10.9.15

कम से कम हिन्दी भाषा को सियासी परिधि से मुक्त रखिये राजेश जोशी जी

 भारत में साहित्यकारों का एक विशेष वर्ग खुमारी के संसाधनों की कमी के चलते राजधानी में दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के एन पहले भोपाल में एक प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी कुंठा वमन करता नज़र आ रहा है . उनकी ही भाषा में कहा जाए तो इस प्रेस वार्ता में उनके विषय चुक गए हैं अब उनको हिन्दी में बाज़ार नजर आ रहा है . आरोप बहुत लगाए गए पर सब सियासी अधिक नज़र आ रहे हैं जिन मुद्दों का साहित्य से दूर दूर तक का कोई वास्ता नहीं ... !  
       ‘हिंदी जगत: विस्तार एवं संभावनाएं’ के मुख्य बिंदु पर होने वाले इस सम्मलेन को सियासी मुद्दों की परिधि में घेरने की कोशिश बेमानी है . राजेश जोशी साहब जैसे विद्वान साहित्यकार जाने किस मज़बूरी में हैं मेरी उनको सलाह है कि कम से कम हिन्दी  सम्मलेन को सियासत से मुक्त रखिये  राजेश जोशी जी  . आपने व्यवस्था को कभी सुझाया  होगा ... शायद कि - हिन्दी को क़ानून की भाषा बनाओ .. ? हो सकता है कहा हो ........ ? पर पहले कोई नतीज़ा निकला.. ?  कैसे निकलता ....... उसे तो आज निकलना था. प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा है कि -"न्याय - प्रक्रिया की भाषा हिन्दी हो सकती है . "  क्या इससे पहले आपकी आवाज़ सुनी गई ? सुनी गई होती तो शायद कुछ बदलाव नज़र आता . 
         भारत की भाषाई विविधताओं के चलते हिन्दी ही नहीं अन्य  भारतीय भाषाओं  के साथ बेहद दुर्व्यवहार हुए हैं ... भाषाई आधार पर विद्वेशात्मकता को एक उदाहरण के रूप में  देखा जा सकता है .  
              32 सालों से विदेशों में होने वाले सम्मेलनों में कौन कौन आमन्त्रण पाते और जाते थे इसका पुनरावलोकन कर लीजिये महाशय . इस बात का भी मूल्यांकन लगे हाथ कर लेना जी कि इससे कितने लाभ हुए इस मुद्दे पर हम आप को विचार करना चाहिए . हिन्दी अगर बाज़ार, रोटी, कपड़ा और मकान की भाषा बनाती है तो आपको सर दर्द किस बात का .. मुझे लगता है कि आप लोगों को  चीथड़ो से लिपटा भारत देखना पसंद है ताकि कोई विदेशी फिल्मकार आए और एक स्लमडॉग मिलेनियर टाइप की फिल्म बनाकर जय है जय सुनवाए .. .
        मुझे तो लग रहा है कि आप नहीं चाहते ही नहीं  कि न्याय-प्रक्रिया की भाषा हिन्दी हो .. तो शायद आप रुढियों को तोड़ने के इच्छुक नहीं हैं . मैं सर्वहारा को सर्वजीता देखना चाहता हूँ ...... आप उसे सर्वहारा बनाए रखना चाहते हैं ताकि आपके हाथ में मुद्दा सदैव रहे . मुझे मालूम है आप पूछेंगे कि इस सम्मलेन से क्या हिन्दी की स्थिति में सुधार आएगा तो मित्र जानिये अवश्य सूत्रपात हो जाएगा .  तकनीकी से अवसर मिलते हैं अवसर से रोज़गार .... रोज़गार से रोटी जिसके हिमायती सब हैं आप मैं हम सब ......   
       माओ के देश देश से ही सीख लीजिये दुनिया का बड़ा बाज़ारवादी बन गया है . बाज़ार युद्ध रोकता है तो बाज़ार उम्दा है . बाज़ार रोटी देता है तो और भी बेहतर है , बाज़ार ज़िंदा रखता है तो सबसे अच्छा है . पर बाज़ार अथवा कोई भी  केवल व्यवस्था को ध्वस्त करे कदापि स्वीकार्य न होगा . 

9.9.15

सु-स्वागतम् : 10वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन :शिवराज सिंह , मुख्यमंत्री मध्य-प्रदेश

व्यवस्था में लगे  अधिकारी 
अदभुत समारोह स्थल एक पूर्वावलोकन  
   भारत के हृदय स्थल मध्यप्रदेश की सुंदर राजधानी भोपाल में 10 वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में देश-विदेश से पधारे सभी हिन्दी-प्रेमियों का साढ़े सात करोड़ मध्यप्रदेशवासियों की ओर से हार्दिक स्वागत, वंदन, अभिनंदन।
सार्वजनिक जीवन में सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन करने और उनमें शामिल होने के अवसर आते ही रहते हैं। सभी आयोजनों का अपना-अपना विशिष्ट महत्व होता है, लेकिन कुछ अनुष्ठान ऐसे होते हैं, जिनमें थोड़ा-सा योगदान करके भी जीवन में सार्थकता का बोध बढ़ जाता है।
दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के आतिथ्य का अवसर मिलना मेरा परम सौभाग्य है। इस तीन दिन के हिन्दी महाकुंभ में करीब 39 देशों तथा भारत के कोने-कोने से करीब 2500 से अधिक हिन्दी-प्रेमी हिन्दी को और आगे बढ़ाने की दिशा में चिंतन, मंथन करेंगे। सम्मेलन की अवधि में सभी प्रतिभागियों तथा अतिथियों के सत्कार का विनम्र दायित्व निभाते हुए मुझे अत्याधिक आनंद और आह्लाद का अनुभव हो रहा है।
हमारा हर्ष इस एक बात से कई गुना बढ़ जाता है कि हिन्दी के अनन्य भक्त और देश के गौरव, प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्र मोदीजी सम्मेलन का शुभारंभ करने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री के रूप में मात्र 16 माह की अवधि में ही उन्होंने हिन्दी का गौरव बढ़ाने की दिशा में सार्थक प्रयास किये हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर हिन्दी का गौरव बढ़ाने का सबसे पहला प्रयास पूर्व प्रधानमंत्री परम श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ में 1977 में हिन्दी में भाषण देकर किया था। वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में ओजपूर्ण भाषण देकर अटलजी के प्रयास को आगे बढ़ाया है। अपने इसी भाषण में मोदीजी ने विश्व योग दिवस मनाये जाने का प्रस्ताव रखा, जिसे 177 देशों ने सहर्ष स्वीकार किया। फलस्वरूप 21 जून को विश्व योग दिवस मनाने की परम्परा शुरू हुई। मुझे पूरा विश्वास है कि माननीय मोदीजी के सशक्त नेतृत्व में ही हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता मिलेगी।
हिन्दी अपनी अंतर्निहित शक्ति से दुनिया भर में तेजी से प्रसारित और लोकप्रिय हो रही है। इसके सौन्दर्य और माधुर्य की एक बूँद चखने वाला भी सदा-सदा के लिए इसका अपना हो जाता है। यही कारण है कि दुनिया के 22 देशों में करोड़ों लोग हिन्दी का प्रयोग करते हैं। संसार के 150 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पठन-पाठन की व्यवस्था है। वर्धा में अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय स्थापित है। मॉरीशस में विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना हो चुकी है। हमारे देश में 70 प्रतिशत से अधिक लोग हिन्दी समझते हैं।
जिन राज्यों में गलत फहमी के कारण पहले हिन्दी का प्रबल विरोध होता था, वहाँ भी आज हिन्दी अपनी जगह बनाते हुए अधिकाधिक स्वीकार्य होती जा रही है। हिन्दी में विभिन्न भाषा-भाषी प्रांतों तथा समुदायों को एकता के सूत्र में पिरोने की अदभुत क्षमता है। नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन की अध्यक्षता मराठी भाषी श्री अनंत गोपाल शेवड़े ने की। हिन्दी के सबसे प्रबल पक्षधर महात्मा गाँधी थे। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का पहला आह्वान करने वाले महान कवि श्री नर्मदाशंकर नर्मद भी गुजरात की माटी के ही पुत्र थे।
हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में संत कबीर, मलिक मोहम्मद जायसी, अब्दुल रहीम खा़नखा़ना, रसखान, अमीर खुसरो मुबारक, आलम और शेख जैसी हस्तियों के योगदान को कौन नकार सकता है?
साहित्य में तो हिन्दी ने बहुत ऊँचाइयों को छू लिया है लेकिन राजकाज में इसका अभी वांछित प्रयोग नहीं हो पा रहा। मुझे इस बात का हर्ष है कि हमने परम आदरणीय अटलजी के नाम पर प्रदेश में हिन्दी विश्वविद्यालय की स्थापना की है। राजकाज में हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग किया जा रहा है। हमारे लगभग सभी विभागों की वेबसाइट हिन्दी में भी हैं। मुख्यमंत्री हेल्पलाइन के लिये पूरा सॉफ्टवेयर हिन्दी में तैयार किया गया है। कम्प्यूटर से किये जाने वाले शासन के सभी कार्यों के लिये प्राक्कलन हिन्दी में बनाये जा रहे हैं। किसानों को सलाह के एसएमएस हिन्दी में भेजे जा रहे हैं। शासकीय नोटशीट पर टीप का अंकन हिन्दी में किया जाता है।
मुझे पूरा विश्वास है कि तीन-दिवसीय विश्व हिन्दी सम्मेलन में मंथन से जो अमृत निकलेगा, वह हमारी राष्ट्रभाषा को और अधिक पुष्पित-पल्लवित करेगा। इसकी सुगंध चारों दिशाओं में और तीव्रता से प्रसारित होगी।

2.9.15

बालगृह के निराश्रित भाइयों को मिला बालभवन की बहनों का स्नेह



 महिला सशक्तिकरण अतंर्गत संचालित शासकीय बाल गृह, जबलपुर में श्रीमति मनीषा लुम्बा, संभागीय उपसंचालक
के मार्गदर्शन एवं समाज सेवी श्री नितिन अग्रवाल के आतिथ्य में बाल गृह के बच्चों एवं
बाल भवन के बच्चों द्वारा जन्मदिवस एवं  रक्षाबंधन
कार्यक्रम मनाया गया । बाल भवन की बालिकाओं ने बड़े मनोयोग से  शासकीय बाल गृह
, जबलपुर के निराश्रित बालकों को बाल भवन जबलपुर की छात्राओं द्वारा हस्तनिर्मित
राखी बांधी गई ।
इसी दौरान आज बाल
गृह के बच्चों क्रमश: ललित
,
आकाश कोहली, राकेश, मेहरबान एवं अमर का जन्मदिन भी मनाया गया । बच्चों के द्वारा केक काटकर बर्थडे
मनाया गया । बाल भवन की छात्राओं द्वारा कार्यक्रम में बच्चों के लिए बर्थडे गीत प्रस्तुत
किए गए। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बाल गृह के निराश्रित बच्चों के साथ रक्षाबंधन
मनाकर उन्हें उनके जीवन के  रिश्तों  की कमी पूर्ण करने का एक प्रयास करते हुए उनको
सामान्य बालसुलभ जीवन से जोड़ा जाना है . ।
  
कार्यक्रम में बाल भवन की ओर से आस्था अग्रहरि
, साध्वी विरहा,
शिफाली सुहाने, श्रुति जैन, प्रिया सौंधिया,
प्रांजल जैन, मनीषा तिवारी, यषी पचौरी,
तान्या बडकुल, रिंकी राय, श्रेया ठाकुर, रेशम ठाकुर  श्रेया खंडेलवाल ने
सुश्री शिप्रा सुल्लेरे के संगीत निर्देशन में गीत प्रस्तुत किये  । बालगृह के 8  बच्चों को भी बालभवन में गायन का  प्रशिक्षण दिया गया . उन में से 4 बच्चों नें भी
गीत प्रस्तुत किये गए .  
कार्यक्रम में श्रीमति
मनीषा लुम्बा
,
संभागीय उपसंचालक के द्वारा बच्चों को रक्षाबंधन के त्यौहार
पर मार्गदर्शन स्वरूप  आर्शीवचन देते हुए
राखी के  त्यौहार पर चर्चा करते हुए  शुभकामनाऐं दी गई । महिला सशक्तिकरण का प्रयास बाल
गृह के निराश्रित बच्चों का बाल भवन के कलाकार छात्रों से मेल कराकर वैचारिक सांस्कृतिक
एवं भावनात्मक समरसता  का विकास होगा .
अभाव जनित नकारात्मक सोच की समाप्ति हो इस उद्देश्य की पूर्ती हेतु  प्रतिमाह के आखिरी सप्ताह में जन्मदिन कार्यक्रम
बाल गृह में आयोजित होते रहेंगे


कार्यक्रंम बाल गृह
के अधीक्षक श्री विजय सिंह ठाकुर एवं बाल भवन के संचालक श्री गिरीष बिल्लौरे के निर्देशन
में संपादित हुआ । जबकि कार्यकारी साथियों के रूप में श्री अनिल गांधी, श्री पियूष
करे , श्री देवेन्द्र यादव, श्री इंद्र पांडे का योगदान प्रमुख रहा है .  

26.8.15

मुस्काती अक्सर दिखती है – ज्यों पट सजतें हों स्वागत के

जब  माँ सोती तब अय पलको
कुछ भी हो तुम झुंझलाना मत .
 लब जैसे हो तुम वैसे ही रहना
अनजाने में इतराना मत –..

वो थक के चूर हुई जब भी
सबकी चिंता से ताकत ले । 
मुस्काती अक्सर दिखती है
ज्यों द्वार  सजें हों स्वागत के

 अय सपने मत जाना उन तक
जो सबके सपने दिनभर लखती .
वो देवी जो इस भोर से उस तक
सबका हो भला यही तकती .


वो अनुभूति वो स्मृति से 
जाए तो रोने लगता हूँ 
उसकी गोदी में सर रखके 

खुद को ही खोने लगता हूँ  ।


उसकी यादों में डूबा तो -
नयनों से फिर माणिक छलके 
अपनी बेटी को देख देख -
मीत हुए फिर हम हलके !!

  

17.8.15

घुमंतू भारतीयों को मिली थी 31 अगस्त को आज़ादी : फ़िरदौस ख़ान

घुमंतू जातियां : आभार अभिव्यक्ति 
देशभर में 15 अगस्त को जश्ने-आज़ादी के तौर पर मनाया जाता है, लेकिन घुमंतू जातियां के लोग 31 अगस्त को आज़ादी भी का जश्न मनाते हैं.
ऑल इंडिया विमुक्त जाति मोर्चा के सदस्य भोला का कहना है कि ऐसा नहीं कि हम स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाते, लेकिन सच तो यही है कि हमारे लिए 15 अगस्त की बजाय 31 अगस्त का ज़्यादा महत्व है. वे बताते हैं कि 15 अगस्त 1947 को जब देश आज़ाद हुआ था और लोग खुली फ़िज़ा में सांस ले रहे थे, तब भी घुमंतू जातियों के लोगों को दिन में तीन बार पुलिस थाने में हाज़िरी लगानी पड़ती थी. अगर कोई व्यक्ति बीमार होने पर या किसी दूसरी वजह से थाने में उपस्थित नहीं हो पाता, तो पुलिस द्वारा उसे प्रताड़ित किया जाता था. इतना ही नहीं चोरी या कोई अन्य अपराधिक घटना होने पर भी पुलिस क़हर उन पर टूटता था. यह सिलसिला लंबे अरसे तक चलता रहा. आख़िरकार तंग आकर प्रताड़ित लोगों ने इस प्रशासनिक कुप्रथा के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की और फिर शुरू हुआ सिलसिला लोगों में जागरूकता लाने का. लोगों का संघर्ष रंग लाया और फिर वर्ष 1952 में अंग्रेज़ों द्वारा 1871 में बनाए गए एक्ट संशोधन किया गया. इसी साल 31 अगस्त को घुमंतू जातियों के लोगों को थाने में हाज़िरी लगाने से निजात मिली.
इस समय देशभर में विमुक्त जातियों के 192 कबीलों के क़रीब 20 करोड़ लोग हैं. हरियाणा की क़रीब साढ़े सात फ़ीसद आबादी इन्हीं जातियों की है. इन विमुक्त जातियों में सांसी, बावरिये, भाट, नट, भेड़कट और किकर आदि जातियां शामिल हैं. भाट जाति से संबंध रखने वाले प्रभु बताते हैं कि 31 अगस्त के दिन क़बीले के रस्मो-रिवाज के मुताबिक़ सामूहिक नृत्य का आयोजन किया जाता है. महिलाएं इकट्ठी होकर पकवान बनाती हैं और उसके बाद सामूहिक भोज होता है. बच्चे भी अपने-अपने तरीक़ों से खुशी ज़ाहिर करते हैं. कई क़बीलों में पतंगबाज़ी का आयोजन किया जाता है. जीतने वाले व्यक्ति को समारोह की शोभा माना जाता है. लोग उसे बधाइयां के साथ उपहार पेश करते हैं. इन जातियों के लोगों के संस्थानों में भी 31 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाए जाते हैं. इन कार्यक्रमों में केंद्रीय मंत्रियों से लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी भी शिरकत करते हैं. इसकी तैयारियों के लिए संगठन के पदाधिकारी इलाक़े के गांव-गांव का दौरा कर लोगों को समारोह के लिए आमंत्रित करते हैं.
हरियाणा के अलावा देश के अन्य राज्यों में भी आदिवासी समाज की अनेक जातियां निवास करती हैं, जिनमें आंध प्रदेश में भील, चेंचु, गोंड, कांडा, लम्बाडी, सुंगली और नायक, असम में बोषे, कचारी मिकिर यानी कार्बी, लंलुग, राथा, दिमासा, हमर और हजोंग, बिहार और झारखंड में झमुर, बंजारा, बिरहोर, कोर्वा, मुंडा, ओरांव, संथाल, गोंड और खंडिया, गुजराज में भील, ढोडिया, गोंड, सिद्दी, बोर्डिया और भीलाला, हिमाचल प्रदेश में गद्दी, लाहुआला और स्वांगला, कर्नाटक में भील, चेंचु, गाउड, कुरूबा, कम्मारा, कोली, कोथा, मयाका और टोडा, केरल में आदियम, कोंडकप्पू, मलैस और पल्लियार, मध्य प्रदेश में भील, बिरहोर, उमर, गोंड, खरिआ, माझी, मुंडा और ओरांव, छत्तीसगढ़ में परही, भीलाला, भीलाइत, प्रधान, राजगोंड, सहरिया, कंवर, भींजवार, बैगा, कोल और कोरकू, महाराष्ट्र में भील, भुंजिआ, चोधरा, ढोडिया, गोंड, खरिया, नायक, ओरावं, पर्धी और पथना, मेघालय में गारो, खासी और जयंतिया, उड़ीसा में जुआंग, खांड, करूआ, मुंडारी, ओरांव, संथाल, धारूआ और नायक, राजस्थान में भील, दमोर, गरस्ता, मीना और सलरिया, तमिलनाडू में इरूलर, कम्मरार, कोंडकप्पू, कोटा, महमलासर, पल्लेयन और टोडा, त्रिपुरा में चकमा, गारो, खासी, कुकी, लुसाई, लियांग और संताल, पश्चिम बंगाल में असुर, बिरहोर, कोर्वा, लेपचा, मुंडा, संथाल और गोंड, मिजोरम में लुसई, कुकी, गारो, खासी, जयंतिया और मिकिट, गोवा में टोडी और नायक, दमन व द्वीप में ढोडी, मिक्कड़ और वर्ती, अंडमान में जारवा, निकोबारी, ओंजे, सेंटीनेलीज, शौम्पेंस और ग्रेट अंडमानी, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में भाटी, बुक्सा, जौनसारी और थारू, नागालैंड में नागा, कुकी, मिकिट और गारो, सिक्किम में भुटिया और लेपचा तथा जम्मू व कश्मीर में चिद्दंपा, गर्रा, गाुर और गड्डी आदि शामिल हैं. इनमें से अनेक जातियां अपने अधिकारों को लेकर संघर्षरत हैं.
                इंडियन नेशनल लोकदल के टपरीवास विमुक्त जाति मोर्चा के ज़िलाध्यक्ष बहादुर सिंह का कहना है कि आज़ादी के छह दशक बाद भी आदिवासी समाज की घुमंतू जातियां विकास से कोसों दूर हैं. वे कहते हैं कि घुमंतू जातियों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए सरकार को चाहिए कि वे इन्हें स्थाई रूप से आबाद करे. इनके लिए बस्तियां बनाई जाएं और उन्हें आवास मुहैया कराए जाएं. बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाए. उन्हें एसटी का दर्जा दिया जाए, ताकि उन्हें भी आरक्षण का लाभ मिल सके.
ग़ौरतलब है कि आदिवासी समाज की अधिकतर जातियां आज भी बदहाली की ज़िन्दगी गुज़ारने का मजबूर हैं. ग्रामीण विकास मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के मुताबिक़ इन जातियों का आधे से ज़्यादा हिस्सा गरीबी की रेखा से नीचे पाया गया है. इनकी प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे नीचे रहती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ जनजातियों की 9,17,590 एकड़ जनजातीय भूमि हस्तांतरित की गई और ऐसी भूमि का महज़ 5,37,610 एकड़ भूमि ही उन्हें वापस दिलाई गई है.
घुमंतू जातियों की बदहाली के अनेक कारण हैं, जिनमें वनों का विनाश मुख्य रूप से शामिल है. वन जनजातियों के जीवनयापन का एकमात्र साधन हैं, लेकिन वन परिस्थितिकी तंत्रों में जनजातियों और वन के बीच एक अटूट रिश्ता है. ख़त्म हो रहे वन संसाधन, वन जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के लिए खाद्य सुरक्षा को जोखिम में डाल रहे हैं. जागरूकता की कमी भी इन जातियों के विकास में रुकावट बनी है. केंद्र सरकार और प्रदेश सरकारों द्वारा शुरू किए गए विभिन्न विकास संबंधी कार्यक्रमों के बारे में घुमंतू जातियों के लोगों को जानकारी नहीं है, जिसके कारण उन्हें योजनाओं का समुचित लाभ नहीं मिल पाता.

ग़ौरतलब है कि पांचवीं पंचवर्षीय योजना से देशभर में जनजातियों के विकास के लिए जनजातीय उप योजना कार्यनीत टीएसपी भी अपनाई गई. इसके तहत अमूमन जनजातियों से बसे संपूर्ण  क्षेत्र को उनकी आबादी के हिसाब से कई वर्गों में शामिल किया गया है. इन वर्गों में समेकित क्षेत्र विकास परियोजना टीडीपी, संशोधित क्षेत्र विकास .ष्टिकोण माडा, क्लस्टर और आदिम जनजातीय समूह शामिल हैं. जनजातीय उप योजना दृष्टिकोण कम से कम राज्य में राज्य योजना से जनजातियों की आबादी के अनुपात में और केंद्रीय मंत्रालयों और वित्तीय संस्थाओं के बजट से देश के लिए जनजातीय आबादी के समग्र समानुपात में राज्य योजना के साथ-साथ केंद्रीय मंत्रालयों से जनजातीय क्षेत्रों के लिए निधि आबंटन सुनिश्चित करता है. जनजातीय कार्य मंत्रालय ने अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और विकास पर लक्षित विभिन्न योजनाओं करे कार्यान्वित करना जारी रखा है, लेकिन अफ़सोस की बात यही है कि अज्ञानता, भ्रष्टाचार और लालफ़ीताशाही के चलते ये जातियां सरकारी योजनाओं के लाभ से महरूम हैं. इसके लिए ज़रूरी है कि इन जातियों में जागरूकता अभियान चलाकर उनके चहुंमुखी विकास के लिए कारगर क़दम उठाए जाएं, वरना सरकार की कल्याणकारी योजनाएं कागज़ों तक ही सिमट कर रह जाएंगी.

16.8.15

वर्तमान की भौतिकवादी मीडिया -डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

मीडिया जगत से जुड़े लोग कुछ उस तरह के हो गए हैं जैसे पुराने समय में एक राज्य का महामंत्री। शायद इस कहानी को अधिकाँश लोग नहीं सुने होंगे। उस कहानी का सार यहाँ प्रस्तुत करना आवश्यक हो गया है। कहानी के अनुसार उक्त राज्य में अकाल पड़ गया था प्रजा में त्राहि-त्राहि मची थी। यह बात राजा के कानो तक नहीं पहुँची थी। राजा जब भीं भरी सभा में अपने खास महामंत्री से पूछता कि बताओ राज्य की प्रजा का क्या हाल है? तब महामंत्री उत्तर देता कि हे राजन, राज्य में दूध घी की नदियाँ बह रही हैं प्रजा खुशहाल है।
इसके बावजूद राजा को गुप्तचरों ने राज्य में ‘अकाल‘ की जो विभीषिका प्रस्तुत किया उससे राजा का मन विचलित हो गया। मुलतः वह एक दिन अचानक अपने खास गुप्तचरों के साथ राज्य भ्रमण पर निकल पड़ा। हालात जो दिखाई दिए उससे ‘राजा‘ को अन्दर ही अन्दर महामंत्री के मिथ्या और भ्रामक संवाद से क्रोध भी आया। दूसरे दिन भरी सभा में राजा ने फरमान जारी कर दिया कि महामंत्री जो राजकीय सुख-सुविधाएँ प्रदान की गई हैं वह वापस ली जाएँ। राजा के हुक्म की तामील हुई और महामंत्री को प्रदत्त सभी राजकीय सुविधाएँ वापस ले ली गईं।
दरबार बैठता है। राजा ने महामंत्री से पूछाँ ‘अब बताओ राज्य में कैसा चल रहा है .....? महामंत्री ने कहा सरकार अवर्षण से सूखा पड़ गया है। राज्य में दुर्भिक्ष आ गया है। नदी नाले सूख गए हैं, प्रजा भूखो मर रही है। सर्वत्र त्राहि-त्राहि मची है। महामंत्री के इस उद्बोधन से उपस्थित सभा सदों को घोर आश्चर्य हुआ लेकिन राजा खामोश था। क्योंकि वह जानता था कि महामंत्री को इस बात का एहसास तब हुआ जब उनकी सभी राजकीय सुविधाएँ वापस ले ली गई थी। राजा ने तत्काल आदेश जारी किया कि महामंत्री अविलम्ब राज्य की प्रजा का ध्यान दें और हरहाल में जनता को कोषागार से धन निकालकर जीने के लिए समस्त सुविधाएँ मुहैया कराई जाएँं।
ठीक उसी तरह से अब मीडिया और उससे जुड़े स्वार्थी तत्व कृत्य करने लगे हैं जैसे उस राज्य का महामंत्री कर रहा था। मसलन पेड न्यूज का प्रकाशन/प्रसारण वह भी अच्छी-खासी कीमत के एवज में ये लोग करने लगे हैं। अवाम की चिन्ता नहीं है। ये स्वंय सुख-सुविधा संपन्न हैं इसलिए इनको सुविधाएं मुहैया कराने वालों की फिक्र ज्यादा रहती है। विधुत संकट, किसानों में सिंचाई के लिए पानी का संकट और अन्य कष्टोंें का प्रकाशन तभी होता है जब इनके पृष्ठों में खबरों का अकाल रहता है।
मीडिया स्वार्थपूर्ति हेतु संघर्ष समिति के रूप में कार्य करने लगी है, ऐसा देखा, पढ़ा और महसूस किया जा सकता है। अकबर इलाहाबादी का शेर याद आने लगा है- न तीर निकालो-न तलवार निकालो, गर दुश्मन हो मुकाबिल तो अखबार निकालो। अकबर साहेब ने यह उस जमाने में कहा था जब मीडिया का एक ही स्वरूप प्रचलित था वह था अखबार (प्रिण्ट)। अब तो प्रिण्ट इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया का जमाना चल रहा है। बहरहाल कुछ भी हो इस समय मनी/मीडिया/माफिया का गठजोड़ कायम है। ऐसी स्थिति में मीडिया और इससे सम्बद्ध लोगों को अवाम की पीड़ा का एहसास नहीं हो रहा है। ज्यादा क्या लिखूँ/कहूँ आप सब समझदार हैं और समझदार के लिए इशारा ही काफी होता है।
-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार
E-mail- rainbow.news@rediffmail.com

15.8.15

आज़ाद तमन्नाओं के पंख

अपनी आज़ाद तमन्नाओं के पंख लिए
उड़ चला मैं ......... उस उंचाई को छूने
जिसे हिमालय कहते हैं ?
न...
तो आकाश कहते हैं ...?  न....
जिसे विश्वास कहते हैं ....
हाँ .... आज़ादी उनके साहस का
जो मर मिटे ... 47 से पहले ...
जो हर पल मर मिटने पर आमादा हैं
सहदों पर ... सरहदों के भीतर ....
हर तरफ विकृतियों से जूझना सिखाते हैं
हाँ वे रणबांकुरे ...
जो आज़ादी की पल प्रति पल
कीमत चुकाते हैं
और मैं ..तुम ..हम सब
जब ... अपना हक़ जताते हैं ...
तब वे वीर बाँकुरे .... सीने पर गोलियां खाते हैं ...
हिमगिरि की बर्फ में पैरों को गलाते हैं
तब जब अपने स्वार्थ के लिए संसद तक रोकते हैं
तब वे सीमा पर
सांस रोककर सीने दुश्मन को छकाते हैं ...
हाँ तब जब हम अपना ज़मीर बेचते हैं
तब वो वहां सरहदों पर मर जाने की हद तक जाकर आज़ादी बचाते हैं ...



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अलबरूनी का भारत : समीक्षा

"अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार          औसत नवबौद्धों  की तरह ब्राह्मणों को गरियाने वाले श...