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  सूफीवाद ने मोहब्बत का पैग़ाम दिया । हमारे संत कवियों ने भी तो यही किया था । सूफीवाद हर धर्म की जड़ में मौज़ूद है.. क़बीर जब बोले तो अध्यात्म बोले खुलकर बोले । क़बीर मीरा तुलसी रसखान बुल्ले शाह, यहां तक कि लोकभजनों में भी यही सब है । 
रामायण महाभारत में न तो राम की पूजा न ही कृष्ण की पूजा का कोई विधान आदेशित है न ही कोई प्रक्रिया बताई है । परंतु शास्त्रों ने नवदा भक्तियोग को अवश्य किया है । राम मर्यादा जिसे उर्दू में हुदूद कहते हैं कहा है । तो कृष्ण ने कर्मयोग का सिद्धांत तय किया है । 
मित्रो, राक्षसों का वध तब ही हुआ जब वे आतंकी हमला करने लगे । जब भी मानवाधिकारों को किसी ने भी लांघा तो उसे दण्ड मिला । फिर वो ऋषि मुनि, देवता, गन्धर्व, और राक्षस ही क्यों न हों । 
   पूजा अर्चना आराधना भक्ति के लिए किसी मुहूर्त की ज़रूरत कहाँ..?
एक बार ख्याल आया कि पूजा कब स्वीकारेगा परमात्मा..?
बुद्धि ने समझाया- जब तुम्हारा मन करे तब ब्रह्म के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करो । योग निद्रा में रहो कौन रोकता है ? 
मन ने पूछा - तो त्रिसंध्या का अर्थ क्या है ?
बुद्धि ने कहा- त्रिसंध्या का अर्थ है कर्म के दायित्व से विमुक्त मत हो । वो भी करो रोटी कपड़ा मकान सुनिश्चित कर लो कर्मशील रहो और सही वक़्त निकाल कर कम से कम 3 बार तो ब्रह्म का आभार मानो । परमात्मा का अर्थ ही यह है कि वो आपसे जुड़ा है पर आप उससे कितने जुड़े हैं इसका ज्ञान तो तभी सम्भव है जब आप योगी की अवस्था में होते हैं । आप घर के द्वार पर बैठ कर या ट्रेन में या कहीं भी सिर्फ चेहरे पढ़िए तो आप देखेंगे कि अलौकिक आभा युक्त  सतगुणी जन मुस्कुराते नज़र आएंगे । रजोगुणी जन माधुर्य के साथ खुद को प्रस्तुत करते नज़र आएंगे । और तमोगुणी जन जिनका प्रतिशत सर्वाधिक होगा आक्रामक तेवर के साथ खुद को अभिव्यक्त करते नज़र आएंगे । आजमा कर देख लीजिए यह सत्य ही है । 
   आज विश्व में तमोगुणी शक्तियों का राज़ हरेक मानस पर है । वे खुद को उग्र तेवर के साथ अभिव्यक्त करते नज़र आते हैं । रजोगुण वाले लोग 2 या 3 प्रतिशत में हैं जो हैं वे भी खुद को बचाते हुए नज़र आते हैं । और सतोगुणी तो न के बराबर आपको आपके भाग्य से मिलेंगे । 
अब जब कि ज़ेहाद बुलंदी पर है तो सिद्ध करते रहिए कि-हम रजोगुणी हैं कर्मयोग हमारा बल है हम शास्त्र के साथ शस्त्र का अनुप्रयोग भी जानते हैं । गीता में कृष्ण ने यही तो सिखाया है । ध्यान रहे कल सुबह आयुध लेकर निकलने को नहीं कह रहा हूँ । कह रहा हूँ सतोगुणी बनो और ज्योतिर्मय अन्तस् से शांति का पैगाम दो । भरम मत पालो कि विष्णुसहस्त्रनाम को रट के पढ लिया तो ब्रह्म के करीब हो गए पुष्पदन्त ने एक पुष्प के अभाव में नेत्र अर्पित किया था । केवल सामवेदानुकूल शिवमहिम्न का गायन मात्र नहीं किया था । रेवा के उछाह को शंकराचार्य ने गुरु को बचाने आर्त भाव से प्रार्थना की थी जिसे आप नर्मदाष्टक के रूप में बाँचते हैं तब माँ रेवा थम गई थी । 
अब अंत में एक बात और ... 
सोलह दिन बीतने वाले हैं । पुरखे चले जाएंगे ? नहीं वे कहां जाते हैं ? यहीं रहेंगे हमारे इर्दगिर्द। सुना है इस बार वे देखेंगे कि आप जीवितों को कितना सम्मान देते हो । सच ऐसा ही होने जा रहा है इस बार ! इस बात को समझना है तो बताए देता हूँ..  हम केवल 16 दिन के अनुष्ठान को अवधि तक सीमित न रखें ! क्या मालूम तुम मेरे किसी पूर्वज का पुनर्जन्म हो और मैं मूढ़ तुम्हारे दिल को दुःखी करूं या तुम खुद ऐसा करो ..? 
तो है पूर्वजो मेरे मन की उद्दंडता से अगर शाब्दिक व्यवहारगत कोई त्रुटि हुई है तो केवल इस बार क्षमा करना अगली बार तक आत्म सुधार अवश्य कर लूंगा ।

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