21.5.16

नारद जयंती पर आह्वान गीत

                             


संवादी ऋषि तत्वज्ञानी, तुम पराध्वनी के विज्ञानी
हे नारद आना इस युग में, युग भूल रहा अन्तसवाणी
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सत्य सनातन घायल है, धर्म ध्वजा खतरे में है
मानवतावादी चिंतन भी, बंदी है ! पहरे में है..!
मुदितामय कैसे हों जीवन ? हैं ज्ञान-स्रोत ही अभिमानी !!
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नीति के अभिभाषक हो तुम, हो युग चिन्तक अनुशासक तुम
बिखरा बिखरा युग का चिंतन, आ जाओ वीणा वादक तुम !
युग को समझना है मुनिवर – क्या ब्रम्ह है क्या अन्तसवाणी ?
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हे कथाकार हे चिरज्ञानी हे युगदृष्टा अब आ जाओ ,
इक तान छेड़ दो वीणा की , चिंतन करताल बजा जाओ ..!
मेरे मन बात पढ़ो ऋषिवर ,  मुझको सुनना  अमृतवाणी !!
  


      

19.5.16

पिघला कभी जो जाके, समन्दर में सो गया









पिघला कभी जो जाके, समन्दर में सो गया
और जब तपा तो देखिये आकाश हो गया...!
पानी हूँ यकीं कीजिये प्यासों के लिए हूँ 
सेहरा में बन *मिराज मैं एहसास हो गया !!
चेहरे से जब हटा तो , बेनूर हुए आप
उतारा जो जेवरात से विश्वास खो गया !!
मुझको यकीं नहीं है उनपे न आप पे 
तट पे मेरे जो तेरा , रहवास हो गया !!
चकवे की तरह प्यासे जब भी  रहेंगे आप -

समझूंगा आपको मेरा, आभास हो गया .!!

*मिराज= मारीचिका

15.5.16

महिला सशक्तिकरण के लिए वैदिक आज्ञाएँ : डा उमाशंकर नगायच

भारतीय सांस्कृतिक सामाजिक परिवेश नारी के प्रति कभी भी नकारात्मक न था. इस मुद्दे की पड़ताल तब अधिक आवश्यक है जब सनातनी व्यवस्था के विरुद्ध एक मुहिम मुसलसल जारी हो . जब ये कहा जा रहा हो भारत में असहिष्णुता सर चढ़ के बोल रही है . न केवल मनु-स्मृति वरन सभी अन्य सनातनी  धार्मिक आज्ञाओं अनुदेशों को गलत ठहराया जा रहा हो तब ऐसे विमर्श की अनिवार्यता को  नकारा नहीं जा सकता .   विचार-कुम्भ उज्जैन से लौटकर मुझे महसूस हुआ कि- हम नारी विमर्श को आगे ले जाते समय देश की प्राचीन  एवं अर्वाचीन पृष्ठभूमि को अवश्य देखें . आयातित विचारों में सन्निहित  बिन्दुओं एवं  अनाधिकृत मुद्दों से इतर भारतीय सांस्कृतिक सामाजिक परिवेश के पासंग पर रख कर विमर्श आवश्यक है . यह दायित्व  डा. नगायच ने बखूबी निबाहा है . आप आलेख अवश्य देखिये 
















9.5.16

शारदा दिव्यांग नहीं है भई..!


फेसबुक पर जितेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा प्रस्तुत पोस्ट में नेत्र दिव्यांग बेटी अलीराजपुर शारदा की कहानी ने मन को स्पर्श किया आप भी देखिये 
 कुछ साल पहले कलेक्टर से मिली थी और उनसे पढाई में कुछ मदद करने की अपील की .. कलेक्टर ने तुरंत आदिवासी विकास निधि से दस हजार रूपये का ड्राफ्ट दिया और आगे भी मदद करने का आश्वासन दिया ..फिर कुछ ही महीनों बाद शारदा का देना बैंक में चयन हो गया .. और नौकरी मिलते ही वो दस हजार का ड्राफ्ट बनवाकर सरकार को वापस करने के लिए कलेक्टर को दी .. जबकि कलेक्टर ने उसे उधार के तौर पर नही बल्कि सरकारी सहायता के तौर पर दिए थे ... उसने कहा की अब मै अपने पैरो पर खड़ी हो चुकी हूँ ..इसलिए मेरा फर्ज है की सरकार की मदद को मै सरकार को वापस कर दूँ .

8.5.16

लाडो अभियान के समर्थन में आए बाल एवं किशोर कलाकार


“अभी ब्याह की क्या है जल्दी पढलिख जाने दो ”
सम्भागीय बालभवन जबलपुर द्वारा 7 से 9 मई 2016 तक मज़दूर बाहुल्य क्षेत्रो में नुक्कड नाटकों का प्रदर्शन किया जावेगा . इस क्रम में सात मई 2016 को नुक्कड नाटक  का प्रदर्शन  सिविक सेंटर स्थित शापिंग माल के सामने किया गया . ........
आज प्रदर्शित नाटक  में पूर्व छात्र अक्षय ठाकुर, मनीषा तिवारी, शुभम जैन शालिनी अहिरवार, अंशुल साहू, बालकलाकार क्रमश: श्रेया खंडेलवाल (बालश्री नामिनी ),पलक गुप्ता,   समृद्धि असाटी, सागर सोनी, इसिका प्रसाद,वैशाली बरसैंया  , वैष्णवी   बरसैंया  ने अभिनय किया है 
विस्तार से देखिये यहाँ ... 

SQUEAL : Jabalpur Balbhavan



6.5.16

मैं .... पानी हूँ पानी हूँ पानी हूँ

आभार : KNICK N KNACK BLOG

तपता हूँ 
पिघलता भी हूँ ....
बह के तुम तक आना मुझे 
अच्छा लगता है ... 
बूंदों की शक्ल में 
कल बरसूँगा ...... चकवे का गला 
सूख जो  गया है .... 
टिहटिहाती 
टिटहरी की तड़प 
सुनी है न तुमने ...
सबके लिए आउंगा 
बादल से रिमझिम रिमझिम से टपटप
बूँद बूँद समा जाउंगा तुममें ...
धरा में .... नदियों में ... 
कंदराओं में ..... तुम 
मेरी कीमत न लगा सकते हो ..
न किसी को चुका सकते हो ...
मैं ....... अनमोल हूँ 
मैं .......बहुमोल   हूँ 
मैं .... पानी हूँ पानी हूँ पानी हूँ 
तुम सब प्यासे हो .....प्यासे हो ......प्यासे हो 


4.5.16

गिरीश की दो कविताएँ

दस्तावेज़ 
दफ्तर में पड़े 
एक लावारिस दस्तावेज़ सा 
जरूरत होने पर 
धूल हटाई जाती है मुझसे
फिर 
बीडी वाले हाथों से 
पटक दिया जाता हूँ 
अन्य लावारिस दस्तावेजों के बीच 
अक्सर 
चार बरस चार माह यही होता है 
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दरख्तों पर 
दरख्तों पर ऊँघता 
बेसुध गिद्ध 
नज़र आता है उस ताकतवर की तरह 
जो अफसर कहा जाता है 
आज के दफ्तरों में 
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