पिघला कभी जो जाके, समन्दर में सो गया
और जब तपा तो देखिये आकाश हो गया...!
पानी हूँ यकीं कीजिये प्यासों के लिए हूँ
सेहरा में बन *मिराज मैं एहसास हो गया !!
और जब तपा तो देखिये आकाश हो गया...!
पानी हूँ यकीं कीजिये प्यासों के लिए हूँ
सेहरा में बन *मिराज मैं एहसास हो गया !!
चेहरे से जब हटा तो , बेनूर हुए आप –
उतारा जो जेवरात से – विश्वास खो गया !!
मुझको यकीं नहीं है – उनपे न आप पे
तट पे मेरे जो तेरा , रहवास हो गया !!
उतारा जो जेवरात से – विश्वास खो गया !!
मुझको यकीं नहीं है – उनपे न आप पे
तट पे मेरे जो तेरा , रहवास हो गया !!
चकवे की तरह प्यासे जब भी रहेंगे आप
-
समझूंगा आपको मेरा, आभास
हो गया .!!
*मिराज= मारीचिका