12.9.20

"क्या खास है नई शिक्षा नीति में"

मेरे बाल सखा भाई #श्रीपद_कायंदे का सबसे पहली आभार व्यक्त करना चाहूंगा जिन्होंने यह चाहती मैं नेट यानी न्यू एजुकेशन पॉलिसी पर अपने विचार रखूँ । 
नेप यानी न्यू एजुकेशन पॉलिसी हिंदी में कहें तो नई शिक्षा नीति। अधिकांश लोगों का यह आरोप है कि नई शिक्षा नीति को नीति बनने के पूर्व जनता के सामने नहीं लाया गया। नई शिक्षा नीति के लिए ऐसा आरोप मिथ्या और तथ्य हीन है। इसके लिए भारत सरकार द्वारा विधिवत प्रचार प्रसार किया गया। 
    भारत में कैसी शिक्षा प्रदान की जाए इस संबंध में आजादी के बाद से ही काफी कोशिश जारी रही। मैकाले की शिक्षा प्रणाली शिक्षा व्यवस्था को मुक्त कराने की कोशिश 1968 से प्रारंभ है। 1986 में आए बदलाव जिसमें आंशिक बदलाव 1992 में किया गया आज तक लागू है 2020 की पॉलिसी आने के बाद और आगामी 2 या 3 वर्षों में इसे विधिवत लागू हो जाने के बाद की परिस्थितियां आज एकदम अलग ही होना तय है ।
यह शिक्षा प्रणाली बुनियादी स्तर पर आमूलचूल परिवर्तन के लिए सक्षम है ऐसा सिर्फ मेरा मानना नहीं है बल्कि प्रख्यात शिक्षा शास्त्री सोनम वांगचुक का भी मत है इतना ही नहीं टिप्पणी कार योगेंद्र यादव भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए हैं।
शिक्षा प्रणाली कैसी हो इसके लिए भारत सरकार द्वारा जिस नीति को सारांश के रूप में प्रस्तुत किया गया है वह कस्तूरी रंगन समिति की 480 पन्नों वाली रिपोर्ट का 60 पृष्ठीय सारांश है।
मोटे तौर पर पहली बार सरकार ने शिक्षा पर जीडीपी के 6 प्रतिशत भाग का शिक्षा के मद में खर्च करने का संकल्प लिया है । देशवासियों को इस पर खुश होना चाहिए। परंतु मेरा मानना है कि जीडीपी के 6% को बढ़ाकर लगभग 8% कर देना उचित होगा ताकि शिक्षा संस्थानों की आधारभूत सुविधाओं के लिए वित्त का प्रावधान हो सके। इस आलेख में प्रस्तावित 2% की बढ़ोतरी की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को उठा लेनी चाहिए इससे जीडीपी का 8% हिस्सेदारी सुनिश्चित हो सकती है।
इसका विश्लेषण टेन प्लस टू के सापेक्ष इसलिए नहीं करूंगा क्योंकि यह है पुरानी शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से फॉर्मेट कर देने वाली शिक्षा नीति है जो नई शैक्षिक प्रणाली को जन्म देगी।
 इसे 72 साल बाद एकदम नई शिक्षा नीति के रूप में अधिमान्यता देना उचित है।
   इस बात से असहमति आप सबके मन में संभव है परंतु यहां यह प्रयास किया है कि शिक्षा नीति के संबंध में अपनी बात तब ही रखी जावे  जबकि मैं उसका संपूर्ण अध्ययन करलूँ । मेरी समझ के अनुरूप उन मुद्दों पर विमर्श करना चाहूंगा जिससे आपको शिक्षा नीति के मूल स्वरूप का दर्शन करा सकूँ ।
   मार्च 80 में 11वीं की परीक्षा पास करने में मुझे जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा उनमें एक गणित विज्ञान विषय को चुनना बेहद मेरे लिए कठिन था। इसका अर्थ यह है कि मेरे पास प्राकृतिक रूप से सीखने के लिए कोई अकैडमी गलियारा नहीं था। मुझसे अधिक इंटेलिजेंट मेरे परिवार के कई सारे सदस्य थे। मैं अपने आप को हीन भावना से ग्रस्त मानता था क्योंकि- उस वक्त में अच्छे विद्यार्थी होने का अर्थ होता था कि वह विज्ञान समूह का विद्यार्थी है । कुछ परिवार का दबाव और कुछ यह तय ना कर पाने की क्षमता का विकास न होने के कारण  मुझे क्या करना चाहिए और कैसे अपनी बात मनवानी चाहिए जैसे विकल्प न थे । मजबूरन नौवीं क्लास में मुझे विज्ञान लेना पड़ा। उस वक्त विकल्पों के मामले में शिक्षा व्यवस्था बेहद विपन्न थी।
इसी विपन्नता के चलते मेरे पास कोई विकल्प नहीं थे । फिजिक्स केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स से कंपार्टमेंट और 6 नंबर के ग्रेस के जरिए सेकंड डिवीजन में  । इस तरह  11वीं का सर्टिफिकेट हासिल कर लेना आज भी शूल की तरह चुभता है ।
   लेकिन  यह दर्द तब कम  हुआ जब मेरी बेटी ने मुझसे कहा था- पापा मुझ पर दबाव  कि मैं 10वीं क्लास  के बाद साइंस की विद्यार्थी बनूँ । क्योंकि यह मेरी रुचि के विषय नहीं है । स्पष्ट है कि युग परिवर्तन के साथ हो रही विकास या विकास के कारण हो रहे युग परिवर्तन के संदर्भ में अभिव्यक्ति में भी बदलाव आया है।
    यहां मुझे 1986 और 92 में आई शिक्षा नीति भले ही वह पूरी तरह से मेरी सोच के अनुरूप नहीं थी परंतु अंधेरे कमरे में रोशनदान खुलने की तरह अवश्य नजर आई।
    शिक्षा के मौलिक अधिकार बनने पर बेहद प्रसन्नता हुई थी अभी भी उसका एहसास मन में बाकी है। तो आइए इस बदलाव को बुलेट प्वाइंट उजागर करने की कोशिश करता हूं नई शिक्षा नीति के संदर्भ में
[  ] सबसे बड़ा बदलाव जो है वह यह कि इस नीति को स्वीकार करने के पूर्व लगभग दो लाख से अधिक विचारों को विश्लेषित किया गया । आप यह भी कह सकते हैं कि यह अपर्याप्त था मित्रों ऐसा इसलिए मत कहिए कि भारत में लागू शिक्षा प्रणाली र  पर ना तो कभी किसी अभिभावकों से मैंने कुछ सुना और ना ही कभी किसी सामाजिक या पॉलिटिकल मीटिंग्स ने इस पर चिंता व्यक्त की गई। समाचार रचाने वाले मीडिया के लिए यह विषय बहुत गैरजरूरी समझा जाता रहा है । मेरे मित्र अनंत पांडे बताते हैं कि लगभग 60,000 विचार हमारे मन में पूरे 24 घंटे में आते हैं । इसमें भारत की शिक्षा नीति पर भी कभी को कोई सोशल मीडिया पोस्ट अथवा ट्वीट या आर्टिकल जो सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं द्वारा लिखा गया हो नहीं देखा। इसकी वजह यह है कि दिन भर में हम जागृत  समय का  30% मनोरंजन 30% पॉलिटिक्स संबंधी उत्प्रेरक समाचारों तथा शेष 30% हिस्सा निरर्थक बिंदुओं पर तथा मात्र 10% परिवार और दफ्तर पर संयुक्त रूप से खर्च करते हैं । मौलिक चिंतन पर यह प्रतिशत उसी 10% समय का एक या 2% हिस्सा ही होता है। वरना सवा सौ करोड़ में से कम से कम 5000000 ईमेल अवश्य सरकार के पास जाते। फिर भी दो लाख लोगों को बधाई देना जरूरी है ।
[  ] उत्तर प्रदेश में बाल विकास परियोजना अधिकारी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में जब हमने देखा कि वहां का अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन सिस्टम कैसा है उससे मन बेहद सकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ । वहां की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि उसके आंगनवाड़ी केंद्र में पढ़े बच्चों में से अधिकांश बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं। तब समझ नहीं आया कि अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन स्कूल ड्रॉपआउट रेट को किस तरह से कम कर सकती है। भारत सरकार और राज्य सरकारें इन लाखों आंगनबाड़ियों का उपयोग यानी अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन सेंटर के रूप में कर सकतीं हैं। नई शिक्षा नीति में 3 साल से शैक्षणिक व्यवस्था सुनिश्चित करा दी गई है। ताकि बुनियाद ही सरकार के रडार पर आ जाए ।
  साथ ही इससे शासकीय मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर का सही सही उपयोग करके भारत सरकार एवं राज्य सरकारें अपने लक्ष्य की प्राप्ति आसानी से कर सकती हैं ।
[  ] यह शिक्षा नीति 5 प्लस 3 प्लस 3 प्लस 4 अर्थात 15 वर्ष तक जारी रहेगी । जिसमें 3 वर्ष अनौपचारिक शिक्षा प्रणाली के रूप में चिन्हित किए गए हैं । अनौपचारिक शिक्षा प्रणाली में काम करते हुए मुझे 28 से 30 वर्ष का जैसा अनुभव है उस अनुसार यह पूर्ण रूप से निर्मुक्त एवं बाल मनोविज्ञान पर आधारित तथ्य है ऐसा मेरा निष्कर्ष है।
[  ] फाउंडेशन अगर मजबूत है तो पक्का मानिए की बिल्डिंग तो मजबूत होगी ही और यह 5 साल सबसे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं बच्चों के लिए भी ।
[  ] सबसे आकर्षक बिंदु यह है कि 5 वर्षों में दी जाने वाली शिक्षा मातृभाषा स्थानीय भाषा एवं राष्ट्रभाषा में सुनिश्चित कराई जानी है। अपनी भाषा में अध्यापन कराने के कारण हमारे मस्तिष्क में समझ के साथ शिक्षा का प्रवेश होता है जबकि किसी विदेशी भाषा को माध्यम बनाकर पढ़ाना और पढ़ना सीधे फादर  कामिल बुल्के की डिक्शनरी की तरफ रुझान बढ़ाता है। और ऐसी खोजा-तपासी में पठन-पाठन का जो हिस्सा छूट जाता है उसकी भरपाई जिंदगी में कभी भी नहीं हो पाती है । इस तथ्य की पुष्टि के लिए  सोनम वांगचुक के विचार एवं उनके द्वारा प्रस्तुत उदाहरण उल्लेखनीय हैं । सोनम ने  प्रमाण सहित अपनी बात की पुष्टि के लिए तिब्बत की निर्वासित सरकार के शिक्षा मंत्री जेटसन पेमा को मिलवा ते हुए बताया कि उनकी शिक्षा व्यवस्था में तिब्बती भाषा को माध्यम के रूप में चुना जाना 2 तरीकों से सफल रहा है एक तो बच्चों के मन में शिक्षा के प्रति आकर्षण बढ़ा है तथा उनकी तिब्बत संस्कृति का भी संरक्षण मूल रूप से हो सकता है । आपको याद होगा गुप्त काल में फ़ाह्यान नाम के चीनी यात्री ने भारत में आने से पूर्व  संस्कृत का ज्ञान अर्जित कर किया और भारत आए तथा उन्होंने बौद्ध धर्म की विस्तृत मीमांसा भी की । भाषा सीख कर ज्ञान अर्जित करना तथा अतिरिक्त भाषाओं का ज्ञान होना व्यक्ति की समझ पर अर्थात उसकी बौद्धिक क्षमता पर निर्भर करता है । और बौद्धिक क्षमता का विकास अपनी भाषा में ज्ञान अर्जित कर के जितनी आसानी से किया जा सकता है उतना आसानी से विदेशी भाषा में ज्ञान अर्जित करना संभव कभी नहीं हो सकता है ।
[ ] छठी क्लास से ही इंटर्नशिप एक अच्छा प्रयोग है तो कोडिंग सिखाना नवाचार है । 
[  ] इस नीति में 360 डिग्री का अर्थ यह है कि विद्यार्थी के रूप में विद्यार्थी की योग्यता का मूल्यांकन कई एंगल से होगा । उसने एक एंगल यह होगा कि विद्यार्थी स्वयं को किस स्तर पर देखता है यह चकित कर देने वाला तथ्य है । अपने आप को किस स्तर पर रखना है या रखा जाएगा इसका मूल्यांकन स्वयं विद्यार्थी भी करेगा जो आत्म विश्लेषण का सूचक है ।
[  ] मूल्यांकन का क्रेडिट स्टोर अद्भुत वैज्ञानिक प्रणाली है। जिस तरह आप बैंक में अपना अध्ययन जमा करते हैं वैसे ही आप अपना बौद्धिक मूल्यांकन बैंक में जमा होगा यह प्रणाली पूर्णता है डिजिटल ही होगी इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
[  ]  विकल्पों से भरी इस शिक्षा नीति में एक और बेहतरीन विकल्प नजर आया है एंट्रेंस एग्जाम का। अगर किसी विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए कट ऑफ नंबर तक कोई बच्चा या विद्यार्थी इच्छुक होने के बावजूद प्रवेश नहीं पा सकेगा तो वह एक परीक्षा के विकल्प को भी अपना सकता है और उस विकल्प में उसे जो अंक अर्जित हो सकेंगे उन अंकों को न्यूनतम क्वालीफाइंग क्लास की परीक्षा के अंकों के साथ जोड़ दिया जावेगा ।
[  ] जब से भारतीय शिक्षा प्रणाली से संस्कृत को आउट किया है तब से भारतीय दर्शन का मनुष्य के जीवन से अवसान हो ही गया है जबकि संस्कृत से अंग्रेजी या विदेशी भाषा में अनुदित ज्ञान और सिद्धांतों को हम विदेशी ज्ञान समझ बैठे हैं और उसे सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं ।
[  ] व्यक्तिगत रूप से अंग्रेजी का ज्ञान होना आपत्तिजनक बिल्कुल नहीं है नई शिक्षा नीति यही कहती है। आपत्ति तो इस बात की है कि शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने से लोग बहुत कन्फ्यूज्ड है। अगर इस आर्टिकल का ट्रांसलेशन अंग्रेजी में कीजिएगा तो इस पर बेहद सकारात्मक टिप्पणीयाँ किंतु अच्छे से अच्छा विचार रख इस आर्टिकल को अगर वह हिंदी भाषा से परिचित नहीं है तो इसके कर जाएगा क्योंकि उसके पास उसकी अपनी मातृभाषा मैं लिखे गए कंटेंट को पढ़ने की क्षमता तो बचपन से ही छीन ली गई है ।  भारत में ही भाषाओं की कमी नहीं है आप गुजराती मलयाली बांग्ला तमिल मराठी आदि किसी भी भाषा का ज्ञान अर्जित कर सकते हैं और एक विषय के रूप में उसे अंगीकार कर लेते हैं तो कोई आपत्ति नहीं क्योंकि हमारी अपनी राष्ट्रभाषा का ज्ञान होना सबके लिए जरूरी है ।
[  ] शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए शिक्षकों के शिक्षण प्रशिक्षण की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने अपने पास रखी है। शिक्षण व्यवस्था में एकरूपता बनाए रखने की स्थिति को बरकरार रखा जा सकेगा
[  ] विश्व की टॉप मोस्ट 50 यूनिवर्सिटीज को उच्च शिक्षा में सहभागी बनाने की व्यवस्था नीति में सम्मिलित की गई है ।
[  ] बिहार से एक यूनिवर्स जो खान सर के नाम से अपना चैनल प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए चलाते हैं का मानना है कि - शैक्षिक एंट्री और एग्जिट आज ही एंट्री बेहद प्रभावशाली धूल बन जाएगा इससे उन गरीब बच्चों को फायदा होगा जो अनचाही परिस्थितियों के कारण पढ़ नहीं सकते ।
[  ]  प्रत्येक स्कूल साहित्य कला और संगीत के साथ-साथ संस्कृत को भी बढ़ावा देगा । 
    मिलाकर यह शिक्षा नीति अगर किसी कुचक्र में फंस कर रूपी नहीं तो इससे देश का भला ही होगा यह सब का मानना है ।

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