहीं  गेट में फंसा कर आगे बढ़ जाता अखबार वाला । न कोई अखबार उठाने की जल्दबाजी में देखा गया न कोई बेताब नज़र आया खबर के वास्ते । सब को डर था पेपर में कोरोना वायरस तो नहीं आया ? 
   काली नन्ही चिडियों वाला जोड़ा अपने अंडे सेता था । ड्रॉइंग रूम के बाएं जंगले के एन  सामने ! उनसे मुझे संवेदित प्रेम हो गया उनके अंडे भी स्नेह की वजह बने । पत्नी और बेटी को ज्यों ही बताया कि काली चिड़िया या चिड़े  में से कोई एक को दाना लेने जाना होता है । तब कोई दूसरा उस घोंसले की तकवारी करता है । यह सुनते ही दौनों ने एसी के ऊपरी भाग में पानी दाना की व्यवस्था सुनिश्चित कर दी । ताकि चिड़ा चिड़िया दाना लेने न जाएं । पर ऐसा इस लिए न हुआ क्योंकि जोड़ा मांसाहारी भी था कुछ दिन में बच्चों की आवाज़ें सुनाई देने लगीं थीं । अन्न से अधिक प्रोटीनयुक्त आहार बच्चों को देना शायद ज़रूरी ही होगा । तभी तो उड़ती हुई तितलियाँ या उन जैसे कीट को कलाबाजियां खाकर चिड़ियों वाला जोड़ा लपक लेता था । कई बार उनको दूर जाना ही  पड़ता था । 
  वकील साहब के आंगन वाले आम के पेड़ से आने वाली गिलहरियों से लॉक डाउन के अगले दो तीन दिन में लगभग दोस्ती हो गई मुझे देखते ही चुखर चुखर चीखतीं । एक दिन देर रात तक जागने की वजह से उनका इतना अधिक शोर सुना तब अचानक 7:30 बजे नींद खुली पता लगा गिलहरियां बार बार छत की बाउंड्री वाल पर हुल्लडबाज़ी कर रहीं थीं । उनके लिए पानी और बिस्किट के टुकड़े कुछ अनाज रखते ही वे दूर से टकटकी लगाए देखतीं रहीं । देखना क्या मुझे कह रहीं थीं अब रास्ता नापो पर हटो हमें खाना है । 
मेरे दूर हटते ही एक साथ 4 गिलहरियां दाने-पानी पर टूट पड़ीं ।
 कुत्ते मोहल्ले वाले मित्र बन गए थे सच आज भी हैं । टोटल लॉक डाउन में  अपने छत से 7 बजे तक गली के कुत्तों के लिए रोटी फैंकता और पुकारता - काय इतै आओ जे रोटी खालो !
   वे फौरन मेरी ओर देखते अंगुली का इशारा समझते कि रोटियां किधर फैंकी हैं  और  वहीं लपकते जहाँ मैं रोटी फैंकता । 
 एक जोड़ा काली चिड़ियों, गिलहरियां, कुत्तों, से संवादी होना कोविड19 टोटल लॉक डाउन में ही हुआ । अच्छा लगा । प्रेम बंटा विश्वास बढ़ा । 
   हम तुम ये वो यानी हम सब निर्विकारी हो गए थे । ध्यान की क्रिया को बल मिला । मेरे गुरुभाई अनन्त पांडेय कहते हैं कि - दिन भर में 16 हज़ार विचार आते हैं ध्यान भंग हो जाता है... ! अंतू भाई दुनियादारी के चक्कर में आध्यात्मिक चिंतन भूले हुए हम कोविड19 में पुनर्जागरण के दौर में आए हैं । 30 बरस बाद...सच यही था । लोग भी यही कह रहे हैं । 
सलिल सहमत हैं कि - "मौन रहकर बहुत कुछ हासिल किया सबने मिलकर !"
   सलिल आगे कहते हैं- खोया भी बहुत संवाद सम्प्रेषण खो दिया । भाई आपने भी सृजन कम ही किया है इस दौर में ?
हाँ, बहुत कम हुआ था सृजन पर इस दौर में कुछ नया भी मिला जैसे साग में दाल में हींग और हल्दी क्यों जरूरी है । किचिन सीखा, टॉयलेट की सफाई सीखी, उपेक्षित कागज़ों तक पहुंचा ये सत्य है कि लिखा कम गया । उतना अवश्य लिखा जितना पी आर ओ आनंद जैन साहब को भेजना चाहा ! 
  मौलिक सृजन 10 फीसदी तक रह गया । मौन का प्रतिशत 50% से कुछ अधिक बढ़ गया था उन दिनों । कोरोना के दुनियाँ भर के आंकड़े भयानक रूप से डरा रहे थे । 
  कनाडा वाला भतीजा अमेरिका में रह रही बहू और उनकी बेटी, एम्स्टर्डम वाला भतीजा उसकी बहू और अपनी  बेटी भतीजी सबके बारे में चिंता उतनी ही थी जितनी सड़क पर पैदल लौटते मज़दूरों की । 
  फिर सोचने लगता कि- ईश्वर इन सबका रास्ता छोटा हो सकता है क्या । 
  फिल्मी कलाकार को मज़दूरों की मदद करते देख जगत बहादुर अन्नू सुबोध पहारिया जी और मुहल्ले वाले  आरएसएस के स्वयम सेवकों की बिना प्रचार की सेवा देखी तो पता चला कि हमारे रिश्तेदार भी चुपचाप भोजन बना बना कर भाई आशीष दीक्षित जी (ज्वॉइंट डायरेक्टर सोशल जस्टिस)  को दे रहे हैं । प्रवासियों को भोजन कराना प्रशासन की ज़िम्मेदारी थी । लेकिन अचानक कब जनता ने इसे अंगीकार किया समझने में समय लग गया । हमने क्या किया इसका उल्लेख नहीं कर सकता । हाँ तो बता रहा था कि - इंसानियत का सबसे आइकॉनिक दौर था कोविड का सम्पूर्ण लॉक डाउन । लग रहा था सतयुग आ गया क्या ? या हम बहुत ईमानदार हो गए । अचानक भावुक होना । अश्रुपूरित भाव से महान अवतार को याद करना । ब्रह्म की कल्पना में रोंगटे खड़े हो जाना आम बात हो गई । 
अक्सर सुबह से महामृत्युंजय मंत्र का MP3  साउंड बॉक्स से कनैक्ट कर  लोगों के लिए छज्जे पर बजाना लगभग रोजिन्ना की आदत सी हो गई थी । हम सब पर रोज़ विचारों का उतरना होता है । यह अवस्था वैचारिक अवतरण की अवस्था है । इसे रोज़ उसी गति से अगर लिखो तो आकाशी पुस्तक तुम हम सब बना सकते हैं । 
अब कुछ दिनों के बाद ध्यानस्त होना आसान हो गया था । कई बार लगा मृत्यु कभी भी आ सकती है । छोड़ दो विकारों को छूटे भी विकार.. ! 
  श्मशान का वैराग्य क्षणिक से दीर्घकालिक हुआ । जो साहजिक होता चला गया । अब पद प्रतिष्ठा नाम कुल श्रेष्ठता के भाव पता नहीं किस पोटली में बंध गया  मुझे नहीं मालूम भगवान न करे वो मुझे वापस मिले।
इस बीच सुशांत ने मृत्यु का वरण किया या जो भी हो वो हमारे बीच से गया बुरा इस लिये लगा कि MS Dhoni इस दौरान दूसरी बार देखी थी । अभिनय अच्छा लगा फैन हो गया था । सुशांत सिंह के लिए चैनल्स बावले हो गए रहा सहा टीवी से मोहभंग हो गया । पर यूट्यूब पर ताहिर गोरा डॉक्टर शारदा  से भेंट हुई बेहतरीन समाचार एवम समीक्षाऐं मेरी रुचि के अनुकूल यानी  साउथ एशियन राष्ट्रों पर केंद्रित सोशियो इकोनॉमिक मुद्दे  । ये बावले टीवी चैनल्स जब भारत चीन को मुगलिया दौर की तरह मुर्गों की मानिंद  लड़वा रहे थे मुझे मन ही मन तो कभी खुलकर हंसी आ जाती थी । सिर्फ हंसने के लिए टीवी चलाता था । वरना स्मार्ट tv पर यूट्यूब देखने का मज़ा ही कुछ और है ।
   सुधिजन आपके एहसास इसी के इर्दगिर्द थे न । कोविड आज भी डराता है । मृत्यु से भय नहीं है पर दुःख ये रहेगा कि अगर कुछ हुआ तो मित्रों को शमशान वैराग्य की अनुभूति न हो सकेगी । अरे हाँ बेफिक्र रहो सबकी सलामती के लिए काल से प्रार्थनारत रहो । 
 दुर्भाग्य के दौर में सौभाग्य के पथ मिलते हैं । कुछ अहंकारी परिजन टूट गए छिटककर दूर करना हम भी चाहते थे । जो हुआ अच्छा हुआ । 
         कृष्ण ने शास्त्र सुनाकर शस्त्र उठाने को कहा पार्थ ने वही किया । 
न दैन्यम न पलायनम एक अटल सत्य है मुझे लगता है कि फ़िज़ूल में रिसते हुए रिश्तों की पोटली सर पर मैंला ढ़ोने जैसी कुप्रथा है । 
   आईना भी दिखाते चलो - एक घटना अभी अभी घटी ... अनावश्यक एकात्मता का अभियान छेड़ दिया कुछ परतें उधेड़ दीं बुरा लगा कुछ लोगों को । लामबंद जत्था आक्रामक हो गया तो "इहाँ कुम्हड़ बतियाँ कोउ नाहीं , जो तर्जनी देखहिं मर जाहिं ।।" की तर्ज़ पर अडिग रहा आज भी हूँ । आप भी अडिग रहें भारत की एकात्मता पर किसी आक्रमण को मत सहो । तुम्हारी सनातनी संस्कृति अखण्ड है अविरल है । कह दो फैसला तो ब्रह्म करेगा न वही सबसे बड़ा निर्णायक है । "एकात्म भारत ही विश्वगुरु के पथ पर फिर से चलेगा वर्ना असंभव है ।"

8.10.20

सुग्गा और नीलकंठ

पता नहीं कब आएगा सुग्गा..?चिंतामग्न बैठा नीलकंठ बाट जोहता । दूर से एक तोतों के झुंड को आता देख खुश हुआ सुग्गा आ जाएगा । पर झुंड आगे वाले आम के पेड़ पर जमा हो गया । कुछ आगे बढ़ने लगे । नीलकंठ घबराया डरा भी तभी उसने तय कर लिया कि सुग्गा को खोजेगा । एक उड़ान भरी । कुछ दूर जाकर देखा सुग्गा एक पतंग की डोर में उलझकर बार बार उड़ना चाह रहा था पर  पंख डोर में फंस कर उड़ नही पा रहा था । 
   नीलकंठ को देखते ही सुग्गे को यकायक मुक्तिबोध सा हुआ। होना ही था सहृदयता के दूत जब भी आते हैं तो मुक्तिबोध होना वाज़िब है । अपनी चोंच से नीलकंठ ने धागे निकाले । 
 फिर दौनों एक डाल पर बैठकर एक दूसरे को देख कर आत्मीयता अभिव्यक्ति में व्यस्त हो गए । 
         फोटो :- रजनीश  सिंह

26.9.20

तीन साल पहले यू एन ओ में मोदी जी ने क्या कुछ कह था

श्री मोदी यूएनओ में
~~~~~~~~~
आधुनिक महानायक महात्मा गांधी ने कहा था कि हम उस भावी विश्व के लिए भी चिंता करें जिसे हम नहीं देख पाएंगे। जब-जब विश्व ने एक साथ आकर भविष्य के प्रति अपने दायित्व को निभाया है, मानवता के विकास को सही दिशा और एक नया संबल मिला है।
सत्तर साल पहले जब एक भयानक विश्व युद्ध का अंत हुआ था, तब इस संगठन के रूप में एक नई आशा ने जन्म लिया था। आज हम फिर मानवता की नई दिशा तय करने के लिए यहां एकत्रित हुए हैं। मैं इस महत्वपूर्ण शिखर सम्मलेन के आयोजन के लिए महासचिव महोदय को ह्रदय से बधाई देता हूँ। एजेंडा 2030 का विजन महत्वाकांक्षी है और उद्देश्य उतने ही व्यापक हैं। यह उन समस्याओं को प्राथमिकता देता है, जो पिछले कई दशकों से चल रही हैं। साथ ही साथ यह सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के विषय में हमारी परिपक्व होती हुई सोच को भी दर्शाता है।
यह ख़ुशी की बात है कि हम सब गरीबी से मुक्त विश्व का सपना देख रहे हैं। हमारे निर्धारित लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन सब से ऊपर है। आज दुनिया में 1.3 बिलियन लोग गरीबी की दयनीय जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। हमारे सामने प्रश्न केवल यह नहीं है कि गरीबों की आवश्यकताओं को कैसे पूरा किया जाये और न ही यह केवल गरीबों के अस्तित्व और सम्मान तक ही सीमित प्रश्न है। साथ ही यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी मात्र है, ऐसा मानने का भी प्रश्न नहीं है। अगर हम सब का साझा संकल्प है कि विश्व शांतिपूर्ण हो, व्यवस्था न्यायपूर्ण हो, और विकास सतत हो। गरीबी के रहते यह कभी भी सम्भव नहीं होगा। इसलिए गरीबी को मिटाना हम सबका पवित्र दायित्व है।
भारत के महान विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का केंद्र अन्त्योदय रहा है। UN के एजेंडा 2030 में भी अन्त्योदय की महक आती है। भारत दीनदयाल जी के जन्मशती वर्ष को मनाने की तैयारी कर रहा है, तब यह निश्चित ही एक सुखद संयोग है।
भारत एन्वायरमेंटल गोल के अंतर्गत क्लाइमेट चेंज और सस्टेनेबल कन्जंपशन को दिए गये महत्व का स्वागत करता हैं। आज विश्व आइसलैंड स्टेट्स की चिंता कर रहा है। ऐसे राष्ट्रों के भविष्य पर ध्यान केंद्रित करता है, यह स्वागत योग्य है। इनके इको सिस्टम पर अलग से लक्ष्य निर्धारण, मैं उसे एक अहम कदम मानता हूँ।
मैं ब्लू रिवॉल्यूशन का पक्षधर हूं, जिसमें हमारे छोटे- छोटे आइसलैंड राष्ट्रों की रक्षा एवं समृद्धि, सामुद्रिक संपत्ति का नयोचित उपयोग और नीला आसमान, ये तीनों बातें सम्मलित हैं। हम भारत के लोगों को लिए ये संतोष का विषय है कि भारत ने विकास का जो मार्ग चुना है, उसके और UN द्वारा प्रस्तावित सस्टेनेबल डेवलप गोल्स के बीच बहुत सारी समानताएं हैं। भारत जब से आजाद हुआ, तब से गरीबी से मुक्ति पाने का सपना हम सबने संजोया है। हमने गरीबों को सशक्त बनाकर गरीबी को पराजित करने का मार्ग चुना है। शिक्षा एवं स्किल डेवलपमेंट हमारी प्राथमिकता है। गरीब को शिक्षा मिले और उसके हाथ में हुनर हो, यह हमारा प्रयास है।
हमने निर्धारित समय सीमा में फाइनेंशियल इन्क्लूजन पर मिशन मोड में काम किया है। 180 मिलियन नए बैंक खाते खोले गए। यह गरीबों का सबसे बड़ा एम्पावरमेंट है। गरीबों को मिलने वाले लाभ सीधे खाते में पहुंच रहे है। गरीबों को बीमा योजनाओं का सीधे लाभ मिले, इसकी महत्वाकांक्षी योजना आगे बढ़ रही है।
भारत में बहुत कम लोगों के पास पेंशन सुविधा है। गरीबों तक पेंशन की सुविधा पहुंचे, इसलिए पेंशन योजनाओ के विस्तार का काम किया है। आज गरीब से गरीब व्यक्ति में गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने की उमंग जगी है। नागरिकों के मन में सपने सच होने का विश्वास पैदा हुआ है।
विश्व में आर्थिक विकास की चर्चा दो ही सेक्टर तक सीमित रही है। या तो पब्लिक सेक्टर की चर्चा होती है या प्राइवेट सेक्टर की चर्चा होती है। हमने एक नए सेक्टर पर ध्यान केंद्रित किया है और वह है पर्सनल सेक्टर। भारत के लिए पर्सनल सेक्टर का मतलब है इंडिविजुअल इंटरप्राइज, जिसमें माइक्रो फाइनेंस हो, इनोवेशन हो, स्टार्ट अप की तरह नया मूवमेंट हो।
सबके लिए आवास, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ और स्वच्छता हमारी प्राथमिकता हैं। ये सभी एक गरिमामय जीवन के लिए अनिवार्य हैं। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक ठोस योजना और एक निश्चित समय सीमा तय की गई है। महिला सशक्तिकरण हमारे विकास कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिसमें हमने ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ इसे घर-घर का मंत्र बना दिया है।
हम अपने खेतों को अधिक उपजाऊ तथा बाजार से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ बना रहे हैं। साथ ही प्राकृतिक अनिश्चितताओं के चलते किसानों के जोखिमों को कम करने के लिए अनेक कदम उठाये जा रहे हैं।
हम मैन्यफैक्चरिंग को रिवाइव कर रहे हैं। सर्विस सेक्टर में सुधार कर रहे हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में हम अभूतपूर्व स्तर पर निवेश कर रहे हैं और अपने शहरों को स्मार्ट, सस्टेनेबल तथा जीवंत डेवलपमेंट सेंटर के रूप में विकसित कर रहे हैं। सम्रद्धि की ओर जाने का हमारा मार्ग सस्टेनेबल हो, इसके लिए हम कटिबद्ध है। इस कटिबद्धता का मूल निश्चित रूप से हमारी परम्परा और संस्कृति से जुड़ा होना है। लेकिन साथ ही यह भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दिखाती है।
मै उस संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता हूँ जहां धरती को मां कहते हैं और मानते हैं। वेद उद्घोष करते हैं-
‘माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या’
ये धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं।
हमारी योजनाएं महत्वाकांक्षी और उद्देश्यपूर्ण हैं, जैसे
अगले 7 वर्षों में 175 गीगावॉट रिन्यूबल एनर्जी की क्षमता का विकास• एनर्जी इफिशिएंसी पर बल• बहुत बड़ी मात्र में वृक्षारोपण का कार्यक्रम
• कोयले पर विशेष टैक्स
• परिवहन व्यवस्था में सुधार
• शहरों और नदियों की सफाई
• वेस्ट टू वेल्थ की मूवमेंट
मानवता के छठे हिस्से का सस्टेनेबल डेवलपमेंट समस्त विश्व के लिए तथा हमारी सुंदर वसुंधरा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से यह दुनिया कम चुनौतियों और व्यापक उम्मीदों वाली दुनिया होगी, जो अपनी सफलता को लेकर अधिक आश्वस्त होगी। हम अपनी सफलता और रिसोर्सेज दूसरों के साथ बांटेंगे। भारतीय परम्परा में पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखा जाता है।
‘उदारचरितानाम तु वसुधैव कुटुंबकम’
उदार बुद्धि वालों के लिए तो सम्पूर्ण संसार एक परिवार होता है, कुटुंब है
आज भारत, एशिया तथा अफ्रीका और प्रशांत महासागर से अटलांटिक महासागर में स्थित छोटे छोटे आइसलैंड स्टेट्स के साथ डेवलपमेंट पार्टनर के रूप में अपने दायित्व का निर्वहन कर रहा है।
सस्टेनेबल डेवलपमेंट सभी देशों के लिए राष्ट्रीय उत्तरदायित्व का विषय है। साथ ही उन्हें नीति निर्धारण के लिए विकल्पों की आवश्यकता होती है। आज हम यहां संयुक्त राष्ट्र में इसलिए हैं, क्योंकि हम सभी यह मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय साझेदारी अनिवार्य रूप से हमारे सभी प्रयासों के केंद्र में होनी चाहिए। फिर चाहे यह डेवलपमेंट हो या क्लाइमेट चेंज की चुनौती हो।
हमारे सामूहिक प्रयासों का सिद्धांत है – कॉमन बट डिफरेंशिएटेड रिस्पॉसिबिलिटी।
अगर हम क्लाइमेट चेंज की चिंता करते हैं तो कहीं न कहीं हमारे निजी सुख को सुरक्षित करने की बू आती है। लेकिन यदि हम क्लाइमेंट जस्टिस की बात करते हैं तो गरीबों को प्राकृतिक आपदाओं में सुरक्षित रखने का एक संवेदनशील संकल्प उभरकर आता है।
क्लाइमेंट चेंज की चुनौती से निपटने में उन समाधानों पर बल देने की आवश्यकता है, जिनसे हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल हो सकें। हमें एक वैश्विक जन-भागीदारी का निर्माण करना होगा, जिसके बल पर टेक्नोलॉजी, इन्नोवेशन और फाइनेंस का उपयोग करते हुए हम क्लीन और रिन्यूबल एनर्जी को सर्व सुलभ बना सकें। हमें अपनी जीवनशैली में भी बदलाव करने की आवश्यकता है, ताकि ऊर्जा पर हमारी निर्भरता कम हो और हम सस्टेनेबल कंजंप्शन की ओर बढ़े। साथ ही एक ग्लोबल एजूकेशन प्रोग्राम शुरू करने की आवश्यकता है, जो हमारी अगली पीढ़ी को प्रकृति के रक्षण एवं संवर्धन के लिए तैयार करे।
मैं आशा करता हूँ कि विकसित देश डेवलपमेंट और क्लाइमेट चेंज के लिए अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करेंगे।
मैं यह भी आशा करता हूँ कि टेक्नोलॉजी फेसिलिटेशन मैकेनिज्म, टेक्नोलॉजी और इन्नोवेशन को विश्व के कल्याण का माध्यम बनाने में सफल होगा। यह मात्र निजी लाभ तक सीमित नहीं रह जाएंगे।
जैसा कि हम देख रहे हैं, दूरी के कारण चुनौतियों से छुटकारा नहीं है। सुदूर देशों में चल रहे संघर्ष और अभाव की छाया से भी वे उठ खड़ी हो सकती हैं। समूचा विश्व एक दूसरे से जुड़ा है, एक दूसरे पर निर्भर है और एक दूसरे से सम्बंधित है। इसलिए हमारी अंतरराष्ट्रीय सांझेदारिओं को भी पूरी मानवता के कल्याण को अपने केंद्र में रखना होगा। सुरक्षा परिषद समेत संयुक्त राष्ट्र में भी सुधार अनिवार्य है, ताकि इसकी विश्वसनीयता तथा औचित्य बना रह सके। साथ ही व्यापक प्रतिनिधित्व के द्वारा हम अपने उद्देश्यों की प्राप्ति अधिक प्रभावी रूप से कर सकेंगे।
हम एक ऐसे विश्व का निर्माण करें, जहां प्रत्येक जीव मात्र सुरक्षित महसूस करे, उसे अवसर उपलब्ध हों और सम्मान मिले। हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए अपने पर्यावरण को और भी बेहतर स्थिति में छोड़ कर जाएं। निश्चित रूप से इससे अधिक महान कोई और उद्देश्य नहीं हो सकता। परन्तु यह भी सच है कि कोई भी उद्देश्य इससे अधिक चुनौतीपूर्ण भी नहीं है।
आज 70 वर्ष की आयु के संयुक्त राष्ट्र में हम सबसे अपेक्षा है कि हम अपने विवेक, अनुभव, उदारता, सहृदयता, कौशल एवं तकनीकी के माध्यम से इस चुनौती पर विजय प्राप्त करें।
मुझे दृढ़ विश्वास है कि हम ऐसा कर सकेंगे। अंत में मै सबके कल्याण की मंगल कामना करता हूं।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु: मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।।
सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों, सभी कल्याणकारी हो, किसी को भी किसी प्रकार का दु:ख न हो।
इसी मंगल कामना के साथ आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद!

24.9.20

न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका- जिसे तपा के जांचा जाए


जितनी बार बिलख बिलख के 
रोते रहने को मन कहता
उतनी बार मीत तुम्हारा भोला मुख
मेरे ही सन्मुख है रहता....!
*************************
सच तो है अखबार नहीं तुम,
जिसको को कुछ पल बांचा जाये.
न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका-
जिसे तपा के जांचा जाए.
मनपथ की तुम दीप शिखा हो
यही बात हर गीत है कहता
जितनी बार बिलख बिलख के ...........
*************************
सुनो प्रिया मन के सागर का
जब जब मंथन मैं करता हूं
तब तब हैं नवरत्न उभरते
अरु मैं अवलोकन करता हूँ
हरेक रतन तुम्हारे जैसा..!
तुम ही हो , मन  है कहता.
जितनी बार बिलख बिलख के ...............
मनके मनके साझा करतीं
पीर अगर तो मुस्कातीं तुम ।
पर्व दिवस के आने से पहले
कोना कोना चमकाती तुम !
दुविधा अरु संकट के पल में
मातृ रूप , तुम में मन लखता ।।
जितनी बार बिलख बिलख के ............
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
छाया :- मुकुल यादव

15.9.20

मातृत्व एवम न्यायपूर्णता स्वर्गारोहण का एकमात्र रास्ता..!

💐💐💐
वन वन भटकते रहे कुछ योगियों ने अहर्निश प्रभू से साक्षात्कार की उम्मीद की थी । 20-25 बरस बीतते बीतते वे धीरे धीरे परिपक्व उम्र के हो गए ! 
कुछ तो मृत्यु की बाट जोह रहे थे । पर प्रभू नज़र न आए । नज़र आते कैसे उनके मन में सर्वज्ञ होने का जो भरम था । श्रेष्ठतम होने का कल्ट (लबादा) ओढ़कर घूम रहे थे । कोई योग में निष्णात था तो कोई अदृश्य होने की शक्ति से संपृक्त था । किसी को वेदोपनिषद का भयंकर ज्ञान था तो कोई बैठे बैठे धरा से सौर मंडल की यात्रा पर सहज ही निकल जाता था । 
  परमज्ञानीयों में से एक ज्ञानी अंतिम सांस गिन रहा था । तभी आकाश से एक  यान आया ।और योगियों के जत्थे के पास की आदिम जाति की बस्ती की एक झोपड़ी के सामने उतरा। 
 यान को देख सारे योगी सोचने लगे लगता है कि यान के चालक को भरम हुआ है। इंद्र के इस यान को कोई मूर्ख देवता चला रहा है शायद सब दौड़ चले  यान के पास खड़े होकर बोले - है देव्, योगिराज तो कुटिया में अंतिम सांसे गिन रहे हैं । आप वहीं चलिए । 
देव् ने कहा- हे ऋषियों, मैं दीनू और उसकी अर्धांगिनी को लेने आया हूँ। 
महायोगी के लिए यम ने कोई और व्यवस्था की होगी । 
ऋषियों के चेहरे उतरते देख देव् ने कहा - इस दम्पत्ति में  पत्नि ने ता उम्र मातृत्व धर्म का पालन किया है । स्वयम विष्णु ने इसे देवत्व सम्मान के साथ आहूत किया । 
और दीनू..?
देव्- उसने सदा ही निज धर्म का पालन किया । मिल बांट कर कुटुंब के हर व्यक्ति को समान रूप से धन धान्य ही नहीं प्रेम का वितरण भी किया । 
अतः मैं देवराज इंद्र की यम से हुई चर्चानुसार आया हूँ ।
पूरी दुनिया भर का ज्ञात अज्ञात अध्यात्म एक पल में समझ में आ गया ऋषियों को । 
 (टिप्पणी:- न स्वर्ग है नर्क है यहां केवल सांकेतिक रूप से मातृत्व और कौटुंबिक न्याय का महत्व समझाने के लिए कथा की रचना की गई है )

14.9.20

इस आलेख को मत पढ़िए


  सूफीवाद ने मोहब्बत का पैग़ाम दिया । हमारे संत कवियों ने भी तो यही किया था । सूफीवाद हर धर्म की जड़ में मौज़ूद है.. क़बीर जब बोले तो अध्यात्म बोले खुलकर बोले । क़बीर मीरा तुलसी रसखान बुल्ले शाह, यहां तक कि लोकभजनों में भी यही सब है । 
रामायण महाभारत में न तो राम की पूजा न ही कृष्ण की पूजा का कोई विधान आदेशित है न ही कोई प्रक्रिया बताई है । परंतु शास्त्रों ने नवदा भक्तियोग को अवश्य किया है । राम मर्यादा जिसे उर्दू में हुदूद कहते हैं कहा है । तो कृष्ण ने कर्मयोग का सिद्धांत तय किया है । 
मित्रो, राक्षसों का वध तब ही हुआ जब वे आतंकी हमला करने लगे । जब भी मानवाधिकारों को किसी ने भी लांघा तो उसे दण्ड मिला । फिर वो ऋषि मुनि, देवता, गन्धर्व, और राक्षस ही क्यों न हों । 
   पूजा अर्चना आराधना भक्ति के लिए किसी मुहूर्त की ज़रूरत कहाँ..?
एक बार ख्याल आया कि पूजा कब स्वीकारेगा परमात्मा..?
बुद्धि ने समझाया- जब तुम्हारा मन करे तब ब्रह्म के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करो । योग निद्रा में रहो कौन रोकता है ? 
मन ने पूछा - तो त्रिसंध्या का अर्थ क्या है ?
बुद्धि ने कहा- त्रिसंध्या का अर्थ है कर्म के दायित्व से विमुक्त मत हो । वो भी करो रोटी कपड़ा मकान सुनिश्चित कर लो कर्मशील रहो और सही वक़्त निकाल कर कम से कम 3 बार तो ब्रह्म का आभार मानो । परमात्मा का अर्थ ही यह है कि वो आपसे जुड़ा है पर आप उससे कितने जुड़े हैं इसका ज्ञान तो तभी सम्भव है जब आप योगी की अवस्था में होते हैं । आप घर के द्वार पर बैठ कर या ट्रेन में या कहीं भी सिर्फ चेहरे पढ़िए तो आप देखेंगे कि अलौकिक आभा युक्त  सतगुणी जन मुस्कुराते नज़र आएंगे । रजोगुणी जन माधुर्य के साथ खुद को प्रस्तुत करते नज़र आएंगे । और तमोगुणी जन जिनका प्रतिशत सर्वाधिक होगा आक्रामक तेवर के साथ खुद को अभिव्यक्त करते नज़र आएंगे । आजमा कर देख लीजिए यह सत्य ही है । 
   आज विश्व में तमोगुणी शक्तियों का राज़ हरेक मानस पर है । वे खुद को उग्र तेवर के साथ अभिव्यक्त करते नज़र आते हैं । रजोगुण वाले लोग 2 या 3 प्रतिशत में हैं जो हैं वे भी खुद को बचाते हुए नज़र आते हैं । और सतोगुणी तो न के बराबर आपको आपके भाग्य से मिलेंगे । 
अब जब कि ज़ेहाद बुलंदी पर है तो सिद्ध करते रहिए कि-हम रजोगुणी हैं कर्मयोग हमारा बल है हम शास्त्र के साथ शस्त्र का अनुप्रयोग भी जानते हैं । गीता में कृष्ण ने यही तो सिखाया है । ध्यान रहे कल सुबह आयुध लेकर निकलने को नहीं कह रहा हूँ । कह रहा हूँ सतोगुणी बनो और ज्योतिर्मय अन्तस् से शांति का पैगाम दो । भरम मत पालो कि विष्णुसहस्त्रनाम को रट के पढ लिया तो ब्रह्म के करीब हो गए पुष्पदन्त ने एक पुष्प के अभाव में नेत्र अर्पित किया था । केवल सामवेदानुकूल शिवमहिम्न का गायन मात्र नहीं किया था । रेवा के उछाह को शंकराचार्य ने गुरु को बचाने आर्त भाव से प्रार्थना की थी जिसे आप नर्मदाष्टक के रूप में बाँचते हैं तब माँ रेवा थम गई थी । 
अब अंत में एक बात और ... 
सोलह दिन बीतने वाले हैं । पुरखे चले जाएंगे ? नहीं वे कहां जाते हैं ? यहीं रहेंगे हमारे इर्दगिर्द। सुना है इस बार वे देखेंगे कि आप जीवितों को कितना सम्मान देते हो । सच ऐसा ही होने जा रहा है इस बार ! इस बात को समझना है तो बताए देता हूँ..  हम केवल 16 दिन के अनुष्ठान को अवधि तक सीमित न रखें ! क्या मालूम तुम मेरे किसी पूर्वज का पुनर्जन्म हो और मैं मूढ़ तुम्हारे दिल को दुःखी करूं या तुम खुद ऐसा करो ..? 
तो है पूर्वजो मेरे मन की उद्दंडता से अगर शाब्दिक व्यवहारगत कोई त्रुटि हुई है तो केवल इस बार क्षमा करना अगली बार तक आत्म सुधार अवश्य कर लूंगा ।

12.9.20

"क्या खास है नई शिक्षा नीति में"

मेरे बाल सखा भाई #श्रीपद_कायंदे का सबसे पहली आभार व्यक्त करना चाहूंगा जिन्होंने यह चाहती मैं नेट यानी न्यू एजुकेशन पॉलिसी पर अपने विचार रखूँ । 
नेप यानी न्यू एजुकेशन पॉलिसी हिंदी में कहें तो नई शिक्षा नीति। अधिकांश लोगों का यह आरोप है कि नई शिक्षा नीति को नीति बनने के पूर्व जनता के सामने नहीं लाया गया। नई शिक्षा नीति के लिए ऐसा आरोप मिथ्या और तथ्य हीन है। इसके लिए भारत सरकार द्वारा विधिवत प्रचार प्रसार किया गया। 
    भारत में कैसी शिक्षा प्रदान की जाए इस संबंध में आजादी के बाद से ही काफी कोशिश जारी रही। मैकाले की शिक्षा प्रणाली शिक्षा व्यवस्था को मुक्त कराने की कोशिश 1968 से प्रारंभ है। 1986 में आए बदलाव जिसमें आंशिक बदलाव 1992 में किया गया आज तक लागू है 2020 की पॉलिसी आने के बाद और आगामी 2 या 3 वर्षों में इसे विधिवत लागू हो जाने के बाद की परिस्थितियां आज एकदम अलग ही होना तय है ।
यह शिक्षा प्रणाली बुनियादी स्तर पर आमूलचूल परिवर्तन के लिए सक्षम है ऐसा सिर्फ मेरा मानना नहीं है बल्कि प्रख्यात शिक्षा शास्त्री सोनम वांगचुक का भी मत है इतना ही नहीं टिप्पणी कार योगेंद्र यादव भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए हैं।
शिक्षा प्रणाली कैसी हो इसके लिए भारत सरकार द्वारा जिस नीति को सारांश के रूप में प्रस्तुत किया गया है वह कस्तूरी रंगन समिति की 480 पन्नों वाली रिपोर्ट का 60 पृष्ठीय सारांश है।
मोटे तौर पर पहली बार सरकार ने शिक्षा पर जीडीपी के 6 प्रतिशत भाग का शिक्षा के मद में खर्च करने का संकल्प लिया है । देशवासियों को इस पर खुश होना चाहिए। परंतु मेरा मानना है कि जीडीपी के 6% को बढ़ाकर लगभग 8% कर देना उचित होगा ताकि शिक्षा संस्थानों की आधारभूत सुविधाओं के लिए वित्त का प्रावधान हो सके। इस आलेख में प्रस्तावित 2% की बढ़ोतरी की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को उठा लेनी चाहिए इससे जीडीपी का 8% हिस्सेदारी सुनिश्चित हो सकती है।
इसका विश्लेषण टेन प्लस टू के सापेक्ष इसलिए नहीं करूंगा क्योंकि यह है पुरानी शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से फॉर्मेट कर देने वाली शिक्षा नीति है जो नई शैक्षिक प्रणाली को जन्म देगी।
 इसे 72 साल बाद एकदम नई शिक्षा नीति के रूप में अधिमान्यता देना उचित है।
   इस बात से असहमति आप सबके मन में संभव है परंतु यहां यह प्रयास किया है कि शिक्षा नीति के संबंध में अपनी बात तब ही रखी जावे  जबकि मैं उसका संपूर्ण अध्ययन करलूँ । मेरी समझ के अनुरूप उन मुद्दों पर विमर्श करना चाहूंगा जिससे आपको शिक्षा नीति के मूल स्वरूप का दर्शन करा सकूँ ।
   मार्च 80 में 11वीं की परीक्षा पास करने में मुझे जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा उनमें एक गणित विज्ञान विषय को चुनना बेहद मेरे लिए कठिन था। इसका अर्थ यह है कि मेरे पास प्राकृतिक रूप से सीखने के लिए कोई अकैडमी गलियारा नहीं था। मुझसे अधिक इंटेलिजेंट मेरे परिवार के कई सारे सदस्य थे। मैं अपने आप को हीन भावना से ग्रस्त मानता था क्योंकि- उस वक्त में अच्छे विद्यार्थी होने का अर्थ होता था कि वह विज्ञान समूह का विद्यार्थी है । कुछ परिवार का दबाव और कुछ यह तय ना कर पाने की क्षमता का विकास न होने के कारण  मुझे क्या करना चाहिए और कैसे अपनी बात मनवानी चाहिए जैसे विकल्प न थे । मजबूरन नौवीं क्लास में मुझे विज्ञान लेना पड़ा। उस वक्त विकल्पों के मामले में शिक्षा व्यवस्था बेहद विपन्न थी।
इसी विपन्नता के चलते मेरे पास कोई विकल्प नहीं थे । फिजिक्स केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स से कंपार्टमेंट और 6 नंबर के ग्रेस के जरिए सेकंड डिवीजन में  । इस तरह  11वीं का सर्टिफिकेट हासिल कर लेना आज भी शूल की तरह चुभता है ।
   लेकिन  यह दर्द तब कम  हुआ जब मेरी बेटी ने मुझसे कहा था- पापा मुझ पर दबाव  कि मैं 10वीं क्लास  के बाद साइंस की विद्यार्थी बनूँ । क्योंकि यह मेरी रुचि के विषय नहीं है । स्पष्ट है कि युग परिवर्तन के साथ हो रही विकास या विकास के कारण हो रहे युग परिवर्तन के संदर्भ में अभिव्यक्ति में भी बदलाव आया है।
    यहां मुझे 1986 और 92 में आई शिक्षा नीति भले ही वह पूरी तरह से मेरी सोच के अनुरूप नहीं थी परंतु अंधेरे कमरे में रोशनदान खुलने की तरह अवश्य नजर आई।
    शिक्षा के मौलिक अधिकार बनने पर बेहद प्रसन्नता हुई थी अभी भी उसका एहसास मन में बाकी है। तो आइए इस बदलाव को बुलेट प्वाइंट उजागर करने की कोशिश करता हूं नई शिक्षा नीति के संदर्भ में
[  ] सबसे बड़ा बदलाव जो है वह यह कि इस नीति को स्वीकार करने के पूर्व लगभग दो लाख से अधिक विचारों को विश्लेषित किया गया । आप यह भी कह सकते हैं कि यह अपर्याप्त था मित्रों ऐसा इसलिए मत कहिए कि भारत में लागू शिक्षा प्रणाली र  पर ना तो कभी किसी अभिभावकों से मैंने कुछ सुना और ना ही कभी किसी सामाजिक या पॉलिटिकल मीटिंग्स ने इस पर चिंता व्यक्त की गई। समाचार रचाने वाले मीडिया के लिए यह विषय बहुत गैरजरूरी समझा जाता रहा है । मेरे मित्र अनंत पांडे बताते हैं कि लगभग 60,000 विचार हमारे मन में पूरे 24 घंटे में आते हैं । इसमें भारत की शिक्षा नीति पर भी कभी को कोई सोशल मीडिया पोस्ट अथवा ट्वीट या आर्टिकल जो सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं द्वारा लिखा गया हो नहीं देखा। इसकी वजह यह है कि दिन भर में हम जागृत  समय का  30% मनोरंजन 30% पॉलिटिक्स संबंधी उत्प्रेरक समाचारों तथा शेष 30% हिस्सा निरर्थक बिंदुओं पर तथा मात्र 10% परिवार और दफ्तर पर संयुक्त रूप से खर्च करते हैं । मौलिक चिंतन पर यह प्रतिशत उसी 10% समय का एक या 2% हिस्सा ही होता है। वरना सवा सौ करोड़ में से कम से कम 5000000 ईमेल अवश्य सरकार के पास जाते। फिर भी दो लाख लोगों को बधाई देना जरूरी है ।
[  ] उत्तर प्रदेश में बाल विकास परियोजना अधिकारी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में जब हमने देखा कि वहां का अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन सिस्टम कैसा है उससे मन बेहद सकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ । वहां की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि उसके आंगनवाड़ी केंद्र में पढ़े बच्चों में से अधिकांश बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं। तब समझ नहीं आया कि अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन स्कूल ड्रॉपआउट रेट को किस तरह से कम कर सकती है। भारत सरकार और राज्य सरकारें इन लाखों आंगनबाड़ियों का उपयोग यानी अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन सेंटर के रूप में कर सकतीं हैं। नई शिक्षा नीति में 3 साल से शैक्षणिक व्यवस्था सुनिश्चित करा दी गई है। ताकि बुनियाद ही सरकार के रडार पर आ जाए ।
  साथ ही इससे शासकीय मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर का सही सही उपयोग करके भारत सरकार एवं राज्य सरकारें अपने लक्ष्य की प्राप्ति आसानी से कर सकती हैं ।
[  ] यह शिक्षा नीति 5 प्लस 3 प्लस 3 प्लस 4 अर्थात 15 वर्ष तक जारी रहेगी । जिसमें 3 वर्ष अनौपचारिक शिक्षा प्रणाली के रूप में चिन्हित किए गए हैं । अनौपचारिक शिक्षा प्रणाली में काम करते हुए मुझे 28 से 30 वर्ष का जैसा अनुभव है उस अनुसार यह पूर्ण रूप से निर्मुक्त एवं बाल मनोविज्ञान पर आधारित तथ्य है ऐसा मेरा निष्कर्ष है।
[  ] फाउंडेशन अगर मजबूत है तो पक्का मानिए की बिल्डिंग तो मजबूत होगी ही और यह 5 साल सबसे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं बच्चों के लिए भी ।
[  ] सबसे आकर्षक बिंदु यह है कि 5 वर्षों में दी जाने वाली शिक्षा मातृभाषा स्थानीय भाषा एवं राष्ट्रभाषा में सुनिश्चित कराई जानी है। अपनी भाषा में अध्यापन कराने के कारण हमारे मस्तिष्क में समझ के साथ शिक्षा का प्रवेश होता है जबकि किसी विदेशी भाषा को माध्यम बनाकर पढ़ाना और पढ़ना सीधे फादर  कामिल बुल्के की डिक्शनरी की तरफ रुझान बढ़ाता है। और ऐसी खोजा-तपासी में पठन-पाठन का जो हिस्सा छूट जाता है उसकी भरपाई जिंदगी में कभी भी नहीं हो पाती है । इस तथ्य की पुष्टि के लिए  सोनम वांगचुक के विचार एवं उनके द्वारा प्रस्तुत उदाहरण उल्लेखनीय हैं । सोनम ने  प्रमाण सहित अपनी बात की पुष्टि के लिए तिब्बत की निर्वासित सरकार के शिक्षा मंत्री जेटसन पेमा को मिलवा ते हुए बताया कि उनकी शिक्षा व्यवस्था में तिब्बती भाषा को माध्यम के रूप में चुना जाना 2 तरीकों से सफल रहा है एक तो बच्चों के मन में शिक्षा के प्रति आकर्षण बढ़ा है तथा उनकी तिब्बत संस्कृति का भी संरक्षण मूल रूप से हो सकता है । आपको याद होगा गुप्त काल में फ़ाह्यान नाम के चीनी यात्री ने भारत में आने से पूर्व  संस्कृत का ज्ञान अर्जित कर किया और भारत आए तथा उन्होंने बौद्ध धर्म की विस्तृत मीमांसा भी की । भाषा सीख कर ज्ञान अर्जित करना तथा अतिरिक्त भाषाओं का ज्ञान होना व्यक्ति की समझ पर अर्थात उसकी बौद्धिक क्षमता पर निर्भर करता है । और बौद्धिक क्षमता का विकास अपनी भाषा में ज्ञान अर्जित कर के जितनी आसानी से किया जा सकता है उतना आसानी से विदेशी भाषा में ज्ञान अर्जित करना संभव कभी नहीं हो सकता है ।
[ ] छठी क्लास से ही इंटर्नशिप एक अच्छा प्रयोग है तो कोडिंग सिखाना नवाचार है । 
[  ] इस नीति में 360 डिग्री का अर्थ यह है कि विद्यार्थी के रूप में विद्यार्थी की योग्यता का मूल्यांकन कई एंगल से होगा । उसने एक एंगल यह होगा कि विद्यार्थी स्वयं को किस स्तर पर देखता है यह चकित कर देने वाला तथ्य है । अपने आप को किस स्तर पर रखना है या रखा जाएगा इसका मूल्यांकन स्वयं विद्यार्थी भी करेगा जो आत्म विश्लेषण का सूचक है ।
[  ] मूल्यांकन का क्रेडिट स्टोर अद्भुत वैज्ञानिक प्रणाली है। जिस तरह आप बैंक में अपना अध्ययन जमा करते हैं वैसे ही आप अपना बौद्धिक मूल्यांकन बैंक में जमा होगा यह प्रणाली पूर्णता है डिजिटल ही होगी इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
[  ]  विकल्पों से भरी इस शिक्षा नीति में एक और बेहतरीन विकल्प नजर आया है एंट्रेंस एग्जाम का। अगर किसी विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए कट ऑफ नंबर तक कोई बच्चा या विद्यार्थी इच्छुक होने के बावजूद प्रवेश नहीं पा सकेगा तो वह एक परीक्षा के विकल्प को भी अपना सकता है और उस विकल्प में उसे जो अंक अर्जित हो सकेंगे उन अंकों को न्यूनतम क्वालीफाइंग क्लास की परीक्षा के अंकों के साथ जोड़ दिया जावेगा ।
[  ] जब से भारतीय शिक्षा प्रणाली से संस्कृत को आउट किया है तब से भारतीय दर्शन का मनुष्य के जीवन से अवसान हो ही गया है जबकि संस्कृत से अंग्रेजी या विदेशी भाषा में अनुदित ज्ञान और सिद्धांतों को हम विदेशी ज्ञान समझ बैठे हैं और उसे सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं ।
[  ] व्यक्तिगत रूप से अंग्रेजी का ज्ञान होना आपत्तिजनक बिल्कुल नहीं है नई शिक्षा नीति यही कहती है। आपत्ति तो इस बात की है कि शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने से लोग बहुत कन्फ्यूज्ड है। अगर इस आर्टिकल का ट्रांसलेशन अंग्रेजी में कीजिएगा तो इस पर बेहद सकारात्मक टिप्पणीयाँ किंतु अच्छे से अच्छा विचार रख इस आर्टिकल को अगर वह हिंदी भाषा से परिचित नहीं है तो इसके कर जाएगा क्योंकि उसके पास उसकी अपनी मातृभाषा मैं लिखे गए कंटेंट को पढ़ने की क्षमता तो बचपन से ही छीन ली गई है ।  भारत में ही भाषाओं की कमी नहीं है आप गुजराती मलयाली बांग्ला तमिल मराठी आदि किसी भी भाषा का ज्ञान अर्जित कर सकते हैं और एक विषय के रूप में उसे अंगीकार कर लेते हैं तो कोई आपत्ति नहीं क्योंकि हमारी अपनी राष्ट्रभाषा का ज्ञान होना सबके लिए जरूरी है ।
[  ] शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए शिक्षकों के शिक्षण प्रशिक्षण की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने अपने पास रखी है। शिक्षण व्यवस्था में एकरूपता बनाए रखने की स्थिति को बरकरार रखा जा सकेगा
[  ] विश्व की टॉप मोस्ट 50 यूनिवर्सिटीज को उच्च शिक्षा में सहभागी बनाने की व्यवस्था नीति में सम्मिलित की गई है ।
[  ] बिहार से एक यूनिवर्स जो खान सर के नाम से अपना चैनल प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए चलाते हैं का मानना है कि - शैक्षिक एंट्री और एग्जिट आज ही एंट्री बेहद प्रभावशाली धूल बन जाएगा इससे उन गरीब बच्चों को फायदा होगा जो अनचाही परिस्थितियों के कारण पढ़ नहीं सकते ।
[  ]  प्रत्येक स्कूल साहित्य कला और संगीत के साथ-साथ संस्कृत को भी बढ़ावा देगा । 
    मिलाकर यह शिक्षा नीति अगर किसी कुचक्र में फंस कर रूपी नहीं तो इससे देश का भला ही होगा यह सब का मानना है ।

Wow.....New

अलबरूनी का भारत : समीक्षा

"अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार          औसत नवबौद्धों  की तरह ब्राह्मणों को गरियाने वाले श...