पता नहीं कब आएगा सुग्गा..?चिंतामग्न बैठा नीलकंठ बाट जोहता । दूर से एक तोतों के झुंड को आता देख खुश हुआ सुग्गा आ जाएगा । पर झुंड आगे वाले आम के पेड़ पर जमा हो गया । कुछ आगे बढ़ने लगे । नीलकंठ घबराया डरा भी तभी उसने तय कर लिया कि सुग्गा को खोजेगा । एक उड़ान भरी । कुछ दूर जाकर देखा सुग्गा एक पतंग की डोर में उलझकर बार बार उड़ना चाह रहा था पर पंख डोर में फंस कर उड़ नही पा रहा था ।
नीलकंठ को देखते ही सुग्गे को यकायक मुक्तिबोध सा हुआ। होना ही था सहृदयता के दूत जब भी आते हैं तो मुक्तिबोध होना वाज़िब है । अपनी चोंच से नीलकंठ ने धागे निकाले ।
फिर दौनों एक डाल पर बैठकर एक दूसरे को देख कर आत्मीयता अभिव्यक्ति में व्यस्त हो गए ।