12.4.20

भारत में कोरोना संक्रमण : मज़दूरों पर प्रभाव

किसी भी स्थिति में भारत की अर्थव्यवस्था बेहद नकारात्मक परिणाम नहीं दिखा सकती।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के संबंध में स्मरण करें। रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले 6 माह में भारत के 40 करोड लोग बेरोजगारी का शिकार हो जाएंगे। मेरे पिछले आलेख में स्पष्ट कर दिया गया था कि भारत पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमान के  अनुकूल उतना  प्रभाव नहीं पड़ेगा जितना कि उक्त रिपोर्ट में दर्शाया गया है ।
   मेरे ऑब्जरवेशन अनुसार भारत की 20 करोड़ आबादी को अगले 3 से 4 महीने तक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
आई एल ओ ने नौकरियां कम होने संबंधी जो आशंका व्यक्त की थी वह बिल्कुल स्वभाविक और लगभग सटीक कही जा सकती है। जबकि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को इसका कोई जबरदस्त असर पड़ने वाला है ऐसा बिल्कुल नहीं है। बल्कि यह आंशिक सत्य है। भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली वर्कफोर्स के संबंध में आईएलओ का विश्लेषण केवल एक नजीबी नक्शे की तरह है। खेतिहर भूमि हर मजदूर घरेलू नौकर चाय बागानों में काम करने वाले कृषि कार्यों के ट्रेडिंग से जुड़े व्यवसायियों के साथ काम करने वाले असंगठित क्षेत्र के मजदूर अब अधिक मांग में बने रहेंगे। भारत का मध्यमवर्ग इनका दूसरा सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण संरक्षक है। उस पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का योजनाओं के जरिए ऐसे मजदूरों को कवर्ड करना उल्लेखनीय है। इस बिंदु पर विचार किए बिना आईएलओ द्वारा जारी रिपोर्ट आंशिक रूप से खारिज की जा सकती है।
इसका अर्थ यह नहीं कि - यह तब का पूर्ण तरह प्रभावित रहेगा बल्कि इसका अर्थ यह है कि भारत के कथित 40 करोड़ असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों में से 50% को रोजगार  का संकट आ सकता है। वह भी कार्य के घंटों के संदर्भ में। क्योंकि यह समस्या अस्थाई होगी अतः आशा करता हूं कि प्रभाव भी अस्थाई ही रहेगा परंतु जो श्रमिक उद्योगों पर आश्रित हैवी अवश्य पूरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं।
11 मार्च 2020 को भारत के प्रधानमंत्री के साथ संपन्न बैठक में मुख्यमंत्रियों द्वारा इन मजदूरों के बारे में विशेष रुप से सहयोग और सपोर्ट की मांग की गई। भारत सरकार राज्य सरकारों को सपोर्ट निश्चित तौर पर कर सकती है। कोरोनावायरस संक्रमण से जूझने वाले इस दौर में 15 दिनों तक प्रतिबंध को जारी रखना लगभग आवश्यक प्रतीत होता है। ऐसा निर्णय लिया जाना भी संभावित है। इससे अस्थाई समस्या के रूप में मजदूरों को गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है परंतु जैसे ही परिस्थितियां धीरे-धीरे अनुकूल होंगी व्यवसाय व्यापार में श्रम की मांग फिर से प्रारंभ हो जावेगी।
   यह अवश्य है कि व्यवसायियों को फिर से मूल स्वरूप में लौटने में एक माह का समय और लग सकता है। इस संबंध में एक तथ्य आपकी दृष्टि में लाना चाहता हूं जिस से आपको समझ में आएगा कि भारत की अर्थव्यवस्था में श्रम की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि भारत एक बड़ा बाजार है और इस बाजार में क्रय शक्ति अचानक शून्य हो जाना लगभग असंभव है। आज भी मध्य वर्ग क्रय शक्ति विहीन नहीं हुआ है हां अगर कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए 2 से 3 माह और लॉक डाउन करना पड़ा तो भारतीय अर्थव्यवस्था में इस वर्ग की स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है। भारत सहित पू विश्व का एक जैसा दृश्य है। परंतु भारत जिस तेजी से संक्रमण रोकने के लिए एकजुट है उससे प्रतीत होता है कि भारत में अधिकतम मई 2020 तक हम कोरोना संक्रमण का समूल विनाश कर सकेंगे।
  मीडिया को चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट को सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत ना करते हुए उसका आंतरिक विश्लेषण अवश्य करें फिर उस पर समाचारों का प्रकाशन एवं प्रसारण किया जाए ताकि सामाजिक हड़बड़ाहट को स्थान ना मिले ।
   केंद्र और  राज्य की सरकारें एकजुटता के साथ इस कार्य को अंजाम देंगी पहले से ही सरकारों ने अपनी अपनी समझ एवं संसाधनों के अनुकूल व्यवस्थाएं सुनिश्चित कर ली है । 

11.4.20

क्या 40 करोड़ लोग जा सकतें है आय के निचले स्तर पर...?


कोरोनावायरस संक्रमण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। यह जानकारी विश्व श्रम संगठन जिसे इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन भी कहा जाता है जिसका प्रधान कार्यालय जिनेवा स्विट्जरलैंड में स्थित है द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे अगले 6 माह में ही बेहद नकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। विश्वव्यापी लॉक डाउन के स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसका यह आशय नहीं है की लॉक डाउन से नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है बल्कि यह है कि जीवन बचाने के लिए विश्व की सरकारों द्वारा किया जा रहा है यह प्रभावी कार्य एक ऐसी परिणीति भी दे सकता है जिसका अनुमान सामान्य लोग वर्तमान में नहीं लगा पा रहे। आईएलओ का मानना है कि विश्व में 7.5 खरब की जनसंख्या है जिसका 3.3 खरब हिस्सा वर्किंग फोर्स के रूप में चिन्हित है। श्रम संगठन की रिपोर्ट बताती है कि वर्किंग फोर्स अर्थात 3.3 खरब आबादी का 81% हिस्सा जो लगभग दो खरक से अधिक होगा बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। यह वैश्विक आंकड़ा है भारत जी इस आंकड़े में ब्राजील और नाइजीरिया के साथ सम्मिलित किया गया है। उसका कारण बताते हुए श्रम संगठन का मानना है कि यहां 90% जनसंख्या इनफॉरमल सेक्टर मैं कार्य कर रही है। यही हो तब का है जो रोजगार एवं वेतन के संदर्भ में सर्वाधिक प्रभावित होने जा रहा है। अपनी रिपोर्ट में विश्व श्रम संगठन ने यह अवगत कराया है कि 40 करोड़ भारतीय लोग रोजगार में उतना लाभ नहीं पाएंगे जितना कि कोरोनावायरस के विस्तार के पूर्व पा रहे हैं । अर्थव्यवस्था में ऐसी गिरावट द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार देखने को मिल सकती है । वैसे भी भारतीय अर्थव्यवस्था लिक्विडिटी पर आधारित है विश्व श्रम संगठन का अनुमान सही प्रतीत होता है। रिपोर्ट को देखा जाए तो स्पष्ट है कि उत्पादन रियल स्टेट ट्रेडिंग प्रशासनिक क्षेत्र शिक्षा खनिज आदि क्षेत्र तेजी से प्रभावित हो सकते हैं । अगर यह स्थिति है तो इसकी वजह केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कंपनियों का उत्पादन प्रभावित होना भी है। आरती कंपनीयाँ भी इससे अछूती नहीं रहेगी। आईटी कंपनी को अपना आकार कम करना होगा जिसका अर्थ है कि वह अपने कर्मचारियों की छटनी भी कर सकती है । इससे अवश्य शिक्षित एवं प्रशिक्षित बेरोजगारी में बढ़ोतरी हो सकती है। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अगर अकेले यूरोप ने ऐसी कंपनियों के लिए अपनी आर्थिक नीतियों में व्यवस्था कर ली होगी तो यह बेरोजगारी तेजी से नहीं बढ़ेगी। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि दक्षिण एशिया भारत पाकिस्तान बांग्लादेश के आईटी प्रोफेशनल्स वर्क फ्रॉम होम डिस्टेंस वर्किंग के मामले में सक्षम है और यदि आईटी सेक्टर की कंपनियां किसी तरह सरवाइव कर लेती है तो निश्चित तौर पर आय में कमी अवश्य हो सकती है परंतु बेरोजगारी की दर में वृद्धि नहीं होगी। परंतु अगर प्रोडक्शन और ट्रेडिंग करने वाली कंपनियों की स्थिति नकारात्मक रुझान दिखाती है तो यह तय है कि आईटी कंपनियां भी अवश्यंभावी शुरू से प्रभावित होंगी जिसका सीधा असर दक्षिण एशियाई देशों से काम में नियोजित वर्क फोर्स पर असर अवश्य पड़ेगा। वर्तमान में अमेरिका द्वारा वहां काम कर रहे नागरिकों को वीजा देने में विलंब किया जा रहा है। जिसकी दो वजह हैं एक - अमेरिका में तेजी से फैलता कोरोना वायरस संक्रमण और उसके प्रबंधन में उत्पन्न समस्याएं दो - अमेरिका पूंजी प्रबंधन की समस्या उपरोक्त दोनों कारणों से कंपनियों के शेयरों में गिरावट हो रही है। जैसा कि आप टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले समाचारों में सो नहीं रहे होंगे। अभी यह कहना जल्दबाजी ही होगा की कोरोनावायरस संक्रमण की समस्या स्थाई है निश्चित तौर पर भारत सहित यूरोप के कई देश इसके समाधान में तेजी से काम कर रहे हैं और यह विश्वास है कि कोरोनावायरस संक्रमण को रोकने का कोई उचित प्रबंध सुनिश्चित हो जाएगा। यहां कृषि वैज्ञानिकों से यह आव्हान किया जाता है कि वह उत्पादन क्षमता बढ़ाने के और अधिक प्रयास करें ताकि आगामी 2 से 3 वर्षों में जब तक इस महामारी के कारण होने वाली संभावित महामंदी का प्रभाव रहेगा तो भी भारत एक उच्च स्तरीय उत्पादक के रूप में उभर के आए और वह विश्व व्यापार ने भले ही बहुत अधिक हिस्सेदारी ना दिखा पाए पर उसका अनाज भंडार कम से कम अगले 3 वर्षों के लिए पर्याप्त रहे। इस तथ्य को हमें उसी नजरिए से देखना है जिस नजरिए से आपने हमने भारत के ऐतिहासिक स्वरूप का अध्ययन किया है। भारत कृषि प्रधान देश रहा है और रहेगा भी। वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट तब तक एकांगी है जब तक की आर्थिक औद्योगिक मुद्दे पर अध्ययन करने वाली किसी विश्वसनीय और सर्वमान्य संस्था की रिपोर्ट नहीं आ जाती। रिपोर्ट में भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि के योगदान के संबंध में टिप्पणी नहीं है । इसलिए अगले छह माह में 40 करोड़ लोगों को प्रभावित होने की बात गलत अनुमान है ऐसा मैं स्वयं के नजरिए से कहता हूं। भारतीय युवा शक्ति को खेतों की ओर मुड़ना ही चाहिए भारतीय वर्कफोर्स कृषि आधारित उत्पादों की ट्रेडिंग में भी तेजी से काम कर सकते हैं। यहां यह बात भी स्पष्ट कर देनी आवश्यक है कि इस संभावित महामंदी का असर अवश्य होगा भारत में भी हम इसे देख सकेंगे। लेकिन मध्यमवर्ग जो सर्वाधिक कार्यशील समुदाय है वह निश्चित तौर पर रोजगार के विकल्पों पर काम अवश्य करेगा। भारत सरकार की स्टार्टअप योजना जैसी योजनाओं ने युवाओं को अपनी रुचि दिखानी ही होगी। यद्यपि पूरे विश्व की सरकारों को इंटरनेशनल लेबर ऑफ डाइजेशन ने चार स्तंभों में सलाह दी है जो इस प्रकार है 1 टैक्स में कमी या उसका पुनरीक्षण करना, धन का प्रवाह करना *भारत सरकार ने रिजर्व बैंक के सहयोग चाहिए बैंकिंग सिस्टम में ऐसे प्रयास यह बहुत पहले ही प्रारंभ कर दिए हैं* 2 जॉब को बचाए रखना उसके लिए आर्थिक नीतियों में बदलाव अथवा उसका पुनरीक्षण करना 3 अगले 6 महीनों तक कम से कम सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखना। यथासंभव वर्क फ्रॉम होम जैसी प्रणाली को जारी रखना 4 समुदाय के साथ सरकार का बेहतर समन्वयन भी एक महत्वपूर्ण स्तंभ होगा। समुदाय में उत्पादन से जुड़े लोग ओपिनियन लीडर्स वर्क फोर्स आदि से सतत समन्वय बेहद जरूरी होगा । कोरोनावायरस संक्रमण को रोकने के लिए नागरिकों को चाहिए कि अगले 15 से 20 दिनों में अगर लॉक डाउन समाप्त भी हो जाता है तब भी वे सोशल डिस्टेंसिंग को किसी भी हालत में मेंटेन करके चलें। *जहां तक रोजगार में कमी का संकेत है वह अवश्यंभावी है उसे रोका नहीं जा सकता भले ही 40 करोड़ भारतीय इससे प्रभावित ना हो तब भी 20 करोड़ जनसंख्या का प्रभावित होना तय है।* क्योंकि रिपोर्ट के अनुसार छोटे और अत्यंत छोटे व्यापारियों को यह समस्या आ सकती है। अतः मितव्ययिता, एवम श्रम तथा पूंजी का उत्कृष्ट प्रबंधन ही भारत के छोटे व्यापारियों को संकट से उबारने में सबसे ज्यादा सहायक होगा। यहां यह भी कहना जरूरी है कि भारत के अधिकांश युवा जो अप्रवासी हैं और विभिन्न क्षेत्रों में विदेशों में कार्यरत हैं केवल अपनी योग्यता और क्षमता के आधार पर यूरोप में रुक सकेंगे ऐसा नहीं है कि केवल योग्यता और क्षमता का ही मूल्यांकन किया जावेगा बल्कि कंपनियां क्लाइंट कंपनियों से कार्य मिलने या ना मिलने के कारण भी कटौती कर सकती है। कुल मिलाकर स्थिति नाजुक हो सकती है अगर नागरिक और सरकार दोनों के बीच बेहतर समन्वय संवाद स्थापित ना हुआ तो। अभी विश्व स्वास्थ संगठन के अलावा व्यापारिक तथा औद्योगिक विषयों की समीक्षा एवं रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाली सर्वमान्य संस्थाओं के विश्लेषण के बाद विस्तृत रूप से कुछ कहा जा सकता है यह आलेख केवल अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की अनुमान पर आधारित है। गिरीश बिल्लोरे मुकुल चिट्ठाकार, लेखक एवम साहित्यकार 

9.4.20

लॉक डाउन By Nilesh Rawal

लाॅक डाउन - भाग - ६ 

कल हमने लॉक डाउन - भाग - 5  में भगवान श्री राम के व्यक्तिगत गुणों और उनके हमारे जीवन में अपने राम के तौर पर अवधरण की बात की थी कल मैंने यह भी कहा था कि कल हम भगवान राम के अपने व्यवसायिक जीवन में उपस्थिति की बातें करेंगे !
वैसे भी अगर हम ठीक ढंग से देखेंगे तो आज की तारीख में हमारे व्यक्तिगत जीवन के साथ साथ व्यवसायिक जीवन भी बहुत बड़ा हो चुका है हमारा व्यक्तिगत जीवन सीधे तौर पर हमारे व्यवसायिक जीवन से प्रभावित रहता है इसलिए यदि हमारे व्यवसायीक जीवन में राम का दिशानिर्देश मिल जाए तो व्यवसायीक जीवन के साथ-साथ व्यक्तिगत जीवन भी संतुलित हो जाएगा! 

जिस तरह से मैंने अपने राम के बारे में बताया था कि मैं अपने राम से अपने व्यक्तिगत जीवन में किन का 5 गुणों से प्रभावित हूं उसी तरह से मैं अपने व्यवसायीक जीवन में राम के किन पांच गुणों से प्रभावित हूं इस विषय पर अपनी बात आपसे साझा करता हूं !
१. समन्वय २. मानव शक्ति प्रबंधन ३. स्किल डेवलपमेंट ४. भरोसा ५ . सम्मान

१.समन्वय -  राम जीवन में समन्वय स्थापित करने का सबसे अप्रतिम उदाहरण है राम का कहीं कोई विरोधी नहीं था, सारे ही लोगों के साथ राम का कोआर्डिनेशन एकदम परफेक्ट था उनका अपने पिता से ,अपने भाइयों से, अपनी प्रजा से, जब जंगल में गए तो अपने सहयोगियों से , अपने शुभचिंतकों से एक गजब का समन्वय था ! यहां तक कि उनके सारे सहयोगियों और साथियों का भी उन्होंने आपस में बहुत गजब का समन्वय  बिठा रखा था उनका कोई भी भाई दूसरे भाई से नाखुश नहीं था, या कोई भी सहयोगी किसी सहयोगी से कोई बैर भाव या वैमनस्य नहीं रखता था शायद पूरी दुनिया में समन्वय का इससे खूबसूरत कोई भी उदाहरण हमें नहीं मिल सकता है हमारे व्यवसायिक जीवन के साथ-साथ इस करोना काल में भी समन्वय का बड़ा महत्व है हम घर पर हैं हमारा अपने परिवार, बंद ऑफिस में जब हमारे कर्मचारी काम पर नहीं आ रहे हैं और हमारा व्यापार नहीं हो रहा है आय नहीं हो रही है उस दौर में अपने साथियों के साथ अपनी टीम के साथ समन्वय की सख्त आवश्यकता है !

२ मानव शक्ति प्रबंधन-  मानव शक्ति प्रबंधन या मेन पावर मैनेजमेंट, राम मानव शक्ति प्रबंधन का इस धरती पर सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है उन्होंने अपने भाइयों की शक्ति का, अपने सहयोगियों की शक्ति का, अपने साथ जुड़े वानरों की शक्ति का, या यूँ कहें की रावण के मुकाबले बहुत कमजोर सेना की शक्ति का सही अर्थों में शक्ति प्रबंधन करके ही रावण पर विजय प्राप्त की !
कभी सोचियेगा दलितों , वानरों या वन में रहने वालों की एक कमजोर सी सेना लेकर ब्रह्मांड कि सबसे शक्तिशाली सेना और सबसे शक्तिशाली व्यक्ति रावण से युद्ध करना और उस युद्ध को जीत लेना , दुनिया का श्रेष्ठतम मेन पावर मैनेजमेंट का उदाहरण है ,करोना काल में भी इस शक्ति के प्रबंधन की बहुत आवश्यकता है प्रशासन के पास, सरकारों के पास बहुत ही सीमित संसाधन है इसलिए यह जो समाज की, स्वयंसेवकों की, समाजसेवी संस्थाओं की शक्ति है यदि हम इसका सही प्रबंधन करने में सफल हो जाए तो समाज के अंतिम छोर तक करोना काल में उसकी आवश्यकताएं पूरी करने में सफल हो जाऐंगे और यदि हम लोगों की आवश्यकता है पूरी करने में सफल हो गए तो ही हम करोना के विरुद्ध उनसे नीति नियमों का पालन करके करोना पर विजय प्राप्त कर सकेंगे! 

३. स्किल डेवलपमेंट -   राम किस तरह से लोगों का विकास किया या मेन पावर डेवलपमेंट करके उनकी जिम्मेदारी और शक्तियों का एहसास करा कर हर कार्य को करने योग्य बना दिया, उसके कुछ उदाहरण हनुमान, सुग्रीव, अंगद, नल, नील आदि है, राम ने उन लोगों को उन लोगों के अंदर शक्तियों का एहसास करा कर उन्हें विकास क्रम की उस अवस्था में ला दिया कि उनके लिए हर कार्य को करना बहुत सहज और संभव हो गया करोना काल में भी यह गुण बहुत आवश्यक है लोगों की जीवन शैली में विकास उनके जीवन में साफ सफाई का महत्व ,सोशल डिस्टेंसिंग का महत्व, सेनेटाइजिंग का महत्व और उनके अंदर निहित प्रतिरोधक क्षमता का एहसास करा कर उनको विश्वास से इतना अधिक भरने की आवश्यकता है की यदि वे उपरोक्त  नीति नियमों का पालन करेंगे तो करोना कभी उन्हें छू भी नहीं सकता है !

४. भरोसा - राम दूसरों पर भरोसा करने का भी दुनिया का सर्वश्रेष्ठ  उदाहरण है जो शायद इतिहास मैं कभी कहीं और नहीं मिल सकता! श्री राम का अपने पिता पर भरोसा करना हो, गुरु पर भरोसा करना हो , वनवास देने के बावजूद माता पर भरोसा करना हो , अपने भाइयों पर भरोसा करना हो, सीता की खोज के लिए हनुमान पर भरोसा करना हो, रावण के पास से आऐ  हुए उसके भाई विभीषण पर भरोसा करना हो, सुग्रीव और उसकी सेना पर भरोसा करके लंका पर चढ़ाई करना हो,  अंगद को दूत बनाकर रावण के पास भेजना हो  एक बार सोच कर देखियेगा  राम ने हर उस काम में अपने लोगों पर भरोसा किया जो लगभग असंभव था परन्तु राम ने उस जगह पर पूरा भरोसा किया और उस भरोसे ने उस कार्य को संभव बना दिया! आज भी इस करोना त्रासदी में बहुत विश्वास और भरोसे की आवश्यकता है भरोसा हमारे प्रशासन पर , पुलिसकर्मियों पर, चिकित्सकों पर या सरकार पर  ! यह समय हमें अपने लोगों पर विश्वास सिर्फ करने का नहीं बल्कि पूरी मजबूती से अपने लोगों पर भरोसा करके इस लड़ाई में उनके साथ खड़े होने का है आप एक बार विश्वास तो करिए आप की सरकार है आपका प्रशासन , आपकी पुलिस, आपके चिकित्सक - हनुमान, अंगद, नल, नील और सुग्रीव की तरह ही अद्वितीय शक्ति के परिचायक हैं और करोना से इस युद्ध में अपनी अपनी भूमिका को पूरी क्षमता से निभा कर करोना रूपी रावण पर आप की विजय सुनिश्चित करेंगे! 

५. सम्मान-  व्यापार में , व्यवसाय में अपने से जुड़े छोटे से छोटे कर्मचारी का ,अपने से जुड़े दूसरे व्यापारियों का ,यहां तक कि अपने प्रतिद्वंद्वियों का यदि हम ठीक ढंग से सम्मान करना सीख जाए उन्हें उनका यथेष्ठ स्थान देना सीख जाएं तो शायद हमारे काम में ,व्यापार में, व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा जैसी कोई वस्तु रह ही नहीं जाएगी, राम ने बाली को मार कर सुग्रीव को  का राजा बनाया वे स्वयं नहीं बने, रावण को मारकर लंका को अपने राज्य में मिलाने के स्थान पर उससे उसका अस्तित्व देकर विभीषण को उसका राजा बनाया , बाली वध के बाद सुग्रीव के पुत्र के स्थान पर बाली के पुत्र अंगद को युवराज बनाया और हर छोटे से छोटे व्यक्ति को चाहे मल्लाह हो, चाहे शबरी हो अपने गले से लगाकर उन्हें पूरा सम्मान दिया और इसी
सम्मान देने के गुण ने राम को राम से भगवान राम बना दिया! 
करोना कॉल में भी सम्मान की बहुत आवश्यकता है चाहे करोना से लड़ने वाले प्रथम प्रथम पंक्ति के वीर हो या करोना के संक्रमण में आए लोग ! यदि करोना से संक्रमण में आए हुए लोगों को हम सम्मान नहीं देंगे तो लोग इस बीमारी के विषय में स्वयं आगे आकर बताने से डरेंगे और यदि ऐसा हुआ तो फिर करोना की यह चेन कभी नहीं टुट पायेगी!

अगर हमने अपने  राम के इन व्यवसायिक गुणों को एक बार ठीक से समझ कर अपने जीवन में अपने व्यवसाय में उतारने का प्रयास कर लिया और आंशिक उतारने में भी सफल हो गए तो हमारा कोई विकल्प हो ही नहीं सकता हम निर्विकल्प हो जायेंगे! 
जय श्री राम
निलेश रावल

लॉक डाउन By Nilesh Rawal


लाॅक डाउन - भाग - ५

 लॉक डाउन है, सुनसान सडकें हैं ,खाली बाजार  हैं और हर व्यक्ति अपनी देहरी के अंदर सिमटा हुआ है ! 
 कुछ दिनों पहले रामनवमी गई और कल हनुमान जयंती है ,
दूरदर्शन पर रामायण का पुनः प्रसारण हो रहा है एक टीआरपी रिपोर्ट के अनुसार लगभग 15 करोड लोग इसे देख रहे और वैसे भी राम भारतीय सनातनी परंपरा का सबसे सम्मानीय, मान्य और पूजनीय चरित्र है और रामायण सबसे सम्माननीय और पूजनीय चरित्र चित्रण रहा है! 

परंतु क्या रामायण इस काल में भी और विशेष तौर पर करोना काल से जुझती हुई दुनिया के लिए प्रासंगिक है! 

चलिए एक बार मिलकर समझने का प्रयास करते हैं !

रामायण में राम को हर किसी ने अपने-अपने राम की तरह देखा है! 

मैंने अपने जिस राम को देखा है उस पर मैं जो सोचता हूं आपसे साझा कर रहा हूं! 

मै राम के निम्नलिखित गुणों से अभिभूत और प्रभावित रहा हूँ!

1.समर्पण 2.धैर्य 3.विनम्रता 4.सकारात्मकता 5  वीरता 

अब चलिए समझने का प्रयास करते हैं क्या राम की ये गुण इस काल में और विशेष तौर पर करोना  काल में भी प्रासंगिक हैं! 

1.सबसे पहले बात करते हैं समर्पण की -  रामायण में राम समर्पण की एक प्रतिमूर्ति थे उनका अपने गुरु के प्रति समर्पण हो ,अपने पिता के प्रति समर्पण हो, अपनी माता के प्रति समर्पण हो, अपनी पत्नी के प्रति समर्पण हो या अपने राज्य और अपने साथियों के प्रति समर्पण! 
यदि हम गौर से देखें तो आज हमें भी अपने जीवन में इस तरह के समर्पण की आवश्यकता है अपने हर रिश्ते में , और शायद हमारा यही समर्पण भाव हमारी इस दुनिया को स्वर्ग बना सकता है इस करोना काल में भी समर्पण का गुण बहुत आवश्यक है समर्पण देश और समाज के प्रति, ईमानदारी से लॉक डाउन के नियमों का पालन कर के हम अपने समाज को इसी समर्पण भाव की वजह से करोना युद्ध में विजय दिला सकते हैं! 

2. धैर्य -  राम हर परिस्थिति में धैर्य का एक अनुपम उदाहरण है चाहे एक रात पहले राजा बनने की स्थिति हो और अगले दिन वनवास जाने की, जंगल में पत्नी का अपहरण हो या पूर्ण समर्पित भाई का मृत्यु शैया पर लेटा हुआ होना हो , हर परिस्थिति में राम ने धैर्य धारण करके स्वयं को और स्वयं के सारे लोगों को उन परिस्थितियों से बाहर निकाला , राम के पूरे चरित्र में कुछ जो सबसे मजबूत रहा है तो वह धैर्य ही रहा है! आज समाज में , हमारे जीवन में धैर्य की सख्त आवश्यकता है हम छोटी-छोटी परिस्थितियों में, छोटे-छोटे व्यापारिक ऊंच-नीच में ,छोटे-छोटे पैसों की लेन-देन में अपना धैर्य खो देते हैं और बड़ी-बड़ी गलतियां करके अपने जीवन को नर्क बना लेते हैं शायद यदि हम धैर्य धारण करना सीख जाएं तो हम अपने जीवन की बहुत सारी परेशानियों और तकलीफों से अपने आप को बचाने में सफल हो जाएंगे इसी तरह करोना काल में भी धैर्य की बहुत आवश्यकता है हम घर पर बैठे हैं ,हमारा काम बंद है ,हमारे व्यापार बंद है हमारा वित्तीय नुकसान है और भी बहुत सारी  चीजें हैं जो कहीं ना कहीं हमें अधीर करती है और घर से बाहर निकलने के लिए दबाव बनाती है पर शायद यही समय है जब हमें धैर्य धारण करना है और पूरी इमानदारी से घर में रहकर लॉक डाउन के सारे नियमों का पालन करना है! 

3.विनम्रता - बहुत बार हमारी सफलता या हमारा व्यवहार हमें विनम्रता की परिधि से बाहर ले जाता है और यही शायद हमारे पतन का कारण भी बनता है इसलिए हर हाल में हर परिस्थिति में स्वयं पर आत्म नियंत्रण रखें और विनम्रता का दामन कभी नहीं छोड़े ! इस करोना काल में विनम्रता और सम्मान उन लोगों के प्रति जो इस करोना युद्ध में प्रथम पंक्ति में युद्ध कर रहे हैं जैसे सफाई कर्मी ,चिकित्सा कर्मी ,प्रशासन, पुलिस इनके प्रति हमारी विनम्रता हमारा सम्मान ही इनके द्वारा किए गए कार्यों का सही विश्लेषण  होगा,

 राम को इसी विनम्रता ने भारत का सबसे मान्य और सम्मानित चरित्र बना दिया है! 

4.सकारात्मकता - सकारात्मकता शब्द अपने आप में स्वपरिभाषित शब्द है  , नौकरी ,व्यापार, व्यवसाय, लाभ, हानि ,यश, अपयश इन सारी परिस्थितियों से बाहर आने का इन सारे विचारों से स्वयं को बाहर निकालने का एकमात्र रास्ता और तरीका सकारात्मकता ही है ! राम ने किसी भी परिस्थिति में सकारात्मकता का दामन कभी नहीं छोड़ा जब भरत और तीनों माताएं राम को जंगल से वापस लेने गई तो राम ने उनसे कहा कि नहीं मां मेरे साथ किसी तरह का कोई अन्याय नहीं हुआ है भरत को पिता श्री ने नगर का शासन दिया है और मुझे जंगल का राजा बनाया है और आने वाले दिनों में मुझे अपने सारे बड़े कामों का अंजाम इसी राज्य से देना है, एक दूसरा छोटा सा उदाहरण है युद्ध के पूर्व विभीषण ने राम से कहा कि हम युद्ध के लिए तैयारी शुरू करते हैं राम ने कहा - नहीं अभी अंगद दूत के तौर पर  गए हुए हैं उनके आने से पहले युद्ध की तैयारी शुरू करना मतलब अंगद को प्रयास के पूर्व असफल मान लेना होगा , पहले प्रतीक्षा कीजिए अंगद के प्रयासों पर विश्वास किजिए , अंगद अपने प्रयासों में सफल होंगे, शायद इस तरह की सकारात्मकता का उदाहरण जीवन में कम देखने को मिलता है , आज करोना काल में भी हमें सकारात्मक होना और रहना है  इस पूरे मजबूत विश्वास के साथ की करोना से युद्ध हम जीतेंगे ही! 

5. वीरता -  जब सारे रास्ते समाप्त हो जाए और संधि का या सामंजस्य का कोई विकल्प नहीं बचे तो फिर युद्ध और उस युद्ध को जीतने के लिए आपके अपने अंदर की वीरता ही एकमात्र विकल्प रह जाती है , राम ने अपने हर युद्ध के पूर्व विनम्रता और धैर्य के साथ उस युद्ध को रोकने और टालने का यथासंभव प्रयास किया परंतु जब युद्ध टल नहीं सके तो फिर राम ने पूरे समर्पण भाव से, पूरी शक्ति से, पूरी वीरता से युद्ध को लड़ा भी! आज हमारे लिए भी शायद यही आवश्यक है यथासंभव हम समाज में, मित्रता में ,आपस में टकराव को टालने का पूरा प्रयास करें और हाँ ये प्रयास सचमुच पूरी ईमानदारी से हो!  परंतु एक जगह कहीं आने के बाद हमें यह लगे कि युद्ध टाला नहीं जा सकता है , उस लड़ाई को उतनी ही वीरता से लडें जैसा कि आज हम करोना काल में करोना के विरुद्ध युद्ध लड रहें हैं! जिस तरह से अपने आपको अपनी ही देहरी के अंदर समेट कर लॉक डाउन और करोना के विरुद्ध युद्ध के नियमों का पूरी वीरता और समर्पण भाव से पालन करके इस युद्ध में अपनी विजय सुनिश्चित कर रहे हैं !

ऐसा मेरा मानना है कि राम आदि काल से लेकर आज तक हर एक व्यक्ति के जीवन में चाहे वो छोटा हो ,बढ़ा हो, अमीर हो ,गरीब हो, सफल हो असफल हो  प्रासंगिक है और जब तक मानव जीवन है मानव जीवन की जीवन शैली में राम है क्योंकि राम एक चरित्र मात्र नहीं है ये एक जीवनशैली हैं यह जीवन शैली किसी जाति या मात्र हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है यह तो धरती के प्रत्येक मनुष्य के लिए प्रासंगिक है!

" अपने अपने राम को अपने अपने अंदर ही धारण करके अपने अपने अंदर ही देखने और समझने का प्रयत्न करें " ! 

आज हमने राम के व्यक्तिगत गुणों पर बात की लॉक डाउन के अगले भाग में हम राम के व्यवसायिक गुण धर्मो पर बात करेंगे । 
 जय श्री राम


7.4.20

लॉक डाउन By Nilesh Rawal


लाॅक डाउन के इस दौर में हमारे देश का एक बड़ा पर्व आया है -  "महावीर जयंती" 
विशेष तौर पर जैन समाज का यह साल का सबसे बड़ा पर्व होता है! 

पूरे शहर में बड़ी धूम रहती है और बहुत से आयोजन होते हैं , बहुत से कार्यक्रम होते हैं और पूरा शहर नेताओं द्वारा जैन समाज को बधाई के बैनर पोस्टरों से पट जाता है! 
परंतु इस बार कुछ अलग हालात हैं , कुछ अलग सी शांति है ना कोई कार्यक्रम, ना कोई बधाई ना कोई बैनर ना कोई पोस्टर! 

लेकिन त्यौहार तो है और इस बार यह  यह त्यौहार कैसे मनाया जाए? 

मौका है मनन का, चिंतन का, महावीर को एक बार फिर एक नए सिरे से जानने का, समझने का , आत्मसात करने का, उनके द्वारा बताए हुए सिद्धांतों को, नीति को ,नियमों को नए सिरे से परिभाषित कर उनके अर्थों को ठीक तरह से समझने का !

मैं महावीर स्वामी के विषय में यह लिखने का प्रयास कर रहा हूं लेकिन मैं जैन नहीं हूं लेकिन मेरा यह मानना है कि महावीर स्वामी जैसा विशाल और विराट व्यक्तित्व किसी संप्रदाय तक सीमित नहीं हो सकता है और उसके सिद्धांत समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए है!

एक बात कहना चाहता हूं  मेरे बचपन से बहुत सारे जैन मित्र रहे हैं बहुत सारे जैन मित्रों के घर में आना जान रहा है ,बड़ी निकटता रही है! लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मैंने महसूस किया है हालांकि यह बात सुनने में कड़वी लग सकती है लेकिन हिंदू और जैनों के बीच में एक दूरी से बनती जा रही है या यूं कहें कि जैन समाज एवं अन्य समाजों के बीच में एक दूरी सी बनती चली जा रही है! 

मित्रों महावीर स्वामी ने जो दया, करुणा, अहिंसा के पंचशील सिद्धांत  दिए हैं किसी संप्रदाय विशेष के लिए नहीं है यहां तक कि वह तो मानव जाति तक भी सीमित नहीं है वह तो इस संसार के प्रत्येक प्राणी ,यहां तक कि पेड़, पौधे, वृक्ष इनके लिए भी प्रतिपादित है !
आज महावीर जयंती के उपलक्ष में चाहे वह जैन समाज के लोग हो या अन्य समाज के लोग महावीर स्वामी के प्रति सही आदरांजली या भावांजलि यही हो सकती है  हमारी तरफ से कि हम इन दूरियों को कम करें और जिस तरह दूध के अंदर मख्खन का अस्तित्व होता है वैसा ही अस्तित्व हमारा इस राष्ट्र के अंदर हो, हमारा आपस में किसी भी तरह का विभाजन कभी भी इस राष्ट्र के हित में नहीं हो सकता है! 

बहुत समय पहले मैंने ओशो की एक किताब पढ़ी थी उसकी कुछ बातें आपसे साझा करता हूं -

ओशो ने महावीर स्वामी के एक सिद्धांत -
 " मूर्खों के संसर्ग से बचें "
 को विस्तार से परिभाषित करने का प्रयास किया था ! 
उन्होंने कहा था कि मूर्ख वह नहीं है जिसे  कुछ पता नहीं है वे तो अज्ञानी है ,
मूर्ख तो वह है जिसे बिना कुछ जाने सब पता है ! 

उन्होंने एक उदाहरण दिया एक धर्म गुरु उनके पास आए उन्होंने कहा कि ईश्वर को परिभाषित नहीं किया जा सकता है ईश्वर की थाह नहीं ली जा सकती है ! 
 
ओशो ने उनसे कहा कि यह बात आप दो ही परिस्थितियों में कह सकते हो या तो आपने थाह 
ले ली है और यदि आपने थाह ले ली है तो आपकी बात सत्य नहीं है और यदि आपने थाह नहीं ली है तो आपको यह कहने का अधिकार नहीं है! 
अभी हमारे इर्द-गिर्द ऐसे लोगों की भरमार है हमारी सोशल मीडिया पर ,फेसबुक पर ,व्हाट्सएप पर इस तरह के संदेशों की भरमार है जो हिंदू धर्म को नहीं जानता वह हिंदू धर्म को परिभाषित कर रहा है , जो जैन धर्म के विषय में कुछ भी नहीं जानता वह जैन धर्म को परिभाषित करने का प्रयास कर रहा है और यही शायद हमारे बीच विरोधाभास और विसंगतियों का कारण भी है या शायद हम सब की आपसी दूरियों का कारण भी है!

और यह ना हिंदू धर्म के लिए अच्छा है ना जैन धर्म के लिए अच्छा है और ना ही राष्ट्र के लिए अच्छा है! 

ऐसे लोगों से बचें ऐसे लोगों से सावधान रहें , स्वयं मनन, चिंतन करें, सत्य को समझने का प्रयास करें और हम एक दूसरे के विचारों का ,एक दूसरे की धार्मिक आस्थाओं का ,एक दूसरे के धर्मों का सच्चे अर्थों में सम्मान करें और उन्हें स्वीकार करें!
 
यही इस राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए आवश्यक भी है !

और यकीन मानिए हमारे सारे धर्म हमारे सारे सिद्धांत हमें सिर्फ और सिर्फ उस परमपिता परमेश्वर की तरफ ही लेकर जाते हैं! 

हरिवंश राय बच्चन की छायावादी युग की एक बहुत खूबसूरत रचना है  -
 " मधुशाला" 

 जिसकी कुछ लाइने आपसे साझा करता हूं! 

घर से चलता है जब पीने वाला, 
घर से चलता है जब पीने वाला,
असमंजस में है वह भोला भाला, 
अलग-अलग पथ बतलाते सब , 
पर मैं यह बतलाता हूं, 
राह पकड़ तू एक चला चल ,
पा जाएगा मधुशाला !

 
हम सब अपनी अपनी पृष्ठभूमि , अपनी अपनी पसंद के अनुसार अपने-अपने धर्म अपने अपने सिद्धांतों का चयन कर सकते हैं, लेकिन आप यकीन मानिए अंततः हम सब उस परमपिता परमेश्वर के दरवाजे पर ही पहुंचेंगे चाहे हम रास्ता कोई भी अपना लें!

 इसलिए आइए महावीर जयंती के उपलक्ष पर हम आप सब मिलकर दृढ़ संकल्पित हो और मानव से मानव के बीच की इस दूरी को कम करके अनेकता में एकता की इस राष्ट्र की संकल्पना को साकार रूप प्रदान करें

निलेश रावल

6.4.20

लाॅक डाउन - By Nilesh Rawal

 
Jabalpur Dated 5th Apr 2020, at Between 09:00 to 09:09 Photo By Ashish Vishvakarma 
    
Writer : Mr. Nilesh Rawal

लाॅक डाउन - भाग एक से तीन
नीलेश रावल
लाॅक डाउन - भाग - १

लॉक डाउन चल रहा है हम सब अपने अपने घरों में ठहर गए हैं!
बहुत दिनों से व्हाट्सएप में , फेसबुक पर बहुत सारी जगह पर मैं पोस्ट देख रहा था यदि हम बाहर नहीं जा सकते तो अपने भीतर जाने की कोशिश करें मैं सोच रहा था कि भीतर कैसे जाऊं बहुत कोशिश की पर भीतर जाने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था हमने अपने भीतर जाने के सारे दरवाजों पर नाराजगी के, गुस्से के ,नफरत के बडे बड़े ताले जड़ रखे हैं , अपने भीतर प्रवेश करना भी अब शायद हमारे लिए बहुत आसान नहीं रह गया हैं !
अचानक बैठे-बैठे मेरे मन में ख्याल आया कि एक काम करते हैं आराम से शांत मन से बैठते हैं और अपने स्मृति पटल पर जहां तक की स्मृतियां शेष है अपने जीवन में वापस पीछे जाते हैं और फिर वहां से शुरू करते हैं अपनी एक एक गलती , एक एक भूल, एक एक अपराध के लिए स्वयं से , स्वयं की आत्मा से , परम पिता परमेश्वर से क्षमा मांगते हैं !
इस तरह से उस अंतिम छोर से आज तक के सफर पर चलते हैं !
अपने हर छोटे बड़े अपराध के लिए माफी मांगने का प्रयास करते हैं!
फिर एक बार हम शांत मन से सोचते हैं हमें किन से प्रेम है किन से नफरत है किन के प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है हमारे मन में नाराजगी है एक-एक करके जिनसे हम नाराज हैं जिनके प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है उन सबको एक-एक करके माफ करने की कोशिश करते है!
यकीन मानिए यदि हम सच्चे मन से एक-एक व्यक्ति को माफ करते चले जाएंगे तो हमें हमारे भीतर प्रवेश के द्वार पर लगे सारे ताले टूटते हुए नजर आएंगे !
और हाँ जब हम अपने भीतर प्रवेश कर जाए तो मन के सारे द्वार, सारी खिड़कियां और विशेष तौर पर मन का वह झरोखा जरूर खोल दीजिए जिससे मन के अंदर नाराजगी ,गुस्से और नफरत की जितनी भी गर्म हवाएं है उससे बाहर निकल सके!
यकीन मानिए उस खुले झरोखे से मन की सारी गर्म हवाएं एक बार बाहर निकल जाएंगी तो बाहर से आती हुई शीतल हवाएं जब हमें स्पर्श करेंगी तो वे हमें अलौकिक आनंद से भरकर आल्हादित कर देगीं !
अब आपके पास लेने और देने के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम बचेगा और हां लेकिन इतना जरूर याद रखियेगा की देने के लिए प्रेम है लेकिन लेने के लिए प्रेम की अपेक्षा मत कीजिए यदि मिल जाएगा तो आप सौभाग्यशाली हैं और नहीं मिला तो आपके पास देने को बहुत सारा प्रेम होगा यह आपका सौभाग्य है!
एक नए संसार का सृजन करिये जो प्रेम के द्वारा हो, प्रेम के लिए हो और प्रेम से हो!
भाग दो
लॉक डाउन चल रहा है हम सब अपने अपने घरों में ठहर गए हैं!
बहुत दिनों से व्हाट्सएप में , फेसबुक पर बहुत सारी जगह पर मैं पोस्ट देख रहा था यदि हम बाहर नहीं जा सकते तो अपने भीतर जाने की कोशिश करें मैं सोच रहा था कि भीतर कैसे जाऊं बहुत कोशिश की पर भीतर जाने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था हमने अपने भीतर जाने के सारे दरवाजों पर नाराजगी के, गुस्से के ,नफरत के बडे बड़े ताले जड़ रखे हैं , अपने भीतर प्रवेश करना भी अब शायद हमारे लिए बहुत आसान नहीं रह गया हैं !
अचानक बैठे-बैठे मेरे मन में ख्याल आया कि एक काम करते हैं आराम से शांत मन से बैठते हैं और अपने स्मृति पटल पर जहां तक की स्मृतियां शेष है अपने जीवन में वापस पीछे जाते हैं और फिर वहां से शुरू करते हैं अपनी एक एक गलती , एक एक भूल, एक एक अपराध के लिए स्वयं से , स्वयं की आत्मा से , परम पिता परमेश्वर से क्षमा मांगते हैं !
इस तरह से उस अंतिम छोर से आज तक के सफर पर चलते हैं !
अपने हर छोटे बड़े अपराध के लिए माफी मांगने का प्रयास करते हैं!
फिर एक बार हम शांत मन से सोचते हैं हमें किन से प्रेम है किन से नफरत है किन के प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है हमारे मन में नाराजगी है एक-एक करके जिनसे हम नाराज हैं जिनके प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है उन सबको एक-एक करके माफ करने की कोशिश करते है!
यकीन मानिए यदि हम सच्चे मन से एक-एक व्यक्ति को माफ करते चले जाएंगे तो हमें हमारे भीतर प्रवेश के द्वार पर लगे सारे ताले टूटते हुए नजर आएंगे !
और हाँ जब हम अपने भीतर प्रवेश कर जाए तो मन के सारे द्वार, सारी खिड़कियां और विशेष तौर पर मन का वह झरोखा जरूर खोल दीजिए जिससे मन के अंदर नाराजगी ,गुस्से और नफरत की जितनी भी गर्म हवाएं है उससे बाहर निकल सके!
यकीन मानिए उस खुले झरोखे से मन की सारी गर्म हवाएं एक बार बाहर निकल जाएंगी तो बाहर से आती हुई शीतल हवाएं जब हमें स्पर्श करेंगी तो वे हमें अलौकिक आनंद से भरकर आल्हादित कर देगीं !
अब आपके पास लेने और देने के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम बचेगा और हां लेकिन इतना जरूर याद रखियेगा की देने के लिए प्रेम है लेकिन लेने के लिए प्रेम की अपेक्षा मत कीजिए यदि मिल जाएगा तो आप सौभाग्यशाली हैं और नहीं मिला तो आपके पास देने को बहुत सारा प्रेम होगा यह आपका सौभाग्य है!
एक नए संसार का सृजन करिये जो प्रेम के द्वारा हो, प्रेम के लिए हो और प्रेम से हो!
भाग तीन
लाॅक डाउन

आज 5 अप्रैल है और आज के दिन हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने आह्वान किया था कि रात 9:00 बजे देश का प्रत्येक नागरिक अपने घर की छत पर 9 मिनट के लिए 9 दीपक जलाएं!
सोशल मीडिया पर इसके समर्थन और विरोध में बहुत सारी क्रियाएं और प्रतिक्रियाएं देख रहा हूं!
मेरे एक मित्र ने मुझे एक व्हाट्सएप पर संदेश भेजा था जिसमें एक कहानी थी जो आप सभी लोगों से साझा करना चाहता हूं !
एक छोटे से राज्य पर एक बड़े राज्य ने आक्रमण कर दिया।
उस राज्य के सेनापति ने राजा से कहा कि आक्रमणकारी सेना के पास बहुत संसाधन है हमारे पास सेनाएं कम है संसाधन कम है हम जल्दी ही हार जायेंगे बेकार में अपने सैनिक मरवाने का कोई मतलब नहीं। इस युद्ध में हम निश्चित हार जायेंगे और इतना कहकर सेनापति ने अपनी तलवार को नीचे रख दिया।
अब राजा बहुत घबरा गया अब क्या किया जाए, फिर वह अपने गुरु के पास गया और सारी बातें बताई।
गुरु ने कहा उस सेनापति को फौरन हिरासत में ले लो उसे जेल भेज दो। नहीं तो हार निश्चित है।
यदि सेनापति ऐसा सोचेगा तो सेना क्या करेंगी।
आदमी जैसा सोचता है वैसा हो जाता है।
फिर राजा ने कहा कि युद्ध कौन करेगा।
गुरु ने कहा मैं,
वह गुरु बूढ़ा था, उसने कभी कोई युद्ध नहीं लड़ा था और तो और वह घोड़े पर भी कभी नहीं चढ़ा था। उसके हाथ में सेना की बागडोर कैसे दे दे।
लेकिन कोई दूसरा चारा न था।
वह बूढ़ा गुरु घोड़े पर सवार होकर सेना के आगे आगे चला।
रास्ते में एक पहाड़ी पर एक मंदिर था। गुरु सेनापति वहां रुका और सेना से कहा कि पहले मंदिर के देवता से पूछ लेते हैं कि हम युद्ध में जीतेंगे कि हारेंगे।
सेना हैरान होकर पूछने लगी कि देवता कैसे बतायेंगे और बतायेंगे भी तो हम उनकी भाषा कैसे समझेंगे।
गुरु बोला ठहरो मैंने आजीवन देवताओं से संवाद किया है मैं कोई न कोई हल निकाल लूंगा।
फिर गुरु अकेले ही पहाड़ी पर चढा और कुछ देर बाद वापस लौट आया।
गुरु ने सेना को संबोधित करते हुए कहा कि मंदिर के देवता ने मुझसे कहा है कि यदि रात में मंदिर से रौशनी निकलेगी तो समझ लेना कि दैविय शक्ति तुम्हारे साथ है और युद्ध में अवश्य तुम्हारी जीत हासिल होगी।

सभी सैनिक साँस रोके रात होने की प्रतीक्षा करने लगे। रात हुई और उस अंधेरी रात में मंदिर से प्रकाश छन छन कर आने लगा ।
सभी सैनिक जयघोष करने लगे और वे युद्ध स्थल की ओर कूच कर गए ।
21 दिन तक घनघोर युद्ध हुआ फिर सेना विजयी होकर लौटीं।

रास्ते में वह मंदिर पड़ता था।
जब मंदिर पास आया तो सेनाएं उस गुरु से बोली कि चलकर उस देवता को धन्यवाद दिया जाए जिनके आशीर्वाद से यह असम्भव सा युद्ध हमने जीता है।
सेनापति बोला कोई जरूरत नहीं ।।
सेना बोली बड़े कृतघ्न मालूम पड़ते हैं आप जिनके प्रताप से आशीर्वाद से हमने इस भयंकर युद्ध को जीता उस देवता को धन्यवाद भी देना आपको मुनासिब नही लगता।
तब उस बूढ़े गुरु ने कहा , वो दीपक मैंने ही जलाया था जिसकी रौशनी दिन के उजाले में तो तुम्हें नहीं दिखाई दि थी, पर रात्रि के घने अंधेरे में तुम्हे दिखाई देने लगी ।
तुम जीते क्योंकि तुम्हे जीत का ख्याल निश्चित हो गया।

आज चाहे ताली बजाना हो या दीपक जलाना यह सब मानव मन और मस्तिष्क को निराशा से बाहर निकालकर आशावादी बनाने का एक उपक्रम मात्र है!
और इस तरह के उपक्रम अपनी जनता और अपनी सेना का मनोबल ऊंचा करने और किसी भी युद्ध को पूरी मजबूती और शक्ति से लड़ने के लिए उन्हें तैयार करने के लिए आवश्यक भी है !

हम जैसे बहुत सारे लोग जो अपने व्यवसाय में अपने कामों में अत्यधिक व्यस्त रहने के आदी हो चुके थे और जो एक लंबे समय से अपने घरों में बंद है यह उन सबके लिए बहुत ही ज्यादा अवसाद में जाने और निराशा में जाने का समय था उन्हें इस अवसाद और निराशा से निकालने के लिए भी ये उपक्रम आवश्यक है!

कोई समर्थक हो या विरोधी लेकिन सारे ही लोग यह जरूर मानेगे कि चाहे ताली बजाने की क्रिया हो या आज दीपक जलाने की क्रिया इन दोनों ने ही एक असीम ऊर्जा का संचार पूरे देश में किया है जो अद्भुत और विलक्षण हैं और ये पल शायद हम में से किसी ने भी पहले अपने जीवन में कभी नहीं देखे!

मैं जानता हूं कि केवल ताली बजाने से या दीपक जलाने से करोना नहीं मर सकता है लेकिन आप सब भी यह मानेंगे इन क्रियाओं से हमारे अंदर , हमारे समाज में, हमारे देश में असीम उर्जा और जोश का जो संचार हुआ है वह हमें किसी भी करोना पर विजय दिला सकता है और हमारी जीत सुनिश्चित कर सकता है!

और यूं भी जिस तरह से लोगों ने एकजुट होकर दलों से, विचारधाराओं से बाहर निकलकर ताली बजाई या दीपक जलाए उसने इससे राष्ट्र की जीवंतता का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किया है!

इस राष्ट्र के अंदर हर परिस्थिति से लड़ने की , उससे जीत हासिल करने की अदम्य शक्ति और जिजीविषा है!

अटल बिहारी वाजपेई जी की कुछ पंक्तियां याद आई -:
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है,
कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं,
सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है,
अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है,
यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।

और हम ही जितेंगे!
हमारी जीत सुनिश्चित है, मैने उस मंदिर से दिपक के प्रकाश को बाहर निकलते देखा है! 

3.4.20

खुला ख़त राहत इंदौरी के नाम कॉपी टू मुन्नवर राणा, जावेद अख्तर

 
 
ज़नाब राहत इंदौरी साहेब
नर्मदे हर
इसकी जिम्मेदारी हम लिटरेचर के लोगों की भी होती है। आपकी बहुत सारी बातें जो रोंगटे खड़े कर देने वाली होती है हमने सुनी है-
*लगेगी आग जग में आएंगे...*
हमने एनवायरमेंट क्रिएट किया है ,
हम कितने दुखी हैं इंदौर की इस घटना से जिसका आईकॉन राहत इंदौरी हो वहां इस तरह के लोग मौजूद हैं। आप नहीं जानते शहर जबलपुर में बहुत पुराने हादसे के बाद आज तक ऐसा कोई मंज़र शहर ने पेश नहीं किया जैसा कि इंदौर ने किया है। आप जानते हैं कि हम मौलाना मुफ्ती साहब के इंतकाल के बाद कितना दुखी है हम जो हिंदू हैं वह जो क्रिश्चियन है वह जो मुस्लिम है सब को एक सूत्र में पिरो देते थे मौलाना साहब। गोया कि आप आपके शहर में पढ़े लिखे समझदार अथॉरिटी को भी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। आपने अपनी शायरी में बहुत कुछ अच्छा लिखा है हम सभी देर रात तक खुले आकाश के नीचे मुशायरा में जाया करते थे और आपने तब शायरी शुरू ही की थी मंच से सुनते थे आपको और जो अपनापन आपकी कलम में उस दौर में देखा गया अब नजर नहीं आता। हम लिटरेचर के लोग आज भी ह्यूमैनिटी और भाईचारे पर यकीन करते हैं और करेंगे किसी की मजाल है कि कौमी बवाल खड़ा कर पाए परंतु कुछ दिनों से देख रहा हूं कि आप और कुछ नामचीन शायर कुछ कवि अमन पर बुरादा डालने वाली शायरी और कविताएं पेश करते हैं। थिएटर भी कुछ इस तरह से कोशिशें करता है। खासतौर पर बाएँ जमात वाले । एक शायर कवि लेखक होने के नाते ऐसी कोशिशों की मज़्ज़मत करता हूं ।
आपको या किसी कवि को किसी खास इंसान से असहमति हो सकती है परंतु आवाम के हक में बात करने के अपने फर्ज को भूल कर आप लोग आप कमिटेड हो गए हो। साहित्य क्या है आप जानते थे मुगल काल में जब बहुत मुश्किल का दौर था जजिये लगाए जाते थे तब तुलसी ने कभी भी आग नहीं लगाई की बस्तियां झुलस जाए बल्कि नीति प्रेम और अनुशासन का कथानक रामचरितमानस की शक्ल में जनता के सामने पेश किया था। उसी समय भक्त कवियों ने अपना अपना फर्ज निभाया। सूफी आए और तमाम लोगों के बीच मोहब्बत का पैगाम दिया। लेकिन ऐसा क्या हो गया है कि अब आप जैसे लोग भी कमिटेड हो गए हैं। आपकी एक ग़ज़ल का जवाब हमारे पास तैयार है हमने भेजा भी था मिल भी गया होगा मौका बिल्कुल सही है सोचता हूं शेयर कर दूं
*जो खिलाफ हैं वो समझदार इंसान थोड़ी हैं*
जो वतन के साथ हैं वो बेईमान थोड़ी है ।।
लगेगी आग तो बुझाएंगे हम सब मिलकर
बस्ती हमारी है वफादार हैं बेईमान थोड़ी हैं ।।
मैं जानता कि हूँ वो दुश्मन नहीं था कभी मेरा उकसाने वालों का सा मेरा खानदान थोड़ी है ।।
मेरे मुंह से जो भी निकले वही सचाई है
मेरे मुंह में विदेशी ज़ुबान थोड़ी है ।।
वो साहिबे मसनद है कल रहे न रहे -
वो भी मालिक है ये किराए की दूकान थोड़ी है
अब तो हर खून को बेशक परखना होगा
वतन सबके बाप का है, हर्फ़ों की दुकान थोड़ी है ।।
जनाब राहत इंदौरी साहब हम भवानी प्रसाद मिश्र के शहर के लोग हैं हम जानते हैं सिय विजनवास को वे खुद उतनी बेहतर ढंग से पेश ना कर पाते जितना की चाचा लुकमान ने पेश किया। लुकमान रुला देते थे उनकी अभिव्यक्ति गोया कविता पर भारी पड़ जाया करती थी। मेरे कहने का मतलब समझ रहे हैं सही गंगा जमुना की धारा नर्मदा के किनारे वाले इस पत्थरों के शहर में नजर आ जाती है एक आपका शहर है जहां ना तो आपकी चलती है नाही नई नस्लें आपको समझ पाती हैं। बड़े बोल नहीं बोल रहा हूं पर शहर जबलपुर तुम्हारे शहर से न केवल खूबसूरत हो गया है अमन पसंद भी हो गया है। जबलपुर वह शहर है हां जिसे अमन का शहर कह सकते हैं। जिसके पत्थरों की कीमत जौहरी ही जानते है। हम सभी जानते हैं हमारा शहर पत्थरों का जरूर है लेकिन संगमरमर के पत्थर नरम ही होते हैं ना ।
बाहरी ताकतें हिंदुस्तान को कितना भी हिलाने की कोशिश करें जनाब सबसे पहले शायरों की जिम्मेदारी होती है फन कारों की जिम्मेदारी होती है कि वह अपना पाया मजबूत करें और हमारी कोशिश है देख कर हमारे फॉलोअर्स भी वैसा करेंगे।
कैसे सो लेते होंगे आप लोग मुझे तो नींद नहीं आ रही है 7 दिन हो गए किस्तों में सो रहा हूं जगता हूं तो आओ देख लो तड़पता हूं और रो रहा हूं मतलब समझ रहे हैं मेरी इस बात का
एलाने अमन करना सीखो
इस वाह-वाह में क्या रखा
यह बात बारास्ता और उन तमाम कवियों शायरों के लिए लिखी जा रही है जो कमिटेड है किसी विचारधारा के लिए। तरक्की पसंद लोग भी अब आग लगाने में माहिर हो गए हैं जनाब, समझ लीजिए अभी नहीं सुधरे तो तुम्हारी हमारी शायरी कविताएं नाटक कहानियां सब फिजूल की बातें मानी जाएंगी। आग की तरह जलते वीडियो देखकर आइंदा नस्लें ना तुम्हें माफ करेगी ना मुझसे राहत साहब यह अलग बात है कि इंदौर मुंबई के पास है मुंबई में बहुतेरे लोग खाल ओढ़कर अपनी नौकरी टाइप की साहित्य सेवा कर रहे हैं। जनाब यूं तो जावेद अख्तर साहब से भी नाराज हूं पर ठीक है आपको भेज रहे खत से उनको कुछ समझ आए

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