19.5.16

पिघला कभी जो जाके, समन्दर में सो गया









पिघला कभी जो जाके, समन्दर में सो गया
और जब तपा तो देखिये आकाश हो गया...!
पानी हूँ यकीं कीजिये प्यासों के लिए हूँ 
सेहरा में बन *मिराज मैं एहसास हो गया !!
चेहरे से जब हटा तो , बेनूर हुए आप
उतारा जो जेवरात से विश्वास खो गया !!
मुझको यकीं नहीं है उनपे न आप पे 
तट पे मेरे जो तेरा , रहवास हो गया !!
चकवे की तरह प्यासे जब भी  रहेंगे आप -

समझूंगा आपको मेरा, आभास हो गया .!!

*मिराज= मारीचिका

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