9.4.20

लॉक डाउन By Nilesh Rawal


लाॅक डाउन - भाग - ५

 लॉक डाउन है, सुनसान सडकें हैं ,खाली बाजार  हैं और हर व्यक्ति अपनी देहरी के अंदर सिमटा हुआ है ! 
 कुछ दिनों पहले रामनवमी गई और कल हनुमान जयंती है ,
दूरदर्शन पर रामायण का पुनः प्रसारण हो रहा है एक टीआरपी रिपोर्ट के अनुसार लगभग 15 करोड लोग इसे देख रहे और वैसे भी राम भारतीय सनातनी परंपरा का सबसे सम्मानीय, मान्य और पूजनीय चरित्र है और रामायण सबसे सम्माननीय और पूजनीय चरित्र चित्रण रहा है! 

परंतु क्या रामायण इस काल में भी और विशेष तौर पर करोना काल से जुझती हुई दुनिया के लिए प्रासंगिक है! 

चलिए एक बार मिलकर समझने का प्रयास करते हैं !

रामायण में राम को हर किसी ने अपने-अपने राम की तरह देखा है! 

मैंने अपने जिस राम को देखा है उस पर मैं जो सोचता हूं आपसे साझा कर रहा हूं! 

मै राम के निम्नलिखित गुणों से अभिभूत और प्रभावित रहा हूँ!

1.समर्पण 2.धैर्य 3.विनम्रता 4.सकारात्मकता 5  वीरता 

अब चलिए समझने का प्रयास करते हैं क्या राम की ये गुण इस काल में और विशेष तौर पर करोना  काल में भी प्रासंगिक हैं! 

1.सबसे पहले बात करते हैं समर्पण की -  रामायण में राम समर्पण की एक प्रतिमूर्ति थे उनका अपने गुरु के प्रति समर्पण हो ,अपने पिता के प्रति समर्पण हो, अपनी माता के प्रति समर्पण हो, अपनी पत्नी के प्रति समर्पण हो या अपने राज्य और अपने साथियों के प्रति समर्पण! 
यदि हम गौर से देखें तो आज हमें भी अपने जीवन में इस तरह के समर्पण की आवश्यकता है अपने हर रिश्ते में , और शायद हमारा यही समर्पण भाव हमारी इस दुनिया को स्वर्ग बना सकता है इस करोना काल में भी समर्पण का गुण बहुत आवश्यक है समर्पण देश और समाज के प्रति, ईमानदारी से लॉक डाउन के नियमों का पालन कर के हम अपने समाज को इसी समर्पण भाव की वजह से करोना युद्ध में विजय दिला सकते हैं! 

2. धैर्य -  राम हर परिस्थिति में धैर्य का एक अनुपम उदाहरण है चाहे एक रात पहले राजा बनने की स्थिति हो और अगले दिन वनवास जाने की, जंगल में पत्नी का अपहरण हो या पूर्ण समर्पित भाई का मृत्यु शैया पर लेटा हुआ होना हो , हर परिस्थिति में राम ने धैर्य धारण करके स्वयं को और स्वयं के सारे लोगों को उन परिस्थितियों से बाहर निकाला , राम के पूरे चरित्र में कुछ जो सबसे मजबूत रहा है तो वह धैर्य ही रहा है! आज समाज में , हमारे जीवन में धैर्य की सख्त आवश्यकता है हम छोटी-छोटी परिस्थितियों में, छोटे-छोटे व्यापारिक ऊंच-नीच में ,छोटे-छोटे पैसों की लेन-देन में अपना धैर्य खो देते हैं और बड़ी-बड़ी गलतियां करके अपने जीवन को नर्क बना लेते हैं शायद यदि हम धैर्य धारण करना सीख जाएं तो हम अपने जीवन की बहुत सारी परेशानियों और तकलीफों से अपने आप को बचाने में सफल हो जाएंगे इसी तरह करोना काल में भी धैर्य की बहुत आवश्यकता है हम घर पर बैठे हैं ,हमारा काम बंद है ,हमारे व्यापार बंद है हमारा वित्तीय नुकसान है और भी बहुत सारी  चीजें हैं जो कहीं ना कहीं हमें अधीर करती है और घर से बाहर निकलने के लिए दबाव बनाती है पर शायद यही समय है जब हमें धैर्य धारण करना है और पूरी इमानदारी से घर में रहकर लॉक डाउन के सारे नियमों का पालन करना है! 

3.विनम्रता - बहुत बार हमारी सफलता या हमारा व्यवहार हमें विनम्रता की परिधि से बाहर ले जाता है और यही शायद हमारे पतन का कारण भी बनता है इसलिए हर हाल में हर परिस्थिति में स्वयं पर आत्म नियंत्रण रखें और विनम्रता का दामन कभी नहीं छोड़े ! इस करोना काल में विनम्रता और सम्मान उन लोगों के प्रति जो इस करोना युद्ध में प्रथम पंक्ति में युद्ध कर रहे हैं जैसे सफाई कर्मी ,चिकित्सा कर्मी ,प्रशासन, पुलिस इनके प्रति हमारी विनम्रता हमारा सम्मान ही इनके द्वारा किए गए कार्यों का सही विश्लेषण  होगा,

 राम को इसी विनम्रता ने भारत का सबसे मान्य और सम्मानित चरित्र बना दिया है! 

4.सकारात्मकता - सकारात्मकता शब्द अपने आप में स्वपरिभाषित शब्द है  , नौकरी ,व्यापार, व्यवसाय, लाभ, हानि ,यश, अपयश इन सारी परिस्थितियों से बाहर आने का इन सारे विचारों से स्वयं को बाहर निकालने का एकमात्र रास्ता और तरीका सकारात्मकता ही है ! राम ने किसी भी परिस्थिति में सकारात्मकता का दामन कभी नहीं छोड़ा जब भरत और तीनों माताएं राम को जंगल से वापस लेने गई तो राम ने उनसे कहा कि नहीं मां मेरे साथ किसी तरह का कोई अन्याय नहीं हुआ है भरत को पिता श्री ने नगर का शासन दिया है और मुझे जंगल का राजा बनाया है और आने वाले दिनों में मुझे अपने सारे बड़े कामों का अंजाम इसी राज्य से देना है, एक दूसरा छोटा सा उदाहरण है युद्ध के पूर्व विभीषण ने राम से कहा कि हम युद्ध के लिए तैयारी शुरू करते हैं राम ने कहा - नहीं अभी अंगद दूत के तौर पर  गए हुए हैं उनके आने से पहले युद्ध की तैयारी शुरू करना मतलब अंगद को प्रयास के पूर्व असफल मान लेना होगा , पहले प्रतीक्षा कीजिए अंगद के प्रयासों पर विश्वास किजिए , अंगद अपने प्रयासों में सफल होंगे, शायद इस तरह की सकारात्मकता का उदाहरण जीवन में कम देखने को मिलता है , आज करोना काल में भी हमें सकारात्मक होना और रहना है  इस पूरे मजबूत विश्वास के साथ की करोना से युद्ध हम जीतेंगे ही! 

5. वीरता -  जब सारे रास्ते समाप्त हो जाए और संधि का या सामंजस्य का कोई विकल्प नहीं बचे तो फिर युद्ध और उस युद्ध को जीतने के लिए आपके अपने अंदर की वीरता ही एकमात्र विकल्प रह जाती है , राम ने अपने हर युद्ध के पूर्व विनम्रता और धैर्य के साथ उस युद्ध को रोकने और टालने का यथासंभव प्रयास किया परंतु जब युद्ध टल नहीं सके तो फिर राम ने पूरे समर्पण भाव से, पूरी शक्ति से, पूरी वीरता से युद्ध को लड़ा भी! आज हमारे लिए भी शायद यही आवश्यक है यथासंभव हम समाज में, मित्रता में ,आपस में टकराव को टालने का पूरा प्रयास करें और हाँ ये प्रयास सचमुच पूरी ईमानदारी से हो!  परंतु एक जगह कहीं आने के बाद हमें यह लगे कि युद्ध टाला नहीं जा सकता है , उस लड़ाई को उतनी ही वीरता से लडें जैसा कि आज हम करोना काल में करोना के विरुद्ध युद्ध लड रहें हैं! जिस तरह से अपने आपको अपनी ही देहरी के अंदर समेट कर लॉक डाउन और करोना के विरुद्ध युद्ध के नियमों का पूरी वीरता और समर्पण भाव से पालन करके इस युद्ध में अपनी विजय सुनिश्चित कर रहे हैं !

ऐसा मेरा मानना है कि राम आदि काल से लेकर आज तक हर एक व्यक्ति के जीवन में चाहे वो छोटा हो ,बढ़ा हो, अमीर हो ,गरीब हो, सफल हो असफल हो  प्रासंगिक है और जब तक मानव जीवन है मानव जीवन की जीवन शैली में राम है क्योंकि राम एक चरित्र मात्र नहीं है ये एक जीवनशैली हैं यह जीवन शैली किसी जाति या मात्र हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है यह तो धरती के प्रत्येक मनुष्य के लिए प्रासंगिक है!

" अपने अपने राम को अपने अपने अंदर ही धारण करके अपने अपने अंदर ही देखने और समझने का प्रयत्न करें " ! 

आज हमने राम के व्यक्तिगत गुणों पर बात की लॉक डाउन के अगले भाग में हम राम के व्यवसायिक गुण धर्मो पर बात करेंगे । 
 जय श्री राम


7.4.20

लॉक डाउन By Nilesh Rawal


लाॅक डाउन के इस दौर में हमारे देश का एक बड़ा पर्व आया है -  "महावीर जयंती" 
विशेष तौर पर जैन समाज का यह साल का सबसे बड़ा पर्व होता है! 

पूरे शहर में बड़ी धूम रहती है और बहुत से आयोजन होते हैं , बहुत से कार्यक्रम होते हैं और पूरा शहर नेताओं द्वारा जैन समाज को बधाई के बैनर पोस्टरों से पट जाता है! 
परंतु इस बार कुछ अलग हालात हैं , कुछ अलग सी शांति है ना कोई कार्यक्रम, ना कोई बधाई ना कोई बैनर ना कोई पोस्टर! 

लेकिन त्यौहार तो है और इस बार यह  यह त्यौहार कैसे मनाया जाए? 

मौका है मनन का, चिंतन का, महावीर को एक बार फिर एक नए सिरे से जानने का, समझने का , आत्मसात करने का, उनके द्वारा बताए हुए सिद्धांतों को, नीति को ,नियमों को नए सिरे से परिभाषित कर उनके अर्थों को ठीक तरह से समझने का !

मैं महावीर स्वामी के विषय में यह लिखने का प्रयास कर रहा हूं लेकिन मैं जैन नहीं हूं लेकिन मेरा यह मानना है कि महावीर स्वामी जैसा विशाल और विराट व्यक्तित्व किसी संप्रदाय तक सीमित नहीं हो सकता है और उसके सिद्धांत समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए है!

एक बात कहना चाहता हूं  मेरे बचपन से बहुत सारे जैन मित्र रहे हैं बहुत सारे जैन मित्रों के घर में आना जान रहा है ,बड़ी निकटता रही है! लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मैंने महसूस किया है हालांकि यह बात सुनने में कड़वी लग सकती है लेकिन हिंदू और जैनों के बीच में एक दूरी से बनती जा रही है या यूं कहें कि जैन समाज एवं अन्य समाजों के बीच में एक दूरी सी बनती चली जा रही है! 

मित्रों महावीर स्वामी ने जो दया, करुणा, अहिंसा के पंचशील सिद्धांत  दिए हैं किसी संप्रदाय विशेष के लिए नहीं है यहां तक कि वह तो मानव जाति तक भी सीमित नहीं है वह तो इस संसार के प्रत्येक प्राणी ,यहां तक कि पेड़, पौधे, वृक्ष इनके लिए भी प्रतिपादित है !
आज महावीर जयंती के उपलक्ष में चाहे वह जैन समाज के लोग हो या अन्य समाज के लोग महावीर स्वामी के प्रति सही आदरांजली या भावांजलि यही हो सकती है  हमारी तरफ से कि हम इन दूरियों को कम करें और जिस तरह दूध के अंदर मख्खन का अस्तित्व होता है वैसा ही अस्तित्व हमारा इस राष्ट्र के अंदर हो, हमारा आपस में किसी भी तरह का विभाजन कभी भी इस राष्ट्र के हित में नहीं हो सकता है! 

बहुत समय पहले मैंने ओशो की एक किताब पढ़ी थी उसकी कुछ बातें आपसे साझा करता हूं -

ओशो ने महावीर स्वामी के एक सिद्धांत -
 " मूर्खों के संसर्ग से बचें "
 को विस्तार से परिभाषित करने का प्रयास किया था ! 
उन्होंने कहा था कि मूर्ख वह नहीं है जिसे  कुछ पता नहीं है वे तो अज्ञानी है ,
मूर्ख तो वह है जिसे बिना कुछ जाने सब पता है ! 

उन्होंने एक उदाहरण दिया एक धर्म गुरु उनके पास आए उन्होंने कहा कि ईश्वर को परिभाषित नहीं किया जा सकता है ईश्वर की थाह नहीं ली जा सकती है ! 
 
ओशो ने उनसे कहा कि यह बात आप दो ही परिस्थितियों में कह सकते हो या तो आपने थाह 
ले ली है और यदि आपने थाह ले ली है तो आपकी बात सत्य नहीं है और यदि आपने थाह नहीं ली है तो आपको यह कहने का अधिकार नहीं है! 
अभी हमारे इर्द-गिर्द ऐसे लोगों की भरमार है हमारी सोशल मीडिया पर ,फेसबुक पर ,व्हाट्सएप पर इस तरह के संदेशों की भरमार है जो हिंदू धर्म को नहीं जानता वह हिंदू धर्म को परिभाषित कर रहा है , जो जैन धर्म के विषय में कुछ भी नहीं जानता वह जैन धर्म को परिभाषित करने का प्रयास कर रहा है और यही शायद हमारे बीच विरोधाभास और विसंगतियों का कारण भी है या शायद हम सब की आपसी दूरियों का कारण भी है!

और यह ना हिंदू धर्म के लिए अच्छा है ना जैन धर्म के लिए अच्छा है और ना ही राष्ट्र के लिए अच्छा है! 

ऐसे लोगों से बचें ऐसे लोगों से सावधान रहें , स्वयं मनन, चिंतन करें, सत्य को समझने का प्रयास करें और हम एक दूसरे के विचारों का ,एक दूसरे की धार्मिक आस्थाओं का ,एक दूसरे के धर्मों का सच्चे अर्थों में सम्मान करें और उन्हें स्वीकार करें!
 
यही इस राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए आवश्यक भी है !

और यकीन मानिए हमारे सारे धर्म हमारे सारे सिद्धांत हमें सिर्फ और सिर्फ उस परमपिता परमेश्वर की तरफ ही लेकर जाते हैं! 

हरिवंश राय बच्चन की छायावादी युग की एक बहुत खूबसूरत रचना है  -
 " मधुशाला" 

 जिसकी कुछ लाइने आपसे साझा करता हूं! 

घर से चलता है जब पीने वाला, 
घर से चलता है जब पीने वाला,
असमंजस में है वह भोला भाला, 
अलग-अलग पथ बतलाते सब , 
पर मैं यह बतलाता हूं, 
राह पकड़ तू एक चला चल ,
पा जाएगा मधुशाला !

 
हम सब अपनी अपनी पृष्ठभूमि , अपनी अपनी पसंद के अनुसार अपने-अपने धर्म अपने अपने सिद्धांतों का चयन कर सकते हैं, लेकिन आप यकीन मानिए अंततः हम सब उस परमपिता परमेश्वर के दरवाजे पर ही पहुंचेंगे चाहे हम रास्ता कोई भी अपना लें!

 इसलिए आइए महावीर जयंती के उपलक्ष पर हम आप सब मिलकर दृढ़ संकल्पित हो और मानव से मानव के बीच की इस दूरी को कम करके अनेकता में एकता की इस राष्ट्र की संकल्पना को साकार रूप प्रदान करें

निलेश रावल

6.4.20

लाॅक डाउन - By Nilesh Rawal

 
Jabalpur Dated 5th Apr 2020, at Between 09:00 to 09:09 Photo By Ashish Vishvakarma 
    
Writer : Mr. Nilesh Rawal

लाॅक डाउन - भाग एक से तीन
नीलेश रावल
लाॅक डाउन - भाग - १

लॉक डाउन चल रहा है हम सब अपने अपने घरों में ठहर गए हैं!
बहुत दिनों से व्हाट्सएप में , फेसबुक पर बहुत सारी जगह पर मैं पोस्ट देख रहा था यदि हम बाहर नहीं जा सकते तो अपने भीतर जाने की कोशिश करें मैं सोच रहा था कि भीतर कैसे जाऊं बहुत कोशिश की पर भीतर जाने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था हमने अपने भीतर जाने के सारे दरवाजों पर नाराजगी के, गुस्से के ,नफरत के बडे बड़े ताले जड़ रखे हैं , अपने भीतर प्रवेश करना भी अब शायद हमारे लिए बहुत आसान नहीं रह गया हैं !
अचानक बैठे-बैठे मेरे मन में ख्याल आया कि एक काम करते हैं आराम से शांत मन से बैठते हैं और अपने स्मृति पटल पर जहां तक की स्मृतियां शेष है अपने जीवन में वापस पीछे जाते हैं और फिर वहां से शुरू करते हैं अपनी एक एक गलती , एक एक भूल, एक एक अपराध के लिए स्वयं से , स्वयं की आत्मा से , परम पिता परमेश्वर से क्षमा मांगते हैं !
इस तरह से उस अंतिम छोर से आज तक के सफर पर चलते हैं !
अपने हर छोटे बड़े अपराध के लिए माफी मांगने का प्रयास करते हैं!
फिर एक बार हम शांत मन से सोचते हैं हमें किन से प्रेम है किन से नफरत है किन के प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है हमारे मन में नाराजगी है एक-एक करके जिनसे हम नाराज हैं जिनके प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है उन सबको एक-एक करके माफ करने की कोशिश करते है!
यकीन मानिए यदि हम सच्चे मन से एक-एक व्यक्ति को माफ करते चले जाएंगे तो हमें हमारे भीतर प्रवेश के द्वार पर लगे सारे ताले टूटते हुए नजर आएंगे !
और हाँ जब हम अपने भीतर प्रवेश कर जाए तो मन के सारे द्वार, सारी खिड़कियां और विशेष तौर पर मन का वह झरोखा जरूर खोल दीजिए जिससे मन के अंदर नाराजगी ,गुस्से और नफरत की जितनी भी गर्म हवाएं है उससे बाहर निकल सके!
यकीन मानिए उस खुले झरोखे से मन की सारी गर्म हवाएं एक बार बाहर निकल जाएंगी तो बाहर से आती हुई शीतल हवाएं जब हमें स्पर्श करेंगी तो वे हमें अलौकिक आनंद से भरकर आल्हादित कर देगीं !
अब आपके पास लेने और देने के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम बचेगा और हां लेकिन इतना जरूर याद रखियेगा की देने के लिए प्रेम है लेकिन लेने के लिए प्रेम की अपेक्षा मत कीजिए यदि मिल जाएगा तो आप सौभाग्यशाली हैं और नहीं मिला तो आपके पास देने को बहुत सारा प्रेम होगा यह आपका सौभाग्य है!
एक नए संसार का सृजन करिये जो प्रेम के द्वारा हो, प्रेम के लिए हो और प्रेम से हो!
भाग दो
लॉक डाउन चल रहा है हम सब अपने अपने घरों में ठहर गए हैं!
बहुत दिनों से व्हाट्सएप में , फेसबुक पर बहुत सारी जगह पर मैं पोस्ट देख रहा था यदि हम बाहर नहीं जा सकते तो अपने भीतर जाने की कोशिश करें मैं सोच रहा था कि भीतर कैसे जाऊं बहुत कोशिश की पर भीतर जाने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था हमने अपने भीतर जाने के सारे दरवाजों पर नाराजगी के, गुस्से के ,नफरत के बडे बड़े ताले जड़ रखे हैं , अपने भीतर प्रवेश करना भी अब शायद हमारे लिए बहुत आसान नहीं रह गया हैं !
अचानक बैठे-बैठे मेरे मन में ख्याल आया कि एक काम करते हैं आराम से शांत मन से बैठते हैं और अपने स्मृति पटल पर जहां तक की स्मृतियां शेष है अपने जीवन में वापस पीछे जाते हैं और फिर वहां से शुरू करते हैं अपनी एक एक गलती , एक एक भूल, एक एक अपराध के लिए स्वयं से , स्वयं की आत्मा से , परम पिता परमेश्वर से क्षमा मांगते हैं !
इस तरह से उस अंतिम छोर से आज तक के सफर पर चलते हैं !
अपने हर छोटे बड़े अपराध के लिए माफी मांगने का प्रयास करते हैं!
फिर एक बार हम शांत मन से सोचते हैं हमें किन से प्रेम है किन से नफरत है किन के प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है हमारे मन में नाराजगी है एक-एक करके जिनसे हम नाराज हैं जिनके प्रति हमारे दिमाग में गुस्सा है उन सबको एक-एक करके माफ करने की कोशिश करते है!
यकीन मानिए यदि हम सच्चे मन से एक-एक व्यक्ति को माफ करते चले जाएंगे तो हमें हमारे भीतर प्रवेश के द्वार पर लगे सारे ताले टूटते हुए नजर आएंगे !
और हाँ जब हम अपने भीतर प्रवेश कर जाए तो मन के सारे द्वार, सारी खिड़कियां और विशेष तौर पर मन का वह झरोखा जरूर खोल दीजिए जिससे मन के अंदर नाराजगी ,गुस्से और नफरत की जितनी भी गर्म हवाएं है उससे बाहर निकल सके!
यकीन मानिए उस खुले झरोखे से मन की सारी गर्म हवाएं एक बार बाहर निकल जाएंगी तो बाहर से आती हुई शीतल हवाएं जब हमें स्पर्श करेंगी तो वे हमें अलौकिक आनंद से भरकर आल्हादित कर देगीं !
अब आपके पास लेने और देने के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम बचेगा और हां लेकिन इतना जरूर याद रखियेगा की देने के लिए प्रेम है लेकिन लेने के लिए प्रेम की अपेक्षा मत कीजिए यदि मिल जाएगा तो आप सौभाग्यशाली हैं और नहीं मिला तो आपके पास देने को बहुत सारा प्रेम होगा यह आपका सौभाग्य है!
एक नए संसार का सृजन करिये जो प्रेम के द्वारा हो, प्रेम के लिए हो और प्रेम से हो!
भाग तीन
लाॅक डाउन

आज 5 अप्रैल है और आज के दिन हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने आह्वान किया था कि रात 9:00 बजे देश का प्रत्येक नागरिक अपने घर की छत पर 9 मिनट के लिए 9 दीपक जलाएं!
सोशल मीडिया पर इसके समर्थन और विरोध में बहुत सारी क्रियाएं और प्रतिक्रियाएं देख रहा हूं!
मेरे एक मित्र ने मुझे एक व्हाट्सएप पर संदेश भेजा था जिसमें एक कहानी थी जो आप सभी लोगों से साझा करना चाहता हूं !
एक छोटे से राज्य पर एक बड़े राज्य ने आक्रमण कर दिया।
उस राज्य के सेनापति ने राजा से कहा कि आक्रमणकारी सेना के पास बहुत संसाधन है हमारे पास सेनाएं कम है संसाधन कम है हम जल्दी ही हार जायेंगे बेकार में अपने सैनिक मरवाने का कोई मतलब नहीं। इस युद्ध में हम निश्चित हार जायेंगे और इतना कहकर सेनापति ने अपनी तलवार को नीचे रख दिया।
अब राजा बहुत घबरा गया अब क्या किया जाए, फिर वह अपने गुरु के पास गया और सारी बातें बताई।
गुरु ने कहा उस सेनापति को फौरन हिरासत में ले लो उसे जेल भेज दो। नहीं तो हार निश्चित है।
यदि सेनापति ऐसा सोचेगा तो सेना क्या करेंगी।
आदमी जैसा सोचता है वैसा हो जाता है।
फिर राजा ने कहा कि युद्ध कौन करेगा।
गुरु ने कहा मैं,
वह गुरु बूढ़ा था, उसने कभी कोई युद्ध नहीं लड़ा था और तो और वह घोड़े पर भी कभी नहीं चढ़ा था। उसके हाथ में सेना की बागडोर कैसे दे दे।
लेकिन कोई दूसरा चारा न था।
वह बूढ़ा गुरु घोड़े पर सवार होकर सेना के आगे आगे चला।
रास्ते में एक पहाड़ी पर एक मंदिर था। गुरु सेनापति वहां रुका और सेना से कहा कि पहले मंदिर के देवता से पूछ लेते हैं कि हम युद्ध में जीतेंगे कि हारेंगे।
सेना हैरान होकर पूछने लगी कि देवता कैसे बतायेंगे और बतायेंगे भी तो हम उनकी भाषा कैसे समझेंगे।
गुरु बोला ठहरो मैंने आजीवन देवताओं से संवाद किया है मैं कोई न कोई हल निकाल लूंगा।
फिर गुरु अकेले ही पहाड़ी पर चढा और कुछ देर बाद वापस लौट आया।
गुरु ने सेना को संबोधित करते हुए कहा कि मंदिर के देवता ने मुझसे कहा है कि यदि रात में मंदिर से रौशनी निकलेगी तो समझ लेना कि दैविय शक्ति तुम्हारे साथ है और युद्ध में अवश्य तुम्हारी जीत हासिल होगी।

सभी सैनिक साँस रोके रात होने की प्रतीक्षा करने लगे। रात हुई और उस अंधेरी रात में मंदिर से प्रकाश छन छन कर आने लगा ।
सभी सैनिक जयघोष करने लगे और वे युद्ध स्थल की ओर कूच कर गए ।
21 दिन तक घनघोर युद्ध हुआ फिर सेना विजयी होकर लौटीं।

रास्ते में वह मंदिर पड़ता था।
जब मंदिर पास आया तो सेनाएं उस गुरु से बोली कि चलकर उस देवता को धन्यवाद दिया जाए जिनके आशीर्वाद से यह असम्भव सा युद्ध हमने जीता है।
सेनापति बोला कोई जरूरत नहीं ।।
सेना बोली बड़े कृतघ्न मालूम पड़ते हैं आप जिनके प्रताप से आशीर्वाद से हमने इस भयंकर युद्ध को जीता उस देवता को धन्यवाद भी देना आपको मुनासिब नही लगता।
तब उस बूढ़े गुरु ने कहा , वो दीपक मैंने ही जलाया था जिसकी रौशनी दिन के उजाले में तो तुम्हें नहीं दिखाई दि थी, पर रात्रि के घने अंधेरे में तुम्हे दिखाई देने लगी ।
तुम जीते क्योंकि तुम्हे जीत का ख्याल निश्चित हो गया।

आज चाहे ताली बजाना हो या दीपक जलाना यह सब मानव मन और मस्तिष्क को निराशा से बाहर निकालकर आशावादी बनाने का एक उपक्रम मात्र है!
और इस तरह के उपक्रम अपनी जनता और अपनी सेना का मनोबल ऊंचा करने और किसी भी युद्ध को पूरी मजबूती और शक्ति से लड़ने के लिए उन्हें तैयार करने के लिए आवश्यक भी है !

हम जैसे बहुत सारे लोग जो अपने व्यवसाय में अपने कामों में अत्यधिक व्यस्त रहने के आदी हो चुके थे और जो एक लंबे समय से अपने घरों में बंद है यह उन सबके लिए बहुत ही ज्यादा अवसाद में जाने और निराशा में जाने का समय था उन्हें इस अवसाद और निराशा से निकालने के लिए भी ये उपक्रम आवश्यक है!

कोई समर्थक हो या विरोधी लेकिन सारे ही लोग यह जरूर मानेगे कि चाहे ताली बजाने की क्रिया हो या आज दीपक जलाने की क्रिया इन दोनों ने ही एक असीम ऊर्जा का संचार पूरे देश में किया है जो अद्भुत और विलक्षण हैं और ये पल शायद हम में से किसी ने भी पहले अपने जीवन में कभी नहीं देखे!

मैं जानता हूं कि केवल ताली बजाने से या दीपक जलाने से करोना नहीं मर सकता है लेकिन आप सब भी यह मानेंगे इन क्रियाओं से हमारे अंदर , हमारे समाज में, हमारे देश में असीम उर्जा और जोश का जो संचार हुआ है वह हमें किसी भी करोना पर विजय दिला सकता है और हमारी जीत सुनिश्चित कर सकता है!

और यूं भी जिस तरह से लोगों ने एकजुट होकर दलों से, विचारधाराओं से बाहर निकलकर ताली बजाई या दीपक जलाए उसने इससे राष्ट्र की जीवंतता का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किया है!

इस राष्ट्र के अंदर हर परिस्थिति से लड़ने की , उससे जीत हासिल करने की अदम्य शक्ति और जिजीविषा है!

अटल बिहारी वाजपेई जी की कुछ पंक्तियां याद आई -:
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है,
कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं,
सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है,
अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है,
यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।

और हम ही जितेंगे!
हमारी जीत सुनिश्चित है, मैने उस मंदिर से दिपक के प्रकाश को बाहर निकलते देखा है! 

3.4.20

खुला ख़त राहत इंदौरी के नाम कॉपी टू मुन्नवर राणा, जावेद अख्तर

 
 
ज़नाब राहत इंदौरी साहेब
नर्मदे हर
इसकी जिम्मेदारी हम लिटरेचर के लोगों की भी होती है। आपकी बहुत सारी बातें जो रोंगटे खड़े कर देने वाली होती है हमने सुनी है-
*लगेगी आग जग में आएंगे...*
हमने एनवायरमेंट क्रिएट किया है ,
हम कितने दुखी हैं इंदौर की इस घटना से जिसका आईकॉन राहत इंदौरी हो वहां इस तरह के लोग मौजूद हैं। आप नहीं जानते शहर जबलपुर में बहुत पुराने हादसे के बाद आज तक ऐसा कोई मंज़र शहर ने पेश नहीं किया जैसा कि इंदौर ने किया है। आप जानते हैं कि हम मौलाना मुफ्ती साहब के इंतकाल के बाद कितना दुखी है हम जो हिंदू हैं वह जो क्रिश्चियन है वह जो मुस्लिम है सब को एक सूत्र में पिरो देते थे मौलाना साहब। गोया कि आप आपके शहर में पढ़े लिखे समझदार अथॉरिटी को भी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। आपने अपनी शायरी में बहुत कुछ अच्छा लिखा है हम सभी देर रात तक खुले आकाश के नीचे मुशायरा में जाया करते थे और आपने तब शायरी शुरू ही की थी मंच से सुनते थे आपको और जो अपनापन आपकी कलम में उस दौर में देखा गया अब नजर नहीं आता। हम लिटरेचर के लोग आज भी ह्यूमैनिटी और भाईचारे पर यकीन करते हैं और करेंगे किसी की मजाल है कि कौमी बवाल खड़ा कर पाए परंतु कुछ दिनों से देख रहा हूं कि आप और कुछ नामचीन शायर कुछ कवि अमन पर बुरादा डालने वाली शायरी और कविताएं पेश करते हैं। थिएटर भी कुछ इस तरह से कोशिशें करता है। खासतौर पर बाएँ जमात वाले । एक शायर कवि लेखक होने के नाते ऐसी कोशिशों की मज़्ज़मत करता हूं ।
आपको या किसी कवि को किसी खास इंसान से असहमति हो सकती है परंतु आवाम के हक में बात करने के अपने फर्ज को भूल कर आप लोग आप कमिटेड हो गए हो। साहित्य क्या है आप जानते थे मुगल काल में जब बहुत मुश्किल का दौर था जजिये लगाए जाते थे तब तुलसी ने कभी भी आग नहीं लगाई की बस्तियां झुलस जाए बल्कि नीति प्रेम और अनुशासन का कथानक रामचरितमानस की शक्ल में जनता के सामने पेश किया था। उसी समय भक्त कवियों ने अपना अपना फर्ज निभाया। सूफी आए और तमाम लोगों के बीच मोहब्बत का पैगाम दिया। लेकिन ऐसा क्या हो गया है कि अब आप जैसे लोग भी कमिटेड हो गए हैं। आपकी एक ग़ज़ल का जवाब हमारे पास तैयार है हमने भेजा भी था मिल भी गया होगा मौका बिल्कुल सही है सोचता हूं शेयर कर दूं
*जो खिलाफ हैं वो समझदार इंसान थोड़ी हैं*
जो वतन के साथ हैं वो बेईमान थोड़ी है ।।
लगेगी आग तो बुझाएंगे हम सब मिलकर
बस्ती हमारी है वफादार हैं बेईमान थोड़ी हैं ।।
मैं जानता कि हूँ वो दुश्मन नहीं था कभी मेरा उकसाने वालों का सा मेरा खानदान थोड़ी है ।।
मेरे मुंह से जो भी निकले वही सचाई है
मेरे मुंह में विदेशी ज़ुबान थोड़ी है ।।
वो साहिबे मसनद है कल रहे न रहे -
वो भी मालिक है ये किराए की दूकान थोड़ी है
अब तो हर खून को बेशक परखना होगा
वतन सबके बाप का है, हर्फ़ों की दुकान थोड़ी है ।।
जनाब राहत इंदौरी साहब हम भवानी प्रसाद मिश्र के शहर के लोग हैं हम जानते हैं सिय विजनवास को वे खुद उतनी बेहतर ढंग से पेश ना कर पाते जितना की चाचा लुकमान ने पेश किया। लुकमान रुला देते थे उनकी अभिव्यक्ति गोया कविता पर भारी पड़ जाया करती थी। मेरे कहने का मतलब समझ रहे हैं सही गंगा जमुना की धारा नर्मदा के किनारे वाले इस पत्थरों के शहर में नजर आ जाती है एक आपका शहर है जहां ना तो आपकी चलती है नाही नई नस्लें आपको समझ पाती हैं। बड़े बोल नहीं बोल रहा हूं पर शहर जबलपुर तुम्हारे शहर से न केवल खूबसूरत हो गया है अमन पसंद भी हो गया है। जबलपुर वह शहर है हां जिसे अमन का शहर कह सकते हैं। जिसके पत्थरों की कीमत जौहरी ही जानते है। हम सभी जानते हैं हमारा शहर पत्थरों का जरूर है लेकिन संगमरमर के पत्थर नरम ही होते हैं ना ।
बाहरी ताकतें हिंदुस्तान को कितना भी हिलाने की कोशिश करें जनाब सबसे पहले शायरों की जिम्मेदारी होती है फन कारों की जिम्मेदारी होती है कि वह अपना पाया मजबूत करें और हमारी कोशिश है देख कर हमारे फॉलोअर्स भी वैसा करेंगे।
कैसे सो लेते होंगे आप लोग मुझे तो नींद नहीं आ रही है 7 दिन हो गए किस्तों में सो रहा हूं जगता हूं तो आओ देख लो तड़पता हूं और रो रहा हूं मतलब समझ रहे हैं मेरी इस बात का
एलाने अमन करना सीखो
इस वाह-वाह में क्या रखा
यह बात बारास्ता और उन तमाम कवियों शायरों के लिए लिखी जा रही है जो कमिटेड है किसी विचारधारा के लिए। तरक्की पसंद लोग भी अब आग लगाने में माहिर हो गए हैं जनाब, समझ लीजिए अभी नहीं सुधरे तो तुम्हारी हमारी शायरी कविताएं नाटक कहानियां सब फिजूल की बातें मानी जाएंगी। आग की तरह जलते वीडियो देखकर आइंदा नस्लें ना तुम्हें माफ करेगी ना मुझसे राहत साहब यह अलग बात है कि इंदौर मुंबई के पास है मुंबई में बहुतेरे लोग खाल ओढ़कर अपनी नौकरी टाइप की साहित्य सेवा कर रहे हैं। जनाब यूं तो जावेद अख्तर साहब से भी नाराज हूं पर ठीक है आपको भेज रहे खत से उनको कुछ समझ आए

29.3.20

रवीश कुमार की समस्या :रामायण का प्रसारण


Ravish Kumar नामक व्यक्ति को दूरदर्शन पर रामायण का प्रसारण फिर से एक बार जनता की मांग पर किया। पता नहीं रवीश जी के पेट में अजीब अजीब सी हरकतें होने लगी जैसी अपच में होती है और दोपहर होते-होते तक मामला वोमिटिंग तक पहुंच गया। कोरोना वायरस वहीं से आया है, जहां से इन भाई साहब को विचारों की खेती करने के लिए बीच मिलते हैं। तकनीकी भी वहीं से मिलती है खेती करने की। यह श्रीमान मात्र 45 साल की उम्र के हैं 74 में इनका जन्म हुआ है परंतु मैग्सेसे अवार्ड पाने के बाद पता नहीं इतने हल्के हो गए हैं कि इन्हें किसी भी व्यक्ति का समुदाय का चिंतन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इनका किसी से कोई भी राजनैतिक रिश्ता अच्छा या बुरा हो सकता है, उससे हमें कोई लेना-देना नहीं हमें लेना देना इस बात से है कि आज से जनता की मांग पर श्री राम के जीवन पर आधारित रामायण का प्रसारण क्या हुआ भाई साहब आज दोपहर की नींद सोए नहीं। और सोते भी कैसे रक्ष संस्कृति के संवाहक के रूप में इनकी कदाचित जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि ये उसका विरोध करें। विरोध इनकी मूल प्रकृति में है। बिहार मोतिहारी के जन्मे दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ लिख कर रोटी कमाने के लायक हो गए और एक खास प्रकार के चिंतन के ध्वजवाहक भी हो गई। वास्तव में राम और रामराज के मर्म को इन्हें समझने में बड़ी कठिनाई हो रही है। घर से बैठे-बैठे फेसबुक पर लाइव होकर भाई ने बताया कि भारत बिल्कुल भी तैयार नहीं है चीन जनित महामारी से निपटने के लिए . मुझे ऐसा लगा कि शायद भाई सही कह रहा हो? तफ्सील से हमने भी तस्दीक शुरू कर दी , हमें पता चला हर आईएएस हर आईपीएस हर वह व्यक्ति जो राजनीतिक प्रतिद्वंदी है इस मुद्दे पर मानवता के साथ है जितना बन पड़ रहा है कर रहे हैं। रवीश कुमार का कहना है कि भारत सरकार ने आज तक अगर महामारी फैल जाती है तो कोई व्यवस्था नहीं कर रखी है . मुझे लगता है बिल्कुल सही कहा इन्होंने भारत सरकार और समस्त राज्यों की सरकारें अपने संसाधनों का बेहतर से बेहतर उपयोग करने में सक्षम है और करती भी हैं। परंतु क्या कभी भाई ने अथवा इनके चैनल ने दिन भर चलने वाले एक विज्ञापन का भी सहयोग दिया है किसी भी सरकार को शायद कभी नहीं। रविश एक कुटिल बुद्धिमान हैं इन्होंने मिशन विरोध के चलते यह भी नहीं सोचा कि कभी इन्होंने चिकित्सकीय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए किसी भी सरकार को सलाह दी अब तक मैंने इनके जितने प्रोग्राम देखें संभवत है ऐसा कभी इन्होंने नहीं किया। अगर कोई प्रोग्राम होगा भी तो उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं हो सकता है कि पूरे दिन इनके चैनल को ना देखा हो। सुधि पाठकों को बता देना चाहता हूं कि भारत में राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम होने के कारण पूजनीय एवं आदर्श है। कवियों ने उन्हें मर्यादित राजा की उपाधि से नवाज़ते हुए श्रेष्ठ कहां है। तुलसीदास ने राम के चरित्र को लोक नायक के रूप में प्रस्तुत किया है। पत्रकार है इतना तो जानते ही होंगे। राम एक ऐसे राजा के रूप में कथानक के माध्यम से जाने जाते हैं जो ईश्वर की तरह पवित्र और सर्वमान्य थे। और अगर अपने आदर्श के जीवन चरित्र पर आधारित किसी नाटक को जनता देखना चाहती है जो उसका व्यक्तिगत अधिकार भी है भाई को आपत्ति क्यों होने लगी। बहुत सारी चैनल है जिनमें धार्मिक सीरियल आ रहे हैं उन पर भाई साहब की टिप्पणी क्यों नहीं आई। कोरोनावायरस के विस्तार को लेकर इतनी ही चिंता इनके मन में है तो यह मास्क बांधकर किसी पीड़ित मानवता की सेवा में क्यों नहीं निकल गई आखिर भारत के नागरिक तो है। इनके चिंतन में कहीं ना कहीं किसी को किया हुआ कमिटमेंट नजर आ रहा है। कहां रामायण का प्रदर्शन और कहां करुणा वायरस। आज शाम और सुबह तकनीकी कारणों से मेरा टेलीविजन सेट खराब था मेरी पत्नी और बेटी का मूड भी खराब हो गया। क्या इन पढ़ी लिखी जनता को आप समझाऐंगे..? भाई जी जनता का अधिकार और आपकी अभिव्यक्ति का अधिकार सिंक्रोनाइज नहीं है जनता जो चाहती है उसी आप पढ़ नहीं पाएंगे आप जो भी व्यक्त करते हैं उसे वह निभा नहीं पाएगी। रवीश के लिए यूं तो मेरे दिमाग में हजारों सवाल परंतु विषय को चबा चबा कर गन्ने की बेदम हुई बचत की माफिक उगलने वालों से हम बात नहीं कर सकते हमारा भी तो कोई स्वाभिमान है। अरे कम से कम मिर्जा गालिब को ही पढ़ रहे थे भारत का सांस्कृतिक दर्शन समझने के लिए मेरे परम पूज्य मिर्जा गालिब काफी है। बहुत प्रेरणा करो भारतीय आइकॉन से जिन्हें विवेकानंद कहा जाता है जिन्हें रामकृष्ण परमहंस कहा जाता है जिन्हें गांधी कहा जाता है जिन्हें रजनीश कहा जाता है जिन्हें कबीर कहा जाता है बस तुम रसखान को पढ़ लो कबीर को समझ लो सब कुछ साफ हो जाएगा अभी तो तुम्हारी उम्र बहुत कम है मुझसे लगभग 11 बरस बाद पैदा हुए यह उम्र अनुशीलन चिंतन और संस्कृति को समझने की है पता नहीं कहां से तुम्हें तकलीफ होती है ताली बजाने पर। छठ मैया की पूजा करते तुम्हें हमने भी देखा है इस देश में भी देखा है क्या वह पाखंड था आज के प्रसारण को देखकर तो लगा शुद्ध पाखंड था। उम्र के लिहाज से मुझसे बहुत छोटे हो और मैं भी परसाई की जमीन मैं जन्मा रजनीश परसाई सभी का सम्मान करते हुए जहां-जहां असहमति है असहमत रहता भी हूं परंतु वोमिटिंग नहीं करता। यह अलग बात है पेट के लिए तुम्हें किसी एजेंडे को आगे बढ़ाना है बढ़ाते रहो परंतु एक बात ध्यान रखो अगर आज रामायण का पुनः प्रसारण हुआ है तो वह जनता की मांग पर हुआ है, उस समय तुम 12 या 13 वर्ष उम्र के किशोर रहे थे न..? क्या किसी से सुना होगा सड़कों पर सन्नाटा रहता था अतिथियों को पानी भी तब मिलता था जब सीरियल खत्म हो जाए। आज जरूरत है कि जनता सड़कों पर ना दिखे और अगर इस सीरियल से यह फायदा मिल रहा है तो अपच वाली बात क्या? प्रिय रवीश इतना ज़हर मत बोलो कि लोग यह भूल जाए कि तुम वाकई में गलत प्रजाति में जन्मे हो। कभी तो सद्भावना रख लिया करो कभी तो समरस बनने की कोशिश किया करो यह सब बहुत दूर तक नहीं चलेगा अध्यात्म से जुड़ जाओ शायद भारतीय तो हो पर अच्छे और सच्चे भारतीय बन जाओगे । यह आलेख तुम्हें भेज रहा हूं निश्चित तौर पर तुम्हारा यह कहना होगा कि मैं अमुक या तमुक विचारधारा से संबद्ध तो यह गलत है पहले ही स्पष्ट कर दूं कि मुझे दाएं बाएं से कोई लेना देना नहीं है तो ऐसे आरोप लगाना भी मत भूलकर भी नहीं । अन्य प्राप्त होने वाले पुरस्कार और सम्मान के लिए अग्रिम शुभकामनाएं

28.3.20

*मध्यवर्ग की आवाज सुनने के लिए धन्यवाद*

भारत सरकार ने मध्यमवर्ग की आवाज जिस तेजी से सुनी उसे लगा कि सरकार ने उम्मीद से अधिक कर दिया । जिस तरह से बैंकों की रेपो रेट में गिरावट बैंक की लिक्विडिटी बढ़ाई है तो सीआरआर का 1 परसेंट कम हो जाना भी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है इससे सीधा लाभ मध्यमवर्ग को मिलना सुनिश्चित है।
वर्तमान परिदृश्य में सारे प्रश्न हल हो चुके हैं किंतु ई एम आई में प्रीमियम का स्थगन स्पष्ट नहीं है। दिन भर मित्रों से चर्चा के बाद सबके मन में एक ही आशंका है कि क्या बैंक स्थगित प्रीमियम एक साथ वसूलेंगी अथवा लोन की अवधि बढ़ेगी? बढ़ी हुई अवधि में ब्याज की स्थिति क्या होगी यह भी आरबीआई के द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया है? यद्यपि यह 2 सवाल के संदर्भ में विश्वास कि सरकार और रिजर्व बैंक इस पर शीघ्र ही स्पष्ट हो जावेगी।
मित्रों मध्यवर्ती आवाज इतना जल्दी कभी नहीं सुनी गई जितना की आज सुनी गई है इसके लिए रिजर्व बैंक और भारत सरकार को साधुवाद देना ही होगा।
ऐसे समय में इंश्योरेंस कंपनियों के लिए भी सरकार को पृथक से इस आशय के स्पष्ट आदेश जारी करने होंगे जिसमें यह स्पष्ट कर दिया जाए कि उनके प्रीमियम भी स्थगित हों तथा जोखिम को 3 माह तक कवर की जा सके।
यद्यपि यह एकदम पृथक मामला है अतः उम्मीद है कि सरकार बीमा कंपनियों सरकारी जीवन बीमा निगम के साथ संवाद विस्थापित कर सकेगी।
अब जहां तक किसी परिस्थिति वश भारत कोरोना वायरस के संक्रमण पर नियंत्रण नहीं कर पाता है तब सरकार की स्थिति भी बेहद कमजोर हो जावेगी। वैसे यह स्थिति पूरे विश्व में समान रूप से इस समाज रह सकती है अतः इससे ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं।
सरकार ने अपना फर्ज निभाया है अब आम जनता को क्या करना चाहिए ?
यह सवाल स्वभाविक है, आप 3 माह की प्रीमियम अगर सुरक्षित रख देते हैं तो वह एक बचत के रूप में आपके खाते में पर देश की बचत के रूप में बैंकों में जमा रहेंगे। अर्थात हमें केवल बहुत जरूरी खर्चों के लिए उक्त राशि को उपयोग में लाना है। ताकि सिस्टम से राशि बाहर ना हो। सरकार ने यह सुविधा इस उद्देश्य रिजर्व बैंक के माध्यम से दिलवाई है ताकि उसका लाभ मध्यमवर्ग की कर्मचारियों और व्यापारियों को सीधा सीधा मिल जावे।
आपके हाथ में कैश है किंतु दुरुपयोग के लिए तो बिल्कुल नहीं। अगर आप इस कैश को अपने बैंक खाते में रखते हैं, तो यह बचत आपके लिए महत्वपूर्ण और सुखदाई होगी।
ऐसा नहीं है कि सरकार बाजार को जीवंत रखने के लिए कोई कदम नहीं उठाने वाली है। क्रय शक्ति आपके हाथ में होगी परंतु आवश्यकता के अनुरूप आपको वह करना होगा। यहां पुरानी भारतीय परंपराओं और व्यवस्था का अनुसरण करते रहना जरूरी है।
मेरा यह मानना है कि मध्यवर्ग का सर्वाधिक योगदान होता है अर्थव्यवस्था के संचालन में, साथ ही उत्पादकता में भी मध्यवर्ग महत्वपूर्ण है।
ऐसी स्थिति में आपको अपनी भूमिका स्पष्ट कर देनी चाहिए, अन्यथा अगर विषम परिस्थिति हुई तो आप अगले 3 माह में भी अपने आप को सुरक्षित नहीं रख पाएंगे। अगले तीन माह की स्थिति निर्भर करती है संक्रमण कि हम कितना जल्द काबू पाते हैं।
इसके लिए सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन रखना फिलहाल तो बेहद जरूरी है, विश्व स्वास्थ्य संगठन इस मुद्दे पर बहुत ही स्पष्ट और साफ है, उसने भारत द्वारा उठाए गए कदम को सटीक माना है। जो जहां है वह वहां रहे यह व्यवस्था का प्रश्न है। जिसे राज्य सरकारें स्थानीय निकाय, जन सहयोग के के जरिए हल किया जाएगा।
आपको करना क्या है...?
आपको बहुत कुछ अधिक नहीं करना है, केवल उन व्यक्तियों को संसाधन उपलब्ध कराने के लिए सरकार को मदद करनी है। ठीक उसी प्रकार जैसे सिख मतावलंबी गुरुद्वारे के लंगर का संचालन करते हैं। अगर 100 मिडिल क्लास परिवार 10 रोटियां और उसके अनुकूल दाल या सब्जी एकत्र कर प्रशासन द्वारा निर्धारित सुविधा केंद्रों को उपलब्ध कराते हैं तो आप बहुत बड़ा सहयोग कर रहे होते हैं।
आवास व्यवस्था के लिए अगर आप अपने घर से एक कंबल या चादर या बिस्तर जो आपके घर में सहज उपलब्ध है दान कर देते हैं तो प्रशासन को आवास की समस्या हल करने में कोई देर नहीं लगेगी।
इस तरह बूंद बूंद से समस्याओं का सूखा सागर भरा जा सकता है। अगर इतना भी नहीं तो आप घर बैठे 100 से 500 रुपए तक का दान सीधे जिले में स्थित रेड क्रॉस सोसाइटी को दे सकते हैं। वह भी बिना जाए। घर से भी बाहर निकलने की जरूरत नहीं है आप ऑनलाइन भुगतान की सुविधा व्यवस्था का लाभ उठा सकते हैं।
सरकार जब मध्यमवर्ग की आवाज को एक बार में सुन सकती है तो हम बिना देर किए सरकार के प्रति इतना प्रतिकार तो कर सकते हैं।
मैं देख रहा हूं सोशल मीडिया पर दानदाताओं के रूप में अपेक्षा अधिक की जा रही है सवाल कई बार किया कि भाई अभी तक आपने क्या किया है इस पर कोई उत्तर नहीं मिल रहा। विधायकों सांसदों मंदिरों व्यापारियों वृहद उद्योगों उद्योगपतियों ने बहुत कुछ करना शुरू कर दिया है इस पर टीका टिप्पणी भी हो रही है जो अलग बात है परंतु सबके मन में उस समाज के प्रति संवेदनाएं जाग रहे हैं जिसमें ऊपर लिखे वर्ग स्वयं शामिल है। मजदूरों गरीबों से एक भी पैसा लेने की जरूरत बिल्कुल नहीं है हम 60% से अधिक मध्यमवर्गीय लोग अपने संसाधन से छोटा सा काम आसानी से कर सकते हैं। वरना हम भिक्षुक के रूप में नजर आएंगे।
अगले आर्टिकल तक मुझे उम्मीद है बहुत सारा पैसा रेडक्रॉस सोसायटी या सरकार द्वारा बताए गए खातों में भेजी जा सकती है क्योंकि अभी इसकी बहुत जरूरत है।

27.3.20

विश्व रंगकर्म दिवस 2020 : संस्कारधानी जबलपुर में रंगकर्म यात्रा

उन्नति तिवारी सुभद्रा जी की भूमिका में 

सुप्रभात मित्रों आज विश्व रंगमंच दिवस विश्व रंगमंच दिवस पर संस्कारधानी जबलपुर के रंगमंच से जुड़े सभी रंग कर्मियों को नमन करता हूं
मित्रों भारतीय रंगकर्म भरतमुनि की परंपराओं का वर्तमान स्वरूप है। भारतीय रंगकर्म की लोकप्रियता का मूल आधार है उसका बहु आयामी स्वरूप। ऐतिहासिक समसामयिक पौराणिक राजनीतिक सामाजिक धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों पर रंगकर्म की प्रयोग सर्वाधिक दक्षिण एशिया के भारतीय उपमहाद्वीप में ही किए गए। यह एक बहुत बड़ा माध्यम बना। सिनेमा ने इसे रिप्लेस कर दिया लेकिन गर्व है संस्कारधानी पर जिसने रंगकर्म को यथावत जीवित रखा जीवित ही नहीं रखा बल्कि उसमें संवर्धन और परिवर्धन के निरंतर प्रयोग किए गए। अब तो संसाधनों से संपन्न है हमारा थिएटर।
अगर मिर्जा साहब के एक शेर पर पैरोडी बनाने को कहा जाए तो मैं कहूंगा
हैं और भी दुनिया में थिएटर बहुत अच्छे
कहते हैं कि जबलपुर का अंदाज ए बयां और ।।
   जी हां जबलपुर थिएटर का एकमात्र बहुत बड़ा विश्वविद्यालय है चल रहा है नहीं दौड़ रहा है काला घोड़ा नाट्य उत्सव ले लीजिए अगर जबलपुर की मौजूदगी वहां नहीं होती है तो शायद वे असहज महसूस करते हैं सुना है मैंने पुष्टि आप कीजिए कैसा होता है निश्चित होता ही होगा दर्शकों को अभाव महसूस।
मुझे पता नहीं क्यों थिएटर ने आकृष्ट किया। थिएटर में मैं सक्रिय रुप से घुस जाना नहीं चाहता था पर एक बार हिम्मत की। तस्लीमा नसरीन की लज्जा पर कुछ लिखने की लिखा भी कि मुझसे मेरे छोटे भाई सोनू पाहुजा ने कहा - भैया मैंने लज्जा पर लिखा है सोनू को यह नहीं मालूम था कि मैं भी लिख रहा हूं। दिमाग में दो बात चल रही थी एक यह कि सोनू थिएटर का अनुभवी है दूसरा यह कि मुझसे छोटा है अब अपनी स्क्रिप्ट रहने दो सोनू को सपोर्ट करते हैं !
   मैंने अपनी अंदर की बात सुनी और वैसा ही किया जैसा अंतस में गूंज रहा था। सोनू ने अच्छी स्क्रिप्ट तैयार की थी । अच्छा लगा वैसा ही अच्छा लगा जैसे मेरे बड़े भैया मेरे किसी काम को देख कर खुश होते हैं। थिएटर के इतिहास से स्वर्गीय धर्मदास जायसवाल मेरे काका श्री उमेश नारायण बिल्लोरे तथा उनके इष्ट मित्रों के जरिए हल्का सा जुड़ा हुआ था बचपन में। पर आज 10 साल के बच्चे को उस समय इतना ज्ञान ना था। पर युवा होते होते आकाशवाणी में रेडियो रूपक के ऑडिशन में जाने का मौका मिला। कवि के रूप में जो आकाशवाणी वालों से जान पहचान हो गई थी तब आकाशवाणी का कार्यालय रसल चौक के पास हुआ करता था। फेल हो गया वॉइस टेस्ट में पर दुख नहीं हुआ मालूम था रेडियो नाटक के लिए प्रशिक्षित नहीं हूं और ना ही योग्य। और फिर आकाशवाणी से मुझे काव्य पाठ के लिए नियमित बुलाया तो जाता ही है?
   हां दिमाग में एक बात जरूर आ गई कि बच्चों के लिए ऐसे प्रशिक्षण की जरूरत अवश्य है। कुछ दिनों बाद विवेक पांडे ने और अरुण पांडे जी ने विवेचना के बैनर के साथ बच्चों के थिएटर का प्रयोग किया। अच्छा लगा बहुत नेचुरल बच्चे जिस तरह से मेहनत करते नजर आए मुझे नहीं लगता कि इतनी मेहनत कोई करता होगा। नाटक पूरी तरह तो याद नहीं है परंतु हां राजा का बाजा मृच्छकटिकम् जैसे नाटक उस वर्कशॉप में तैयार किए गए थे और उनके प्रदर्शन के दिन बच्चों में बहुत उत्साह था। अब इसकी पुष्टि हो चुकी थी की थिएटर के विकास के लिए बच्चों के थिएटर  के विकास की जरूरत है।
  सच मानिए, मुझ में बिल्कुल भी थिएटर देखने का शऊर नहीं है निहायती पागल हूं जानते हैं आपने यह क्या कह रहा हूं ? आपको लग रहा होगा कि थियेटर मैं बार-बार उठने की आदत होगी मुझे नहीं ऐसा नहीं है मैं नाटक के हर एक कैरेक्टर में घुस जाना चाहता हूं। कई बार मनचले आंसू रुकते ही नहीं भाग लेते हैं कब तक रुमाल गीला करता रहूंगा अब आप ही बताइए ना ।  इसका अर्थ जानते हैं- गंभीर नाटक दिल पर सीधे अटैक करते हैं रुला देते हैं मेरे साथ तो कम से कम ऐसा ही हुआ है।
      पिछले वर्ष भी मैंने बताया था कि भोपाल के रंगकर्मी श्री के जी त्रिवेदी Kg Trivedi कहते हैं कि जबलपुर का थिएटर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से मजबूत है . तो दूसरी ओर काला घोड़ा नाट्य फेस्टिवल जबलपुर की अपनी अमिट छाप है इसकी पुष्टि कई बार हो चुकी है।मराठी थिएटर पारसी थियेटर बंगाली थिएटर अपनी अपनी अलग अलग छवि प्रस्तुत करते हैं परंतु संस्कारधानी के नाटक की अपनी पहचान है लोग स्वीकारते हैं और कहते भी हैं .
    सीमित साधनों में बाल भवन Balbhavan Jabalpur  जो कर सकता है वह कर रहा है. संस्थान की अपनी मजबूरियां जो भी कुछ दिया है यकीनन जरूरत थी जिसकी . और वह इसलिए क्योंकि भाई संजय गर्ग ने कभी कहा था- आप 4 महीने बच्चों को तथाकथित पर्सनालिटी डेवलपमेंट कोर्स में भेज दो अथवा एक थियेटर वर्कशाप में भेज दो, अच्छा रिजल्ट थिएटर से ही मिलेगा। थिएटर में विविध विधाओं के प्रशिक्षण के चलते बच्चों में मल्टीपल टैलेंट जल्द ही उभर आता है।
इस विषय पर सबके अपने अपने विचार होते हैं तो आइए कुछ विचार यहां शेयर करना चाहूंगा
निर्देशक एक्टर श्री वसंत काशीकर ने कहा- विश्वरंगमंच दिवस पर मेरा संदेश इस संक्रमण काल में समूची मानव जाति  ,धर्म,राजनीति,जातपात,मज़हब  से  उठकर एकजुट होकर जिये। हम पुनः अपनी जड़ों को तलाशें,हम रंकर्मी अपने नाट्यप्रदर्शन एवम अपने व्यवहार से ये  संदेश प्रत्येक दर्शक के साथ ही  सारे देशवासियों के बीच सम्प्रेषित करने का संकल्प ले।
किस-किस का नाम का उल्लेख किया जाए  समझ में नहीं आ रहा परंतु हर एक समूह अपनी अपनी विचारधाराओं धाराओं तथा तालमेल की वजह से रंगकर्म कर रहा है अच्छा लगा . अब तो पूजा केवट मनीषा तिवारी जैसी बेटियों की निर्देशन में हाथ अजमाने लगी हैं । अगर कोरोना वाला यह माहौल नहीं होता तो अब तक सबसे ज्यादा शोरगुल थिएटर वाली कक्षा में ही होता। बहुत छोटे-छोटे बच्चे थिएटर में आ रहे हैं हां एक प्रयोग और जिसका जिक्र करना बहुत जरूरी है नाट्यलोक ने म्यूजिक पिट को कंटेंट के साथ शामिल करने की जोखिम उठाई है। संजय सफल भी हैं वे इसमें, सफलता की वजह है डॉ शिप्रा और उनकी टीम बहुत मेहनती हैं। रवींद्र तरुण अक्षय शुभम देखते ही देखते पता नहीं कितने बड़े हो गए इनके ज्ञान को सेल्यूट करता हूं यह अलग बात है कि पूजा और अक्षय एमपीएसडी में के छात्र रहे हैं । बाकी तो एकलव्य की तरह सीखते रहे ऐसा नहीं है कि उन्हें गुरु नहीं मिले बस एक पाठशाला जो जानकी रमन में लगती है दूसरी जो चंचल बाई कॉलेज में बरसों से लग रही है तीसरी परसाई भवन में जिसका जैसा कमिटमेंट हो वह वैसा सीख रहा है कर रहा है इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं पर हां बच्चों से आग्रह अवश्य करूंगा कि तुम्हारी धारा या विचारधारा जो भी हो तुम्हारा थिएटर के प्रति निष्ठावान होना जरूरी है। थिएटर कभी भी घमंड और वैमनस्यता का आधार नहीं हो सकता आत्मप्रदर्शन का भी नहीं थिएटर में स्टारडम नहीं होता 2 मिनट के अभिनय में ही प्रतिभा को परख लिया जाता है। यहां मूर्खता होगी कि स्वयं को आप यह सिद्ध करते रहो कि आप महान कलाकार हो । आपकी महानता आप की श्रेष्ठता आपकी अभिनय क्षमता आपकी अभिनय और थिएटर के प्रति प्रतिबद्धता को साबित करने के लिए आप खुद आगे ना आए हम हैं ना आप को बढ़ावा देने वाले । खुले शब्दों में कहूं तो कान खोल कर सुन लो मेरे बच्चों तुम्हारी श्रेष्ठता का मूल्यांकन तुम्हारी क्षमता करेगी जब आत्म प्रशंसा करते हो तो ऐसा लगता है जैसे तुम अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश कर रहे हो। एक ऐसे समंदर में डूब रहे हो जहां से तुम बच नहीं पा रहे और यही तुम्हारी रंगकर्म का अवसान हो जाता है।
 रंगकर्म किसी विचारधारा से जुड़ा नहीं होना चाहिए यह भी एक जरूरी बात थी जो आपसे कह दी। रंगकर्म का एबीसीडी सीखने के बाद एक्स वाई जेड का अभिनय करना छोड़ना होगा। यहां यह भी स्पष्ट कर दूं कायिक  कैमरों यानी  आंखों के सामने थिएटर होता है जहां हजारों लोग उसे देखते हैं और तुरंत रिएक्ट कर देते हैं जबकि यांत्रिक कैमरे के सामने फिल्में होती हैं जिसमें आपकी प्रतिभा में कृत्रिम तौर पर बदलाव भी संभव है रंगकर्मी अधिक मेहनती होता है फिल्मी कलाकार के सापेक्ष
पर जानते हो बहुत सारी फिल्में आधी अधूरी देखकर सिनेमा हॉल से कई बार बाहर  निकला हूं पर नाटक देख कर भाव से भरा हुआ ही लौटा हूं। ध्यान रखिए रंगकर्म सबसे प्रभावशाली विधा है । रंगकर्म सच में आपका खून पसीने के रूप में बहाता है । कठिन साधना है इसलिए करने योग्य है सरल कार्य (फ़िल्म तो ) अभिषेक बच्चन भी कर लेता है।
  विश्व रंगमंच दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं बधाई और आपकी प्रतिबद्धता के प्रति मेरा सिर झुका हुआ है उनके  सम्मान में जो कमिटेड हैं।
बच्चों से अनुरोध है अपनी जमीन पर बने रहना क्योंकि जड़े जमीन के जितना अंदर जाती हैं उतना ही तुम्हारा तना मजबूत होगा और मजबूत बनोगे वरना बहुरूपिया नजर आओगे ना कि रंगकर्मी

26.3.20

आपदाओं से जूझने हमें चिकित्सा व्यवस्था सुधारनी ही होगी

फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा को फ्री शिक्षा और स्वास्थ्य की गारंटी दी थी. कृति हजार जनसंख्या पर 8 चिकित्सक क्यूबा में मौजूद है. जबकि भारत में प्रति हजार के विरुद्ध मात्र पॉइंट 008 चिकित्सक मौजूद है. क्यूबा और भारत की चिकित्सकीय व्यवस्था बेहद बड़े अंतराल के साथ है. बावजूद इसके भारत में उसका अपना आयुर्वेदिक सिस्टम भी संचालित है. आजादी के बाद से आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली पर एक लंबी अवधि तक कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया. जबकि इस चिकित्सा प्रणाली को संजीवनी देना इस पर रिसर्च जारी रखना सरकार का दायित्व था. ठीक उसी तरह शिक्षा व्यवस्था पर भी भारत की सोच बेहद लचर और उसके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण महसूस नहीं किया गया है. लेकिन कम संसाधनों और अच्छी शिक्षा प्रणाली के महंगे होने के बावजूद भारतीय युवा खासतौर पर मध्यमवर्गीय परिवारों से निकला युवा अपने संघर्ष और आत्मशक्ति के बलबूते पर वह सब हासिल कर लेता है जो क्यूबा में वहां का युवा हासिल करता है. सुधि पाठकों आज से कुछ साल पहले जब मैं वैचारिक रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के संबंध में विचार कर रहा था तो मैंने पाया कि वास्तव में भारत को अगर बहुत तेजी से आगे बढ़ना है तो उसे अपनी शिक्षा प्रणाली को बेहद सहज और सब्सिडाइज करना ही होगा. परंतु आरक्षण और उपेक्षा जैसी व्यवस्था के कारण शैक्षणिक व्यवस्था चरमरा गई है. इंजीनियरिंग और तकनीकी शिक्षा के कई सारी केंद्र खुले परंतु अधिकांश अब पढ़ने वालों  की कमी जैसी स्थिति में है. कला साहित्य अर्थशास्त्र समाजशास्त्र साइकोलॉजी भाषा विज्ञान जैसे विषयों के प्रति भारतीय मध्यवर्ग की उपेक्षा के कारण की शिक्षा का स्तर अचानक गिरा है. निजी कंपनी के मैकेनिक बन कर रह जाते हैं इंजीनियर. जबकि चिकित्सकों की आवश्यकता है और आपूर्ति के मामले में शैक्षणिक व्यवस्था में ऐसा कोई सकारात्मक विचार 45 के बाद से अब तक जनसंख्या के सापेक्ष कोई खास परिवर्तन नहीं आया है. अपने उक्त आर्टिकल में मैंने यह भी लिखा था कि वास्तव में संपूर्ण विकास के लिए अन्य विषयों पर ना तो सरकार का ध्यान है ना ही अभिभावकों का. परंतु सक्षम एवं उच्च स्तरीय आय समूह के बच्चे विदेशों से इन विषयों पर शिक्षा विदेशों से प्राप्त कर सकते थे और मध्यवर्ग पूर्णतः है कुकुरमुत्तों जैसे खेतों में भी बने इंजीनियरिंग महाविद्यालयों ने पढ़ाई पूर्ण करते हैं. और अब भी पढ़ाई के सापेक्ष अधिकतम 25 से 30000 प्रतिमाह का पैकेज हासिल कर पा रहे हैं. अधिकांश बच्चे साइबर लेबर की तरह काम कर रहे हैं. यहां सरकार ने उन विषयों पर ध्यान ही नहीं दिया जो विषय निकट भविष्य में उपयोग में आने वाले थे. कुल मिलाकर विदेशों में वह कर साइबर लेबर की तरह काम करने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर इतना कुछ हासिल नहीं कर पाए जितना कि डॉलर से भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाया. वैसे यह एक अच्छी बात है परंतु इन साइबर लेबर के दिए अगर भारत में ही पहले बाजार उपलब्ध करा दिया जाता तो वे लेबर की तरह काम ना करके एक प्रोपराइटर की तरह काम करते. अब हम मूल प्रश्न पर आते हैं कि क्या भारत की चिकित्सा व्यवस्था फुल प्रूफ है ? तो दावे के साथ यह कहा जा सकता है कि भारत की चिकित्सा व्यवस्था फुलप्रूफ कदापि नहीं है.
 अपने पुराने लिख में सरकार को हमने आगाह कर दिया था कि अगर कोई महामारी फैलती है तो उसका नुकसान अगर हम उठाएंगे तो उसका मूल कारण हमारी चिकित्सा व्यवस्था में चिकित्सकों का अभाव ही होगा.
महामारी से जो स्थिति उत्पन्न हो सकती है वह आर्थिक व्यवस्था पर गहरा संकट है. अर्थशास्त्री और विचारक मानते हैं कि पूरे विश्व भर में कोरोना वायरस से फैली महामारी विश्व की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है. कोई चमत्कार ही है जो महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रख सकता है परिस्थितियां अनुकूल नजर नहीं आ रही है.
आज दिनांक 24 मार्च 2020 को भारत के प्रधानमंत्री ने संपूर्ण भारत में लॉक डाउन को 21 दिन के लिए और बढ़ा दिया है. यह निर्णय बेहद कठोर होगा परंतु बेहतर व्यवस्था और मानवता की रक्षा के लिए यह जरूरी है इसके अलावा कोई अच्छा विकल्प नजर नहीं आ रहा. इसका प्रभाव निश्चित तौर पर अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है. लेकिन अगर यह नहीं होगा तो अर्थव्यवस्था पर जो प्रभाव पड़ेगा वह और भी भयंकर हो सकता है. विश्व की सरकारों के ऐसे निर्णय सराहनीय है क्योंकि अगर मानव शक्ति मौजूद रही तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता है. पाठको यहां समझने की जरूरत है कि हर एक राष्ट्र को स्वास्थ्य और शिक्षा पर अधिकतम खर्च करते रहना चाहिए. भारत सरकार की अर्थव्यवस्था शुरू से जीवन बीमा और बचत पर केंद्रित रही इसके अपने फायदे थे लेकिन सामान्य बीमा कंपनियां विकसित राष्ट्रों में जिस तरह से सक्रियता से काम करती हैं भारत वहां बहुत पीछे नजर आता है. हर सरकार को चाहे वह किसी छोटे राष्ट्र की सरकार हो यह भारत जैसे विकासशील राष्ट्र की सरकार हो उसका कोई भी दृष्टिकोण हो उसे भविष्य के प्रावधानों खासतौर पर युद्ध महामारी और प्राकृतिक आपदा से जूझने के लिए आवश्यक प्रावधान अब कर ही लेने होंगे. खासतौर पर चिकित्सकीय व्यवस्था फुलप्रूफ होनी चाहिए. शायद विश्व के राष्ट्र इस भाषा को समझ पाएंगे.
भारत को क्या करना चाहिए? इस प्रश्न के उत्तर में केवल यह कहना चाहूंगा कि जिस तरह से भारत जैसे विकासशील देश ने तरक्की का रास्ता अपनाया है ठीक उसी तरह सामाजिक मुद्दों पर नजर डालना बहुत जरूरी है. प्रत्येक जीवन को अधिकार है कि उसे प्राकृतिक मृत्यु का अधिकार सुनिश्चित कर देना चाहिए. आपदा युद्ध और महामारी जैसी स्थितियों से जूझने के लिए सदा तैयार होना चाहिए. इसके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य पर ना केवल अधिक खर्च करना होगा बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान रूप से शिक्षा के अधिकार का सृजन जरूरी है.
सरकार को उसकी अर्थव्यवस्था में सपोर्ट करने वाले मध्यमवर्ग जिसका सहयोग सकल घरेलू उद्योग एवं बचत में 60 प्रतिशत से 70% तक की भागीदारी होती है के अधिकार सुनिश्चित करने होंगे.
मित्रों- इसके अतिरिक्त आयुष्मान योजना की लाभ की परिधि में लाने के लिए 10 करोड़ से अधिक और 50 करोड़ से कम आबादी को लाना ही होगा. परंतु सरकार की माली हालत यह आंकड़ा एकदम हासिल नहीं कर सकती. उसे 50 करोड़ की आबादी को आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत शामिल करने के लिए कम से कम 5 साल की कोई कार्य योजना प्रस्तावित की जानी चाहिए और उस पर काम भी करना चाहिए. कराधान व्यवस्था को यद्यपि पिछले 10 वर्षों में काफी लाभकारी बनाया गया है किंतु इस पर और काम करने की जरूरत है.
आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली को अनदेखा करना भारत को बहुत महंगा पड़ा है. मुझे प्रतिवर्ष कफ और कोल्ड के कारण अपनी वार्षिक आय का 7% वह करना होता था. इस वर्ष मुझे सर्दियों के समय आयुर्वेदिक इलाज के जरिए यह खर्च मात्र ₹500 के भीतर करने का मौका मिला. यहां व्यक्तिगत उदाहरण इसलिए दिया गया ताकि आयुर्वेदिक प्रणाली को सरकार को स्वीकार देना चाहिए और उसमें अनुसंधान को बढ़ावा देना  इलाज के लिए योग की तरह प्रोत्साहन देना जरूरी है.
सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे इतिहास में एलेग्जेंडर यानी सिकंदर को बचाने वाला बेहद साधारण सा वैद्य था. अर्थात हमारी प्राचीन चिकित्सा व्यवस्था को प्रोत्साहन एवं उसके संवर्धन की अत्यंत जरूरत है. यदि हम कोरोना वायरस  पर समय रहते काबू ना पा सके तो मानिए कि हम स्वयं को माफ़ नहीं कर पाएंगे.

16.3.20

"Don't Panic" - Aabhas-Shreyas Joshi

  ( This video recorded by Girish billore for district administration Jabalpur )
"Don't Panic" - Aabhas and Shreyas appeal on Corona Virus.
Famous singer Abhas and Shreyas Joshi came to Jabalpur to pay tribute To there grandmother late Shrimati Pushpa Joshi. Old old age film artist It was first Holi festival at Jabalpur after Har death. As per DM Jabalpur Mr Bharath Yadav's advice both artist appeal on prevention of coronavirus. Video attached herewith for further necessary action please use this video in Public Interest.

21.2.20

शक्ति आराधना के बिना शिव आराधना स्वीकारते नहीं

स्वर :- इशिता विश्वकर्मा

जीवन सृजन का कारण शिव है संरक्षक भी वही है संहार कर्ता तो है ही । इतना महान क्यों है...? सृजन का कारण शक्ति का सहयोग है इसलिए शिव बिना शक्ति की आराधना के अपनी आराध्या को स्वीकार नहीं करते। इसका आप मनन चिंतन कर सकते हैं फिलहाल मेरी यही अवधारणा है
जीवन में सब कुछ वेद उपनिषद पुराणों के अनुकूल घटता है । सनातन यही कहता है कि *एकsस्मिन ब्रह्मो :द्वितीयोनास्ति* शिवरात्रि इसी चिंतन का पर्व है । शिव शून्य है अगर शक्ति नहीं है साथ तो उनका कोई अस्तित्व नहीं । शिव अपनी पूर्णता अर्धनारीश्वर स्वरूप में रेखित करते हैं ।
*My friend asked me Tar bhai I dont know how to discover Lard Shiva*
मित्र से पूछा....
*आज घर जाकर पत्नि से पूछना तुम दिनभर में घर के कितने चक्कर लगाती हो लगभग 300 से अधिक की जानकारी मिलेगी । फिर अनुमान लगाना पता चलेगा वो 15 से 20 किलोमीटर वो चली 30 दिन में वो....450 से 600 किलोमीटर चलती है*
Yes
*तुम 2 किलोमीटर से अधिक नहीं चलते यानी महीने में केवल 60 या 65 किलोमीटर बस न ।*
सच है ऐसा ही है !
तब असाधारण कौन तुम या पत्नि ?
बेशक पत्नी ही है ।
जब वह जन्म देती है तो उसे कितना कष्ट होता है इसका अनुमान है आपको बच्चे तो होंगे तुम्हारे..?
अनुमान तो नहीं लगा सकता क्योंकि उसको हम महसूस नहीं कर पाते हैं पुरुष है ना पर सुना जरूर है...!

तो सुनो ये सब वही सह सकता है जिसमें धैर्य क्षमता और प्रबंधन के गुण हों ।
सच है पर इसका लार्ड शिवा से क्या रिश्ता ? उसने पूछा ।
उत्तर ये था हमारा-..रिश्ता है तुमको ऊर्जा कौन देता है और फिर उस ऊर्जा का स्तर मेंटेन कौन रखता है ?
    जन्मते ही मां फिर बहन और माँ फिर पत्नी ।
उसने कहा... हाँ सच है !
तो लार्ड शिवा की शक्ति का स्रोत नारी ही है ।
पर वो तो अदृश्य हैं ?
न बिल्कुल नहीं हम हैं उनका स्वरूप हर प्राणी में होता है । हम शिवांश हैं ।
    हम व्यवस्थापक हैं उपार्जन के उत्तरदायी भी हैं । तो भारतीय सन्दर्भ में नारी हमारी शक्ति है....यानि हमारा युग्म सरल शब्दों में स्त्री पुरूष संयुक्त स्वरूप का अस्तित्व भौतिक रूप में लार्ड शिवा है । अब इसमें शिव को डिस्कवर करने की ज़रूरत क्या ?
बायोलॉजिकल वो अलग है भावात्मक रूप से एक अंतर है कि *नारी आल टाइम केयरिंग है यानि सबकी चिंता करती है ।
    तुम्हारी पत्नी तुम्हारी मां भी है । सदा करुणा भाव से तुम्हारे बारे में चिंतन करती है ।
अगर कोई नारी आपकी बायोलॉजीकल मदर न भी हो तो वो सबकी केयर करती है । उसे एक खास नज़रिए से मत देखो।
     इंडस वैली सिविलाइजेशन की खुदाई में कुछ देवियों की मूर्तियां मिलीं और एक शिव लिंग जो शिव का प्रतिमान है । के वैदिक काल में भी यही था यज्ञादि कर्म वामा के बग़ैर महत्वहीन थे ।
    गार्गी मैत्रेयी जैसी हज़ारों देवीयों को रेखांकित किया गया है सनातन शास्त्रों में ।
कुल मिला कर अगर शिव को डिस्कवर करना है आत्म अनुशीलन करो और  शक्ति-स्रोत को डिस्कवर करो माँ के अस्तित्व को प्रधान स्वीकृति दो । फिर देखना शिव स्वयम तुम्हारे चिंतन में आ बैठेंगे ।
          मित्र के साथ हुए इस संवाद में उसका एक सवाल आया -"तुम कहते हो हमेशा नारी को ईश्वर ने वो दिया जो पुरुष को कभी नहीं मिलता ?
*शिव ने जो नारी को सहज दिया वो पुरुषों को घोर तपस्या के बाद भी न मिल पाएगा... यह सत्य है नारी को सार्वकालिक मातृत्व भाव दिया है ब्रह्म ने । जो उसके साथ हर पल रहता है... और तुमको भी एक अति पावन भाव दिया है शमशान वैराग्य वह भी अधिकतम 10 मिनिट का वो भी केवल तब तक जब तक तुम चिता के सामने होते हो .. है न..?*
समय अवधि की तुलना में सर्वाधिक किसे दिया ब्रह्म ने सिर्फ नारी को न ?
हाँ सच है ...!
💐💐💐💐💐💐
*सुधि पाठको आज केवल इतना ही पर ध्यान रहे यह शिव पूजन ही नहीं शक्ति के साथ शिव पूजन का पर्व है इसे प्रतिदिन दोहराना होगा*
【आज का आलेख का स्रोत मित्रों से कुछ दिन पूर्व हुए संवाद का प्रतिफल है ।】

5.2.20

ये क्या कहा तुमने

Yah kya kaha Tumne
यह क्या कहा तुमने यह मंजर वह नहीं है सोचते हो जैसा तुम।
कोई हुक्मरान
हवाओं से नहीं कुछ पूछता है....!
ना कोई जंजीरें लिए घूमता है...!!
ना रंगों पे कोई बंदिश
ना लहरें गिनता है कोई?
वह अकबर था जिसका...हुक्म था लहर गिन लो !
किसी ने कहा था
जा रहे हो दर्शन को
जरा सा धन भी गिन दो।
इस गुलशन के जितने रंग है
सब हमारे और तुम्हारे हैं।
हमारे बुजुर्गो ने
खून देकर
ये सब रंग संवारे हैं।
इशारों में जो तुमने कह दिया...!
तुम्हारी सोच को क्या हो गया है?
बता दोस्त क्या कुछ खो गया है?
तुमसे उम्मीद ना थी। नज़्म तुम ऐसी लिखोगे ?
ज़हीनों की बस्ती में अलहदा दिखोगे ?
गोया विज्ञान तुमने रंगों का पढ़ लिया होता
सात रंगों के मिलने का मतलब गढ़ लिया होता ।
हवा और लहरें
रुक कि जो सैलाब होती हैं
तो जानो
बदलाव की हर कोशिशें आफताब होती हैं।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

19.1.20

बिना विवेकानंद जी को समझे विश्व गुरु बनने की कल्पना मूर्खता है


100 से ज्यादा वर्ष बीत गए , विवेकानंद को समझने में भारतीय समाज और राजनीति दोनों को ही बेहद परिश्रम करना पड़ रहा है मुझे तो लगता है कि अभी हम समझ ही नहीं पाए कि विवेकानंद  किस मार्ग के पथिक रहे और इस मार्ग पर चलने के लिए उन्होंने भारत सहित विश्व को प्रेरणा दी । अगर ऐसा होता तो विवेकानंद के बताए मार्ग पर हम स्वतंत्रता के पहले से ही चलने लगते और अब तक हम उस शिखर पर होते जिस का आव्हान आज भारत कर रहा है.... विश्व गुरु की धरती पर विश्व गुरु का टैग लगाना बहुत मुश्किल नजर आ रहा है तब 19वीं शताब्दी में स्वामी ने साफ कर दिया था कि कैसा सोचो यह सनातन में साफ तौर पर लिखा है उसके अभ्यास में लिखा है कैसा जिओ इस बारे में स्वामी ने साफ कर दिया था यूरोप की यात्रा से लौटकर जब उन्होंने लोक सेवा का संकल्प लिया और पूरे भारत में एक अलख सी जगा दी थी । भारत में स्वामी के उस सानिध्य को भी अनदेखा किया जिसका परिणाम आप देख रहे हैं । अगर विवेकानंद को समझने की कोशिश अब तक नहीं हुई है तो करना ही होगा बच्चों को इस तरह के पाठ पढ़ाने ही होंगे अब जब यह एलानिया तौर पर कहा जा रहा है कि भारत विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसरित है जैसा आप कह रहे हो नेता कह रहे हैं मुझे लगता है कि बुद्ध कृष्ण महावीर और विवेकानंद को अपने साथ रखें बिना ऐसा कहना भी मूर्खता है । खुले तौर पर यह कह देना चाहता हूं कि हमें सनातन के सार को जो इन महापुरुषों ने हमें दिया है समझ लेना चाहिए खासतौर से विवेकानंद जी को तो समझना बेहद जरूरी है मुझे उम्मीद है कि बिना इन महान हस्तियों को समझे आप एक ही बिंदु पर खड़े होकर व्यायाम शाला में ट्रेडमिलिंग करते हुए नजर आते हैं । भारतीय समाज जिसमें हिंदू मुसलमान सिख ईसाई पारसी आदि आदि मतों को मानने वाले रहते हैं.... सबको स्वामी के बारे में समझना चाहिए नानक भी इसी श्रेणी में आते हैं खालसा पंथ अध्यात्म की वह महत्वपूर्ण वाटिका है जहां बलपूर्वक मानसिकता और व्यवस्था को बदलने के लिए किए जाने वाले प्रयासों को रोकने का संदेश दिया गया है लेकिन ब्रह्म के सार्वभौम होने का ऐलान भी किया है खालसा सैनिक नहीं समाज का धर्म है अक्सर देखता हूं कि अगर कोई दुखी अगर किसी सिख के सामने होता है तो वह सरदार चैन से नहीं रहता जब तक उसका दर्द अपने हाथों से खत्म ना कर दे सरदार व्याकुल रहता है । लेकिन औसत समाज ऐसा नहीं सड़क पर कोई घायल है मदद के हाथ बहुत कम होते हैं और सवाल पूछने वाली जीभों की संख्या असीमित होती है एक ऐसा ही दृश्य 1989 से अब तक हमने देखा कश्मीरी पंडितों और डोगरा लोगों के प्रति हम कितने संवेदित रही हैं । मामला वर्ग संघर्ष का नहीं है मामला मानवता की रक्षा का है अगर आपका पंथ संप्रदाय समूह विश्व के लिए मानवतावादी अप्रोच से काम नहीं करता तो तय है कि भारत विश्व गुरु तो क्या अपने उपमहाद्वीप के लिए आइकॉन भी नहीं बन सकता । उन संकल्पों का क्या हुआ जो सामाजिक न्याय की दिशा में दिए जा रहे थे बस्तों में बांध दी गई हैं ऐसी कोशिशें यहां आप सोच रहे होगे की ओशो की धरती से ओशो को मैंने इस बात में शामिल नहीं किया हां बिल्कुल नहीं किया मैंने तो गांधी को भी शामिल नहीं किया है उसके कारण है गांधी प्रयोग धर्मी  थे । ओशो भी ऐसा ही कुछ करने के गुंताड़े में थे। गांधी के प्रयोग भी समाज को लेकर हुआ करते थे उसने भी वही किया परंतु ना तो अहिंसा का संदेश बेहद प्रभाव से रह पाया और ना ही समाज सुधार की तह में ओशो जा पाए। ऐसा नहीं है कि मैं इनसे सहमत हूं अथवा इन का विरोधी हूं हो सकता है कि आप में से कोई मेरी इस बात का बतंगड़ बना दे क्योंकि सवाल तो आपके जेहन में बहुत हैं आप आरोप भी लगा सकते हैं शाम 5:00 बजे के बाद घर का टेलीविजन लगाओ तो बच्चे लड़ना ही सीखते हैं चीख चीख कर अपने आप को ब्रह्म वाक्यों को प्रतिपादित करने वाला साबित करने वाला साबित कर देते हैं । मित्रों भारतीय दर्शन यह नहीं है । भारतीय दर्शन उत्कृष्टता के लिए श्रेष्ठतम प्रयासों की पहचान करना सिखाता है भारतीय सनातन भारतीय दर्शन है सनातन को धर्म कहने की गलती मत करो सनातन श्रेष्ठतम अध्यात्म है शुरू की पंक्तियों में ही विवेकानंद ने खुले तौर पर अभिव्यक्त कर दिया था भारतीय दर्शन धर्मों की जननी है । विश्वास नहीं हो तू विवेकानंद की अभिव्यक्ति को देख लीजिए यहां क्लिक कर  क्लिक कीजिए  और समझने की कोशिश कीजिए शायद आपकी मदद से भारत विश्व गुरु बन जाए परंतु मुझे मालूम है ऐसा होगा नहीं होगा तो तब जबकि आप दर्शन के मूलभूत तत्व को पहचानेंगे ।
*ॐ राम कृष्ण हरि:*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

14.1.20

कल्लू का सोशियो-पॉलिटिकल चिंतन : गिरीश बिल्लोरे मुकुल

हमारे कल्लू भाई दिन भर काम धंधे में मशरूफ रहते हैं . सुबह उठते गर्म पानी रखते अपने लिए और दो कप चाय एक खुदके और एक अपनी पत्नी परमेसरी के लिए  बना देते हैं । 
      तब जाकर परमेसरी बिस्तर से बाहर निकलती वह भी ऐसी अंगड़ाई लेते हुए जैसे सपेरे की टोकरी से वह निकलती है  जिसका नाम आमतौर पर हमारे यहां रात में नहीं लेते ।  कल्लू भाई की सुबह  तो यूं ही होती है  । 
      बड़ी मुश्किल परमेसरी रोते झीकते  कलेवा बनाती कल्लू  कलेउ के तौर पर रोटी और अथाना प्याज के साथ निपटा के निकलते और सीधे थोक सब्जी मंडी में जाकर सब्जियां खरीदते फिर.... गली-गली चलाना पड़ता आलू ले लो प्याज ले लो टमाटर ले लो की टेर के साथ  । 
लगभग तीन चार  बजे तक सब्जी बेच के कल्लू भाई ₹500/ -₹600/ तक कमा लेते हैं । 
       उन्हें पेट भरने के लिए इतना पर्याप्त समझ में आता पर हालात तब मुश्किल में आ जाते जब कभी परमेसरी बीमार हो जाती ।  यूं तो वह अक्सर बीमार रहती बीमारी क्या आराम करने की इच्छा हो तो बीमार होने का ऐलान करना परमेसरी की मूल प्रवृत्ति में शामिल है । 
    और इसी के सहारे परमेसरी को  आराम मिल जाता और कल्लू को ओवरटाइम  ।        
कल्लू एक प्रतीक हैं उस निम्न मध्यवर्ग के जिनको सम्पूर्ण विकास का अर्थ नहीं मालूम । अर्थ तो बहुतेरों को भी नहीं मालूम जिनके कांधे पे आज-कल-परसों की ज़वाबदेही है जैसे नेता, मंत्री, संत्री, हीरो हीरोइन, बालक,  किशोर, युवा,  जेएनयू जाधवपुर आदि के छात्र छात्राएं ।
  किसी ने बताया है कि इस साल कल्लू सोच रिया है कि 15 अगस्त नहीं मनाएगा ! उसने टीवी पे देखा लौंडे जिन्ना वाली आज़ादी मांग रए हैं ? गांधी वाली कल्लू के बाप के ज़माने की है वो समझ गया इस बार नई वाली आज़ादी मिलेगी । अरे बच्चे मांग कर रहे हैं तो मिलेगी है न पाठकों ?  
    कोई रैली को विकास मानता है तो कोई आज़ादी को जिन्ना वाली  भी मानने लगे हैं  कल्लू क्या जाने यह दौर भीषण बेवकूफी भरा दौर बस जलाओ पुलिस को गरियाओ सवाल उठाओ ट्रेन फूंको, 
  कल्लू ऐसा नहीं करता वो आंदोलित नहीं वो आदर्श भारतीय है बच्चे के निजी स्कूल की फीस टाइम पर देता है । डाक्टर को फीस देता है भले कर्ज़ा काढ़ के दे देता है । भले ही लोग उसे बेवकूफ समझें 

कल्लू और उसकी बचत
कल्लू 400 से 500 रुपए बचा पाता है । बचत के नाम पर 2500 भी बचाना चाहता है... वो ताक़ि उसका राशिफल सही हो जाए पर न तो बचत होती न ही राशिफ़ल सही निकलता ! 
कल्लू के कुछ दोस्तों ने छपाक कुछ ने देखी तानाजी भी पर उसने नहीं । उसकी यही आदत फ़िज़ूल खर्ची से बचाती है और कमीने मित्र उसे बेवकूफ समझतें हैं । 
       अब बताइए फ़िल्म देखेगा तो उसका पैसा फ़िल्म दिखाने वाले थियेटर मालिक से लेकर प्रोड्यूसर यूनिट में बंट जाएगा । उससे छपाक वाली लक्ष्मी जैसी बेचारियों को क्या लाभ होगा ? कोई चैरिटी थोड़े न कर देगी फिलम कम्पनी बताओ भला ? 
हालांकि कल्लू ने ये सोचके फ़िल्म न देखी हो ऐसा नहीं उसे तो फिल्मी के अर्थशास्त्र अल्फा-बेट भी नहीं मालूम । हमने तो यूं ही लिख दिया ताकि आपको समझ आ जाये 😊 ?
कुल मिलाकर कल्लू की बचत करने की कोशिश की तारीफ करने की कोशिश कर रहा हूँ हमारे मोदी जी बोले थे न मेडिसन-स्कैवर पर हम पर्सनल सैक्टर को विकसित करेंगे ? 
अरे पर्सन अगर बचत करे पाया तो  पूंजी बनेगी, पूंजी बनेगी तो पर्सनल सैक्टर नज़र आएगा पर ये सब भाषण की बातें हैं इन पर अधिक मत सोचो बुद्धू बने रहो कल्लू जैसे । 
और हां आज तो बस इतनी बात जान लो कल्लू फिल्म नहीं देखता है केवल प्रमेसरी और उसका लड़का फ़िल्म देखता है । 

कल्लू का डेमोक्रेसी में योगदान 

           कल्लू मुन्ना चाचा जिसको बोलते उसे वोट दे देता है,उसका एक कारण है ।  हुआ यूँ कि जब से वोट दे रहा है उसका कैंडिडेट हार जाता था । उसे बड़ा दुःख होता , इस दुःख का ज़िक्र उसने मुन्ना चाचा से किया । मुन्ना चाचा ने कहा अबसे हम जिसको कहें उसका ईवी एम बटन दबाना । बस तब से अब तक कल्लू का घोर भरोसा है मुन्नाचाचा पर ।  कल्लू आदर्श निम्न मध्यम वर्गीय भारतीय है ।  जिसे भाषण सुनाई तो देता है पर समझ में नहीं आता ..हाँ उसे पता है जब भी आंदोलन होते हैं तब उसका टैक्स का कुछ रोकड़ जलता है जैसा मुन्ना चाचा बतातें हैं । पर कैसे और क्यों जलता है कल्लू के लिए विचारणीय नहीं । कुल मिला कर कल्लू मस्त लाइफ जी रहा है । उसका बेटा भी सब्जी का ठेला लगाएगा बस और क्या ? कल्लू के बहाने किसको हमने किसको और कितना निपटाया आप खुद समझो मीज़ान लगालो भई ....!

Wow.....New

आखिरी काफ़िर: हिंदुकुश के कलश

The last infidel. : Kalash of Hindukush"" ہندوکش کے آخری کافر کالاشی لوگ ऐतिहासिक सत्य है कि हिंदूकुश पर्वत श्रृंख...