संवादी ऋषि तत्वज्ञानी, तुम पराध्वनी के विज्ञानी
हे नारद आना इस युग में, युग भूल रहा अन्तसवाणी
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सत्य सनातन घायल है, धर्म ध्वजा खतरे में है
मानवतावादी चिंतन भी, बंदी है ! पहरे में है..!
मुदितामय कैसे हों जीवन ? हैं ज्ञान-स्रोत ही अभिमानी !!
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नीति के अभिभाषक हो तुम, हो युग चिन्तक अनुशासक तुम
बिखरा बिखरा युग का चिंतन, आ जाओ वीणा वादक तुम !
युग को समझना है मुनिवर – क्या ब्रम्ह है क्या अन्तसवाणी ?
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हे कथाकार हे चिरज्ञानी हे युगदृष्टा अब आ जाओ ,
इक तान छेड़ दो वीणा की , चिंतन करताल बजा जाओ ..!
मेरे मन बात पढ़ो ऋषिवर , मुझको सुनना अमृतवाणी !!