5.2.20

ये क्या कहा तुमने

Yah kya kaha Tumne
यह क्या कहा तुमने यह मंजर वह नहीं है सोचते हो जैसा तुम।
कोई हुक्मरान
हवाओं से नहीं कुछ पूछता है....!
ना कोई जंजीरें लिए घूमता है...!!
ना रंगों पे कोई बंदिश
ना लहरें गिनता है कोई?
वह अकबर था जिसका...हुक्म था लहर गिन लो !
किसी ने कहा था
जा रहे हो दर्शन को
जरा सा धन भी गिन दो।
इस गुलशन के जितने रंग है
सब हमारे और तुम्हारे हैं।
हमारे बुजुर्गो ने
खून देकर
ये सब रंग संवारे हैं।
इशारों में जो तुमने कह दिया...!
तुम्हारी सोच को क्या हो गया है?
बता दोस्त क्या कुछ खो गया है?
तुमसे उम्मीद ना थी। नज़्म तुम ऐसी लिखोगे ?
ज़हीनों की बस्ती में अलहदा दिखोगे ?
गोया विज्ञान तुमने रंगों का पढ़ लिया होता
सात रंगों के मिलने का मतलब गढ़ लिया होता ।
हवा और लहरें
रुक कि जो सैलाब होती हैं
तो जानो
बदलाव की हर कोशिशें आफताब होती हैं।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

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