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बुधवार, मई 04, 2016

गिरीश की दो कविताएँ

दस्तावेज़ 
दफ्तर में पड़े 
एक लावारिस दस्तावेज़ सा 
जरूरत होने पर 
धूल हटाई जाती है मुझसे
फिर 
बीडी वाले हाथों से 
पटक दिया जाता हूँ 
अन्य लावारिस दस्तावेजों के बीच 
अक्सर 
चार बरस चार माह यही होता है 
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दरख्तों पर 
दरख्तों पर ऊँघता 
बेसुध गिद्ध 
नज़र आता है उस ताकतवर की तरह 
जो अफसर कहा जाता है 
आज के दफ्तरों में 
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